Class 10 Hindi Notes Chapter 2 (तुलसीदास: राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद) – Kshitij-II Book

नमस्ते विद्यार्थियों!
आज हम कक्षा 10 की हिंदी पाठ्यपुस्तक 'क्षितिज-भाग 2' के दूसरे अध्याय 'तुलसीदास: राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद' का गहन अध्ययन करेंगे। यह अध्याय प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है, अतः हम इसके हर पहलू को विस्तार से समझेंगे।
अध्याय 2: तुलसीदास: राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद
कवि परिचय:
- कवि: गोस्वामी तुलसीदास (भक्तिकाल की सगुण काव्यधारा के रामभक्ति शाखा के सर्वप्रमुख कवि)
- जन्म: सन् 1532 (उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले के राजापुर गाँव में - कुछ विद्वान सोरों, जिला एटा भी मानते हैं)
- निधन: सन् 1623 (काशी में)
- प्रमुख रचनाएँ: रामचरितमानस (महाकाव्य), विनयपत्रिका, कवितावली, गीतावली, दोहावली, कृष्णगीतावली आदि।
- भाषा: अवधी और ब्रजभाषा दोनों पर समान अधिकार। रामचरितमानस अवधी में है।
पाठ का संदर्भ:
यह अंश तुलसीदास जी के प्रसिद्ध महाकाव्य 'रामचरितमानस' के 'बालकांड' से लिया गया है। यह प्रसंग सीता स्वयंवर के समय का है जब श्री राम द्वारा शिवजी के धनुष को भंग किए जाने के बाद मुनि परशुराम अत्यंत क्रोधित होकर सभा में आते हैं। शिवधनुष को खंडित देखकर वे आपे से बाहर हो जाते हैं।
पाठ का विस्तृत सार एवं व्याख्या:
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परशुराम का क्रोध और राम की विनम्रता:
- शिव धनुष टूटने की गर्जना सुनकर मुनि परशुराम क्रोधित होकर सभा में आते हैं और पूछते हैं कि इस धनुष को किसने तोड़ा है? ("नाथ संभुधनु भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा॥")
- श्री राम अत्यंत विनम्रता से उत्तर देते हैं कि हे नाथ! शिवजी के धनुष को तोड़ने वाला आपका ही कोई एक दास होगा। क्या आज्ञा है, मुझसे क्यों नहीं कहते? ("आयसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही॥")
- राम के विनम्र वचन सुनकर भी परशुराम का क्रोध शांत नहीं होता। वे कहते हैं कि सेवक वह होता है जो सेवा का कार्य करे, शत्रुता का कार्य करने वाले से तो लड़ाई ही करनी चाहिए। जिसने शिव धनुष तोड़ा है, वह सहस्रबाहु के समान मेरा शत्रु है और उसे इस समाज से अलग हो जाना चाहिए, अन्यथा सभी राजा मारे जाएँगे। ("सेवक सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई॥ ... सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा॥")
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लक्ष्मण का व्यंग्य और परशुराम का बढ़ता क्रोध:
- परशुराम के क्रोधपूर्ण वचन सुनकर लक्ष्मण मुस्कुराते हुए व्यंग्य करते हैं कि हे मुनिवर! हमने बचपन में ऐसे बहुत से छोटे-छोटे धनुष (धनुही) तोड़े हैं, तब तो आपने कभी क्रोध नहीं किया। इस धनुष पर इतनी ममता किस कारण से है? ("लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना॥ का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें॥ ... बहु धनुही तोरी लरिकाईं। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं॥ एहि धनु पर ममता केहि हेतू।")
- लक्ष्मण के व्यंग्य से परशुराम और भड़क जाते हैं। वे कहते हैं कि अरे राजपुत्र! काल के वश में होने से तुझे बोलने में होश नहीं है। सारे संसार में विख्यात शिवजी के इस धनुष की तुलना तू बचपन में तोड़ी गई धनुहियों से कर रहा है? ("रे नृप बालक काल बस बोलत तोहि न सँभार। धनुही सम तिपुरारि धनु बिदित सकल संसार॥")
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लक्ष्मण का तर्क और परशुराम का आत्मप्रशंसा:
- लक्ष्मण तर्क देते हैं कि हमारे लिए तो सब धनुष एक समान हैं। इस पुराने धनुष को तोड़ने में क्या लाभ या हानि? श्री राम ने तो इसे नया समझकर देखा ही था, पर यह छूते ही टूट गया। इसमें उनका कोई दोष नहीं है। आप अकारण ही क्रोध कर रहे हैं। ("छुअत टूट रघुपतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू॥")
- परशुराम अपने फरसे की ओर देखकर कहते हैं कि अरे दुष्ट! तूने मेरे स्वभाव के बारे में नहीं सुना है। मैं तुझे बालक समझकर नहीं मार रहा हूँ। अरे मूर्ख, क्या तू मुझे निरा मुनि ही समझता है? मैं बाल ब्रह्मचारी और अत्यंत क्रोधी हूँ। क्षत्रिय कुल का शत्रु तो विश्वभर में विख्यात हूँ। मैंने अपनी भुजाओं के बल से पृथ्वी को राजाओं से रहित कर दिया और बहुत बार उसे ब्राह्मणों को दे डाला। हे राजकुमार! सहस्रबाहु की भुजाओं को काटने वाले मेरे इस फरसे को देख। ("बालक बोलि बधउँ नहिं तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही॥ बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित छत्रियकुल द्रोही॥ भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही॥ सहसबाहु भुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा॥")
- वे आगे कहते हैं कि अरे राजा के बालक! तू अपने माता-पिता को सोच के वश में न कर (अर्थात् मेरे हाथों मरकर उन्हें शोक मत दे)। मेरा फरसा बड़ा भयानक है, यह गर्भ के बच्चों का भी नाश करने वाला है। ("मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर। गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर॥")
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लक्ष्मण का निर्भीक उत्तर और विश्वामित्र का हस्तक्षेप:
- लक्ष्मण हँसकर कोमल वाणी में कहते हैं कि अहो, मुनीश्वर तो अपने को बड़ा भारी योद्धा समझते हैं! बार-बार मुझे कुल्हाड़ी दिखाते हैं। ऐसा लगता है जैसे फूँक से पहाड़ उड़ाना चाहते हों। ("बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी॥ पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारू। चहत उड़ावन फूँकि पहारू॥")
- लक्ष्मण कहते हैं कि यहाँ कोई कुम्हड़े की बतिया (बहुत कमजोर/काशीफल का छोटा फल) नहीं है, जो तर्जनी उँगली दिखाने से ही मर जाए। मैंने कुठार और धनुष-बाण देखकर ही कुछ अभिमान सहित कहा था। आपको भृगुवंशी समझकर और यज्ञोपवीत देखकर तो जो कुछ आप कह रहे हैं, उसे क्रोध रोककर सह रहा हूँ। ("इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं॥ देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना॥ भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहउँ रिस रोकी॥")
- वे कहते हैं कि देवता, ब्राह्मण, भगवान के भक्त और गाय- इन पर हमारे कुल में वीरता नहीं दिखाई जाती, क्योंकि इन्हें मारने से पाप लगता है और इनसे हार जाने पर अपयश होता है। इसलिए आप मारें भी तो आपके पैर ही पड़ना चाहिए। आपका एक-एक वचन ही करोड़ों वज्रों के समान है, धनुष-बाण और कुठार तो आप व्यर्थ ही धारण करते हैं। ("सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई॥ बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहूँ पा परिअ तुम्हारें॥ कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। ब्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा॥")
- यह सुनकर परशुराम और क्रोधित हो जाते हैं और विश्वामित्र से कहते हैं कि यह बालक मंदबुद्धि और कुटिल है, काल के वश होकर अपने कुल का घातक बन रहा है। इसे रोक लीजिए। ("कौसिक सुनहु मंद यहु बालकु। कुटिल कालबस निज कुल घालकु॥")
- विश्वामित्र मन ही मन हँसते हैं और सोचते हैं कि परशुराम जी को हरा-ही-हरा सूझ रहा है (अर्थात् वे राम-लक्ष्मण को साधारण क्षत्रिय समझ रहे हैं)। वे यह नहीं जानते कि ये गन्ने के रस से बनी खाँड़ नहीं हैं, बल्कि लोहे की बनी तेज तलवार हैं (अर्थात् ये सामान्य वीर नहीं, साक्षात् नारायण के अवतार हैं)। ("गाधिसूनु कह हृदयँ हसि मुनिहि हरिअरइ सूझ। अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ॥")
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राम का शांत प्रयास:
- लक्ष्मण के उत्तेजित करने वाले उत्तरों से और परशुराम के बढ़ते क्रोध से स्थिति बिगड़ते देख श्री राम आँखों के संकेत से लक्ष्मण को रोकते हैं।
- अंत में, जब परशुराम का क्रोध चरम पर पहुँच जाता है, तब श्री राम जल के समान शांत करने वाले वचन बोलते हैं, जिससे परशुराम का क्रोध कुछ शांत होता है (हालाँकि यह अंश यहाँ समाप्त हो जाता है)। ("लखन उतर आहुति सरिस भृगुबर कोपु कृसानु। बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु॥")
प्रमुख बिंदु (परीक्षा की दृष्टि से):
- भाषा: अवधी (तत्सम शब्दों का प्रयोग)
- छंद: दोहा और चौपाई
- रस: रौद्र रस (परशुराम के कथन), वीर रस (लक्ष्मण और परशुराम दोनों के कथन), हास्य रस (लक्ष्मण के व्यंग्य में), शांत रस (राम के कथन में)
- अलंकार: अनुप्रास, उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, अतिशयोक्ति, वक्रोक्ति (व्यंग्य) आदि का सुंदर प्रयोग।
- उदाहरण: 'कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा' (उपमा), 'भृगुबर कोपु कृसानु' (रूपक), 'चहत उड़ावन फूँकि पहारू' (अतिशयोक्ति), 'बालक बोलि बधउँ नहिं तोही' (अनुप्रास)।
- पात्रों का चरित्र-चित्रण:
- राम: विनम्र, शांत, मर्यादित, वीर।
- लक्ष्मण: उग्र, वाक्पटु, व्यंग्यात्मक, वीर, तर्कशील।
- परशुराम: अत्यंत क्रोधी, अहंकारी, अपनी शक्ति पर गर्व करने वाले, वीर, ब्राह्मणत्व का अभिमान।
- विश्वामित्र: शांत, मध्यस्थ, ज्ञानी।
- मूल भाव: क्रोध पर विनम्रता की विजय, वीरता का प्रदर्शन, संवाद की कला, मर्यादा का महत्व।
अतिरिक्त महत्वपूर्ण तथ्य:
- परशुराम भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं।
- सहस्रबाहु एक राजा था जिसकी हजार भुजाएँ थीं, जिसे परशुराम ने अपने पिता जमदग्नि की गाय चुराने और पिता की हत्या का बदला लेने के लिए मारा था।
- शिव धनुष का नाम 'पिनाक' था।
यह अध्याय न केवल भाषा और साहित्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमें चरित्रों के माध्यम से मानवीय स्वभावों और मूल्यों को भी सिखाता है।
अभ्यास हेतु बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs):
प्रश्न 1: 'राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद' रामचरितमानस के किस कांड से लिया गया है?
(क) अयोध्या कांड
(ख) अरण्य कांड
(ग) बाल कांड
(घ) सुंदर कांड
उत्तर: (ग) बाल कांड
प्रश्न 2: सीता स्वयंवर में किसके द्वारा शिव धनुष भंग किया गया था?
(क) लक्ष्मण
(ख) परशुराम
(ग) श्री राम
(घ) विश्वामित्र
उत्तर: (ग) श्री राम
प्रश्न 3: परशुराम ने किसके समान अपने शत्रु को बताया जिसने शिव धनुष तोड़ा था?
(क) रावण
(ख) सहस्रबाहु
(ग) इंद्र
(घ) जनक
उत्तर: (ख) सहस्रबाहु
प्रश्न 4: लक्ष्मण ने परशुराम के किस स्वभाव पर व्यंग्य किया?
(क) दानशीलता
(ख) वीरता
(ग) क्रोध
(घ) शांत स्वभाव
उत्तर: (ग) क्रोध
प्रश्न 5: "इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं" - इस पंक्ति में 'कुम्हड़बतिया' का क्या अर्थ है?
(क) काशीफल का फूल
(ख) बहुत वीर व्यक्ति
(ग) बहुत कमजोर या निर्बल व्यक्ति
(घ) कुम्हार का बर्तन
उत्तर: (ग) बहुत कमजोर या निर्बल व्यक्ति
प्रश्न 6: परशुराम स्वयं को किस कुल का द्रोही बताते हैं?
(क) ब्राह्मण कुल
(ख) वैश्य कुल
(ग) क्षत्रिय कुल
(घ) शूद्र कुल
उत्तर: (ग) क्षत्रिय कुल
प्रश्न 7: लक्ष्मण के अनुसार उनके कुल में किन पर वीरता नहीं दिखाई जाती?
(क) राजा, मंत्री, सेनापति, मित्र
(ख) सुर, महिसुर, हरिजन, गाय
(ग) स्त्री, बालक, वृद्ध, रोगी
(घ) शत्रु, मित्र, पड़ोसी, रिश्तेदार
उत्तर: (ख) सुर, महिसुर, हरिजन, गाय
प्रश्न 8: "कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा" - इस पंक्ति में कौन सा अलंकार है?
(क) रूपक
(ख) यमक
(ग) श्लेष
(घ) उपमा
उत्तर: (घ) उपमा
प्रश्न 9: परशुराम के क्रोध को शांत करने के लिए जल के समान शीतल वचन किसने कहे?
(क) लक्ष्मण ने
(ख) विश्वामित्र ने
(ग) श्री राम ने
(घ) जनक ने
उत्तर: (ग) श्री राम ने
प्रश्न 10: 'राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद' की भाषा क्या है?
(क) ब्रजभाषा
(ख) खड़ी बोली
(ग) अवधी
(घ) मैथिली
उत्तर: (ग) अवधी
इन नोट्स और प्रश्नों का अच्छे से अध्ययन करें। यदि कोई शंका हो तो अवश्य पूछें। आपकी परीक्षा के लिए शुभकामनाएँ!