Class 11 Business Studies Notes Chapter 2 (व्यावसायिक संगठन के स्वरुप) – Vyavsay Adhyayan Book

प्रिय विद्यार्थियों,
आज हम कक्षा 11 व्यावसायिक अध्ययन के अध्याय 2 'व्यावसायिक संगठन के स्वरूप' का विस्तृत अध्ययन करेंगे। यह अध्याय व्यावसायिक विश्व की आधारशिला है और सरकारी परीक्षाओं की तैयारी के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस अध्याय में हम विभिन्न प्रकार के व्यावसायिक संगठनों, उनकी विशेषताओं, लाभों और सीमाओं को समझेंगे।
अध्याय 2: व्यावसायिक संगठन के स्वरूप (Forms of Business Organisation)
परिचय:
किसी भी व्यवसाय को प्रारंभ करने से पहले, उसके संगठन के स्वरूप का चयन करना एक महत्वपूर्ण निर्णय होता है। व्यवसाय का स्वरूप उसकी पूँजी, दायित्व, नियंत्रण, निरंतरता और प्रबंधकीय आवश्यकताओं को प्रभावित करता है। व्यावसायिक संगठन के प्रमुख स्वरूप निम्नलिखित हैं:
- एकल स्वामित्व (Sole Proprietorship)
- संयुक्त हिंदू परिवार व्यवसाय (Hindu Undivided Family Business - HUF)
- साझेदारी (Partnership)
- सहकारी समितियाँ (Cooperative Societies)
- संयुक्त पूँजी कंपनी (Joint Stock Company)
1. एकल स्वामित्व (Sole Proprietorship)
अर्थ: एकल स्वामित्व व्यवसाय संगठन का वह स्वरूप है जिसका स्वामित्व, प्रबंधन और संचालन एक ही व्यक्ति द्वारा किया जाता है। वह व्यक्ति व्यवसाय का एकमात्र स्वामी होता है और सभी लाभों को प्राप्त करता है तथा सभी जोखिमों को वहन करता है।
विशेषताएँ (Features):
- एकल व्यक्ति का स्वामित्व: व्यवसाय का एकमात्र स्वामी एक व्यक्ति होता है।
- असीमित दायित्व: स्वामी का दायित्व असीमित होता है। यदि व्यवसाय के ऋणों का भुगतान नहीं हो पाता है, तो उसकी निजी संपत्ति का भी उपयोग किया जा सकता है।
- एकल नियंत्रण: व्यवसाय का पूर्ण नियंत्रण स्वामी के हाथों में होता है।
- शीघ्र निर्णय: स्वामी स्वयं निर्णय लेता है, जिससे निर्णय प्रक्रिया तीव्र होती है।
- स्थापना में सुगमता: इसकी स्थापना और समापन आसान है, क्योंकि इसके लिए किसी विशेष कानूनी औपचारिकता की आवश्यकता नहीं होती।
- व्यवसाय की निरंतरता का अभाव: स्वामी की मृत्यु, पागलपन या दिवालिया होने पर व्यवसाय समाप्त हो सकता है।
लाभ (Advantages):
- शीघ्र निर्णय: निर्णय लेने में देरी नहीं होती।
- गोपनीयता: सभी महत्वपूर्ण जानकारी गोपनीय रहती है।
- प्रत्यक्ष प्रोत्साहन: सभी लाभ सीधे स्वामी को मिलते हैं, जो उसे अधिक कार्य करने के लिए प्रेरित करता है।
- स्थापना एवं समापन में सुगमता: कानूनी औपचारिकताएँ कम होती हैं।
- व्यक्तिगत संपर्क: ग्राहकों से सीधा संपर्क बनाए रखना आसान होता है।
सीमाएँ (Limitations):
- सीमित पूँजी: स्वामी की निजी बचत और ऋण लेने की क्षमता सीमित होती है।
- सीमित प्रबंधकीय योग्यता: एक व्यक्ति सभी क्षेत्रों (उत्पादन, विपणन, वित्त) में विशेषज्ञ नहीं हो सकता।
- असीमित दायित्व: यह सबसे बड़ी कमी है, क्योंकि स्वामी की निजी संपत्ति भी जोखिम में होती है।
- अस्थिरता: स्वामी की अनुपस्थिति या मृत्यु से व्यवसाय की निरंतरता प्रभावित होती है।
2. संयुक्त हिंदू परिवार व्यवसाय (Hindu Undivided Family Business - HUF)
अर्थ: यह व्यवसाय संगठन का एक विशेष स्वरूप है जो केवल भारत में पाया जाता है। इसका संचालन हिंदू अविभाजित परिवार के सदस्यों द्वारा किया जाता है और यह हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम द्वारा शासित होता है। व्यवसाय का नियंत्रण परिवार के सबसे बड़े सदस्य (कर्ता) के हाथ में होता है।
विशेषताएँ (Features):
- सदस्यता जन्म से: परिवार में जन्म लेने वाला व्यक्ति स्वतः ही इसका सदस्य बन जाता है।
- कर्ता का नियंत्रण: परिवार का सबसे वरिष्ठ सदस्य (कर्ता) व्यवसाय का प्रबंधन करता है।
- असीमित दायित्व (कर्ता का): कर्ता का दायित्व असीमित होता है, जबकि अन्य सदस्यों (सहभागी) का दायित्व उनकी हिस्सेदारी तक सीमित होता है।
- निरंतरता: कर्ता की मृत्यु होने पर अगला वरिष्ठ सदस्य कर्ता बन जाता है, जिससे व्यवसाय की निरंतरता बनी रहती है।
- पंजीकरण की आवश्यकता नहीं: इसके लिए किसी पंजीकरण की आवश्यकता नहीं होती।
- सीमित सदस्य: केवल हिंदू अविभाजित परिवार के सदस्य ही इसके सदस्य हो सकते हैं।
लाभ (Advantages):
- प्रभावी नियंत्रण: कर्ता के पास पूर्ण अधिकार होने से त्वरित निर्णय और प्रभावी नियंत्रण होता है।
- निरंतरता: व्यवसाय की निरंतरता बनी रहती है।
- सीमित दायित्व (सहभागियों का): कर्ता को छोड़कर अन्य सदस्यों का दायित्व सीमित होता है।
- निष्ठा में वृद्धि: परिवार के सदस्य होने के कारण व्यवसाय के प्रति अधिक निष्ठा होती है।
सीमाएँ (Limitations):
- सीमित संसाधन: परिवार की संपत्ति और ऋण लेने की क्षमता सीमित होती है।
- कर्ता पर अत्यधिक भार: कर्ता को सभी निर्णय लेने होते हैं और उसका दायित्व असीमित होता है।
- सीमित प्रबंधकीय कौशल: कर्ता के पास सभी प्रबंधकीय कौशल होना आवश्यक नहीं है।
- टकराव की संभावना: परिवार के सदस्यों के बीच मतभेद हो सकते हैं।
3. साझेदारी (Partnership)
अर्थ: भारतीय साझेदारी अधिनियम, 1932 की धारा 4 के अनुसार, "साझेदारी उन व्यक्तियों के बीच का संबंध है जिन्होंने ऐसे व्यवसाय के लाभों को बाँटने का समझौता किया है जिसे वे सभी या उनमें से कोई एक सब की ओर से चलाता है।"
विशेषताएँ (Features):
- दो या अधिक व्यक्ति: साझेदारी में कम से कम दो व्यक्ति होने चाहिए। अधिकतम संख्या बैंकिंग व्यवसाय में 10 और अन्य व्यवसाय में 50 होती है (कंपनी अधिनियम 2013 के अनुसार)।
- समझौता (Agreement): साझेदारों के बीच एक मौखिक या लिखित समझौता (साझेदारी विलेख) होता है।
- लाभ का बँटवारा: लाभ और हानि को पूर्व-निर्धारित अनुपात में बाँटा जाता है।
- व्यवसाय का अस्तित्व: साझेदारी का उद्देश्य किसी वैध व्यवसाय का संचालन करना होना चाहिए।
- असीमित दायित्व: साझेदारों का दायित्व असीमित होता है।
- परस्पर एजेंसी: प्रत्येक साझेदार स्वामी भी होता है और एजेंट भी। वह अन्य साझेदारों को अपने कार्यों से बाध्य कर सकता है।
- गैर-हस्तांतरणीय हित: कोई भी साझेदार अन्य साझेदारों की सहमति के बिना अपना हित किसी बाहरी व्यक्ति को हस्तांतरित नहीं कर सकता।
लाभ (Advantages):
- स्थापना में सुगमता: कानूनी औपचारिकताएँ कम होती हैं।
- अधिक पूँजी: अधिक साझेदारों के कारण अधिक पूँजी जुटाई जा सकती है।
- जोखिम का बँटवारा: जोखिम साझेदारों के बीच बँट जाता है।
- संतुलित निर्णय: विभिन्न साझेदारों की विशेषज्ञता से बेहतर निर्णय लिए जा सकते हैं।
- गोपनीयता: कंपनी की तुलना में अधिक गोपनीयता बनी रहती है।
सीमाएँ (Limitations):
- असीमित दायित्व: यह एक बड़ी कमी है।
- सीमित संसाधन: कंपनी की तुलना में पूँजी अभी भी सीमित होती है।
- टकराव की संभावना: साझेदारों के बीच मतभेद हो सकते हैं।
- निरंतरता का अभाव: किसी साझेदार की मृत्यु, सेवानिवृत्ति या दिवालिया होने पर साझेदारी समाप्त हो सकती है या पुनर्गठित करनी पड़ सकती है।
- जन विश्वास का अभाव: पंजीकरण अनिवार्य न होने के कारण जनता का विश्वास कंपनी जितना नहीं होता।
साझेदारी के प्रकार (Types of Partnership):
- अवधि के आधार पर:
- ऐच्छिक साझेदारी (Partnership at Will): कोई निश्चित अवधि नहीं होती।
- निश्चित अवधि की साझेदारी (Particular Partnership): किसी निश्चित अवधि के लिए।
- विशेष साझेदारी (Particular Partnership): किसी विशेष कार्य के लिए।
- दायित्व के आधार पर:
- सामान्य साझेदारी (General Partnership): सभी साझेदारों का दायित्व असीमित होता है।
- सीमित साझेदारी (Limited Partnership): कम से कम एक साझेदार का दायित्व असीमित होता है और बाकी का सीमित। (भारत में यह स्वरूप अब सीमित दायित्व साझेदारी (LLP) के रूप में अधिक प्रचलित है)।
साझेदारों के प्रकार (Types of Partners):
- सक्रिय साझेदार (Active Partner): पूँजी लगाता है, प्रबंधन में भाग लेता है, लाभ-हानि बाँटता है और उसका दायित्व असीमित होता है।
- निष्क्रिय/सुप्त साझेदार (Sleeping/Dormant Partner): पूँजी लगाता है, लाभ-हानि बाँटता है, दायित्व असीमित होता है, लेकिन प्रबंधन में भाग नहीं लेता।
- गुप्त साझेदार (Secret Partner): अन्य साझेदारों को ज्ञात होता है, लेकिन जनता को नहीं। पूँजी लगाता है, प्रबंधन में भाग ले सकता है, लाभ-हानि बाँटता है और दायित्व असीमित होता है।
- नाममात्र का साझेदार (Nominal Partner): केवल अपना नाम प्रयोग करने की अनुमति देता है, न पूँजी लगाता है, न लाभ-हानि बाँटता है, न प्रबंधन में भाग लेता है, लेकिन उसका दायित्व असीमित होता है।
- प्रदर्शन द्वारा साझेदार (Partner by Estoppel): अपने आचरण से स्वयं को साझेदार प्रदर्शित करता है।
- लाभों में साझेदार (Partner in Profits Only): केवल लाभ में हिस्सा लेता है, हानि में नहीं (अक्सर अवयस्क साझेदार)।
- अवयस्क साझेदार (Minor Partner): अवयस्क व्यक्ति केवल लाभ में साझेदार हो सकता है, हानि में नहीं। उसका दायित्व सीमित होता है।
साझेदारी विलेख (Partnership Deed): यह साझेदारों के बीच एक लिखित समझौता है जिसमें साझेदारी के नियम और शर्तें (जैसे पूँजी, लाभ-हानि अनुपात, वेतन, आहरण, साझेदार के प्रवेश/निकास के नियम) स्पष्ट रूप से लिखे होते हैं। यह मौखिक भी हो सकता है, लेकिन लिखित होना हमेशा बेहतर होता है।
साझेदारी का पंजीकरण (Registration of Partnership): भारतीय साझेदारी अधिनियम, 1932 के तहत साझेदारी का पंजीकरण अनिवार्य नहीं है, लेकिन यह सलाह दी जाती है। पंजीकृत साझेदारी को कुछ लाभ मिलते हैं, जैसे:
- साझेदार तीसरे पक्ष पर मुकदमा कर सकते हैं।
- साझेदार एक-दूसरे पर मुकदमा कर सकते हैं।
- फर्म तीसरे पक्ष पर मुकदमा कर सकती है।
4. सहकारी समितियाँ (Cooperative Societies)
अर्थ: सहकारी समिति उन व्यक्तियों का एक स्वैच्छिक संगठन है जो अपने सामान्य आर्थिक हितों को बढ़ावा देने के लिए स्वेच्छा से एक साथ आते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य सेवा करना है, न कि लाभ कमाना। यह सहकारी समिति अधिनियम, 1912 के तहत पंजीकृत होती है।
विशेषताएँ (Features):
- स्वैच्छिक सदस्यता: कोई भी व्यक्ति स्वेच्छा से सदस्य बन सकता है और छोड़ सकता है।
- कानूनी अस्तित्व: पंजीकरण के बाद इसका एक अलग कानूनी अस्तित्व होता है।
- सीमित दायित्व: सदस्यों का दायित्व उनके द्वारा निवेश की गई पूँजी की सीमा तक सीमित होता है।
- नियंत्रण (एक व्यक्ति एक मत): प्रत्येक सदस्य को एक वोट का अधिकार होता है, चाहे उसने कितनी भी पूँजी लगाई हो।
- सेवा उद्देश्य: इसका मुख्य उद्देश्य सदस्यों को सेवाएँ प्रदान करना है।
- पंजीकरण अनिवार्य: सहकारी समिति अधिनियम, 1912 के तहत पंजीकरण अनिवार्य है।
लाभ (Advantages):
- स्थापना में सुगमता: पंजीकरण की प्रक्रिया अपेक्षाकृत सरल है।
- सीमित दायित्व: सदस्यों का जोखिम सीमित होता है।
- स्थिरता: सदस्यों के प्रवेश या निकास से समिति के अस्तित्व पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
- सरकारी सहायता: सरकार से विभिन्न प्रकार की सहायता (जैसे कम ब्याज पर ऋण, कर में छूट) प्राप्त होती है।
- लोकतांत्रिक प्रबंधन: 'एक व्यक्ति एक मत' के सिद्धांत पर आधारित।
सीमाएँ (Limitations):
- सीमित संसाधन: सदस्य आमतौर पर सीमित पूँजी निवेश करते हैं।
- अकुशल प्रबंधन: सदस्य अक्सर अवैतनिक होते हैं और पेशेवर प्रबंधक नियुक्त करने के लिए धन की कमी होती है।
- सरकारी नियंत्रण: सरकार द्वारा नियमों और लेखा-परीक्षा के माध्यम से नियंत्रण होता है।
- सदस्यों के बीच मतभेद: विभिन्न सदस्यों के हितों में टकराव हो सकता है।
सहकारी समितियों के प्रकार (Types of Cooperative Societies):
- उपभोक्ता सहकारी समिति (Consumer Cooperative Societies): उपभोक्ताओं को उचित मूल्य पर गुणवत्ता वाले उत्पाद उपलब्ध कराना।
- उत्पादक सहकारी समिति (Producer Cooperative Societies): छोटे उत्पादकों को कच्चा माल, उपकरण आदि उपलब्ध कराना।
- विपणन सहकारी समिति (Marketing Cooperative Societies): छोटे उत्पादकों को उनके उत्पादों को बेचने में मदद करना।
- कृषक सहकारी समिति (Farmer Cooperative Societies): किसानों को बेहतर बीज, खाद, उपकरण आदि उपलब्ध कराना और कृषि उत्पादकता बढ़ाना।
- आवास सहकारी समिति (Housing Cooperative Societies): सदस्यों को उचित लागत पर आवास उपलब्ध कराना।
- ऋण सहकारी समिति (Credit Cooperative Societies): सदस्यों को उचित ब्याज दरों पर ऋण उपलब्ध कराना।
5. संयुक्त पूँजी कंपनी (Joint Stock Company)
अर्थ: कंपनी अधिनियम, 2013 के अनुसार, "कंपनी का अर्थ इस अधिनियम के तहत या किसी पिछले कंपनी कानून के तहत निगमित कंपनी है।" यह एक कृत्रिम व्यक्ति है जिसका एक अलग कानूनी अस्तित्व, शाश्वत उत्तराधिकार और एक सामान्य मुहर होती है।
विशेषताएँ (Features):
- कृत्रिम व्यक्ति: यह कानून द्वारा निर्मित एक कृत्रिम व्यक्ति है, जिसका अपना नाम, पहचान और अधिकार होते हैं।
- अलग कानूनी अस्तित्व: कंपनी का अपने सदस्यों से अलग कानूनी अस्तित्व होता है।
- शाश्वत उत्तराधिकार: सदस्यों के आने-जाने या मृत्यु से कंपनी के अस्तित्व पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
- सीमित दायित्व: शेयरधारकों का दायित्व उनके द्वारा खरीदे गए शेयरों के अंकित मूल्य तक सीमित होता है।
- सामान्य मुहर (Common Seal): कंपनी के हस्ताक्षर के रूप में कार्य करती है।
- अंशों का हस्तांतरण: सार्वजनिक कंपनी के अंश स्वतंत्र रूप से हस्तांतरणीय होते हैं।
- पंजीकरण अनिवार्य: कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत पंजीकरण अनिवार्य है।
- प्रबंधन और स्वामित्व का अलगाव: शेयरधारक (स्वामी) कंपनी का प्रबंधन नहीं करते, बल्कि निदेशक मंडल (बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स) द्वारा प्रबंधित होती है।
लाभ (Advantages):
- बड़ी मात्रा में पूँजी: अंशों के माध्यम से जनता से बड़ी मात्रा में पूँजी जुटाई जा सकती है।
- सीमित दायित्व: शेयरधारकों का दायित्व सीमित होने से वे अधिक निवेश करने को प्रोत्साहित होते हैं।
- शाश्वत उत्तराधिकार: कंपनी का अस्तित्व स्थिर और दीर्घकालिक होता है।
- विकास एवं विस्तार की संभावना: बड़े पैमाने पर संचालन और विशेषज्ञता के कारण विकास की अधिक संभावनाएँ होती हैं।
- पेशेवर प्रबंधन: विशेषज्ञ प्रबंधकों को नियुक्त किया जा सकता है।
सीमाएँ (Limitations):
- स्थापना में जटिलता: कंपनी की स्थापना में कई कानूनी औपचारिकताएँ और उच्च लागत शामिल होती है।
- नियंत्रण का अभाव: शेयरधारकों का कंपनी के दैनिक प्रबंधन पर सीधा नियंत्रण नहीं होता।
- निर्णय लेने में देरी: कई स्तरों पर अनुमोदन की आवश्यकता के कारण निर्णय प्रक्रिया धीमी होती है।
- अत्यधिक सरकारी विनियमन: कंपनी को कई कानूनों और विनियमों का पालन करना होता है।
- गोपनीयता का अभाव: कंपनी को अपनी वित्तीय जानकारी सार्वजनिक करनी पड़ती है।
- हितों का टकराव: निदेशक मंडल और शेयरधारकों के हितों में टकराव हो सकता है।
कंपनी के प्रकार (Types of Companies):
- निजी कंपनी (Private Company):
- अपने अंशों के हस्तांतरण पर प्रतिबंध लगाती है।
- अपने अंशों या ऋणपत्रों को खरीदने के लिए जनता को आमंत्रित नहीं कर सकती।
- सदस्यों की न्यूनतम संख्या 2 और अधिकतम 200 होती है।
- अपने नाम के अंत में 'प्राइवेट लिमिटेड' शब्द का प्रयोग करती है।
- सार्वजनिक कंपनी (Public Company):
- अपने अंशों के हस्तांतरण पर कोई प्रतिबंध नहीं होता।
- अपने अंशों या ऋणपत्रों को खरीदने के लिए जनता को आमंत्रित कर सकती है।
- सदस्यों की न्यूनतम संख्या 7 होती है, अधिकतम की कोई सीमा नहीं।
- अपने नाम के अंत में 'लिमिटेड' शब्द का प्रयोग करती है।
- एक व्यक्ति कंपनी (One Person Company - OPC):
- कंपनी अधिनियम, 2013 द्वारा पेश किया गया नया स्वरूप।
- इसमें केवल एक व्यक्ति ही सदस्य हो सकता है।
- एक निजी कंपनी के रूप में मानी जाती है।
कंपनी का निर्माण (Formation of a Company):
कंपनी के निर्माण में चार मुख्य चरण होते हैं:
- प्रवर्तन (Promotion): व्यवसाय के विचार को जन्म देना और प्रारंभिक कदम उठाना।
- समामेलन/निगमन (Incorporation/Registration): रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज के पास कंपनी का पंजीकरण कराना और 'निगमन का प्रमाण पत्र' प्राप्त करना।
- पूँजी अभिदान (Capital Subscription): सार्वजनिक कंपनी द्वारा अंशों और ऋणपत्रों को जारी करके पूँजी जुटाना। इसके लिए 'प्रविवरण' जारी किया जाता है।
- व्यवसाय प्रारंभ करना (Commencement of Business): सार्वजनिक कंपनी को 'व्यवसाय प्रारंभ करने का प्रमाण पत्र' प्राप्त करना होता है। निजी कंपनी निगमन के प्रमाण पत्र के बाद ही व्यवसाय शुरू कर सकती है।
महत्वपूर्ण प्रलेख (Important Documents):
- पार्षद सीमा नियम (Memorandum of Association - MOA): यह कंपनी का सबसे महत्वपूर्ण प्रलेख है, जो कंपनी के उद्देश्यों, अधिकारों और बाहरी दुनिया के साथ उसके संबंधों को परिभाषित करता है। इसमें 6 खंड होते हैं: नाम खंड, पंजीकृत कार्यालय खंड, उद्देश्य खंड, दायित्व खंड, पूँजी खंड और अभिदान खंड।
- पार्षद अंतर्नियम (Articles of Association - AOA): यह कंपनी के आंतरिक प्रबंधन के नियमों और विनियमों को परिभाषित करता है।
- प्रविवरण (Prospectus): यह एक ऐसा प्रलेख है जो जनता को कंपनी के अंशों या ऋणपत्रों को खरीदने के लिए आमंत्रित करता है।
बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions - MCQs)
यहाँ इस अध्याय पर आधारित 10 महत्वपूर्ण बहुविकल्पीय प्रश्न दिए गए हैं, जो आपकी सरकारी परीक्षाओं की तैयारी में सहायक होंगे:
-
एकल स्वामित्व में स्वामी का दायित्व होता है:
a) सीमित
b) असीमित
c) निश्चित
d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर: b) असीमित -
संयुक्त हिंदू परिवार व्यवसाय में कर्ता का दायित्व होता है:
a) सीमित
b) असीमित
c) निश्चित
d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर: b) असीमित -
भारतीय साझेदारी अधिनियम किस वर्ष लागू हुआ?
a) 1956
b) 1932
c) 2013
d) 1912
उत्तर: b) 1932 -
साझेदारी में अधिकतम साझेदारों की संख्या (गैर-बैंकिंग व्यवसाय में) कितनी हो सकती है?
a) 20
b) 50
c) 100
d) कोई सीमा नहीं
उत्तर: b) 50 -
सहकारी समिति का मुख्य उद्देश्य क्या है?
a) लाभ कमाना
b) सदस्यों की सेवा करना
c) बाजार पर नियंत्रण करना
d) सरकार को राजस्व प्रदान करना
उत्तर: b) सदस्यों की सेवा करना -
सहकारी समिति में 'एक व्यक्ति, एक मत' का सिद्धांत किस पर लागू होता है?
a) पूँजी के आधार पर
b) अनुभव के आधार पर
c) सदस्यता के आधार पर
d) प्रबंधन के आधार पर
उत्तर: c) सदस्यता के आधार पर -
कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत 'एक व्यक्ति कंपनी' (OPC) में सदस्यों की अधिकतम संख्या कितनी हो सकती है?
a) 1
b) 2
c) 7
d) 50
उत्तर: a) 1 -
किस व्यावसायिक संगठन स्वरूप में शाश्वत उत्तराधिकार (Perpetual Succession) का गुण होता है?
a) एकल स्वामित्व
b) साझेदारी
c) संयुक्त हिंदू परिवार व्यवसाय
d) संयुक्त पूँजी कंपनी
उत्तर: d) संयुक्त पूँजी कंपनी -
कंपनी का कौन सा प्रलेख उसके उद्देश्यों और अधिकारों को परिभाषित करता है?
a) पार्षद अंतर्नियम (Articles of Association)
b) पार्षद सीमा नियम (Memorandum of Association)
c) प्रविवरण (Prospectus)
d) साझेदारी विलेख (Partnership Deed)
उत्तर: b) पार्षद सीमा नियम (Memorandum of Association) -
सार्वजनिक कंपनी को व्यवसाय प्रारंभ करने के लिए किस प्रमाण पत्र की आवश्यकता होती है?
a) निगमन का प्रमाण पत्र
b) व्यवसाय प्रारंभ करने का प्रमाण पत्र
c) पंजीकरण का प्रमाण पत्र
d) शेयर आवंटन का प्रमाण पत्र
उत्तर: b) व्यवसाय प्रारंभ करने का प्रमाण पत्र
मुझे आशा है कि ये विस्तृत नोट्स और बहुविकल्पीय प्रश्न आपकी 'व्यावसायिक संगठन के स्वरूप' की समझ को गहरा करने और सरकारी परीक्षाओं की तैयारी में अत्यंत सहायक सिद्ध होंगे। अपनी पढ़ाई जारी रखें और किसी भी संदेह के लिए पूछने में संकोच न करें। शुभकामनाएँ!