Class 11 Business Studies Notes Chapter 7 (कंपनी निर्माण) – Vyavsay Adhyayan Book

Vyavsay Adhyayan
प्रिय विद्यार्थियों,

आज हम आपकी 'व्यवसाय अध्ययन' पुस्तक के अध्याय 7, 'कंपनी निर्माण' का विस्तृत अध्ययन करेंगे। यह अध्याय कंपनी के गठन की प्रक्रिया, इसमें शामिल विभिन्न चरणों और आवश्यक प्रलेखों को समझने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। सरकारी परीक्षाओं की तैयारी के लिए प्रत्येक बिंदु को ध्यान से समझना आवश्यक है।


अध्याय 7: कंपनी निर्माण (Formation of a Company)

I. परिचय
कंपनी एक कृत्रिम व्यक्ति है जिसका कानून द्वारा निर्माण होता है, जिसका अपने सदस्यों से पृथक वैधानिक अस्तित्व होता है, शाश्वत उत्तराधिकार और एक सामान्य मोहर होती है। कंपनी निर्माण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक नई कंपनी अस्तित्व में आती है। यह प्रक्रिया जटिल और समय लेने वाली होती है जिसमें कई कानूनी औपचारिकताएं पूरी करनी पड़ती हैं।

II. कंपनी निर्माण की अवस्थाएँ (Stages in the Formation of a Company)
कंपनी निर्माण की प्रक्रिया को मुख्य रूप से चार अवस्थाओं में बांटा जा सकता है:

1. प्रवर्तना (Promotion)
यह कंपनी निर्माण की पहली अवस्था है। इसमें व्यवसाय के अवसर की खोज से लेकर कंपनी के पंजीकरण तक की सभी क्रियाएँ शामिल होती हैं।

  • प्रवर्तक (Promoter): वह व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह जो एक व्यवसायिक विचार की पहचान करता है, उसकी व्यवहार्यता का अध्ययन करता है और उसे वास्तविकता में बदलने के लिए आवश्यक कदम उठाता है। प्रवर्तक कंपनी का जन्मदाता होता है।
  • प्रवर्तक के कार्य (Functions of a Promoter):
    • व्यवसाय के अवसर की खोज (Identification of Business Opportunity): एक नए व्यवसाय विचार या मौजूदा व्यवसाय के विस्तार के अवसर की पहचान करना।
    • गहन जाँच पड़ताल (Feasibility Studies): पहचाने गए अवसर की विभिन्न पहलुओं से व्यवहार्यता का मूल्यांकन करना:
      • आर्थिक व्यवहार्यता (Economic Feasibility): क्या यह परियोजना पर्याप्त लाभ कमाएगी?
      • तकनीकी व्यवहार्यता (Technical Feasibility): क्या आवश्यक तकनीक और विशेषज्ञता उपलब्ध है?
      • वित्तीय व्यवहार्यता (Financial Feasibility): क्या परियोजना के लिए आवश्यक पूंजी उपलब्ध होगी?
    • नाम का चयन (Selection of Name): कंपनी के लिए एक उपयुक्त नाम का चयन करना और कंपनी रजिस्ट्रार (ROC) से उसकी उपलब्धता की जाँच करना।
    • हस्ताक्षरकर्ताओं का निर्धारण (Fixing up Signatories to MOA): पार्षद सीमा नियम (MOA) पर हस्ताक्षर करने वाले व्यक्तियों का चयन करना। ये व्यक्ति कंपनी के पहले निदेशक भी बन सकते हैं।
    • पेशेवरों की नियुक्ति (Appointment of Professionals): बैंकरों, दलालों, अंडरराइटरों, वकीलों और अंकेक्षकों जैसे पेशेवरों की नियुक्ति करना।
    • आवश्यक प्रलेख तैयार करना (Preparation of Necessary Documents): पार्षद सीमा नियम (MOA) और पार्षद अंतर्नियम (AOA) जैसे महत्वपूर्ण कानूनी प्रलेख तैयार करना।
  • प्रवर्तक की कानूनी स्थिति (Legal Position of Promoter): प्रवर्तक न तो कंपनी का एजेंट होता है और न ही ट्रस्टी, क्योंकि कंपनी का अस्तित्व अभी नहीं होता। हालांकि, उनका कंपनी के साथ एक 'विश्वसनीय संबंध' (Fiduciary Relationship) होता है। उन्हें कंपनी के साथ व्यवहार करते समय पूरी ईमानदारी और पारदर्शिता बरतनी होती है और गुप्त लाभ कमाने से बचना होता है।
  • प्रवर्तक का पारिश्रमिक (Remuneration of Promoter): प्रवर्तक को उनके प्रयासों के लिए नकद, शेयर, डिबेंचर या कंपनी की संपत्ति की बिक्री के माध्यम से पारिश्रमिक दिया जा सकता है।

2. पंजीकरण/निगमन (Incorporation/Registration)
यह कंपनी निर्माण की दूसरी और सबसे महत्वपूर्ण अवस्था है। इसमें कंपनी को कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत कंपनी रजिस्ट्रार (Registrar of Companies - ROC) के पास पंजीकृत कराया जाता है।

  • आवश्यक प्रलेख (Documents Required for Registration): पंजीकरण के लिए रजिस्ट्रार के पास निम्नलिखित प्रलेख जमा करने होते हैं:
    • पार्षद सीमा नियम (Memorandum of Association - MOA): यह कंपनी का सबसे महत्वपूर्ण प्रलेख है जो कंपनी के उद्देश्यों और शक्तियों को परिभाषित करता है। इसे कंपनी का 'चार्टर' भी कहा जाता है। इसमें निम्नलिखित 6 खंड होते हैं:
      • नाम खंड (Name Clause): कंपनी का नाम।
      • पंजीकृत कार्यालय खंड (Registered Office Clause): उस राज्य का नाम जहाँ कंपनी का पंजीकृत कार्यालय स्थित होगा।
      • उद्देश्य खंड (Objects Clause): कंपनी के मुख्य उद्देश्य जिसके लिए उसका गठन किया जा रहा है।
      • दायित्व खंड (Liability Clause): सदस्यों की देयता (सीमित या असीमित) का उल्लेख।
      • पूंजी खंड (Capital Clause): कंपनी की अधिकृत पूंजी और शेयरों में उसका विभाजन।
      • अभिदान खंड (Subscription Clause): पार्षद सीमा नियम पर हस्ताक्षर करने वाले व्यक्तियों के नाम, पते और उनके द्वारा लिए गए शेयरों की संख्या।
    • पार्षद अंतर्नियम (Articles of Association - AOA): यह कंपनी के आंतरिक प्रबंधन के नियमों और विनियमों को निर्धारित करता है। यह MOA के अधीन होता है।
    • प्रस्तावित निदेशकों की सहमति (Consent of Proposed Directors): उन व्यक्तियों की लिखित सहमति जो कंपनी के निदेशक बनने के लिए सहमत हैं।
    • निदेशकों की योग्यता शेयर खरीदने का वचन (Undertaking to buy Qualification Shares): यदि आवश्यक हो, तो निदेशकों द्वारा योग्यता शेयर खरीदने का वचन।
    • पंजीकृत कार्यालय के पते का प्रमाण (Proof of Registered Office Address): पंजीकरण के 30 दिनों के भीतर पंजीकृत कार्यालय का पता रजिस्ट्रार को सूचित करना होता है।
    • वैधानिक घोषणा (Statutory Declaration): एक घोषणा जिसमें कहा गया हो कि कंपनी के पंजीकरण से संबंधित सभी कानूनी आवश्यकताओं का पालन किया गया है। यह आमतौर पर एक वकील या कंपनी सचिव द्वारा की जाती है।
  • शुल्क का भुगतान (Payment of Fees): निर्धारित पंजीकरण शुल्क का भुगतान करना।
  • पंजीकरण का प्रभाव (Effect of Registration): सभी प्रलेखों की जाँच और संतुष्टि के बाद, रजिस्ट्रार कंपनी को 'निगमन का प्रमाण पत्र' (Certificate of Incorporation) जारी करता है। इस प्रमाण पत्र के साथ ही कंपनी एक पृथक वैधानिक अस्तित्व प्राप्त कर लेती है।
    • कंपनी एक निगमित निकाय बन जाती है।
    • इसका शाश्वत उत्तराधिकार होता है (सदस्यों के आने-जाने से कंपनी के अस्तित्व पर कोई फर्क नहीं पड़ता)।
    • इसकी एक सामान्य मोहर होती है।
    • इसके सदस्यों की देयता सीमित होती है।
    • यह अपने नाम से संपत्ति खरीद सकती है, अनुबंध कर सकती है और मुकदमा कर सकती है या उस पर मुकदमा किया जा सकता है।

3. पूंजी अभिदान (Subscription of Capital)
यह अवस्था केवल सार्वजनिक कंपनियों के लिए आवश्यक है जो जनता से शेयर या डिबेंचर जारी करके पूंजी जुटाना चाहती हैं। निजी कंपनियां इस अवस्था से नहीं गुजरतीं क्योंकि वे जनता से पूंजी आमंत्रित नहीं कर सकतीं।

  • सेबी की स्वीकृति (SEBI Approval): सार्वजनिक कंपनियों को पूंजी बाजार से पूंजी जुटाने के लिए भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) से विवरणिका (Prospectus) के लिए स्वीकृति लेनी होती है।
  • विवरणिका दाखिल करना (Filing of Prospectus): विवरणिका की एक प्रति कंपनी रजिस्ट्रार के पास दाखिल की जाती है। विवरणिका एक ऐसा प्रलेख है जो जनता को कंपनी के शेयर या डिबेंचर खरीदने के लिए आमंत्रित करता है।
  • बैंकरों, दलालों और अंडरराइटरों की नियुक्ति (Appointment of Bankers, Brokers, and Underwriters):
    • बैंकर: आवेदन राशि प्राप्त करने के लिए।
    • दलाल: जनता से आवेदन प्राप्त करने में मदद करने के लिए।
    • अंडरराइटर (अभिगोपक): यदि न्यूनतम अभिदान प्राप्त नहीं होता है तो शेयरों को खरीदने का वचन देने के लिए।
  • न्यूनतम अभिदान (Minimum Subscription): कंपनी अधिनियम, 2013 के अनुसार, कंपनी को शेयरों के आवंटन से पहले जारी किए गए पूंजी के कम से कम 90% के बराबर न्यूनतम अभिदान प्राप्त करना अनिवार्य है। यदि यह राशि 120 दिनों के भीतर प्राप्त नहीं होती है, तो कंपनी को आवेदन राशि वापस करनी पड़ती है।
  • स्टॉक एक्सचेंज में आवेदन (Application to Stock Exchange): कंपनी को अपने शेयरों की लिस्टिंग के लिए एक या अधिक मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंजों में आवेदन करना होता है।
  • आवंटन पत्र जारी करना (Issuing Allotment Letters): न्यूनतम अभिदान प्राप्त होने और स्टॉक एक्सचेंज से लिस्टिंग की अनुमति मिलने के बाद, कंपनी आवेदकों को शेयर आवंटित करती है और उन्हें आवंटन पत्र जारी करती है।

4. व्यवसाय प्रारंभ करना (Commencement of Business)
यह कंपनी निर्माण की अंतिम अवस्था है।

  • निजी कंपनी (Private Company): एक निजी कंपनी निगमन का प्रमाण पत्र प्राप्त करने के तुरंत बाद अपना व्यवसाय शुरू कर सकती है।
  • सार्वजनिक कंपनी (Public Company): कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत, सार्वजनिक कंपनी को भी निगमन का प्रमाण पत्र प्राप्त करने के बाद व्यवसाय शुरू करने की अनुमति है, बशर्ते उसने कुछ घोषणाएं रजिस्ट्रार के पास दाखिल कर दी हों।
    • कंपनी अधिनियम, 2013 के अनुसार अद्यतन: अब एक सार्वजनिक कंपनी को व्यवसाय प्रारंभ करने का प्रमाण पत्र अलग से प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं है। निगमन का प्रमाण पत्र प्राप्त होने के बाद, कंपनी को रजिस्ट्रार के पास एक घोषणा (फॉर्म INC-20A) दाखिल करनी होती है कि निदेशकों ने योग्यता शेयर खरीद लिए हैं (यदि लागू हो) और कंपनी ने अपनी अभिदान पूंजी प्राप्त कर ली है। इस घोषणा को दाखिल करने के बाद, कंपनी व्यवसाय शुरू कर सकती है।
    • महत्वपूर्ण: पुराने अधिनियम (1956) के तहत, सार्वजनिक कंपनी को व्यवसाय प्रारंभ करने का प्रमाण पत्र प्राप्त करना अनिवार्य था।

III. महत्वपूर्ण प्रलेख (Important Documents)

  1. पार्षद सीमा नियम (Memorandum of Association - MOA):

    • यह कंपनी का सबसे महत्वपूर्ण प्रलेख है और इसे कंपनी का 'संविधान' या 'चार्टर' कहा जाता है।
    • यह कंपनी के बाहरी दुनिया से संबंधों को परिभाषित करता है और कंपनी के उद्देश्यों और शक्तियों को निर्धारित करता है।
    • MOA के बाहर किया गया कोई भी कार्य 'अल्ट्रा वायर्स' (Ultra Vires) माना जाता है और शून्य होता है, भले ही सभी शेयरधारक सहमत हों।
    • इसमें 6 खंड होते हैं (नाम, पंजीकृत कार्यालय, उद्देश्य, दायित्व, पूंजी, अभिदान)।
  2. पार्षद अंतर्नियम (Articles of Association - AOA):

    • यह कंपनी के आंतरिक प्रबंधन के नियमों और विनियमों का प्रलेख है।
    • यह MOA के अधीन होता है और उसमें दिए गए उद्देश्यों को प्राप्त करने के तरीके बताता है।
    • इसमें शेयर पूंजी, शेयरधारकों के अधिकार, निदेशकों की शक्तियां, बैठकों का आयोजन, लाभांश का भुगतान आदि से संबंधित नियम शामिल होते हैं।
    • यदि कोई कंपनी अपने स्वयं के AOA तैयार नहीं करती है, तो वह कंपनी अधिनियम, 2013 की 'तालिका एफ' (Table F) को अपना सकती है।
  3. विवरणिका (Prospectus):

    • यह कोई भी प्रलेख है (जैसे नोटिस, परिपत्र, विज्ञापन) जो जनता को कंपनी के शेयर या डिबेंचर खरीदने के लिए आमंत्रित करता है।
    • इसमें कंपनी, उसके निदेशकों, पूंजी संरचना, उद्देश्यों, वित्तीय प्रदर्शन और जोखिम कारकों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी होती है ताकि संभावित निवेशक सूचित निर्णय ले सकें।
    • डीम्ड विवरणिका (Deemed Prospectus): कुछ विशेष परिस्थितियों में, एक प्रलेख जिसे सीधे विवरणिका के रूप में जारी नहीं किया गया है, उसे विवरणिका माना जा सकता है।
    • शेल्फ विवरणिका (Shelf Prospectus): एक ऐसा विवरणिका जो एक निश्चित अवधि के लिए वैध होता है और उस अवधि के दौरान कई बार प्रतिभूतियां जारी करने के लिए उपयोग किया जा सकता है।
    • रेड हेरिंग विवरणिका (Red Herring Prospectus): एक ऐसा विवरणिका जिसमें प्रतिभूतियों की कीमत या जारी की जाने वाली प्रतिभूतियों की संख्या का पूरा विवरण नहीं होता है।

IV. कंपनी निर्माण में प्रौद्योगिकी का उपयोग (Use of Technology in Company Formation)
भारत सरकार ने कंपनी निर्माण प्रक्रिया को सरल और तेज बनाने के लिए प्रौद्योगिकी का व्यापक उपयोग किया है।

  • MCA21 पोर्टल: यह कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय (Ministry of Corporate Affairs - MCA) का एक ई-गवर्नेंस पहल है। इसके माध्यम से कंपनी से संबंधित सभी प्रलेखों की ई-फाइलिंग की जा सकती है, जैसे नाम आरक्षण, पंजीकरण, वार्षिक विवरण दाखिल करना आदि।
  • डिजिटल हस्ताक्षर (Digital Signatures): प्रलेखों को ऑनलाइन दाखिल करते समय उनकी प्रामाणिकता सुनिश्चित करने के लिए डिजिटल हस्ताक्षर का उपयोग अनिवार्य है।
  • SPICe+ (Simplified Proforma for Incorporating Company Electronically Plus): यह MCA द्वारा शुरू किया गया एक एकीकृत वेब फॉर्म है जो कंपनी के निगमन के लिए कई सेवाओं को एक साथ प्रदान करता है। इसमें नाम आरक्षण, कंपनी का निगमन, DIN (निदेशक पहचान संख्या) आवंटन, PAN (स्थायी खाता संख्या), TAN (कर कटौती और संग्रह खाता संख्या), EPFO (कर्मचारी भविष्य निधि संगठन) पंजीकरण, ESIC (कर्मचारी राज्य बीमा निगम) पंजीकरण, GSTIN (वस्तु एवं सेवा कर पहचान संख्या) और बैंक खाता खोलना जैसी सेवाएं शामिल हैं। इसने कंपनी निर्माण प्रक्रिया को बहुत सरल और त्वरित बना दिया है।

V. कंपनी निर्माण के लाभ (Benefits of Company Formation)

  • सीमित देयता: शेयरधारकों की देयता उनके द्वारा खरीदे गए शेयरों के अंकित मूल्य तक सीमित होती है।
  • शाश्वत उत्तराधिकार: कंपनी का अस्तित्व सदस्यों के आने-जाने या मृत्यु से प्रभावित नहीं होता।
  • बड़े पैमाने पर पूंजी जुटाने की क्षमता: सार्वजनिक कंपनियां जनता से बड़े पैमाने पर पूंजी जुटा सकती हैं।
  • शेयरों का हस्तांतरण: सार्वजनिक कंपनी के शेयर स्वतंत्र रूप से हस्तांतरणीय होते हैं, जिससे तरलता बढ़ती है।
  • पेशेवर प्रबंधन: कंपनी बड़े पैमाने पर संचालन के लिए पेशेवर प्रबंधकों और विशेषज्ञों को नियुक्त कर सकती है।
  • पृथक वैधानिक अस्तित्व: कंपनी का अपने सदस्यों से अलग कानूनी अस्तित्व होता है।

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions - MCQs)

  1. कंपनी निर्माण की पहली अवस्था कौन सी है?
    अ) पंजीकरण
    ब) पूंजी अभिदान
    स) प्रवर्तना
    द) व्यवसाय प्रारंभ करना

  2. पार्षद सीमा नियम (MOA) में कितने खंड होते हैं?
    अ) 4
    ब) 5
    स) 6
    द) 7

  3. कंपनी के आंतरिक प्रबंधन के नियमों और विनियमों को कौन सा प्रलेख निर्धारित करता है?
    अ) पार्षद सीमा नियम (MOA)
    ब) पार्षद अंतर्नियम (AOA)
    स) विवरणिका (Prospectus)
    द) निगमन का प्रमाण पत्र

  4. एक निजी कंपनी अपना व्यवसाय कब शुरू कर सकती है?
    अ) पूंजी अभिदान के बाद
    ब) व्यवसाय प्रारंभ करने का प्रमाण पत्र प्राप्त करने के बाद
    स) निगमन का प्रमाण पत्र प्राप्त करने के तुरंत बाद
    द) विवरणिका दाखिल करने के बाद

  5. सार्वजनिक कंपनी को शेयरों के आवंटन से पहले जारी किए गए पूंजी का न्यूनतम कितने प्रतिशत अभिदान प्राप्त करना अनिवार्य है?
    अ) 50%
    ब) 75%
    स) 90%
    द) 100%

  6. वह प्रलेख जो जनता को कंपनी के शेयर या डिबेंचर खरीदने के लिए आमंत्रित करता है, क्या कहलाता है?
    अ) पार्षद सीमा नियम
    ब) पार्षद अंतर्नियम
    स) विवरणिका
    द) निगमन का प्रमाण पत्र

  7. कंपनी अधिनियम, 2013 के अनुसार, सार्वजनिक कंपनी को व्यवसाय प्रारंभ करने के लिए अब किसकी आवश्यकता नहीं है?
    अ) निगमन का प्रमाण पत्र
    ब) न्यूनतम अभिदान
    स) व्यवसाय प्रारंभ करने का प्रमाण पत्र (अलग से)
    द) सेबी की स्वीकृति

  8. MCA21 पोर्टल का संबंध किससे है?
    अ) भारतीय रिजर्व बैंक
    ब) भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI)
    स) कॉर्पोरेट मामलों का मंत्रालय (MCA)
    द) वित्त मंत्रालय

  9. SPICe+ एकीकृत वेब फॉर्म में निम्नलिखित में से कौन सी सेवा शामिल नहीं है?
    अ) कंपनी का निगमन
    ब) PAN और TAN आवंटन
    स) GSTIN पंजीकरण
    द) कंपनी के वार्षिक लाभ का निर्धारण

  10. प्रवर्तक का कंपनी के साथ कैसा संबंध होता है?
    अ) एजेंट का
    ब) ट्रस्टी का
    स) विश्वसनीय संबंध (Fiduciary Relationship)
    द) कर्मचारी का


उत्तर कुंजी (Answer Key):


मुझे आशा है कि ये विस्तृत नोट्स और बहुविकल्पीय प्रश्न आपको 'कंपनी निर्माण' अध्याय को गहराई से समझने और आपकी सरकारी परीक्षा की तैयारी में सहायक होंगे। किसी भी प्रकार के संदेह या अतिरिक्त जानकारी के लिए आप पूछ सकते हैं।

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