Class 10 Hindi Notes Chapter 15 (महावीर प्रसाद द्विवेदी: स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन) – Kshitij-II Book
नमस्ते विद्यार्थियो,
आज हम कक्षा 10 की हिंदी पाठ्यपुस्तक 'क्षितिज-भाग 2' के अध्याय 15, 'महावीर प्रसाद द्विवेदी: स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन' का अध्ययन करेंगे। यह निबंध आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखा गया है और तत्कालीन समाज में स्त्री-शिक्षा को लेकर व्याप्त रूढ़िवादी सोच और गलत तर्कों का खंडन करता है। परीक्षा की दृष्टि से यह पाठ अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह न केवल स्त्री-शिक्षा के महत्व को रेखांकित करता है, बल्कि तर्कपूर्ण ढंग से अपनी बात रखने की शैली भी सिखाता है।
आइए, इस पाठ के विस्तृत नोट्स और महत्वपूर्ण बिंदुओं पर ध्यान दें:
पाठ: स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन
लेखक: आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी
लेखक परिचय:
- आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी (1864-1938) हिंदी साहित्य के युग प्रवर्तक माने जाते हैं।
- वे 'सरस्वती' पत्रिका के यशस्वी संपादक रहे (1903-1920)।
- उन्होंने खड़ी बोली हिंदी के मानकीकरण, व्याकरण-सम्मत प्रयोग और गद्य-पद्य की भाषा के परिष्कार में अभूतपूर्व योगदान दिया।
- उनकी रचनाओं में समाज सुधार, भाषा परिष्कार और ज्ञान-विज्ञान के विषयों पर जोर मिलता है।
निबंध का संदर्भ और उद्देश्य:
- यह निबंध पहली बार सितंबर 1914 में 'सरस्वती' पत्रिका में 'पढ़े-लिखों का पांडित्य' शीर्षक से प्रकाशित हुआ था। बाद में इसे द्विवेदी जी की पुस्तक 'महिला मोद' में 'स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन' शीर्षक से शामिल किया गया।
- उस समय समाज का एक वर्ग स्त्रियों को पढ़ाने-लिखाने का घोर विरोधी था और इसके लिए तरह-तरह के गलत तर्क (कुतर्क) देता था।
- द्विवेदी जी का उद्देश्य इन कुतर्कों का खंडन करके स्त्री-शिक्षा के महत्व को स्थापित करना और समाज में जागरूकता लाना था।
निबंध के मुख्य बिंदु एवं कुतर्कों का खंडन:
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पहला कुतर्क: स्त्रियों को पढ़ाना गृह-सुख के नाश का कारण है। पढ़ी-लिखी स्त्रियाँ परिवार में कलह उत्पन्न करती हैं।
- द्विवेदी जी का खंडन:
- शिक्षा स्वयं में कोई दोष नहीं है। यदि कोई पढ़ा-लिखा व्यक्ति (स्त्री या पुरुष) गलत आचरण करता है, तो यह उसकी व्यक्तिगत कमी है, शिक्षा का दोष नहीं।
- पुरुषों की शिक्षा भी तो चोरी, डकैती, हत्या जैसे अपराधों का कारण नहीं मानी जाती, तो फिर स्त्रियों की शिक्षा को पारिवारिक कलह का कारण क्यों माना जाए?
- अनपढ़ स्त्रियाँ भी कई बार गृह-कलह का कारण बनती हैं। अतः दोष शिक्षा का नहीं, व्यक्ति के स्वभाव और परिस्थितियों का है।
- शिक्षा तो स्त्रियों को विवेकशील बनाती है, जिससे वे अच्छे-बुरे का भेद समझ सकती हैं और परिवार को बेहतर ढंग से चला सकती हैं।
- द्विवेदी जी का खंडन:
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दूसरा कुतर्क: पुराने ज़माने में स्त्रियाँ नहीं पढ़ती थीं। यदि पढ़तीं तो संस्कृत नाटकों में उनसे अपभ्रंश (प्राकृत) भाषा क्यों बुलवाई जाती? शकुंतला ने दुष्यंत को या सीता ने लक्ष्मण को जो कटु वचन कहे, वे उनके पढ़े-लिखे होने का नहीं, बल्कि अनपढ़ होने का प्रमाण हैं।
- द्विवेदी जी का खंडन:
- यह कहना सरासर गलत है कि पुराने ज़माने में स्त्रियाँ नहीं पढ़ती थीं। द्विवेदी जी अनेक विदुषी स्त्रियों का उदाहरण देते हैं - शीला, विज्जा, गार्गी, मैत्रेयी आदि, जिन्होंने शास्त्रों पर चर्चा की और रचनाएँ भी कीं। बौद्ध ग्रंथों में भी अनेक थेरियों (भिक्षुणियों) का उल्लेख है जो विदुषी थीं।
- नाटकों में स्त्रियों और सामान्य जनों से प्राकृत बुलवाना उनके अनपढ़ होने का सबूत नहीं है। प्राकृत उस समय की लोक-प्रचलित भाषा थी, जैसे आज हिंदी है। भगवान बुद्ध और उनके शिष्य भी प्राकृत में ही उपदेश देते थे। संस्कृत उस समय पंडितों और उच्च वर्ग की भाषा रही होगी। अतः प्राकृत बोलना अशिक्षित होने का प्रमाण नहीं है।
- शकुंतला या सीता द्वारा कहे गए कटु वचन उनकी पीड़ा और अन्याय के प्रति उनकी प्रतिक्रिया थे, न कि उनकी अशिक्षा का परिणाम। शकुंतला ने दुष्यंत को जो कहा, वह एक परित्यक्ता स्त्री का स्वाभाविक क्रोध था। सीता ने लक्ष्मण को जो कहा, वह राम के प्रति उनकी चिंता और वियोग की पीड़ा का परिणाम था। इसे अशिक्षा से जोड़ना गलत है।
- यदि पुराने ज़माने में कुछ स्त्रियाँ नहीं पढ़ती थीं या उन्हें पढ़ने की अनुमति नहीं थी, तो यह उस समय की सामाजिक व्यवस्था का दोष था, जिसे आज दोहराना उचित नहीं है। हमें उस नियम या परंपरा को तोड़ देना चाहिए जो आज अप्रासंगिक और अन्यायपूर्ण है।
- द्विवेदी जी का खंडन:
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तीसरा कुतर्क: स्त्रियों को वेद-पुराण या संस्कृत जैसी उच्च शिक्षा देना व्यर्थ है। उन्हें बस सामान्य कामकाज लायक पढ़ा देना काफी है।
- द्विवेदी जी का खंडन:
- ज्ञान प्राप्ति का अधिकार सभी को है, चाहे वह स्त्री हो या पुरुष। शिक्षा व्यक्ति को समर्थ और विवेकशील बनाती है।
- यदि पुरुषों के लिए उच्च शिक्षा आवश्यक है, तो स्त्रियों के लिए क्यों नहीं? क्या स्त्रियाँ मनुष्य नहीं हैं?
- शिक्षा प्रणाली समय और आवश्यकता के अनुसार बदलती रहती है। आज के युग में स्त्रियों को हर प्रकार की शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार होना चाहिए ताकि वे पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल सकें और समाज तथा राष्ट्र के विकास में योगदान दे सकें।
- द्विवेदी जी तर्क देते हैं कि यदि पुरानी शिक्षा प्रणाली में कोई कमी थी, तो उसे सुधारना चाहिए, न कि शिक्षा को ही बंद कर देना चाहिए।
- द्विवेदी जी का खंडन:
निबंध का सार एवं संदेश:
- महावीर प्रसाद द्विवेदी ने इस निबंध में अत्यंत तार्किक, अकाट्य प्रमाणों और उदाहरणों द्वारा स्त्री-शिक्षा का विरोध करने वालों के सभी कुतर्कों को ध्वस्त किया है।
- वे स्त्री-शिक्षा को समाज की प्रगति और विकास के लिए अनिवार्य मानते हैं।
- उनका मानना है कि शिक्षा स्त्रियों को आत्मनिर्भर, विवेकशील और सशक्त बनाती है।
- यह निबंध सामाजिक रूढ़ियों पर प्रहार करता है और प्रगतिशील सोच को बढ़ावा देता है।
- द्विवेदी जी की भाषा संयत, तर्कपूर्ण और प्रवाहपूर्ण है।
परीक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण:
- लेखक का नाम और पाठ का शीर्षक।
- निबंध का मूल उद्देश्य।
- स्त्री-शिक्षा के विरोध में दिए जाने वाले कुतर्क।
- द्विवेदी जी द्वारा दिए गए खंडन और तर्क।
- प्राचीन विदुषी स्त्रियों के नाम (शीला, विज्जा, गार्गी, मैत्रेयी आदि)।
- प्राकृत भाषा के संबंध में द्विवेदी जी का मत।
- शकुंतला और सीता के उदाहरणों पर द्विवेदी जी की व्याख्या।
- 'सरस्वती' पत्रिका और द्विवेदी जी का योगदान।
अभ्यास हेतु 10 बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs):
प्रश्न 1: 'स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन' निबंध के लेखक कौन हैं?
(क) प्रेमचंद
(ख) हजारी प्रसाद द्विवेदी
(ग) महावीर प्रसाद द्विवेदी
(घ) रामचन्द्र शुक्ल
प्रश्न 2: यह निबंध मूल रूप से 'सरस्वती' पत्रिका में किस शीर्षक से प्रकाशित हुआ था?
(क) महिला मोद
(ख) पढ़े-लिखों का पांडित्य
(ग) स्त्री-शिक्षा का महत्व
(घ) कुतर्कों का खंडन
प्रश्न 3: लेखक के अनुसार, स्त्री-शिक्षा के विरोधी किसका नाश होने का भय दिखाते थे?
(क) धन-संपत्ति का
(ख) गृह-सुख का
(ग) धर्म का
(घ) समाज का
प्रश्न 4: लेखक ने प्राचीन काल की किन विदुषी स्त्रियों का उल्लेख किया है?
(क) लक्ष्मीबाई, रज़िया सुल्तान
(ख) मीराबाई, सहजोबाई
(ग) शीला, विज्जा, गार्गी
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं
प्रश्न 5: नाटकों में स्त्रियों द्वारा प्राकृत बोलना किस बात का सूचक है, लेखक के अनुसार?
(क) उनके अनपढ़ होने का
(ख) उनके निम्न कुल का होने का
(ग) उस समय प्राकृत का लोक-प्रचलित भाषा होने का
(घ) संस्कृत भाषा के कठिन होने का
प्रश्न 6: शकुंतला ने दुष्यंत को कटु वचन क्यों कहे, द्विवेदी जी के अनुसार?
(क) क्योंकि वह अनपढ़ थी
(ख) क्योंकि वह क्रोधी स्वभाव की थी
(ग) अपमान और परित्याग के दुःख के कारण
(घ) ऋषि के श्राप के कारण
प्रश्न 7: लेखक के अनुसार, यदि पुरानी शिक्षा प्रणाली में दोष थे, तो क्या करना चाहिए?
(क) शिक्षा देना बंद कर देना चाहिए
(ख) पुरानी प्रणाली को ही लागू रखना चाहिए
(ग) शिक्षा प्रणाली में सुधार करना चाहिए
(घ) केवल पुरुषों को शिक्षित करना चाहिए
प्रश्न 8: 'कुतर्क' शब्द का क्या अर्थ है?
(क) अच्छा तर्क
(ख) गलत या व्यर्थ का तर्क
(ग) प्राचीन तर्क
(घ) साहित्यिक तर्क
प्रश्न 9: महावीर प्रसाद द्विवेदी किस प्रसिद्ध पत्रिका के संपादक थे?
(क) हंस
(ख) चाँद
(ग) सरस्वती
(घ) माधुरी
प्रश्न 10: इस निबंध का मुख्य उद्देश्य क्या है?
(क) प्राचीन नाटकों की समीक्षा करना
(ख) संस्कृत भाषा का महत्व बताना
(ग) स्त्री-शिक्षा का विरोध करना
(घ) स्त्री-शिक्षा का समर्थन करना और विरोधी तर्कों का खंडन करना
उत्तरमाला:
- (ग) महावीर प्रसाद द्विवेदी
- (ख) पढ़े-लिखों का पांडित्य
- (ख) गृह-सुख का
- (ग) शीला, विज्जा, गार्गी
- (ग) उस समय प्राकृत का लोक-प्रचलित भाषा होने का
- (ग) अपमान और परित्याग के दुःख के कारण
- (ग) शिक्षा प्रणाली में सुधार करना चाहिए
- (ख) गलत या व्यर्थ का तर्क
- (ग) सरस्वती
- (घ) स्त्री-शिक्षा का समर्थन करना और विरोधी तर्कों का खंडन करना
मुझे उम्मीद है कि ये नोट्स और प्रश्न आपकी परीक्षा की तैयारी में सहायक होंगे। इस पाठ को ध्यान से पढ़ें और द्विवेदी जी के तर्कों को समझने का प्रयास करें। शुभकामनाएँ!