Class 10 Hindi Notes Chapter 5 (सूर्यकांत त्रिपाठी निराला: उत्साह; अट नहीं रही ह) – Kshitij-II Book

नमस्ते विद्यार्थियों।
आज हम कक्षा 10 की क्षितिज-II पुस्तक के अध्याय 5, जिसमें महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' जी की दो कविताएँ - 'उत्साह' और 'अट नहीं रही है' संकलित हैं, का विस्तृत अध्ययन करेंगे। यह अध्याय सरकारी परीक्षाओं की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है, अतः हम इसके मुख्य बिंदुओं, भावार्थ, और काव्य-सौंदर्य पर गहराई से चर्चा करेंगे।
कवि परिचय: सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' (1899-1961)
- जन्म: मेदिनीपुर जिला (बंगाल) के महिषादल में। मूलतः गढ़ाकोला, उन्नाव (उत्तर प्रदेश) के निवासी।
- युग: छायावाद के प्रमुख स्तंभों में से एक (अन्य तीन: जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा)।
- शैली:
- क्रांतिकारी कवि, विद्रोही स्वर।
- ओज और माधुर्य दोनों गुणों का समावेश।
- मुक्त छंद के प्रवर्तक माने जाते हैं (उनकी 'जूही की कली' रचना को मुक्त छंद की पहली रचना माना जाता है)।
- भाषा में तत्सम शब्दों के साथ-साथ बोलचाल के शब्दों का प्रयोग।
- प्रकृति चित्रण, दार्शनिकता, रहस्यवाद और प्रगतिवादी चेतना का संगम।
- प्रमुख रचनाएँ: अनामिका, परिमल, गीतिका, कुकुरमुत्ता, नए पत्ते, अणिमा, बेला, आराधना आदि।
- जीवन: उनका जीवन अत्यंत संघर्षपूर्ण और त्रासदियों से भरा रहा, जिसका प्रभाव उनकी रचनाओं में भी दिखता है। उन्हें 'निराला' उपनाम उनकी अद्वितीय शैली और व्यक्तित्व के कारण मिला।
कविता 1: उत्साह (Aahvaan Geet - आह्वान गीत)
यह कविता बादलों को संबोधित एक आह्वान गीत है। बादल निराला का प्रिय विषय रहा है। इस कविता में बादल के दो रूप प्रकट होते हैं:
- ललित कल्पना: पीड़ित-प्यासे जन की आकांक्षा पूरी करने वाला, गर्मी से तपती धरती को शीतलता प्रदान करने वाला।
- क्रांति चेतना: विध्वंस, विप्लव और क्रांति के प्रतीक के रूप में, जो नवनिर्माण के लिए आवश्यक है।
भावार्थ एवं मुख्य बिंदु:
- "बादल, गरजो! घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ!": कवि बादलों का आह्वान करते हैं कि वे पूरे आकाश को घेर लें और घनघोर गर्जना करें। 'धाराधर' (बादल) को संबोधित किया गया है।
- "ललित ललित, काले घुँघराले, बाल कल्पना के-से पाले": कवि बादलों के सौंदर्य का वर्णन करते हैं। वे सुंदर, काले और घुँघराले हैं, जैसे किसी बच्चे की कल्पना हो।
- "विद्युत-छबि उर में, कवि, नवजीवन वाले! वज्र छिपा, नूतन कविता फिर भर दो - बादल, गरजो!": बादलों के हृदय में बिजली की छवि (क्रांति की शक्ति) छिपी है। वे संसार को नया जीवन देने वाले हैं। कवि बादलों से आग्रह करते हैं कि वे अपनी वज्र जैसी शक्ति (विनाश और सृजन दोनों की क्षमता) से समाज में नई चेतना भर दें, एक नई कविता रच दें। यहाँ बादल कवि के लिए प्रेरणा स्रोत भी हैं।
- "विकल विकल, उन्मन थे उन्मन विश्व के निदाघ के सकल जन": गर्मी (निदाघ) से संसार के सभी लोग व्याकुल और अनमने थे।
- "आए अज्ञात दिशा से अनंत के घन! तप्त धरा, जल से फिर शीतल कर दो - बादल, गरजो!": ऐसे में, अज्ञात दिशा से आकर अनंत आकाश में छा जाने वाले बादल तपती धरती को अपने जल से शीतल कर दें।
काव्य सौंदर्य:
- भाषा: संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली (तत्सम शब्दों का प्रचुर प्रयोग - ललित, विद्युत, उर, वज्र, विकल, उन्मन, निदाघ, सकल, तप्त, धरा)।
- शैली: संबोधन शैली, आह्वानपरक।
- गुण: ओज गुण (गर्जना, वज्र, क्रांति के संदर्भ में)।
- अलंकार:
- मानवीकरण: बादल को गरजन करने, नवजीवन देने वाला कहा गया है।
- पुनरुक्ति प्रकाश: 'घेर घेर', 'ललित ललित', 'विकल विकल'।
- उपमा: 'बाल कल्पना के-से पाले'।
- रूपक: 'विद्युत-छबि उर में'।
- छंद: मुक्त छंद होते हुए भी नाद-सौंदर्य और लय विद्यमान है।
- प्रतीक: बादल क्रांति, विप्लव, नवनिर्माण और उत्साह का प्रतीक है।
कविता 2: अट नहीं रही है
यह कविता फागुन मास की सुंदरता और उसके सर्वव्यापी प्रभाव का वर्णन करती है। फागुन (वसंत ऋतु का एक महीना) में प्रकृति का सौंदर्य इतना अधिक है कि वह समा नहीं पा रहा है।
भावार्थ एवं मुख्य बिंदु:
- "अट नहीं रही है आभा फागुन की तन सट नहीं रही है।": फागुन महीने की सुंदरता (आभा) इतनी अधिक है कि वह प्रकृति और तन में समा नहीं पा रही है, बाहर छलक रही है।
- "कहीं साँस लेते हो, घर-घर भर देते हो, उड़ने को नभ में तुम पर-पर कर देते हो।": कवि फागुन का मानवीकरण करते हुए कहते हैं कि हे फागुन! जब तुम साँस लेते हो, तो तुम्हारी सुगंध से हर घर भर जाता है। तुम वातावरण में ऐसी मादकता भर देते हो कि मन रूपी पक्षी कल्पना के पंख लगाकर आकाश में उड़ने को आतुर हो जाता है।
- "आँख हटाता हूँ तो हट नहीं रही है।": फागुन की सुंदरता इतनी मनमोहक है कि कवि चाहकर भी उससे अपनी आँखें हटा नहीं पा रहे हैं।
- "पत्तों से लदी डाल, कहीं हरी, कहीं लाल, कहीं पड़ी है उर में मंद गंध पुष्प माल,": पेड़ों की डालियाँ नए हरे और लाल पत्तों से लद गई हैं। कहीं-कहीं पेड़ों के गले में धीमी सुगंध वाले फूलों की माला पड़ी हुई प्रतीत होती है।
- "पाट-पाट शोभा श्री पट नहीं रही है। अट नहीं रही है।": जगह-जगह (पाट-पाट) सौंदर्य की संपदा (शोभा श्री) इतनी अधिक बिखरी हुई है कि वह समा नहीं पा रही है (पट नहीं रही है)।
काव्य सौंदर्य:
- भाषा: सरल, सहज, प्रवाहमयी खड़ी बोली। तत्सम (आभा, उर, मंद, गंध, पुष्प, शोभा श्री) और तद्भव शब्दों का सुंदर मिश्रण।
- शैली: वर्णनात्मक, गीतात्मक।
- गुण: माधुर्य गुण।
- अलंकार:
- मानवीकरण: फागुन को साँस लेते हुए, पर-पर करते हुए चित्रित किया गया है।
- पुनरुक्ति प्रकाश: 'घर-घर', 'पर-पर', 'पाट-पाट'।
- बिंब: दृश्य बिंब (पत्तों से लदी डाल, हरी-लाल पत्तियाँ) और गंध बिंब (मंद गंध पुष्प माल) का सुंदर प्रयोग।
- प्रभाव: फागुन की मस्ती और उल्लास का सजीव चित्रण।
परीक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण:
- निराला जी का जीवन परिचय और साहित्यिक योगदान (छायावाद, मुक्त छंद)।
- 'उत्साह' कविता का मूल भाव (क्रांति और नवनिर्माण का आह्वान)।
- बादल के प्रतीकार्थ (पीड़ा हरने वाला और क्रांति लाने वाला)।
- 'अट नहीं रही है' कविता में फागुन के सौंदर्य का वर्णन।
- दोनों कविताओं में प्रयुक्त अलंकार (विशेषकर मानवीकरण) और भाषा शैली।
- पंक्तियों का भावार्थ स्पष्ट करने वाले प्रश्न।
अभ्यास हेतु बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs):
-
'उत्साह' कविता में कवि ने किसे संबोधित किया है?
(क) सूर्य को
(ख) बादल को
(ग) धरती को
(घ) कवि को -
'उत्साह' कविता में 'वज्र छिपा' किसके भीतर छिपे होने की बात कही गई है?
(क) कवि के हृदय में
(ख) धरती के गर्भ में
(ग) बादलों में
(घ) आकाश में -
कवि बादलों से क्या करने का आग्रह करते हैं?
(क) केवल बरसने का
(ख) केवल गरजने का
(ग) गरजने और बरसने दोनों का
(घ) शांत रहने का -
'अट नहीं रही है' कविता किस मास की सुंदरता का वर्णन करती है?
(क) सावन
(ख) चैत्र
(ग) फागुन
(घ) आषाढ़ -
'घर-घर भर देते हो' - इस पंक्ति में क्या भरने की बात कही गई है?
(क) पानी
(ख) प्रकाश
(ग) फागुन की सुगंध और शोभा
(घ) अनाज -
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' किस काव्य धारा के प्रमुख कवि माने जाते हैं?
(क) प्रगतिवाद
(ख) प्रयोगवाद
(ग) छायावाद
(घ) द्विवेदी युग -
'अट नहीं रही है' कविता में किस अलंकार का प्रमुखता से प्रयोग हुआ है?
(क) उपमा
(ख) रूपक
(ग) यमक
(घ) मानवीकरण -
'उत्साह' कविता में बादल किसका प्रतीक है?
(क) शांति और शीतलता का
(ख) केवल विध्वंस का
(ग) ललित कल्पना और क्रांति चेतना दोनों का
(घ) निराशा का -
'पाट-पाट शोभा श्री पट नहीं रही है' - पंक्ति का क्या अर्थ है?
(क) हर पत्ते पर सुंदरता लिखी है।
(ख) जगह-जगह सौंदर्य इतना अधिक है कि समा नहीं रहा है।
(ग) सुंदरता का पाठ पढ़ाया जा रहा है।
(घ) शोभा के वस्त्र फट गए हैं। -
निराला जी को किस छंद का प्रवर्तक माना जाता है?
(क) दोहा
(ख) चौपाई
(ग) कवित्त
(घ) मुक्त छंद
उत्तरमाला:
- (ख) बादल को
- (ग) बादलों में
- (ग) गरजने और बरसने दोनों का
- (ग) फागुन
- (ग) फागुन की सुगंध और शोभा
- (ग) छायावाद
- (घ) मानवीकरण
- (ग) ललित कल्पना और क्रांति चेतना दोनों का
- (ख) जगह-जगह सौंदर्य इतना अधिक है कि समा नहीं रहा है।
- (घ) मुक्त छंद
इन नोट्स और प्रश्नों का ध्यानपूर्वक अध्ययन करें। निराला जी की भाषा और भावों को समझने का प्रयास करें। शुभकामनाएँ!