Class 10 Hindi Notes Chapter 1 (कबीर: साखी) – Sparsh Book
नमस्ते विद्यार्थियों।
आज हम कक्षा 10 की 'स्पर्श' भाग 2 पुस्तक के पहले पाठ, संत कबीरदास जी द्वारा रचित 'साखी' का अध्ययन करेंगे। यह पाठ न केवल आपकी बोर्ड परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि विभिन्न सरकारी परीक्षाओं में भी हिंदी साहित्य और भाषा खंड के अंतर्गत इससे प्रश्न पूछे जाते हैं। हम परीक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण बिंदुओं पर विशेष ध्यान देंगे।
पाठ 1: कबीर - साखी (विस्तृत नोट्स)
1. कवि परिचय: संत कबीरदास
- काल: भक्तिकाल (लगभग 15वीं शताब्दी, जन्म-मृत्यु को लेकर मतभेद हैं, सामान्यतः 1398-1518 ई. माना जाता है)।
- भक्ति धारा: निर्गुण भक्ति धारा के ज्ञानाश्रयी शाखा के प्रमुख कवि। ये ईश्वर के निराकार रूप के उपासक थे।
- गुरु: रामानंद जी।
- सामाजिक योगदान: कबीर केवल कवि ही नहीं, बल्कि एक महान समाज सुधारक भी थे। उन्होंने तत्कालीन समाज में व्याप्त पाखंड, अंधविश्वास, जाति-पाति, धार्मिक कट्टरता और बाह्याडंबरों का पुरजोर खंडन किया। उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता पर बल दिया।
- भाषा: इनकी भाषा को 'सधुक्कड़ी' या 'पंचमेल खिचड़ी' कहा जाता है। इसमें हिंदी की विभिन्न बोलियों (जैसे - अवधी, ब्रज, खड़ी बोली, राजस्थानी, पंजाबी) के शब्द मिलते हैं। भाषा सीधी, सरल और चोट करने वाली है।
- रचनाएँ: कबीर पढ़े-लिखे नहीं थे, उन्होंने जो कहा, उनके शिष्यों ने उसे लिपिबद्ध किया। इनकी वाणियों का संग्रह 'बीजक' कहलाता है, जिसके तीन भाग हैं - साखी, सबद, रमैनी।
2. 'साखी' का अर्थ
- 'साखी' शब्द संस्कृत के 'साक्षी' शब्द का तद्भव रूप है।
- 'साक्षी' का अर्थ है - प्रत्यक्ष देखने वाला, गवाह।
- कबीर की साखियाँ उनके प्रत्यक्ष अनुभव और ज्ञान पर आधारित हैं। उन्होंने जो जीवन में देखा, अनुभव किया, उसी सत्य को अपनी साखियों के माध्यम से व्यक्त किया है। ये गेय होती हैं।
3. पाठ में संकलित साखियों का मूल भाव एवं विश्लेषण
इस पाठ में कबीर की आठ साखियाँ संकलित हैं, जो हमें जीवन जीने की कला सिखाती हैं और नैतिक मूल्यों की ओर प्रेरित करती हैं।
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पहली साखी: "ऐसी बाँणी बोलिए, मन का आपा खोइ..."
- भावार्थ: कबीर कहते हैं कि मनुष्य को ऐसी मधुर और विनम्र वाणी बोलनी चाहिए जिससे मन का अहंकार (आपा) समाप्त हो जाए। ऐसी वाणी सुनने वाले को भी सुख देती है और स्वयं बोलने वाले को भी शीतलता प्रदान करती है।
- संदेश: मीठी वाणी का महत्व, अहंकार त्याग।
- काव्य सौंदर्य: 'बाँणी बोलिए' में अनुप्रास अलंकार। भाषा सधुक्कड़ी, दोहा छंद, शांत रस।
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दूसरी साखी: "कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूँढै बन माहिं..."
- भावार्थ: जिस प्रकार हिरण अपनी ही नाभि में स्थित कस्तूरी की सुगंध से अनजान होकर उसे पूरे जंगल में खोजता फिरता है, उसी प्रकार मनुष्य भी ईश्वर को मंदिर-मस्जिद आदि बाहरी स्थानों में ढूँढता है, जबकि ईश्वर तो उसके अपने हृदय में ही निवास करता है।
- संदेश: ईश्वर कण-कण में व्याप्त है, विशेषकर मनुष्य के हृदय में। उसे बाहर खोजने की आवश्यकता नहीं।
- काव्य सौंदर्य: दृष्टांत अलंकार। भाषा सधुक्कड़ी, दोहा छंद, शांत रस।
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तीसरी साखी: "जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहिं..."
- भावार्थ: कबीर कहते हैं कि जब तक मेरे अंदर 'मैं' अर्थात अहंकार था, तब तक मुझे ईश्वर की प्राप्ति नहीं हुई। जब गुरु कृपा से ईश्वर का साक्षात्कार हुआ, तो अहंकार स्वतः ही नष्ट हो गया। ज्ञान रूपी दीपक के प्रकाश से अज्ञान रूपी अंधकार समाप्त हो गया।
- संदेश: ईश्वर प्राप्ति के लिए अहंकार का त्याग आवश्यक है। ज्ञान अज्ञान को मिटाता है।
- काव्य सौंदर्य: 'हरि हैं मैं नाहिं' में विरोधाभास जैसा भाव। 'दीपक दीया' में रूपक अलंकार (ज्ञान रूपी दीपक)। भाषा सधुक्कड़ी, दोहा छंद, शांत रस।
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चौथी साखी: "सुखिया सब संसार है, खाए अरु सोवै..."
- भावार्थ: कबीर कहते हैं कि यह सारा संसार अज्ञान में डूबा हुआ सुखी है, क्योंकि वह केवल खाने और सोने (भौतिक सुखों) में लिप्त है। दुखी तो कबीर (ज्ञानी भक्त) है, जो जाग रहा है और रो रहा है - ईश्वर के विरह में और संसार की दुर्दशा देखकर।
- संदेश: सांसारिक सुख क्षणिक हैं, सच्चा सुख ईश्वर भक्ति में है। ज्ञानी संसार की नश्वरता को समझकर चिंतित रहता है।
- काव्य सौंदर्य: 'खाए अरु सोवै' सांसारिक लिप्तता का प्रतीक। भाषा सधुक्कड़ी, दोहा छंद, शांत रस।
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पाँचवीं साखी: "बिरह भुवंगम तन बसै, मंत्र न लागै कोइ..."
- भावार्थ: ईश्वर के वियोग का सर्प (भुवंगम) जब शरीर में बस जाता है, तो उस पर कोई मंत्र या उपाय काम नहीं करता। ऐसा विरही या तो प्राण त्याग देता है या फिर ईश्वर प्रेम में पागल (बौरा) हो जाता है।
- संदेश: ईश्वर के प्रति विरह की तीव्र वेदना का चित्रण। सच्ची भक्ति की पराकाष्ठा।
- काव्य सौंदर्य: 'बिरह भुवंगम' में रूपक अलंकार। भाषा सधुक्कड़ी, दोहा छंद, शांत एवं वियोग श्रृंगार का पुट।
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छठी साखी: "निंदक नेड़ा राखिए, आँगण कुटी बँधाइ..."
- भावार्थ: कबीर कहते हैं कि हमें अपनी निंदा करने वाले व्यक्ति को अपने पास ही रखना चाहिए, हो सके तो अपने आँगन में ही उसके लिए कुटिया बनवा देनी चाहिए। क्योंकि वह बिना साबुन और पानी के ही हमारे स्वभाव को निर्मल (स्वच्छ) कर देता है (अर्थात उसकी आलोचना से हमें अपनी कमियाँ पता चलती हैं और हम उन्हें सुधारते हैं)।
- संदेश: आलोचना से घबराना नहीं चाहिए, बल्कि उससे सीख लेकर आत्मसुधार करना चाहिए।
- काव्य सौंदर्य: 'बिन साबण पाँणी बिना' में विभावना अलंकार (बिना कारण के कार्य होना)। भाषा सधुक्कड़ी, दोहा छंद, शांत रस।
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सातवीं साखी: "पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोइ..."
- भावार्थ: बड़े-बड़े ग्रंथ और पुस्तकें पढ़-पढ़कर लोग मर गए, परन्तु कोई भी सच्चा ज्ञानी (पंडित) नहीं बन सका। कबीर के अनुसार, यदि कोई प्रेम (ईश्वर प्रेम या मानवीय प्रेम) का ढाई अक्षर भी समझ ले, वही सच्चा ज्ञानी है।
- संदेश: किताबी ज्ञान से अधिक महत्वपूर्ण है प्रेम और अनुभव का ज्ञान। सच्ची विद्वत्ता प्रेम में है।
- काव्य सौंदर्य: 'पढ़ि पढ़ि' में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार। भाषा सधुक्कड़ी, दोहा छंद, शांत रस।
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आठवीं साखी: "हम घर जाल्या आपणाँ, लिया मुराड़ा हाथि..."
- भावार्थ: कबीर कहते हैं कि उन्होंने ज्ञान रूपी मशाल (मुराड़ा) हाथ में लेकर अपने घर (मोह-माया, अज्ञान, सांसारिक आसक्ति रूपी घर) को जला दिया है। अब जो भी उनके साथ भक्ति मार्ग पर चलना चाहता है, वे उसका घर भी जला देंगे (अर्थात उसे भी मोह-माया से मुक्त कर देंगे)।
- संदेश: ईश्वर भक्ति के लिए सांसारिक मोह-माया और अज्ञान का त्याग आवश्यक है। गुरु शिष्य को सही मार्ग दिखाता है।
- काव्य सौंदर्य: 'घर जाल्या' लाक्षणिक प्रयोग है (मोह-माया त्यागना)। 'मुराड़ा' ज्ञान का प्रतीक। भाषा सधुक्कड़ी, दोहा छंद, शांत रस।
4. परीक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण बिंदु
- कबीर की भाषा (सधुक्कड़ी/पंचमेल खिचड़ी) अक्सर पूछी जाती है।
- कबीर किस काल और किस धारा के कवि हैं (भक्तिकाल, निर्गुण, ज्ञानाश्रयी)।
- 'साखी' का अर्थ और यह किस छंद में लिखी गई हैं (दोहा छंद)।
- प्रत्येक साखी का मूल संदेश (मीठी वाणी, अहंकार त्याग, ईश्वर की सर्वव्यापकता, निंदक का महत्व, प्रेम का महत्व, मोह-माया त्याग आदि)।
- साखियों में प्रयुक्त अलंकार (अनुप्रास, रूपक, दृष्टांत, विभावना, पुनरुक्ति प्रकाश)।
- कबीर के समाज सुधारक रूप से संबंधित प्रश्न।
- 'आपा', 'कुंडलि', 'भुवंगम', 'नेड़ा', 'मुराड़ा' जैसे शब्दों के अर्थ।
5. कबीर की भाषा-शैली की विशेषताएँ
- जनभाषा का प्रयोग: आम बोलचाल के शब्दों का प्रयोग।
- सधुक्कड़ी/पंचमेल खिचड़ी: अनेक भाषाओं/बोलियों का मिश्रण।
- प्रत्यक्ष और चोट करने वाली शैली: सीधी बात कहना, पाखंड पर सीधा प्रहार।
- प्रतीकात्मकता: प्रतीकों का सुंदर प्रयोग (जैसे - कस्तूरी, मृग, दीपक, भुवंगम, मुराड़ा)।
- दोहा छंद का प्रयोग: साखियों के लिए मुख्यतः दोहा छंद का प्रयोग।
- उपदेशात्मकता: साखियों का मुख्य उद्देश्य उपदेश देना है।
यह विस्तृत नोट्स आपको कबीर की साखियों को समझने और परीक्षा की तैयारी में मदद करेंगे। अब, चलिए कुछ बहुविकल्पीय प्रश्नों का अभ्यास करते हैं।
अभ्यास हेतु बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs)
प्रश्न 1: कबीरदास भक्तिकाल की किस धारा के कवि थे?
(क) सगुण भक्ति धारा
(ख) निर्गुण भक्ति धारा
(ग) राम भक्ति शाखा
(घ) कृष्ण भक्ति शाखा
प्रश्न 2: 'साखी' शब्द का तत्सम रूप क्या है?
(क) सखा
(ख) साक्षी
(ग) शिक्षा
(घ) सीख
प्रश्न 3: कबीर के अनुसार मनुष्य को कैसी वाणी बोलनी चाहिए?
(क) अहंकार युक्त
(ख) कठोर
(ग) मधुर और अहंकार रहित
(घ) चतुराई भरी
प्रश्न 4: "कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूँढै बन माहिं" - इस साखी के माध्यम से कबीर क्या कहना चाहते हैं?
(क) हिरण मूर्ख होता है।
(ख) कस्तूरी बहुत दुर्लभ है।
(ग) ईश्वर मनुष्य के हृदय में ही व्याप्त है।
(घ) जंगल में ईश्वर को खोजना चाहिए।
प्रश्न 5: कबीर के अनुसार ईश्वर प्राप्ति में सबसे बड़ी बाधा क्या है?
(क) निर्धनता
(ख) अशिक्षा
(ग) अहंकार ('मैं')
(घ) सांसारिक कार्य
प्रश्न 6: "बिरह भुवंगम तन बसै" - यहाँ 'भुवंगम' शब्द का क्या अर्थ है?
(क) भक्त
(ख) मंत्र
(ग) सर्प
(घ) ईश्वर
प्रश्न 7: कबीर निंदक को निकट रखने की सलाह क्यों देते हैं?
(क) निंदक मित्र होता है।
(ख) निंदक से बदला लेने के लिए।
(ग) निंदक बिना साबुन-पानी के स्वभाव निर्मल करता है।
(घ) निंदक को अकेला नहीं छोड़ना चाहिए।
प्रश्न 8: कबीर के अनुसार सच्चा पंडित (ज्ञानी) कौन है?
(क) जो बहुत सारी पुस्तकें पढ़ ले।
(ख) जो ईश्वर प्रेम का ढाई अक्षर समझ ले।
(ग) जो शास्त्रों पर बहस करे।
(घ) जो कर्मकांड करे।
प्रश्न 9: कबीर की भाषा को क्या कहा जाता है?
(क) अवधी
(ख) ब्रजभाषा
(ग) खड़ी बोली
(घ) सधुक्कड़ी / पंचमेल खिचड़ी
प्रश्न 10: "हम घर जाल्या आपणाँ" - यहाँ 'घर जाल्या' का प्रतीकात्मक अर्थ क्या है?
(क) अपना घर जला देना
(ख) मोह-माया और अज्ञान को नष्ट करना
(ग) शत्रु का घर जलाना
(घ) नया घर बनाना
उत्तरमाला:
- (ख)
- (ख)
- (ग)
- (ग)
- (ग)
- (ग)
- (ग)
- (ख)
- (घ)
- (ख)
इन नोट्स और प्रश्नों का अच्छे से अध्ययन करें। कबीर की साखियाँ केवल परीक्षा के लिए ही नहीं, बल्कि जीवन के लिए भी अत्यंत उपयोगी हैं। शुभकामनाएँ!