Class 11 Biology Notes Chapter 3 (वनस्पति जगत) – Jeev Vigyan Book

Jeev Vigyan
चलिए, आज हम कक्षा 11 जीव विज्ञान के अध्याय 3, 'वनस्पति जगत' का विस्तृत अध्ययन करेंगे। यह अध्याय सरकारी परीक्षाओं की तैयारी के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

अध्याय 3: वनस्पति जगत (Plant Kingdom)

परिचय:
पृथ्वी पर मौजूद विविध प्रकार के पादपों को वनस्पति जगत के अंतर्गत रखा गया है। इन्हें विभिन्न विशेषताओं, जैसे संरचना, जीवन चक्र, वास स्थान आदि के आधार पर वर्गीकृत किया गया है।

वर्गीकरण की पद्धतियाँ:

  1. कृत्रिम वर्गीकरण (Artificial Classification): यह वर्गीकरण मुख्यतः कुछ आकारिकीय (morphological) लक्षणों, जैसे - वास स्थान, रंग, पत्तियों की संख्या एवं आकार, या पुंकेसरों की संख्या (लीनियस द्वारा) पर आधारित था। यह पद्धति सतही समानताओं पर आधारित थी और प्राकृतिक संबंधों को नहीं दर्शाती थी।
  2. प्राकृतिक वर्गीकरण (Natural Classification): यह पद्धति जीवों के बीच प्राकृतिक संबंधों पर आधारित थी। इसमें केवल बाह्य लक्षणों के साथ-साथ आंतरिक लक्षणों, जैसे - परासंरचना (ultrastructure), शारीरिकी (anatomy), भ्रूणविज्ञान (embryology) और पादपरसायन (phytochemistry) को भी आधार बनाया गया। जॉर्ज बेंथम तथा जोसेफ डाल्टन हूकर द्वारा दिया गया पुष्पी पादपों का वर्गीकरण इसका अच्छा उदाहरण है।
  3. जातिवृत्तीय वर्गीकरण (Phylogenetic Classification): यह वर्गीकरण जीवों के बीच विकासीय संबंधों (evolutionary relationships) पर आधारित है। यह मानता है कि एक समान टैक्सा के जीव एक ही पूर्वज से विकसित हुए हैं। वर्तमान में हम इसी पद्धति का अनुसरण करते हैं, जिसमें जीवाश्मों के प्रमाण महत्वपूर्ण होते हैं। इसके अतिरिक्त संख्यात्मक वर्गिकी (Numerical Taxonomy) और कोशिका वर्गिकी (Cytotaxonomy) तथा रसायन वर्गिकी (Chemotaxonomy) भी वर्गीकरण में सहायक हैं।

वनस्पति जगत के प्रमुख समूह:

1. शैवाल (Algae):

  • सामान्य लक्षण:
    • ये सरल, थैलाभ (thalloid - जड़, तना, पत्ती में अविभेदित), स्वपोषी (autotrophic) तथा मुख्यतः जलीय (अलवणीय एवं लवणीय जल दोनों) जीव हैं।
    • कुछ शैवाल नम पत्थर, मिट्टी तथा लकड़ी पर भी पाए जाते हैं। कुछ कवक (लाइकेन में) तथा प्राणियों (स्लॉथ रीछ पर) के साथ सहजीवी रूप में रहते हैं।
    • इनका माप तथा आकार भिन्न-भिन्न होता है (सूक्ष्मदर्शी एककोशिक क्लैमाइडोमोनास से लेकर तंतुमयी यूलोथ्रिक्स, स्पाइरोगाइरा तथा विशालकाय समुद्री घास केल्प तक)।
    • जनन:
      • कायिक जनन (Vegetative reproduction): विखंडन (fragmentation) द्वारा। प्रत्येक खंड एक नए थैलेस का निर्माण करता है।
      • अलैंगिक जनन (Asexual reproduction): विभिन्न प्रकार के बीजाणुओं (spores) द्वारा, मुख्यतः चलबीजाणु (zoospores) जो कशाभिकयुक्त (flagellated) और गतिशील होते हैं।
      • लैंगिक जनन (Sexual reproduction): दो युग्मकों (gametes) के संलयन द्वारा। यह समयुग्मकी (Isogamous - युग्मक समान आकार के, जैसे स्पाइरोगाइरा), असमयुग्मकी (Anisogamous - युग्मक भिन्न आकार के, जैसे क्लैमाइडोमोनास की कुछ प्रजातियाँ) या विषमयुग्मकी (Oogamous - एक बड़ा, अचल मादा युग्मक तथा एक छोटा, चल नर युग्मक, जैसे वॉल्वॉक्स, फ्यूकस) प्रकार का हो सकता है।
  • उपयोग:
    • पृथ्वी पर कुल कार्बन डाइऑक्साइड स्थिरीकरण का लगभग आधा भाग शैवाल करते हैं।
    • जलीय प्राणियों के खाद्य चक्र का आधार हैं।
    • पोरफाइरा, लैमिनेरिया, सरगासम आदि समुद्री शैवाल भोजन के रूप में उपयोग होते हैं।
    • कुछ समुद्री भूरे (Brown) तथा लाल (Red) शैवाल कैरागीन (लाल शैवाल से) तथा एल्गिन (भूरे शैवाल से) का उत्पादन करते हैं, जिनका व्यावसायिक उपयोग होता है।
    • जिलेडियम तथा ग्रैसिलेरिया से ऐगार (Agar) प्राप्त होता है, जिसका उपयोग सूक्ष्मजीवों के संवर्धन तथा आइसक्रीम व जेली बनाने में होता है।
    • क्लोरेला तथा स्पिरुलिना एककोशिक शैवाल हैं जिनमें प्रोटीन प्रचुर मात्रा में होती है और अंतरिक्ष यात्री भी इन्हें भोजन के रूप में उपयोग करते हैं।
  • शैवालों का वर्गीकरण: इन्हें मुख्य रूप से वर्णकों (pigments) तथा संचित भोजन (stored food) के आधार पर तीन प्रमुख वर्गों में विभक्त किया गया है:
    • (i) क्लोरोफाइसी (Chlorophyceae - हरे शैवाल):
      • प्रमुख वर्णक: क्लोरोफिल a तथा b.
      • संचित भोजन: स्टार्च (मंड)। कुछ में तेल बूंदक (oil droplets) के रूप में भी।
      • कोशिका भित्ति: आंतरिक परत सेल्युलोज तथा बाहरी परत पेक्टोज की बनी होती है।
      • कशाभिका (Flagella): 2-8, समान, शीर्षस्थ (apical)।
      • उदाहरण: क्लैमाइडोमोनास, वॉल्वॉक्स, यूलोथ्रिक्स, स्पाइरोगाइरा, कारा।
    • (ii) फियोफाइसी (Phaeophyceae - भूरे शैवाल):
      • प्रमुख वर्णक: क्लोरोफिल a, c तथा फ्यूकोजैन्थिन (Fucoxanthin)। फ्यूकोजैन्थिन के कारण इनका रंग जैतूनी हरे से भूरे के विभिन्न शेड तक होता है।
      • संचित भोजन: मैनिटॉल (Mannitol) तथा लैमिनेरिन (Laminarin) के रूप में।
      • कोशिका भित्ति: सेल्युलोज की बनी होती है जिसके बाहर एल्गिन का जिलेटिनी आवरण होता है।
      • कशाभिका: 2, असमान, पार्श्वीय (lateral)।
      • उदाहरण: एक्टोकार्पस, डिक्ट्योटा, लैमिनेरिया, सरगासम, फ्यूकस।
    • (iii) रोडोफाइसी (Rhodophyceae - लाल शैवाल):
      • प्रमुख वर्णक: क्लोरोफिल a, d तथा फाइकोएरिथ्रिन (Phycoerythrin)। फाइकोएरिथ्रिन की अधिकता के कारण इनका रंग लाल होता है। ये समुद्र में अधिक गहराई में पाए जाते हैं जहाँ अपेक्षाकृत कम प्रकाश पहुँचता है।
      • संचित भोजन: फ्लोरिडियन स्टार्च (Floridean starch), जिसकी संरचना एमाइलोपेक्टिन तथा ग्लाइकोजन के समान होती है।
      • कोशिका भित्ति: सेल्युलोज, पेक्टिन तथा पॉलीसल्फेट एस्टर की बनी होती है।
      • कशाभिका: अनुपस्थित।
      • जनन: अलैंगिक जनन अचल बीजाणुओं द्वारा तथा लैंगिक जनन विषमयुग्मकी (अचल युग्मकों द्वारा) होता है।
      • उदाहरण: पॉलीसाइफोनिया, पोरफाइरा, ग्रैसिलेरिया, जिलेडियम।

2. ब्रायोफाइटा (Bryophytes):

  • सामान्य लक्षण:
    • इन्हें 'पादप जगत के उभयचर' (Amphibians of the plant kingdom) कहा जाता है क्योंकि ये भूमि पर जीवित रहते हैं, परन्तु लैंगिक जनन के लिए जल पर निर्भर करते हैं।
    • ये प्रायः नम, छायादार पहाड़ी क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
    • इनका शरीर शैवाल की अपेक्षा अधिक विभेदित होता है। यह थैलेस की तरह या सीधा हो सकता है और एककोशिक या बहुकोशिक मूलाभ (rhizoids) द्वारा अधःस्तर (substratum) से जुड़ा रहता है। इनमें वास्तविक मूल, तना अथवा पत्तियाँ नहीं होतीं, लेकिन मूल-सम, तना-सम अथवा पत्ती-सम संरचनाएँ हो सकती हैं।
    • मुख्य पादप काय अगुणित (haploid) युग्मकोद्भिद् (gametophyte) होता है।
    • लैंगिक अंग बहुकोशिक होते हैं। नर लैंगिक अंग पुंधानी (antheridium) कहलाता है जो द्विकशाभिक पुंमणु (antherozoids) उत्पन्न करता है। मादा लैंगिक अंग स्त्रीधानी (archegonium) कहलाता है जो फ्लास्क के आकार का होता है और एक अंड (egg) बनाता है।
    • पुंमणु पानी में तैरकर स्त्रीधानी तक पहुँचते हैं और अंड से संलयित होकर युग्मनज (zygote) बनाते हैं।
    • युग्मनज तुरंत अर्धसूत्री विभाजन नहीं करता, बल्कि एक बहुकोशिक बीजाणुद्भिद् (sporophyte) बनाता है। बीजाणुद्भिद् मुक्तजीवी नहीं होता बल्कि प्रकाशसंश्लेषी युग्मकोद्भिद् से जुड़कर पोषण प्राप्त करता है।
    • बीजाणुद्भिद् की कुछ कोशिकाएँ अर्धसूत्री विभाजन द्वारा अगुणित बीजाणु (spores) बनाती हैं। ये बीजाणु अंकुरित होकर पुनः युग्मकोद्भिद् बनाते हैं।
    • इनमें स्पष्ट पीढ़ी एकांतरण (Alternation of generations) पाया जाता है (अगुणित युग्मकोद्भिद् तथा द्विगुणित बीजाणुद्भिद् अवस्था)।
  • उपयोग:
    • कुछ मॉस शाकाहारी स्तनधारियों, पक्षियों आदि को भोजन प्रदान करते हैं।
    • स्फेग्नम (मॉस) पीट (peat) प्रदान करता है जिसका उपयोग ईंधन के रूप में तथा पैकिंग सामग्री (जल धारण क्षमता के कारण) के रूप में होता है।
    • लाइकेन के साथ मॉस सर्वप्रथम शैलों (चट्टानों) पर उगने वाले जीवों में से हैं और पारिस्थितिक अनुक्रमण (ecological succession) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये शैलों को अपघटित कर उच्च पादपों के उगने योग्य बनाते हैं।
    • मॉस मिट्टी पर एक सघन परत बनाते हैं जो वर्षा की बौछारों की मृदा पर सीधी मार को कम करती है और मृदा अपरदन (soil erosion) को रोकती है।
  • वर्गीकरण:
    • (i) लिवरवर्ट (Liverworts):
      • प्रायः नम, छायादार स्थानों पर उगते हैं।
      • पादप काय थैलाभ (मार्केन्शिया) होता है।
      • अलैंगिक जनन थैलेस के विखंडन अथवा विशिष्ट संरचना 'जेमा' (gemmae) द्वारा होता है। जेमा बहुकोशिक, अलैंगिक कलिकाएँ हैं जो जेमा कप में स्थित होती हैं और पैतृक पादप से अलग होकर नया पादप बनाती हैं।
      • लैंगिक जनन में पुंधानी व स्त्रीधानी एक ही या अलग-अलग थैलेस पर हो सकते हैं। बीजाणुद्भिद् पाद (foot), सीटा (seta) तथा कैप्सूल (capsule) में विभेदित होता है। कैप्सूल में अर्धसूत्री विभाजन से बीजाणु बनते हैं।
      • उदाहरण: मार्केन्शिया (Marchantia)
    • (ii) मॉस (Moss):
      • जीवन चक्र की प्रभावी अवस्था युग्मकोद्भिद् होती है, जिसकी दो अवस्थाएँ होती हैं - प्रथम तंतु (protonema) अवस्था (जो बीजाणु से विकसित होती है, विसर्पी, हरी, शाखित और तंतुमयी होती है) तथा पत्तीमय अवस्था (leafy stage) (जो द्वितीयक प्रथम तंतु से पार्श्वीय कली के रूप में विकसित होती है, इसमें सीधा, पतला अक्ष होता है जिस पर सर्पिल रूप से पत्तियाँ लगी रहती हैं)।
      • यह अवस्था बहुकोशिक एवं शाखित मूलाभों द्वारा मिट्टी से जुड़ी रहती है। इसी अवस्था में लैंगिक अंग विकसित होते हैं।
      • कायिक जनन द्वितीयक प्रथम तंतु के विखंडन एवं मुकुलन द्वारा होता है।
      • लैंगिक जनन में पुंधानी व स्त्रीधानी पत्तीदार प्ररोह की चोटी पर विकसित होते हैं। निषेचन के बाद युग्मनज से बीजाणुद्भिद् विकसित होता है जो लिवरवर्ट की अपेक्षा अधिक विकसित होता है और पाद, सीटा व कैप्सूल में विभेदित होता है। कैप्सूल में बीजाणु बनते हैं। मॉस में बीजाणु प्रकीर्णन की विस्तृत क्रियाविधि होती है।
      • उदाहरण: फ्यूनेरिया (Funaria), पॉलीट्राइकम (Polytrichum), स्फेग्नम (Sphagnum)

3. टेरिडोफाइटा (Pteridophytes):

  • सामान्य लक्षण:
    • ये प्रथम स्थलीय पादप हैं जिनमें संवहन ऊतक - जाइलम (xylem) तथा फ्लोएम (phloem) पाए जाते हैं।
    • ये प्रायः ठंडे, नम, छायादार स्थानों पर पाए जाते हैं। कुछ रेतीली मिट्टी में भी उगते हैं।
    • मुख्य पादप काय द्विगुणित (diploid) बीजाणुद्भिद् (sporophyte) होता है, जो वास्तविक मूल, तना तथा पत्तियों में विभेदित होता है।
    • पत्तियाँ छोटी (लघुपर्णी - microphylls, जैसे सिलेजिनेला) या बड़ी (गुरुपर्णी - macrophylls, जैसे फर्न) हो सकती हैं।
    • बीजाणुद्भिद् में बीजाणुधानी (sporangia) होती हैं, जिनमें बीजाणु मातृ कोशिकाओं से अर्धसूत्री विभाजन द्वारा बीजाणु बनते हैं। बीजाणुधानी पत्ती जैसी उपांग बीजाणुपर्ण (sporophyll) पर लगी रहती हैं।
    • कुछ टेरिडोफाइट्स में बीजाणुपर्ण सघन होकर विशिष्ट संरचना शंकु या स्ट्रोबिलस (cone or strobilus) बनाते हैं (जैसे सिलेजिनेला, इक्वीसिटम)।
    • बीजाणु अंकुरित होकर एक छोटा, बहुकोशिक, मुक्तजीवी, अधिकांशतः प्रकाशसंश्लेषी, थैलाभ युग्मकोद्भिद् बनाते हैं जिसे प्रोथैलस (prothallus) कहते हैं।
    • प्रोथैलस को वृद्धि के लिए ठंडे, नम, छायादार स्थान की आवश्यकता होती है।
    • युग्मकोद्भिद् पर नर (पुंधानी) तथा मादा (स्त्रीधानी) लैंगिक अंग विकसित होते हैं।
    • निषेचन के लिए जल आवश्यक है। पुंमणु पानी में तैरकर स्त्रीधानी के अंड तक पहुँचते हैं।
    • निषेचन के बाद युग्मनज बनता है जिससे बहुकोशिक बीजाणुद्भिद् विकसित होता है (जो प्रभावी अवस्था है)।
    • अधिकांश टेरिडोफाइट्स समबीजाणुक (homosporous) होते हैं (सभी बीजाणु एक ही प्रकार के)। लेकिन सिलेजिनेला तथा साल्वीनिया जैसे वंश विषमबीजाणुक (heterosporous) होते हैं, जो दो प्रकार के बीजाणु - लघुबीजाणु (microspore) तथा गुरुबीजाणु (megaspore) उत्पन्न करते हैं।
    • लघुबीजाणु से नर युग्मकोद्भिद् तथा गुरुबीजाणु से मादा युग्मकोद्भिद् विकसित होता है। मादा युग्मकोद्भिद् अपनी आवश्यकताओं के लिए पैतृक बीजाणुद्भिद् पर निर्भर रहता है। मादा युग्मकोद्भिद् में युग्मनज का विकास होता है, जिससे भ्रूण बनता है। यह घटना बीज प्रकृति (seed habit) के विकास की ओर एक महत्वपूर्ण कदम मानी जाती है।
  • उपयोग:
    • औषधीय प्रयोजनों में उपयोग।
    • मृदा बंधक (soil binders) के रूप में।
    • सजावटी पौधे (फर्न) के रूप में।
  • वर्गीकरण: टेरिडोफाइटा को चार वर्गों में बाँटा गया है:
    • (i) साइलोप्सिडा (Psilopsida): साइलोटम
    • (ii) लाइकोप्सिडा (Lycopsida): सिलेजिनेला, लाइकोपोडियम
    • (iii) स्फीनोप्सिडा (Sphenopsida): इक्वीसिटम (हॉर्सटेल)
    • (iv) टेरोप्सिडा (Pteropsida): ड्रायोप्टेरिस, टेरिस, एडिएन्टम (फर्न)

4. जिम्नोस्पर्म (Gymnosperms - अनावृतबीजी):

  • सामान्य लक्षण:
    • इन पौधों में बीजांड (ovule) किसी भी अंडाशय भित्ति द्वारा ढके हुए नहीं होते और निषेचन के बाद बनने वाले बीज भी ढके हुए (नग्न) नहीं रहते। अतः इन्हें 'अनावृतबीजी' कहते हैं।
    • ये मध्यम आकार के वृक्षों से लेकर झाड़ियों तथा लंबे वृक्षों (जैसे सिकोया - सबसे लंबा वृक्ष) तक होते हैं।
    • इनमें मूसला मूल (tap root) होती है। कुछ में मूल कवक (कवकमूल - mycorrhiza, जैसे पाइनस) या नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले सायनोबैक्टीरिया (प्रवाल मूल - coralloid roots, जैसे साइकस) के साथ सहजीवी संबंध बनाती है।
    • तना अशाखित (साइकस) अथवा शाखित (पाइनस, सिड्रस) हो सकता है।
    • पत्तियाँ सरल या संयुक्त हो सकती हैं। साइकस में पिच्छाकार (pinnate) पत्तियाँ कुछ वर्षों तक रहती हैं। जिम्नोस्पर्म की पत्तियाँ अत्यधिक ताप, नमी और वायु को सहन करने के लिए अनुकूलित होती हैं (जैसे मोटी क्यूटिकल, गर्तिक रंध्र - sunken stomata)। शंकुधारी (conifers) में सुई जैसी पत्तियाँ पृष्ठीय क्षेत्रफल कम करती हैं।
    • ये विषमबीजाणुक होते हैं - अगुणित लघुबीजाणु तथा गुरुबीजाणु बनाते हैं।
    • बीजाणुधानी बीजाणुपर्णों पर स्थित होती हैं, जो सर्पिल रूप से व्यवस्थित होकर शंकु (cones) या स्ट्रोबिलस बनाती हैं।
    • लघुबीजाणुपर्णों पर स्थित लघुबीजाणुधानी में लघुबीजाणु (परागकण) बनते हैं (नर शंकु)।
    • गुरुबीजाणुपर्णों पर स्थित गुरुबीजाणुधानी (बीजांड) में गुरुबीजाणु मातृ कोशिका से अर्धसूत्री विभाजन द्वारा चार गुरुबीजाणु बनते हैं, जिनमें से एक विकसित होकर बहुकोशिक मादा युग्मकोद्भिद् बनाता है, जिसमें 2 या अधिक स्त्रीधानी होती हैं (मादा शंकु)।
    • परागण मुख्यतः वायु द्वारा (anemophily) होता है। परागकण बीजांड तक पहुँचते हैं।
    • पराग नलिका (pollen tube) नर युग्मकों को स्त्रीधानी तक ले जाती है और अंड कोशिका से संलयन (निषेचन) होता है। निषेचन के लिए बाहरी जल की आवश्यकता नहीं होती (साइफोनोगैमी - Siphonogamy)।
    • निषेचन के बाद युग्मनज से भ्रूण तथा बीजांड से बीज विकसित होता है। बीज नग्न होते हैं।
    • भ्रूणपोष (Endosperm) अगुणित (n) होता है और निषेचन से पहले बनता है।
  • उदाहरण: साइकस (Cycas), पाइनस (Pinus), जिन्कगो (Ginkgo), सिड्रस (Cedrus), इफेड्रा (Ephedra)
  • आर्थिक महत्व: इमारती लकड़ी, कागज लुगदी, रेजिन, तारपीन का तेल आदि प्राप्त होता है। चिलगोजा (पाइनस जिरार्डियाना) के बीज खाने योग्य होते हैं।

5. एंजियोस्पर्म (Angiosperms - आवृतबीजी / पुष्पी पादप):

  • सामान्य लक्षण:
    • ये पुष्पी पादप हैं जिनमें परागकण तथा बीजांड विशिष्ट संरचना 'पुष्प' (flower) में विकसित होते हैं।
    • बीज फलों के अन्दर ढके रहते हैं (अंडाशय विकसित होकर फल बनाता है)।
    • ये पादपों का सबसे बड़ा समूह है और लगभग सभी प्रकार के वास स्थानों में पाए जाते हैं।
    • ये सूक्ष्मदर्शी वुल्फिया से लेकर सबसे ऊँचे वृक्ष यूकेलिप्टस (100 मीटर से अधिक) तक होते हैं।
    • मुख्य पादप काय द्विगुणित बीजाणुद्भिद् होता है जिसमें सुविकसित मूल, तना, पत्तियाँ, पुष्प तथा फल होते हैं।
    • संवहन ऊतक (जाइलम तथा फ्लोएम) अत्यधिक विकसित होते हैं। जाइलम में वाहिकाएँ (vessels) तथा फ्लोएम में सहचर कोशिकाएँ (companion cells) पाई जाती हैं (जिम्नोस्पर्म में इनका अभाव होता है)।
    • पुष्प लैंगिक जनन अंग है। नर लैंगिक अंग पुंकेसर (stamen) तथा मादा लैंगिक अंग स्त्रीकेसर या अंडप (pistil or carpel) है।
    • पुंकेसर के परागकोश में लघुबीजाणु (परागकण) बनते हैं।
    • स्त्रीकेसर के अंडाशय (ovary) में बीजांड होते हैं। प्रत्येक बीजांड में गुरुबीजाणु मातृ कोशिका से अर्धसूत्री विभाजन द्वारा गुरुबीजाणु बनता है, जिससे भ्रूणकोष (embryo sac - मादा युग्मकोद्भिद्) विकसित होता है।
    • भ्रूणकोष में 3 प्रतिव्यासांत कोशिकाएँ (antipodal cells), 2 सहायक कोशिकाएँ (synergids), 1 अंड कोशिका (egg cell) तथा 2 ध्रुवीय केंद्रक (polar nuclei) होते हैं (जो संलयित होकर द्विगुणित द्वितीयक केंद्रक बनाते हैं)।
    • परागण विभिन्न माध्यमों (वायु, जल, कीट, पक्षी आदि) से होता है।
    • द्विनिषेचन (Double Fertilization): यह एंजियोस्पर्म का अद्वितीय लक्षण है। पराग नलिका भ्रूणकोष में प्रवेश कर दो नर युग्मक मुक्त करती है।
      • एक नर युग्मक अंड कोशिका से संलयित होकर युग्मनज (zygote - 2n) बनाता है (इसे सत्य निषेचन या संयुग्मन - Syngamy कहते हैं)।
      • दूसरा नर युग्मक द्विगुणित द्वितीयक केंद्रक से संलयित होकर त्रिगुणित (triploid - 3n) प्राथमिक भ्रूणपोष केंद्रक (Primary Endosperm Nucleus - PEN) बनाता है (इसे त्रिसंलयन - Triple Fusion कहते हैं)।
    • युग्मनज से भ्रूण तथा PEN से भ्रूणपोष (endosperm - पोषक ऊतक) विकसित होता है। भ्रूणपोष त्रिगुणित (3n) होता है।
    • निषेचन के बाद बीजांड से बीज तथा अंडाशय से फल विकसित होता है।
  • वर्गीकरण: एंजियोस्पर्म को दो वर्गों में बाँटा गया है:
    • (i) द्विबीजपत्री (Dicotyledons): बीजों में दो बीजपत्र; पत्तियों में जालिकावत शिराविन्यास; पुष्प चतुष्टयी या पंचतयी; द्वितीयक वृद्धि उपस्थित। उदाहरण: सरसों, चना, मटर, आम, सूरजमुखी।
    • (ii) एकबीजपत्री (Monocotyledons): बीजों में एक बीजपत्र; पत्तियों में समानांतर शिराविन्यास; पुष्प त्रितयी; द्वितीयक वृद्धि अनुपस्थित। उदाहरण: गेहूँ, चावल, मक्का, घास, प्याज, ऑर्किड।
  • आर्थिक महत्व: भोजन (अनाज, दालें, फल, सब्जियाँ), चारा, ईंधन, औषधियाँ, रेशे, इमारती लकड़ी आदि के प्रमुख स्रोत हैं।

पादप जीवन चक्र तथा पीढ़ी एकांतरण (Plant Life Cycles and Alternation of Generations):

पादपों की दोनों अगुणित (n) तथा द्विगुणित (2n) कोशिकाएँ समसूत्री विभाजन द्वारा विभाजित हो सकती हैं। इससे विभिन्न पादप काय - अगुणित तथा द्विगुणित बनते हैं। अगुणित पादप काय (युग्मकोद्भिद्) युग्मक बनाता है तथा द्विगुणित पादप काय (बीजाणुद्भिद्) बीजाणु बनाता है। किसी भी लैंगिक जनन करने वाले पादप के जीवन चक्र में युग्मकों का निर्माण करने वाले अगुणित युग्मकोद्भिद् तथा बीजाणु बनाने वाले द्विगुणित बीजाणुद्भिद् के बीच पीढ़ी एकांतरण होता है। विभिन्न पादप समूहों में निम्नलिखित जीवन चक्र पैटर्न पाए जाते हैं:

  1. अगुणितक जीवन चक्र (Haplontic Life Cycle):

    • प्रभावी अवस्था मुक्तजीवी युग्मकोद्भिद् (n) होती है।
    • बीजाणुद्भिद् पीढ़ी केवल एककोशिक युग्मनज (2n) द्वारा प्रदर्शित होती है।
    • युग्मनज में अर्धसूत्री विभाजन होता है जिससे अगुणित बीजाणु बनते हैं, जो अंकुरित होकर युग्मकोद्भिद् बनाते हैं।
    • उदाहरण: अधिकांश शैवाल जैसे वॉल्वॉक्स, स्पाइरोगाइरा, क्लैमाइडोमोनास की कुछ प्रजातियाँ।
  2. द्विगुणितक जीवन चक्र (Diplontic Life Cycle):

    • प्रभावी अवस्था मुक्तजीवी बीजाणुद्भिद् (2n) होती है।
    • युग्मकोद्भिद् पीढ़ी अत्यंत ह्रासित और कुछ कोशिकाओं तक सीमित होती है (जैसे परागकण, भ्रूणकोष)।
    • युग्मकों (n) के निर्माण के समय ही अर्धसूत्री विभाजन होता है।
    • उदाहरण: सभी बीज वाले पौधे (जिम्नोस्पर्म तथा एंजियोस्पर्म), शैवाल फ्यूकस
  3. अगुणितक-द्विगुणितक जीवन चक्र (Haplo-diplontic Life Cycle):

    • इसमें अगुणित (युग्मकोद्भिद्) तथा द्विगुणित (बीजाणुद्भिद्) दोनों अवस्थाएँ बहुकोशिक तथा प्रायः मुक्तजीवी होती हैं, लेकिन उनकी प्रभावी अवधि भिन्न हो सकती है।
    • ब्रायोफाइटा में: प्रभावी अवस्था मुक्तजीवी युग्मकोद्भिद् (n) होती है। बीजाणुद्भिद् (2n) अल्पजीवी और पोषण के लिए युग्मकोद्भिद् पर निर्भर होता है।
    • टेरिडोफाइटा में: प्रभावी अवस्था मुक्तजीवी बीजाणुद्भिद् (2n) होती है। युग्मकोद्भिद् (प्रोथैलस - n) भी मुक्तजीवी होता है लेकिन अल्पजीवी होता है।
    • कुछ शैवाल जैसे एक्टोकार्पस, पॉलीसाइफोनिया, केल्प में भी यह चक्र पाया जाता है।

अभ्यास हेतु बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs):

प्रश्न 1: पादप जगत का 'उभयचर' किसे कहा जाता है?
(क) शैवाल
(ख) ब्रायोफाइटा
(ग) टेरिडोफाइटा
(घ) जिम्नोस्पर्म

उत्तर: (ख) ब्रायोफाइटा

प्रश्न 2: विषमबीजाणुकता (Heterospory) निम्नलिखित में से किस समूह में पाई जाती है?
(क) सभी ब्रायोफाइटा
(ख) कुछ टेरिडोफाइटा जैसे सिलेजिनेला
(ग) अधिकांश शैवाल
(घ) सभी जिम्नोस्पर्म

उत्तर: (ख) कुछ टेरिडोफाइटा जैसे सिलेजिनेला (नोट: सभी जिम्नोस्पर्म भी विषमबीजाणुक होते हैं, परन्तु प्रश्न में टेरिडोफाइटा का स्पष्ट उदाहरण दिया गया है जो NCERT के अनुसार अधिक सटीक है)।

प्रश्न 3: एंजियोस्पर्म में त्रिसंलयन (Triple Fusion) के परिणामस्वरूप क्या बनता है?
(क) युग्मनज (Zygote)
(ख) भ्रूण (Embryo)
(ग) भ्रूणपोष (Endosperm)
(घ) बीज (Seed)

उत्तर: (ग) भ्रूणपोष (Endosperm)

प्रश्न 4: अगुणितक (Haplontic) जीवन चक्र किसमें पाया जाता है?
(क) फ्यूकस
(ख) पाइनस
(ग) स्पाइरोगाइरा
(घ) फ्यूनेरिया

उत्तर: (ग) स्पाइरोगाइरा

प्रश्न 5: लाल शैवाल का लाल रंग किस वर्णक के कारण होता है?
(क) फ्यूकोजैन्थिन
(ख) क्लोरोफिल a
(ग) फाइकोएरिथ्रिन
(घ) कैरोटीनॉयड

उत्तर: (ग) फाइकोएरिथ्रिन

प्रश्न 6: जिम्नोस्पर्म में भ्रूणपोष (Endosperm) होता है:
(क) अगुणित (n)
(ख) द्विगुणित (2n)
(ग) त्रिगुणित (3n)
(घ) चतुर्गुणित (4n)

उत्तर: (क) अगुणित (n)

प्रश्न 7: मॉस में बीजाणु अंकुरित होकर सीधे क्या बनाता है?
(क) पत्तीमय युग्मकोद्भिद्
(ख) बीजाणुद्भिद्
(ग) प्रथम तंतु (Protonema)
(घ) स्त्रीधानी

उत्तर: (ग) प्रथम तंतु (Protonema)

प्रश्न 8: ऐगार-ऐगार किससे प्राप्त होता है?
(क) हरे शैवाल
(ख) भूरे शैवाल
(ग) लाल शैवाल (जैसे जिलेडियम)
(घ) नीले-हरे शैवाल

उत्तर: (ग) लाल शैवाल (जैसे जिलेडियम)

प्रश्न 9: वास्तविक मूल, तना तथा पत्तियाँ एवं संवहन ऊतक सर्वप्रथम किस समूह में विकसित हुए?
(क) शैवाल
(ख) ब्रायोफाइटा
(ग) टेरिडोफाइटा
(घ) जिम्नोस्पर्म

उत्तर: (ग) टेरिडोफाइटा

प्रश्न 10: साइकस में पाई जाने वाली नाइट्रोजन स्थिरीकरण से संबंधित विशिष्ट जड़ें हैं:
(क) मूसला मूल
(ख) कवकमूल
(ग) प्रवाल मूल (Coralloid roots)
(घ) अपस्थानिक मूल

उत्तर: (ग) प्रवाल मूल (Coralloid roots)


मुझे उम्मीद है कि ये विस्तृत नोट्स और प्रश्न आपकी परीक्षा की तैयारी में सहायक होंगे। ध्यानपूर्वक अध्ययन करें और अवधारणाओं को समझने का प्रयास करें। शुभकामनाएँ!

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