Class 10 Hindi Notes Chapter 16 (यतींद्र मिश्र: नौबतखाने में इबादत) – Kshitij-II Book

नमस्ते विद्यार्थियो!
आज हम क्षितिज-भाग 2 के गद्य खंड के अध्याय 16, 'नौबतखाने में इबादत' का अध्ययन करेंगे। यह पाठ यतींद्र मिश्र द्वारा लिखा गया है और इसमें भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ के जीवन, उनके संगीत-प्रेम, उनकी सादगी और धार्मिक सहिष्णुता का बहुत ही सुंदर चित्रण किया गया है। सरकारी परीक्षाओं की दृष्टि से यह पाठ अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे भारतीय संस्कृति, संगीत परंपरा और महान व्यक्तित्वों से संबंधित प्रश्न पूछे जा सकते हैं।
आइए, इस पाठ के विस्तृत नोट्स और महत्वपूर्ण बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित करें:
पाठ: नौबतखाने में इबादत
लेखक: यतींद्र मिश्र
लेखक परिचय:
यतींद्र मिश्र का जन्म 1977 में अयोध्या, उत्तर प्रदेश में हुआ। वे हिंदी के कवि, संपादक और संगीत-कलाओं के अध्येता हैं। उनकी रचनाओं में साहित्य, संगीत और अन्य ललित कलाओं का गहरा समन्वय देखने को मिलता है। 'नौबतखाने में इबादत' उनकी प्रसिद्ध कृति है, जिसमें उन्होंने उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ के जीवन और संगीत साधना को प्रस्तुत किया है।
पाठ का सारांश:
यह पाठ प्रसिद्ध शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ पर केंद्रित एक व्यक्ति-चित्र है। लेखक ने उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं, उनकी संगीत साधना, उनकी रुचियों, उनके अंतर्मन की बुनावट और उनकी सादगी को बड़ी ही संवेदनशीलता से उकेरा है।
-
आरंभिक जीवन और संगीत शिक्षा:
- बिस्मिल्ला खाँ का जन्म डुमराँव (बिहार) में एक संगीत प्रेमी परिवार में हुआ था।
- उनके बचपन का नाम अमीरुद्दीन था।
- उनके परदादा उस्ताद सल्तार हुसैन खाँ, दादा रसूल बख्श खाँ और पिता पैगम्बर बख्श खाँ भी जाने-माने शहनाई वादक थे।
- छह साल की उम्र में वे अपने नाना के घर काशी (वाराणसी) आ गए, जहाँ उन्होंने अपने मामा अलीबख्श 'विलायती' से शहनाई वादन की विधिवत शिक्षा लेनी शुरू की। उनके मामा काशी विश्वनाथ मंदिर में स्थायी शहनाई वादक थे।
-
काशी, बालाजी मंदिर और गंगा से लगाव:
- बिस्मिल्ला खाँ का जीवन काशी, बालाजी मंदिर और गंगा नदी से गहराई से जुड़ा था।
- वे बालाजी मंदिर की ड्योढ़ी पर रियाज़ करते थे। बालाजी मंदिर तक जाने का रास्ता रसूलनबाई और बतूलनबाई के घर के पास से होकर जाता था, जहाँ से उन्हें संगीत की प्रेरणा मिली।
- गंगा उनके लिए माँ समान थीं। वे गंगा किनारे बैठकर घंटों रियाज़ करते थे। उनका मानना था कि गंगा, काशी और शहनाई उनके जीवन के अभिन्न अंग हैं।
-
शहनाई और बिस्मिल्ला खाँ:
- शहनाई को 'मंगल ध्वनि' का वाद्य माना जाता है। इसका प्रयोग मांगलिक अवसरों, मंदिरों और उत्सवों में होता है।
- बिस्मिल्ला खाँ ने शहनाई को शास्त्रीय संगीत की प्रतिष्ठा दिलाई। उन्होंने इसे लोक संगीत के स्तर से उठाकर शास्त्रीय मंचों तक पहुँचाया।
- 15 अगस्त 1947 को देश की आज़ादी के अवसर पर उन्होंने लाल किले पर शहनाई वादन किया था। यह उनके जीवन का एक अविस्मरणीय क्षण था।
-
सादगी और विनम्रता:
- बिस्मिल्ला खाँ अत्यंत सरल और सादे स्वभाव के व्यक्ति थे। भारत रत्न जैसा सर्वोच्च सम्मान पाने के बाद भी उनमें कोई अहंकार नहीं था।
- वे अक्सर फटी तहमद (लुंगी) पहने दिख जाते थे। उनका मानना था कि सम्मान उनकी शहनाई को मिला है, उनके कपड़ों को नहीं। ईश्वर से वे हमेशा 'सुर' की नेमत मांगते थे।
-
धार्मिक सहिष्णुता (गंगा-जमुनी तहज़ीब):
- बिस्मिल्ला खाँ सच्चे मुसलमान थे, जो पाँचों वक्त की नमाज़ अदा करते थे। साथ ही, वे काशी विश्वनाथ और बालाजी मंदिर के प्रति गहरी आस्था रखते थे।
- मुहर्रम के महीने में वे पूरी शिद्दत से इमाम हुसैन और उनके परिवार के शहीदों का मातम मनाते थे और उस दौरान शहनाई नहीं बजाते थे।
- उनका जीवन और संगीत भारत की मिली-जुली संस्कृति (गंगा-जमुनी तहज़ीब) का प्रतीक है।
-
काशी से अटूट प्रेम:
- उन्हें काशी से इतना लगाव था कि वे इसे छोड़कर कहीं और जाने की कल्पना भी नहीं कर सकते थे।
- एक शिष्या के पूछने पर कि क्या वे अमेरिका में संगीत सिखाएंगे, उन्होंने कहा था कि वे काशी का बालाजी मंदिर, संकटमोचन मंदिर और गंगा मैया को अमेरिका नहीं ले जा सकते।
- वे कहते थे, "काशी छोड़कर कहाँ जाएँ जनाब! गंगा मइया यहाँ, बाबा विश्वनाथ यहाँ, बालाजी का मंदिर यहाँ... मरते दम तक न यह शहनाई छूटेगी न काशी।"
-
संगीत ही इबादत:
- बिस्मिल्ला खाँ के लिए संगीत केवल मनोरंजन या पेशा नहीं था, बल्कि ईश्वर की इबादत (प्रार्थना) का एक तरीका था।
- वे अस्सी बरस तक सुर साधते रहे और हमेशा यही कहते थे कि उन्हें संगीत के सागर में अभी बहुत कुछ सीखना बाकी है।
प्रमुख बिंदु एवं विषय:
- कला के प्रति समर्पण: बिस्मिल्ला खाँ का जीवन संगीत के प्रति पूर्ण समर्पण का उदाहरण है।
- सादगी और निरभिमानता: सर्वोच्च शिखर पर पहुँचकर भी सहज और सरल बने रहना।
- धार्मिक सद्भाव: मुस्लिम होते हुए भी हिंदू देवी-देवताओं और मंदिरों के प्रति गहरी आस्था रखना।
- सांस्कृतिक एकता: उनका व्यक्तित्व और संगीत भारत की मिली-जुली संस्कृति का प्रतीक है।
- स्थान प्रेम: अपनी जन्मभूमि और कर्मभूमि (काशी) के प्रति गहरा लगाव।
- रियाज़ का महत्व: निरंतर अभ्यास से ही कला में निखार आता है।
- कला और उपासना: कला साधना को ईश्वर की उपासना समझना।
महत्वपूर्ण शब्दावली:
- नौबतखाना: प्रवेश द्वार के ऊपर मंगल ध्वनि बजाने का स्थान।
- इबादत: उपासना, प्रार्थना।
- रियाज़: अभ्यास (विशेषकर संगीत का)।
- शहनाई: सुषिर वाद्यों (फूँककर बजाए जाने वाले) में शाह की उपाधि प्राप्त वाद्य, मंगल ध्वनि का सूचक।
- मंगल ध्वनि: मांगलिक अवसरों पर बजाया जाने वाला संगीत।
- गंगा-जमुनी तहज़ीब: भारत की मिली-जुली संस्कृति, हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक।
- तहमद: लुंगी।
परीक्षा की दृष्टि से महत्व:
यह पाठ भारतीय संस्कृति, संगीत परंपरा, राष्ट्रीय एकता और महान व्यक्तित्वों के अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण है। इससे उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ के चरित्र-चित्रण, उनके संगीत योगदान, उनकी धार्मिक सहिष्णुता, पाठ के मूल संदेश और गंगा-जमुनी तहज़ीब से संबंधित प्रश्न पूछे जा सकते हैं।
अभ्यास हेतु बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs):
-
'नौबतखाने में इबादत' पाठ के लेखक कौन हैं?
(क) स्वयं प्रकाश
(ख) रामवृक्ष बेनीपुरी
(ग) यतींद्र मिश्र
(घ) सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
उत्तर: (ग) यतींद्र मिश्र -
उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ किस वाद्य यंत्र के लिए प्रसिद्ध थे?
(क) सितार
(ख) शहनाई
(ग) तबला
(घ) सरोद
उत्तर: (ख) शहनाई -
बिस्मिल्ला खाँ के बचपन का नाम क्या था?
(क) अलीबख्श
(ख) पैगम्बर बख्श
(ग) सादिक हुसैन
(घ) अमीरुद्दीन
उत्तर: (घ) अमीरुद्दीन -
बिस्मिल्ला खाँ मुख्य रूप से किस मंदिर की ड्योढ़ी पर रियाज़ करते थे?
(क) संकटमोचन मंदिर
(ख) काशी विश्वनाथ मंदिर
(ग) बालाजी मंदिर
(घ) दुर्गा मंदिर
उत्तर: (ग) बालाजी मंदिर -
शहनाई को किस प्रकार के वाद्यों में गिना जाता है?
(क) तत वाद्य (तार वाले)
(ख) सुषिर वाद्य (फूँक वाले)
(ग) अवनद्ध वाद्य (चमड़े वाले)
(घ) घन वाद्य (ठोस)
उत्तर: (ख) सुषिर वाद्य (फूँक वाले) -
बिस्मिल्ला खाँ के लिए काशी छोड़कर जाना क्यों असंभव था?
(क) वहाँ उनका घर था
(ख) वहाँ गंगा, विश्वनाथ और बालाजी मंदिर थे
(ग) उन्हें विदेश जाना पसंद नहीं था
(घ) उनके सभी रिश्तेदार वहीं थे
उत्तर: (ख) वहाँ गंगा, विश्वनाथ और बालाजी मंदिर थे -
बिस्मिल्ला खाँ को भारत का कौन सा सर्वोच्च सम्मान मिला था?
(क) पद्म श्री
(ख) पद्म भूषण
(ग) पद्म विभूषण
(घ) भारत रत्न
उत्तर: (घ) भारत रत्न -
बिस्मिल्ला खाँ के जीवन से हमें क्या प्रेरणा मिलती है?
(क) सादगी और विनम्रता
(ख) धार्मिक सद्भाव
(ग) कला के प्रति समर्पण
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर: (घ) उपरोक्त सभी -
बिस्मिल्ला खाँ मुहर्रम के महीने में क्या करते थे?
(क) शहनाई नहीं बजाते थे और शोक मनाते थे
(ख) विशेष राग बजाते थे
(ग) काशी से बाहर चले जाते थे
(घ) केवल नौबतखाने में शहनाई बजाते थे
उत्तर: (क) शहनाई नहीं बजाते थे और शोक मनाते थे -
बिस्मिल्ला खाँ ईश्वर से हमेशा क्या मांगते थे?
(क) धन-दौलत
(ख) प्रसिद्धि
(ग) सच्चा सुर
(घ) लंबा जीवन
उत्तर: (ग) सच्चा सुर
इन नोट्स को ध्यान से पढ़ें और पाठ को पुनः एक बार अवश्य पढ़ें। उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ का जीवन और उनका संगीत के प्रति समर्पण हम सभी के लिए प्रेरणादायक है। परीक्षा के लिए शुभकामनाएँ!