Class 10 Hindi Notes Chapter 7 (गिरिजाकुमार माथुर: छाया मत छूना) – Kshitij-II Book

Kshitij-II
विद्यार्थियो, आज हम कक्षा 10 की क्षितिज-II पुस्तक के पाठ 7, 'गिरिजाकुमार माथुर' द्वारा रचित कविता 'छाया मत छूना' का गहन अध्ययन करेंगे। यह कविता सरकारी परीक्षाओं की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है, अतः हम इसके हर पहलू को विस्तार से समझेंगे।

कवि परिचय: गिरिजाकुमार माथुर

  • जन्म: 22 अगस्त 1918, अशोक नगर, मध्य प्रदेश।
  • निधन: 10 जनवरी 1994, नई दिल्ली।
  • शिक्षा: एम.ए. (अंग्रेजी), एल.एल.बी.।
  • कार्यक्षेत्र: आकाशवाणी और दूरदर्शन में उप-महानिदेशक सहित अनेक पदों पर कार्य किया।
  • प्रमुख रचनाएँ:
    • काव्य संग्रह: 'नाश और निर्माण', 'धूप के धान', 'शिलापंख चमकीले', 'भीतरी नदी की यात्रा', 'जो बँध नहीं सका', 'साक्षी रहे वर्तमान', 'मैं वक्त के हूँ सामने'।
    • नाटक: 'जन्म कैद'।
    • आलोचना: 'नयी कविता: सीमाएँ और संभावनाएँ'।
  • पुरस्कार: 'मैं वक्त के हूँ सामने' के लिए 1991 में 'साहित्य अकादमी पुरस्कार', 'व्यास सम्मान' आदि।
  • काव्यगत विशेषताएँ: रोमानी भावबोध के कवि, विषय की मौलिकता, शिल्प की विलक्षणता, चित्रात्मकता, संगीतात्मकता, भाषा में प्रवाह। वे मुक्त छंद के समर्थक थे और भाषा के दो रंगों (रोमानी और यथार्थवादी) में लिखते थे।

कविता: छाया मत छूना

मूल भाव/केंद्रीय विचार:
इस कविता के माध्यम से कवि गिरिजाकुमार माथुर यह संदेश देना चाहते हैं कि हमें अपने अतीत की सुखद यादों (छायाओं) में खोकर वर्तमान के यथार्थ से मुँह नहीं मोड़ना चाहिए। अतीत की स्मृतियाँ चाहे कितनी भी सुहावनी क्यों न हों, वे वर्तमान के दुखों को कम नहीं करतीं, बल्कि उन्हें और बढ़ा देती हैं ('दुख दूना')। जीवन में यश, वैभव, मान-सम्मान सब भ्रम ('मृगतृष्णा') की तरह हैं, इनके पीछे भागने से केवल निराशा हाथ लगती है। हमें जीवन की कठोर वास्तविकताओं को स्वीकार करना चाहिए और भविष्य की ओर देखना चाहिए। अतीत को भूलकर वर्तमान में जीना और भविष्य का वरण करना ही जीवन की सार्थकता है।

विस्तृत व्याख्या (पद के अनुसार):

पद 1:

  • "छाया मत छूना,
    मन, होगा दुख दूना।"
    • शब्दार्थ: छाया - अतीत की स्मृतियाँ, भ्रम; दूना - दुगुना।
    • भावार्थ: कवि अपने मन को संबोधित करते हुए कहते हैं कि हे मन! तू अतीत की सुखद स्मृतियों को याद मत करना, क्योंकि इससे वर्तमान का दुख कम होने के बजाय दुगुना हो जाएगा।
  • "जीवन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी,
    छवियों की चित्र-गंध फैली मनभावनी;"
    • शब्दार्थ: सुरंग - रंग-बिरंगी; सुधियाँ - यादें; सुहावनी - सुखद; छवियों - तस्वीरों; चित्र-गंध - चित्रों के साथ जुड़ी हुई गंध (स्मृति); मनभावनी - मन को अच्छी लगने वाली।
    • भावार्थ: कवि स्वीकार करते हैं कि जीवन में अनेक रंग-बिरंगी, सुखद और मन को लुभाने वाली यादें होती हैं। उन यादों के साथ उनसे जुड़ी भावनाएँ (गंध) भी मन में बसी रहती हैं।
  • "तन-सुगंध शेष रही, बीत गई यामिनी,
    कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी।"
    • शब्दार्थ: तन-सुगंध - शरीर की महक; शेष - बची हुई; यामिनी - तारों भरी रात (यहाँ प्रिय के साथ बिताई रात); कुंतल - केश, बाल; चाँदनी - सुखद स्मृति का प्रतीक।
    • भावार्थ: प्रिय के साथ बिताई रातें (यामिनी) तो बीत गईं, पर शायद तन की सुगंध या स्पर्श का एहसास बाकी है। प्रिया के बालों में लगे फूलों की महक अब केवल एक धुँधली, सुखद चाँदनी रात जैसी याद बनकर रह गई है।
  • "भूली-सी एक छुअन बनता हर जीवित क्षण-
    छाया मत छूना,
    मन, होगा दुख दूना।"
    • शब्दार्थ: छुअन - स्पर्श; जीवित क्षण - वर्तमान का पल।
    • भावार्थ: अतीत की भूली हुई यादों का एक हल्का सा स्पर्श भी वर्तमान के हर पल को प्रभावित करता है और दुख को बढ़ा देता है। इसलिए, हे मन! तू उन बीती यादों को मत छूना, इससे दुख दुगुना ही होगा।

पद 2:

  • "यश है या न वैभव है, मान है न सरमाया;
    जितना ही दौड़ा तू उतना ही भरमाया।"
    • शब्दार्थ: यश - प्रसिद्धि; वैभव - धन-दौलत; सरमाया - पूँजी; भरमाया - भ्रमित हुआ, भटका।
    • भावार्थ: कवि कहते हैं कि जीवन में यश, धन-दौलत, मान-सम्मान, पूँजी आदि के पीछे भागना व्यर्थ है। मनुष्य जितना इनके पीछे भागता है, उतना ही अधिक भ्रमित होता और भटकता जाता है।
  • "प्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है,
    हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।"
    • शब्दार्थ: प्रभुता का शरण-बिंब - बड़प्पन का एहसास, स्वामित्व का सुख; मृगतृष्णा - रेगिस्तान में पानी का भ्रम, झूठा दिखावा; चंद्रिका - चाँदनी रात (सुख का प्रतीक); कृष्णा - काली रात (दुख का प्रतीक)।
    • भावार्थ: बड़प्पन का एहसास या सुख की चाहत केवल एक छलावा (मृगतृष्णा) है, जो कभी पूरी नहीं होती। हर सुख (चाँदनी रात) के पीछे दुख (काली रात) छिपा रहता है। सुख और दुख जीवन के अभिन्न अंग हैं।
  • "जो है यथार्थ कठिन उसका तू कर पूजन-
    छाया मत छूना,
    मन, होगा दुख दूना।"
    • शब्दार्थ: यथार्थ - वास्तविकता; कठिन - कठोर; पूजन - स्वीकार करना, सामना करना।
    • भावार्थ: इसलिए हे मन! जो जीवन की कठोर सच्चाई है, उसी का सामना कर, उसी को स्वीकार कर। अतीत की सुखद यादों में मत खो, क्योंकि इससे दुख दुगुना ही होगा।

पद 3:

  • "दुविधा-हत साहस है, दिखता है पंथ नहीं,
    देह सुखी हो पर मन के दुख का अंत नहीं।"
    • शब्दार्थ: दुविधा-हत साहस - दुविधा या असमंजस के कारण साहस नष्ट हो जाना; पंथ - रास्ता।
    • भावार्थ: अतीत और वर्तमान के बीच फँसकर मनुष्य का साहस दुविधाग्रस्त हो जाता है, उसे भविष्य का कोई रास्ता स्पष्ट दिखाई नहीं देता। भले ही शरीर को सारे सुख प्राप्त हों, पर यदि मन दुखी है और अतीत में अटका है, तो उस दुख का कोई अंत नहीं होता।
  • "दुख है न चाँद खिला शरद-रात आने पर,
    क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर?"
    • शब्दार्थ: शरद-रात - सुख और शांति का समय; चाँद खिलना - सुख की प्राप्ति; रस-बसंत - जीवन का यौवन या अनुकूल समय।
    • भावार्थ: कवि कहते हैं कि यदि सही समय (शरद रात) पर सुख (चाँद) न मिले तो मन दुखी रहता है। इसी प्रकार, यदि अनुकूल समय (बसंत) बीत जाने के बाद कोई उपलब्धि (फूल खिलना) प्राप्त हो, तो उसका कोई महत्व या आनंद नहीं रह जाता। समय पर मिलने वाली सफलता ही सुख देती है।
  • "जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण,
    छाया मत छूना,
    मन, होगा दुख दूना।"
    • शब्दार्थ: वरण - चुनना, स्वीकार करना।
    • भावार्थ: इसलिए हे मन! जीवन में जो कुछ तुम्हें प्राप्त नहीं हो सका, उसे भूल जा और अपने भविष्य को देखो, उसे अपनाओ। अतीत की स्मृतियों में मत उलझो, क्योंकि इससे तुम्हारा दुख कम नहीं होगा, बल्कि दुगुना हो जाएगा।

काव्य-सौंदर्य:

  • भाषा: खड़ी बोली हिंदी, जिसमें तत्सम (यश, वैभव, चंद्रिका, कृष्णा, यथार्थ, दुविधा, वरण) और तद्भव शब्दों का सहज प्रयोग है। भाषा प्रवाहमयी और संगीतात्मक है।
  • शैली: प्रतीकात्मक शैली (छाया, चाँदनी, कृष्णा रात, फूल, बसंत आदि प्रतीकों का प्रयोग), संबोधन शैली ('मन' को संबोधन)।
  • रस: करुण रस (अतीत के दुख और वर्तमान की पीड़ा के कारण), शांत रस (जीवन यथार्थ को अपनाने के उपदेश के कारण)।
  • छंद: तुकांत मुक्त छंद।
  • अलंकार:
    • अनुप्रास: दुख दूना, सुरंग सुधियाँ सुहावनी, शरद-रात।
    • पुनरुक्ति प्रकाश: 'छाया मत छूना, मन, होगा दुख दूना' पंक्ति की आवृत्ति।
    • रूपक: प्रभुता का शरण-बिंब (बड़प्पन रूपी आश्रय का प्रतिबिंब)।
    • मानवीकरण: (अप्रत्यक्ष रूप से) यादों का छूना, छवियों की चित्र-गंध फैलना।
    • विरोधाभास: 'दुविधा-हत साहस', 'देह सुखी हो पर मन के दुख का अंत नहीं', 'हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है'।
    • दृष्टांत: मृगतृष्णा।
  • बिंब: कविता में दृश्य बिंब (छवियों की चित्र-गंध, चाँदनी, कृष्णा रात) और स्पर्श बिंब (छुअन) का सुंदर प्रयोग है।

कविता का संदेश:
यह कविता हमें अतीत की सुखद या दुखद यादों में उलझे रहने के बजाय वर्तमान की कठोर सच्चाइयों का सामना करने और भविष्य की ओर सकारात्मक दृष्टि से देखने की प्रेरणा देती है। जीवन में जो प्राप्त नहीं हुआ, उसका शोक करने के बजाय जो वर्तमान में है, उसे स्वीकार कर आगे बढ़ना चाहिए।


अभ्यास हेतु बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs):

  1. 'छाया मत छूना' कविता के कवि कौन हैं?
    (क) सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'
    (ख) गिरिजाकुमार माथुर
    (ग) मंगलेश डबराल
    (घ) ऋतुराज

  2. कविता में 'छाया' शब्द का प्रयोग किस संदर्भ में हुआ है?
    (क) परछाई
    (ख) अँधेरा
    (ग) अतीत की स्मृतियाँ
    (घ) भ्रम

  3. कवि के अनुसार अतीत की स्मृतियों को याद करने से क्या होता है?
    (क) सुख मिलता है
    (ख) दुख कम हो जाता है
    (ग) दुख दुगुना हो जाता है
    (घ) मन शांत हो जाता है

  4. 'दुख दूना' होने का क्या कारण है?
    (क) भविष्य की चिंता
    (ख) वर्तमान का कठिन यथार्थ
    (ग) अतीत के सुखों को याद करके वर्तमान से उनकी तुलना करना
    (घ) धन-दौलत का अभाव

  5. कविता में 'मृगतृष्णा' किसे कहा गया है?
    (क) रेगिस्तान में पानी का भ्रम
    (ख) प्रभुता या बड़प्पन का एहसास
    (ग) अतीत की यादें
    (घ) भविष्य की कल्पना

  6. कवि मनुष्य को किसका पूजन करने के लिए कहते हैं?
    (क) ईश्वर का
    (ख) धन-वैभव का
    (ग) कठिन यथार्थ का
    (घ) अतीत की यादों का

  7. 'हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है' पंक्ति का आशय है-
    (क) हर चाँदनी रात के बाद काली रात आती है
    (ख) हर सुख के साथ दुख जुड़ा होता है
    (ग) जीवन में केवल दुख ही दुख है
    (घ) चाँदनी रातें बहुत कम होती हैं

  8. 'रस-बसंत' किसका प्रतीक है?
    (क) फूलों के रस का
    (ख) बसंत ऋतु का
    (ग) जीवन के अनुकूल समय या सुखों का
    (घ) पतझड़ का

  9. 'दुविधा-हत साहस' का क्या अर्थ है?
    (क) बहुत अधिक साहस
    (ख) साहस का अभाव
    (ग) दुविधा के कारण साहस का कमजोर पड़ जाना
    (घ) बिना सोचे-समझे किया गया साहस

  10. कविता का मुख्य संदेश क्या है?
    (क) अतीत को कभी नहीं भूलना चाहिए
    (ख) केवल भविष्य के सपने देखने चाहिए
    (ग) अतीत की यादों में उलझने के बजाय वर्तमान के यथार्थ को स्वीकार कर भविष्य का वरण करना चाहिए
    (घ) जीवन में यश और वैभव ही सब कुछ है

उत्तरमाला:

  1. (ख)
  2. (ग)
  3. (ग)
  4. (ग)
  5. (ख)
  6. (ग)
  7. (ख)
  8. (ग)
  9. (ग)
  10. (ग)

मुझे उम्मीद है कि ये नोट्स और प्रश्न आपकी परीक्षा की तैयारी में सहायक होंगे। इस कविता के मूल भाव को आत्मसात करने का प्रयास करें। शुभकामनाएँ!

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