Class 11 Accountancy Notes Chapter 2 (लेखांकन के सैद्धांतिक आधार) – Lekhashashtra-I Book

नमस्ते विद्यार्थियो!
आज हम लेखांकन के एक बहुत ही महत्वपूर्ण अध्याय - 'लेखांकन के सैद्धांतिक आधार' (Theoretical Basis of Accounting) का अध्ययन करेंगे। यह अध्याय लेखांकन की नींव है। जिस तरह किसी इमारत के लिए मजबूत नींव जरूरी है, उसी तरह लेखांकन को सही ढंग से समझने और करने के लिए इन सिद्धांतों, अवधारणाओं और मान्यताओं को समझना अनिवार्य है। सरकारी परीक्षाओं की दृष्टि से भी यह अध्याय अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे अक्सर प्रश्न पूछे जाते हैं।
चलिए, विस्तार से इसके मुख्य बिंदुओं को समझते हैं:
लेखांकन के सैद्धांतिक आधार (Theoretical Basis of Accounting)
लेखांकन सूचनाओं में एकरूपता (Uniformity) और तुलनीयता (Comparability) लाने के लिए कुछ सिद्धांतों, नियमों, अवधारणाओं और परिपाटियों (Conventions) का पालन किया जाता है। इन्हें सामूहिक रूप से सामान्यतः मान्य लेखांकन सिद्धांत (Generally Accepted Accounting Principles - GAAP) कहा जाता है। ये वे आधारभूत नियम हैं जो लेखांकन व्यवहार का मार्गदर्शन करते हैं।
GAAP की प्रकृति (Nature of GAAP):
- मानव निर्मित (Man-made): ये सिद्धांत प्रयोगशाला में सिद्ध नहीं किए गए हैं, बल्कि अनुभव, तर्क और उपयोगिता के आधार पर विकसित हुए हैं।
- लचीले (Flexible): ये कठोर नियम नहीं हैं। व्यावसायिक वातावरण, कानून और सामाजिक आवश्यकताओं में परिवर्तन के साथ इनमें भी बदलाव होता रहता है।
- सामान्य स्वीकृति (Generally Accepted): इनकी वैधता इनकी सामान्य स्वीकृति पर निर्भर करती है। इन्हें लेखाकारों और संबंधित पक्षों द्वारा व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है।
लेखांकन सिद्धांतों की आवश्यकता (Need for Accounting Principles):
- वित्तीय विवरणों में एकरूपता लाना।
- विभिन्न अवधियों या विभिन्न फर्मों के वित्तीय विवरणों की तुलना को संभव बनाना।
- वित्तीय विवरणों को उपयोगकर्ताओं के लिए अधिक समझने योग्य और विश्वसनीय बनाना।
आधारभूत लेखांकन मान्यताएँ (Fundamental Accounting Assumptions) - AS-1 के अनुसार
ये वे मान्यताएँ हैं जिन्हें वित्तीय विवरण तैयार करते समय मान लिया जाता है। यदि इनका पालन नहीं किया गया है, तो इसका स्पष्ट उल्लेख करना आवश्यक होता है।
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सतत् व्यापार की अवधारणा (Going Concern Concept): - अर्थ: यह माना जाता है कि व्यवसाय निकट भविष्य में चलता रहेगा और इसे बंद करने या इसके परिचालन को महत्वपूर्ण रूप से कम करने का कोई इरादा नहीं है।
- महत्व: इसी अवधारणा के कारण संपत्तियों को स्थायी (Fixed) और चालू (Current) में वर्गीकृत किया जाता है तथा स्थायी संपत्तियों पर ह्रास (Depreciation) लगाया जाता है। लेनदारों और देनदारों को भी दीर्घकालीन और अल्पकालीन में बांटा जाता है।
 
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संगति/एकरूपता की अवधारणा (Consistency Concept): - अर्थ: एक बार लेखांकन नीतियों और पद्धतियों का चयन करने के बाद, उन्हें वर्ष-दर-वर्ष लगातार अपनाना चाहिए।
- महत्व: इससे वित्तीय विवरणों की अंतरा-अवधि (Intra-period) और अंतरा-फर्म (Inter-firm) तुलना संभव हो पाती है। यदि किसी कारणवश (जैसे कानून में बदलाव, बेहतर प्रस्तुति के लिए) लेखांकन नीति में परिवर्तन आवश्यक हो, तो इसका पूर्ण प्रकटीकरण (Full Disclosure) और वित्तीय प्रभाव बताना अनिवार्य है।
 
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उपार्जन अवधारणा (Accrual Concept): - अर्थ: आय (Revenue) को तब पहचाना जाता है जब वह अर्जित (Earned) हो जाती है (भले ही नकदी प्राप्त हुई हो या नहीं), और व्यय (Expense) को तब पहचाना जाता है जब वह देय (Incurred) हो जाता है (भले ही नकदी का भुगतान हुआ हो या नहीं)।
- महत्व: यह लेखांकन की सबसे महत्वपूर्ण अवधारणाओं में से एक है। यह 'मिलान अवधारणा' का आधार है और व्यवसाय के सही लाभ-हानि तथा वित्तीय स्थिति को दर्शाने में मदद करती है। यह रोकड़ आधार (Cash Basis) से भिन्न है, जहाँ आय-व्यय को नकदी प्राप्ति या भुगतान के समय ही दर्ज किया जाता है।
 
अन्य महत्वपूर्ण लेखांकन सिद्धांत (Other Important Accounting Principles):
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व्यावसायिक इकाई/पृथक अस्तित्व की अवधारणा (Business Entity Concept): - अर्थ: व्यवसाय को उसके स्वामी (Owner) से एक पृथक और स्वतंत्र इकाई माना जाता है। लेखांकन केवल व्यवसाय के लेन-देनों का होता है, स्वामी के व्यक्तिगत लेन-देनों का नहीं।
- महत्व: इसी कारण स्वामी द्वारा लगाई गई पूंजी (Capital) को व्यवसाय के लिए दायित्व (Liability) माना जाता है और स्वामी द्वारा निजी प्रयोग के लिए निकाली गई राशि (Drawings) को पूंजी में से घटाया जाता है।
 
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मुद्रा मापन अवधारणा (Money Measurement Concept): - अर्थ: लेखांकन में केवल उन्हीं लेन-देनों और घटनाओं को दर्ज किया जाता है जिन्हें मुद्रा (जैसे रुपये) में मापा जा सकता है।
- महत्व: यह लेखांकन को एक समान मापन इकाई प्रदान करता है।
- सीमा: यह गुणात्मक पहलुओं (जैसे प्रबंधन की योग्यता, कर्मचारियों का मनोबल) को अनदेखा करता है, जो व्यवसाय के लिए महत्वपूर्ण हो सकते हैं। साथ ही, यह मुद्रा के मूल्य में होने वाले परिवर्तनों (जैसे मुद्रास्फीति) को ध्यान में नहीं रखता।
 
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लेखांकन अवधि अवधारणा (Accounting Period Concept): - अर्थ: व्यवसाय के अनिश्चित जीवन काल को छोटे-छोटे अंतरालों में विभाजित किया जाता है, जिन्हें लेखांकन अवधि (सामान्यतः एक वर्ष) कहते हैं, ताकि नियमित अंतराल पर व्यवसाय के परिणामों (लाभ-हानि) और वित्तीय स्थिति का पता लगाया जा सके।
- महत्व: यह उपयोगकर्ताओं को समय पर सूचना प्रदान करने में मदद करता है। भारत में यह अवधि सामान्यतः 1 अप्रैल से 31 मार्च होती है।
 
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लागत अवधारणा / ऐतिहासिक लागत अवधारणा (Cost Concept / Historical Cost Concept): - अर्थ: संपत्तियों को उनके क्रय मूल्य (Purchase Price) पर दर्ज किया जाता है, जिसमें प्राप्ति, स्थापना आदि से संबंधित सभी आवश्यक खर्चे शामिल होते हैं। इस लागत को ही भविष्य में ह्रास आदि गणनाओं का आधार बनाया जाता है।
- महत्व: यह लागत सत्यापन योग्य (Verifiable) और वस्तुनिष्ठ (Objective) होती है।
- सीमा: यह संपत्ति के वर्तमान बाजार मूल्य को नहीं दर्शाता है।
 
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द्विपक्षीय अवधारणा (Dual Aspect Concept / Duality Principle): - अर्थ: प्रत्येक लेन-देन के दो पहलू होते हैं - एक डेबिट (Debit) और एक क्रेडिट (Credit)। ये दोनों पहलू हमेशा बराबर होते हैं।
- महत्व: यह दोहरी प्रविष्टि प्रणाली (Double Entry System) का आधार है। इसी अवधारणा के कारण लेखांकन समीकरण (Accounting Equation) हमेशा संतुलित रहता है:
 संपत्तियाँ (Assets) = दायित्व (Liabilities) + पूँजी (Capital)
 
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आय निर्धारण/वसूली अवधारणा (Revenue Recognition Concept): - अर्थ: आगम (Revenue) को उस अवधि में आय माना जाता है जब वह वसूल करने योग्य हो जाती है, अर्थात जब माल की बिक्री हो जाती है या सेवा प्रदान कर दी जाती है। स्वामित्व का हस्तांतरण महत्वपूर्ण है।
- महत्व: यह सही अवधि में आय की पहचान सुनिश्चित करता है।
 
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मिलान अवधारणा (Matching Concept): - अर्थ: किसी लेखांकन अवधि का सही लाभ-हानि ज्ञात करने के लिए, उस अवधि की आय (Revenues) का मिलान उसी अवधि के व्ययों (Expenses) से किया जाना चाहिए।
- महत्व: यह उपार्जन अवधारणा पर आधारित है और सही लाभ निर्धारण के लिए आवश्यक है। इसी कारण अदत्त व्यय (Outstanding Expenses) और पूर्वदत्त व्यय (Prepaid Expenses) का समायोजन किया जाता है।
 
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पूर्ण प्रकटीकरण अवधारणा (Full Disclosure Concept): - अर्थ: वित्तीय विवरणों में व्यवसाय से संबंधित सभी महत्वपूर्ण और प्रासंगिक सूचनाओं का पूर्ण प्रकटीकरण होना चाहिए जो उपयोगकर्ताओं के निर्णय को प्रभावित कर सकती हों। यह प्रकटीकरण वित्तीय विवरणों के मुख्य भाग में या नोट्स टू अकाउंट्स (Notes to Accounts) के रूप में हो सकता है।
- महत्व: यह पारदर्शिता (Transparency) सुनिश्चित करता है।
 
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सारता/महत्वपूर्णता की अवधारणा (Materiality Concept): - अर्थ: लेखांकन में केवल उन्हीं तथ्यों और मदों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जो महत्वपूर्ण (Material) हों। कोई मद महत्वपूर्ण तब मानी जाती है जब उसकी जानकारी उपयोगकर्ता के निर्णय को प्रभावित कर सकती हो। यह पूर्ण प्रकटीकरण अवधारणा का अपवाद है।
- महत्व: यह अनावश्यक विवरणों से बचाता है और महत्वपूर्ण सूचनाओं पर ध्यान केंद्रित करता है। उदाहरण: छोटे कैलकुलेटर या स्टेपलर को व्यय मानना, न कि संपत्ति।
 
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रूढ़िवादिता/विवेकशीलता अवधारणा (Prudence / Conservatism Concept): - अर्थ: इस अवधारणा के अनुसार, भविष्य में होने वाले संभावित लाभों को तब तक दर्ज नहीं करना चाहिए जब तक वे वास्तव में प्राप्त न हो जाएं, परन्तु सभी संभावित हानियों के लिए पहले से प्रावधान (Provision) कर लेना चाहिए। "Anticipate no profit, but provide for all possible losses."
- महत्व: यह सुनिश्चित करता है कि वित्तीय विवरण आशावादी तस्वीर प्रस्तुत न करें। उदाहरण: स्टॉक का मूल्यांकन लागत या बाजार मूल्य, जो भी कम हो, पर करना; संदिग्ध ऋणों के लिए प्रावधान बनाना।
 
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वस्तुनिष्ठता अवधारणा (Objectivity Concept): - अर्थ: लेखांकन लेन-देन और मापन वस्तुनिष्ठ (Objective) होने चाहिए, अर्थात वे व्यक्तिगत पूर्वाग्रहों से मुक्त हों और प्रमाणकों (Vouchers), बिलों आदि जैसे सत्यापन योग्य साक्ष्यों पर आधारित हों।
- महत्व: यह लेखांकन सूचनाओं की विश्वसनीयता (Reliability) को बढ़ाता है।
 
लेखांकन मानक (Accounting Standards):
ये लिखित नीतिगत दस्तावेज़ हैं जो वित्तीय विवरणों में लेखांकन लेन-देनों की पहचान, मापन, प्रस्तुति और प्रकटीकरण में एकरूपता लाने के लिए विशेषज्ञ लेखांकन निकाय (भारत में ICAI का Accounting Standards Board - ASB) द्वारा जारी किए जाते हैं। इनका उद्देश्य वित्तीय विवरणों की विश्वसनीयता और तुलनीयता को बढ़ाना है।
लेखांकन के आधार (Bases of Accounting):
- रोकड़ आधार (Cash Basis): आय और व्यय को नकदी प्राप्ति और भुगतान के समय दर्ज किया जाता है। यह सरल है लेकिन व्यवसाय का सही लाभ-हानि और वित्तीय स्थिति नहीं दर्शाता।
- उपार्जन आधार (Accrual Basis): आय को अर्जित होने पर और व्यय को देय होने पर दर्ज किया जाता है, चाहे नकदी का लेन-देन हुआ हो या नहीं। कंपनी अधिनियम, 2013 के अनुसार कंपनियों के लिए यह अनिवार्य है और यही आधार व्यवसाय की सही वित्तीय तस्वीर प्रस्तुत करता है।
यह इस अध्याय का विस्तृत सार है। इन अवधारणाओं और सिद्धांतों को अच्छी तरह समझें, क्योंकि ये आगे के सभी लेखांकन अध्यायों का आधार हैं।
अभ्यास हेतु बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs):
प्रश्न 1: किस अवधारणा के अनुसार व्यवसाय को उसके स्वामी से पृथक माना जाता है?
(क) मुद्रा मापन अवधारणा
(ख) व्यावसायिक इकाई अवधारणा
(ग) लागत अवधारणा
(घ) द्विपक्षीय अवधारणा
प्रश्न 2: 'सभी संभावित हानियों के लिए प्रावधान करें, परन्तु संभावित लाभों को अनदेखा करें' - यह नीति किस अवधारणा पर आधारित है?
(क) संगति अवधारणा
(ख) रूढ़िवादिता अवधारणा
(ग) सारता अवधारणा
(घ) पूर्ण प्रकटीकरण अवधारणा
प्रश्न 3: संपत्तियों को उनके क्रय मूल्य पर दर्ज करना किस अवधारणा का पालन है?
(क) मिलान अवधारणा
(ख) वसूली अवधारणा
(ग) लागत अवधारणा
(घ) उपार्जन अवधारणा
प्रश्न 4: लेखांकन समीकरण (Assets = Liabilities + Capital) किस अवधारणा पर आधारित है?
(क) द्विपक्षीय अवधारणा
(ख) व्यावसायिक इकाई अवधारणा
(ग) मुद्रा मापन अवधारणा
(घ) लेखांकन अवधि अवधारणा
प्रश्न 5: आय को तब पहचाना जाता है जब वह अर्जित हो जाती है, न कि जब नकदी प्राप्त होती है। यह किस अवधारणा के अनुसार है?
(क) रोकड़ आधार
(ख) उपार्जन अवधारणा
(ग) संगति अवधारणा
(घ) रूढ़िवादिता अवधारणा
प्रश्न 6: वित्तीय विवरणों की तुलनीयता सुनिश्चित करने के लिए किस अवधारणा का पालन महत्वपूर्ण है?
(क) सतत् व्यापार अवधारणा
(ख) संगति अवधारणा
(ग) सारता अवधारणा
(घ) लागत अवधारणा
प्रश्न 7: लेखांकन में केवल मौद्रिक लेन-देनों को ही दर्ज किया जाता है, यह किस अवधारणा के कारण है?
(क) पृथक अस्तित्व अवधारणा
(ख) लागत अवधारणा
(ग) मुद्रा मापन अवधारणा
(घ) मिलान अवधारणा
प्रश्न 8: सामान्यतः मान्य लेखांकन सिद्धांत (GAAP) हैं:
(क) प्राकृतिक नियम
(ख) मानव निर्मित और लचीले
(ग) कठोर और अपरिवर्तनीय
(घ) केवल भारत में मान्य
प्रश्न 9: स्टॉक का मूल्यांकन लागत या बाजार मूल्य, जो भी कम हो, पर करना किस अवधारणा का उदाहरण है?
(क) लागत अवधारणा
(ख) मिलान अवधारणा
(ग) रूढ़िवादिता अवधारणा
(घ) सतत् व्यापार अवधारणा
प्रश्न 10: वित्तीय विवरणों के साथ 'नोट्स टू अकाउंट्स' संलग्न करना किस अवधारणा का पालन सुनिश्चित करता है?
(क) सारता अवधारणा
(ख) पूर्ण प्रकटीकरण अवधारणा
(ग) संगति अवधारणा
(घ) उपार्जन अवधारणा
उत्तरमाला (MCQs):
- (ख) व्यावसायिक इकाई अवधारणा
- (ख) रूढ़िवादिता अवधारणा
- (ग) लागत अवधारणा
- (क) द्विपक्षीय अवधारणा
- (ख) उपार्जन अवधारणा
- (ख) संगति अवधारणा
- (ग) मुद्रा मापन अवधारणा
- (ख) मानव निर्मित और लचीले
- (ग) रूढ़िवादिता अवधारणा
- (ख) पूर्ण प्रकटीकरण अवधारणा
इन नोट्स और प्रश्नों का अच्छे से अध्ययन करें। कोई शंका हो तो अवश्य पूछें। शुभकामनाएँ!
 
            