Class 10 Hindi Notes Chapter 9 (रविंद्र नाथ ठाकुर: आत्मत्राण) – Sparsh Book

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नमस्ते विद्यार्थियो। आज हम स्पर्श भाग-2 के पाठ 9, 'आत्मत्राण' का अध्ययन करेंगे, जिसके रचयिता विश्वकवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर हैं। यह कविता केवल परीक्षा की दृष्टि से ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि जीवन जीने का एक अनूठा दृष्टिकोण भी प्रस्तुत करती है। आइए, इस पाठ के विस्तृत नोट्स और कुछ महत्वपूर्ण बहुविकल्पीय प्रश्नों पर ध्यान केंद्रित करें जो आपकी सरकारी परीक्षाओं की तैयारी में सहायक होंगे।

पाठ 9: आत्मत्राण
कवि: रवीन्द्रनाथ ठाकुर (मूल बांग्ला से अनुवाद: आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी)

कवि परिचय:

  • रवीन्द्रनाथ ठाकुर (टैगोर): (1861-1941) बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नयी जान फूँकने वाले युगद्रष्टा कवि, साहित्यकार, दार्शनिक और चित्रकार थे।
  • नोबेल पुरस्कार: वे एकमात्र भारतीय कवि हैं जिन्हें उनकी रचना 'गीतांजलि' के लिए 1913 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला।
  • राष्ट्रगान: भारत और बांग्लादेश के राष्ट्रगान उन्हीं की रचनाएँ हैं।
  • प्रमुख रचनाएँ: गीतांजलि, पूरबी प्रवाहिनी, शिशु भोलानाथ, महुआ, वनवाणी, चोखेरबाली, घरे बाइरे आदि।
  • शांतिनिकेतन: उन्होंने शिक्षा के पारंपरिक ढाँचे से अलग शांतिनिकेतन की स्थापना की।

कविता का सार:

'आत्मत्राण' का शाब्दिक अर्थ है 'आत्मा का त्राण' अर्थात् भय से मुक्ति, आत्मा की रक्षा। यह कविता अन्य प्रार्थना गीतों से भिन्न है। इसमें कवि ईश्वर से दुःख, दर्द, कष्टों से छुटकारा दिलाने की प्रार्थना नहीं करते, बल्कि वे चाहते हैं कि ईश्वर उन्हें उन दुःखों को झेलने की शक्ति प्रदान करें। कवि विपत्तियों से बचने की बजाय उनका सामना करने का साहस ईश्वर से माँगते हैं। वे ईश्वर से आत्मबल, निर्भयता और दृढ़ इच्छाशक्ति की कामना करते हैं ताकि वे जीवन की हर कठिन परिस्थिति में भी अपना संयम और विश्वास बनाए रख सकें।

विस्तृत व्याख्या एवं मुख्य बिंदु:

  1. दुःख से मुक्ति नहीं, सहने की शक्ति: कवि ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि हे प्रभु! आप मुझे विपदाओं से बचाएँ, यह मेरी प्रार्थना नहीं है, बल्कि मैं केवल इतना चाहता हूँ कि आप मुझे उन विपदाओं का सामना करने की शक्ति दें। (विपदाओं से मुझे बचाओ, यह मेरी प्रार्थना नहीं / केवल इतना हो करुणामय / कभी न विपदा में पाऊँ भय।)
  2. दुःख में भी मन का क्षोभ न हो: कवि कहते हैं कि दुःख और ताप से व्यथित मेरे चित्त को आप सांत्वना न दें तो भी कोई बात नहीं, पर इतनी कृपा करना कि मैं दुःख में भी हार न मानूँ, मेरा बल-पौरुष कम न हो। (दुःख-ताप से व्यथित चित्त को न दो सांत्वना नहीं सही / पर इतना होवे करुणामय / दुःख को मैं कर सकूँ सदा जय।)
  3. सहायक न मिलने पर भी आत्मबल बना रहे: यदि कोई मुसीबत में उनकी सहायता न करे, तो भी कवि का आत्मबल कमजोर नहीं पड़ना चाहिए। वे स्वयं अपने बल पर मुसीबतों का सामना करना चाहते हैं। (कोई कहीं सहायक न मिले / तो अपना बल-पौरुष न हिले।)
  4. हानि और वंचना में भी ईश्वर पर संदेह न हो: कवि कहते हैं कि यदि उन्हें संसार में हानि उठानी पड़े, धोखा खाना पड़े, तो भी उनके मन में ईश्वर के प्रति संदेह या अविश्वास उत्पन्न न हो। वे हर परिस्थिति में ईश्वर पर अपनी आस्था बनाए रखना चाहते हैं। (हानि उठानी पड़े जगत् में लाभ अगर वंचना रही / तो भी मन में ना मानूँ क्षय।)
  5. सुख के दिनों में भी ईश्वर का स्मरण: कवि केवल दुःख में ही ईश्वर को याद नहीं करना चाहते, बल्कि सुख के दिनों में भी वे नतमस्तक होकर ईश्वर का स्मरण करना चाहते हैं। (मेरा त्राण करो अनुदिन तुम यह मेरी प्रार्थना नहीं / बस इतना होवे करुणामय / तरने की हो शक्ति अनामय। मेरा भार अगर लघु करके न दो सांत्वना नहीं सही। / केवल इतना रखना अनुनय / वहन कर सकूँ इसको निर्भय। नत शिर होकर सुख के दिन में / तव मुख पहचानूँ छिन-छिन में।)
  6. दुःख की रात्रि में भी आस्था: जब दुःख रूपी रात्रि चारों ओर से उन्हें घेर ले और पूरी दुनिया उन पर संदेह करे या धोखा दे, तब भी वे ईश्वर पर संदेह न करें, ऐसी शक्ति वे माँगते हैं। (दुःख-रात्रि में करे वंचना मेरी जिस दिन निखिल मही / उस दिन ऐसा हो करुणामय / तुम पर करूँ नहीं कुछ संशय।)

कविता का संदेश:

  • आत्मनिर्भरता: मनुष्य को अपनी समस्याओं का समाधान स्वयं ढूँढने का प्रयास करना चाहिए।
  • साहस और निर्भयता: विपत्तियों से डरने की बजाय उनका साहसपूर्वक सामना करना चाहिए।
  • ईश्वर पर अटूट विश्वास: ईश्वर से दुःख दूर करने की बजाय, दुःख सहने की शक्ति माँगनी चाहिए और हर परिस्थिति में उन पर विश्वास रखना चाहिए।
  • कर्मशीलता: केवल प्रार्थना पर निर्भर न रहकर कर्म करने और संघर्ष करने की प्रेरणा।
  • सकारात्मक दृष्टिकोण: हानि, दुःख और धोखे को भी जीवन का हिस्सा मानकर सकारात्मक बने रहना।

भाषा-शैली:

  • यह कविता मूल रूप से बांग्ला में लिखी गई है और आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा इसका हिंदी अनुवाद किया गया है।
  • भाषा सरल, सहज और प्रवाहमयी है।
  • तत्सम शब्दों (विपदा, करुणामय, व्यथित, चित्त, क्षय, निखिल, संशय आदि) का प्रयोग है।
  • शैली प्रार्थनापरक और आत्मनिवेदन की है।
  • कविता में एक गहरी दार्शनिकता छिपी है।

परीक्षा की दृष्टि से महत्व:

यह कविता जीवन के प्रति एक व्यावहारिक और मजबूत दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है। परीक्षा में कवि के परिचय, कविता के मूल भाव, विशिष्ट पंक्तियों की व्याख्या और कविता के संदेश से संबंधित प्रश्न पूछे जा सकते हैं। यह प्रार्थना की पारंपरिक अवधारणा से हटकर है, इसलिए इसका महत्व और भी बढ़ जाता है।


अभ्यास हेतु बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs):

प्रश्न 1: 'आत्मत्राण' कविता के रचयिता कौन हैं?
(क) सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'
(ख) महादेवी वर्मा
(ग) रवीन्द्रनाथ ठाकुर
(घ) सुमित्रानंदन पंत

प्रश्न 2: 'आत्मत्राण' का क्या अर्थ है?
(क) आत्मा का परमात्मा से मिलन
(ख) आत्मा का भय से छुटकारा या बचाव
(ग) आत्मा की शुद्धि
(घ) आत्मा का अंत

प्रश्न 3: कवि ईश्वर से क्या प्रार्थना नहीं करते हैं?
(क) विपदाओं से बचाने की
(ख) दुःख सहने की शक्ति देने की
(ग) आत्मबल बनाए रखने की
(घ) ईश्वर पर संदेह न करने की शक्ति देने की

प्रश्न 4: कवि दुःख में ईश्वर से क्या चाहते हैं?
(क) सांत्वना
(ख) दुःख को दूर करना
(ग) दुःख पर विजय पाने की शक्ति
(घ) सहायक भेजना

प्रश्न 5: 'अपना बल-पौरुष न हिले' - पंक्ति का क्या आशय है?
(क) शारीरिक बल कम न हो
(ख) मित्रों का साथ न छूटे
(ग) धन-संपत्ति नष्ट न हो
(घ) आत्मबल और पराक्रम बना रहे

प्रश्न 6: कवि किस स्थिति में भी ईश्वर पर संदेह नहीं करना चाहते?
(क) जब सब लोग प्रशंसा करें
(ख) जब बहुत सुख मिले
(ग) जब सारी दुनिया धोखा दे
(घ) जब मित्र सहायता करें

प्रश्न 7: कवि सुख के दिनों में ईश्वर को किस प्रकार याद रखना चाहते हैं?
(क) केवल मन ही मन
(ख) जोर-जोर से पुकार कर
(ग) नतमस्तक होकर क्षण-क्षण
(घ) दूसरों को बताकर

प्रश्न 8: 'आत्मत्राण' कविता का हिंदी अनुवाद किसने किया है?
(क) रामधारी सिंह 'दिनकर'
(ख) आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी
(ग) महादेवी वर्मा
(घ) मैथिलीशरण गुप्त

प्रश्न 9: कवि ईश्वर को किस रूप में संबोधित करते हैं?
(क) दयामय
(ख) करुणामय
(ग) कृपालु
(घ) सर्वशक्तिमान

प्रश्न 10: कविता का मूल संदेश क्या है?
(क) ईश्वर सब दुःख हर लेते हैं।
(ख) मनुष्य को विपत्तियों से घबराना नहीं चाहिए और आत्मबल बनाए रखना चाहिए।
(ग) प्रार्थना करने से सब ठीक हो जाता है।
(घ) संसार दुखों से भरा है।


उत्तरमाला:

  1. (ग) रवीन्द्रनाथ ठाकुर
  2. (ख) आत्मा का भय से छुटकारा या बचाव
  3. (क) विपदाओं से बचाने की
  4. (ग) दुःख पर विजय पाने की शक्ति
  5. (घ) आत्मबल और पराक्रम बना रहे
  6. (ग) जब सारी दुनिया धोखा दे
  7. (ग) नतमस्तक होकर क्षण-क्षण
  8. (ख) आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी
  9. (ख) करुणामय
  10. (ख) मनुष्य को विपत्तियों से घबराना नहीं चाहिए और आत्मबल बनाए रखना चाहिए।

मुझे उम्मीद है कि ये नोट्स और प्रश्न आपकी परीक्षा की तैयारी में उपयोगी सिद्ध होंगे। इस कविता को केवल याद करने के बजाय इसके गहरे अर्थ को समझने का प्रयास करें। शुभकामनाएँ!

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