Class 10 Hindi Notes Chapter 13 (Chapter 13) – Sparsh Book

नमस्ते विद्यार्थियों।
आज हम कक्षा 10 की 'स्पर्श' पाठ्यपुस्तक के पाठ 13 - 'तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र' का अध्ययन करेंगे। यह पाठ प्रहलाद अग्रवाल द्वारा लिखा गया एक संस्मरण है, जो प्रसिद्ध गीतकार शैलेंद्र के फ़िल्म निर्माण के क्षेत्र में प्रवेश और उनकी पहली व एकमात्र फ़िल्म 'तीसरी कसम' के निर्माण की कहानी पर केंद्रित है। सरकारी परीक्षाओं की दृष्टि से यह पाठ महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें हिंदी साहित्य, सिनेमा और व्यक्तित्वों से जुड़े कई तथ्य शामिल हैं।
आइए, इस पाठ के विस्तृत नोट्स और महत्वपूर्ण बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित करें:
पाठ 13: तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र
लेखक: प्रहलाद अग्रवाल
विधा: संस्मरण
पाठ का सार और मुख्य बिंदु:
- परिचय: यह पाठ गीतकार शैलेंद्र द्वारा निर्मित फ़िल्म 'तीसरी कसम' के निर्माण की प्रक्रिया और शैलेंद्र के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालता है। लेखक बताते हैं कि कैसे एक सफल गीतकार ने फ़िल्म निर्माण जैसा जोखिम भरा कदम उठाया।
- शैलेंद्र का उद्देश्य: शैलेंद्र ने यह फ़िल्म पैसा कमाने के लिए नहीं, बल्कि अपनी आत्मसंतुष्टि और साहित्यिक कृति को पर्दे पर उतारने की गहरी इच्छा के कारण बनाई थी। वे एक संवेदनशील कवि हृदय व्यक्ति थे, जिन्हें फणीश्वरनाथ 'रेणु' की कहानी 'मारे गए गुलफ़ाम' ने बहुत प्रभावित किया था।
- कहानी का चयन: शैलेंद्र ने फ़िल्म के लिए फणीश्वरनाथ 'रेणु' की प्रसिद्ध कहानी 'मारे गए गुलफ़ाम' को चुना। यह कहानी ग्रामीण परिवेश और मानवीय संवेदनाओं की गहराई को दर्शाती है।
- कलाकारों का चयन:
- राज कपूर (हीरामन): शैलेंद्र के गहरे मित्र राज कपूर ने उनकी भावनाओं का सम्मान करते हुए इस फ़िल्म में काम करना स्वीकार किया। उन्होंने हीरामन के सीधे-सादे, देहाती चरित्र को जीवंत कर दिया। उन्होंने इस फ़िल्म के लिए मात्र एक रुपया पारिश्रमिक लिया, जो उनकी दोस्ती और कला के प्रति सम्मान का प्रतीक था।
- वहीदा रहमान (हीराबाई): हीराबाई की जटिल और संवेदनशील भूमिका के लिए वहीदा रहमान का चयन किया गया, जिन्होंने अपने अभिनय से चरित्र को यादगार बना दिया।
- निर्माण की चुनौतियाँ:
- वित्तीय संकट: शैलेंद्र व्यावसायिक निर्माता नहीं थे, इसलिए उन्हें फ़िल्म निर्माण के दौरान लगातार आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
- वितरकों का रवैया: फ़िल्म की कलात्मक प्रकृति और धीमी गति के कारण वितरक इसे खरीदने में हिचकिचा रहे थे। वे इसमें व्यावसायिक मसाले डालने का दबाव बना रहे थे, जिसे शैलेंद्र ने स्वीकार नहीं किया।
- निर्माण में देरी: इन्हीं कारणों से फ़िल्म बनने में काफी समय लगा।
- शैलेंद्र का व्यक्तित्व:
- कवि हृदय: वे मूलतः एक कवि थे, भावुक, संवेदनशील और आदर्शवादी।
- अव्यावसायिक: उनमें निर्माता वाले व्यावसायिक गुण नहीं थे। वे कला और मानवीय मूल्यों को पैसे से ऊपर रखते थे।
- दृढ़ निश्चयी: तमाम मुश्किलों के बावजूद, उन्होंने कहानी की आत्मा से समझौता नहीं किया और जैसी फ़िल्म बनाना चाहते थे, वैसी ही बनाई।
- फ़िल्म की विशेषताएँ:
- कलात्मक उत्कृष्टता: 'तीसरी कसम' एक अत्यंत कलात्मक और संवेदनशील फ़िल्म मानी जाती है। इसे 'सेल्यूलाइड पर लिखी कविता' कहा गया।
- साहित्यिक निष्ठा: यह फ़िल्म मूल कहानी 'मारे गए गुलफ़ाम' के प्रति पूरी तरह ईमानदार है।
- अभिनय: राज कपूर और वहीदा रहमान का अभिनय उनके करियर के सर्वश्रेष्ठ अभिनयों में गिना जाता है।
- संगीत: शैलेंद्र और शंकर-जयकिशन का संगीत फ़िल्म का एक और मजबूत पक्ष है।
- फ़िल्म का प्रदर्शन और परिणाम:
- व्यावसायिक असफलता: अपनी कलात्मकता के बावजूद, फ़िल्म बॉक्स ऑफिस पर असफल रही।
- समीक्षकों की प्रशंसा: समीक्षकों ने इसे खूब सराहा। इसे सर्वश्रेष्ठ हिंदी फ़िल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। इसे मास्को फ़िल्म फेस्टिवल में भी प्रदर्शित किया गया।
- पाठ का संदेश: यह पाठ बताता है कि सच्चा कलाकार अपनी कला के प्रति समर्पित होता है और व्यावसायिक सफलता या असफलता की परवाह किए बिना अपनी आत्मसंतुष्टि के लिए काम करता है। यह शैलेंद्र जैसे कलाकार के जुनून और आदर्शवाद को सलाम करता है।
परीक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण तथ्य:
- पाठ का नाम: तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र
- लेखक: प्रहलाद अग्रवाल
- विधा: संस्मरण
- फ़िल्म का नाम: तीसरी कसम
- मूल कहानी: मारे गए गुलफ़ाम (लेखक: फणीश्वरनाथ 'रेणु')
- निर्माता: शैलेंद्र
- निर्देशक: बसु भट्टाचार्य
- मुख्य कलाकार: राज कपूर (हीरामन), वहीदा रहमान (हीराबाई)
- संगीतकार: शंकर-जयकिशन
- गीतकार: शैलेंद्र, हसरत जयपुरी
- शैलेंद्र का उद्देश्य: आत्मसंतुष्टि
- राज कपूर का पारिश्रमिक: सांकेतिक रूप से एक रुपया
- फ़िल्म की प्रकृति: साहित्यिक कृति पर आधारित, कलात्मक, संवेदनशील
- परिणाम: व्यावसायिक रूप से असफल, परन्तु समीक्षकों द्वारा प्रशंसित और राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता।
- शैलेंद्र का चरित्र-चित्रण: कवि, गीतकार, भावुक, आदर्शवादी, अव्यावसायिक निर्माता।
यह नोट्स आपको इस पाठ से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी को समझने और याद रखने में मदद करेंगे, जो सरकारी परीक्षाओं के लिए उपयोगी हो सकते हैं।
अभ्यास हेतु बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs):
-
'तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र' पाठ के लेखक कौन हैं?
(क) फणीश्वरनाथ 'रेणु'
(ख) शैलेंद्र
(ग) प्रहलाद अग्रवाल
(घ) राज कपूर -
'तीसरी कसम' फ़िल्म किस प्रसिद्ध साहित्यिक कृति पर आधारित है?
(क) गोदान
(ख) मैला आँचल
(ग) मारे गए गुलफ़ाम
(घ) कफ़न -
'तीसरी कसम' फ़िल्म के निर्माता कौन थे?
(क) राज कपूर
(ख) बसु भट्टाचार्य
(ग) फणीश्वरनाथ 'रेणु'
(घ) शैलेंद्र -
शैलेंद्र ने 'तीसरी कसम' फ़िल्म मुख्य रूप से किस उद्देश्य से बनाई थी?
(क) भारी मुनाफा कमाने के लिए
(ख) राज कपूर को लॉन्च करने के लिए
(ग) अपनी आत्मसंतुष्टि के लिए
(घ) निर्देशकों को चुनौती देने के लिए -
फ़िल्म 'तीसरी कसम' में 'हीरामन' की भूमिका किस अभिनेता ने निभाई थी?
(क) दिलीप कुमार
(ख) देव आनंद
(ग) राज कपूर
(घ) मनोज कुमार -
राज कपूर ने 'तीसरी कसम' में अभिनय करने के लिए कितना पारिश्रमिक लिया था?
(क) एक लाख रुपये
(ख) दस हजार रुपये
(ग) कोई पारिश्रमिक नहीं लिया
(घ) सांकेतिक रूप से एक रुपया -
'तीसरी कसम' को समीक्षकों और कला-पारखियों ने कैसी फ़िल्म माना?
(क) एक साधारण मसाला फ़िल्म
(ख) सेल्यूलाइड पर लिखी कविता
(ग) एक असफल प्रयोग
(घ) एक उबाऊ वृत्तचित्र -
व्यावसायिक रूप से फ़िल्म 'तीसरी कसम' कैसी रही?
(क) सुपरहिट
(ख) औसत सफल
(ग) असफल
(घ) बहुत विवादास्पद -
लेखक प्रहलाद अग्रवाल के अनुसार, शैलेंद्र एक निर्माता के रूप में कैसे व्यक्ति थे?
(क) अत्यंत व्यावसायिक और चतुर
(ख) लापरवाह और गैर-जिम्मेदार
(ग) भावुक, आदर्शवादी और अव्यावसायिक
(घ) केवल प्रसिद्धि चाहने वाले -
'तीसरी कसम' फ़िल्म के निर्देशक कौन थे?
(क) शैलेंद्र
(ख) राज कपूर
(ग) हृषिकेश मुखर्जी
(घ) बसु भट्टाचार्य
उत्तरमाला (MCQs):
- (ग) प्रहलाद अग्रवाल
- (ग) मारे गए गुलफ़ाम
- (घ) शैलेंद्र
- (ग) अपनी आत्मसंतुष्टि के लिए
- (ग) राज कपूर
- (घ) सांकेतिक रूप से एक रुपया
- (ख) सेल्यूलाइड पर लिखी कविता
- (ग) असफल
- (ग) भावुक, आदर्शवादी और अव्यावसायिक
- (घ) बसु भट्टाचार्य
मुझे उम्मीद है कि ये नोट्स और प्रश्न आपकी परीक्षा की तैयारी में सहायक होंगे। शुभकामनाएँ!