Class 10 Hindi Notes Chapter 2 (गुरदयाल सिंह: सपनों के-से दिन) – Sanchyan Bhag-II Book
नमस्ते बच्चो! आज हम संचयन भाग-२ के दूसरे पाठ 'सपनों के-से दिन', जिसके लेखक गुरदयाल सिंह जी हैं, का गहराई से अध्ययन करेंगे। यह पाठ परीक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, खासकर इसके पात्रों, तत्कालीन शिक्षा व्यवस्था और बाल मनोविज्ञान को समझने के लिए। चलिए, इसके विस्तृत नोट्स देखते हैं:
पाठ २: सपनों के-से दिन (लेखक: गुरदयाल सिंह)
परिचय:
यह पाठ लेखक गुरदयाल सिंह की आत्मकथा का एक अंश है। इसमें लेखक ने अपने बचपन के दिनों, विशेषकर स्कूली जीवन के अनुभवों का सजीव चित्रण किया है। यह कहानी उस समय की है जब बच्चों के लिए स्कूल जाना एक आनंददायक अनुभव कम और डर का कारण अधिक होता था। पाठ का शीर्षक 'सपनों के-से दिन' बचपन की उन भूली-बिसरी यादों की ओर संकेत करता है जो अब केवल सपनों की तरह लगती हैं - कुछ मधुर, कुछ कड़वी, पर अब अप्राप्य।
पाठ का सार:
- बचपन के खेल और शरारतें: लेखक अपने बचपन के दिनों को याद करते हैं जब वे और उनके साथी धूल-मिट्टी में खेलते थे। चोट लगने या कपड़े गंदे होने पर घर पर पिटाई भी होती थी, लेकिन खेल का आनंद सब पर भारी था।
- स्कूल का भय: लेखक और उनके साथियों के मन में स्कूल जाने को लेकर एक अनजाना भय रहता था। इसका मुख्य कारण कुछ अध्यापकों का कठोर व्यवहार और शारीरिक दंड था।
- पी.टी. मास्टर प्रीतमचंद: स्कूल के पी.टी. (शारीरिक शिक्षक) मास्टर प्रीतमचंद बहुत कठोर और अनुशासनप्रिय थे। वे छोटी सी गलती पर भी बच्चों की चमड़ी उधेड़ देते थे। उनकी खाकी वर्दी, बूट और ठिगने कद से बच्चे बहुत डरते थे। वे स्काउटिंग का अभ्यास करवाते समय बहुत सख्त रहते थे और बच्चों को परेड करवाते थे। गलती होने पर कठोर दंड देते थे। बच्चे उनसे इतना डरते थे कि उनकी कक्षा में हमेशा सहमे रहते थे।
- हेडमास्टर शर्मा जी: स्कूल के हेडमास्टर शर्मा जी का स्वभाव प्रीतमचंद के बिल्कुल विपरीत था। वे नरम दिल, शांत और स्नेही थे। वे बच्चों को सजा देने की बजाय समझाने और प्रोत्साहित करने में विश्वास रखते थे।
- प्रीतमचंद का निलंबन: एक बार पी.टी. मास्टर प्रीतमचंद ने चौथी कक्षा के बच्चों को फ़ारसी का शब्दरूप याद न करने पर बुरी तरह मुर्गा बनाकर पीटा। जब हेडमास्टर शर्मा जी को यह पता चला, तो वे बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने शिक्षा विभाग के डायरेक्टर को शिकायत लिखकर प्रीतमचंद को निलंबित (मुअत्तल) करवा दिया। इस घटना से पता चलता है कि हेडमास्टर साहब शारीरिक दंड के सख्त खिलाफ थे।
- प्रीतमचंद का दूसरा रूप: निलंबन के बाद लेखक ने प्रीतमचंद को उनके क्वार्टर के पास देखा जहाँ वे अपने पिंजरे में रखे तोतों को बादाम खिला रहे थे। यह उनका एक अलग, नरम पहलू था जो बच्चों ने पहले कभी नहीं देखा था।
- शिक्षा के प्रति अभिभावकों का दृष्टिकोण: लेखक बताते हैं कि उस समय कई अभिभावक पढ़ाई को ज्यादा महत्व नहीं देते थे। वे बच्चों को स्कूल भेजने की बजाय किसी काम-धंधे या दुकान पर लगाना बेहतर समझते थे। लेखक के परिवार में भी हेडमास्टर शर्मा जी के समझाने पर ही उन्हें स्कूल भेजा गया था।
- 'सपनों के-से दिन' का अर्थ: लेखक के लिए बचपन के वे दिन अब सपने जैसे हो गए हैं। उस समय की तकलीफें, मार-पिटाई का डर आज याद करने पर अजीब लगता है, लेकिन उस समय की मासूमियत, खेलकूद और बेफिक्री अब जीवन में वापस नहीं आ सकती। इसलिए वे दिन 'सपनों के-से' लगते हैं।
मुख्य बिंदु/परीक्षा उपयोगी तथ्य:
- लेखक: गुरदयाल सिंह
- विधा: आत्मकथात्मक लेख
- मुख्य पात्र: लेखक (बालक), पी.टी. मास्टर प्रीतमचंद, हेडमास्टर शर्मा जी, ओमा (लेखक का साथी)
- पी.टी. मास्टर प्रीतमचंद की विशेषताएँ: कठोर, अनुशासनप्रिय, डरावना व्यक्तित्व, खाकी वर्दी, बूट, स्काउटिंग करवाना, शारीरिक दंड देना (चमड़ी उधेड़ना, मुर्गा बनाना), तोते पालने का शौक।
- हेडमास्टर शर्मा जी की विशेषताएँ: नरम दिल, शांत स्वभाव, बच्चों से स्नेह, शारीरिक दंड के विरोधी, प्रोत्साहन में विश्वास।
- तत्कालीन शिक्षा व्यवस्था: भय और शारीरिक दंड पर आधारित अनुशासन का प्रचलन।
- सामाजिक पृष्ठभूमि: बच्चों की पढ़ाई पर कम ध्यान, काम-धंधे को अधिक महत्व।
- पाठ का संदेश: बचपन की स्मृतियाँ अमिट होती हैं। शिक्षा में भय की जगह प्रेम और प्रोत्साहन का महत्व अधिक है। कठोर अनुशासन के पीछे मानवीय संवेदनाएं भी छिपी हो सकती हैं।
भाषा-शैली:
लेखक ने सरल, सहज और प्रवाहपूर्ण भाषा का प्रयोग किया है। आंचलिक शब्दों का प्रयोग कहानी को सजीव बनाता है। वर्णन शैली अत्यंत प्रभावी है, जिससे पाठक उस समय के माहौल और पात्रों को अपने सामने महसूस कर पाता है।
महत्वपूर्ण प्रश्न क्षेत्र:
- पी.टी. मास्टर प्रीतमचंद और हेडमास्टर शर्मा जी के चरित्र की तुलना।
- तत्कालीन शिक्षा पद्धति पर टिप्पणी।
- 'सपनों के-से दिन' शीर्षक की सार्थकता।
- बच्चों के मन में स्कूल के प्रति भय के कारण।
- प्रीतमचंद के निलंबन की घटना का वर्णन।
- पाठ में वर्णित सामाजिक दृष्टिकोण।
अभ्यास हेतु बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs):
प्रश्न 1: 'सपनों के-से दिन' पाठ के लेखक कौन हैं?
(क) कमलेश्वर
(ख) गुरदयाल सिंह
(ग) मिथिलेश्वर
(घ) प्रेमचंद
प्रश्न 2: बच्चों को स्कूल में सबसे अधिक भय किस अध्यापक से लगता था?
(क) हेडमास्टर शर्मा जी से
(ख) गणित के अध्यापक से
(ग) पी.टी. मास्टर प्रीतमचंद से
(घ) हिंदी के अध्यापक से
प्रश्न 3: पी.टी. मास्टर प्रीतमचंद का व्यक्तित्व कैसा था?
(क) नरम और स्नेही
(ख) कठोर और अनुशासनप्रिय
(ग) लापरवाह और मजाकिया
(घ) शांत और गंभीर
प्रश्न 4: हेडमास्टर शर्मा जी का स्वभाव कैसा था?
(क) अत्यंत कठोर
(ख) चिड़चिड़ा
(ग) नरम और दयालु
(घ) उदासीन
प्रश्न 5: पी.टी. मास्टर प्रीतमचंद को क्यों निलंबित किया गया था?
(क) स्कूल देर से आने के कारण
(ख) हेडमास्टर से झगड़ा करने के कारण
(ग) चौथी कक्षा के बच्चों को बुरी तरह पीटने के कारण
(घ) अपना काम ठीक से न करने के कारण
प्रश्न 6: लेखक और उसके साथी बचपन में कहाँ खेलना पसंद करते थे?
(क) स्कूल के मैदान में
(ख) बाग-बगीचे में
(ग) धूल-मिट्टी में
(घ) नदी किनारे
प्रश्न 7: 'सपनों के-से दिन' वाक्यांश से लेखक का क्या तात्पर्य है?
(क) रात में देखे गए सुंदर सपने
(ख) भविष्य की सुनहरी कल्पनाएँ
(ग) बचपन के वे दिन जो अब लौटकर नहीं आ सकते और सपने जैसे लगते हैं
(घ) स्कूल के सबसे अच्छे दिन
प्रश्न 8: पाठ के अनुसार, उस समय अधिकतर अभिभावक बच्चों की पढ़ाई के बारे में क्या सोचते थे?
(क) पढ़ाई बहुत ज़रूरी है
(ख) पढ़ाई से ज़्यादा ज़रूरी काम-धंधा सीखना है
(ग) बच्चों को ऊँची शिक्षा दिलानी चाहिए
(घ) बच्चों को स्कूल भेजना समय की बर्बादी है
प्रश्न 9: पी.टी. मास्टर प्रीतमचंद अपने खाली समय में क्या करते हुए पाए गए?
(क) किताबें पढ़ते हुए
(ख) बागवानी करते हुए
(ग) पिंजरे में रखे तोतों को बादाम खिलाते हुए
(घ) संगीत सुनते हुए
प्रश्न 10: इस पाठ से बाल मनोविज्ञान की किस बात का पता चलता है?
(क) बच्चे शरारती होते हैं
(ख) बच्चे खेलने के शौकीन होते हैं
(ग) बच्चों पर शारीरिक दंड और भय का गहरा नकारात्मक प्रभाव पड़ता है
(घ) बच्चे पढ़ाई से जी चुराते हैं
उत्तरमाला:
- (ख) गुरदयाल सिंह
- (ग) पी.टी. मास्टर प्रीतमचंद से
- (ख) कठोर और अनुशासनप्रिय
- (ग) नरम और दयालु
- (ग) चौथी कक्षा के बच्चों को बुरी तरह पीटने के कारण
- (ग) धूल-मिट्टी में
- (ग) बचपन के वे दिन जो अब लौटकर नहीं आ सकते और सपने जैसे लगते हैं
- (ख) पढ़ाई से ज़्यादा ज़रूरी काम-धंधा सीखना है
- (ग) पिंजरे में रखे तोतों को बादाम खिलाते हुए
- (ग) बच्चों पर शारीरिक दंड और भय का गहरा नकारात्मक प्रभाव पड़ता है
इन नोट्स और प्रश्नों का अच्छे से अध्ययन करें। यह पाठ आपको उस समय की परिस्थितियों और बाल मन को समझने में मदद करेगा। कोई शंका हो तो पूछ सकते हैं।