Class 11 Biology Notes Chapter 21 (तंत्रीकीय नियंत्रण एवं समन्वय) – Jeev Vigyan Book

नमस्ते विद्यार्थियों।
आज हम कक्षा 11 जीव विज्ञान के अध्याय 21, 'तंत्रीकीय नियंत्रण एवं समन्वय' का अध्ययन करेंगे। यह अध्याय प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह हमारे शरीर की जटिल कार्यप्रणाली, विशेषकर तंत्रिका तंत्र और उसके कार्यों को समझने में मदद करता है। आइए, इसके मुख्य बिंदुओं को विस्तार से समझते हैं।
अध्याय 21: तंत्रीकीय नियंत्रण एवं समन्वय (Neural Control and Coordination)
परिचय:
जीवों में विभिन्न अंगों के कार्यों के बीच समन्वय स्थापित करने तथा बाहरी वातावरण के प्रति अनुक्रिया व्यक्त करने के लिए एक सुविकसित तंत्र पाया जाता है, जिसे तंत्रिका तंत्र कहते हैं। उच्च प्राणियों में, अंतःस्रावी तंत्र के साथ मिलकर तंत्रिका तंत्र शरीर की सभी क्रियाओं का समन्वय और नियंत्रण करता है।
मानव तंत्रिका तंत्र (Human Neural System):
मानव तंत्रिका तंत्र को दो मुख्य भागों में बांटा गया है:
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केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र (Central Nervous System - CNS): इसमें मस्तिष्क (Brain) तथा मेरुरज्जु (Spinal Cord) शामिल हैं। यह सूचना प्रक्रमण एवं नियंत्रण का स्थल है।
- मस्तिष्क (Brain): यह शरीर का केंद्रीय सूचना प्रसाधन अंग है और 'आदेश व नियंत्रण तंत्र' की तरह कार्य करता है। इसे तीन मुख्य भागों में बांटा गया है:
- अग्रमस्तिष्क (Forebrain): इसमें प्रमस्तिष्क (Cerebrum), थैलेमस (Thalamus) और हाइपोथैलेमस (Hypothalamus) होते हैं।
- प्रमस्तिष्क: यह मस्तिष्क का सबसे बड़ा भाग है, जो दो गोलार्धों (Cerebral Hemispheres) में बंटा होता है। यह सोचना, बुद्धिमत्ता, चेतना, स्मरण शक्ति, इच्छा शक्ति, ऐच्छिक गतियों का नियंत्रण आदि का केंद्र है। इसकी बाहरी परत को प्रमस्तिष्क वल्कुट (Cerebral Cortex) कहते हैं, जिसमें तंत्रिका कोशिकाओं के पिंड (ग्रे मैटर) होते हैं।
- थैलेमस: यह संवेदी और प्रेरक संकेतों का मुख्य प्रसारण केंद्र है।
- हाइपोथैलेमस: यह शरीर के तापमान, भूख, प्यास, लैंगिक व्यवहार और कई अंतःस्रावी ग्रंथियों के स्रावण का नियंत्रण करता है।
- मध्यमस्तिष्क (Midbrain): यह अग्रमस्तिष्क के थैलेमस/हाइपोथैलेमस तथा पश्चमस्तिष्क के पोन्स के बीच स्थित होता है। इसमें दृष्टि और श्रवण प्रतिवर्ती क्रियाओं के केंद्र होते हैं।
- पश्चमस्तिष्क (Hindbrain): इसमें पोन्स (Pons), अनुमस्तिष्क (Cerebellum) और मेडुला ऑब्लांगेटा (Medulla Oblongata) शामिल हैं।
- पोन्स: यह मस्तिष्क के विभिन्न भागों को जोड़ता है और श्वसन क्रिया के नियमन में भाग लेता है।
- अनुमस्तिष्क: यह ऐच्छिक क्रियाओं की परिशुद्धता तथा शरीर की भंगिमा व संतुलन का नियंत्रण करता है।
- मेडुला ऑब्लांगेटा: यह मेरुरज्जु से जुड़ा होता है और श्वसन, हृदय स्पंदन, रक्त दाब, पाचक रसों के स्राव जैसी अनैच्छिक क्रियाओं का नियंत्रण करता है। मेडुला ही पीछे मेरुरज्जु के रूप में परिवर्तित होता है।
- अग्रमस्तिष्क (Forebrain): इसमें प्रमस्तिष्क (Cerebrum), थैलेमस (Thalamus) और हाइपोथैलेमस (Hypothalamus) होते हैं।
- मेरुरज्जु (Spinal Cord): यह मेडुला ऑब्लांगेटा से निकलकर कशेरुक दंड (Vertebral column) में फैली एक लंबी, बेलनाकार संरचना है। यह प्रतिवर्ती क्रियाओं (Reflex actions) का मुख्य केंद्र है तथा मस्तिष्क से आने-जाने वाले आवेगों के लिए पथ प्रदान करती है।
- मस्तिष्क (Brain): यह शरीर का केंद्रीय सूचना प्रसाधन अंग है और 'आदेश व नियंत्रण तंत्र' की तरह कार्य करता है। इसे तीन मुख्य भागों में बांटा गया है:
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परिधीय तंत्रिका तंत्र (Peripheral Nervous System - PNS): इसमें CNS (मस्तिष्क और मेरुरज्जु) से निकलने वाली सभी तंत्रिकाएं शामिल होती हैं। PNS को पुनः दो भागों में बांटा गया है:
- कायिक तंत्रिका तंत्र (Somatic Neural System): यह आवेगों को CNS से ऐच्छिक अंगों (कंकाल पेशियों) तक पहुंचाता है।
- स्वायत्त तंत्रिका तंत्र (Autonomic Neural System): यह आवेगों को CNS से अनैच्छिक अंगों (चिकनी पेशियों, हृदय पेशियों, ग्रंथियों) तक पहुंचाता है। इसे पुनः दो भागों में बांटा जाता है:
- अनुकंपी तंत्रिका तंत्र (Sympathetic Nervous System): यह शरीर को आपातकालीन स्थितियों (जैसे डर, क्रोध) के लिए तैयार करता है (Fight or Flight response)।
- परानुकंपी तंत्रिका तंत्र (Parasympathetic Nervous System): यह ऊर्जा का संरक्षण करता है और सामान्य अवस्था को बनाए रखने में मदद करता है (Rest and Digest response)।
तंत्रिका कोशिका (Neuron) - संरचनात्मक और कार्यात्मक इकाई:
तंत्रिका तंत्र की इकाई न्यूरॉन या तंत्रिका कोशिका है। इसके मुख्य भाग हैं:
- कोशिका काय (Cell Body/Cyton): इसमें केंद्रक और कोशिका द्रव्य (Neuroplasm) होता है, जिसमें निसल कणिकाएं (Nissl's granules) पाई जाती हैं।
- द्रुमिकाएं (Dendrites): कोशिका काय से निकले छोटे प्रवर्ध, जो आवेगों को कोशिका काय की ओर लाते हैं।
- तंत्रिकाक्ष (Axon): एक लंबा प्रवर्ध, जो आवेगों को कोशिका काय से दूर ले जाता है। इसका अंतिम सिरा साइनेप्टिक नॉब (Synaptic knob) में समाप्त होता है।
- माइलिन आच्छद (Myelin Sheath): अनेक तंत्रिकाक्षों पर श्वान कोशिकाओं (Schwann cells) द्वारा निर्मित वसीय आवरण, जो विद्युतरोधी कार्य करता है और आवेग संचरण को तीव्र बनाता है। माइलिन आच्छद के बीच के अंतराल को रेनवियर के नोड (Nodes of Ranvier) कहते हैं।
तंत्रिका आवेग की उत्पत्ति एवं संचरण (Generation and Conduction of Nerve Impulse):
- विश्राम कला विभव (Resting Potential): विश्राम अवस्था में, तंत्रिकाक्ष झिल्ली बाहर की ओर धनात्मक (+) और अंदर की ओर ऋणात्मक (-) आवेशित होती है। यह आयनों (मुख्यतः Na+ और K+) के असमान वितरण और सोडियम-पोटेशियम पंप (Na+-K+ pump) के कारण होता है।
- सक्रिय विभव (Action Potential): उद्दीपन मिलने पर, झिल्ली की Na+ के प्रति पारगम्यता बढ़ जाती है, जिससे Na+ तेजी से अंदर आते हैं और झिल्ली विध्रुवित (Depolarized) हो जाती है (अंदर + और बाहर -)। इसे सक्रिय विभव या तंत्रिका आवेग कहते हैं।
- पुनर्ध्रुवण (Repolarization): इसके तुरंत बाद, K+ के प्रति पारगम्यता बढ़ती है और K+ बाहर निकलते हैं, जिससे झिल्ली पुनः अपनी विश्राम अवस्था (अंदर - और बाहर +) में आ जाती है।
- संचरण: यह विध्रुवण की लहर तंत्रिकाक्ष की लंबाई के साथ आगे बढ़ती है। माइलिन युक्त तंत्रिकाक्षों में आवेग रेनवियर के नोड पर कूदते हुए (Saltatory conduction) तेजी से संचरित होता है।
अन्तर्ग्रथन (Synapse):
एक न्यूरॉन के तंत्रिकाक्ष के अंतिम छोर और अगले न्यूरॉन की द्रुमिका के बीच का संधि स्थल साइनेप्स कहलाता है।
- प्रकार:
- विद्युतीय साइनेप्स (Electrical Synapse): न्यूरॉन्स बहुत समीप होते हैं, आवेग सीधे एक से दूसरे में प्रवाहित होता है। यह तीव्र होता है।
- रासायनिक साइनेप्स (Chemical Synapse): न्यूरॉन्स के बीच एक दरार (Synaptic cleft) होती है। आवेग संचरण न्यूरोट्रांसमीटर (Neurotransmitter) नामक रसायनों (जैसे एसिटाइलकोलीन) द्वारा होता है।
- क्रियाविधि (रासायनिक): जब आवेग तंत्रिकाक्ष के अंत तक पहुंचता है, तो साइनेप्टिक पुटिकाओं से न्यूरोट्रांसमीटर साइनेप्टिक दरार में मुक्त होते हैं। ये अगले न्यूरॉन की झिल्ली पर स्थित ग्राहियों से जुड़कर उसमें आयन चैनलों को खोलते हैं, जिससे अगला आवेग उत्पन्न होता है।
प्रतिवर्ती क्रिया और प्रतिवर्ती चाप (Reflex Action and Reflex Arc):
- प्रतिवर्ती क्रिया: किसी उद्दीपन के प्रति स्वतः होने वाली, तीव्र और अनैच्छिक अनुक्रिया। यह मस्तिष्क की सचेत भागीदारी के बिना होती है। उदाहरण: गर्म वस्तु छूने पर हाथ का तुरंत हटना।
- प्रतिवर्ती चाप: वह पथ जिससे होकर प्रतिवर्ती क्रिया के दौरान तंत्रिका आवेग गुजरता है। इसके घटक हैं: संवेदी अंग (Receptor) → संवेदी न्यूरॉन (Afferent neuron) → CNS (मेरुरज्जु) → प्रेरक न्यूरॉन (Efferent neuron) → प्रभावक अंग (Effector - पेशी या ग्रंथि)।
संवेदी अंग (Sensory Organs):
ये अंग वातावरण से सूचनाएं ग्रहण कर तंत्रिका आवेगों में बदलते हैं।
- आँख (Eye):
- संरचना: नेत्र गोलक की दीवार तीन परतों से बनी होती है: बाहरी श्वेतपटल (Sclera) और कॉर्निया (Cornea), मध्य रक्तकपटल (Choroid), सिलियरी काय (Ciliary body) व आइरिस (Iris), और आंतरिक दृष्टिपटल (Retina)। लेंस (Lens) आइरिस के पीछे स्थित होता है। रेटिना में प्रकाश संवेदी कोशिकाएं - शलाकाएं (Rods - कम प्रकाश में देखने हेतु) और शंकु (Cones - तीव्र प्रकाश व रंग भेद हेतु) होती हैं।
- क्रियाविधि: प्रकाश कॉर्निया, लेंस से होकर रेटिना पर फोकसित होता है। शलाकाओं और शंकुओं में प्रकाश प्रेरित आवेग उत्पन्न होते हैं, जो द्विध्रुवी कोशिकाओं और गुच्छिका कोशिकाओं से होते हुए दृक् तंत्रिका (Optic nerve) द्वारा मस्तिष्क के दृष्टि क्षेत्र में भेजे जाते हैं, जहाँ प्रतिबिंब की पहचान होती है।
- कान (Ear):
- संरचना: तीन भाग:
- बाह्य कर्ण (External Ear): कर्ण पल्लव (Pinna) और बाह्य कर्ण कुहर (External auditory meatus), जो कर्ण पटह झिल्ली (Tympanic membrane/Eardrum) तक जाती है।
- मध्य कर्ण (Middle Ear): इसमें तीन अस्थिकाएं - मैलियस (Malleus), इंकस (Incus), और स्टेपीज (Stapes) होती हैं, जो ध्वनि कंपनों को बढ़ाते हैं। यह यूस्टेशियन नलिका (Eustachian tube) द्वारा ग्रसनी से जुड़ा होता है।
- अंतः कर्ण (Internal Ear): इसमें लेबरिन्थ (Labyrinth) होता है, जिसके दो भाग हैं - अस्थिल लेबरिन्थ और झिल्लीनुमा लेबरिन्थ। झिल्लीनुमा लेबरिन्थ में कॉक्लिया (Cochlea - श्रवण अंग) और वेस्टिबुलर तंत्र (Vestibular apparatus - संतुलन अंग) होते हैं। कॉक्लिया में कॉर्टी का अंग (Organ of Corti) होता है, जिसमें श्रवण ग्राही कोशिकाएं होती हैं।
- क्रियाविधि (श्रवण): ध्वनि तरंगें कर्ण पटह में कंपन उत्पन्न करती हैं। ये कंपन मध्य कर्ण की अस्थिकाओं द्वारा प्रवर्धित होकर अंडाकार गवाक्ष (Oval window) के माध्यम से कॉक्लिया के द्रव में पहुंचते हैं। द्रव में उत्पन्न तरंगें आधार झिल्ली (Basilar membrane) और कॉर्टी के अंग की संवेदी कोशिकाओं को उत्तेजित करती हैं, जिससे तंत्रिका आवेग उत्पन्न होते हैं। ये आवेग श्रवण तंत्रिका (Auditory nerve) द्वारा मस्तिष्क के श्रवण क्षेत्र में भेजे जाते हैं।
- क्रियाविधि (संतुलन): वेस्टिबुलर तंत्र (अर्धवृत्ताकार नलिकाएं, यूट्रिकल, सैक्यूल) शरीर की स्थिति और गति में परिवर्तन का पता लगाकर संतुलन बनाए रखने में मदद करता है।
- संरचना: तीन भाग:
अभ्यास हेतु बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs):
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मानव मस्तिष्क का कौन सा भाग शरीर के तापमान, भूख और प्यास का नियंत्रण केंद्र है?
(a) थैलेमस
(b) हाइपोथैलेमस
(c) प्रमस्तिष्क
(d) अनुमस्तिष्क -
तंत्रिका कोशिका का कौन सा भाग आवेगों को कोशिका काय से दूर ले जाता है?
(a) द्रुमिका (Dendrite)
(b) कोशिका काय (Cell body)
(c) तंत्रिकाक्ष (Axon)
(d) साइनेप्टिक नॉब (Synaptic knob) -
विश्राम अवस्था में, एक न्यूरॉन की झिल्ली के बाहर और अंदर क्रमशः कौन सा आवेश होता है?
(a) धनात्मक, ऋणात्मक
(b) ऋणात्मक, धनात्मक
(c) दोनों ओर धनात्मक
(d) दोनों ओर ऋणात्मक -
निम्नलिखित में से कौन सा एक न्यूरोट्रांसमीटर का उदाहरण है?
(a) इन्सुलिन
(b) हीमोग्लोबिन
(c) एसिटाइलकोलीन
(d) रेनिन -
प्रतिवर्ती चाप का सही क्रम क्या है?
(a) संवेदी अंग → प्रेरक न्यूरॉन → CNS → संवेदी न्यूरॉन → प्रभावक अंग
(b) प्रभावक अंग → प्रेरक न्यूरॉन → CNS → संवेदी न्यूरॉन → संवेदी अंग
(c) संवेदी अंग → संवेदी न्यूरॉन → CNS → प्रेरक न्यूरॉन → प्रभावक अंग
(d) संवेदी अंग → CNS → संवेदी न्यूरॉन → प्रेरक न्यूरॉन → प्रभावक अंग -
शरीर का संतुलन बनाए रखने से संबंधित मस्तिष्क का भाग है:
(a) प्रमस्तिष्क (Cerebrum)
(b) मेडुला ऑब्लांगेटा (Medulla Oblongata)
(c) अनुमस्तिष्क (Cerebellum)
(d) पोन्स (Pons) -
आँख का कौन सा भाग प्रकाश को केंद्रित कर रेटिना पर प्रतिबिंब बनाता है?
(a) आइरिस (Iris)
(b) कॉर्निया (Cornea)
(c) लेंस (Lens)
(d) श्वेतपटल (Sclera) -
मानव कान में श्रवण क्रिया का मुख्य अंग कहाँ स्थित होता है?
(a) मध्य कर्ण में
(b) बाह्य कर्ण कुहर में
(c) कॉक्लिया में (अंतः कर्ण)
(d) यूस्टेशियन नलिका में -
तंत्रिकाक्ष पर माइलिन आच्छद का मुख्य कार्य क्या है?
(a) पोषण प्रदान करना
(b) आवेग संचरण को धीमा करना
(c) आवेग संचरण को तीव्र करना और विद्युतरोधन
(d) न्यूरोट्रांसमीटर का स्राव करना -
स्वायत्त तंत्रिका तंत्र का कौन सा भाग 'लड़ो या भागो' (Fight or Flight) अनुक्रिया के लिए उत्तरदायी है?
(a) परानुकंपी तंत्रिका तंत्र
(b) अनुकंपी तंत्रिका तंत्र
(c) कायिक तंत्रिका तंत्र
(d) केंद्रीय तंत्रिका तंत्र
उत्तर:
- (b) हाइपोथैलेमस
- (c) तंत्रिकाक्ष (Axon)
- (a) धनात्मक, ऋणात्मक
- (c) एसिटाइलकोलीन
- (c) संवेदी अंग → संवेदी न्यूरॉन → CNS → प्रेरक न्यूरॉन → प्रभावक अंग
- (c) अनुमस्तिष्क (Cerebellum)
- (c) लेंस (Lens)
- (c) कॉक्लिया में (अंतः कर्ण)
- (c) आवेग संचरण को तीव्र करना और विद्युतरोधन
- (b) अनुकंपी तंत्रिका तंत्र
इन नोट्स को ध्यान से पढ़ें और NCERT पुस्तक का भी अध्ययन करें। कोई भी शंका हो तो अवश्य पूछें। आपकी परीक्षा की तैयारी के लिए शुभकामनाएँ!