Class 11 Business Studies Notes Chapter 8 (व्यावसायिक वित्त के स्रोत) – Vyavsay Adhyayan Book

Vyavsay Adhyayan
प्रिय विद्यार्थियों,

आज हम आपकी व्यावसायिक अध्ययन की पाठ्यपुस्तक के अध्याय 8 'व्यावसायिक वित्त के स्रोत' का विस्तृत अध्ययन करेंगे। यह अध्याय व्यावसायिक संगठन के लिए धन के महत्व और उसे प्राप्त करने के विभिन्न तरीकों को समझने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। सरकारी परीक्षाओं की तैयारी के लिए इसके प्रत्येक बिंदु को गहराई से समझना आवश्यक है।


अध्याय 8: व्यावसायिक वित्त के स्रोत

1. व्यावसायिक वित्त का परिचय:
किसी भी व्यवसाय को शुरू करने, चलाने और उसका विस्तार करने के लिए धन की आवश्यकता होती है। इस धन को व्यावसायिक वित्त कहते हैं। वित्त किसी भी व्यवसाय की जीवन-रेखा है। यह व्यवसाय के प्रत्येक पहलू को प्रभावित करता है, चाहे वह उत्पादन हो, विपणन हो या मानव संसाधन।

2. व्यावसायिक वित्त का महत्व:

  • व्यवसाय की स्थापना: भूमि, भवन, मशीनरी खरीदने के लिए।
  • दैनिक परिचालन: कच्चा माल, मजदूरी, वेतन, बिजली बिल आदि के भुगतान के लिए।
  • आधुनिकीकरण और विस्तार: नई तकनीक अपनाने, उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए।
  • आकस्मिक आवश्यकताएँ: अप्रत्याशित हानियों या अवसरों का सामना करने के लिए।

3. वित्त के स्रोतों का वर्गीकरण:
वित्त के स्रोतों को विभिन्न आधारों पर वर्गीकृत किया जा सकता है:

A. अवधि के आधार पर:

  1. दीर्घकालीन स्रोत (Long-term Sources): ये स्रोत 5 वर्ष से अधिक की अवधि के लिए वित्त प्रदान करते हैं। इनका उपयोग स्थायी संपत्तियों (भूमि, भवन, मशीनरी) के वित्तपोषण के लिए किया जाता है।
    • उदाहरण: समता अंश, पूर्वाधिकार अंश, ऋणपत्र, वित्तीय संस्थाओं से सावधि ऋण, प्रतिधारित आय।
  2. मध्यकालीन स्रोत (Medium-term Sources): ये स्रोत 1 वर्ष से 5 वर्ष तक की अवधि के लिए वित्त प्रदान करते हैं। इनका उपयोग छोटे विस्तार कार्यक्रमों या कार्यशील पूंजी की आवश्यकताओं के लिए किया जाता है।
    • उदाहरण: सार्वजनिक जमाएँ, पट्टे पर वित्तपोषण, वित्तीय संस्थाओं से सावधि ऋण, बैंक ऋण।
  3. अल्पकालीन स्रोत (Short-term Sources): ये स्रोत 1 वर्ष तक की अवधि के लिए वित्त प्रदान करते हैं। इनका उपयोग दैनिक कार्यशील पूंजी की आवश्यकताओं (कच्चा माल, वेतन) के लिए किया जाता है।
    • उदाहरण: व्यापारिक साख, वाणिज्यिक पत्र, बैंक अधिविकर्ष, नकद साख, फैक्टरिंग।

B. स्वामित्व के आधार पर:

  1. स्वामित्व कोष (Owner's Funds): यह वह पूंजी है जो मालिकों द्वारा व्यवसाय में लगाई जाती है या व्यवसाय के लाभों को पुनः निवेश करके उत्पन्न होती है। इस पर प्रतिफल (लाभांश) निश्चित नहीं होता और पूंजी की वापसी व्यवसाय के समापन पर होती है।
    • उदाहरण: समता अंश, प्रतिधारित आय, वैश्विक निक्षेपागार रसीदें (GDRs), अमेरिकन निक्षेपागार रसीदें (ADRs), अंतर्राष्ट्रीय निक्षेपागार रसीदें (IDRs)।
  2. ऋण कोष (Borrowed Funds): यह वह पूंजी है जो ऋण के रूप में बाहरी स्रोतों से प्राप्त की जाती है। इस पर निश्चित ब्याज का भुगतान करना होता है और एक निश्चित अवधि के बाद मूलधन वापस करना होता है।
    • उदाहरण: ऋणपत्र, वित्तीय संस्थाओं से ऋण, सार्वजनिक जमाएँ, वाणिज्यिक पत्र, व्यापारिक साख, बैंक ऋण, फैक्टरिंग, पट्टे पर वित्तपोषण।

C. उत्पत्ति के स्रोत के आधार पर:

  1. आंतरिक स्रोत (Internal Sources): ये वे स्रोत हैं जो व्यवसाय के भीतर से ही उत्पन्न होते हैं, जैसे लाभ का पुनर्निवेश या अप्रयुक्त संपत्तियों की बिक्री।
    • उदाहरण: प्रतिधारित आय, पुराने स्टॉक/संपत्तियों की बिक्री।
  2. बाह्य स्रोत (External Sources): ये वे स्रोत हैं जो व्यवसाय के बाहर से प्राप्त किए जाते हैं, जैसे अंशों या ऋणपत्रों का निर्गमन, बैंकों से ऋण।
    • उदाहरण: समता अंश, ऋणपत्र, बैंक ऋण, सार्वजनिक जमाएँ, व्यापारिक साख आदि।

4. वित्त के प्रमुख स्रोतों का विस्तृत विवरण:

A. स्वामित्व कोष (Owner's Funds):

  1. समता अंश (Equity Shares):

    • अर्थ: ये कंपनी की वास्तविक स्वामित्व पूंजी का प्रतिनिधित्व करते हैं। समता अंशधारक कंपनी के वास्तविक मालिक होते हैं।
    • विशेषताएँ:
      • वास्तविक मालिक: कंपनी के वास्तविक मालिक होते हैं।
      • जोखिम वहन: कंपनी के सबसे बड़े जोखिम वहनकर्ता होते हैं।
      • लाभांश: लाभांश की दर निश्चित नहीं होती, यह लाभ पर निर्भर करती है।
      • मताधिकार: इन्हें कंपनी के प्रबंधन में भाग लेने का मताधिकार प्राप्त होता है।
      • पूंजी वापसी: कंपनी के समापन पर पूंजी की वापसी सबसे अंत में होती है।
      • स्थायी पूंजी: कंपनी के जीवनकाल में वापस नहीं की जाती।
    • लाभ:
      • स्थायी पूंजी का स्रोत।
      • संपत्ति पर कोई प्रभार (चार्ज) नहीं।
      • कंपनी की साख बढ़ती है।
      • नियंत्रण का अधिकार।
    • हानि:
      • महंगा स्रोत (उच्च निर्गमन लागत)।
      • नियंत्रण का फैलाव (नए अंशधारकों के आने से)।
      • सट्टेबाजी को बढ़ावा मिल सकता है।
      • आय में अनिश्चितता।
  2. प्रतिधारित आय (Retained Earnings) / लाभों का पुनर्निवेश:

    • अर्थ: कंपनी अपने लाभों का एक हिस्सा लाभांश के रूप में वितरित करने के बजाय व्यवसाय में ही पुनः निवेश कर देती है।
    • विशेषताएँ:
      • आंतरिक स्रोत: वित्त का सबसे महत्वपूर्ण आंतरिक स्रोत।
      • कोई लागत नहीं: पूंजी जुटाने की कोई प्रत्यक्ष लागत नहीं।
      • स्थायी स्रोत: स्थायी पूंजी का स्रोत।
    • लाभ:
      • सबसे सस्ता स्रोत।
      • कोई संपत्ति पर प्रभार नहीं।
      • लचीला और विश्वसनीय स्रोत।
      • कंपनी की साख बढ़ती है।
    • हानि:
      • अंशधारकों में असंतोष हो सकता है (यदि लाभांश कम दिया जाए)।
      • अत्यधिक पुनर्निवेश से एकाधिकार को बढ़ावा मिल सकता है।
      • यह केवल लाभ कमाने वाली कंपनियों के लिए उपलब्ध है।
  3. वैश्विक निक्षेपागार रसीदें (Global Depository Receipts - GDRs):

    • अर्थ: एक भारतीय कंपनी के अंशों को एक विदेशी बैंक द्वारा अधिग्रहित किया जाता है और उन अंशों के बदले में रसीदें जारी की जाती हैं, जिन्हें GDRs कहते हैं। ये रसीदें विदेशी मुद्रा में होती हैं और विदेशी स्टॉक एक्सचेंजों पर सूचीबद्ध होती हैं।
    • विशेषताएँ:
      • विदेशी निवेशकों को भारतीय कंपनियों में निवेश का अवसर।
      • डॉलर में मूल्यवर्गित।
      • मतदान अधिकार नहीं होते, लेकिन अंतर्निहित अंशों को समता अंशों में बदला जा सकता है।
  4. अमेरिकन निक्षेपागार रसीदें (American Depository Receipts - ADRs):

    • अर्थ: GDRs के समान, लेकिन ये केवल संयुक्त राज्य अमेरिका के स्टॉक एक्सचेंजों पर सूचीबद्ध और व्यापारित होती हैं।
    • विशेषताएँ:
      • केवल अमेरिकी निवेशकों के लिए।
      • अमेरिकी डॉलर में मूल्यवर्गित।
  5. अंतर्राष्ट्रीय निक्षेपागार रसीदें (International Depository Receipts - IDRs):

    • अर्थ: ये GDRs और ADRs के विपरीत हैं। एक विदेशी कंपनी भारतीय डिपॉजिटरी बैंक में अपने अंश जमा करती है और बैंक उसके बदले में भारतीय निवेशकों को IDRs जारी करता है। ये भारतीय स्टॉक एक्सचेंजों पर सूचीबद्ध होते हैं।
    • विशेषताएँ:
      • भारतीय निवेशकों को विदेशी कंपनियों में निवेश का अवसर।
      • भारतीय रुपये में मूल्यवर्गित।

B. ऋण कोष (Borrowed Funds):

  1. ऋणपत्र (Debentures):

    • अर्थ: ये कंपनी द्वारा जारी किए गए ऋण का प्रमाण होते हैं। ऋणपत्रधारक कंपनी के लेनदार होते हैं।
    • विशेषताएँ:
      • लेनदार: ऋणपत्रधारक कंपनी के लेनदार होते हैं, मालिक नहीं।
      • निश्चित ब्याज: इन्हें निश्चित दर से ब्याज का भुगतान किया जाता है, चाहे कंपनी लाभ कमाए या हानि।
      • कोई मताधिकार नहीं: इन्हें कंपनी के प्रबंधन में भाग लेने का मताधिकार नहीं होता।
      • सुरक्षित/असुरक्षित: ये सुरक्षित (संपत्ति पर प्रभार) या असुरक्षित हो सकते हैं।
      • निश्चित अवधि: एक निश्चित अवधि के बाद मूलधन वापस कर दिया जाता है।
    • प्रकार: सुरक्षित/असुरक्षित, परिवर्तनीय/अपरिवर्तनीय, पंजीकृत/वाहक, प्रथम/द्वितीय।
    • लाभ:
      • सस्ता स्रोत (समता अंशों की तुलना में)।
      • नियंत्रण का फैलाव नहीं (कोई मताधिकार नहीं)।
      • ब्याज कर-मुक्त होता है, जिससे कंपनी को कर लाभ मिलता है।
      • स्थिर आय चाहने वाले निवेशकों के लिए उपयुक्त।
    • हानि:
      • स्थायी वित्तीय भार (निश्चित ब्याज का भुगतान अनिवार्य)।
      • संपत्ति पर प्रभार हो सकता है, जिससे कंपनी की ऋण लेने की क्षमता कम हो जाती है।
      • उच्च जोखिम (यदि कंपनी भुगतान करने में असमर्थ हो)।
      • पूंजी की वापसी की बाध्यता।
  2. वित्तीय संस्थाओं से ऋण (Loans from Financial Institutions):

    • अर्थ: विभिन्न वित्तीय संस्थाएँ (जैसे IDBI, ICICI, IFCI, SIDBI, राज्य वित्त निगम) कंपनियों को दीर्घकालीन और मध्यकालीन ऋण प्रदान करती हैं।
    • विशेषताएँ:
      • दीर्घकालीन और मध्यकालीन वित्त के लिए।
      • कठोर शर्तें और सुरक्षा की आवश्यकता।
      • विशेषज्ञ सलाह और तकनीकी सहायता भी प्रदान कर सकते हैं।
    • लाभ:
      • दीर्घकालीन वित्त का महत्वपूर्ण स्रोत।
      • तकनीकी और प्रबंधकीय विशेषज्ञता।
      • सार्वजनिक विश्वास बढ़ता है।
    • हानि:
      • कठोर शर्तें और प्रतिबंध।
      • सुरक्षा की आवश्यकता।
      • लंबी और जटिल प्रक्रिया।
  3. सार्वजनिक जमाएँ (Public Deposits):

    • अर्थ: कंपनियाँ सीधे जनता से निश्चित अवधि के लिए (आमतौर पर 6 महीने से 3 साल तक) जमाएँ स्वीकार करती हैं, जिस पर निश्चित ब्याज का भुगतान किया जाता है।
    • विशेषताएँ:
      • असुरक्षित ऋण।
      • मध्यकालीन वित्त का स्रोत।
      • ब्याज दर बैंकों की तुलना में अधिक होती है।
    • लाभ:
      • सस्ता स्रोत (बैंक ऋण की तुलना में)।
      • कोई संपत्ति पर प्रभार नहीं।
      • प्रक्रिया सरल।
      • नियंत्रण का फैलाव नहीं।
    • हानि:
      • सीमित राशि ही जुटाई जा सकती है।
      • अविश्वसनीय स्रोत (जनता का विश्वास डगमगा सकता है)।
      • नई या छोटी कंपनियों के लिए कठिन।
  4. वाणिज्यिक पत्र (Commercial Paper - CP):

    • अर्थ: यह एक असुरक्षित, परक्राम्य (negotiable) और अल्पकालीन प्रतिज्ञा पत्र होता है, जिसे बड़ी और साख वाली कंपनियाँ सीधे निवेशकों से धन जुटाने के लिए जारी करती हैं।
    • विशेषताएँ:
      • असुरक्षित।
      • अल्पकालीन (आमतौर पर 15 दिन से 1 वर्ष)।
      • बड़ी और साख वाली कंपनियों द्वारा जारी।
      • बट्टे पर जारी किया जाता है और अंकित मूल्य पर भुनाया जाता है।
    • लाभ:
      • लचीला स्रोत।
      • सस्ता स्रोत (बैंक ऋण की तुलना में)।
      • कोई संपत्ति पर प्रभार नहीं।
      • पूलिंग ऑफ फंड्स (विभिन्न निवेशकों से धन जुटाना)।
    • हानि:
      • केवल बड़ी और साख वाली कंपनियाँ ही जारी कर सकती हैं।
      • सीमित राशि ही जुटाई जा सकती है।
      • बाजार की स्थितियों पर निर्भर करता है।
  5. व्यापारिक साख (Trade Credit):

    • अर्थ: यह एक आपूर्तिकर्ता द्वारा अपने ग्राहक को वस्तुओं और सेवाओं की खरीद के लिए दी गई साख है। इसमें ग्राहक को तुरंत भुगतान करने के बजाय बाद में भुगतान करने की अनुमति दी जाती है।
    • विशेषताएँ:
      • अल्पकालीन वित्त का स्रोत।
      • आमतौर पर बिना ब्याज के।
      • कच्चे माल और स्टॉक के लिए।
    • लाभ:
      • सुविधाजनक और लचीला।
      • कोई संपत्ति पर प्रभार नहीं।
      • आसानी से उपलब्ध।
    • हानि:
      • यदि नकद छूट का लाभ नहीं उठाया जाता तो महंगा हो सकता है।
      • सीमित मात्रा में ही उपलब्ध।
      • आपूर्तिकर्ता के साथ अच्छे संबंध आवश्यक।
  6. फैक्टरिंग (Factoring):

    • अर्थ: इसमें एक कंपनी (ग्राहक) अपने व्यापारिक देनदारों (प्राप्य बिल) को एक वित्तीय मध्यस्थ (फैक्टर) को बेच देती है। फैक्टर देनदारों से वसूली करता है और ग्राहक को तुरंत धन उपलब्ध कराता है, एक निश्चित शुल्क काटकर।
    • विशेषताएँ:
      • अल्पकालीन वित्त का स्रोत।
      • देनदारों के प्रबंधन और वसूली का कार्य फैक्टर करता है।
      • दो प्रकार: recourse factoring (ग्राहक जोखिम वहन करता है) और non-recourse factoring (फैक्टर जोखिम वहन करता है)।
    • लाभ:
      • तत्काल नकदी प्रवाह।
      • जोखिम कम होता है (विशेषकर non-recourse में)।
      • विशेषज्ञता का लाभ।
      • प्रशासनिक लागत में कमी।
    • हानि:
      • महंगा स्रोत (फैक्टरिंग शुल्क)।
      • ग्राहकों के साथ संबंध खराब हो सकते हैं।
      • कंपनी की साख पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
  7. पट्टे पर वित्तपोषण (Lease Financing):

    • अर्थ: यह एक व्यवस्था है जिसमें संपत्ति का मालिक (पट्टादाता) अपनी संपत्ति का उपयोग करने का अधिकार किसी अन्य व्यक्ति (पट्टेदार) को एक निश्चित अवधि के लिए किराए के बदले देता है। स्वामित्व पट्टादाता के पास ही रहता है।
    • विशेषताएँ:
      • संपत्ति का उपयोग करने का अधिकार मिलता है, स्वामित्व नहीं।
      • किराए का भुगतान करना होता है।
      • दीर्घकालीन और मध्यकालीन वित्त के लिए।
    • प्रकार:
      • वित्तीय पट्टा (Financial Lease): दीर्घकालीन, संपत्ति के स्वामित्व से जुड़े सभी जोखिम और लाभ पट्टेदार को हस्तांतरित हो जाते हैं। मरम्मत और रखरखाव की जिम्मेदारी पट्टेदार की होती है। इसे रद्द नहीं किया जा सकता।
      • प्रचालन पट्टा (Operating Lease): अल्पकालीन, स्वामित्व से जुड़े जोखिम और लाभ पट्टादाता के पास रहते हैं। मरम्मत और रखरखाव की जिम्मेदारी पट्टादाता की होती है। इसे रद्द किया जा सकता है।
    • लाभ:
      • पूंजी की आवश्यकता कम होती है।
      • कर लाभ (किराया व्यय के रूप में)।
      • लचीलापन।
      • तकनीकी अप्रचलन का जोखिम कम (प्रचालन पट्टे में)।
    • हानि:
      • संपत्ति का स्वामित्व नहीं मिलता।
      • मरम्मत और रखरखाव का भार (वित्तीय पट्टे में)।
      • रद्द न करने की बाध्यता (वित्तीय पट्टे में)।
      • पट्टे की संपत्ति का उपयोग केवल पट्टेदार ही कर सकता है।
  8. बैंकों से ऋण (Loans from Banks):

    • अर्थ: वाणिज्यिक बैंक विभिन्न प्रकार के ऋण और अग्रिम प्रदान करते हैं।
    • प्रकार:
      • नकद साख (Cash Credit): बैंक एक निश्चित सीमा तक धन निकालने की अनुमति देता है, जिस पर ब्याज केवल निकाली गई राशि पर लगता है।
      • बैंक अधिविकर्ष (Bank Overdraft): चालू खाते के धारक को अपने खाते में जमा राशि से अधिक निकालने की अनुमति दी जाती है।
      • सावधि ऋण (Term Loans): दीर्घकालीन और मध्यकालीन अवधि के लिए दिए जाने वाले ऋण।
    • लाभ:
      • लचीला स्रोत।
      • गोपनीयता बनी रहती है।
      • आपातकालीन आवश्यकताओं के लिए उपलब्ध।
    • हानि:
      • सुरक्षा (गिरवी) की आवश्यकता।
      • कठोर शर्तें और प्रतिबंध।
      • उच्च ब्याज दरें।

5. वित्त के स्रोतों के चुनाव को प्रभावित करने वाले कारक:
किसी भी व्यवसाय के लिए वित्त के स्रोत का चुनाव करते समय निम्नलिखित कारकों पर विचार करना चाहिए:

  1. लागत (Cost): इसमें पूंजी जुटाने की लागत (निर्गमन लागत) और पूंजी के उपयोग की लागत (ब्याज/लाभांश) दोनों शामिल हैं।
  2. जोखिम (Risk): ऋण कोष में निश्चित ब्याज का भुगतान अनिवार्य होता है, जो कंपनी के लिए जोखिम बढ़ाता है। समता अंशों में ऐसा जोखिम कम होता है।
  3. अवधि (Period): अल्पकालीन, मध्यकालीन या दीर्घकालीन आवश्यकता के अनुसार स्रोत का चुनाव।
  4. नियंत्रण (Control): समता अंश जारी करने से मौजूदा अंशधारकों का नियंत्रण कम हो सकता है। ऋण कोष से नियंत्रण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
  5. कर प्रभाव (Tax Implications): ऋण पर दिया गया ब्याज कर-मुक्त होता है, जबकि लाभांश नहीं।
  6. लचीलापन (Flexibility): कुछ स्रोत अधिक लचीले होते हैं, जिन्हें आसानी से बढ़ाया या घटाया जा सकता है।
  7. उद्देश्य (Purpose): कार्यशील पूंजी के लिए अल्पकालीन, स्थायी संपत्तियों के लिए दीर्घकालीन।
  8. कंपनी का आकार और साख (Size and Creditworthiness): बड़ी और साख वाली कंपनियाँ अधिक स्रोतों का उपयोग कर सकती हैं।
  9. बाजार की स्थिति (Market Conditions): पूंजी बाजार की स्थिति (तेजी/मंदी) भी चुनाव को प्रभावित करती है।

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions - MCQs):

  1. निम्नलिखित में से कौन-सा स्वामित्व कोष का एक उदाहरण है?
    a) ऋणपत्र
    b) सार्वजनिक जमाएँ
    c) समता अंश
    d) बैंक अधिविकर्ष

  2. एक भारतीय कंपनी के अंशों के बदले में विदेशी बैंक द्वारा जारी की गई रसीदें, जो विदेशी स्टॉक एक्सचेंज पर सूचीबद्ध होती हैं, क्या कहलाती हैं?
    a) ADRs
    b) IDRs
    c) GDRs
    d) CP

  3. किस वित्त स्रोत पर निश्चित ब्याज का भुगतान अनिवार्य होता है, चाहे कंपनी लाभ कमाए या हानि?
    a) समता अंश
    b) प्रतिधारित आय
    c) ऋणपत्र
    d) उपर्युक्त सभी

  4. अल्पकालीन वित्त का सबसे सस्ता और सुविधाजनक स्रोत कौन-सा है, जो आपूर्तिकर्ता द्वारा दिया जाता है?
    a) वाणिज्यिक पत्र
    b) व्यापारिक साख
    c) फैक्टरिंग
    d) सार्वजनिक जमाएँ

  5. किस प्रकार के पट्टे में संपत्ति के स्वामित्व से जुड़े सभी जोखिम और लाभ पट्टेदार को हस्तांतरित हो जाते हैं और इसे रद्द नहीं किया जा सकता?
    a) प्रचालन पट्टा
    b) वित्तीय पट्टा
    c) बिक्री और पट्टा वापस
    d) लीवरेज्ड पट्टा

  6. निम्नलिखित में से कौन-सा वित्त का आंतरिक स्रोत है?
    a) समता अंशों का निर्गमन
    b) प्रतिधारित आय
    c) ऋणपत्रों का निर्गमन
    d) सार्वजनिक जमाएँ

  7. वाणिज्यिक पत्र (CP) की सामान्य अवधि कितनी होती है?
    a) 5 वर्ष से अधिक
    b) 1 वर्ष से 5 वर्ष
    c) 15 दिन से 1 वर्ष
    d) 5 वर्ष

  8. वह वित्तीय सेवा जिसमें एक कंपनी अपने व्यापारिक देनदारों को एक वित्तीय मध्यस्थ को बेच देती है ताकि तुरंत नकदी प्राप्त की जा सके, क्या कहलाती है?
    a) पट्टे पर वित्तपोषण
    b) फैक्टरिंग
    c) व्यापारिक साख
    d) सार्वजनिक जमाएँ

  9. समता अंशधारकों के पास कंपनी के प्रबंधन में भाग लेने का कौन-सा अधिकार होता है?
    a) लाभांश का अधिकार
    b) मताधिकार
    c) पूंजी वापसी का अधिकार
    d) ब्याज प्राप्त करने का अधिकार

  10. ऋणपत्रों पर ब्याज का भुगतान कंपनी के लिए किस प्रकार का वित्तीय भार होता है?
    a) परिवर्तनशील भार
    b) स्थायी भार
    c) आकस्मिक भार
    d) वैकल्पिक भार


MCQs के उत्तर:

  1. c) समता अंश
  2. c) GDRs
  3. c) ऋणपत्र
  4. b) व्यापारिक साख
  5. b) वित्तीय पट्टा
  6. b) प्रतिधारित आय
  7. c) 15 दिन से 1 वर्ष
  8. b) फैक्टरिंग
  9. b) मताधिकार
  10. b) स्थायी भार

मुझे आशा है कि यह विस्तृत नोट्स और बहुविकल्पीय प्रश्न आपको इस अध्याय को समझने और सरकारी परीक्षाओं की तैयारी में सहायक होंगे। किसी भी संदेह या प्रश्न के लिए आप पूछ सकते हैं। शुभकामनाएँ!

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