Class 11 Biology Notes Chapter 19 (उत्सर्जी उत्पाद एवं उनका निष्कासन) – Jeev Vigyan Book

विद्यार्थियों, आज हम जीव विज्ञान के एक महत्वपूर्ण अध्याय 'उत्सर्जी उत्पाद एवं उनका निष्कासन' (Chapter 19 - Excretory Products and their Elimination) का अध्ययन करेंगे। यह अध्याय सरकारी परीक्षाओं की तैयारी के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे अक्सर प्रश्न पूछे जाते हैं। हम इसके मुख्य बिंदुओं को विस्तार से समझेंगे।
अध्याय 19: उत्सर्जी उत्पाद एवं उनका निष्कासन
परिचय:
उपापचयी क्रियाओं (Metabolic activities) के फलस्वरूप शरीर में कई अपशिष्ट पदार्थ बनते हैं, जिनमें नाइट्रोजनी अपशिष्ट (जैसे अमोनिया, यूरिया, यूरिक अम्ल) प्रमुख हैं। इन हानिकारक पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने की प्रक्रिया उत्सर्जन (Excretion) कहलाती है। इसके साथ ही शरीर में जल और आयनों का संतुलन बनाए रखना परासरणनियमन (Osmoregulation) कहलाता है।
नाइट्रोजनी अपशिष्टों के प्रकार:
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अमोनिया (Ammonia):
- अत्यधिक विषैला (Highly toxic)।
- उत्सर्जन के लिए अत्यधिक जल की आवश्यकता होती है।
- मुख्यतः जलीय अकशेरुकी, अस्थिल मछलियाँ (Bony fishes) और जलीय उभयचर अमोनिया का उत्सर्जन करते हैं।
- अमोनिया उत्सर्जित करने वाले प्राणी अमोनोटेलिक (Ammonotelic) कहलाते हैं।
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यूरिया (Urea):
- अमोनिया की तुलना में कम विषैला।
- उत्सर्जन के लिए कम जल की आवश्यकता होती है।
- स्तनधारी (Mammals), कई स्थलीय उभयचर (Terrestrial amphibians) और समुद्री मछलियाँ (Marine fishes) यूरिया का उत्सर्जन करती हैं।
- यकृत (Liver) में ऑर्निथिन चक्र (Ornithine cycle) द्वारा अमोनिया से यूरिया का निर्माण होता है।
- यूरिया उत्सर्जित करने वाले प्राणी यूरियोटेलिक (Ureotelic) कहलाते हैं।
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यूरिक अम्ल (Uric Acid):
- सबसे कम विषैला।
- उत्सर्जन के लिए बहुत कम जल की आवश्यकता होती है (लगभग जल रहित)।
- यह पेस्ट या गोली (Pellet) के रूप में उत्सर्जित होता है।
- सरीसृप (Reptiles), पक्षी (Birds), कीट (Insects) और स्थलीय घोंघे (Land snails) यूरिक अम्ल का उत्सर्जन करते हैं।
- यूरिक अम्ल उत्सर्जित करने वाले प्राणी यूरिकोटेलिक (Uricotelic) कहलाते हैं।
विभिन्न प्राणियों में उत्सर्जी अंग:
- आदि वृक्कक या ज्वाला कोशिकाएँ (Protonephridia or Flame cells): प्लेटीहेल्मिन्थीज (जैसे प्लेनेरिया), रोटिफर, कुछ एनेलिड और सिफेलोकॉर्डेट (एम्फिऑक्सस)। कार्य: परासरणनियमन और उत्सर्जन।
- वृक्कक (Nephridia): एनेलिडा (जैसे केंचुआ)। कार्य: उत्सर्जन और परासरणनियमन।
- मैल्पीगी नलिकाएँ (Malpighian tubules): कीट (जैसे कॉकरोच)। कार्य: उत्सर्जन और परासरणनियमन।
- श्रृंगिक ग्रंथियाँ या हरित ग्रंथियाँ (Antennal glands or Green glands): क्रस्टेशियाई (जैसे झींगा)। कार्य: उत्सर्जन।
- वृक्क (Kidneys): कशेरुकी (Vertebrates)।
मानव उत्सर्जन तंत्र (Human Excretory System):
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अंग: एक जोड़ी वृक्क (Kidneys), एक जोड़ी मूत्रवाहिनी (Ureters), एक मूत्राशय (Urinary bladder) और एक मूत्रमार्ग (Urethra)।
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वृक्क (Kidney):
- स्थान: उदर गुहा में कशेरुक दंड के दोनों ओर स्थित।
- आकार: सेम के बीज के आकार का (Bean-shaped)।
- संरचना:
- बाहरी स्तर: वल्कुट (Cortex)
- आंतरिक स्तर: मध्यांश (Medulla), जो कई शंक्वाकार मध्यांश पिरामिड (Medullary pyramids) में बंटा होता है।
- वल्कुट मध्यांश पिरामिड के बीच धंसकर बर्टिनी के स्तंभ (Columns of Bertini) बनाता है।
- प्रत्येक पिरामिड वृक्क कैलिक्स (Renal calyx) में खुलता है, जो मिलकर वृक्क श्रोणि (Renal pelvis) बनाते हैं।
- हाइलम (Hilum): वृक्क का वह खांच जहां से वृक्क धमनी प्रवेश करती है, वृक्क शिरा और मूत्रवाहिनी बाहर निकलती है।
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नेफ्रॉन (वृक्काणु) (Nephron):
- वृक्क की संरचनात्मक और क्रियात्मक इकाई। प्रत्येक वृक्क में लगभग 10 लाख नेफ्रॉन होते हैं।
- भाग:
- केशिकागुच्छ (Glomerulus): अभिवाही धमनिका (Afferent arteriole) से बनी रक्त केशिकाओं का गुच्छा। रक्त अपवाही धमनिका (Efferent arteriole) द्वारा बाहर ले जाया जाता है।
- बोमन सम्पुट (Bowman's capsule): प्यालेनुमा संरचना जो केशिकागुच्छ को घेरे रहती है।
- केशिकागुच्छ + बोमन सम्पुट = मैल्पीगी काय या वृक्क कणिका (Malpighian body or Renal corpuscle)
- समीपस्थ संवलित नलिका (Proximal Convoluted Tubule - PCT): बोमन सम्पुट से जुड़ी अत्यधिक कुंडलित नलिका।
- हेनले लूप (Loop of Henle): 'U' आकार की नलिका, जिसमें अवरोही भुजा (Descending limb) और आरोही भुजा (Ascending limb) होती है।
- दूरस्थ संवलित नलिका (Distal Convoluted Tubule - DCT): हेनले लूप के बाद की कुंडलित नलिका।
- संग्रह नलिका (Collecting Duct): कई नेफ्रॉन की DCT इसमें खुलती हैं। कई संग्रह नलिकाएं मिलकर वृक्क श्रोणि में खुलती हैं।
- नेफ्रॉन के प्रकार:
- वल्कुटीय नेफ्रॉन (Cortical nephrons): अधिकांश नेफ्रॉन (85%), हेनले लूप छोटा, मध्यांश में कम धंसा हुआ।
- मध्यांश-समीपस्थ नेफ्रॉन (Juxtamedullary nephrons): हेनले लूप लंबा, मध्यांश में गहराई तक धंसा हुआ। मूत्र सांद्रण में महत्वपूर्ण। इनके साथ वासा रेक्टा (Vasa recta) (अपवाही धमनिका से निकली केशिका का लूप) पाया जाता है।
मूत्र निर्माण (Urine Formation):
तीन मुख्य प्रक्रियाएं:
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गुच्छीय निस्यंदन (Glomerular Filtration):
- केशिकागुच्छ में रक्त का दाब अधिक होने के कारण रक्त बोमन सम्पुट में छनता है (प्रोटीन और रक्त कोशिकाओं को छोड़कर)। इसे परानिस्यंदन (Ultrafiltration) कहते हैं।
- प्रति मिनट बनने वाले निस्यंद की मात्रा गुच्छीय निस्यंदन दर (Glomerular Filtration Rate - GFR) कहलाती है (स्वस्थ व्यक्ति में लगभग 125 मिली/मिनट या 180 लीटर/दिन)।
- आसन्नगुच्छ उपकरण (Juxtaglomerular Apparatus - JGA): DCT और अभिवाही धमनिका के संपर्क स्थल पर स्थित विशेष संरचना। GFR गिरने पर रेनिन (Renin) स्रावित करता है।
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चयनात्मक पुनःअवशोषण (Selective Reabsorption):
- निस्यंद में उपस्थित आवश्यक पदार्थ (जैसे ग्लूकोज, अमीनो अम्ल, Na+, K+, जल) नेफ्रॉन के विभिन्न भागों द्वारा पुनः रक्त में अवशोषित कर लिए जाते हैं।
- PCT: लगभग सभी आवश्यक पोषक तत्व, 70-80% वैद्युत अपघट्य और जल का पुनःअवशोषण।
- हेनले लूप (अवरोही भुजा): जल के लिए पारगम्य, लवणों के लिए अपारगम्य।
- हेनले लूप (आरोही भुजा): लवणों के लिए पारगम्य, जल के लिए अपारगम्य।
- DCT: Na+ और जल का सशर्त पुनःअवशोषण (हार्मोन पर निर्भर)। HCO3- का पुनःअवशोषण।
- संग्रह नलिका: जल का बड़ा हिस्सा अवशोषित होकर मूत्र को सांद्रित करता है। यूरिया का कुछ अंश मध्यांश में विसरित होता है।
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नलिका स्रवण (Tubular Secretion):
- रक्त में उपस्थित अपशिष्ट पदार्थ (जैसे H+, K+, अमोनिया) सक्रिय रूप से नलिका कोशिकाओं द्वारा निस्यंद में स्रावित किए जाते हैं।
- यह मुख्यतः PCT और DCT में होता है।
- यह रक्त में आयनिक और अम्ल-क्षार संतुलन बनाए रखने में सहायक है।
मूत्र का सांद्रण (Concentration of Urine):
- प्रतिधारा क्रियाविधि (Countercurrent Mechanism): हेनले लूप और वासा रेक्टा के बीच विपरीत दिशा में प्रवाह के कारण मध्यांश अंतराकाश (Medullary interstitium) में परासरणी प्रवणता (Osmotic gradient) स्थापित होती है (वल्कुट में 300 mOsmol/L से आंतरिक मध्यांश में 1200 mOsmol/L तक)।
- यह प्रवणता संग्रह नलिका से जल के पुनःअवशोषण में मदद करती है, जिससे मूत्र सांद्रित होता है।
- ADH (एंटीडाइयूरेटिक हार्मोन / वैसोप्रेसिन): यह हार्मोन DCT और संग्रह नलिका की जल के प्रति पारगम्यता बढ़ाता है, जिससे जल का पुनःअवशोषण बढ़ता है और मूत्र सांद्रित होता है।
वृक्क क्रियाओं का नियमन (Regulation of Kidney Function):
- हाइपोथैलेमस द्वारा: शरीर से जल की हानि होने पर परासरणग्राही (Osmoreceptors) सक्रिय होते हैं, हाइपोथैलेमस ADH स्रावित करने के लिए पश्च पीयूष ग्रंथि को प्रेरित करता है। ADH जल पुनःअवशोषण बढ़ाता है।
- JGA द्वारा (रेनिन-एंजियोटेंसिन क्रियाविधि - RAAS): GFR या रक्त दाब कम होने पर JGA रेनिन स्रावित करता है। रेनिन एंजियोटेंसिनोजन को एंजियोटेंसिन I और फिर एंजियोटेंसिन II में बदलता है। एंजियोटेंसिन II:
- एक शक्तिशाली वाहिका संकीर्णक (Vasoconstrictor) है, रक्त दाब बढ़ाता है।
- एड्रिनल कॉर्टेक्स को एल्डोस्टेरॉन (Aldosterone) स्रावित करने के लिए प्रेरित करता है। एल्डोस्टेरॉन DCT से Na+ और जल का पुनःअवशोषण बढ़ाता है। इससे रक्त दाब और GFR सामान्य होते हैं।
- ANF (एट्रियल नेट्रीयूरेटिक फैक्टर): हृदय के आलिंद (Atria) की भित्ति से रक्त दाब बढ़ने पर स्रावित होता है। यह वाहिका विस्फारक (Vasodilator) है और रेनिन-एंजियोटेंसिन क्रियाविधि को रोकता है, जिससे रक्त दाब कम होता है।
मूत्रण (Micturition):
मूत्राशय के भरने पर उसकी भित्ति में स्थित प्रसार ग्राही (Stretch receptors) केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (CNS) को संकेत भेजते हैं। CNS से मूत्राशय की चिकनी पेशियों में संकुचन और मूत्रमार्ग अवरोधिनी (Urethral sphincter) में शिथिलन का संकेत आता है, जिससे मूत्र का निष्कासन होता है। यह एक तंत्रिकीय प्रतिवर्ती क्रिया है जिस पर ऐच्छिक नियंत्रण भी होता है।
उत्सर्जन में अन्य अंगों की भूमिका:
- फेफड़े (Lungs): CO2 (बड़ी मात्रा में) और जलवाष्प का उत्सर्जन।
- यकृत (Liver): अमोनिया को यूरिया में बदलना, पित्त वर्णक (Bile pigments), कोलेस्ट्रॉल, स्टेरॉयड हार्मोन आदि का पित्त रस के साथ उत्सर्जन।
- त्वचा (Skin): स्वेद ग्रंथियाँ (Sweat glands) पसीने के रूप में जल, NaCl, कुछ मात्रा में यूरिया, लैक्टिक अम्ल आदि का उत्सर्जन करती हैं। तैल ग्रंथियाँ (Sebaceous glands) सीबम द्वारा स्टेरोल, हाइड्रोकार्बन, मोम आदि का उत्सर्जन करती हैं।
उत्सर्जन तंत्र के विकार (Disorders of Excretory System):
- वृक्कों की विफलता (Kidney Failure / Renal Failure): वृक्कों द्वारा पर्याप्त मात्रा में मूत्र न बना पाना।
- यूरेमिया (Uremia): रक्त में यूरिया का अत्यधिक जमाव। अत्यंत हानिकारक, वृक्क विफलता का परिणाम। उपचार: हीमोडायलिसिस (Hemodialysis) या रक्त अपोहन (Artificial kidney)।
- वृक्क पथरी (Renal Calculi / Kidney Stones): वृक्क में अघुलनशील क्रिस्टलित लवणों (जैसे कैल्शियम ऑक्जेलेट) के पिंड।
- गुच्छ शोथ (Glomerulonephritis): वृक्क के केशिकागुच्छों में सूजन।
उपचार:
- हीमोडायलिसिस: रक्त को एक कृत्रिम वृक्क (अपोहन इकाई) से प्रवाहित कर यूरिया और अन्य अपशिष्टों को हटाया जाता है।
- वृक्क प्रत्यारोपण (Kidney Transplantation): अंतिम वृक्क विफलता की स्थिति में एक स्वस्थ दाता से वृक्क लेकर रोगी में प्रत्यारोपित किया जाता है।
यह अध्याय मानव शरीर क्रिया विज्ञान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इन सभी बिन्दुओं को ध्यानपूर्वक पढ़ें और समझें।
अभ्यास हेतु बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs):
प्रश्न 1: पक्षी और सरीसृप मुख्य रूप से किस नाइट्रोजनी अपशिष्ट का उत्सर्जन करते हैं?
(a) अमोनिया
(b) यूरिया
(c) यूरिक अम्ल
(d) अमीनो अम्ल
प्रश्न 2: मानव वृक्क की संरचनात्मक और क्रियात्मक इकाई क्या है?
(a) मेडुलरी पिरामिड
(b) नेफ्रॉन (वृक्काणु)
(c) बर्टिनी के स्तंभ
(d) हाइलम
प्रश्न 3: केशिकागुच्छ (Glomerulus) और बोमन सम्पुट (Bowman's capsule) मिलकर क्या कहलाते हैं?
(a) हेनले लूप
(b) संग्रह नलिका
(c) मैल्पीगी काय (वृक्क कणिका)
(d) आसन्नगुच्छ उपकरण (JGA)
प्रश्न 4: मूत्र निर्माण की प्रक्रिया में परानिस्यंदन (Ultrafiltration) कहाँ होता है?
(a) समीपस्थ संवलित नलिका (PCT) में
(b) हेनले लूप की अवरोही भुजा में
(c) केशिकागुच्छ (Glomerulus) में
(d) संग्रह नलिका में
प्रश्न 5: निम्नलिखित में से कौन सा हार्मोन वृक्क नलिकाओं द्वारा जल के पुनःअवशोषण को नियंत्रित करता है?
(a) रेनिन
(b) एल्डोस्टेरॉन
(c) ADH (वैसोप्रेसिन)
(d) ANF
प्रश्न 6: प्रतिधारा क्रियाविधि (Countercurrent mechanism) का मुख्य कार्य क्या है?
(a) रक्त का शुद्धिकरण
(b) मूत्र का सांद्रण
(c) ग्लूकोज का पुनःअवशोषण
(d) H+ आयनों का स्रवण
प्रश्न 7: आसन्नगुच्छ उपकरण (JGA) द्वारा कौन सा एंजाइम/हार्मोन स्रावित होता है जब GFR कम हो जाता है?
(a) रेनिन
(b) एंजियोटेंसिन II
(c) एल्डोस्टेरॉन
(d) ADH
प्रश्न 8: यूरिया का संश्लेषण मुख्य रूप से किस अंग में होता है?
(a) वृक्क
(b) फेफड़े
(c) यकृत
(d) प्लीहा
प्रश्न 9: रक्त में यूरिया के अत्यधिक जमाव की स्थिति क्या कहलाती है?
(a) ग्लाइकोसुरिया
(b) कीटोनूरिया
(c) यूरेमिया
(d) हीमैटूरिया
प्रश्न 10: हेनले लूप की आरोही भुजा (Ascending limb) किसके लिए अपारगम्य (impermeable) होती है?
(a) जल
(b) सोडियम आयन
(c) पोटेशियम आयन
(d) यूरिया
उत्तर कुंजी (Answer Key):
- (c) यूरिक अम्ल
- (b) नेफ्रॉन (वृक्काणु)
- (c) मैल्पीगी काय (वृक्क कणिका)
- (c) केशिकागुच्छ (Glomerulus) में
- (c) ADH (वैसोप्रेसिन)
- (b) मूत्र का सांद्रण
- (a) रेनिन
- (c) यकृत
- (c) यूरेमिया
- (a) जल
इन नोट्स और प्रश्नों का अच्छी तरह से अध्ययन करें। आपकी परीक्षा के लिए शुभकामनाएँ!