Class 10 Hindi Notes Chapter 4 (मैथिलीशरण गुप्त: मनुष्यता) – Sparsh Book

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चलिए, आज हम कक्षा १० की 'स्पर्श' पाठ्यपुस्तक के चौथे पाठ, राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी द्वारा रचित 'मनुष्यता' कविता का गहन अध्ययन करेंगे। यह कविता न केवल परीक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि जीवन के मूल्यों को समझने के लिए भी अत्यंत प्रासंगिक है। सरकारी परीक्षाओं में अक्सर कवि, कविता के मूल भाव, विशिष्ट पंक्तियों के अर्थ और उदाहरणों से प्रश्न पूछे जाते हैं।

पाठ ४: मनुष्यता (कवि: मैथिलीशरण गुप्त)

कवि परिचय:

  • मैथिलीशरण गुप्त (1886-1964): हिंदी साहित्य के इतिहास में 'राष्ट्रकवि' के रूप में विख्यात। द्विवेदी युग के प्रमुख कवि।
  • जन्म: चिरगाँव, झाँसी (उत्तर प्रदेश)।
  • प्रमुख रचनाएँ: साकेत, यशोधरा, भारत-भारती, पंचवटी, जयद्रथ वध आदि। 'भारत-भारती' ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान राष्ट्रीय चेतना जगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • भाषा-शैली: खड़ी बोली हिंदी को काव्य भाषा के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण योगदान। भाषा संस्कृतनिष्ठ, परिमार्जित और प्रवाहपूर्ण है। प्रबंध काव्य और खंडकाव्य दोनों में सिद्धहस्त।

कविता का सार/मूल भाव:

'मनुष्यता' कविता में कवि मैथिलीशरण गुप्त मनुष्य को सच्चे अर्थों में मनुष्य बनने का संदेश देते हैं। उनके अनुसार, केवल अपने लिए जीना पशु प्रवृत्ति है। सच्चा मनुष्य वही है जो दूसरों के लिए जीता है, परोपकार करता है, उदारता दिखाता है और विश्व बंधुत्व की भावना रखता है। कवि मृत्यु के भय से मुक्त होकर ऐसे कर्म करने की प्रेरणा देते हैं जिससे मृत्यु के बाद भी लोग उन्हें याद करें (सुमृत्यु)। कविता में दधीचि, कर्ण, रंतिदेव, उशीनर जैसे महानुभावों के उदाहरणों द्वारा त्याग और बलिदान की महत्ता बताई गई है। सहानुभूति, उदारता, एकता और अभिमान-रहित जीवन ही मनुष्यता के वास्तविक लक्षण हैं।

पद-वार विस्तृत व्याख्या (परीक्षा उपयोगी बिंदु):

  1. "विचार लो कि मर्त्य हो न मृत्यु से डरो कभी,..."

    • भावार्थ: कवि कहते हैं कि मनुष्य को यह समझ लेना चाहिए कि वह नश्वर है, उसकी मृत्यु निश्चित है। इसलिए मृत्यु से डरना व्यर्थ है। उसे ऐसे कर्म करने चाहिए कि उसकी मृत्यु 'सुमृत्यु' बन जाए, अर्थात् मरने के बाद भी लोग उसे उसके अच्छे कर्मों के लिए याद करें।
    • सुमृत्यु: ऐसी मृत्यु जो अच्छे कर्मों के कारण गौरवशाली हो, जिसे लोग याद रखें।
    • पशु प्रवृत्ति: केवल अपने लिए जीना।
    • सच्चा मनुष्य: जो दूसरों के हित के लिए जीता और मरता है। ("वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।")
  2. "उसी उदार की कथा सरस्वती बखानती,..."

    • भावार्थ: जो व्यक्ति उदार होता है, परोपकारी होता है, उसी का गुणगान पुस्तकों (सरस्वती) में होता है, उसी को यह धरती भी पूजती है और सारा संसार उसकी कीर्ति फैलाता है। ऐसे उदार व्यक्ति को पूरी सृष्टि पूजनीय मानती है।
    • उदार: दानी, दूसरों का भला सोचने वाला।
    • अखंड आत्म भाव: एकता की भावना, पूरी मानवता को अपना समझने का भाव।
  3. "क्षुधार्त रंतिदेव ने दिया करस्थ थाल भी,..."

    • भावार्थ: इस पद में कवि ने पौराणिक कथाओं से महान दानियों और त्यागियों के उदाहरण दिए हैं:
      • रंतिदेव: स्वयं भूख से व्याकुल होते हुए भी अपने हाथ की भोजन की थाली भूखे व्यक्ति को दे दी।
      • दधीचि: देवताओं की रक्षा के लिए अपनी अस्थियाँ दान कर दीं, जिससे वज्र बना।
      • उशीनर (शिबि): कबूतर की रक्षा के लिए अपने शरीर का मांस काटकर बाज को दे दिया।
      • कर्ण: अपना स्वर्ण कवच-कुंडल दान कर दिया।
    • संदेश: नश्वर शरीर के लिए मोह त्यागकर परोपकार और त्याग का महत्व समझना चाहिए। आत्मा अमर है।
  4. "सहानुभूति चाहिए, महाविभूति है यही;..."

    • भावार्थ: कवि के अनुसार, मनुष्य के मन में दूसरों के प्रति सहानुभूति (दया, करुणा) होनी चाहिए। यही सबसे बड़ी पूंजी (महाविभूति) है। ईश्वर भी ऐसे दयालु लोगों के साथ होते हैं। भगवान बुद्ध ने भी करुणावश तत्कालीन सामाजिक मान्यताओं का विरोध किया था। विनम्रता और करुणा ही पूजनीय है।
    • महाविभूति: सबसे बड़ी दौलत, महान ऐश्वर्य।
    • वशीकृता: वश में करने वाली। सहानुभूति संसार को वश में कर सकती है।
    • विरुद्धवाद बुद्ध का: बुद्ध ने करुणा के कारण ही पारंपरिक मान्यताओं का विरोध किया।
  5. "रहो न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में,..."

    • भावार्थ: मनुष्य को कभी धन-दौलत या परिवार के घमंड में अंधा नहीं होना चाहिए। कोई भी व्यक्ति यहाँ अनाथ नहीं है, क्योंकि सबके सिर पर उस परमपिता परमेश्वर (त्रिलोकनाथ) का हाथ है। असली भाग्यहीन वह है जो स्वयं को अधीर और अकेला समझता है।
    • मदांध: घमंड में अंधा।
    • वित्त: धन-दौलत।
    • सनाथ: जिसका कोई स्वामी या रक्षक हो। यहाँ ईश्वर के संदर्भ में।
  6. "अनंत अंतरिक्ष में अनंत देव हैं खड़े,..."

    • भावार्थ: विशाल आकाश में असंख्य देवता अपनी भुजाएँ फैलाकर परोपकारी और दयालु मनुष्यों का स्वागत करने के लिए खड़े हैं। इसलिए हमें आपसी भेद मिटाकर एक होकर रहना चाहिए और एक-दूसरे का सहारा बनना चाहिए।
    • परस्परावलंब: एक-दूसरे का सहारा।
    • अपंक: कलंक रहित, पवित्र।
  7. "चलो अभीष्ट मार्ग में सहर्ष खेलते हुए,..."

    • भावार्थ: हमें अपने इच्छित मार्ग (जीवन लक्ष्य) पर प्रसन्नतापूर्वक आगे बढ़ना चाहिए। रास्ते में आने वाली बाधाओं (विपत्ति, विघ्न) को हटाते हुए चलना चाहिए। हमें आपसी मेलजोल बनाए रखना चाहिए, तर्क-वितर्क से आपसी मतभेद नहीं बढ़ाना चाहिए। सभी को साथ लेकर चलने वाला व्यक्ति ही समर्थ है।
    • अभीष्ट मार्ग: इच्छित रास्ता, जीवन का लक्ष्य।
    • अतर्क एक पंथ के सतर्क पंथी हों सभी: बिना कुतर्क किए, सावधानी से एक ही (मानवता के) रास्ते पर चलने वाले बनें।
  8. "वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।"

    • पुनरुक्ति: कवि इस पंक्ति को बार-बार दोहराकर मनुष्यता के मूल संदेश पर बल देते हैं कि सच्चा मनुष्य वही है जो दूसरे मनुष्यों के काम आए, उनके लिए जिए और मरे। यही मनुष्यता का चरम आदर्श है।

भाषा-शैली:

  • भाषा: शुद्ध, साहित्यिक खड़ी बोली, जिसमें तत्सम (संस्कृत) शब्दों का प्रचुर प्रयोग है (जैसे- मर्त्य, सुमृत्यु, क्षुधार्त, करस्थ, सहानुभूति, महाविभूति, मदांध, परस्परावलंब, अभीष्ट, अतर्क आदि)।
  • शैली: उपदेशात्मक, ओजपूर्ण और प्रवाहपूर्ण।
  • अलंकार: अनुप्रास (पंक्ति ४ - 'विरुद्धवाद बुद्ध का'), दृष्टांत (दधीचि, कर्ण आदि के उदाहरण), पुनरुक्ति प्रकाश ('मनुष्य के लिए मरे') आदि का प्रयोग।
  • छंद: गीतिका छंद का प्रभाव।

परीक्षा हेतु विशेष ध्यान देने योग्य बातें:

  • कवि का नाम और उनकी 'राष्ट्रकवि' उपाधि।
  • कविता का मूल संदेश: परोपकार, त्याग, उदारता, सहानुभूति, विश्व बंधुत्व।
  • 'सुमृत्यु' और 'पशु प्रवृत्ति' का अर्थ।
  • दिए गए उदाहरण (दधीचि, कर्ण, रंतिदेव, उशीनर) और उनका त्याग।
  • 'महाविभूति' किसे कहा गया है? (सहानुभूति को)
  • 'अनाथ' और 'भाग्यहीन' किसे कहा गया है?
  • 'मनुष्य वही कि जो मनुष्य के लिए मरे' पंक्ति का आशय।
  • तत्सम शब्दों के अर्थ।

अभ्यास हेतु बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs):

प्रश्न 1: 'मनुष्यता' कविता के रचयिता कौन हैं?
(क) सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'
(ख) मैथिलीशरण गुप्त
(ग) सुमित्रानंदन पंत
(घ) जयशंकर प्रसाद

उत्तर: (ख) मैथिलीशरण गुप्त

प्रश्न 2: कवि के अनुसार, कैसी मृत्यु 'सुमृत्यु' कहलाती है?
(क) जो युद्ध में प्राप्त हो
(ख) जो अचानक आ जाए
(ग) जिसे लोग मरने के बाद भी याद रखें
(घ) जो वृद्धावस्था में आए

उत्तर: (ग) जिसे लोग मरने के बाद भी याद रखें

प्रश्न 3: कवि ने 'पशु प्रवृत्ति' किसे कहा है?
(क) हिंसक होना
(ख) केवल अपने लिए जीना
(ग) अशिक्षित रहना
(घ) ईश्वर को न मानना

उत्तर: (ख) केवल अपने लिए जीना

प्रश्न 4: देवताओं के लिए अपनी अस्थियाँ किसने दान की थीं?
(क) कर्ण ने
(ख) रंतिदेव ने
(ग) दधीचि ने
(घ) उशीनर ने

उत्तर: (ग) दधीचि ने

प्रश्न 5: कवि ने सबसे बड़ी पूँजी या 'महाविभूति' किसे माना है?
(क) धन-संपत्ति को
(ख) ज्ञान को
(ग) सहानुभूति को
(घ) बल और शक्ति को

उत्तर: (ग) सहानुभूति को

प्रश्न 6: 'रहो न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में' - पंक्ति में 'मदांध' का क्या अर्थ है?
(क) आँखों का अंधा
(ख) मदहोश हाथी
(ग) धन के नशे में चूर
(घ) अज्ञानी

उत्तर: (ग) धन के नशे में चूर

प्रश्न 7: कवि के अनुसार कौन व्यक्ति 'अनाथ' नहीं है?
(क) जिसके माता-पिता न हों
(ख) जिसके पास धन न हो
(ग) जिसके सिर पर ईश्वर का हाथ हो
(घ) जिसका कोई मित्र न हो

उत्तर: (ग) जिसके सिर पर ईश्वर का हाथ हो

प्रश्न 8: 'अनंत अंतरिक्ष में अनंत देव' क्यों खड़े हैं?
(क) मनुष्यों पर निगरानी रखने के लिए
(ख) परोपकारी मनुष्यों का स्वागत करने के लिए
(ग) वर्षा करने के लिए
(घ) सृष्टि का संचालन करने के लिए

उत्तर: (ख) परोपकारी मनुष्यों का स्वागत करने के लिए

प्रश्न 9: 'चलो अभीष्ट मार्ग में सहर्ष खेलते हुए' - यहाँ 'अभीष्ट मार्ग' से क्या तात्पर्य है?
(क) खेल का मैदान
(ख) तीर्थ यात्रा का मार्ग
(ग) जीवन का इच्छित लक्ष्य या उद्देश्य
(घ) स्वर्ग जाने का मार्ग

उत्तर: (ग) जीवन का इच्छित लक्ष्य या उद्देश्य

प्रश्न 10: कविता का मुख्य संदेश क्या है?
(क) मृत्यु अवश्यंभावी है
(ख) धन कमाना व्यर्थ है
(ग) मनुष्य को परोपकारी, उदार और त्यागी बनना चाहिए
(घ) ईश्वर सर्वशक्तिमान है

उत्तर: (ग) मनुष्य को परोपकारी, उदार और त्यागी बनना चाहिए


इन नोट्स और प्रश्नों का ध्यानपूर्वक अध्ययन आपकी परीक्षा की तैयारी में सहायक होगा। कविता को मूल रूप में पढ़ना और उसके भाव को आत्मसात करना भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। शुभकामनाएँ!

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