Class 10 Hindi Notes Chapter 11 (रामवृक्ष बेनीपुरी: बालगोबिन भगत) – Kshitij-II Book
नमस्ते विद्यार्थियो। आज हम क्षितिज-II के गद्य खंड से एक बहुत ही महत्वपूर्ण पाठ, 'बालगोबिन भगत', का अध्ययन करेंगे। यह पाठ रामवृक्ष बेनीपुरी जी द्वारा लिखा गया एक उत्कृष्ट रेखाचित्र है और परीक्षा की दृष्टि से इसके मुख्य बिंदुओं को समझना अत्यंत आवश्यक है। आइए, इस पाठ के विस्तृत नोट्स और कुछ बहुविकल्पीय प्रश्नों पर ध्यान केंद्रित करें।
पाठ 11: बालगोबिन भगत (लेखक: रामवृक्ष बेनीपुरी)
लेखक परिचय (संक्षिप्त):
रामवृक्ष बेनीपुरी (1899-1968) हिंदी साहित्य के एक प्रसिद्ध साहित्यकार थे। वे 'कलम का जादूगर' कहे जाते हैं। उनकी रचनाओं में स्वाधीनता की चेतना, मनुष्यता की चिंता और इतिहास की युगानुरूप व्याख्या है। 'बालगोबिन भगत' उनके श्रेष्ठ रेखाचित्रों में से एक है, जिसमें उन्होंने एक विलक्षण चरित्र का सजीव चित्रण किया है।
पाठ का सार:
यह पाठ 'बालगोबिन भगत' नामक एक ऐसे विलक्षण चरित्र का रेखाचित्र है जो कबीर के आदर्शों पर चलते हुए गृहस्थ जीवन जीता है। लेखक ने उनके माध्यम से एक सच्चे साधु की पहचान कराई है।
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व्यक्तित्व और वेशभूषा:
- बालगोबिन भगत लगभग साठ वर्ष के, मँझोले कद के गोरे-चिट्टे आदमी थे। बाल पक गए थे।
- कपड़े बिल्कुल कम पहनते थे - कमर में एक लँगोटी मात्र और सिर पर कबीरपंथियों की-सी कनफटी टोपी।
- सर्दी आने पर एक काली कमली ऊपर से ओढ़ लेते थे।
- मस्तक पर हमेशा रामानंदी चंदन का टीका और गले में तुलसी की जड़ों की बेडौल माला पहने रहते थे।
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कबीर के अनुयायी:
- वे कबीर को 'साहब' मानते थे, उन्हीं के गीतों को गाते और उन्हीं के आदेशों पर चलते थे।
- कभी झूठ नहीं बोलते, खरा व्यवहार रखते थे।
- किसी की चीज़ बिना पूछे व्यवहार में नहीं लाते थे।
- उनकी सब चीज़ 'साहब' (कबीर) की थी। खेत में जो कुछ पैदा होता, उसे सिर पर लादकर पहले 'साहब' के दरबार (कबीरपंथी मठ) ले जाते और वहाँ से जो प्रसाद रूप में मिलता, उसी से गुज़ारा करते थे।
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गृहस्थ साधु:
- बालगोबिन भगत साधु थे, लेकिन साधुओं की सभी परिभाषाओं में खरे उतरने वाले। वे गृहस्थ भी थे।
- उनकी गृहस्थी में उनका बेटा और पतोहू (पुत्रवधू) थे। थोड़ी खेतीबारी भी थी और एक साफ़-सुथरा मकान भी था।
- वे अपनी खेती का काम स्वयं करते और पूरी तन्मयता से अपने गृहस्थ धर्म का पालन करते थे। उनका आचरण साधुओं जैसा पवित्र और त्यागमय था।
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संगीत साधना:
- बालगोबिन भगत का संगीत अत्यंत मधुर और प्रभावी था। कबीर के पद उनके कंठ से निकलकर सजीव हो उठते थे।
- आषाढ़ की रिमझिम में, धान की रोपाई के समय उनका संगीत खेतों में काम कर रहे लोगों में एक नया उत्साह भर देता था।
- भादों की अँधेरी रातों में उनकी खँजड़ी बजती और वे गाते - "तेरी गठरी में लागा चोर, मुसाफिर जाग ज़रा।"
- कार्तिक मास में उनकी प्रभातियाँ (सुबह गाए जाने वाले गीत) शुरू हो जातीं, जो फागुन तक चलतीं। वे रोज़ सुबह नदी-स्नान को जाते और लौटकर पोखर के ऊँचे भिंडे पर अपनी खँजड़ी लेकर बैठ जाते और गाने लगते।
- गर्मियों की शामों में अपने घर के आँगन में आसन जमा बैठते और गाँव के कुछ प्रेमी भी जुट जाते। खँजड़ियों और करतालों की भरमार हो जाती और भगत जी पद गाते, उनकी प्रेमी मंडली उसे दोहराती। धीरे-धीरे स्वर ऊँचा होने लगता और लोग संगीत और नृत्य में खो जाते।
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सामाजिक मान्यताओं को चुनौती:
- बालगोबिन भगत की संगीत साधना का चरम उत्कर्ष उस दिन देखने को मिला जब उनके इकलौते बेटे की मृत्यु हो गई।
- वे रोने-धोने के बजाय बेटे के शव के पास बैठकर मस्ती में कबीर के पद गा रहे थे।
- उनका मानना था कि आत्मा परमात्मा के पास चली गई है, विरहिनी अपने प्रेमी से जा मिली है, भला इससे बढ़कर आनंद की बात क्या हो सकती है? यह शोक का नहीं, उत्सव का समय है।
- उन्होंने अपनी पतोहू से ही बेटे की चिता को आग दिलवाई, जो उस समय की सामाजिक मान्यताओं के विरुद्ध था।
- श्राद्ध की अवधि पूरी होने पर पतोहू के भाई को बुलाकर उसके पुनर्विवाह का आदेश दिया। पतोहू के यह कहने पर कि उनके बुढ़ापे में उनकी सेवा कौन करेगा, भगत जी ने दृढ़ता से कहा कि या तो वह जाए या वे स्वयं घर छोड़कर चले जाएँगे। इस दलील के आगे पतोहू की एक न चली।
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मृत्यु:
- बालगोबिन भगत हर वर्ष गंगा स्नान करने जाते थे, जो उनके गाँव से तीस कोस दूर थी। वे पैदल ही जाते थे।
- घर से खाकर चलते और लौटकर घर पर ही खाते थे। रास्ते भर खँजड़ी बजाते, गाते, जहाँ प्यास लगती पानी पी लेते।
- इस लंबी उपवास युक्त यात्रा का उनके शरीर पर असर पड़ा। वे बीमार रहने लगे।
- अपनी मृत्यु के दिन भी उन्होंने संध्या में गीत गाए, परन्तु भोर में लोगों ने उनका गीत नहीं सुना। जाकर देखा तो पाया कि बालगोबिन भगत नहीं रहे, सिर्फ उनका पंजर (शरीर) पड़ा है।
चरित्र-चित्रण: बालगोबिन भगत
- सच्चे कबीरपंथी: वे कबीर के आदर्शों पर चलते थे, उन्हीं के पद गाते थे, और सादा जीवन, उच्च विचार में विश्वास रखते थे।
- आदर्श गृहस्थ: खेतीबारी करते हुए, परिवार की जिम्मेदारियाँ निभाते हुए भी वे मोह-माया से मुक्त, साधुओं जैसा जीवन जीते थे।
- कर्मयोगी: वे केवल बातों के साधु नहीं थे, बल्कि अपने कर्मों से साधुता प्रकट करते थे। खेती करना, नियम निभाना, संगीत साधना - सब कर्मठता से करते थे।
- मधुर गायक: उनका संगीत अत्यंत प्रभावी था, जो सुनने वालों को मंत्रमुग्ध कर देता था और परिवेश में एक आध्यात्मिक शांति भर देता था।
- समाज सुधारक: उन्होंने पुत्र की मृत्यु पर शोक न मनाकर उत्सव मनाने की बात कही, पतोहू से चिता को आग दिलवाई और उसके पुनर्विवाह का समर्थन कर समाज में व्याप्त रूढ़ियों पर प्रहार किया।
- दृढ़ निश्चयी और संतोषी: वे अपने नियमों और सिद्धांतों के पक्के थे। जो निर्णय लेते, उस पर अडिग रहते। उनमें गहरा संतोष का भाव था।
पाठ का संदेश:
- सच्ची साधुता बाहरी वेशभूषा या कर्मकांड में नहीं, बल्कि आचरण की पवित्रता और सात्विक जीवन में है।
- गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी आध्यात्मिक ऊँचाइयों को प्राप्त किया जा सकता है।
- सामाजिक रूढ़ियों और अंधविश्वासों का खंडन कर प्रगतिशील सोच अपनानी चाहिए।
- संगीत ईश्वर भक्ति का सशक्त माध्यम है।
- कर्म के प्रति निष्ठा और समर्पण आवश्यक है।
महत्वपूर्ण शब्दावली:
- रेखाचित्र: शब्दों के माध्यम से किसी व्यक्ति या वस्तु का सजीव चित्र प्रस्तुत करना।
- कनफटी टोपी: कबीरपंथियों द्वारा पहनी जाने वाली टोपी।
- खँजड़ी: एक छोटा वाद्य यंत्र, डफली जैसा।
- प्रभाती: सुबह गाए जाने वाले भक्ति गीत।
- पतोहू: पुत्रवधू।
- साहब: यहाँ कबीर के लिए प्रयुक्त।
- रोपना: धान आदि लगाना।
- पुरवाई: पूर्व दिशा से बहने वाली हवा।
- अधतरिया: आधी रात।
- लोही: सुबह की लालिमा।
- कुहासा: कोहरा।
- आवृत: ढका हुआ।
- श्राद्ध: मृतकों के लिए किया जाने वाला कर्मकांड।
- विरहिनी: वियोगिनी स्त्री।
- पंजर: अस्थिपंजर, शरीर।
अभ्यास हेतु बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs):
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'बालगोबिन भगत' पाठ के लेखक कौन हैं?
(क) प्रेमचंद
(ख) रामवृक्ष बेनीपुरी
(ग) यशपाल
(घ) सर्वेश्वर दयाल सक्सेना -
बालगोबिन भगत किसे 'साहब' मानते थे?
(क) शिव को
(ख) राम को
(ग) कबीर को
(घ) अपने गुरु को -
बालगोबिन भगत की आयु लगभग कितनी थी?
(क) चालीस वर्ष
(ख) पचास वर्ष
(ग) साठ वर्ष
(घ) सत्तर वर्ष -
बालगोबिन भगत का मुख्य व्यवसाय क्या था?
(क) व्यापार
(ख) अध्यापन
(ग) संगीत गायन
(घ) खेतीबारी -
बालगोबिन भगत गले में कैसी माला पहनते थे?
(क) सोने की
(ख) रुद्राक्ष की
(ग) फूलों की
(घ) तुलसी की जड़ों की -
बालगोबिन भगत सुबह-सुबह क्या गाते थे?
(क) भजन
(ख) प्रभाती
(ग) लोकगीत
(घ) फिल्मी गाने -
बेटे की मृत्यु पर बालगोबिन भगत क्या कर रहे थे?
(क) विलाप कर रहे थे
(ख) कबीर के पद गा रहे थे
(ग) मौन बैठे थे
(घ) लोगों को सांत्वना दे रहे थे -
बालगोबिन भगत ने अपने बेटे की चिता को आग किससे दिलवाई?
(क) स्वयं
(ख) गाँव के पंडित से
(ग) अपनी पतोहू से
(घ) अपने भाई से -
लेखक ने बालगोबिन भगत को साधु क्यों कहा है?
(क) उनकी वेशभूषा के कारण
(ख) उनके साधु स्वभाव और आचरण के कारण
(ग) उनके घर त्याग देने के कारण
(घ) उनके जटाएँ रखने के कारण -
बालगोबिन भगत की मृत्यु कैसे हुई?
(क) लंबी बीमारी के बाद
(ख) गंगा स्नान से लौटते समय दुर्घटना में
(ग) स्वाभाविक रूप से, अपने नित्य क्रम के अनुसार
(घ) पुत्र वियोग में
उत्तरमाला:
- (ख), 2. (ग), 3. (ग), 4. (घ), 5. (घ), 6. (ख), 7. (ख), 8. (ग), 9. (ख), 10. (ग)
यह पाठ हमें सिखाता है कि सच्चा संत या साधु होने के लिए घर-बार त्यागना या विशेष वेशभूषा धारण करना आवश्यक नहीं है, बल्कि अपने कर्मों और आचरण से साधुता प्राप्त की जा सकती है। बालगोबिन भगत इसी आदर्श के प्रतीक हैं। परीक्षा के लिए इस पाठ के चरित्र, घटनाओं और संदेशों को अच्छी तरह याद रखें। शुभकामनाएँ!