Class 11 Biology Notes Chapter 18 (शरीर द्रव तथा परिसंचरण) – Jeev Vigyan Book

Jeev Vigyan
चलिए, आज हम कक्षा 11 जीव विज्ञान के अध्याय 18 'शरीर द्रव तथा परिसंचरण' का विस्तृत अध्ययन करेंगे। यह अध्याय सरकारी परीक्षाओं की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे मानव शरीर की कार्यप्रणाली से जुड़े आधारभूत प्रश्न बनते हैं।

अध्याय 18: शरीर द्रव तथा परिसंचरण (Body Fluids and Circulation)

परिचय:
सभी जीवित कोशिकाओं को जीवित रहने और कार्य करने के लिए पोषक तत्व, ऑक्सीजन और अन्य आवश्यक पदार्थ चाहिए। साथ ही, उपापचय (metabolism) के दौरान उत्पन्न अपशिष्ट या हानिकारक पदार्थों को निरंतर बाहर निकालना भी आवश्यक है। इन पदार्थों के परिवहन के लिए, अधिकांश उच्च प्राणियों में विशेष शरीर द्रवों का उपयोग होता है। रक्त (Blood) और लसिका (Lymph) ऐसे ही प्रमुख शरीर द्रव हैं जो पदार्थों के परिवहन में मदद करते हैं।

1. रक्त (Blood):
रक्त एक विशेष प्रकार का संयोजी ऊतक है जिसमें द्रव आधात्री (matrix), प्लाज्मा तथा अन्य संगठित संरचनाएं पाई जाती हैं।

  • प्लाज्मा (Plasma):

    • यह रक्त का तरल भाग है, जो रक्त के आयतन का लगभग 55% होता है।
    • यह हल्के पीले रंग का, क्षारीय (pH ~7.4) द्रव है।
    • संघटन:
      • जल: 90-92%
      • प्रोटीन: 6-8% (प्रमुख प्रोटीन - फाइब्रिनोजन, ग्लोब्युलिन, एल्ब्यूमिन)
        • फाइब्रिनोजन (Fibrinogen): रक्त का थक्का बनाने या स्कंदन (coagulation) में आवश्यक।
        • ग्लोब्युलिन (Globulins): शरीर की प्रतिरक्षा तंत्र (immune system) में सहायक (एंटीबॉडीज के रूप में)।
        • एल्ब्यूमिन (Albumins): परासरणी संतुलन (osmotic balance) बनाए रखने में सहायक।
      • अन्य पदार्थ: खनिज आयन (Na+, Ca++, Mg++, HCO3-, Cl- आदि), ग्लूकोज, अमीनो अम्ल, लिपिड, हार्मोन, एंजाइम, यूरिया आदि अल्प मात्रा में होते हैं।
    • सीरम (Serum): प्लाज्मा जिसमें से स्कंदन कारक (जैसे फाइब्रिनोजन) निकाल दिए जाते हैं, सीरम कहलाता है।
  • संगठित पदार्थ (Formed Elements):

    • ये रक्त का शेष 45% भाग बनाते हैं। इनमें लाल रक्त कणिकाएं (RBCs), श्वेत रक्त कणिकाएं (WBCs) और पट्टिकाणु (Platelets) शामिल हैं।
    • लाल रक्त कणिकाएं (Erythrocytes / RBCs):
      • संख्या में सर्वाधिक (एक स्वस्थ वयस्क पुरुष में लगभग 50-55 लाख प्रति घन मि.मी. रक्त)।
      • निर्माण: वयस्कों में लाल अस्थि मज्जा (Red Bone Marrow) में।
      • आकृति: उभयावतल (Biconcave)।
      • केंद्रक: स्तनधारियों की परिपक्व RBCs में केंद्रक नहीं होता (ऊंट और लामा अपवाद हैं)। इससे ऑक्सीजन वहन के लिए अधिक स्थान मिलता है।
      • वर्णक: इनमें लौह युक्त जटिल प्रोटीन 'हीमोग्लोबिन' (Hemoglobin) होता है, जिसके कारण रक्त का रंग लाल होता है। एक स्वस्थ व्यक्ति में औसतन 12-16 ग्राम हीमोग्लोबिन प्रति 100 मि.ली. रक्त होता है।
      • कार्य: श्वसन गैसों (मुख्यतः ऑक्सीजन, कुछ मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड) का परिवहन।
      • जीवन काल: लगभग 120 दिन। पुरानी RBCs प्लीहा (Spleen - 'RBC का कब्रिस्तान') में नष्ट होती हैं।
    • श्वेत रक्त कणिकाएं (Leucocytes / WBCs):
      • रंगहीन (हीमोग्लोबिन रहित)।
      • केंद्रक युक्त।
      • संख्या: RBCs की तुलना में कम (औसतन 6000-8000 प्रति घन मि.मी. रक्त)।
      • कार्य: शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली का महत्वपूर्ण हिस्सा, संक्रमण से सुरक्षा।
      • प्रकार:
        • कणिकामय (Granulocytes): कोशिकाद्रव्य में कणिकाएं होती हैं।
          • न्यूट्रोफिल (Neutrophils): संख्या में सर्वाधिक (60-65%)। भक्षकाणु क्रिया (Phagocytosis) द्वारा रोगाणुओं को नष्ट करती हैं।
          • इओसिनोफिल (Eosinophils): (2-3%)। संक्रमण और एलर्जिक प्रतिक्रियाओं से बचाव।
          • बेसोफिल (Basophils): सबसे कम (0.5-1%)। हिस्टामिन, सेरोटोनिन, हिपैरिन स्रावित करती हैं और शोथकारी (inflammatory) क्रियाओं में सम्मिलित होती हैं।
        • अकणिकामय (Agranulocytes): कोशिकाद्रव्य में कणिकाएं नहीं होतीं।
          • लिम्फोसाइट (Lymphocytes): (20-25%)। दो मुख्य प्रकार - B-लिम्फोसाइट और T-लिम्फोसाइट, जो शरीर की प्रतिरक्षा अनुक्रिया के लिए उत्तरदायी हैं। B-लिम्फोसाइट एंटीबॉडी बनाती हैं।
          • मोनोसाइट (Monocytes): (6-8%)। सबसे बड़ी WBCs। भक्षकाणु क्रिया करती हैं और मैक्रोफेज (macrophages) में रूपांतरित हो सकती हैं।
    • पट्टिकाणु (Thrombocytes / Platelets):
      • ये वास्तव में कोशिकाएं न होकर अस्थि मज्जा की विशेष कोशिकाओं (मेगाकैरियोसाइट्स - Megakaryocytes) के विखंडन से बने टुकड़े हैं।
      • संख्या: 1,50,000 - 3,50,000 प्रति घन मि.मी. रक्त।
      • केंद्रक रहित।
      • कार्य: रक्त स्कंदन (Blood Clotting) में महत्वपूर्ण भूमिका। ये कई स्कंदन कारकों को स्रावित करते हैं।

2. रक्त समूह (Blood Groups):
मनुष्यों में रक्त भिन्न-भिन्न समूहों का होता है। दो मुख्य समूहन हैं - ABO और Rh.

  • ABO समूहन:

    • यह RBC की सतह पर उपस्थित या अनुपस्थित प्रतिजन (Antigens) A और B पर आधारित है।
    • प्लाज्मा में इन प्रतिजनों के विपरीत प्राकृतिक प्रतिरक्षी (Antibodies) होते हैं।
    • समूह A: प्रतिजन A, प्रतिरक्षी anti-B
    • समूह B: प्रतिजन B, प्रतिरक्षी anti-A
    • समूह AB: प्रतिजन A और B दोनों, कोई प्रतिरक्षी नहीं ('सार्वत्रिक ग्राही' - Universal Recipient)
    • समूह O: कोई प्रतिजन नहीं, प्रतिरक्षी anti-A और anti-B दोनों ('सार्वत्रिक दाता' - Universal Donor)
    • रक्त आधान (Blood Transfusion) से पहले रक्त समूह का मिलान आवश्यक है, अन्यथा गंभीर समस्याएं (RBCs का समूहन/गुच्छन - Agglutination) हो सकती हैं।
  • Rh समूहन:

    • RBC की सतह पर उपस्थित Rh प्रतिजन (रीसस बंदर में खोजा गया) पर आधारित।
    • जिनमें Rh प्रतिजन होता है, वे Rh-पॉजिटिव (Rh+) कहलाते हैं (लगभग 80% मनुष्य)।
    • जिनमें Rh प्रतिजन नहीं होता, वे Rh-नेगेटिव (Rh-) कहलाते हैं।
    • Rh- व्यक्ति का सामना यदि Rh+ रक्त से हो (जैसे गलत रक्त आधान या गर्भावस्था में), तो उसके शरीर में Rh प्रतिजन के विरुद्ध एंटीबॉडी बन जाती हैं।
    • गर्भ रक्ताणुकोरकता (Erythroblastosis Fetalis): यदि Rh- माँ के गर्भ में Rh+ शिशु पल रहा हो, तो पहली गर्भावस्था सामान्य रहती है, लेकिन प्रसव के समय शिशु के कुछ Rh+ रक्त कण माँ के रक्त में जा सकते हैं, जिससे माँ के शरीर में Rh एंटीबॉडी बन जाती हैं। अगली गर्भावस्था में यदि शिशु फिर Rh+ हुआ, तो माँ की Rh एंटीबॉडी प्लेसेंटा पार करके भ्रूण की RBCs को नष्ट कर सकती हैं, जिससे गंभीर रक्ताल्पता (anemia) और पीलिया (jaundice) हो सकता है। इसका उपचार संभव है।

3. रक्त का स्कंदन (Coagulation of Blood):
चोट लगने पर रक्त का बहना स्वतः रुक जाता है, जिसे रक्त का थक्का जमना या स्कंदन कहते हैं। यह एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें अनेक कारक (स्कंदन कारक) शामिल होते हैं।

  • प्रक्रिया:
    • चोट स्थल पर क्षतिग्रस्त ऊतक और रक्त पट्टिकाणु कुछ कारक मुक्त करते हैं जो एंजाइम सम्मिश्र 'थ्रोम्बोकाइनेज' (Thrombokinase) के निर्माण को सक्रिय करते हैं।
    • थ्रोम्बोकाइनेज, कैल्शियम आयनों (Ca++) की उपस्थिति में, प्लाज्मा के निष्क्रिय प्रोटीन 'प्रोथ्रोम्बिन' (Prothrombin) को सक्रिय 'थ्रोम्बिन' (Thrombin) में बदलता है।
    • थ्रोम्बिन, प्लाज्मा के घुलनशील प्रोटीन 'फाइब्रिनोजन' (Fibrinogen) को अघुलनशील 'फाइब्रिन' (Fibrin) रेशों में बदलता है।
    • फाइब्रिन रेशे एक जाल बनाते हैं जिसमें रक्त कणिकाएं फंस जाती हैं और 'थक्का' (Clot) बन जाता है, जो रक्त प्रवाह को रोक देता है।
  • रक्त वाहिकाओं में रक्त का थक्का न जमे, इसके लिए प्राकृतिक प्रतिस्कंदक 'हिपैरिन' (Heparin) होता है।

4. लसिका (Lymph / Tissue Fluid):
जब रक्त केशिकाओं (capillaries) से गुजरता है, तो जल और छोटे घुलनशील पदार्थ रक्त प्लाज्मा से छनकर कोशिकाओं के बीच के स्थान (अंतराकोशिकीय अवकाश - Interstitial space) में आ जाते हैं। इसे अंतरालीय द्रव या ऊतक द्रव (Interstitial fluid / Tissue fluid) कहते हैं।

  • संघटन: इसका संघटन प्लाज्मा जैसा ही होता है, परन्तु इसमें प्रोटीन कम होते हैं और RBCs नहीं होतीं। WBCs (विशेषकर लिम्फोसाइट) पाई जाती हैं।
  • लसिका तंत्र (Lymphatic System): ऊतक द्रव का एक हिस्सा लसिका केशिकाओं (lymph capillaries) में प्रवेश कर जाता है, जो मिलकर बड़ी लसिका वाहिकाएं (lymph vessels) बनाती हैं और अंततः बड़ी शिराओं (veins) में खुलती हैं। इस तंत्र में बहने वाले द्रव को 'लसिका' कहते हैं।
  • कार्य:
    • पोषक तत्वों, हार्मोन आदि का परिवहन।
    • वसा का अवशोषण (आंत के रसांकुरों में स्थित लैक्टियल - Lacteals द्वारा)।
    • प्रतिरक्षा अनुक्रिया में महत्वपूर्ण (लिम्फोसाइट्स के कारण)।
    • ऊतक द्रव को वापस रक्त परिसंचरण में लौटाना।

5. परिसंचरण पथ (Circulatory Pathways):
प्राणियों में परिसंचरण तंत्र दो मुख्य प्रकार के होते हैं:

  • खुला परिसंचरण तंत्र (Open Circulatory System):
    • आर्थ्रोपोडा (कीट, मकड़ी) और अधिकांश मोलस्का में पाया जाता है।
    • इसमें रक्त (हीमोलिम्फ) हृदय द्वारा बड़ी वाहिकाओं में पंप किया जाता है और फिर खुले स्थानों या देह गुहाओं (साइनस - Sinuses) में बहता है, जहां ऊतक सीधे इसके संपर्क में रहते हैं।
    • रक्त प्रवाह धीमा और अनियंत्रित होता है।
  • बंद परिसंचरण तंत्र (Closed Circulatory System):
    • एनेलिडा (केंचुआ), कशेरुकी (Vertebrates) और कुछ मोलस्का (सेफेलोपोड) में पाया जाता है।
    • इसमें रक्त सदैव बंद वाहिकाओं (धमनी, शिरा, केशिका) के जाल में बहता है।
    • रक्त प्रवाह अपेक्षाकृत तेज और अधिक नियंत्रित होता है। यह अधिक दक्ष प्रणाली है।

6. मानव परिसंचरण तंत्र (Human Circulatory System):
इसमें एक पेशीय हृदय, रक्त वाहिकाओं का जाल और परिसंचारी द्रव (रक्त) होता है।

  • हृदय (Heart):

    • स्थिति: वक्ष गुहा में, दोनों फेफड़ों के बीच, थोड़ा बाईं ओर झुका हुआ।
    • आकार: बंद मुट्ठी के आकार का।
    • आवरण: दोहरी भित्ति वाली झिल्लीमय थैली 'पेरिकार्डियम' (Pericardium) से घिरा रहता है, जिसके बीच पेरिकार्डियल द्रव भरा होता है (घर्षण से सुरक्षा)।
    • कक्ष (Chambers): चार कक्ष - दो ऊपरी, अपेक्षाकृत छोटे 'आलिंद' (Atria) और दो निचले, बड़े 'निलय' (Ventricles)।
      • दायां आलिंद (Right Atrium): शरीर से अशुद्ध (विऑक्सीजनित) रक्त ग्रहण करता है।
      • दायां निलय (Right Ventricle): रक्त को फेफड़ों में पंप करता है।
      • बायां आलिंद (Left Atrium): फेफड़ों से शुद्ध (ऑक्सीजनित) रक्त ग्रहण करता है।
      • बायां निलय (Left Ventricle): रक्त को पूरे शरीर में पंप करता है (इसकी भित्ति सबसे मोटी होती है)।
    • पट (Septa): दाएं और बाएं आलिंद के बीच अंतराआलिंदी पट (Interatrial septum) तथा दाएं और बाएं निलय के बीच अंतरानिलयी पट (Interventricular septum) होता है। आलिंद और निलय के बीच आलिंद-निलय पट (Atrioventricular septum) होता है। ये पट ऑक्सीजनित और विऑक्सीजनित रक्त को मिलने से रोकते हैं।
    • कपाट (Valves): रक्त के एकदिशीय प्रवाह को सुनिश्चित करते हैं।
      • त्रिवलनी कपाट (Tricuspid Valve): दाएं आलिंद और दाएं निलय के बीच।
      • द्विवलनी/मिट्रल कपाट (Bicuspid/Mitral Valve): बाएं आलिंद और बाएं निलय के बीच।
      • अर्धचंद्र कपाटिकाएं (Semilunar Valves): दाएं निलय और फुफ्फुस धमनी (Pulmonary artery) के बीच तथा बाएं निलय और महाधमनी (Aorta) के बीच।
    • हृदय पेशियां (Cardiac Muscles): अनैच्छिक, रेखित, शाखित और जीवनपर्यंत लयबद्ध संकुचन-शिथिलन करती हैं।
    • नोडल ऊतक (Nodal Tissue): हृदय में विशेषीकृत पेशी ऊतक जो स्व-उत्तेजनशील (autoexcitable) होते हैं।
      • शिरा-आलिंद पर्व / साइनो-एट्रियल नोड (SA Node): दाएं आलिंद की ऊपरी दीवार में स्थित। यह क्रिया विभव (action potential) उत्पन्न करने में सक्षम है और हृदय स्पंदन की लय निर्धारित करता है, इसलिए इसे 'गति प्रेरक' (Pacemaker) कहते हैं। (लगभग 70-75 विभव प्रति मिनट)
      • आलिंद-निलय पर्व / एट्रियो-वेंट्रिकुलर नोड (AV Node): दाएं आलिंद के निचले कोने में, आलिंद-निलय पट के पास स्थित। यह SA नोड से आवेग ग्रहण कर आगे भेजता है।
      • आलिंद-निलय बंडल (AV Bundle / Bundle of His): AV नोड से निकलकर अंतरानिलयी पट में जाता है और फिर दाएं-बाएं शाखाओं में बंटकर निलय भित्ति में फैलता है (पुरकिंजे तंतु - Purkinje fibres)।
      • आवेग संचरण: SA नोड → आलिंद संकुचन → AV नोड → AV बंडल → पुरकिंजे तंतु → निलय संकुचन।
  • हृद चक्र (Cardiac Cycle):

    • हृदय स्पंदन की शुरुआत से अगले स्पंदन की शुरुआत तक के घटनाक्रम का चक्रीय क्रम।
    • इसमें हृदय के चारों कक्षों का लयबद्ध संकुचन (प्रकुंचन - Systole) और शिथिलन (अनुशिथिलन - Diastole) शामिल है।
    • अवधि: एक सामान्य हृदय दर (72 बार/मिनट) पर लगभग 0.8 सेकंड।
    • चरण:
      1. आलिंद प्रकुंचन (Atrial Systole): (~0.1 sec) दोनों आलिंद एक साथ संकुचित होते हैं, रक्त निलयों में जाता है।
      2. निलय प्रकुंचन (Ventricular Systole): (~0.3 sec) दोनों निलय एक साथ संकुचित होते हैं। त्रिवलनी और द्विवलनी कपाट बंद होते हैं (प्रथम हृदय ध्वनि 'लब' - Lub)। अर्धचंद्र कपाट खुलते हैं और रक्त क्रमशः फुफ्फुस धमनी और महाधमनी में जाता है।
      3. पूर्ण अनुशिथिलन (Joint Diastole): (~0.4 sec) आलिंद और निलय दोनों शिथिल अवस्था में होते हैं। निलयों में दाब कम होने पर अर्धचंद्र कपाट बंद होते हैं (द्वितीय हृदय ध्वनि 'डब' - Dub)। त्रिवलनी और द्विवलनी कपाट खुल जाते हैं और आलिंदों में आया रक्त निलयों में भरने लगता है।
    • स्ट्रोक आयतन (Stroke Volume): एक हृद चक्र के दौरान प्रत्येक निलय द्वारा पंप किए गए रक्त की मात्रा (लगभग 70 मि.ली.)।
    • हृद निकास / कार्डियक आउटपुट (Cardiac Output): प्रति मिनट प्रत्येक निलय द्वारा पंप किए गए रक्त की मात्रा।
      • कार्डियक आउटपुट = स्ट्रोक आयतन × हृदय दर
      • = 70 मि.ली. × 72 बार/मिनट ≈ 5040 मि.ली./मिनट (लगभग 5 लीटर/मिनट)
  • विद्युत हृद लेख / इलेक्ट्रोकार्डियोग्राफ (ECG / Electrocardiograph):

    • हृद चक्र के दौरान हृदय में उत्पन्न विद्युत विभव परिवर्तनों को मापने और ग्राफ के रूप में निरूपित करने वाला उपकरण। प्राप्त ग्राफ को इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम कहते हैं।
    • मानक ECG में रोगी को मशीन से तीन इलेक्ट्रोड लीड द्वारा जोड़ा जाता है (आमतौर पर दोनों कलाई और बाईं एड़ी)।
    • ग्राफ की तरंगें:
      • P-तरंग: आलिंदों के विध्रुवण (depolarization) / संकुचन को दर्शाती है।
      • QRS सम्मिश्र: निलयों के विध्रुवण / संकुचन को दर्शाता है।
      • T-तरंग: निलयों के पुनःध्रुवण (repolarization) / शिथिल अवस्था में वापसी को दर्शाती है।
    • महत्व: ECG में किसी भी प्रकार की अनियमितता हृदय संबंधी संभावित रोगों का संकेत देती है।
  • दोहरा परिसंचरण (Double Circulation):

    • मनुष्य और अन्य स्तनधारियों, पक्षियों में पाया जाता है।
    • इसमें रक्त हृदय से होकर दो बार गुजरता है - एक बार शरीर का चक्र पूरा करने में और एक बार फेफड़ों का चक्र पूरा करने में।
    • पथ:
      1. फुफ्फुसीय परिसंचरण (Pulmonary Circulation): दायां निलय → फुफ्फुस धमनी → फेफड़े (रक्त ऑक्सीजनित होता है) → फुफ्फुस शिरा → बायां आलिंद।
      2. दैहिक परिसंचरण (Systemic Circulation): बायां निलय → महाधमनी → धमनियां → केशिकाएं (ऊतकों में O2 देना, CO2 लेना) → शिराएं → महाशिरा (Vena Cava) → दायां आलिंद।
    • महत्व: यह ऑक्सीजनित और विऑक्सीजनित रक्त को पूरी तरह अलग रखता है, जिससे शरीर को ऑक्सीजन की आपूर्ति अधिक दक्षता से होती है। यह उच्च उपापचय दर बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
  • हृद क्रिया का नियमन (Regulation of Cardiac Activity):

    • हृदय स्पंदन स्व-नियमित (SA नोड द्वारा) होता है, लेकिन तंत्रिका तंत्र और हार्मोन इसे प्रभावित कर सकते हैं।
    • तंत्रिकीय नियंत्रण: मेडुला ऑब्लांगेटा (Medulla Oblongata) में स्थित हृदय केंद्र।
      • अनुकंपी तंत्रिका (Sympathetic nerves): हृदय दर, संकुचन शक्ति और कार्डियक आउटपुट को बढ़ाती हैं।
      • परानुकंपी तंत्रिका (Parasympathetic nerves - वेगस तंत्रिका): हृदय दर, संकुचन शक्ति और कार्डियक आउटपुट को घटाती हैं।
    • हार्मोनल नियंत्रण: अधिवृक्क ग्रंथि (Adrenal gland) के मेडुला से स्रावित एड्रिनैलिन और नॉरएड्रिनैलिन हार्मोन हृदय दर को बढ़ाते हैं।

7. परिसंचरण तंत्र के विकार (Disorders of Circulatory System):

  • उच्च रक्त चाप (Hypertension):
    • सामान्य रक्त दाब 120/80 mm Hg (सिस्टोलिक/डायस्टोलिक) होता है।
    • यदि रक्त दाब लगातार 140/90 mm Hg या इससे अधिक रहे, तो इसे उच्च रक्त चाप कहते हैं।
    • यह हृदय रोगों को जन्म दे सकता है और मस्तिष्क व वृक्क जैसे अंगों को भी प्रभावित करता है।
  • हृद् धमनी रोग (Coronary Artery Disease - CAD):
    • इसे एथेरोस्क्लेरोसिस (Atherosclerosis) भी कहते हैं।
    • इसमें हृदय पेशियों को रक्त आपूर्ति करने वाली कोरोनरी धमनियों में वसा, कैल्शियम, कोलेस्ट्रॉल और रेशेदार ऊतकों के जमाव (प्लाक) के कारण धमनी संकरी हो जाती है।
    • इससे हृदय तक रक्त प्रवाह कम हो जाता है।
  • हृद् शूल / एंजाइना पेक्टोरिस (Angina Pectoris):
    • हृदय पेशियों में अपर्याप्त ऑक्सीजन पहुंचने के कारण सीने में तीव्र दर्द होना।
    • यह CAD के कारण हो सकता है। स्त्री-पुरुष दोनों में किसी भी उम्र में हो सकता है, पर मध्यावस्था तथा वृद्धावस्था में सामान्य है।
  • हृदय पात / हार्ट फेल्योर (Heart Failure):
    • वह अवस्था जब हृदय शरीर की आवश्यकताओं के अनुसार पर्याप्त रक्त पंप नहीं कर पाता।
    • इसे कभी-कभी 'संकुलीय हृद्पात' (Congestive Heart Failure) भी कहते हैं, क्योंकि फेफड़ों का संकुलन (congestion) इसका एक मुख्य लक्षण है।
    • यह हृदयाघात (Heart Attack - हृदय पेशी का क्षतिग्रस्त होना) या हृद्-रोध (Cardiac Arrest - हृदय का धड़कना बंद कर देना) से भिन्न है।

अभ्यास हेतु बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs):

प्रश्न 1: मानव रक्त में कौन सा प्रोटीन रक्त का थक्का जमने के लिए आवश्यक है?
(क) एल्ब्यूमिन
(ख) ग्लोब्युलिन
(ग) फाइब्रिनोजन
(घ) हीमोग्लोबिन

प्रश्न 2: 'सार्वत्रिक दाता' रक्त समूह कौन सा है?
(क) A
(ख) B
(ग) AB
(घ) O

प्रश्न 3: हृदय का 'गति प्रेरक' (Pacemaker) किसे कहा जाता है?
(क) AV नोड
(ख) SA नोड
(ग) पुरकिंजे तंतु
(घ) हिज का बंडल

प्रश्न 4: ECG में 'QRS सम्मिश्र' क्या दर्शाता है?
(क) आलिंदों का विध्रुवण
(ख) निलयों का पुनःध्रुवण
(ग) निलयों का विध्रुवण
(घ) आलिंदों का पुनःध्रुवण

प्रश्न 5: सामान्य वयस्क मनुष्य का सिस्टोलिक/डायस्टोलिक रक्त दाब कितना होता है?
(क) 80/120 mm Hg
(ख) 120/80 mm Hg
(ग) 140/90 mm Hg
(घ) 90/140 mm Hg

प्रश्न 6: लाल रक्त कणिकाओं (RBCs) का कब्रिस्तान किसे कहा जाता है?
(क) यकृत
(ख) अस्थि मज्जा
(ग) प्लीहा
(घ) वृक्क

प्रश्न 7: दोहरा परिसंचरण किसमें पाया जाता है?
(क) मछली
(ख) केंचुआ
(ग) कॉकरोच
(घ) मनुष्य

प्रश्न 8: कौन सी श्वेत रक्त कणिका भक्षकाणु क्रिया (Phagocytosis) में सर्वाधिक सक्रिय होती है?
(क) इओसिनोफिल
(ख) बेसोफिल
(ग) न्यूट्रोफिल
(घ) लिम्फोसाइट

प्रश्न 9: हृदय की दूसरी ध्वनि ('डब') किसके बंद होने से उत्पन्न होती है?
(क) त्रिवलनी कपाट
(ख) द्विवलनी कपाट
(ग) अर्धचंद्र कपाटिकाएं
(घ) यूस्टेकियन कपाट

प्रश्न 10: गर्भ रक्ताणुकोरकता (Erythroblastosis fetalis) किस स्थिति में हो सकती है?
(क) माँ Rh+, पिता Rh-
(ख) माँ Rh-, पिता Rh+
(ग) माँ Rh+, पिता Rh+
(घ) माँ Rh-, पिता Rh-

उत्तर कुंजी:

  1. (ग)
  2. (घ)
  3. (ख)
  4. (ग)
  5. (ख)
  6. (ग)
  7. (घ)
  8. (ग)
  9. (ग)
  10. (ख)

इन नोट्स का ध्यानपूर्वक अध्ययन करें और दिए गए प्रश्नों को हल करने का प्रयास करें। यह आपकी परीक्षा की तैयारी में सहायक होगा। कोई शंका हो तो अवश्य पूछें।

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