Class 11 Biology Notes Chapter 7 (Chapter 7) – Examplar Problems (Hindi) Book

Examplar Problems (Hindi)
चलिए, आज हम कक्षा 11 जीव विज्ञान के अध्याय 7, 'प्राणियों में संरचनात्मक संगठन' के महत्वपूर्ण बिंदुओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे, जो आपकी सरकारी परीक्षाओं की तैयारी में सहायक होंगे।

अध्याय 7: प्राणियों में संरचनात्मक संगठन (Structural Organisation in Animals)

इस अध्याय में हम प्राणियों के शरीर के विभिन्न स्तरों के संगठन, जैसे ऊतक, अंग और अंग तंत्र का अध्ययन करते हैं। साथ ही, हम केंचुआ, कॉकरोच और मेंढक की आकारिकी (morphology) और शारीरिकी (anatomy) का भी विस्तृत अध्ययन करते हैं।

1. प्राणी ऊतक (Animal Tissues):

समान कोशिकाओं का समूह, जिनकी उत्पत्ति समान होती है और जो एक विशिष्ट कार्य करते हैं, ऊतक कहलाते हैं। संरचना और कार्य के आधार पर प्राणी ऊतक चार प्रमुख प्रकार के होते हैं:

  • उपकला ऊतक (Epithelial Tissue):

    • यह ऊतक शरीर और अंगों के बाहरी व भीतरी आवरण का निर्माण करता है।
    • कोशिकाएँ एक-दूसरे से सटी हुई होती हैं और इनके बीच अंतरकोशिकीय पदार्थ (matrix) बहुत कम या अनुपस्थित होता है।
    • यह एक आधार झिल्ली (basement membrane) पर स्थित होता है।
    • प्रकार:
      • सरल उपकला (Simple Epithelium): कोशिकाओं की एक परत से बना होता है।
        • शल्की (Squamous): चपटी कोशिकाएँ, रक्त वाहिकाओं की भित्ति, फेफड़ों के वायुकोष में पाई जाती हैं। कार्य: विसरण सीमा बनाना।
        • घनाकार (Cuboidal): घन जैसी कोशिकाएँ, वृक्क नलिकाओं, ग्रंथि वाहिनियों में। कार्य: स्रावण और अवशोषण।
        • स्तंभाकार (Columnar): लंबी, स्तंभ जैसी कोशिकाएँ, आमाशय, आंत्र के अस्तर में। केंद्रक आधार भाग में। कार्य: स्रावण और अवशोषण। यदि मुक्त सतह पर पक्ष्माभ (cilia) हों तो पक्ष्माभी उपकला (Ciliated Epithelium) कहलाती है (जैसे श्वसनिका, डिंबवाहिनी नलिका में)।
        • ग्रंथिल उपकला (Glandular Epithelium): स्रावण के लिए विशिष्ट। कोशिकाएँ अंतर्वलित होकर बहुकोशिकीय ग्रंथि बनाती हैं (जैसे लार ग्रंथि)। एककोशिकीय ग्रंथि (जैसे आहारनाल की कलश कोशिकाएँ - goblet cells)।
      • संयुक्त उपकला (Compound Epithelium): कोशिकाओं की एक से अधिक परतों से बना होता है।
        • त्वचा की शुष्क सतह, मुखगुहा की नम सतह, ग्रसनी आदि में पाया जाता है।
        • कार्य: रासायनिक व यांत्रिक प्रतिबलों से सुरक्षा प्रदान करना। स्रावण और अवशोषण में सीमित भूमिका।
    • कोशिका संधि (Cell Junctions): उपकला कोशिकाओं को संरचनात्मक और कार्यात्मक संधि प्रदान करते हैं।
      • दृढ़ संधि (Tight Junction): पदार्थों को ऊतक से बाहर निकालने से रोकती है।
      • आसंजी संधि (Adhering Junction): पड़ोसी कोशिकाओं को चिपकाए रखती है।
      • अंतराली संधि (Gap Junction): आयनों और छोटे अणुओं के स्थानांतरण हेतु कोशिकाओं के कोशिकाद्रव्य को जोड़ती है।
  • संयोजी ऊतक (Connective Tissue):

    • शरीर में सबसे अधिक मात्रा में पाया जाने वाला और विस्तृत रूप से फैला हुआ ऊतक है।
    • कार्य: शरीर के अन्य ऊतकों और अंगों को जोड़ने, सहारा देने और अवलंबन प्रदान करने का कार्य करता है।
    • इसकी कोशिकाएँ ढीली-ढाली होती हैं और अंतरकोशिकीय आधात्री (matrix) में अंतःस्थापित रहती हैं। आधात्री में तंतु (fibers) भी पाए जाते हैं।
    • प्रकार:
      • शिथिल संयोजी ऊतक (Loose Connective Tissue): कोशिकाएँ व तंतु आधात्री में ढीले रूप से व्यवस्थित।
        • त्वगधः ऊतक (Areolar Tissue): त्वचा के नीचे पाया जाता है। उपकला के लिए आधार ढाँचा प्रदान करता है। इसमें तंतुकोरक (fibroblasts), महाभक्षकाणु (macrophages) और मास्ट कोशिकाएँ (mast cells) होती हैं।
        • वसामय ऊतक (Adipose Tissue): त्वचा के नीचे स्थित होता है। वसा संग्रहण के लिए विशिष्ट। अतिरिक्त पोषक पदार्थों को वसा में बदलकर संग्रहित करता है।
      • सघन संयोजी ऊतक (Dense Connective Tissue): तंतु और तंतुकोरक दृढ़ता से व्यवस्थित।
        • सघन नियमित (Dense Regular): कोलेजन तंतु समानांतर गुच्छों में। कण्डरा (Tendon - पेशी को अस्थि से जोड़ती है) और स्नायु (Ligament - अस्थि को अस्थि से जोड़ता है)।
        • सघन अनियमित (Dense Irregular): तंतुकोरक व तंतु (अधिकतर कोलेजन) अनियमित रूप से व्यवस्थित। त्वचा में पाया जाता है।
      • विशिष्ट संयोजी ऊतक (Specialized Connective Tissue):
        • उपास्थि (Cartilage): आधात्री ठोस, लचीली और संपीडन रोधी होती है। कोशिकाएँ (उपास्थि अणु - chondrocytes) छोटी गुहिकाओं में बंद रहती हैं। नाक की नोक, बाह्य कर्ण, कशेरुक दंड के बीच, पैर व हाथ की अस्थियों में।
        • अस्थि (Bone): कठोर और अनम्य आधात्री (कैल्शियम लवण व कोलेजन तंतु)। अस्थि कोशिकाएँ (osteocytes) गर्तिकाओं (lacunae) में उपस्थित। लंबी अस्थियों (जैसे पैर की अस्थि) के मज्जा गुहा में अस्थि मज्जा (bone marrow) रक्त कोशिकाओं का उत्पादन करती है। कार्य: शरीर को संरचनात्मक ढाँचा देना, कोमल अंगों को सहारा व सुरक्षा देना।
        • रक्त (Blood): तरल संयोजी ऊतक। प्लाज्मा (आधात्री), लाल रक्त कणिकाएँ (RBC), श्वेत रक्त कणिकाएँ (WBC) और पट्टिकाणु (platelets) होते हैं। कार्य: पदार्थों का परिवहन।
  • पेशी ऊतक (Muscular Tissue):

    • लंबे, बेलनाकार तंतुओं (पेशी रेशों) का बना होता है जो समानांतर पंक्ति में सजे रहते हैं।
    • संकुचन और शिथिलन की क्षमता होती है, जिससे शरीर में गति होती है।
    • प्रकार:
      • कंकाल पेशी (Skeletal Muscle): अस्थियों से जुड़ी रहती है। बहुकेंद्रकीय, रेखित (striated) होती है। ऐच्छिक (voluntary) नियंत्रण में होती है।
      • चिकनी पेशी (Smooth Muscle): आंतरिक अंगों (आहार नाल, रक्त वाहिका) की भित्ति में। तर्कुरूपी (fusiform), अरेखित (non-striated), एककेंद्रकीय। अनैच्छिक (involuntary) नियंत्रण में होती है।
      • हृद पेशी (Cardiac Muscle): केवल हृदय में पाई जाती है। शाखित, एककेंद्रकीय, रेखित। कोशिकाओं के बीच अंतर्विष्ट डिस्क (intercalated discs) पाई जाती हैं जो संचार संधि का कार्य करती हैं। अनैच्छिक नियंत्रण में होती है।
  • तंत्रिका ऊतक (Neural Tissue):

    • शरीर की बदलती अवस्थाओं के प्रति अनुक्रियाशीलता (responsiveness) के नियंत्रण के लिए उत्तरदायी।
    • तंत्रिका कोशिका (Neuron): तंत्रिका तंत्र की इकाई। उत्तेजनशील कोशिकाएँ।
    • तंत्रिकाबंध (Neuroglia): शेष तंत्रिका ऊतक का निर्माण करती हैं। न्यूरॉन को सहारा व सुरक्षा प्रदान करती हैं। तंत्रिका तंत्र के आयतन का 50% से अधिक भाग बनाती हैं।
    • न्यूरॉन आवेगों को शरीर के एक भाग से दूसरे भाग तक पहुँचाते हैं।

2. अंग एवं अंग तंत्र (Organ and Organ System):

  • अंग (Organ): दो या दो से अधिक प्रकार के ऊतक संगठित होकर एक विशिष्ट कार्य करने वाली संरचना बनाते हैं, जिसे अंग कहते हैं (जैसे- हृदय, फेफड़े, वृक्क, आमाशय)। हृदय में उपकला, संयोजी, पेशी और तंत्रिका ऊतक होते हैं।
  • अंग तंत्र (Organ System): कई अंग मिलकर एक विशिष्ट शारीरिक कार्य करते हैं, तो अंग तंत्र का निर्माण होता है (जैसे- पाचन तंत्र, श्वसन तंत्र, परिसंचरण तंत्र)।

3. केंचुआ (Earthworm - फेरेटिमा):

  • संघ: एनेलिडा (Annelida)
  • आवास: नम मिट्टी की ऊपरी सतह। रात्रिचर।
  • आकारिकी (Morphology):
    • लंबा, बेलनाकार शरीर, 100-120 खंडों (metameres) में बंटा।
    • पृष्ठ सतह पर मध्य पृष्ठ रेखा (पृष्ठ रक्त वाहिका)। अधर सतह पर जनन छिद्र।
    • अग्र सिरे पर मुख तथा प्रोस्टोमियम (prostomium - संवेदी पालि)।
    • प्रथम खंड परमुख (peristomium)।
    • 14-16 खंडों में ग्रंथिल ऊतक का मोटा पट्टा - क्लाइटेलम (clitellum)। शरीर तीन भागों में बंटा - पूर्व क्लाइटेलर, क्लाइटेलर, पश्च क्लाइटेलर।
    • 5-9 खंडों के अधर-पार्श्व में 4 जोड़ी शुक्रग्राहिका रंध्र (spermathecal apertures)।
    • 14वें खंड के मध्य-अधर रेखा पर मादा जनन छिद्र।
    • 18वें खंड के अधर-पार्श्व में एक जोड़ी नर जनन छिद्र।
    • प्रत्येक खंड के मध्य में S-आकार के शूक (setae) - गमन में सहायक।
  • शारीरिकी (Anatomy):
    • शरीर भित्ति: सबसे बाहर क्यूटिकल, नीचे एपिडर्मिस, दो पेशी परतें (वर्तुल एवं अनुदैर्ध्य) तथा सबसे भीतरी देहगुहीय उपकला।
    • आहार नाल: सीधी नलिका। मुख (1-3 खंड) -> मुख गुहिका -> ग्रसनी -> ग्रसिका (5-7 खंड) -> पेशणी (Gizzard, 8-9 खंड - भोजन पीसना) -> आमाशय (9-14 खंड - कैल्सिफेरस ग्रंथियाँ ह्यूमिक अम्ल उदासीन करती हैं) -> आंत्र (15वें खंड से अंत तक)। आंत्र का विशिष्ट भाग टिफ्लोसोल (Typhlosole) (26वें खंड से शुरू होकर अंतिम 23-25 खंडों को छोड़कर) - अवशोषण सतह बढ़ाता है।
    • परिसंचरण तंत्र: बंद प्रकार का। हृदय (4 जोड़ी, 7, 9, 12, 13वें खंड में), रक्त वाहिनियाँ, केशिकाएँ, रक्त। रक्त ग्रंथियाँ (4, 5, 6 खंड) हीमोग्लोबिन और रुधिर कोशिकाओं का निर्माण करती हैं। हीमोग्लोबिन प्लाज्मा में घुला रहता है।
    • श्वसन तंत्र: विशिष्ट अंग नहीं। नम त्वचा से गैसों का विनिमय (त्वचीय श्वसन)।
    • उत्सर्जन तंत्र: उत्सर्जी अंग वृक्कक (Nephridia) - कुंडलित नलिकाएँ।
      • पटीय वृक्कक (Septal nephridia): 15वें खंड से अंतिम खंड तक, पटों पर। आंत्र में खुलते हैं।
      • अध्यावरणी वृक्कक (Integumentary nephridia): 3रे खंड से अंतिम खंड तक, शरीर भित्ति से चिपके। शरीर की सतह पर खुलते हैं।
      • ग्रसनीय वृक्कक (Pharyngeal nephridia): 4, 5, 6 खंडों में गुच्छों के रूप में।
    • तंत्रिका तंत्र: गुच्छिकाओं (ganglia) का खंडानुसार जमाव। अग्र सिरे पर अधोग्रसनी गुच्छिका व अधिग्रसनीय गुच्छिका मिलकर तंत्रिका वलय (nerve ring) बनाती हैं। एक दोहरी अधर तंत्रिका रज्जु अंतिम खंड तक जाती है।
    • जनन तंत्र: उभयलिंगी (hermaphrodite)।
      • नर जनन अंग: 2 जोड़ी वृषण (10, 11 खंड), शुक्रवाहिकाएँ, प्रोस्टेट ग्रंथि, सहायक ग्रंथियाँ।
      • मादा जनन अंग: 1 जोड़ी अंडाशय (12-13वें खंड के अंतरखंडीय पट पर), अंडवाहिनी।
      • शुक्राणु विनिमय मैथुन के दौरान होता है। निषेचन और परिवर्धन कोकून (cocoon) में होता है जो क्लाइटेलम द्वारा स्रावित पदार्थों से बनता है। परिवर्धन प्रत्यक्ष (कोई लार्वा नहीं)।

4. कॉकरोच (Cockroach - पेरिप्लैनेटा अमेरिकाना):

  • संघ: आर्थ्रोपोडा (Arthropoda)
  • वर्ग: इन्सेक्टा (Insecta)
  • आवास: रात्रिचर, सर्वभक्षी, नम व ऊष्ण स्थानों पर।
  • आकारिकी (Morphology):
    • चपटा, खंडयुक्त शरीर (सिर, वक्ष, उदर)।
    • बाह्य कंकाल काइटिन (chitin) का बना। प्रत्येक खंड में कठोर प्लेटें - स्क्लेराइट्स (पृष्ठ - टरगाइट्स, अधर - स्टरनाइट्स, पार्श्व - प्लूराइट्स)। ये पतली झिल्ली (आर्थ्रोडियल झिल्ली) से जुड़े होते हैं।
    • सिर: त्रिकोणीय, शरीर से समकोण पर। 6 खंडों के संलयन से बना। गतिशील। संवेदी श्रृंगिकाएँ (antennae), संयुक्त नेत्र (compound eyes), मुखांग (काटने व चबाने वाले - लेब्रम, एक जोड़ी मैंडिबल, एक जोड़ी मैक्सिला, लेबियम, हाइपोफैरिंग्स)।
    • वक्ष: तीन भाग - अग्रवक्ष (prothorax), मध्यवक्ष (mesothorax), पश्चवक्ष (metathorax)। प्रत्येक वक्ष खंड से एक जोड़ी टाँगें। दो जोड़ी पंख - अग्र पंख (टैगमिना - मध्यवक्ष से, अपारदर्शी, सुरक्षात्मक), पश्च पंख (पश्चवक्ष से, पारदर्शी, उड़ने में सहायक)।
    • उदर: 10 खंड। 7वाँ स्टर्नम (मादा में) या 9वाँ स्टर्नम (नर में) जनन कोष्ठ बनाता है। नर व मादा दोनों में 10वें खंड पर एक जोड़ी गुदीय शूक (anal cerci)। नर में 9वें खंड पर एक जोड़ी गुदीय कंटिकाएँ (anal styles) - मादा में अनुपस्थित।
  • शारीरिकी (Anatomy):
    • आहार नाल: तीन भाग - अग्रांत्र (foregut), मध्यांत्र (midgut), पश्चांत्र (hindgut)।
      • अग्रांत्र: मुख -> ग्रसनी -> ग्रसिका -> अन्नपुट (crop - भोजन संग्रह) -> पेशणी (gizzard - भोजन पीसना, क्यूटिकल की मोटी परत, 6 काइटिनी दाँते)।
      • मध्यांत्र: अग्रांत्र व मध्यांत्र के संधि स्थल पर 6-8 अंधनाल (hepatic caeca) - पाचक रस स्रावित करती हैं। मध्यांत्र में भोजन का पाचन व अवशोषण।
      • पश्चांत्र: मध्यांत्र व पश्चांत्र के संधि स्थल पर 100-150 पतली पीली नलिकाएँ - मैलपीगी नलिकाएँ (Malpighian tubules) - उत्सर्जन अंग। पश्चांत्र चौड़ा (क्षुद्रांत्र, बृहदांत्र, मलाशय)। मलाशय गुदा द्वारा बाहर खुलता है।
    • परिसंचरण तंत्र: खुला प्रकार का। रक्त वाहिकाएँ अल्पविकसित, देहगुहा (हीमोसील) में खुलती हैं। अंग रक्त (हीमोलिम्फ) में डूबे रहते हैं। हृदय लंबा, पेशीय, कीपाकार कोष्ठों का बना। रक्त रंगहीन (हीमोसायनिन अनुपस्थित)।
    • श्वसन तंत्र: श्वास नलिकाओं (tracheae) का जाल। श्वास रंध्र (spiracles) द्वारा बाहर खुलते हैं (10 जोड़ी - 2 वक्ष में, 8 उदर में)। गैसों का विसरण सीधे ऊतकों तक।
    • उत्सर्जन तंत्र: मैलपीगी नलिकाएँ। ये ग्रंथिल और रोमयुक्त कोशिकाएँ होती हैं। ये नाइट्रोजनी अपशिष्टों को यूरिक अम्ल (uricotelic) के रूप में उत्सर्जित करती हैं। वसा पिंड, यूरेकोस ग्रंथियाँ भी उत्सर्जन में सहायक।
    • तंत्रिका तंत्र: श्रेणीबद्ध, खंडीय व्यवस्थित गुच्छिकाओं का बना। 3 गुच्छिकाएँ वक्ष में, 6 उदर में। सिर में मस्तिष्क (अधिग्रसिकीय गुच्छिका) तंत्रिका तंत्र का थोड़ा सा भाग बनाता है, अधिकांश भाग अधर तल पर।
    • संवेदी अंग: श्रृंगिकाएँ, आँखें, मैक्सिलरी पल्प, लेबियल पल्प, गुदीय शूक। संयुक्त नेत्र (लगभग 2000 षट्कोणीय नेत्रांशक - ommatidia)। मोजेक दृष्टि (mosaic vision) - अधिक संवेदनशीलता, कम विभेदन।
    • जनन तंत्र: एकलिंगी (dioecious)।
      • नर: एक जोड़ी वृषण (4-6 उदर खंड), शुक्रवाहक, स्खलनीय वाहिनी, नर जनन रंध्र, छत्रक ग्रंथि (mushroom gland), फैलिक ग्रंथि (phallic gland)। बाह्य जननांग - जननधर (gonapophysis) या फैलोमियर (phallomere)। शुक्राणु शुक्राणुधर (spermatophore) के रूप में स्थानांतरित।
      • मादा: एक जोड़ी अंडाशय (2-6 उदर खंड), अंडवाहिनी, जनन कक्ष, कॉलेटरियल ग्रंथियाँ (collaterial glands - अंडकवच निर्माण)। 6 शुक्राणुधानियाँ (spermathecae) (6ठे खंड में)। निषेचन जनन कक्ष में। अंडकवच (ootheca) में 14-16 अंडे। परिवर्धन परोक्ष (पॉरोमेटाबोलस - nymph अवस्था)। निम्फ कायांतरण द्वारा वयस्क बनता है।

5. मेंढक (Frog - राना टिग्रिना):

  • संघ: कॉर्डेटा (Chordata)
  • वर्ग: एम्फीबिया (Amphibia)
  • आवास: जल व स्थल दोनों पर (उभयचर)। असमतापी (poikilotherm)। ग्रीष्म निष्क्रियता (aestivation) व शीत निष्क्रियता (hibernation) दर्शाता है।
  • आकारिकी (Morphology):
    • त्वचा नम, चिकनी, श्लेष्म से ढकी। रंग परिवर्तक (camouflage)।
    • पृष्ठ भाग जैतूनी हरा, अधर भाग पीला।
    • शरीर सिर व धड़ में विभाजित। गर्दन व पूँछ अनुपस्थित।
    • मुख के ऊपर एक जोड़ी नासाद्वार। नेत्र बाहर उभरे हुए, निमेषक पटल (nictitating membrane) से ढके। कर्ण पटह (tympanum) उपस्थित।
    • अग्रपाद (4 अंगुली), पश्चपाद (5 अंगुली, झिल्लीयुक्त - तैरने में सहायक)।
    • लैंगिक द्विरूपता: नर में ध्वनि उत्पन्न करने वाले वाक् कोष (vocal sacs) तथा अग्रपाद की पहली अंगुली पर मैथुनांग (copulatory pad) होते हैं।
  • शारीरिकी (Anatomy):
    • पाचन तंत्र: छोटी आहारनाल (मांसाहारी)। मुख -> मुखगुहिका -> ग्रसनी -> ग्रसिका -> आमाशय -> आंत्र (ग्रहणी, क्षुद्रांत्र) -> मलाशय -> अवस्कर द्वार (cloaca)। यकृत पित्त स्रावित करता है, पित्ताशय में संग्रहित होता है। अग्न्याशय पाचक रस स्रावित करता है। भोजन का पाचन आमाशय व आंत्र में। अवशोषण आंत्र की भित्ति में उपस्थित रसांकुर (villi) व सूक्ष्मांकुर (microvilli) द्वारा। अवस्कर द्वार - पाचन, उत्सर्जन व जनन पथ का कॉमन द्वार।
    • श्वसन तंत्र: जल में त्वचा द्वारा (त्वचीय श्वसन)। स्थल पर मुख गुहिका व फेफड़ों (फुप्फुसीय श्वसन) द्वारा। फेफड़े अविकसित, थैलीनुमा।
    • परिसंचरण तंत्र: बंद प्रकार का, सुविकसित। लसीका तंत्र भी उपस्थित। हृदय त्रिकक्षीय (दो अलिंद, एक निलय)। शिरा कोटर (sinus venosus) दाएँ अलिंद से जुड़ा। निलय धमनी शंकु (conus arteriosus) में खुलता है। यकृत निवाहिका तंत्र (hepatic portal system) व वृक्क निवाहिका तंत्र (renal portal system) उपस्थित। रक्त में प्लाज्मा, RBC (केंद्रक युक्त, उभयोत्तल), WBC, प्लेटलेट्स।
    • उत्सर्जन तंत्र: एक जोड़ी वृक्क (kidney)। वृक्कक (nephron) संरचनात्मक व क्रियात्मक इकाई। नर में मूत्रवाहिनी वृक्क से मूत्र-जनन वाहिनी (urinogenital duct) के रूप में निकलकर अवस्कर में खुलती है। मादा में मूत्रवाहिनी व अंडवाहिनी अलग-अलग अवस्कर में खुलती हैं। यूरियोटेलिक (ureotelic) - यूरिया का उत्सर्जन।
    • तंत्रिका तंत्र: केंद्रीय (मस्तिष्क, मेरुरज्जु), परिधीय (कपालीय व मेरु तंत्रिकाएँ), स्वायत्त (अनुकंपी, परानुकंपी)। मस्तिष्क अग्र, मध्य व पश्च मस्तिष्क में बंटा। 10 जोड़ी कपालीय तंत्रिकाएँ।
    • संवेदी अंग: स्पर्श (संवेदी पैपिला), स्वाद (स्वाद कलिकाएँ), गंध (नासा एपिथीलियम), दृष्टि (नेत्र), श्रवण (कर्ण पटह, अंतः कर्ण)।
    • जनन तंत्र: एकलिंगी।
      • नर: एक जोड़ी वृषण, शुक्र वाहिकाएँ (vasa efferentia), मूत्र-जनन वाहिनी, अवस्कर।
      • मादा: एक जोड़ी अंडाशय, अंडवाहिनी, अवस्कर।
      • निषेचन बाह्य (जल में)। परिवर्धन परोक्ष, लार्वा अवस्था - टैडपोल (tadpole)। टैडपोल कायांतरण द्वारा वयस्क बनता है।

अभ्यास हेतु बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs):

  1. केंचुए में क्लाइटेलम किन खंडों में पाया जाता है?
    (a) 12-14
    (b) 14-16
    (c) 16-18
    (d) 10-12

  2. कॉकरोच का बाह्य कंकाल किससे बना होता है?
    (a) क्यूटिकल
    (b) काइटिन
    (c) सेलुलोज
    (d) पेक्टिन

  3. पेशी को अस्थि से जोड़ने वाले संयोजी ऊतक को क्या कहते हैं?
    (a) स्नायु (Ligament)
    (b) कण्डरा (Tendon)
    (c) उपास्थि (Cartilage)
    (d) त्वगधः ऊतक (Areolar tissue)

  4. मेंढक में हृदय के कितने कक्ष होते हैं?
    (a) दो
    (b) तीन
    (c) चार
    (d) एक

  5. कॉकरोच में उत्सर्जन अंग कौन-से हैं?
    (a) वृक्कक (Nephridia)
    (b) मैलपीगी नलिकाएँ (Malpighian tubules)
    (c) ज्वाला कोशिकाएँ (Flame cells)
    (d) हरित ग्रंथियाँ (Green glands)

  6. किस प्रकार का उपकला ऊतक रक्त वाहिकाओं की भित्ति में पाया जाता है?
    (a) घनाकार उपकला
    (b) स्तंभाकार उपकला
    (c) शल्की उपकला
    (d) ग्रंथिल उपकला

  7. केंचुए में भोजन को पीसने का कार्य कौन-सी संरचना करती है?
    (a) ग्रसनी
    (b) आमाशय
    (c) पेशणी (Gizzard)
    (d) आंत्र

  8. मेंढक का लार्वा क्या कहलाता है?
    (a) निम्फ (Nymph)
    (b) टैडपोल (Tadpole)
    (c) मैगट (Maggot)
    (d) प्यूपा (Pupa)

  9. नर कॉकरोच में मादा कॉकरोच से भिन्न कौन-सी संरचना पाई जाती है?
    (a) श्रृंगिकाएँ (Antennae)
    (b) गुदीय शूक (Anal cerci)
    (c) टैगमिना (Tegmina)
    (d) गुदीय कंटिकाएँ (Anal styles)

  10. तरल संयोजी ऊतक का उदाहरण है:
    (a) अस्थि
    (b) उपास्थि
    (c) रक्त
    (d) वसामय ऊतक

उत्तरमाला:

  1. (b) 14-16
  2. (b) काइटिन
  3. (b) कण्डरा (Tendon)
  4. (b) तीन
  5. (b) मैलपीगी नलिकाएँ (Malpighian tubules)
  6. (c) शल्की उपकला
  7. (c) पेशणी (Gizzard)
  8. (b) टैडपोल (Tadpole)
  9. (d) गुदीय कंटिकाएँ (Anal styles)
  10. (c) रक्त

इन नोट्स का अच्छी तरह अध्ययन करें और प्रश्नों का अभ्यास करें। आपकी परीक्षा के लिए शुभकामनाएँ!

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