Class 10 Hindi Notes Chapter 15 (Chapter 15) – Sparsh Book
नमस्ते विद्यार्थियों।
आज हम कक्षा 10 की 'स्पर्श भाग 2' पुस्तक के पाठ 15, 'अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले', का विस्तृत अध्ययन करेंगे। यह पाठ निदा फ़ाज़ली द्वारा लिखा गया है और सरकारी परीक्षाओं की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें मानवीय संवेदनाओं, प्रकृति और बदलते सामाजिक मूल्यों पर गहरा चिंतन प्रस्तुत किया गया है। आइए, इसके महत्वपूर्ण बिंदुओं को समझें:
पाठ 15: अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले - विस्तृत नोट्स
1. लेखक परिचय (संक्षिप्त):
- नाम: निदा फ़ाज़ली (Nida Fazli)
- शैली: सरल, सहज भाषा में गंभीर बातें कहना इनकी विशेषता है। इन्होंने गद्य और पद्य दोनों में अपनी पहचान बनाई। इनकी रचनाओं में अक्सर मानवीय रिश्तों, प्रकृति, जीवन दर्शन और सांप्रदायिक सौहार्द की झलक मिलती है।
- पाठ का संदर्भ: यह पाठ उनकी आत्मकथात्मक शैली का एक अंश है, जिसमें वे अपने अनुभवों और कुछ ऐतिहासिक/धार्मिक प्रसंगों के माध्यम से मनुष्य की घटती संवेदनशीलता पर चिंता व्यक्त करते हैं।
2. पाठ का सार:
यह पाठ मूल रूप से इस बात पर केंद्रित है कि कैसे समय के साथ मनुष्य अधिक आत्मकेंद्रित और स्वार्थी होता गया है। पहले लोग न केवल मनुष्यों के प्रति, बल्कि पशु-पक्षियों और प्रकृति के प्रति भी गहरी संवेदना रखते थे, लेकिन आज यह भावना लुप्त होती जा रही है। लेखक ने अपनी बात को स्पष्ट करने के लिए कई उदाहरण दिए हैं:
- बाइबल और कुरान के प्रसंग:
- सुलेमान (सोलोमन): लेखक बताते हैं कि बाइबल में सुलेमान को पैगंबर कहा गया है जो पशु-पक्षियों की भाषा भी समझते थे। एक बार वे अपनी सेना के साथ गुज़र रहे थे, तो चींटियों ने डरकर एक-दूसरे से कहा कि जल्दी अपने बिलों में चलो, फ़ौज आ रही है। सुलेमान ने उनकी बातें सुनीं और उन्हें धीरज बँधाते हुए कहा कि वे किसी के लिए मुसीबत नहीं, सबके रखवाले हैं। यह प्रसंग जीवों के प्रति सम्मान और उनकी भाषा समझने की क्षमता को दर्शाता है।
- नूह (नोआ): कुरान में नूह का जिक्र है। एक बार उन्होंने एक घायल कुत्ते को दुत्कार दिया था। कुत्ते ने जवाब दिया कि न मैं अपनी मर्ज़ी से कुत्ता हूँ, न तुम अपनी पसंद से इंसान; बनाने वाला सबका एक ही है। नूह इस बात से इतने दुखी हुए कि वे उम्र भर रोते रहे, इसीलिए उनका एक नाम 'नूह' (रोने वाला) पड़ा। यह प्रसंग किसी जीव को तुच्छ समझने के परिणाम और पश्चाताप को दिखाता है।
- लेखक के व्यक्तिगत अनुभव:
- पिता का प्रसंग: लेखक के पिता कुएँ से नहाकर लौटे और माँ ने भोजन परोसा। खाते समय पिता उठ खड़े हुए। पूछने पर बताया कि भोजन की थाली में एक च्योंटा (बड़ी चींटी) रेंग रहा था, जिसे वे उसके घर (कुएँ के पास) छोड़ने जा रहे हैं, क्योंकि उन्होंने उसे बेघर किया है। यह छोटी घटना भी जीवों के प्रति गहरी संवेदनशीलता दर्शाती है।
- माँ का प्रसंग: लेखक की माँ सूरज ढलने पर आँगन के पेड़ के पत्ते तोड़ने से भी मना करती थीं, क्योंकि उनका मानना था कि पेड़ सो जाते हैं और उन्हें दुःख होगा। वे दरिया को सलाम करती थीं, कबूतरों को दाना डालती थीं। एक बार उनके हाथ से कबूतर का अंडा टूट गया तो उन्होंने पूरे दिन रोज़ा रखा और खुदा से माफ़ी मांगी।
- वर्तमान स्थिति: लेखक बताते हैं कि आज स्थिति बदल गई है। बढ़ती आबादी, विकास और स्वार्थ के कारण मनुष्य ने प्रकृति का संतुलन बिगाड़ दिया है। समुद्र को पीछे धकेला, पेड़ों को काटा, पशु-पक्षियों के घर छीन लिए।
- वर्साेवा का उदाहरण: लेखक मुंबई के वर्साेवा में रहते हैं। पहले यहाँ दूर तक जंगल और पेड़ थे, परिंदे और जानवर थे। अब समुद्र को पीछे धकेलकर बस्तियाँ बना दी गई हैं। इससे पक्षियों के घर छिन गए। लेखक के फ्लैट के रोशनदान में कबूतरों ने घोंसला बना लिया था। एक दिन बिल्ली से बचाने के लिए जाली लगाते समय उनके दो अंडे टूट गए। कबूतर अब वहाँ नहीं आते।
- प्रकृति का गुस्सा: लेखक कहते हैं कि प्रकृति के इस असंतुलन का परिणाम हमें भूकंप, बाढ़, तूफ़ान, अत्यधिक गर्मी और नई-नई बीमारियों के रूप में भुगतना पड़ रहा है। प्रकृति भी अब सहनशील नहीं रही, वह अपना गुस्सा दिखा रही है।
3. प्रमुख संदेश/मूल भाव:
- संवेदनशीलता का ह्रास: पाठ का केंद्रीय भाव मनुष्य की घटती संवेदनशीलता और बढ़ते स्वार्थ पर चिंता व्यक्त करना है।
- प्रकृति और सह-अस्तित्व: यह पाठ प्रकृति के महत्व और सभी जीवों के साथ मिलकर रहने की आवश्यकता पर बल देता है। धरती केवल मनुष्यों की नहीं, बल्कि सभी जीव-जंतुओं की है।
- पर्यावरण संरक्षण: अनियोजित विकास और प्रकृति के शोषण के दुष्परिणामों की ओर ध्यान आकर्षित करना।
- मानवीय मूल्यों की पुनर्स्थापना: पुराने समय के लोगों की तरह दया, करुणा और परोपकार जैसे मूल्यों को फिर से अपनाने का आग्रह।
4. महत्वपूर्ण बिंदु (परीक्षा की दृष्टि से):
- सुलेमान और चींटियों का प्रसंग (अर्थ और संदेश)।
- नूह और कुत्ते का प्रसंग (अर्थ और संदेश)।
- लेखक के पिता और चींटे का प्रसंग (संवेदनशीलता)।
- लेखक की माँ के कार्य (पेड़, दरिया, कबूतर, अंडा टूटना) और उनका महत्व।
- वर्तमान समय में मनुष्य द्वारा प्रकृति का विनाश (समुद्र पीछे धकेलना, पेड़ काटना)।
- वर्साेवा में कबूतरों के घोंसले और अंडे टूटने की घटना।
- प्रकृति के गुस्से के रूप (भूकंप, बाढ़, गर्मी, बीमारियाँ)।
- पाठ का शीर्षक 'अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले' की सार्थकता।
5. भाषा-शैली:
- भाषा सरल, सहज और प्रवाहमयी है।
- उर्दू के शब्दों (जैसे - मुसीबत, फ़ौज, मर्ज़ी, खुदा, गुनाह, मज़ार) का सुंदर प्रयोग है।
- किस्सागोई (कहानी कहने) का अंदाज़ है।
- विचारोत्तेजक और मार्मिक शैली है।
6. परीक्षा हेतु महत्व:
यह पाठ नैतिक मूल्यों, पर्यावरण चेतना और सामाजिक सरोकारों से जुड़ा है, इसलिए इससे संबंधित प्रश्न अक्सर पूछे जाते हैं। पाठ का मूल भाव, उदाहरणों का महत्व, शीर्षक की सार्थकता और लेखक के विचारों पर आधारित प्रश्न बन सकते हैं।
बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs):
-
'अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले' पाठ के लेखक कौन हैं?
(क) प्रेमचंद
(ख) निदा फ़ाज़ली
(ग) महादेवी वर्मा
(घ) हजारी प्रसाद द्विवेदी -
बाइबल के अनुसार सुलेमान ने चींटियों से क्या कहा था?
(क) यहाँ से भाग जाओ।
(ख) मैं तुम्हारे लिए मुसीबत नहीं, मुहब्बत हूँ।
(ग) मैं तुम्हें कुचल दूँगा।
(घ) तुम सब मेरे लिए भोजन लाओ। -
नूह को 'नूह' नाम क्यों मिला?
(क) क्योंकि वे बहुत ज्ञानी थे।
(ख) क्योंकि उन्होंने नाव बनाई थी।
(ग) क्योंकि वे एक कुत्ते को दुत्कारने के बाद पश्चाताप में उम्र भर रोते रहे।
(घ) क्योंकि वे जानवरों से बात कर सकते थे। -
लेखक के पिता ने थाली में से उठकर क्या किया?
(क) पानी पीने गए।
(ख) हाथ धोने गए।
(ग) एक चींटे को उसके घर (कुएँ पर) छोड़ने गए।
(घ) माँ से और रोटी मांगने गए। -
लेखक की माँ कबूतर का अंडा टूटने पर क्या करती हैं?
(क) गुस्सा करती हैं।
(ख) कबूतरों को भगा देती हैं।
(ग) पूरे दिन रोज़ा रखकर खुदा से माफ़ी मांगती हैं।
(घ) नया घोंसला बना देती हैं। -
लेखक के अनुसार आज मनुष्य ने अपनी बुद्धि से क्या खड़ा किया है?
(क) सुंदर इमारतें
(ख) कंक्रीट के जंगल
(ग) प्रकृति और मनुष्य के बीच दीवार
(घ) विज्ञान के चमत्कार -
पाठ में किस स्थान का उल्लेख है जहाँ समुद्र को पीछे धकेलकर बस्तियाँ बसाई गईं?
(क) दिल्ली
(ख) कोलकाता
(ग) चेन्नई
(घ) मुंबई (वर्साेवा) -
प्रकृति के गुस्से के कौन-कौन से रूप पाठ में बताए गए हैं?
(क) केवल भूकंप
(ख) केवल बाढ़
(ग) भूकंप, सैलाब, तूफ़ान, गर्मी, बीमारियाँ
(घ) केवल बीमारियाँ -
पाठ का मुख्य संदेश क्या है?
(क) हमें केवल मनुष्यों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए।
(ख) हमें प्रकृति और अन्य जीवों के प्रति भी संवेदनशील होना चाहिए।
(ग) विकास के लिए प्रकृति का विनाश आवश्यक है।
(घ) पुराने ज़माने के लोग अंधविश्वासी थे। -
लेखक के फ्लैट के रोशनदान में किसने डेरा डाल लिया था?
(क) गौरैया ने
(ख) कबूतरों ने
(ग) तोतों ने
(घ) चीलों ने
उत्तरमाला:
- (ख), 2. (ख), 3. (ग), 4. (ग), 5. (ग), 6. (ग), 7. (घ), 8. (ग), 9. (ख), 10. (ख)
मुझे उम्मीद है कि इन नोट्स और प्रश्नों से आपको इस पाठ को समझने और परीक्षा की तैयारी करने में मदद मिलेगी। इस पाठ के मूल भाव को आत्मसात करना बहुत ज़रूरी है, क्योंकि यह हमें एक बेहतर इंसान बनने की प्रेरणा देता है। ध्यान से पढ़ें और कोई शंका हो तो पूछें।