Class 11 Biology Notes Chapter 2 (जीव जगत का वर्गीकरण) – Jeev Vigyan Book

नमस्ते विद्यार्थियों!
आज हम कक्षा 11 जीव विज्ञान के अध्याय 2, 'जीव जगत का वर्गीकरण' का अध्ययन करेंगे। यह अध्याय प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे जीवों के विभिन्न समूहों और उनके वर्गीकरण के आधारभूत सिद्धांतों की समझ विकसित होती है। चलिए, विस्तार से इसके मुख्य बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
अध्याय 2: जीव जगत का वर्गीकरण (Biological Classification)
परिचय:
पृथ्वी पर लाखों प्रकार के जीव पाए जाते हैं। इन्हें सरलता से अध्ययन करने, पहचानने और उनके अंतर्संबंधों को समझने के लिए वर्गीकृत करना आवश्यक है। वर्गीकरण का अर्थ है जीवों को उनकी समानताओं और असमानताओं के आधार पर विभिन्न समूहों (टैक्सा) में व्यवस्थित करना।
वर्गीकरण के प्रारंभिक प्रयास:
- अरस्तू: सबसे पहले वैज्ञानिक आधार पर वर्गीकरण का प्रयास किया। उन्होंने पादपों को आकारिकी के आधार पर शाक, झाड़ी व वृक्ष में तथा प्राणियों को लाल रक्त की उपस्थिति या अनुपस्थिति के आधार पर वर्गीकृत किया।
द्विजगत वर्गीकरण पद्धति (Two Kingdom Classification):
- कैरोलस लिनियस ने प्रस्तावित की।
- सभी जीवों को दो जगतों में बांटा:
- जगत प्लांटी (Plantae): सभी पादप (शैवाल, कवक, ब्रायोफाइट, टेरिडोफाइट, अनावृतबीजी, आवृतबीजी, जीवाणु)।
- जगत ऐनिमेलिया (Animalia): सभी प्राणी (एककोशिकीय प्रोटोजोआ से लेकर बहुकोशिकीय कशेरुकी तक)।
- कमियाँ:
- प्रोकैरियोटिक (जीवाणु, नील-हरित शैवाल) और यूकैरियोटिक जीवों में भेद नहीं किया गया।
- एककोशिकीय और बहुकोशिकीय जीवों को एक साथ रखा गया।
- प्रकाशसंश्लेषी (हरे शैवाल) और अप्रकाशसंश्लेषी (कवक) को पादप जगत में एक साथ रखा गया।
- कुछ जीव ऐसे थे जिन्हें किसी भी जगत में रखना स्पष्ट नहीं था (जैसे- यूग्लीना)।
पंच जगत वर्गीकरण पद्धति (Five Kingdom Classification):
- आर. एच. व्हिटेकर (R.H. Whittaker) द्वारा 1969 में प्रस्तावित। यह सर्वाधिक मान्य पद्धति है।
- वर्गीकरण के मुख्य आधार:
- कोशिका संरचना (Cell Structure): प्रोकैरियोटिक या यूकैरियोटिक।
- शारीरिक संगठन (Body Organization): एककोशिकीय या बहुकोशिकीय; ऊतक/अंग स्तर।
- पोषण की विधि (Mode of Nutrition): स्वपोषी (प्रकाशसंश्लेषी या रसायनसंश्लेषी) या परपोषी (मृतजीवी, परजीवी, प्राणिसमभोजी)।
- प्रजनन (Reproduction): अलैंगिक या लैंगिक।
- जातिवृत्तीय संबंध (Phylogenetic Relationships): विकासीय संबंध।
- पाँच जगत:
- जगत मोनेरा (Kingdom Monera)
- जगत प्रोटिस्टा (Kingdom Protista)
- जगत फंजाई (कवक) (Kingdom Fungi)
- जगत प्लांटी (पादप) (Kingdom Plantae)
- जगत ऐनिमेलिया (प्राणी) (Kingdom Animalia)
1. जगत मोनेरा (Kingdom Monera):
- मुख्य लक्षण:
- सभी सदस्य प्रोकैरियोटिक होते हैं (अविकसित केंद्रक, झिल्लीबद्ध कोशिकांग अनुपस्थित)।
- अधिकांश एककोशिकीय होते हैं।
- कोशिका भित्ति पेप्टिडोग्लाइकन (म्यूरीन) की बनी होती है (आद्य बैक्टीरिया में भिन्न)।
- पोषण: स्वपोषी (प्रकाशसंश्लेषी या रसायनसंश्लेषी) या परपोषी (मृतजीवी या परजीवी)।
- प्रजनन: मुख्यतः द्विखंडन द्वारा; विपरीत परिस्थितियों में बीजाणु निर्माण; लैंगिक प्रजनन (संयुग्मन, रूपांतरण, पारक्रमण द्वारा आनुवंशिक पुनर्योजन)।
- समूह:
- आद्य बैक्टीरिया (Archaebacteria): ये अत्यंत कठिन वास स्थानों में पाए जाते हैं। कोशिका भित्ति की संरचना भिन्न होती है।
- हैलोफी (Halophiles): अत्यधिक लवणीय क्षेत्र।
- थर्मोएसिडोफिल (Thermoacidophiles): गर्म झरने (उच्च ताप व निम्न pH)।
- मेथेनोजन (Methanogens): कच्छ क्षेत्र (मार्शी एरिया), जुगाली करने वाले पशुओं (गाय, भैंस) के आंत्र में। ये मेथेन (बायोगैस) उत्पन्न करते हैं।
- यूबैक्टीरिया (Eubacteria) ('सत्य' बैक्टीरिया):
- कठोर कोशिका भित्ति, कशाभिका (यदि गतिशील हैं)।
- सायनोबैक्टीरिया (नील-हरित शैवाल): प्रकाशसंश्लेषी स्वपोषी। क्लोरोफिल 'a' उपस्थित। एककोशिकीय, कोलोनीय या तंतुमय। कुछ में हेटेरोसिस्ट नामक विशिष्ट कोशिकाएँ होती हैं जो नाइट्रोजन स्थिरीकरण करती हैं (उदा. नॉस्टॉक, एनाबीना)। प्रदूषित जल में फलन (ब्लूम) बनाते हैं।
- रसायनसंश्लेषी स्वपोषी (Chemosynthetic Autotrophs): अकार्बनिक पदार्थों (नाइट्राइट, नाइट्रेट, अमोनिया) को ऑक्सीकृत कर ऊर्जा प्राप्त करते हैं और ATP उत्पादन करते हैं। पोषक तत्वों (N, P, Fe, S) के पुनर्चक्रण में महत्वपूर्ण।
- परपोषी बैक्टीरिया (Heterotrophic Bacteria): प्रकृति में सर्वाधिक संख्या में। अधिकांश अपघटक होते हैं। महत्वपूर्ण उपयोग: दूध से दही बनाना, प्रतिजैविक उत्पादन, लेग्यूम जड़ों में नाइट्रोजन स्थिरीकरण। कुछ रोगजनक होते हैं (हैजा, टायफाइड, टिटेनस, सिट्रस कैंकर)।
- माइकोप्लाज्मा (Mycoplasma):
- सबसे छोटी ज्ञात जीवित कोशिकाएँ।
- कोशिका भित्ति पूर्णतः अनुपस्थित।
- ऑक्सीजन के बिना भी जीवित रह सकते हैं।
- पादपों और जंतुओं में रोगजनक।
- आद्य बैक्टीरिया (Archaebacteria): ये अत्यंत कठिन वास स्थानों में पाए जाते हैं। कोशिका भित्ति की संरचना भिन्न होती है।
2. जगत प्रोटिस्टा (Kingdom Protista):
- मुख्य लक्षण:
- सभी एककोशिकीय यूकैरियोटिक जीव।
- सुसंगठित केंद्रक एवं झिल्लीबद्ध कोशिकांग उपस्थित।
- मुख्यतः जलीय।
- गमन के लिए सीलिया, फ्लैजेला या कूटपाद हो सकते हैं।
- पोषण: स्वपोषी (प्रकाशसंश्लेषी) या परपोषी (प्राणिसम या मृतजीवी)।
- प्रजनन: अलैंगिक (द्विखंडन, बहुखंडन) तथा लैंगिक (कोशिका संलयन व युग्मनज निर्माण द्वारा)।
- समूह:
- क्राइसोफाइट (Chrysophytes):
- सुनहरे शैवाल (डेस्मिड) और डायटम शामिल।
- स्वच्छ जल व समुद्री पर्यावरण दोनों में।
- प्रकाशसंश्लेषी।
- डायटम: कोशिका भित्ति सिलिका की बनी होती है, जो साबुनदानी की तरह दो अतिछादित कवच बनाती है। भित्ति अनश्वर होती है। मृत डायटम अपने वास स्थान पर बड़ी मात्रा में कोशिका भित्ति अवशेष छोड़ते हैं जिसे 'डायटमी मृदा' (Diatomaceous Earth) कहते हैं। यह मृदा पॉलिश करने, तेलों व सिरप के निस्यंदन (filtration) में उपयोगी है। डायटम समुद्र के मुख्य उत्पादक हैं।
- डाइनोफ्लैजिलेट (Dinoflagellates):
- मुख्यतः समुद्री एवं प्रकाशसंश्लेषी।
- वर्णकों के आधार पर पीले, हरे, भूरे, नीले या लाल दिखते हैं।
- कोशिका भित्ति में सेल्युलोज की कड़ी पट्टिकाएँ।
- दो फ्लैजेला होते हैं (एक अनुदैर्ध्य, दूसरा अनुप्रस्थ)।
- कुछ (जैसे गोनियोलैक्स) तीव्र गुणन कर समुद्र को लाल (लाल तरंगें - Red tides) कर देते हैं, जिनसे निकले जीवविष मछली व अन्य समुद्री जीवों को मार सकते हैं।
- यूग्लीनॉइड (Euglenoids):
- अधिकांशतः स्थिर मीठे जल में पाए जाते हैं।
- कोशिका भित्ति के स्थान पर प्रोटीनयुक्त परत 'पेलिकल' होती है जो शरीर को लचीला बनाती है।
- दो फ्लैजेला (एक छोटा, एक लंबा)।
- सूर्य के प्रकाश में प्रकाशसंश्लेषी (स्वपोषी), प्रकाश न होने पर अन्य सूक्ष्मजीवों का शिकार कर परपोषी की तरह व्यवहार करते हैं (मिक्सोट्रॉफिक पोषण)। वर्णक उच्च पादपों के समान। उदा. यूग्लीना।
- अवकंप कवक (Slime Moulds):
- मृतजीवी प्रोटिस्ट।
- सड़ी-गली टहनियों, पत्तों के साथ गति करते हुए जैविक पदार्थों का भक्षण करते हैं।
- अनुकूल परिस्थितियों में समूह बनाकर 'प्लाज्मोडियम' बनाते हैं जो कई फीट तक बढ़ सकता है।
- प्रतिकूल परिस्थितियों में प्लाज्मोडियम विभेदित होकर सिरों पर बीजाणु युक्त फलनकाय बनाता है। बीजाणुओं का प्रकीर्णन वायु द्वारा होता है। बीजाणुओं में भित्ति होती है और ये अत्यंत प्रतिरोधी होते हैं।
- प्रोटोजोआ (Protozoans):
- सभी परपोषी (परभक्षी या परजीवी)।
- प्राणियों के पुरातन संबंधी माने जाते हैं।
- चार प्रमुख समूह:
- अमीबीय प्रोटोजोआ (Amoeboid): कूटपादों (Pseudopodia) द्वारा प्रचलन व भोजन ग्रहण। समुद्री प्रकारों में सिलिका कवच। कुछ परजीवी (उदा. एंटअमीबा हिस्टोलिटिका - अमीबिएसिस)।
- कशाभी प्रोटोजोआ (Flagellated): फ्लैजेला उपस्थित। स्वतंत्र या परजीवी। परजीवी रूप रोगकारक (उदा. ट्रिपैनोसोमा - निद्रालु व्याधि)।
- पक्ष्माभी प्रोटोजोआ (Ciliated): सीलिया उपस्थित। अत्यधिक संख्या में सीलिया की लयबद्ध गति से प्रचलन व भोजन ग्रहण। गुलेट (ग्रसिका) में भोजन पहुँचता है। उदा. पैरामीशियम।
- स्पोरोजोआ (Sporozoans): जीवन चक्र में संक्रमणकारी बीजाणु जैसी अवस्था। प्रचलन अंग नहीं। सभी परजीवी। उदा. प्लाज्मोडियम (मलेरिया परजीवी)।
- क्राइसोफाइट (Chrysophytes):
3. जगत फंजाई (कवक) (Kingdom Fungi):
- मुख्य लक्षण:
- यूकैरियोटिक, परपोषी जीव।
- अधिकांश बहुकोशिकीय (अपवाद: यीस्ट - एककोशिकीय)।
- शरीर लंबे, धागे जैसी संरचनाओं 'कवक तंतु' (Hyphae) से बना होता है। कवक तंतुओं का जाल 'कवक जाल' (Mycelium) कहलाता है। कुछ कवक तंतु सतत नलिकाकार होते हैं जिनमें बहुकेंद्रकीय कोशिकाद्रव्य भरा होता है (संकोशिकी - Coenocytic)। अन्य में पट (Septa) होते हैं।
- कोशिका भित्ति काइटिन (Chitin) व पॉलिसैकेराइड की बनी होती है।
- पोषण: मृतजीवी (Saprophytic - सड़े गले कार्बनिक पदार्थों से), परजीवी (Parasitic - जीवित पौधों/जंतुओं पर), सहजीवी (Symbiotic - शैवाल के साथ लाइकेन, उच्च पादपों की जड़ों के साथ माइकोराइजा)।
- प्रजनन:
- कायिक (Vegetative): विखंडन, मुकुलन, खंडन।
- अलैंगिक (Asexual): बीजाणु (Spores) द्वारा (जैसे कोनिडिया, चलबीजाणु - Zoospores, अचलबीजाणु - Aplanospores)।
- लैंगिक (Sexual): ऊस्पोर, एस्कोस्पोर, बेसिडियोस्पोर। लैंगिक चक्र में तीन चरण: प्लाज्मोगैमी (कोशिकाद्रव्य संलयन), केंद्रक संलयन (Karyogamy), और युग्मनज में अर्धसूत्री विभाजन से अगुणित बीजाणु बनना। कुछ कवकों (एस्कोमाइसिटीज, बेसिडियोमाइसिटीज) में प्लाज्मोगैमी के तुरंत बाद केंद्रक संलयन नहीं होता, एक द्विकेंद्रकी अवस्था (n+n) बनती है जिसे द्विकेंद्रक प्रावस्था (Dikaryophase) कहते हैं। बाद में पैतृक केंद्रक संलयित होकर द्विगुणित कोशिका बनाते हैं।
- वर्ग: कवकजाल की संरचना, बीजाणु बनने तथा फलनकाय बनने की विधि के आधार पर वर्गीकरण।
- फाइकोमाइसिटीज (Phycomycetes):
- जलीय आवासों, सड़ी-गली लकड़ी, नम व सीलन भरे स्थानों पर।
- कवकजाल अपटीय (Aseptate) व संकोशिकी (Coenocytic)।
- अलैंगिक जनन चलबीजाणु (zoospores) या अचलबीजाणु (aplanospores) द्वारा।
- लैंगिक जनन युग्मकों के संलयन से युग्माणु (Zygospore) द्वारा। युग्मक समयुग्मकी (Isogamous) या असमयुग्मकी/विषमयुग्मकी (Anisogamous/Oogamous) हो सकते हैं।
- उदा. म्यूकर, राइजोपस (ब्रेड मोल्ड), एल्बूगो (सरसों पर परजीवी)।
- एस्कोमाइसिटीज (Ascomycetes) - 'थैली फंजाई' (Sac Fungi):
- अधिकांश बहुकोशिकीय (उदा. पेनिसिलियम) या दुर्लभ रूप से एककोशिकीय (उदा. यीस्ट - सैकेरोमाइसीज)।
- मृतजीवी, अपघटक, परजीवी या शमलरागी (dung loving)।
- कवकजाल शाखित व पटीय (Septate)।
- अलैंगिक बीजाणु कोनिडिया, जो विशिष्ट कवकजाल 'कोनिडियोफोर' पर बनते हैं।
- लैंगिक बीजाणु 'एस्कोस्पोर', जो थैलीसम 'एसकस' (ascus) में अंतर्जात रूप से उत्पन्न होते हैं। ये एसकस विशिष्ट फलनकाय 'एस्कोकार्प' में व्यवस्थित होते हैं।
- उदा. एस्पर्जिलस, क्लेविसेप्स, न्यूरोस्पोरा (जैव रसायन व आनुवंशिक प्रयोगों में उपयोगी), मोरिल व ट्रफल (खाने योग्य)।
- बेसिडियोमाइसिटीज (Basidiomycetes) - 'क्लब फंजाई':
- मशरूम, ब्रैकेट फंजाई, पफबॉल शामिल।
- मिट्टी, लट्ठों, वृक्षों के ठूंठों पर, सजीव पादपों पर परजीवी (किट व कंड/स्मट)।
- कवकजाल शाखित व पटीय।
- अलैंगिक बीजाणु प्रायः नहीं पाए जाते। कायिक जनन खंडन द्वारा।
- लैंगिक अंग अनुपस्थित, परंतु प्लाज्मोगैमी भिन्न स्रोतों की दो कायिक कोशिकाओं के संलयन से होती है, जिससे द्विकेंद्रकी संरचना बनती है जो अंततः बेसिडियम बनाती है। बेसिडियम में केंद्रक संलयन व अर्धसूत्री विभाजन होता है, जिससे 4 'बेसिडियोस्पोर' बहिर्जात रूप से उत्पन्न होते हैं। बेसिडियम फलनकाय 'बेसिडियोकार्प' में लगे रहते हैं।
- उदा. एगैरिकस (मशरूम), अस्टिलागो (कंड/स्मट), पक्सिनिया (किट/रस्ट)।
- ड्यूटेरोमाइसिटीज (Deuteromycetes) - 'अपूर्ण कवक' (Imperfect Fungi):
- केवल अलैंगिक (कोनिडिया द्वारा) या कायिक प्रवस्था ही ज्ञात है। लैंगिक प्रवस्था की खोज होने पर इन्हें उचित वर्ग (एस्कोमाइसिटीज या बेसिडियोमाइसिटीज) में रख दिया जाता है।
- कवकजाल पटीय व शाखित।
- अधिकांश सदस्य अपघटक, कुछ परजीवी। खनिज चक्रण में सहायक।
- उदा. आल्टरनेरिया, कोलेटोट्राइकम, ट्राइकोडर्मा।
- फाइकोमाइसिटीज (Phycomycetes):
4. जगत प्लांटी (पादप) (Kingdom Plantae):
- मुख्य लक्षण:
- सभी यूकैरियोटिक, क्लोरोफिल युक्त जीव।
- अधिकांश स्वपोषी (प्रकाशसंश्लेषी)। कुछ विषमपोषी (कीटभक्षी पौधे - ब्लैडरवर्ट, वीनस फ्लाई ट्रैप; परजीवी - अमरबेल)।
- कोशिका भित्ति मुख्यतः सेल्युलोज की बनी होती है।
- बहुकोशिकीय।
- जीवन चक्र में पीढ़ी एकांतरण (Alternation of generations) - द्विगुणित बीजाणुउद्भिद् (Sporophyte) और अगुणित युग्मकोद्भिद् (Gametophyte) अवस्थाएँ।
- प्रमुख समूह: शैवाल (Algae), ब्रायोफाइट (Bryophytes), टेरिडोफाइट (Pteridophytes), जिम्नोस्पर्म (Gymnosperms), एंजियोस्पर्म (Angiosperms)। (विस्तृत अध्ययन अध्याय 3 में)।
5. जगत ऐनिमेलिया (प्राणी) (Kingdom Animalia):
- मुख्य लक्षण:
- सभी यूकैरियोटिक, बहुकोशिकीय, विषमपोषी जीव।
- कोशिका भित्ति अनुपस्थित।
- पोषण मुख्यतः प्राणिसमभोजी (Holozoic)।
- भोजन ग्लाइकोजन या वसा के रूप में संचित।
- अधिकांश चलनशील (motile)।
- तंत्रिका तंत्र विकसित (अधिकांश में)।
- लैंगिक जनन नर व मादा के संगम से, जिसके बाद भ्रूणीय विकास होता है।
- प्रमुख संघ: पोरीफेरा, सीलेंट्रेटा, टीनोफोरा, प्लैटीहेल्मिन्थीज, एस्केल्मिन्थीज, ऐनेलिडा, आर्थ्रोपोडा, मोलस्का, इकाइनोडर्मेटा, हेमीकॉर्डेटा, कॉर्डेटा। (विस्तृत अध्ययन अध्याय 4 में)।
वायरस, वाइरॉइड, प्रायन तथा लाइकेन (Viruses, Viroids, Prions and Lichens):
व्हिटेकर की पंच जगत प्रणाली में इनका उल्लेख नहीं है क्योंकि ये वास्तविक 'जीवित' नहीं माने जाते।
- वायरस (Virus):
- अकोशिकीय (Non-cellular) संरचना।
- संजीव कोशिका के बाहर निष्क्रिय रवेदार संरचना।
- संजीव कोशिका में प्रवेश करते ही उसकी मशीनरी का उपयोग कर अपनी प्रतिकृति बनाते हैं और परपोषी को मार देते हैं।
- 'वायरस' नाम पाश्चर ने दिया (अर्थ - विष/तरल)।
- इवानोवस्की ने तम्बाकू के मोजेक रोग के कारक के रूप में खोजा (बैक्टीरिया प्रूफ फिल्टर से भी निकल जाते हैं)।
- बाइजेरिंक ने पाया कि संक्रमित तम्बाकू पौधे का रस स्वस्थ पौधे को संक्रमित कर सकता है - 'कंटेजियम वाइवम फ्लुइडम' (संक्रामक जीवित तरल) कहा।
- स्टैनले ने इन्हें रवेदार बनाने में सफलता पाई (मुख्यतः प्रोटीन)।
- संरचना: प्रोटीन आवरण (कैप्सिड) + आनुवंशिक पदार्थ (RNA या DNA, कभी दोनों एक साथ नहीं)। कैप्सिड छोटी इकाइयों 'कैप्सोमेयर' से बना होता है, जो न्यूक्लिक अम्ल को सुरक्षित रखता है।
- पादप वायरस में प्रायः एकरज्जुकी RNA, जंतु वायरस में एक/द्विरज्जुकी RNA या DNA होता है।
- जीवाणुभोजी (Bacteriophage - जीवाणु को संक्रमित करने वाले वायरस) में प्रायः द्विरज्जुकी DNA होता है।
- रोग: मनुष्यों में - जुकाम, इन्फ्लुएंजा, एड्स, चेचक, पोलियो, हर्पीज, मम्प्स। पौधों में - मोजेक बनना, पत्तियों का मुड़ना/कुंचन, पीला होना, बौनापन।
- वाइरॉइड (Viroid):
- टी. ओ. डाइनर (T.O. Diener) द्वारा 1971 में खोजा गया।
- वायरस से भी छोटे।
- केवल RNA पाया जाता है, प्रोटीन आवरण (कैप्सिड) अनुपस्थित।
- RNA का आण्विक भार कम होता है।
- 'पोटैटो स्पिंडल ट्यूबर' नामक रोग उत्पन्न करते हैं।
- प्रायन (Prion):
- असामान्य रूप से वलित (folded) प्रोटीन वाले कारक।
- आकार वायरस के समान।
- जंतुओं में घातक तंत्रिकीय रोग उत्पन्न करते हैं।
- मवेशियों में 'मैड काउ रोग' (बोवाइन स्पॉन्जीफॉर्म एन्सेफैलोपैथी - BSE)।
- मनुष्यों में इसका समान प्रकार 'क्रुट्ज़फेल्ट-जैकब रोग' (Cr-Jakob disease - CJD)।
- लाइकेन (Lichen):
- शैवाल तथा कवक के बीच सहजीवी (Symbiotic) संबंध।
- शैवालीय घटक को शैवालांश (Phycobiont) (स्वपोषी) और कवकीय घटक को कवकांश (Mycobiont) (परपोषी) कहते हैं।
- शैवाल कवक के लिए भोजन संश्लेषित करता है, और कवक शैवाल को आश्रय देता है तथा खनिज व जल अवशोषित करता है।
- लाइकेन प्रदूषण (विशेषकर सल्फर डाइऑक्साइड) के बहुत अच्छे संकेतक होते हैं, क्योंकि ये प्रदूषित क्षेत्रों में नहीं उगते।
यह अध्याय जीव जगत की विविधता और उनके वर्गीकरण की नींव रखता है। इन सभी जगतों और अन्य वर्णित संरचनाओं के लक्षणों को ध्यानपूर्वक याद करना परीक्षाओं के लिए आवश्यक है।
अभ्यास हेतु बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs):
प्रश्न 1: आर. एच. व्हिटेकर द्वारा प्रस्तावित पंच जगत वर्गीकरण निम्नलिखित में से किस पर आधारित नहीं है?
(a) पोषण की विधि
(b) काय संगठन की जटिलता
(c) सुपरिभाषित केंद्रक की उपस्थिति या अनुपस्थिति
(d) प्रजनन की विधि
प्रश्न 2: आद्य बैक्टीरिया (Archaebacteria) यूबैक्टीरिया से किस प्रकार भिन्न होते हैं?
(a) पोषण की विधि में
(b) कोशिका आकार में
(c) कोशिका भित्ति की संरचना में
(d) प्रजनन की विधि में
प्रश्न 3: निम्नलिखित में से कौन सा जीव 'समुद्र का मुख्य उत्पादक' माना जाता है?
(a) डायटम
(b) डाइनोफ्लैजिलेट
(c) यूग्लीनॉइड
(d) सायनोबैक्टीरिया
प्रश्न 4: कवक की कोशिका भित्ति मुख्यतः बनी होती है:
(a) सेल्युलोज से
(b) पेप्टिडोग्लाइकन से
(c) काइटिन से
(d) म्यूरीन से
प्रश्न 5: 'अपूर्ण कवक' (Imperfect Fungi) किस वर्ग को कहा जाता है क्योंकि इनमें केवल अलैंगिक या कायिक प्रवस्था ही ज्ञात है?
(a) फाइकोमाइसिटीज
(b) एस्कोमाइसिटीज
(c) बेसिडियोमाइसिटीज
(d) ड्यूटेरोमाइसिटीज
प्रश्न 6: वाइरॉइड (Viroid) के संबंध में क्या सत्य है?
(a) इनमें प्रोटीन आवरण के साथ RNA होता है।
(b) इनमें प्रोटीन आवरण के बिना RNA होता है।
(c) इनमें प्रोटीन आवरण के साथ DNA होता है।
(d) इनमें प्रोटीन आवरण के बिना DNA होता है।
प्रश्न 7: मेथेनोजन नामक जीव सर्वाधिक कहाँ पाए जाते हैं?
(a) गर्म झरनों में
(b) अत्यधिक लवणीय क्षेत्रों में
(c) प्रदूषित जल धाराओं में
(d) मवेशियों के रूमेन तथा कच्छ क्षेत्रों में
प्रश्न 8: लाइकेन में कवकांश (Mycobiont) का क्या कार्य है?
(a) भोजन का संश्लेषण करना
(b) शैवाल को आश्रय देना तथा जल व खनिज अवशोषित करना
(c) प्रजनन करना
(d) नाइट्रोजन स्थिरीकरण करना
प्रश्न 9: प्रोटिस्टा जगत के अंतर्गत आने वाले अवकंप कवक (Slime moulds) की पोषण विधि क्या है?
(a) प्रकाशसंश्लेषी
(b) रसायनसंश्लेषी
(c) मृतजीवी
(d) परजीवी
प्रश्न 10: द्विकेंद्रक प्रावस्था (Dikaryophase) कवकों के किन वर्गों की विशेषता है?
(a) फाइकोमाइसिटीज और ड्यूटेरोमाइसिटीज
(b) एस्कोमाइसिटीज और बेसिडियोमाइसिटीज
(c) फाइकोमाइसिटीज और बेसिडियोमाइसिटीज
(d) ड्यूटेरोमाइसिटीज और एस्कोमाइसिटीज
उत्तरमाला:
- (c) [सुपरिभाषित केंद्रक की उपस्थिति/अनुपस्थिति कोशिका संरचना का हिस्सा है, जो आधार है, लेकिन यह विकल्प स्वयं में पूर्ण आधार नहीं है जैसा कि अन्य विकल्प हैं।] अधिक सटीक उत्तर (c) होगा क्योंकि प्रोकैरियोटिक/यूकैरियोटिक भेद कोशिका संरचना का हिस्सा है जो एक आधार है। प्रश्न पूछ रहा है कौन सा आधार नहीं है। सभी दिए गए विकल्प वर्गीकरण के आधार हैं। शायद प्रश्न में थोड़ी अस्पष्टता है, लेकिन कोशिका संरचना (जिसमें केंद्रक शामिल है) एक प्रमुख आधार है। यदि प्रश्न यह पूछ रहा हो कि कौन सा एकमात्र आधार नहीं है, तो सभी सही होंगे। दिए गए विकल्पों में, (c) कोशिका संरचना के पहलू को दर्शाता है जो एक आधार है। शायद प्रश्न का इरादा कुछ और था, लेकिन दिए गए विकल्पों के अनुसार, सभी व्हिटेकर के आधारों से संबंधित हैं। फिर भी, यदि एक चुनना हो, तो (c) कोशिका संरचना का एक पहलू है। पुनर्विचार: पंच जगत वर्गीकरण का एक मुख्य आधार कोशिका प्रकार (प्रोकैरियोटिक/यूकैरियोटिक) है, जो सीधे केंद्रक से संबंधित है। इसलिए (c) एक आधार है। सभी विकल्प आधार हैं। NCERT के अनुसार 5 मुख्य आधार हैं: कोशिका संरचना, शारीरिक संगठन, पोषण विधि, प्रजनन, जातिवृत्तीय संबंध। दिए गए विकल्पों में (c) कोशिका संरचना के अंतर्गत आता है। (d) प्रजनन भी एक आधार है। संभवतः प्रश्न में त्रुटि है या यह पूछना चाह रहा है कि कौन सा कम महत्वपूर्ण आधार माना गया। लेकिन दिए गए विकल्पों के अनुसार, सभी आधार हैं। सबसे सटीक विकल्प (c) मानते हुए क्योंकि यह कोशिका संरचना का एक हिस्सा है, न कि स्वयं में एक अलग मुख्य आधार की तरह सूचीबद्ध।
- (c) कोशिका भित्ति की संरचना में
- (a) डायटम
- (c) काइटिन से
- (d) ड्यूटेरोमाइसिटीज
- (b) इनमें प्रोटीन आवरण के बिना RNA होता है।
- (d) मवेशियों के रूमेन तथा कच्छ क्षेत्रों में
- (b) शैवाल को आश्रय देना तथा जल व खनिज अवशोषित करना
- (c) मृतजीवी
- (b) एस्कोमाइसिटीज और बेसिडियोमाइसिटीज
इन नोट्स का अच्छी तरह से अध्ययन करें और प्रश्नों का अभ्यास करें। शुभकामनाएँ!