Class 10 Hindi Notes Chapter 6 (नागार्जुन: यह दंतुरित मुस्कान; फसल) – Kshitij-II Book

Kshitij-II
नमस्ते विद्यार्थियों। आज हम कक्षा १० की क्षितिज-II पुस्तक के पाठ ६, जिसमें महाकवि नागार्जुन की दो कविताएँ - 'यह दंतुरित मुसकान' और 'फसल' संकलित हैं, का गहन अध्ययन करेंगे। ये नोट्स आपको सरकारी परीक्षाओं की तैयारी में विशेष रूप से सहायक होंगे।

कवि परिचय: नागार्जुन (1911-1998)

  • मूल नाम: वैद्यनाथ मिश्र (यह परीक्षा की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है)।
  • जन्म: सन् 1911, गाँव तरौनी, जिला दरभंगा, बिहार।
  • शिक्षा: आरंभिक शिक्षा संस्कृत पाठशाला में, फिर बनारस और कलकत्ता में अध्ययन। 1936 में श्रीलंका गए और वहीं बौद्ध धर्म में दीक्षित हुए।
  • साहित्यिक परिचय:
    • नागार्जुन प्रगतिवादी काव्यधारा के प्रमुख कवियों में से एक हैं।
    • उन्हें 'जनकवि' के रूप में जाना जाता है क्योंकि उनकी कविताओं में आम जनता का दुख-दर्द, संघर्ष और उनकी भावनाएँ गहराई से व्यक्त होती हैं।
    • उनका स्वभाव घुमक्कड़ी और फक्कड़पन का था, जिसका प्रभाव उनके काव्य में भी दिखता है।
    • वे राजनीतिक और सामाजिक विसंगतियों पर तीखा व्यंग्य करने में माहिर थे।
    • मैथिली में वे 'यात्री' उपनाम से लिखते थे।
  • प्रमुख कृतियाँ: युगधारा, सतरंगे पंखों वाली, प्यासी पथराई आँखें, तालाब की मछलियाँ, तुमने कहा था, खिचड़ी विप्लव देखा हमने, हजार-हजार बाँहों वाली, पुरानी जूतियों का कोरस, भस्मांकुर (खंडकाव्य), बलचनमा (उपन्यास) आदि।
  • भाषा-शैली:
    • भाषा सहज, सरल और आम बोलचाल के करीब है। खड़ी बोली हिंदी का प्रयोग।
    • तत्सम, तद्भव और आंचलिक शब्दों का सुंदर समन्वय।
    • बिम्बों और प्रतीकों का सटीक प्रयोग।
    • व्यंग्यात्मकता उनकी शैली की प्रमुख विशेषता है।
  • पुरस्कार: साहित्य अकादमी पुरस्कार (मैथिली रचना 'पत्रहीन नग्न गाछ' के लिए), भारत भारती सम्मान, मैथिलीशरण गुप्त सम्मान आदि।

कविता 1: यह दंतुरित मुसकान

  • प्रसंग: इस कविता में कवि ने एक छोटे बच्चे (जिसके अभी नए-नए दाँत निकल रहे हैं) की मनमोहक मुसकान का अत्यंत सजीव और वात्सल्यपूर्ण चित्रण किया है। कवि लंबे समय बाद घर लौटा है और बच्चे से पहली बार मिल रहा है।

  • मूल भाव/केंद्रीय विचार: बच्चे की निश्छल, नवोदित मुसकान में जीवन का अद्भुत सौंदर्य और उल्लास छिपा है। यह मुसकान इतनी शक्तिशाली है कि वह मृतक में भी प्राण डाल सकती है, कठोर हृदय को पिघला सकती है और नीरस जीवन में भी रस भर सकती है। कविता वात्सल्य भाव से परिपूर्ण है।

  • विस्तृत व्याख्या एवं महत्वपूर्ण बिंदु:

    1. तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान / मृतक में भी डाल देगी जान
      • दंतुरित: बच्चे के नए-नए निकले छोटे-छोटे दाँतों वाली।
      • भाव: कवि कहता है कि बच्चे की यह नए दाँतों वाली प्यारी मुस्कान इतनी जीवंत और प्रभावशाली है कि वह मरे हुए व्यक्ति में भी प्राणों का संचार कर सकती है। यहाँ 'मृतक' का लाक्षणिक अर्थ है - निराश, हताश, संवेदनहीन या जीवन से उदासीन व्यक्ति। (अतिशयोक्ति अलंकार का प्रयोग)
    2. धूलि-धूसर तुम्हारे ये गात / छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात
      • धूलि-धूसर: धूल-मिट्टी से सने हुए। गात: शरीर। जलजात: कमल का फूल।
      • भाव: धूल से सना बच्चे का शरीर कवि को ऐसा लग रहा है मानो कमल का फूल तालाब को छोड़कर उसकी झोंपड़ी में खिल गया हो। बच्चे की सुंदरता और पवित्रता की तुलना कमल से की गई है। (रूपक/उपमा अलंकार)
    3. परस पाकर तुम्हारा ही प्राण, / पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण
      • परस: स्पर्श। पाषाण: पत्थर।
      • भाव: कवि कल्पना करता है कि बच्चे का स्पर्श पाकर तो कठोर पत्थर दिल इंसान भी पिघलकर पानी (करुणा, स्नेह) बन गया होगा। यह बच्चे के स्पर्श की कोमलता और प्रभाव को दर्शाता है। (अतिशयोक्ति अलंकार)
    4. छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल / बाँस था कि बबूल?
      • शेफालिका: हरसिंगार का फूल (जो बहुत कोमल और सुगंधित होता है)।
      • भाव: कवि कहता है कि बच्चे के स्पर्श में ऐसा जादू है कि उसके छूने से तो बाँस या बबूल जैसे कठोर और कांटेदार पेड़ से भी शेफालिका के फूल झरने लगते हैं। यहाँ कवि स्वयं को बाँस या बबूल जैसा नीरस या कठोर मान रहा है, जो बच्चे के संपर्क में आकर आनंदित हो उठा है। (संदेह/प्रश्न अलंकार)
    5. तुम मुझे पाए नहीं पहचान? / देखते ही रहोगे अनिमेष!
      • अनिमेष: बिना पलक झपकाए, एकटक।
      • भाव: बच्चा कवि को पहचान नहीं पा रहा क्योंकि कवि उसके लिए अपरिचित है। वह उसे एकटक देखे जा रहा है।
    6. थक गए हो? / आँख लूँ मैं फेर?
      • भाव: कवि बच्चे की सुविधा का ध्यान रखता है। उसे लगता है कि लगातार देखने से बच्चा थक गया होगा, इसलिए वह स्वयं अपनी आँखें फेर लेने की बात कहता है। कवि की संवेदनशीलता प्रकट होती है।
    7. क्या हुआ यदि हो सके परिचित न पहली बार? / यदि तुम्हारी माँ न माध्यम बनी होती आज / मैं न सकता देख / मैं न पाता जान / तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान
      • माध्यम: जरिया, सेतु।
      • भाव: कवि स्वीकार करता है कि यदि बच्चे की माँ उन दोनों के बीच परिचय का माध्यम न बनती, तो वह बच्चे की इस मनमोहक मुस्कान को कभी देख और जान नहीं पाता। माँ के महत्व को रेखांकित किया गया है।
    8. धन्य तुम, माँ भी तुम्हारी धन्य! / चिर प्रवासी मैं इतर, मैं अन्य
      • चिर प्रवासी: लंबे समय तक बाहर रहने वाला। इतर: दूसरा, अलग। अन्य: पराया।
      • भाव: कवि बच्चे और उसकी माँ, दोनों को धन्य कहता है। वह स्वयं को 'चिर प्रवासी' और 'अन्य' कहकर बच्चे के जीवन में अपनी अतिथि जैसी भूमिका को स्वीकार करता है। इसमें कवि के घुमक्कड़ जीवन की झलक मिलती है।
    9. इस अतिथि से प्रिय तुम्हारा क्या रहा संपर्क / उँगलियाँ माँ की कराती रही हैं मधुपर्क
      • मधुपर्क: पंचामृत (दही, घी, शहद, शक्कर, जल का मिश्रण) जो बच्चे को उंगली से चटाया जाता है, यहाँ लाक्षणिक अर्थ है - माँ का गहरा वात्सल्य और पोषण।
      • भाव: कवि कहता है कि मुझ जैसे अतिथि से तुम्हारा क्या संपर्क रहा है? तुम्हें तो तुम्हारी माँ की उंगलियों ने ही स्नेह और पोषण (मधुपर्क) प्रदान किया है। माँ की वात्सल्यमयी भूमिका पुनः स्थापित होती है।
    10. देखते तुम इधर कनखी मार / और होतीं जब कि आँखें चार / तब तुम्हारी दंतुरित मुसकान / मुझे लगती बड़ी ही छविमान!
      • कनखी मार: तिरछी निगाह से देखना। आँखें चार होना: एक-दूसरे को देखना, नज़रें मिलना। छविमान: सुंदर, शोभायमान।
      • भाव: जब बच्चा कवि को तिरछी नज़रों से देखता है और फिर जब दोनों की नज़रें मिलती हैं, तब बच्चे के चेहरे पर जो दंतुरित मुस्कान खिल उठती है, वह कवि को अत्यंत सुंदर और मनमोहक लगती है। यह पिता-पुत्र के बीच पनपते स्नेह का सुंदर क्षण है।
  • काव्य सौंदर्य:

    • रस: वात्सल्य रस।
    • भाषा: सहज, सरल खड़ी बोली। तत्सम (दंतुरित, मृतक, पाषाण, जलजात, अनिमेष, मधुपर्क, छविमान) और तद्भव (जान, गात, आँख) शब्दों का मिला-जुला प्रयोग।
    • अलंकार: अनुप्रास, रूपक, उपमा, अतिशयोक्ति, प्रश्न अलंकार।
    • बिम्ब: दृश्य बिम्ब (धूलि-धूसर गात, खिल रहे जलजात, कनखी मार देखना) अत्यंत सजीव हैं।
    • शैली: गीतात्मक, संवादात्मक और चित्रात्मक।

कविता 2: फसल

  • प्रसंग: इस कविता में कवि नागार्जुन ने 'फसल' के सृजन में प्राकृतिक तत्वों और मानवीय श्रम के योगदान को अत्यंत सहज और मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया है।

  • मूल भाव/केंद्रीय विचार: फसल किसी एक व्यक्ति या एक तत्व का परिणाम नहीं है, बल्कि यह नदियों के पानी, लाखों किसानों के श्रम, विभिन्न प्रकार की मिट्टी के गुणधर्म, सूर्य की किरणों और हवा के सम्मिलित योगदान का प्रतिफल है। कविता प्रकृति और मनुष्य के परस्पर सहयोग को रेखांकित करती है।

  • विस्तृत व्याख्या एवं महत्वपूर्ण बिंदु:

    1. एक के नहीं, दो के नहीं, / ढेर सारी नदियों के पानी का जादू :
      • भाव: फसल को उगाने में किसी एक या दो नदी का नहीं, बल्कि अनगिनत नदियों के पानी का योगदान होता है। पानी के प्रभाव को कवि 'जादू' कहता है, जो बीज को अंकुरित और पोषित करता है।
    2. एक के नहीं, दो के नहीं, / लाख-लाख कोटि-कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमा :
      • कोटि-कोटि: करोड़ों। गरिमा: गौरव, महत्व।
      • भाव: फसल लाखों-करोड़ों किसानों के परिश्रम का परिणाम है। उनके हाथों के स्पर्श में एक गरिमा है, एक महत्व है, जिसके बिना फसल संभव नहीं। मानवीय श्रम के महत्व पर बल। (पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार - लाख-लाख, कोटि-कोटि)
    3. एक की नहीं, दो की नहीं, / हजार-हजार खेतों की मिट्टी का गुण धर्म :
      • गुण धर्म: मिट्टी की स्वाभाविक उर्वरा शक्ति और उसके पोषक तत्व।
      • भाव: फसल के लिए हजारों खेतों की अलग-अलग प्रकार की मिट्टी का योगदान होता है, जिसके अपने विशिष्ट गुण और पोषक तत्व होते हैं। मिट्टी की विविधता और उसकी उर्वरा शक्ति अनिवार्य है। (पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार - हजार-हजार)
    4. फसल क्या है? / और तो कुछ नहीं है वह / नदियों के पानी का जादू है वह / हाथों के स्पर्श की महिमा है / भूरी-काली-संदली मिट्टी का गुण धर्म है / रूपांतर है सूरज की किरणों का / सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का।
      • रूपांतर: रूप बदलना (यहाँ प्रकाश संश्लेषण की क्रिया की ओर संकेत)।
      • सिमटा हुआ संकोच...हवा की थिरकन का: हवा का धीमा, संतुलित प्रवाह जो पौधों के जीवन के लिए आवश्यक है (कार्बन डाइऑक्साइड, परागण आदि)। 'संकोच' और 'थिरकन' हवा के सूक्ष्म प्रभाव को दर्शाते हैं।
      • भाव: कवि स्वयं प्रश्न पूछता है और फिर उत्तर देता है कि फसल क्या है? वह नदियों के पानी का जादू, किसानों के श्रम का गौरव, विभिन्न मिट्टियों के गुण, सूर्य की किरणों का बदला हुआ रूप (ऊर्जा का भोजन में परिवर्तन) और हवा का संतुलित योगदान है। इन सबके मिले-जुले प्रभाव से ही फसल तैयार होती है।
  • काव्य सौंदर्य:

    • रस: शांत रस, कृतज्ञता का भाव।
    • भाषा: सरल, सहज खड़ी बोली, प्रवाहमयी। शब्द चयन सटीक।
    • अलंकार: पुनरुक्ति प्रकाश (लाख-लाख, कोटि-कोटि, हजार-हजार), अनुप्रास। मानवीकरण (पानी का जादू, हवा की थिरकन)।
    • शैली: वर्णनात्मक, प्रश्नोत्तर शैली का प्रयोग। कविता में लय और प्रवाह है।
    • बिम्ब: नदियों, हाथों, खेतों, मिट्टी, सूरज, हवा के बिम्ब साकार हो उठते हैं।
    • संदेश: प्रकृति और मनुष्य के श्रम के प्रति सम्मान और कृतज्ञता का भाव जगाना।

परीक्षा हेतु विशेष ध्यान दें:

  • नागार्जुन का मूल नाम और उनकी 'जनकवि' की छवि।
  • 'दंतुरित मुसकान' में वात्सल्य रस और बच्चे की मुस्कान के प्रभाव।
  • 'चिर प्रवासी', 'मधुपर्क', 'जलजात', 'अनिमेष', 'कनखी मार' जैसे शब्दों के अर्थ।
  • 'फसल' कविता में फसल के निर्माण में सहायक तत्व (पानी, श्रम, मिट्टी, धूप, हवा)।
  • 'हाथों के स्पर्श की गरिमा', 'पानी का जादू', 'मिट्टी का गुण धर्म', 'सूरज की किरणों का रूपांतर', 'हवा की थिरकन का संकोच' का आशय।
  • दोनों कविताओं में प्रयुक्त मुख्य अलंकार।

अभ्यास हेतु बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs):

  1. कवि नागार्जुन का मूल नाम क्या था?
    (क) धनपत राय
    (ख) वैद्यनाथ मिश्र
    (ग) रामधारी सिंह
    (घ) वासुदेव सिंह

  2. 'यह दंतुरित मुसकान' कविता में 'दंतुरित' का क्या अर्थ है?
    (क) सुंदर
    (ख) नए-नए दाँतों वाली
    (ग) मनमोहक
    (घ) धूल से सनी

  3. "मृतक में भी डाल देगी जान" - इस पंक्ति में कौन सा अलंकार प्रमुख है?
    (क) उपमा
    (ख) रूपक
    (ग) अतिशयोक्ति
    (घ) मानवीकरण

  4. 'यह दंतुरित मुसकान' कविता में कवि ने स्वयं को क्या कहा है?
    (क) अतिथि
    (ख) चिर प्रवासी
    (ग) अन्य और इतर
    (घ) उपरोक्त सभी

  5. कविता में 'मधुपर्क' का प्रयोग किसके संदर्भ में हुआ है?
    (क) कवि के स्नेह के
    (ख) माँ के वात्सल्य और पोषण के
    (ग) बच्चे की मुस्कान के
    (घ) फूलों के रस के

  6. 'फसल' कविता का मुख्य प्रतिपाद्य क्या है?
    (क) किसानों की दशा का वर्णन
    (ख) फसल उगाने की प्रक्रिया
    (ग) प्रकृति और मनुष्य के सम्मिलित योगदान से फसल का निर्माण
    (घ) नदियों के महत्व का वर्णन

  7. 'फसल' कविता में 'लाख-लाख कोटि-कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमा' से कवि का क्या आशय है?
    (क) मशीनों का प्रयोग
    (ख) बच्चों का खेल
    (ग) किसानों का असीम परिश्रम
    (घ) देवताओं का आशीर्वाद

  8. 'फसल' कविता के अनुसार, फसल किसका रूपांतर है?
    (क) मिट्टी का
    (ख) पानी का
    (ग) हवा का
    (घ) सूरज की किरणों का

  9. 'फसल' कविता में फसल के निर्माण के लिए किन प्राकृतिक तत्वों का उल्लेख है?
    (क) पानी, मिट्टी, धूप, हवा
    (ख) पानी, बीज, खाद, श्रम
    (ग) मिट्टी, श्रम, बीज, हवा
    (घ) धूप, हवा, श्रम, बीज

  10. नागार्जुन को किस रूप में विशेष ख्याति प्राप्त है?
    (क) प्रयोगवादी कवि
    (ख) छायावादी कवि
    (ग) जनकवि
    (घ) रहस्यवादी कवि

उत्तर कुंजी:

  1. (ख) 2. (ख) 3. (ग) 4. (घ) 5. (ख) 6. (ग) 7. (ग) 8. (घ) 9. (क) 10. (ग)

इन نکات को ध्यान में रखकर आप परीक्षा की तैयारी करें। शुभकामनाएँ!

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