Class 11 Biology Notes Chapter 17 (श्वसन और गैसों का विनिमय) – Jeev Vigyan Book

Jeev Vigyan
चलिए, आज हम कक्षा 11 जीव विज्ञान के एक महत्वपूर्ण अध्याय - 'श्वसन और गैसों का विनिमय' (Chapter 17: Respiration and Exchange of Gases) का विस्तृत अध्ययन करेंगे। यह अध्याय न केवल आपकी बोर्ड परीक्षा बल्कि विभिन्न सरकारी प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे NEET, SSC, Railway आदि के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे जीव विज्ञान के आधारभूत सिद्धांतों की समझ विकसित होती है।

अध्याय 17: श्वसन और गैसों का विनिमय (Respiration and Exchange of Gases)

परिचय (Introduction)
सभी जीवित जीवों को अपनी विभिन्न जैविक क्रियाओं, जैसे वृद्धि, गति, उपापचय आदि के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह ऊर्जा भोजन के ऑक्सीकरण से प्राप्त होती है। श्वसन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा जीवधारी वातावरण से ऑक्सीजन ग्रहण करते हैं और कोशिकाओं में ग्लूकोज जैसे भोज्य पदार्थों का ऑक्सीकरण करके ऊर्जा (ATP के रूप में) मुक्त करते हैं तथा इस प्रक्रिया में उत्पन्न कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) को बाहर निकालते हैं।

श्वसन के चरण (Steps of Respiration):
मुख्य रूप से इसमें निम्नलिखित चरण शामिल हैं:

  1. सांस लेना या फुप्फुसीय संवातन (Breathing or Pulmonary Ventilation): वायुमंडलीय वायु को अंदर लेना (अंतःश्वसन) और CO2 युक्त वायु कूपिका वायु को बाहर निकालना (निःश्वसन)।
  2. गैसों का विनिमय (Exchange of Gases): वायु कूपिकाओं (Alveoli) और रक्त के बीच O2 और CO2 का विसरण।
  3. गैसों का परिवहन (Transport of Gases): रक्त द्वारा O2 का ऊतकों तक और CO2 का ऊतकों से कूपिकाओं तक परिवहन।
  4. गैसों का विनिमय (Exchange of Gases): रक्त और ऊतकों के बीच O2 और CO2 का विसरण।
  5. कोशिकीय श्वसन (Cellular Respiration): कोशिकाओं द्वारा O2 का उपयोग करके भोज्य पदार्थों का ऑक्सीकरण कर ऊर्जा मुक्त करना और CO2 का उत्पादन। (इस अध्याय का मुख्य फोकस पहले चार चरणों पर है)।

मानव श्वसन तंत्र (Human Respiratory System)
मानव श्वसन तंत्र में निम्नलिखित अंग शामिल हैं:

  1. नासा द्वार एवं नासा मार्ग (Nostrils and Nasal Passage): वायु शरीर में नासा द्वार से प्रवेश करती है और नासा मार्ग से गुजरती है। नासा मार्ग में उपस्थित रोम और श्लेष्मा (mucus) वायु को छानने, नम करने और शरीर के तापमान के बराबर लाने में मदद करते हैं।
  2. ग्रसनी (Pharynx): यह भोजन और वायु दोनों के लिए उभयनिष्ठ मार्ग है। यह नासागुहा के पीछे स्थित होती है और कंठ (Larynx) व ग्रासनली (Oesophagus) में खुलती है।
  3. कंठ या स्वर यंत्र (Larynx): यह उपास्थि से बनी एक पेटिका है जो ग्रसनी को श्वासनली से जोड़ती है। इसमें स्वर रज्जु (Vocal cords) होते हैं, जिनके कंपन से ध्वनि उत्पन्न होती है। एपिग्लॉटिस (Epiglottis) नामक एक उपास्थिल पल्ला भोजन निगलते समय ग्लोटिस (श्वासनली का द्वार) को ढक लेता है ताकि भोजन श्वासनली में प्रवेश न कर सके।
  4. श्वासनली (Trachea): यह एक सीधी नलिका है जो वक्ष गुहा के मध्य तक फैली होती है। इसमें 'C' आकार के उपास्थिल वलय (Cartilaginous rings) होते हैं जो इसे पिचकने से रोकते हैं।
  5. श्वसनी और श्वसनिकाएँ (Bronchi and Bronchioles): श्वासनली वक्ष गुहा में पाँचवीं वक्षीय कशेरुका के स्तर पर दायीं और बायीं प्राथमिक श्वसनी (Primary Bronchi) में विभाजित हो जाती है। प्रत्येक श्वसनी अपने तरफ के फेफड़े में प्रवेश कर द्वितीयक (Secondary) और तृतीयक (Tertiary) श्वसनी तथा फिर पतली अंतस्थ श्वसनिकाओं (Terminal Bronchioles) में विभाजित हो जाती है। इनमें भी अपूर्ण उपास्थिल वलय होते हैं।
  6. वायु कूपिकाएँ (Alveoli): प्रत्येक अंतस्थ श्वसनिका बहुत सारी पतली, अनियमित भित्ति वाली, गुब्बारे जैसी संरचनाओं में खुलती है जिन्हें वायु कूपिका कहते हैं। यह गैसों के विनिमय का मुख्य स्थल है। इनकी भित्ति अत्यंत पतली (एक कोशिकीय स्तर) होती है और रक्त केशिकाओं (Blood capillaries) के घने जाल से ढकी रहती है।
  7. फेफड़े (Lungs): यह मुख्य श्वसन अंग हैं, जो वक्ष गुहा में स्थित होते हैं। दायाँ फेफड़ा तीन पालियों (Lobes) और बायाँ फेफड़ा दो पालियों में विभाजित होता है। फेफड़े एक दोहरी झिल्ली फुप्फुसावरण (Pleura) से ढके रहते हैं। दोनों झिल्लियों के बीच फुप्फुसावरणी द्रव (Pleural fluid) भरा होता है, जो फेफड़ों की सतह पर घर्षण कम करता है और फेफड़ों को बाहरी आघातों से बचाता है।

श्वसन की क्रियाविधि (Mechanism of Breathing)
सांस लेना एक सक्रिय प्रक्रिया है जिसमें दो चरण होते हैं:

  1. अंतःश्वसन (Inspiration): यह एक सक्रिय प्रक्रिया है।

    • डायाफ्राम (Diaphragm) संकुचित होता है और नीचे की ओर चपटा हो जाता है।
    • बाह्य अंतरापर्शुक पेशियाँ (External intercostal muscles) संकुचित होती हैं, जिससे पसलियाँ और उरोस्थि (Sternum) ऊपर व बाहर की ओर खिंचती हैं।
    • इन क्रियाओं से वक्ष गुहा का आयतन अग्र-पश्च (Antero-posterior) और पृष्ठाधर (Dorso-ventral) अक्ष में बढ़ जाता है।
    • वक्ष गुहा का आयतन बढ़ने से फुप्फुसीय आयतन (Pulmonary volume) बढ़ता है और अंतः फुप्फुसीय दाब (Intra-pulmonary pressure) वायुमंडलीय दाब से कम हो जाता है।
    • इस दाब अंतर के कारण वायु बाहर से फेफड़ों में प्रवेश करती है।
  2. निःश्वसन (Expiration): यह सामान्यतः एक निष्क्रिय प्रक्रिया है।

    • डायाफ्राम और बाह्य अंतरापर्शुक पेशियाँ शिथिल (Relax) हो जाती हैं।
    • डायाफ्राम अपनी सामान्य गुम्बदाकार स्थिति में लौट आता है।
    • पसलियाँ और उरोस्थि अपनी सामान्य स्थिति में लौट आते हैं।
    • इससे वक्ष गुहा का आयतन घटता है, जिससे फुप्फुसीय आयतन भी कम हो जाता है।
    • अंतः फुप्फुसीय दाब वायुमंडलीय दाब से थोड़ा अधिक हो जाता है।
    • इस दाब अंतर के कारण फेफड़ों से वायु बाहर निकल जाती है।
    • बलपूर्वक निःश्वसन (Forced expiration) में आंतरिक अंतरापर्शुक पेशियाँ (Internal intercostal muscles) और उदर पेशियाँ (Abdominal muscles) संकुचित होती हैं।

श्वसन संबंधी आयतन और क्षमताएँ (Respiratory Volumes and Capacities)

  • ज्वारीय आयतन (Tidal Volume - TV): सामान्य श्वसन के समय प्रति सांस अंतःश्वसित या निःश्वसित वायु का आयतन (लगभग 500 मिली)।
  • अंतःश्वसन सुरक्षित आयतन (Inspiratory Reserve Volume - IRV): सामान्य अंतःश्वसन के उपरांत, बलपूर्वक अंतःश्वसित की जा सकने वाली वायु की अतिरिक्त मात्रा (लगभग 2500-3000 मिली)।
  • निःश्वसन सुरक्षित आयतन (Expiratory Reserve Volume - ERV): सामान्य निःश्वसन के उपरांत, बलपूर्वक निःश्वसित की जा सकने वाली वायु की अतिरिक्त मात्रा (लगभग 1000-1100 मिली)।
  • अवशिष्ट आयतन (Residual Volume - RV): बलपूर्वक निःश्वसन के बाद भी फेफड़ों में शेष बची वायु का आयतन (लगभग 1100-1200 मिली)। यह फेफड़ों को पिचकने से बचाता है।
  • अंतःश्वसन क्षमता (Inspiratory Capacity - IC): सामान्य निःश्वसन के बाद कुल अंतःश्वसित की जा सकने वाली वायु (TV + IRV)।
  • निःश्वसन क्षमता (Expiratory Capacity - EC): सामान्य अंतःश्वसन के बाद कुल निःश्वसित की जा सकने वाली वायु (TV + ERV)।
  • क्रियाशील अवशिष्ट क्षमता (Functional Residual Capacity - FRC): सामान्य निःश्वसन के बाद फेफड़ों में शेष वायु का आयतन (ERV + RV)।
  • जैव क्षमता या धारिता (Vital Capacity - VC): बलपूर्वक निःश्वसन के बाद, बलपूर्वक अधिकतम अंतःश्वसित की जा सकने वाली वायु की मात्रा, या बलपूर्वक अंतःश्वसन के बाद, बलपूर्वक अधिकतम निःश्वसित की जा सकने वाली वायु की मात्रा (IRV + TV + ERV)।
  • फेफड़ों की कुल धारिता (Total Lung Capacity - TLC): बलपूर्वक अंतःश्वसन के बाद फेफड़ों में उपस्थित वायु की कुल मात्रा (VC + RV या IRV + TV + ERV + RV)।

गैसों का विनिमय (Exchange of Gases)
गैसों (O2 और CO2) का विनिमय वायु कूपिकाओं और रक्त के बीच तथा रक्त और ऊतकों के बीच साधारण विसरण (Simple diffusion) द्वारा होता है। विसरण की दर निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करती है:

  • आंशिक दाब प्रवणता (Partial Pressure Gradient): गैसें अपने उच्च आंशिक दाब से निम्न आंशिक दाब की ओर विसरित होती हैं।
  • गैसों की घुलनशीलता (Solubility of Gases): CO2 की घुलनशीलता O2 से लगभग 20-25 गुना अधिक होती है।
  • विसरण झिल्ली की मोटाई (Thickness of Diffusion Membrane): झिल्ली जितनी पतली होगी, विसरण उतना ही तीव्र होगा। कूपिका और केशिका की भित्ति अत्यंत पतली होती है (कुल मोटाई 1 मिमी से कम)।
  • विसरण सतह का क्षेत्रफल (Surface Area for Diffusion): मानव फेफड़ों में कूपिकाओं का कुल सतह क्षेत्रफल बहुत अधिक (लगभग 50-100 वर्ग मीटर) होता है।

आंशिक दाब (Partial Pressure - p): किसी गैस मिश्रण में एक विशेष गैस द्वारा लगाया गया दाब उसका आंशिक दाब कहलाता है।

  • कूपिकाओं में: pO2 ≈ 104 mmHg, pCO2 ≈ 40 mmHg
  • अशुद्ध (विऑक्सीजनित) रक्त में: pO2 ≈ 40 mmHg, pCO2 ≈ 45 mmHg
  • शुद्ध (ऑक्सीजनित) रक्त में: pO2 ≈ 95 mmHg, pCO2 ≈ 40 mmHg
  • ऊतकों में: pO2 < 40 mmHg, pCO2 > 45 mmHg

इस दाब प्रवणता के कारण, O2 कूपिकाओं से रक्त में और रक्त से ऊतकों में जाती है, जबकि CO2 ऊतकों से रक्त में और रक्त से कूपिकाओं में जाती है।

गैसों का परिवहन (Transport of Gases)

  1. ऑक्सीजन का परिवहन (Transport of Oxygen):

    • लगभग 97% O2 का परिवहन लाल रक्त कणिकाओं (RBCs) में उपस्थित हीमोग्लोबिन (Hb) द्वारा होता है। O2 हीमोग्लोबिन के हीम भाग में स्थित आयरन (Fe++) से उत्क्रमणीय रूप से (reversibly) जुड़कर ऑक्सीहीमोग्लोबिन (Oxyhaemoglobin - HbO2) बनाती है।
    • लगभग 3% O2 प्लाज्मा में घुलित अवस्था में परिवहित होती है।
    • ऑक्सीजन-वियोजन वक्र (Oxygen-Dissociation Curve): यह एक सिग्मॉइड (S-आकार) वक्र है जो विभिन्न pO2 पर हीमोग्लोबिन की ऑक्सीजन संतृप्तता (% Saturation) को दर्शाता है।
    • बोर प्रभाव (Bohr Effect): ऊतकों में उच्च pCO2, उच्च H+ सांद्रता (निम्न pH), और उच्च तापमान के कारण ऑक्सीहीमोग्लोबिन से ऑक्सीजन के वियोजन (dissociation) में मदद मिलती है, जिससे ऑक्सीजन ऊतकों को आसानी से उपलब्ध हो जाती है। यह वक्र को दायीं ओर विस्थापित (Right shift) करता है। कूपिकाओं में विपरीत परिस्थितियाँ (निम्न pCO2, निम्न H+, निम्न तापमान) ऑक्सीजन को हीमोग्लोबिन से जुड़ने में मदद करती हैं (वक्र बायीं ओर विस्थापित होता है)।
  2. कार्बन डाइऑक्साइड का परिवहन (Transport of Carbon Dioxide):

    • लगभग 70% CO2 का परिवहन बाइकार्बोनेट आयनों (HCO3-) के रूप में होता है। ऊतकों में उत्पन्न CO2 रक्त में विसरित होकर RBCs में प्रवेश करती है। वहाँ यह जल से कार्बोनिक एनहाइड्रेज (Carbonic anhydrase) एंजाइम की उपस्थिति में क्रिया करके कार्बोनिक अम्ल (H2CO3) बनाती है। H2CO3 शीघ्र ही H+ और HCO3- में वियोजित हो जाता है। HCO3- RBC से प्लाज्मा में विसरित हो जाता है (क्लोराइड शिफ्ट/हैमबर्गर परिघटना)।
    • लगभग 20-25% CO2 हीमोग्लोबिन के अमीनो समूह से जुड़कर कार्बअमीनोहीमोग्लोबिन (Carbaminohaemoglobin - HbCO2) के रूप में परिवहित होती है। यह बंधन pCO2 पर निर्भर करता है।
    • लगभग 7% CO2 प्लाज्मा में घुलित अवस्था में परिवहित होती है।

श्वसन का नियमन (Regulation of Respiration)
श्वसन का नियमन तंत्रिका तंत्र और रासायनिक कारकों द्वारा होता है।

  1. तंत्रिकीय नियमन (Neural Regulation):

    • श्वसन लय केंद्र (Respiratory Rhythm Centre): यह मेडुला ऑब्लांगेटा (Medulla oblongata) में स्थित होता है और मुख्य रूप से श्वसन की लय (अंतःश्वसन और निःश्वसन) को नियंत्रित करता है।
    • श्वासप्रभावी केंद्र (Pneumotaxic Centre): यह पोंस (Pons) क्षेत्र में स्थित होता है। यह श्वसन लय केंद्र के कार्यों को संतुलित करता है और अंतःश्वसन की अवधि को कम कर सकता है, जिससे श्वसन दर नियंत्रित होती है।
    • रसायन संवेदी क्षेत्र (Chemosensitive Area): यह श्वसन लय केंद्र के पास स्थित होता है और रक्त तथा मस्तिष्कमेरु द्रव (CSF) में CO2 और H+ आयनों की सांद्रता के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होता है। इनकी सांद्रता बढ़ने पर यह केंद्र सक्रिय होकर श्वसन लय केंद्र को श्वसन दर बढ़ाने का संकेत देता है।
  2. रासायनिक नियमन (Chemical Regulation):

    • महाधमनी चाप (Aortic arch) और कैरोटिड धमनी (Carotid artery) पर स्थित परिधीय रसायन संवेदी ग्राही (Peripheral chemoreceptors) भी रक्त में CO2 और H+ की सांद्रता में परिवर्तन के प्रति संवेदनशील होते हैं और श्वसन लय केंद्र को संकेत भेजते हैं।
    • ऑक्सीजन की सांद्रता का श्वसन नियमन में सीधा प्रभाव बहुत कम होता है, लेकिन अत्यधिक कमी होने पर ये ग्राही सक्रिय हो सकते हैं।

श्वसन तंत्र के विकार (Disorders of Respiratory System)

  1. दमा (Asthma): यह श्वसनी और श्वसनिकाओं की शोथ (inflammation) के कारण होने वाली एलर्जी है, जिसमें सांस लेने में कठिनाई होती है और घरघराहट (wheezing) होती है।
  2. वातस्फीति (Emphysema): यह एक दीर्घकालिक रोग है जिसमें कूपिका भित्ति क्षतिग्रस्त हो जाती है, जिससे गैस विनिमय सतह घट जाती है। धूम्रपान इसका मुख्य कारण है।
  3. व्यावसायिक श्वसन रोग (Occupational Respiratory Disorders): कुछ उद्योगों (जैसे पत्थर घिसाई, सिलिका या एस्बेस्टस उद्योग) में काम करने वाले लोगों में धूल कणों के लगातार संपर्क में रहने से फेफड़ों में शोथ और फाइब्रोसिस (रेशामयता) हो जाती है, जिससे फेफड़ों को गंभीर क्षति पहुँचती है (जैसे सिलिकोसिस, एस्बेस्टोसिस)। मास्क का प्रयोग बचाव में सहायक है।

अभ्यास हेतु बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs for Practice):

प्रश्न 1: मानव श्वसन तंत्र में गैसों का वास्तविक विनिमय स्थल कौन सा है?
(क) श्वासनली (Trachea)
(ख) श्वसनी (Bronchi)
(ग) वायु कूपिका (Alveoli)
(घ) ग्रसनी (Pharynx)

उत्तर: (ग) वायु कूपिका (Alveoli)

प्रश्न 2: सामान्य अंतःश्वसन (Inspiration) के दौरान निम्नलिखित में से कौन सी घटना होती है?
(क) डायाफ्राम शिथिल होता है।
(ख) बाह्य अंतरापर्शुक पेशियाँ शिथिल होती हैं।
(ग) वक्ष गुहा का आयतन घटता है।
(घ) डायाफ्राम संकुचित होता है।

उत्तर: (घ) डायाफ्राम संकुचित होता है।

प्रश्न 3: सामान्य निःश्वसन (Expiration) के बाद फेफड़ों में शेष बची वायु के आयतन को क्या कहते हैं?
(क) ज्वारीय आयतन (Tidal Volume)
(ख) अवशिष्ट आयतन (Residual Volume)
(ग) निःश्वसन सुरक्षित आयतन (Expiratory Reserve Volume)
(घ) क्रियाशील अवशिष्ट क्षमता (Functional Residual Capacity)

उत्तर: (घ) क्रियाशील अवशिष्ट क्षमता (Functional Residual Capacity) (नोट: प्रश्न को ध्यान से पढ़ें, यह सामान्य निःश्वसन के बाद पूछ रहा है, न कि बलपूर्वक निःश्वसन के बाद। सामान्य निःश्वसन के बाद ERV+RV शेष रहता है, जिसे FRC कहते हैं।)

प्रश्न 4: रक्त में ऑक्सीजन का अधिकांश परिवहन किसके द्वारा होता है?
(क) प्लाज्मा में घुलित अवस्था में
(ख) बाइकार्बोनेट आयन के रूप में
(ग) हीमोग्लोबिन के साथ जुड़कर
(घ) श्वेत रक्त कणिकाओं द्वारा

उत्तर: (ग) हीमोग्लोबिन के साथ जुड़कर

प्रश्न 5: कार्बन डाइऑक्साइड का अधिकांश परिवहन रक्त में किस रूप में होता है?
(क) कार्बअमीनोहीमोग्लोबिन के रूप में
(ख) प्लाज्मा में घुलित अवस्था में
(ग) बाइकार्बोनेट आयनों के रूप में
(घ) कार्बोनिक अम्ल के रूप में

उत्तर: (ग) बाइकार्बोनेट आयनों के रूप में

प्रश्न 6: श्वसन लय केंद्र (Respiratory Rhythm Centre) मस्तिष्क के किस भाग में स्थित होता है?
(क) पोंस (Pons)
(ख) अनुमस्तिष्क (Cerebellum)
(ग) मेडुला ऑब्लांगेटा (Medulla oblongata)
(घ) प्रमस्तिष्क (Cerebrum)

उत्तर: (ग) मेडुला ऑब्लांगेटा (Medulla oblongata)

प्रश्न 7: ऑक्सीजन-वियोजन वक्र का दायीं ओर विस्थापन (Right shift) इंगित करता है कि:
(क) हीमोग्लोबिन की ऑक्सीजन बंधुता बढ़ गई है।
(ख) हीमोग्लोबिन की ऑक्सीजन बंधुता घट गई है।
(ग) pCO2 कम हो गया है।
(घ) pH बढ़ गया है।

उत्तर: (ख) हीमोग्लोबिन की ऑक्सीजन बंधुता घट गई है।

प्रश्न 8: RBC में CO2 और जल के बीच अभिक्रिया को उत्प्रेरित करने वाला एंजाइम कौन सा है?
(क) लाइपेज
(ख) एमाइलेज
(ग) कार्बोनिक एनहाइड्रेज
(घ) पेप्सिन

उत्तर: (ग) कार्बोनिक एनहाइड्रेज

प्रश्न 9: धूम्रपान के कारण कूपिका भित्ति के क्षतिग्रस्त होने से होने वाला दीर्घकालिक श्वसन विकार है:
(क) दमा (Asthma)
(ख) वातस्फीति (Emphysema)
(ग) सिलिकोसिस (Silicosis)
(घ) ब्रोंकाइटिस (Bronchitis)

उत्तर: (ख) वातस्फीति (Emphysema)

प्रश्न 10: वायु कूपिकाओं में ऑक्सीजन का आंशिक दाब (pO2) विऑक्सीजनित रक्त की तुलना में होता है:
(क) कम
(ख) अधिक
(ग) बराबर
(घ) नगण्य

उत्तर: (ख) अधिक (कूपिकाओं में pO2 ≈ 104 mmHg, विऑक्सीजनित रक्त में pO2 ≈ 40 mmHg)


इन नोट्स और प्रश्नों का ध्यानपूर्वक अध्ययन करें। ये आपकी परीक्षा की तैयारी में सहायक होंगे। शुभकामनाएँ!

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