Class 10 Hindi Notes Chapter 8 (ऋतुराज: कन्यादान) – Kshitij-II Book

चलिए, आज हम क्षितिज-भाग 2 के आठवें पाठ, ऋतुराज जी द्वारा रचित 'कन्यादान' कविता का गहन अध्ययन करेंगे। यह कविता सरकारी परीक्षाओं की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह समकालीन सामाजिक यथार्थ और स्त्री विमर्श का एक सशक्त उदाहरण प्रस्तुत करती है।
पाठ 8: ऋतुराज - कन्यादान (विस्तृत नोट्स)
कवि परिचय:
- कवि: ऋतुराज
- जन्म: सन् 1940 में भरतपुर (राजस्थान) में।
- शिक्षा: राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर से अंग्रेज़ी में एम.ए.।
- कार्यक्षेत्र: लगभग चालीस वर्षों तक अंग्रेज़ी साहित्य का अध्यापन। अब सेवानिवृत्त होकर जयपुर में रहते हैं।
- प्रमुख रचनाएँ: 'पुल पर पानी', 'एक मरणधर्मा और अन्य', 'सूरत निरत', 'लीला मुखारविंद' (कविता संग्रह)।
- पुरस्कार: सोमदत्त परिमल सम्मान, मीरा पुरस्कार, पहल सम्मान, बिहारी पुरस्कार आदि।
- काव्यगत विशेषताएँ: ऋतुराज जी अपनी कविताओं में सामाजिक सरोकारों, उपेक्षितों की चिंताओं और जीवन के यथार्थ को स्थान देते हैं। उनकी भाषा सरल, सहज और लोक जीवन से जुड़ी हुई है। वे अपने आस-पास की रोज़मर्रा की घटनाओं और अनुभवों को कविता का विषय बनाते हैं।
कविता का सार:
'कन्यादान' कविता में कवि ऋतुराज ने विवाह के समय अपनी बेटी को विदा करते हुए एक माँ के अंतर्मन की पीड़ा और उसकी सीख को व्यक्त किया है। यह कविता परंपरागत 'कन्यादान' की रस्म से जुड़ी हुई तो है, लेकिन यह उस परंपरागत आदर्शवादी सोच से अलग हटकर है जहाँ बेटी को केवल दान की वस्तु मान लिया जाता है। यहाँ माँ अपनी बेटी को स्त्री जीवन के यथार्थ से परिचित कराती है और उसे भविष्य में आने वाली कठिनाइयों के प्रति सचेत करती है। वह उसे केवल भोली-भाली, कमजोर लड़की बने रहने की बजाय एक सजग और सशक्त इंसान बनने की प्रेरणा देती है।
विस्तृत व्याख्या एवं महत्वपूर्ण बिंदु:
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"कितना प्रामाणिक था उसका दुख / लड़की को दान में देते वक्त / जैसे वही उसकी अंतिम पूँजी हो"
- प्रामाणिक दुख: माँ का दुख दिखावटी या बनावटी नहीं, बल्कि वास्तविक और गहरा है। यह हर उस माँ का दुख है जो अपनी बेटी को विदा करती है, जिसे उसने इतने लाड़-प्यार से पाला है।
- अंतिम पूँजी: माँ के लिए बेटी उसके जीवन भर की कमाई, सबसे मूल्यवान संपत्ति की तरह है। उसके जाने से माँ को लगता है जैसे उसका सब कुछ चला गया हो। बेटी माँ के सुख-दुख की साथी होती है, उसके सबसे करीब होती है।
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"लड़की अभी सयानी नहीं थी / अभी इतनी भोली सरल थी / कि उसे सुख का आभास तो होता था / लेकिन दुख बाँचना नहीं आता था / पाठिका थी वह धुँधले प्रकाश की / कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की"
- सयानी नहीं थी: इसका अर्थ उम्र में बड़ी होने से नहीं, बल्कि दुनियादारी की समझ, छल-कपट और जीवन की कठोर वास्तविकताओं से अपरिचित होने से है। वह अभी भी भोली और सरल है।
- सुख का आभास, दुख बाँचना नहीं आता था: उसने अभी तक जीवन के मधुर और सुखद पक्ष को ही देखा और अनुभव किया है। जीवन के दुखों, कष्टों और जटिलताओं को पढ़ना या समझना उसे अभी नहीं आता।
- धुँधले प्रकाश की पाठिका: यह एक लाक्षणिक प्रयोग है। इसका अर्थ है कि उसे जीवन का अस्पष्ट, अधूरा और केवल सुखद ज्ञान है। वास्तविक जीवन की कठिनाइयों और अंधेरे पक्ष से वह अनभिज्ञ है।
- कुछ तुकों और लयबद्ध पंक्तियों की: जैसे कोई सरल कविता या गीत आसानी से समझ आ जाता है, वैसे ही बेटी ने जीवन के सरल और सहज रूपों को ही जाना है, उसकी गहराई और जटिलता को नहीं।
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"माँ ने कहा पानी में झाँककर / अपने चेहरे पर मत रीझना / आग रोटियाँ सेंकने के लिए है / जलने के लिए नहीं / वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह / बंधन हैं स्त्री जीवन के"
- पानी में झाँककर चेहरे पर मत रीझना: माँ बेटी को उसकी सुंदरता पर इतराने या मोहित होने से मना करती है। वह सचेत करती है कि केवल बाहरी सुंदरता ही सब कुछ नहीं होती और न ही उसे अपनी सुंदरता के मोह में फँसना चाहिए, क्योंकि यह क्षणभंगुर है और कई बार शोषण का कारण भी बनती है।
- आग रोटियाँ सेंकने के लिए है, जलने के लिए नहीं: यह पंक्ति बहुत महत्वपूर्ण है और गहरे सामाजिक यथार्थ (दहेज प्रताड़ना, आत्महत्या/हत्या) की ओर संकेत करती है। माँ कहती है कि आग का उपयोग रचनात्मक कार्यों (जैसे रोटी सेंकना) के लिए होना चाहिए, न कि खुद को जलाने या किसी के द्वारा जलाए जाने के लिए। यह अत्याचार के विरुद्ध खड़े होने का संकेत है।
- वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह बंधन हैं: माँ कहती है कि सुन्दर कपड़े और गहने ऊपरी तौर पर भले ही आकर्षण पैदा करें, लेकिन वे शब्दों के भ्रम जाल की तरह हैं जो स्त्री को प्रशंसा के भ्रम में बांधकर उसकी स्वतंत्रता छीन लेते हैं। इन्हें स्त्री जीवन के बंधन के रूप में देखा गया है, जो उसकी प्रगति में बाधक बन सकते हैं।
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"माँ ने कहा लड़की होना / पर लड़की जैसी दिखाई मत देना"
- लड़की होना: माँ चाहती है कि उसकी बेटी में लड़कियों वाले स्वाभाविक गुण – सरलता, सहजता, कोमलता, स्नेह – बने रहें।
- लड़की जैसी दिखाई मत देना: यह इस कविता की सबसे सशक्त पंक्ति है। यहाँ 'लड़की जैसी' होने से तात्पर्य उस छवि से है जो समाज ने लड़की के लिए गढ़ दी है – भोली, कमजोर, दब्बू, अत्याचार सहने वाली, हर बात मान लेने वाली। माँ अपनी बेटी को इस पारंपरिक, कमजोर छवि से बाहर निकलने की सलाह देती है। वह उसे कहती है कि अपने स्वाभाविक गुण बनाए रखना, लेकिन इतनी कमजोर और निरीह मत दिखना कि लोग तुम्हारा शोषण कर सकें। सजग रहना, अपने अधिकारों के लिए लड़ना और अन्याय का प्रतिकार करना।
काव्य-सौंदर्य / शिल्प-सौंदर्य:
- भाषा: सरल, सहज, खड़ी बोली हिन्दी। आम बोलचाल के शब्दों का प्रयोग।
- शैली: उपदेशात्मक, संवादात्मक (माँ की सीख)।
- रस: करुण रस (माँ के दुख में), शांत रस (सीख देते समय)।
- अलंकार:
- उपमा: "शाब्दिक भ्रमों की तरह" (वस्त्र और आभूषण की तुलना शाब्दिक भ्रमों से)।
- रूपक (लाक्षणिक प्रयोग): "धुँधले प्रकाश की पाठिका", "अंतिम पूँजी"।
- प्रतीक: 'आग' रचनात्मकता और विनाश दोनों का प्रतीक। 'वस्त्र और आभूषण' बंधन और भ्रम के प्रतीक।
- बिंब: दृश्य बिंब (पानी में झाँकना, आग रोटियाँ सेंकना)।
- शब्द शक्ति: लक्षणा और व्यंजना का सुंदर प्रयोग (जैसे 'दुख बाँचना नहीं आता था', 'लड़की जैसी दिखाई मत देना')।
परीक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण:
- यह कविता आधुनिक संदर्भ में स्त्री-शिक्षा और सशक्तिकरण के महत्व को दर्शाती है।
- माँ की सीखें आज भी प्रासंगिक हैं।
- 'लड़की होना पर लड़की जैसी दिखाई मत देना' पंक्ति का आशय स्पष्ट करने वाले प्रश्न अक्सर पूछे जाते हैं।
- कविता में प्रयुक्त प्रतीकों और लाक्षणिक प्रयोगों का अर्थ समझना आवश्यक है।
- कवि ऋतुराज की काव्यगत विशेषताओं के संदर्भ में भी यह कविता महत्वपूर्ण है।
अभ्यास हेतु बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs):
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'कन्यादान' कविता के कवि कौन हैं?
(क) सूरदास
(ख) तुलसीदास
(ग) ऋतुराज
(घ) जयशंकर प्रसाद -
कविता में माँ का दुःख कैसा बताया गया है?
(क) काल्पनिक
(ख) प्रामाणिक
(ग) बनावटी
(घ) सामान्य -
माँ अपनी बेटी को अपनी क्या मानती है?
(क) बोझ
(ख) पराया धन
(ग) अंतिम पूँजी
(घ) जिम्मेदारी -
"लड़की अभी सयानी नहीं थी" - इस पंक्ति का क्या आशय है?
(क) लड़की की उम्र कम थी
(ख) लड़की शारीरिक रूप से अविकसित थी
(ग) लड़की को दुनियादारी और छल-कपट की समझ नहीं थी
(घ) लड़की पढ़ी-लिखी नहीं थी -
बेटी को जीवन के किस पक्ष का ज्ञान नहीं था?
(क) सुख का
(ख) प्रेम का
(ग) दुख और कठिनाइयों का
(घ) संगीत का -
माँ ने बेटी को किस पर न रीझने की सलाह दी?
(क) धन-दौलत पर
(ख) पति के प्रेम पर
(ग) अपनी सुंदरता पर
(घ) ससुराल के ऐश्वर्य पर -
कविता में 'आग' का प्रयोग किस संदर्भ में हुआ है?
(क) केवल रोटियाँ सेंकने के लिए
(ख) केवल जलने या जलाने के लिए
(ग) रोटियाँ सेंकने और अत्याचार (जलने/जलाने) दोनों के लिए
(घ) प्रकाश करने के लिए -
माँ ने वस्त्र और आभूषणों को किसके समान बताया है?
(क) जीवन के सौंदर्य के समान
(ख) शाब्दिक भ्रमों और बंधन के समान
(ग) स्त्री की पहचान के समान
(घ) सुख-सुविधा के समान -
"पाठिका थी वह धुँधले प्रकाश की" - इस पंक्ति में 'धुँधले प्रकाश' किसका प्रतीक है?
(क) कम रोशनी का
(ख) सुबह के समय का
(ग) जीवन के अस्पष्ट और अधूरे ज्ञान का
(घ) आँखों की कमज़ोरी का -
"लड़की होना पर लड़की जैसी दिखाई मत देना" - इस पंक्ति में माँ बेटी को क्या बनने की सलाह दे रही है?
(क) लड़कों जैसा व्यवहार करने की
(ख) अपनी पहचान छुपाने की
(ग) कोमल और भावुक न बनने की
(घ) दुर्बल और अत्याचार सहने वाली न बनकर सजग और सशक्त बनने की
उत्तरमाला:
- (ग), 2. (ख), 3. (ग), 4. (ग), 5. (ग), 6. (ग), 7. (ग), 8. (ख), 9. (ग), 10. (घ)
इन नोट्स और प्रश्नों का अच्छे से अध्ययन करें। यह कविता भाव और शिल्प दोनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। शुभकामनाएँ!