Class 10 Hindi Notes Chapter 2 (जॉर्ज पंचम की नाक) – Kritika Book

विद्यार्थियों, आज हम कृतिका भाग 2 के दूसरे पाठ, 'जॉर्ज पंचम की नाक' का गहन अध्ययन करेंगे। यह पाठ लेखक कमलेश्वर द्वारा रचित एक प्रसिद्ध व्यंग्य रचना है, जो सरकारी परीक्षाओं की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। इसमें स्वतंत्र भारत में भी मौजूद औपनिवेशिक मानसिकता और सरकारी तंत्र की कार्यप्रणाली पर तीखा कटाक्ष किया गया है।
पाठ: जॉर्ज पंचम की नाक (लेखक: कमलेश्वर)
परीक्षा उपयोगी विस्तृत नोट्स:
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पृष्ठभूमि:
- यह कहानी उस समय की है जब इंग्लैंड की रानी एलिज़ाबेथ द्वितीय अपने पति के साथ हिंदुस्तान (भारत और पाकिस्तान) के दौरे पर आने वाली थीं।
- उनके आगमन को लेकर सरकारी तंत्र में विशेष हलचल थी। दिल्ली को सजाया-संवारा जा रहा था।
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केंद्रीय समस्या:
- इंडिया गेट के सामने लगी जॉर्ज पंचम (ब्रिटिश सम्राट) की मूर्ति की नाक गायब हो गई थी।
- यह सरकारी अधिकारियों के लिए बड़ी चिंता का विषय बन गया, क्योंकि रानी के आगमन पर अगर मूर्ति बिना नाक के दिखी, तो इसे देश की और सरकार की बड़ी बेइज़्ज़ती माना जाएगा। यहाँ 'नाक' मान-सम्मान और इज़्ज़त का प्रतीक बन जाती है।
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सरकारी तंत्र पर व्यंग्य:
- अफरातफरी और बैठकों का दौर: नाक गायब होने की खबर से पूरी नौकरशाही में खलबली मच जाती है। उच्च स्तर पर मीटिंगें होती हैं, चिंता व्यक्त की जाती है, लेकिन ठोस समाधान की बजाय एक-दूसरे पर ज़िम्मेदारी टालने की कोशिश होती है।
- समिति का गठन: समस्या के समाधान के लिए कमेटी बनाई जाती है, जो फाइलों की छानबीन करती है, पुरातत्व विभाग से जानकारी मांगती है, लेकिन नतीजा सिफर रहता है। यह सरकारी कामकाज की धीमी और जटिल प्रक्रिया पर व्यंग्य है।
- गुलामी की मानसिकता: स्वतंत्र भारत के अधिकारी एक विदेशी रानी और एक पूर्व शासक (जिसने भारत को गुलाम बनाया) की मूर्ति की नाक के लिए इतने चिंतित हैं कि उन्हें देश का मान-सम्मान इसी में नज़र आता है। वे अपनी समस्याओं या देशवासियों की चिंता से अधिक महत्व इस मूर्ति को देते हैं।
- गोपनीयता: सारी कार्रवाई अत्यंत गोपनीय रखी जाती है, ताकि बात बाहर न फैले और सरकार की किरकिरी न हो।
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मूर्तिकार की भूमिका और व्यंग्य:
- समस्या के समाधान के लिए एक मूर्तिकार को बुलाया जाता है, जो पैसे से लाचार है।
- पत्थर की खोज: मूर्तिकार पहले मूर्ति के पत्थर की किस्म जानने का प्रयास करता है, लेकिन फाइलों में कोई जानकारी नहीं मिलती। वह देश भर के पहाड़ों और खदानों में वैसा पत्थर खोजता है, पर असफल रहता है। यह दिखाता है कि फाइलों में महत्वपूर्ण जानकारी का अभाव होता है।
- देशभक्तों की मूर्तियों का अपमान: जब पत्थर नहीं मिलता, तो मूर्तिकार सुझाव देता है कि देश के किसी नेता की मूर्ति से नाक उतारकर जॉर्ज पंचम की मूर्ति पर लगा दी जाए। अधिकारी सहमत हो जाते हैं। मूर्तिकार देश भर में घूमकर दादाभाई नौरोजी, गोखले, तिलक, शिवाजी, गांधीजी, सरदार पटेल, सुभाष चंद्र बोस आदि सभी महापुरुषों की मूर्तियों की नाकों को नापता है, लेकिन पाता है कि जॉर्ज पंचम की नाक उन सबसे छोटी है। यह गहरा व्यंग्य है कि भारत के नेताओं का सम्मान और कद जॉर्ज पंचम से कहीं ऊँचा था।
- शहीद बच्चों का अपमान: अंततः मूर्तिकार बिहार सेक्रेटेरिएट के सामने शहीद हुए बच्चों की मूर्तियों की नाकों को भी नापता है, पर वे भी जॉर्ज पंचम की नाक से बड़ी निकलती हैं। यह दिखाता है कि देश के लिए बलिदान देने वाले बच्चों का सम्मान भी उस विदेशी शासक से ज़्यादा था।
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चरम और अंतिम व्यंग्य:
- जब कोई उपाय नहीं सूझता, तो मूर्तिकार एक भयानक और अमानवीय सुझाव देता है - किसी ज़िंदा व्यक्ति की नाक काटकर लगा दी जाए।
- अधिकारी इस अनैतिक और क्रूर सुझाव को भी मान लेते हैं, क्योंकि उनके लिए रानी के सामने अपनी 'नाक' बचाना ज़्यादा ज़रूरी है।
- अंततः, जॉर्ज पंचम की मूर्ति पर एक ज़िंदा नाक लगा दी जाती है। यह भारतीय स्वाभिमान और मानवता की हत्या का प्रतीक है, जो केवल दिखावटी सम्मान बचाने के लिए की गई।
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मीडिया पर व्यंग्य:
- लेखक ने उस समय की पत्रकारिता पर भी व्यंग्य किया है। अखबार रानी के सूट, उनके खानसामे, बावर्चियों, अंगरक्षकों और यहाँ तक कि उनके कुत्ते की तस्वीरों और खबरों से भरे रहते थे, लेकिन जॉर्ज पंचम की नाक जैसी महत्वपूर्ण (व्यंग्यात्मक रूप से) घटना पर पर्दा डालने की कोशिश की जाती है।
- जिस दिन ज़िंदा नाक लगाई जाती है, उस दिन के अखबारों में कोई विशेष खबर नहीं छपती – न उद्घाटन की, न स्वागत समारोह की, न कोई फीता कटने की। सब अखबार खाली थे। यह सन्नाटा या तो उस शर्मनाक कृत्य पर पर्दा डालने का प्रयास था या फिर व्यवस्था के प्रति एक मौन विरोध।
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मुख्य संदेश:
- यह पाठ स्वतंत्र भारत में व्याप्त चाटुकारिता, औपनिवेशिक दासता की मानसिकता, सरकारी तंत्र की अकर्मण्यता और संवेदनहीनता पर करारा प्रहार है।
- यह दिखाता है कि कैसे सत्ता में बैठे लोग अपने मान-सम्मान की झूठी रक्षा के लिए देश के गौरव, स्वाभिमान और यहाँ तक कि मानवीय मूल्यों को भी दाँव पर लगा सकते हैं।
- 'नाक' यहाँ झूठी इज़्ज़त और प्रतिष्ठा का प्रतीक है, जिसके लिए पूरा तंत्र बौखलाया हुआ है।
परीक्षा हेतु महत्वपूर्ण बिंदु:
- लेखक का नाम और पाठ का प्रकार (व्यंग्य)।
- कहानी का मुख्य विषय (औपनिवेशिक मानसिकता पर प्रहार)।
- रानी एलिज़ाबेथ द्वितीय का भारत आगमन।
- जॉर्ज पंचम की मूर्ति की नाक का गायब होना।
- 'नाक' का प्रतीकात्मक अर्थ (इज़्ज़त, मान-सम्मान)।
- सरकारी तंत्र की प्रतिक्रिया (बैठकें, कमेटी, गोपनीयता)।
- मूर्तिकार के प्रयास (पत्थर खोजना, नेताओं/बच्चों की नाक नापना)।
- भारतीय नेताओं और शहीद बच्चों की नाक का जॉर्ज पंचम की नाक से बड़ा होना (व्यंग्य)।
- ज़िंदा नाक लगाने का निर्णय और उसका प्रतीकार्थ (स्वाभिमान की हत्या)।
- अखबारों की भूमिका और अंतिम दिन का सन्नाटा।
अभ्यास हेतु बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs):
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'जॉर्ज पंचम की नाक' पाठ के लेखक कौन हैं?
(क) प्रेमचंद
(ख) कमलेश्वर
(ग) शिवपूजन सहाय
(घ) अज्ञेय -
यह पाठ साहित्य की किस विधा के अंतर्गत आता है?
(क) कहानी
(ख) निबंध
(ग) व्यंग्य
(घ) एकांकी -
दिल्ली में किस विदेशी मेहमान के आगमन पर विशेष तैयारियां हो रही थीं?
(क) अमेरिका के राष्ट्रपति
(ख) ब्रिटेन की महारानी एलिज़ाबेथ द्वितीय
(ग) रूस के प्रधानमंत्री
(घ) फ्रांस के राजदूत -
इंडिया गेट के पास लगी किस मूर्ति की नाक गायब हो गई थी?
(क) महात्मा गांधी
(ख) लॉर्ड कर्जन
(ग) जॉर्ज पंचम
(घ) क्वीन विक्टोरिया -
पाठ में 'नाक' किसका प्रतीक मानी गई है?
(क) सुंदरता का
(ख) घमंड का
(ग) मान-सम्मान व प्रतिष्ठा का
(घ) गुलामी का -
मूर्तिकार ने जॉर्ज पंचम की नाक के लिए पत्थर खोजने में असफल रहने पर क्या सुझाव दिया?
(क) नई मूर्ति बनाने का
(ख) मूर्ति हटाने का
(ग) किसी भारतीय नेता की मूर्ति की नाक लगाने का
(घ) प्लास्टर की नाक लगाने का -
भारतीय नेताओं और शहीद बच्चों की मूर्तियों की नाक जॉर्ज पंचम की नाक से कैसी निकली?
(क) छोटी
(ख) बराबर
(ग) बड़ी
(घ) टेढ़ी -
अंत में जॉर्ज पंचम की मूर्ति पर कैसी नाक लगाने का फैसला किया गया?
(क) पत्थर की
(ख) प्लास्टिक की
(ग) किसी ज़िंदा इंसान की
(घ) सोने की -
ज़िंदा नाक लगाने वाले दिन अखबारों में क्या खास बात थी?
(क) रानी के स्वागत की खबरें छपी थीं
(ख) मूर्ति की तस्वीर छपी थी
(ग) कोई खास खबर या उत्सव का समाचार नहीं था, अखबार लगभग खाली थे
(घ) मूर्तिकार की प्रशंसा छपी थी -
इस पाठ का मुख्य उद्देश्य क्या है?
(क) मूर्तिकला का महत्व बताना
(ख) रानी एलिज़ाबेथ का गुणगान करना
(ग) सरकारी तंत्र और औपनिवेशिक मानसिकता पर व्यंग्य करना
(घ) दिल्ली के सौंदर्यीकरण का वर्णन करना
उत्तरमाला (MCQs):
- (ख) कमलेश्वर
- (ग) व्यंग्य
- (ख) ब्रिटेन की महारानी एलिज़ाबेथ द्वितीय
- (ग) जॉर्ज पंचम
- (ग) मान-सम्मान व प्रतिष्ठा का
- (ग) किसी भारतीय नेता की मूर्ति की नाक लगाने का
- (ग) बड़ी
- (ग) किसी ज़िंदा इंसान की
- (ग) कोई खास खबर या उत्सव का समाचार नहीं था, अखबार लगभग खाली थे
- (ग) सरकारी तंत्र और औपनिवेशिक मानसिकता पर व्यंग्य करना
इन नोट्स और प्रश्नों का ध्यानपूर्वक अध्ययन करें। यह पाठ न केवल परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि हमें अपने समाज और व्यवस्था पर सोचने को भी विवश करता है। शुभकामनाएँ!