Class 10 Hindi Notes Chapter 4 (जयशंकर प्रसाद: आत्मकथ्य) – Kshitij-II Book

नमस्ते विद्यार्थियो!
आज हम कक्षा 10 की 'क्षितिज-भाग 2' पुस्तक के अध्याय 4, 'आत्मकथ्य' का अध्ययन करेंगे, जिसके रचयिता छायावाद के प्रमुख स्तंभ जयशंकर प्रसाद जी हैं। यह कविता सरकारी परीक्षाओं की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें कवि के व्यक्तिगत भावों के साथ-साथ छायावादी काव्य की विशेषताएँ भी झलकती हैं। आइए, इसके विस्तृत नोट्स और कुछ महत्वपूर्ण बहुविकल्पीय प्रश्नों (MCQs) पर ध्यान दें।
अध्याय 4: जयशंकर प्रसाद - आत्मकथ्य
कवि परिचय: जयशंकर प्रसाद (1889-1937)
- जन्म: वाराणसी, उत्तर प्रदेश।
- प्रमुख रचनाएँ:
- काव्य: कामायनी (महाकाव्य), आँसू, लहर, झरना।
- नाटक: स्कंदगुप्त, चंद्रगुप्त, ध्रुवस्वामिनी, अजातशत्रु।
- उपन्यास: कंकाल, तितली, इरावती (अपूर्ण)।
- कहानी संग्रह: छाया, प्रतिध्वनि, आकाशदीप, आँधी, इंद्रजाल।
- साहित्यिक विशेषताएँ:
- छायावाद के प्रवर्तक कवियों में से एक (ब्रह्मा)।
- रचनाओं में इतिहास, दर्शन, प्रेम, सौंदर्य और मानवीय संवेदनाओं का गहन चित्रण।
- भाषा संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली, जिसमें लाक्षणिकता और प्रतीकात्मकता प्रमुख है।
- प्रकृति चित्रण में मानवीकरण।
'आत्मकथ्य' कविता का संदर्भ:
- यह कविता तब लिखी गई जब मुंशी प्रेमचंद के संपादन में 'हंस' पत्रिका का 'आत्मकथा विशेषांक' निकल रहा था।
- प्रसाद जी के मित्रों ने उनसे आत्मकथा लिखने का आग्रह किया।
- प्रसाद जी अपनी व्यक्तिगत अनुभूतियों को सार्वजनिक नहीं करना चाहते थे, इसी असहमति के तर्क से 'आत्मकथ्य' कविता का जन्म हुआ। यह कविता पहली बार 1932 में 'हंस' के आत्मकथा विशेषांक में प्रकाशित हुई थी।
कविता का विस्तृत सार/भावार्थ:
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आत्मकथा लिखने में संकोच:
- कवि कहते हैं कि उनका मन रूपी भँवरा न जाने अपनी कौन सी कहानी गुनगुना कर कह जाता है। जीवन रूपी वृक्ष की पत्तियाँ मुरझाकर गिर रही हैं (जीवन नश्वर है और अवसान की ओर है)।
- इस गंभीर और अनंत नीले आकाश (विशाल साहित्य जगत) में न जाने कितने लोगों ने अपने जीवन का इतिहास (आत्मकथाएँ) लिखा है। उन्हें पढ़कर ऐसा लगता है मानो वे स्वयं का उपहास उड़ा रहे हों।
- पंक्तियाँ: "मधुप गुनगुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी, मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी। इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्य जीवन-इतिहास; यह लो, करते ही रहते हैं अपना व्यंग्य-मलिन उपहास।"
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साधारण जीवन का यथार्थ:
- कवि मित्रों से कहते हैं कि यदि मैं अपनी कहानी कहूँगा, तो तुम भी कहोगे कि मैं अपनी दुर्बलताओं का बखान कर रहा हूँ।
- कवि का जीवन अत्यंत सरल और साधारण रहा है। उसमें ऐसा कुछ महान नहीं है जिसे वे बड़ी कथाओं के रूप में प्रस्तुत करें। वे मानते हैं कि उनका जीवन अभावों और खालीपन से भरा है ('यह विडंबना! अरी सरलते तेरी हँसी उड़ाऊँ मैं? भूलें अपनी या प्रवंचना औरों की दिखलाऊँ मैं?')।
- वे अपने व्यक्तिगत दुखद अनुभवों, अपनी भूलों और दूसरों द्वारा दिए गए धोखों को उजागर नहीं करना चाहते।
- पंक्तियाँ: "तब भी कहते हो- कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती। तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे- यह गागर रीति। ...छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ? क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ?"
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मधुर स्मृतियों का उल्लेख और वेदना:
- कवि अपने जीवन के कुछ मधुर क्षणों, विशेषकर अपनी प्रियतमा के साथ बिताए पलों को याद करते हैं, जो अब केवल स्मृति बनकर रह गए हैं। वे चाँदनी रातों में अपनी प्रेयसी के साथ बिताए खिलखिलाते पलों को याद करते हैं।
- वे कहते हैं कि उन सुखद क्षणों का स्वप्न देखकर वे जाग गए और जब आलिंगन करने बढ़े तो वह सुख उनसे दूर भाग गया ('मिलन का वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया। आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।')।
- उनकी प्रेयसी के गालों की लाली उषाकाल की लाली से भी सुंदर थी, लेकिन अब वही स्मृति उनके थके हुए जीवन रूपी यात्री का सहारा (पाथेय) मात्र है।
- पंक्तियाँ: "जिसके अरुण-कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में। अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में। उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की।"
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निजता बनाए रखने की इच्छा:
- कवि अपनी व्यक्तिगत अनुभूतियों और दुखों को अपने तक ही सीमित रखना चाहते हैं। वे अपनी कहानी की 'कथा की सिलाई उधेड़कर' अपनी अंतरात्मा के वस्त्रों को (यानी निजी बातों को) सार्वजनिक नहीं करना चाहते।
- उन्हें लगता है कि उनकी आत्मकथा में लोगों को कोई प्रेरणा या सुख नहीं मिलेगा, बल्कि वे उनके जीवन की खाली 'गागर' (घड़ा) को ही देखेंगे।
- वे विनम्रतापूर्वक कहते हैं कि अभी उनकी पीड़ाएँ शांत हैं, उन्हें कुरेदना ठीक नहीं। वे दूसरों की कथाएँ सुनने में ही भलाई समझते हैं और स्वयं मौन रहना चाहते हैं।
- पंक्तियाँ: "सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की? ...मेरी मौन व्यथा। अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा।"
कविता के मुख्य बिंदु/थीम:
- विनम्रता: कवि स्वयं को महान उपलब्धियों वाला नहीं मानते।
- निजता का सम्मान: व्यक्तिगत दुखों और स्मृतियों को सार्वजनिक न करने की इच्छा।
- जीवन का यथार्थ: जीवन में सुख-दुख, आशा-निराशा दोनों होते हैं।
- वेदना की अभिव्यक्ति: अतीत के सुखद क्षणों की स्मृति भी वर्तमान में पीड़ा दे सकती है।
- छायावादी तत्व: प्रकृति चित्रण (अनंत-नीलिमा, उषा), वैयक्तिकता, वेदना और निराशा का स्वर, लाक्षणिक भाषा।
काव्य-सौंदर्य:
- भाषा: तत्सम शब्दों से युक्त खड़ी बोली हिंदी।
- शैली: छायावादी, प्रतीकात्मक और गीतात्मक।
- अलंकार:
- मानवीकरण: 'मधुप गुनगुना कर कह जाता', 'अनुरागिनी उषा लेती थी'।
- रूपक: 'जीवन-गागर', 'स्मृति पाथेय'।
- अनुप्रास: 'गुनगुना कर कह', 'अरुण-कपोलों', 'अपनी बीती'।
- प्रश्न अलंकार: 'छोटी से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ?', 'देखोगे क्यों मेरी कंथा की?'
- पुनरुक्ति प्रकाश: 'आते-आते'।
- रस: करुण रस की प्रधानता, साथ में श्रृंगार (स्मृतियों में) का पुट।
- गुण: माधुर्य गुण।
- बिंब: दृश्य बिंब (मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ, अरुण कपोल)।
परीक्षा की दृष्टि से महत्व:
- यह कविता जयशंकर प्रसाद के जीवन दर्शन और छायावादी काव्य की विशेषताओं को समझने में सहायक है।
- कविता की पंक्तियों की व्याख्या, कवि का परिचय, काव्य-सौंदर्य और कविता के मूल भाव से संबंधित प्रश्न पूछे जा सकते हैं।
अभ्यास हेतु बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs):
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'आत्मकथ्य' कविता के रचयिता कौन हैं?
(क) सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'
(ख) सुमित्रानंदन पंत
(ग) जयशंकर प्रसाद
(घ) महादेवी वर्मा
उत्तर: (ग) जयशंकर प्रसाद -
'आत्मकथ्य' कविता किस पत्रिका में पहली बार प्रकाशित हुई थी?
(क) सरस्वती
(ख) चाँद
(ग) माधुरी
(घ) हंस
उत्तर: (घ) हंस -
कवि का 'मधुप' (भँवरा) क्या गुनगुना कर कह जाता है?
(क) फूलों का रस
(ख) अपनी जीवन कहानी
(ग) दूसरों की प्रशंसा
(घ) प्रकृति का सौंदर्य
उत्तर: (ख) अपनी जीवन कहानी -
'मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ' किसका प्रतीक हैं?
(क) पतझड़ का
(ख) पेड़-पौधों का
(ग) जीवन की नश्वरता और निराशाओं का
(घ) वर्षा ऋतु का
उत्तर: (ग) जीवन की नश्वरता और निराशाओं का -
कवि अपनी आत्मकथा को क्या कहने से बच रहे हैं?
(क) अपनी सफलताएँ
(ख) अपनी दुर्बलताएँ और निजी अनुभव
(ग) दूसरों की कहानियाँ
(घ) देश की स्थिति
उत्तर: (ख) अपनी दुर्बलताएँ और निजी अनुभव -
'देखोगे- यह गागर रीति' - यहाँ 'गागर रीति' का क्या अर्थ है?
(क) भरा हुआ घड़ा
(ख) खाली घड़ा (सुख और उपलब्धियों से रहित जीवन)
(ग) टूटा हुआ घड़ा
(घ) सुंदर घड़ा
उत्तर: (ख) खाली घड़ा (सुख और उपलब्धियों से रहित जीवन) -
कवि ने किसके कपोलों (गालों) की लालिमा की तुलना उषा की लालिमा से की है?
(क) अपनी माँ के
(ख) अपनी पुत्री के
(ग) अपनी प्रेयसी/पत्नी के
(घ) प्रकृति के
उत्तर: (ग) अपनी प्रेयसी/पत्नी के -
कवि के थके हुए जीवन रूपी पथिक का पाथेय (सहारा) क्या है?
(क) धन-दौलत
(ख) मित्रों का साथ
(ग) प्रिय की मधुर स्मृतियाँ
(घ) ईश्वर का नाम
उत्तर: (ग) प्रिय की मधुर स्मृतियाँ -
'सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की?' - इस पंक्ति में कवि क्या उजागर नहीं करना चाहते?
(क) अपनी गरीबी
(ख) अपनी बीमारी
(ग) अपने जीवन के व्यक्तिगत, अंतर्मन के दुखों को
(घ) अपनी साहित्यिक रचनाओं को
उत्तर: (ग) अपने जीवन के व्यक्तिगत, अंतर्मन के दुखों को -
कवि अंत में क्या निर्णय लेते हैं?
(क) अपनी आत्मकथा लिखने का
(ख) दूसरों की आत्मकथाएँ सुनने और मौन रहने का
(ग) यात्रा पर जाने का
(घ) कविता लिखना छोड़ देने का
उत्तर: (ख) दूसरों की आत्मकथाएँ सुनने और मौन रहने का
इन नोट्स और प्रश्नों का अच्छे से अध्ययन करें। यह आपकी परीक्षा की तैयारी में निश्चित रूप से सहायक सिद्ध होगा। कोई शंका हो तो अवश्य पूछें।