Class 10 Hindi Notes Chapter 12 (यशपाल: लखनवी अंदाज़) – Kshitij-II Book
चलिए, आज हम कक्षा 10 की 'क्षितिज-II' पुस्तक के गद्य खंड के एक महत्वपूर्ण पाठ, यशपाल जी द्वारा रचित 'लखनवी अंदाज़' का गहन अध्ययन करेंगे। यह पाठ परीक्षा की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है, विशेषकर सरकारी परीक्षाओं में जहाँ NCERT पाठ्यक्रम पर आधारित प्रश्न पूछे जाते हैं। ध्यानपूर्वक समझिए:
पाठ 12: यशपाल - लखनवी अंदाज़
लेखक परिचय: यशपाल (1903 - 1976)
- जन्म: 3 दिसंबर 1903, फ़िरोजपुर छावनी (पंजाब)।
- शिक्षा: आरंभिक शिक्षा कांगड़ा में, बाद में लाहौर के नेशनल कॉलेज से बी.ए.।
- स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका: भगत सिंह, सुखदेव जैसे क्रांतिकारियों के संपर्क में आए और सक्रिय रूप से स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया। कई बार जेल भी गए।
- साहित्यिक परिचय: यशपाल यथार्थवादी शैली के विशिष्ट रचनाकार हैं। उनकी रचनाओं में सामाजिक विषमता, राजनीतिक पाखंड और रूढ़ियों पर गहरा व्यंग्य मिलता है। वे मार्क्सवादी विचारधारा से प्रभावित थे।
- प्रमुख रचनाएँ:
- उपन्यास: झूठा सच (भारत विभाजन की त्रासदी पर आधारित), दादा कामरेड, दिव्या, पार्टी कामरेड, मनुष्य के रूप, अमिता।
- कहानी संग्रह: ज्ञानदान, तर्क का तूफ़ान, पिंजरे की उड़ान, फूलों का कुर्ता, उत्तराधिकारी।
- आत्मकथा: सिंहावलोकन।
- भाषा-शैली: इनकी भाषा अत्यंत सजीव, प्रवाहमयी और पात्रानुकूल होती है। उर्दू और अंग्रेज़ी शब्दों का प्रयोग सहजता से करते हैं। व्यंग्यात्मक शैली इनकी पहचान है।
- पुरस्कार: 'दिव्या' उपन्यास के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार।
पाठ: लखनवी अंदाज़ - विस्तृत नोट्स
-
विधा: यह रचना 'व्यंग्य' विधा में लिखी गई कहानी है।
-
पृष्ठभूमि: लेखक ने यह कहानी उस पतनशील सामंती वर्ग (नवाबी वर्ग) पर कटाक्ष करने के लिए लिखी है जो अपनी वास्तविकता से बेखबर एक बनावटी जीवन शैली जीने का आदी है। यह वर्ग अपनी झूठी शान-शौकत और नवाबी ठसक को दिखाने का कोई अवसर नहीं छोड़ता, भले ही उसका अस्तित्व समाप्त हो चुका हो।
-
कथानक (Plot Summary):
- यात्रा का आरंभ: लेखक सेकंड क्लास के डिब्बे में यात्रा करने का निश्चय करता है ताकि एकांत में नई कहानी के बारे में सोच सके और खिड़की से प्राकृतिक दृश्य देख सके। वह सोचता है कि डिब्बा खाली होगा, परन्तु वहाँ पहले से ही लखनऊ की नवाबी नस्ल के एक सफ़ेदपोश सज्जन (नवाब साहब) पालथी मारे बैठे मिलते हैं।
- नवाब साहब का व्यवहार: लेखक के सहसा डिब्बे में आ जाने से नवाब साहब के एकांत में विघ्न पड़ता है, जिससे उनके चेहरे पर असंतोष का भाव दिखाई देता है। वे लेखक से बातचीत करने में कोई उत्साह नहीं दिखाते।
- खीरे का प्रकरण: नवाब साहब अपने सामने तौलिए पर रखे दो ताज़े खीरों को बड़े सलीके से छीलते हैं, काटते हैं, उन पर जीरा-मिला नमक और लाल मिर्च बुरकते हैं। यह पूरी प्रक्रिया वे बड़े करीने और नज़ाकत से करते हैं, मानो खीरा नहीं, कोई अनमोल वस्तु हो।
- लेखक को निमंत्रण: नवाब साहब लेखक से खीरा खाने का आग्रह करते हैं ('शौक फ़रमाइए'), जिसे लेखक विनम्रतापूर्वक मना कर देता है।
- नवाब साहब का 'लखनवी अंदाज़': नवाब साहब खीरे की एक-एक फाँक को उठाकर होठों तक ले जाते हैं, उसे सूंघते हैं, स्वाद के आनंद में उनकी पलकें मुँद जाती हैं, मुँह में पानी भर आता है, और फिर स्वाद की कल्पना से संतुष्ट होकर फाँक को खिड़की से बाहर फेंक देते हैं। वे सभी फाँकों के साथ यही प्रक्रिया दोहराते हैं।
- नवाब साहब का तर्क: अंत में, वे तौलिए से हाथ और होंठ पोंछकर गर्व से लेखक की ओर देखते हैं, मानो कह रहे हों कि यह है खानदानी रईसों का तरीका। फिर वे डकार लेते हैं और कहते हैं कि खीरा होता तो लज़ीज़ है, पर होता है सक़ील (आसानी से न पचने वाला), मेदे (आमाशय) पर बोझ डाल देता है।
- लेखक का निष्कर्ष/ज्ञान-चक्षु खुलना: लेखक नवाब साहब के इस बनावटी व्यवहार और दिखावे को देखकर हैरान रह जाता है। वह सोचता है कि जब खीरे को सूंघने और कल्पना करने मात्र से पेट भरने की डकार आ सकती है, तो बिना विचार, घटना और पात्रों के भी, केवल लेखक की इच्छा मात्र से 'नई कहानी' क्यों नहीं बन सकती? यह नवाब साहब के व्यवहार पर गहरा व्यंग्य है।
-
प्रमुख बिंदु एवं संदेश:
- दिखावे और बनावटीपन पर व्यंग्य: कहानी का मुख्य उद्देश्य सामंती वर्ग की बनावटी जीवन-शैली, उनके खोखले दिखावे और झूठी शान पर कटाक्ष करना है।
- यथार्थ से दूरी: नवाब साहब का व्यवहार वास्तविकता से कोसों दूर है। वे खीरा खाने जैसी सामान्य क्रिया को भी अपनी नवाबी ठसक दिखाने का माध्यम बना लेते हैं।
- पतनशील सामंतवाद: यह कहानी दर्शाती है कि नवाबी चली जाने के बाद भी कुछ लोगों में उसकी अकड़ और दिखावा बाकी रह गया है।
- नई कहानी का संदर्भ: लेखक अंत में यह सोचने पर विवश होता है कि क्या बिना किसी ठोस आधार (घटना, पात्र) के भी कहानी लिखी जा सकती है, ठीक वैसे ही जैसे नवाब साहब ने बिना खीरा खाए ही संतुष्टि का अनुभव कर लिया। यह 'नई कहानी' आंदोलन पर भी एक परोक्ष टिप्पणी हो सकती है, जहाँ कथ्य से अधिक शैली पर बल दिया जाता था।
-
चरित्र-चित्रण:
- नवाब साहब: पतनशील सामंती वर्ग के प्रतिनिधि, दिखावा पसंद, बनावटी, अहंकारी, अपनी झूठी शान बनाए रखने वाले, वास्तविकता से दूर।
- लेखक (वर्णनकर्ता): एक मध्यवर्गीय बुद्धिजीवी, जिज्ञासु, पर्यवेक्षक, व्यंग्यकार, जो समाज में व्याप्त विसंगतियों को देखकर उन पर चिंतन करता है।
-
भाषा-शैली:
- व्यंग्यात्मक: पूरी कहानी में व्यंग्य की धार स्पष्ट है।
- वर्णनात्मक: लेखक ने नवाब साहब के हाव-भाव और खीरा काटने की प्रक्रिया का सजीव वर्णन किया है।
- भाषा: सहज, सरल हिंदी के साथ उर्दू के शब्दों (नज़ाकत, नफ़ासत, तहज़ीब, अदब, शौक फ़रमाना, मेदा, सक़ील, लज़ीज़, सफ़ेदपोश आदि) का सुंदर प्रयोग किया गया है जो लखनवी परिवेश को साकार करता है।
- वाक्य-विन्यास: छोटे और प्रभावशाली वाक्यों का प्रयोग।
-
महत्वपूर्ण शब्दावली:
- सफ़ेदपोश: भद्र व्यक्ति, सज्जन।
- असुविधा: परेशानी, दिक्कत।
- तहज़ीब, नज़ाकत, नफ़ासत: शिष्टता, कोमलता, सुंदरता, सलीका।
- गुमान: अभिमान, गर्व।
- किफ़ायतशारी: सोच-समझकर खर्च करना, यहाँ खीरे जैसी तुच्छ वस्तु के लिए प्रयोग व्यंग्यात्मक है।
- आदाब-अर्ज़: अभिवादन का एक तरीका।
- गौर करना: ध्यान देना।
- लज़ीज़: स्वादिष्ट।
- सक़ील: भारी, मुश्किल से पचने वाला।
- मेदा: आमाशय, पेट।
- ज्ञान-चक्षु खुलना: यथार्थ का बोध होना, समझ आना।
- तस्लीम में सिर खम करना: सम्मान में सिर झुकाना।
परीक्षा हेतु विशेष ध्यान दें:
- नवाब साहब के व्यवहार के पीछे की मानसिकता को समझें।
- लेखक ने सेकंड क्लास का टिकट क्यों लिया?
- नवाब साहब ने खीरा खाने के अपने तरीके का क्या कारण बताया?
- 'ज्ञान-चक्षु खुलने' का क्या अभिप्राय है?
- कहानी का मुख्य व्यंग्य किस पर है?
- उर्दू शब्दों के अर्थ और उनके प्रयोग के औचित्य को समझें।
अभ्यास हेतु बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs):
प्रश्न 1: लेखक ने सेकंड क्लास का टिकट क्यों खरीदा था?
(क) भीड़ से बचने के लिए
(ख) आराम से यात्रा करने के लिए
(ग) नई कहानी के बारे में सोचने और प्राकृतिक दृश्य देखने के लिए
(घ) फर्स्ट क्लास का टिकट महंगा होने के कारण
प्रश्न 2: डिब्बे में पहले से कौन विराजमान थे?
(क) एक फौजी अफसर
(ख) लखनऊ के एक नवाब साहब
(ग) लेखक का एक मित्र
(घ) एक व्यापारी
प्रश्न 3: नवाब साहब ने खीरों का क्या किया?
(क) लेखक को खाने के लिए दे दिया
(ख) स्वयं खा लिया
(ग) सूंघकर खिड़की से बाहर फेंक दिया
(घ) अपने बैग में वापस रख लिया
प्रश्न 4: 'लखनवी अंदाज़' पाठ के लेखक कौन हैं?
(क) प्रेमचंद
(ख) यशपाल
(ग) रामवृक्ष बेनीपुरी
(घ) सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
प्रश्न 5: नवाब साहब ने खीरा न खाने का क्या कारण बताया?
(क) खीरा कड़वा था
(ख) उन्हें भूख नहीं थी
(ग) खीरा मेदे पर बोझ डालता है
(घ) लेखक ने मना कर दिया था
प्रश्न 6: 'ज्ञान-चक्षु खुल गए' - लेखक के ज्ञान-चक्षु क्यों खुल गए?
(क) नवाब साहब की अमीरी देखकर
(ख) नवाब साहब के खीरा फेंकने के ढंग को देखकर
(ग) यह सोचकर कि सूंघने मात्र से पेट भर सकता है तो बिना घटना-पात्र के कहानी भी बन सकती है
(घ) ट्रेन के लखनऊ पहुँच जाने पर
प्रश्न 7: यह पाठ साहित्य की किस विधा के अंतर्गत आता है?
(क) कहानी
(ख) निबंध
(ग) व्यंग्य
(घ) रेखाचित्र
प्रश्न 8: नवाब साहब का व्यवहार क्या दर्शाता है?
(क) उनकी उदारता
(ख) उनका खानदानी रईसीपन
(ग) उनका दिखावापन और बनावटी जीवन शैली
(घ) उनकी सादगी
प्रश्न 9: 'सफ़ेदपोश' का क्या अर्थ है?
(क) सफ़ेद कपड़े पहनने वाला
(ख) गरीब आदमी
(ग) भद्र पुरुष / सज्जन
(घ) धोबी
प्रश्न 10: लेखक के अनुसार, नवाब साहब ने खीरे की फाँकें बाहर क्यों फेंकी?
(क) खीरे खराब थे
(ख) अपना खानदानी रईसी और नज़ाकत दिखाने के लिए
(ग) पेट भरा होने के कारण
(घ) लेखक को चिढ़ाने के लिए
उत्तरमाला:
- (ग)
- (ख)
- (ग)
- (ख)
- (ग)
- (ग)
- (ग)
- (ग)
- (ग)
- (ख)
मुझे उम्मीद है कि ये विस्तृत नोट्स और प्रश्न आपकी परीक्षा की तैयारी में सहायक सिद्ध होंगे। इस पाठ के व्यंग्य को समझना अत्यंत आवश्यक है। शुभकामनाएँ!