Class 10 Hindi Notes Chapter 13 (सर्वेश्वर दयाल सक्सेना: मानवीय करुणा की दिव्य चमक) – Kshitij-II Book
नमस्ते विद्यार्थियों।
आज हम कक्षा 10 की 'क्षितिज-भाग 2' पुस्तक के गद्य खंड से एक बहुत ही महत्वपूर्ण पाठ, 'मानवीय करुणा की दिव्य चमक' का अध्ययन करेंगे। यह पाठ सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जी द्वारा लिखा गया एक संस्मरण है, जो फ़ादर कामिल बुल्के के जीवन और व्यक्तित्व पर आधारित है। सरकारी परीक्षाओं की दृष्टि से यह पाठ अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे अक्सर प्रश्न पूछे जाते हैं। आइए, इसके विस्तृत नोट्स और कुछ बहुविकल्पीय प्रश्नों पर ध्यान केंद्रित करें।
पाठ: मानवीय करुणा की दिव्य चमक
लेखक: सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
लेखक परिचय (संक्षिप्त):
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना (1927-1983) हिंदी साहित्य के एक प्रमुख कवि, नाटककार, कहानीकार और उपन्यासकार थे। वे 'नई कविता' के सशक्त हस्ताक्षर माने जाते हैं। उनकी रचनाओं में सामाजिक यथार्थ, मानवीय संवेदनाएँ और व्यंग्य प्रमुखता से उभरते हैं। 'खूँटियों पर टँगे लोग' (कविता संग्रह) के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। 'मानवीय करुणा की दिव्य चमक' उनके द्वारा लिखा गया एक मार्मिक संस्मरण है।
पाठ का सार:
यह पाठ बेल्जियम में जन्मे फ़ादर कामिल बुल्के के जीवन, व्यक्तित्व और भारत तथा हिंदी भाषा के प्रति उनके गहरे लगाव को दर्शाता है। लेखक, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, फ़ादर बुल्के के निकट संपर्क में थे और उनके निधन पर अपनी गहरी संवेदना और स्मृतियों को इस संस्मरण के माध्यम से व्यक्त करते हैं।
- फ़ादर बुल्के का परिचय: फ़ादर बुल्के का जन्म बेल्जियम के रैम्सचैपल नामक स्थान पर हुआ था। वे इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष के छात्र थे जब उन्होंने सब कुछ छोड़कर संन्यासी (धर्मगुरु) बनने का निर्णय लिया और भारत आ गए। भारत को उन्होंने अपनी कर्मभूमि बनाया।
- भारत और हिंदी से लगाव: फ़ादर बुल्के भारत और यहाँ की संस्कृति से गहराई से जुड़ गए। उन्होंने कलकत्ता (अब कोलकाता) से बी.ए. और इलाहाबाद से एम.ए. (हिंदी) किया। उन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग से "रामकथा: उत्पत्ति और विकास" विषय पर शोध कर पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने प्रसिद्ध अंग्रेज़ी-हिंदी कोश भी तैयार किया और बाइबिल का हिंदी अनुवाद भी किया। वे हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में देखना चाहते थे और इसके लिए हमेशा प्रयासरत रहे।
- व्यक्तित्व:
- मानवीय करुणा: फ़ादर बुल्के मानवीय करुणा, प्रेम और वात्सल्य की प्रतिमूर्ति थे। उनका हृदय दूसरों के दुःख से द्रवित हो उठता था। लेखक उन्हें 'मानवीय करुणा की दिव्य चमक' कहते हैं।
- आत्मीयता: वे जिससे भी रिश्ता बनाते थे, उसे पूरी आत्मीयता से निभाते थे। वे लेखक के पारिवारिक उत्सवों और संस्कारों में बड़े भाई या पुरोहित की तरह शामिल होते थे और आशीष देते थे।
- दृढ़ संकल्प: हिंदी के प्रति उनका समर्पण और उसे राष्ट्रभाषा बनाने की उनकी इच्छा उनके दृढ़ संकल्प को दर्शाती है।
- सरलता और सादगी: वे अत्यंत सरल और सादे स्वभाव के थे, उनमें कोई आडंबर नहीं था।
- 'देवदारु' की छाया: लेखक ने उनके व्यक्तित्व की तुलना देवदारु वृक्ष से की है, जो ऊँचा, घना और शीतल छाया देने वाला होता है। फ़ादर का स्नेह और आशीष भी सभी के लिए ऐसा ही था।
- लेखक के साथ संबंध: लेखक और फ़ादर बुल्के के बीच अत्यंत घनिष्ठ और आत्मीय संबंध थे। लेखक उन्हें अपने बड़े भाई जैसा मानते थे। फ़ादर बुल्के लेखक के सुख-दुःख में हमेशा साथ खड़े रहते थे।
- फ़ादर बुल्के का निधन: फ़ादर बुल्के की मृत्यु 'ज़हरबाद' (गैंगरीन) नामक कष्टदायक फोड़े से हुई। लेखक को इस बात का गहरा दुःख था कि इतने स्नेही और करुणामय व्यक्ति को इतनी कष्टदायक मृत्यु मिली।
- संस्मरण का उद्देश्य: लेखक इस संस्मरण के माध्यम से फ़ादर बुल्के जैसे महान व्यक्तित्व को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और उनके निःस्वार्थ प्रेम, करुणा और हिंदी-सेवा को याद करते हैं। वे यह भी प्रश्न उठाते हैं कि जिसके मन में सबके लिए इतनी मिठास थी, उसके लिए ईश्वर ने ऐसा विष (ज़हरबाद) क्यों विधान किया।
परीक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण बिंदु:
- फ़ादर बुल्के का जन्म स्थान: रैम्सचैपल, बेल्जियम।
- भारत आने से पहले की शिक्षा: इंजीनियरिंग।
- भारत में कर्मभूमि: मुख्यतः राँची (सेंट जेवियर्स कॉलेज में हिंदी विभागाध्यक्ष रहे)।
- शोध का विषय: "रामकथा: उत्पत्ति और विकास"।
- महत्वपूर्ण रचनाएँ: अंग्रेज़ी-हिंदी कोश, बाइबिल का हिंदी अनुवाद।
- हिंदी के प्रति दृष्टिकोण: राष्ट्रभाषा बनाने के प्रबल समर्थक।
- लेखक द्वारा दी गई उपमा: देवदारु वृक्ष, मानवीय करुणा की दिव्य चमक, परिमल के दिन।
- मृत्यु का कारण: ज़हरबाद (गैंगरीन)।
- पाठ की विधा: संस्मरण।
- पाठ का केंद्रीय भाव: एक विदेशी होते हुए भी फ़ादर बुल्के का भारत और हिंदी के प्रति गहरा प्रेम, उनकी मानवीय करुणा और आत्मीयता का चित्रण।
बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs):
-
'मानवीय करुणा की दिव्य चमक' पाठ के लेखक कौन हैं?
(क) यशपाल
(ख) सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
(ग) रामवृक्ष बेनीपुरी
(घ) स्वयं प्रकाश -
फ़ादर कामिल बुल्के का जन्म किस देश में हुआ था?
(क) फ्रांस
(ख) हॉलैंड
(ग) बेल्जियम
(घ) इंग्लैंड -
भारत आने से पहले फ़ादर बुल्के किस विषय की पढ़ाई कर रहे थे?
(क) चिकित्सा
(ख) इंजीनियरिंग
(ग) कानून
(घ) साहित्य -
फ़ादर बुल्के ने किस विषय पर शोध करके पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की?
(क) कृष्ण काव्य
(ख) हिंदी साहित्य का इतिहास
(ग) रामकथा: उत्पत्ति और विकास
(घ) संत साहित्य -
लेखक ने फ़ादर बुल्के के व्यक्तित्व की तुलना किस वृक्ष से की है?
(क) बरगद
(ख) पीपल
(ग) आम
(घ) देवदारु -
फ़ादर बुल्के किस भाषा को राष्ट्रभाषा के रूप में देखना चाहते थे?
(क) अंग्रेज़ी
(ख) संस्कृत
(ग) हिंदी
(घ) उर्दू -
फ़ादर बुल्के की मृत्यु किस रोग के कारण हुई?
(क) कैंसर
(ख) हृदयघात
(ग) ज़हरबाद (गैंगरीन)
(घ) क्षय रोग (टी.बी.) -
फ़ादर बुल्के ने कौन सा प्रसिद्ध कोश तैयार किया?
(क) हिंदी-अंग्रेज़ी कोश
(ख) अंग्रेज़ी-हिंदी कोश
(ग) संस्कृत-हिंदी कोश
(घ) उर्दू-हिंदी कोश -
लेखक के अनुसार फ़ादर बुल्के की उपस्थिति कैसी लगती थी?
(क) बोझिल और उबाऊ
(ख) डरावनी और भयावह
(ग) देवदारु की शीतल छाया जैसी
(घ) औपचारिक और दिखावटी -
'मानवीय करुणा की दिव्य चमक' पाठ साहित्य की किस विधा के अंतर्गत आता है?
(क) कहानी
(ख) रेखाचित्र
(ग) संस्मरण
(घ) जीवनी
उत्तरमाला (MCQs):
- (ख)
- (ग)
- (ख)
- (ग)
- (घ)
- (ग)
- (ग)
- (ख)
- (ग)
- (ग)
इन नोट्स को ध्यान से पढ़ें और समझें। फ़ादर बुल्के का चरित्र-चित्रण, हिंदी के प्रति उनका योगदान और लेखक के साथ उनके संबंधों पर विशेष ध्यान दें। ये बिंदु परीक्षा के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होंगे। कोई शंका हो तो अवश्य पूछें। शुभकामनाएँ!