Class 11 Chemistry Notes Chapter 12 (Chapter 12) – Examplar Problems (Hindi) Book

चलिए, आज हम कक्षा 11 रसायन विज्ञान के NCERT Exemplar के अध्याय 12, 'कार्बनिक रसायन: कुछ आधारभूत सिद्धांत तथा तकनीकें' के महत्वपूर्ण बिंदुओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे। यह अध्याय कार्बनिक रसायन की नींव है और सरकारी परीक्षाओं के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
अध्याय 12: कार्बनिक रसायन - कुछ आधारभूत सिद्धांत तथा तकनीकें (विस्तृत नोट्स)
1. परिचय एवं कार्बन की अद्वितीय प्रकृति:
- कार्बनिक रसायन: रसायन विज्ञान की वह शाखा जो कार्बन और उसके यौगिकों (मुख्यतः हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, सल्फर, हैलोजन, फॉस्फोरस युक्त) का अध्ययन करती है।
- कार्बन की चतुःसंयोजकता (Tetravalency): कार्बन की संयोजकता 4 होती है, जिसका अर्थ है कि यह चार अन्य परमाणुओं (कार्बन या अन्य तत्व) के साथ सहसंयोजी आबंध बना सकता है। इसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 1s² 2s² 2p² है, और उत्तेजित अवस्था में यह चार अयुग्मित इलेक्ट्रॉन (2s¹ 2p³) प्रदर्शित करता है, जिससे sp³, sp², sp संकरण संभव होता है।
- श्रृंखलन (Catenation): कार्बन परमाणुओं का आपस में जुड़कर लंबी शृंखलाएं (सीधी, शाखित) या वलय बनाने का अद्वितीय गुण। यह कार्बन-कार्बन आबंध की उच्च आबंध ऊर्जा के कारण होता है।
- बहु आबंध बनाने की प्रवृत्ति: कार्बन स्वयं के साथ तथा ऑक्सीजन, नाइट्रोजन जैसे अन्य परमाणुओं के साथ द्वि-आबंध (=) और त्रि-आबंध (≡) बना सकता है।
2. कार्बनिक यौगिकों का संरचनात्मक निरूपण:
- लुईस संरचना (या बिंदु संरचना): संयोजी इलेक्ट्रॉनों को बिंदुओं द्वारा दर्शाना।
- पूर्ण संरचनात्मक सूत्र: सभी परमाणुओं और उनके बीच के सभी आबंधों (एकल, द्वि, त्रि) को रेखाओं द्वारा दर्शाना।
- संघानित संरचनात्मक सूत्र (Condensed Formula): आबंध रेखाओं को हटाकर या कम करके, समान समूहों को कोष्ठक में लिखकर निरूपित करना। जैसे- CH₃CH₂CH₂CH₃ या CH₃(CH₂)₂CH₃
- आबंध-रेखा सूत्र (Bond-line Formula): सबसे सरल तरीका, जिसमें केवल कार्बन-कार्बन आबंधों को टेढ़ी-मेढ़ी (zigzag) रेखाओं द्वारा दर्शाया जाता है। रेखाओं के सिरे और मोड़ कार्बन परमाणु दर्शाते हैं। हाइड्रोजन परमाणुओं को (विषम परमाणुओं से जुड़े हाइड्रोजन को छोड़कर) दर्शाया नहीं जाता, उनकी संख्या कार्बन की चतुःसंयोजकता पूर्ण करने के अनुसार मान ली जाती है। विषम परमाणु (O, N, S, हैलोजन आदि) स्पष्ट रूप से दर्शाए जाते हैं।
- त्रिविमीय निरूपण (3D Representation):
- वेज-डैश सूत्र: कागज के तल में स्थित आबंधों को सामान्य रेखा (-) से, दर्शक की ओर आते हुए आबंध को ठोस वेज ( ) से, और दर्शक से दूर जाते हुए आबंध को डैश वेज ( ) से दर्शाते हैं।
3. कार्बनिक यौगिकों का वर्गीकरण:
-
संरचना के आधार पर:
- अचक्रीय या विवृत शृंखला यौगिक (Acyclic/Open Chain): इनमें कार्बन परमाणुओं की खुली शृंखला होती है (सीधी या शाखित)। इन्हें एलिफैटिक यौगिक भी कहते हैं। उदा. एथेन, आइसोब्यूटेन।
- चक्रीय या बंद शृंखला या वलय यौगिक (Cyclic/Closed Chain/Ring): इनमें कार्बन परमाणु जुड़कर वलय बनाते हैं।
- एलिसाइक्लिक यौगिक: वे चक्रीय यौगिक जिनमें एलिफैटिक यौगिकों के गुण होते हैं। उदा. साइक्लोप्रोपेन, साइक्लोहेक्सेन।
- ऐरोमैटिक यौगिक: विशेष प्रकार के चक्रीय यौगिक जिनमें एकांतर क्रम में द्वि-आबंध होते हैं और जो हकल नियम (Hückel's rule - (4n+2)π इलेक्ट्रॉन) का पालन करते हैं।
- बेंजीनॉइड: जिनमें बेंजीन वलय होती है। उदा. बेंजीन, टॉलूईन, नैफ्थलीन।
- अबेंजीनॉइड (Non-benzenoid): जिनमें बेंजीन वलय नहीं होती, पर ऐरोमैटिक गुण होते हैं। उदा. ट्रोपोलोन।
- विषमचक्रीय यौगिक (Heterocyclic): वलय में कार्बन के अतिरिक्त अन्य तत्व (जैसे O, N, S) के परमाणु भी उपस्थित होते हैं। उदा. पिरिडीन, फ्यूरेन, थायोफीन।
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प्रकार्यात्मक समूह (Functional Group) के आधार पर:
- प्रकार्यात्मक समूह: किसी अणु में उपस्थित विशिष्ट परमाणु या परमाणुओं का समूह जो उस अणु के रासायनिक गुणों के लिए मुख्यतः उत्तरदायी होता है।
- सजातीय श्रेणी (Homologous Series): यौगिकों की ऐसी श्रेणी जिसमें एक विशिष्ट प्रकार्यात्मक समूह होता है और श्रेणी के किन्हीं दो क्रमागत सदस्यों के अणुसूत्र में -CH₂ इकाई का अंतर होता है। इनके रासायनिक गुण समान होते हैं, पर भौतिक गुण क्रमिक रूप से बदलते हैं। उदा. एल्केन, एल्कोहॉल, कार्बोक्सिलिक अम्ल की श्रेणियाँ।
4. कार्बनिक यौगिकों की नामपद्धति (Nomenclature):
- IUPAC (International Union of Pure and Applied Chemistry) नामपद्धति: यौगिकों के सुव्यवस्थित और सार्वभौमिक नामकरण की पद्धति।
- मुख्य नियम:
- दीर्घतम शृंखला का चयन (Parent Chain): सबसे लंबी सतत कार्बन शृंखला का चयन करें, जिसमें मुख्य प्रकार्यात्मक समूह (यदि हो) और अधिकतम बहु-आबंध शामिल हों।
- अंकन (Numbering): जनक शृंखला का अंकन उस सिरे से करें जिधर से प्रकार्यात्मक समूह, बहु-आबंध या प्रतिस्थापी (substituent) को न्यूनतम अंक मिले। प्राथमिकता क्रम: प्रकार्यात्मक समूह > बहु-आबंध > प्रतिस्थापी।
- प्रतिस्थापियों का नामकरण: शृंखला से जुड़े समूहों (एल्किल, हैलो आदि) को पूर्वलग्न (prefix) के रूप में उनकी स्थिति (कार्बन संख्या) के साथ लिखा जाता है। यदि एक ही प्रतिस्थापी एक से अधिक बार हो तो डाई, ट्राई, टेट्रा आदि का प्रयोग करते हैं। प्रतिस्थापियों को अंग्रेजी वर्णमाला क्रम में लिखा जाता है।
- मूल शब्द (Word Root): जनक शृंखला में कार्बन परमाणुओं की संख्या दर्शाता है (मेथ, एथ, प्रोप, ब्यूट, पेंट आदि)।
- अनुलग्न (Suffix):
- प्राथमिक अनुलग्न: कार्बन-कार्बन आबंध की प्रकृति बताता है (-एन, -ईन, -आइन)।
- द्वितीयक अनुलग्न: मुख्य प्रकार्यात्मक समूह को दर्शाता है (-ऑल, -अल, -ओन, -ओइक अम्ल आदि)।
- नाम लिखने का क्रम: स्थिति अंक सहित प्रतिस्थापी (वर्णमाला क्रम में) + मूल शब्द + प्राथमिक अनुलग्न + स्थिति अंक सहित द्वितीयक अनुलग्न।
- विशिष्ट उदाहरण: बेंजीन प्रतिस्थापियों का नामकरण (ऑर्थो, मेटा, पैरा स्थितियाँ)।
5. समावयवता (Isomerism):
- परिभाषा: वे यौगिक जिनके अणुसूत्र समान होते हैं, परन्तु उनकी संरचना या परमाणुओं की त्रिविमीय व्यवस्था भिन्न होती है, समावयवी (isomers) कहलाते हैं और यह परिघटना समावयवता कहलाती है।
- प्रकार:
- संरचनात्मक समावयवता (Structural Isomerism): अणुसूत्र समान, परन्तु परमाणुओं के जुड़ाव (connectivity) का क्रम भिन्न।
- शृंखला समावयवता: कार्बन शृंखला की संरचना में भिन्नता (सीधी बनाम शाखित)। उदा. ब्यूटेन और आइसोब्यूटेन।
- स्थान समावयवता: प्रकार्यात्मक समूह या प्रतिस्थापी या बहु-आबंध की स्थिति में भिन्नता। उदा. प्रोपेन-1-ऑल और प्रोपेन-2-ऑल।
- क्रियात्मक समावयवता (Functional Isomerism): प्रकार्यात्मक समूह में भिन्नता। उदा. एथेनॉल (C₂H₅OH) और डाइमेथिल ईथर (CH₃OCH₃)।
- मध्यावयवता (Metamerism): प्रकार्यात्मक समूह (जैसे -O-, -S-, -NH-, -CO-) के दोनों ओर जुड़े एल्किल समूहों की प्रकृति में भिन्नता। उदा. डाइएथिल ईथर (C₂H₅OC₂H₅) और मेथिल प्रोपिल ईथर (CH₃OC₃H₇)।
- त्रिविम समावयवता (Stereoisomerism): अणुसूत्र समान, परमाणुओं के जुड़ाव का क्रम भी समान, परन्तु आकाश (space) में उनकी व्यवस्था भिन्न।
- ज्यामितीय समावयवता (Geometrical Isomerism): द्वि-आबंध या वलय के परितः प्रतिबंधित घूर्णन के कारण उत्पन्न होती है (सिस-ट्रांस या E-Z)।
- प्रकाशिक समावयवता (Optical Isomerism): किरेल कार्बन (जिससे चार भिन्न समूह जुड़े हों) की उपस्थिति के कारण। ये यौगिक समतल-ध्रुवित प्रकाश के तल को घुमाते हैं (डेक्स्ट्रो/d/+ और लीवो/l/-)। प्रतिबिम्ब रूप (Enantiomers) और अप्रतिबिम्ब रूप (Diastereomers)।
- संरचनात्मक समावयवता (Structural Isomerism): अणुसूत्र समान, परन्तु परमाणुओं के जुड़ाव (connectivity) का क्रम भिन्न।
6. कार्बनिक अभिक्रियाओं में मूलभूत संकल्पनाएँ:
- सहसंयोजी आबंध का विदलन (Fission/Cleavage):
- समांश विदलन (Homolytic Cleavage): आबंध के इलेक्ट्रॉन दोनों परमाणुओं पर बराबर बँट जाते हैं, जिससे मुक्त मूलक (Free Radicals) बनते हैं। ये अत्यधिक क्रियाशील, उदासीन स्पीशीज होते हैं। (सूर्य का प्रकाश, उच्च ताप, परॉक्साइड की उपस्थिति में)।
- विषमांश विदलन (Heterolytic Cleavage): आबंध के दोनों इलेक्ट्रॉन किसी एक परमाणु पर चले जाते हैं, जिससे आयन बनते हैं - कार्बधनायन (Carbocation) और कार्बऋणायन (Carbanion)।
- कार्बधनायन (Carbocation): कार्बन पर धन आवेश, sp² संकरित, त्रिकोणीय समतलीय ज्यामिति, इलेक्ट्रॉन न्यून स्पीशीज (इलेक्ट्रॉनस्नेही)। स्थायित्व क्रम: 3° > 2° > 1° > मेथिल (प्रेरणिक प्रभाव व अतिसंयुग्मन के कारण)।
- कार्बऋणायन (Carbanion): कार्बन पर ऋण आवेश, sp³ संकरित (आमतौर पर), पिरामिडीय ज्यामिति, इलेक्ट्रॉन धनी स्पीशीज (नाभिकस्नेही)। स्थायित्व क्रम: मेथिल > 1° > 2° > 3° (प्रेरणिक प्रभाव के कारण)।
- इलेक्ट्रॉन संचलन (Electron Movement): वक्र तीर (curved arrow) द्वारा दर्शाया जाता है। तीर की पूँछ इलेक्ट्रॉन स्रोत (आबंध या एकाकी युग्म) और सिर इलेक्ट्रॉन गंतव्य को दर्शाता है।
- इलेक्ट्रॉनिक प्रभाव (Electronic Effects):
- प्रेरणिक प्रभाव (Inductive Effect, I-effect): सिग्मा (σ) आबंध के इलेक्ट्रॉनों का अधिक विद्युत ऋणात्मक परमाणु की ओर स्थायी विस्थापन। यह दूरी के साथ घटता है।
- -I प्रभाव: इलेक्ट्रॉन आकर्षी समूह (जैसे -NO₂, -CN, -COOH, -F, -Cl)।
- +I प्रभाव: इलेक्ट्रॉन दाता समूह (जैसे एल्किल समूह -CH₃, -C₂H₅)।
- इलेक्ट्रोमेरिक प्रभाव (Electromeric Effect, E-effect): आक्रमणकारी अभिकर्मक की उपस्थिति में बहु-आबंध (π इलेक्ट्रॉन) का किसी एक परमाणु पर पूर्ण अस्थायी स्थानांतरण।
- +E प्रभाव: π इलेक्ट्रॉन उस परमाणु पर स्थानांतरित होते हैं जिससे अभिकर्मक जुड़ता है।
- -E प्रभाव: π इलेक्ट्रॉन उस परमाणु से दूर स्थानांतरित होते हैं जिससे अभिकर्मक जुड़ता है।
- अनुनाद या मेसोमेरिक प्रभाव (Resonance/Mesomeric Effect, R/M-effect): अणु में π इलेक्ट्रॉनों या एकाकी युग्मों के विस्थानीकरण (delocalization) के कारण उत्पन्न होता है। इसे विभिन्न अनुनादी संरचनाओं द्वारा दर्शाया जाता है। यह स्थायी प्रभाव है।
- +R/+M प्रभाव: इलेक्ट्रॉन दाता समूह (जैसे -OH, -OR, -NH₂, -X)। ये वलय को सक्रिय करते हैं।
- -R/-M प्रभाव: इलेक्ट्रॉन आकर्षी समूह (जैसे -NO₂, -CN, -CHO, -COR, -COOH)। ये वलय को निष्क्रिय करते हैं।
- अतिसंयुग्मन (Hyperconjugation): सिग्मा (σ) इलेक्ट्रॉनों (विशेषकर C-H आबंध) का निकटवर्ती असंतृप्त प्रणाली (जैसे द्वि-आबंध, कार्बधनायन, मुक्त मूलक) या रिक्त p-कक्षक के साथ विस्थानीकरण। इसे 'आबंध रहित अनुनाद' भी कहते हैं। यह एल्कीन, कार्बधनायन और मुक्त मूलकों के स्थायित्व की व्याख्या करता है। स्थायित्व α-हाइड्रोजन की संख्या के समानुपाती होता है।
- प्रेरणिक प्रभाव (Inductive Effect, I-effect): सिग्मा (σ) आबंध के इलेक्ट्रॉनों का अधिक विद्युत ऋणात्मक परमाणु की ओर स्थायी विस्थापन। यह दूरी के साथ घटता है।
- अभिकर्मक (Reagents):
- इलेक्ट्रॉनस्नेही (Electrophile): इलेक्ट्रॉन न्यून स्पीशीज, जो इलेक्ट्रॉन युग्म ग्रहण कर सकती हैं (उदा. H⁺, Cl⁺, NO₂⁺, BF₃, AlCl₃, कार्बधनायन)।
- नाभिकस्नेही (Nucleophile): इलेक्ट्रॉन धनी स्पीशीज, जो इलेक्ट्रॉन युग्म दान कर सकती हैं (उदा. OH⁻, CN⁻, Cl⁻, H₂O, NH₃, कार्बऋणायन)।
- कार्बनिक अभिक्रियाओं के प्रकार (संक्षिप्त): प्रतिस्थापन, योगशील, विलोपन, पुनर्विन्यास।
7. कार्बनिक यौगिकों का शोधन (Purification):
- ऊर्ध्वपातन (Sublimation): ठोस को बिना द्रव अवस्था में आए सीधे वाष्प में बदलना और ठंडा करने पर पुनः ठोस प्राप्त करना। उन ठोसों के लिए उपयुक्त जो गर्म करने पर अपघटित हुए बिना ऊर्ध्वपातित होते हैं (उदा. कपूर, नैफ्थलीन, आयोडीन)।
- क्रिस्टलन (Crystallization): किसी उपयुक्त विलायक में बने संतृप्त विलयन को ठंडा करके शुद्ध ठोस के क्रिस्टल प्राप्त करना। विलेयता में अंतर पर आधारित।
- आसवन (Distillation): क्वथनांकों में पर्याप्त अंतर वाले द्रवों के मिश्रण को पृथक करना। वाष्पन और संघनन पर आधारित।
- प्रभाजी आसवन (Fractional Distillation): निकट क्वथनांक वाले द्रवों के मिश्रण को पृथक करना (प्रभाजक कॉलम का उपयोग)।
- भाप आसवन (Steam Distillation): भाप-वाष्पशील और जल में अमिश्रणीय द्रवों का शोधन (उदा. ऐनिलीन, तारपीन का तेल)। यह अपने क्वथनांक से कम ताप पर वाष्पित होते हैं।
- कम दाब पर आसवन (Distillation under reduced pressure): उन द्रवों का शोधन जो अपने क्वथनांक पर अपघटित हो जाते हैं। दाब कम करने पर क्वथनांक कम हो जाता है। (उदा. ग्लिसरॉल)।
- विभेदी निष्कर्षण (Differential Extraction): किसी कार्बनिक यौगिक को उसके जलीय विलयन से किसी ऐसे कार्बनिक विलायक द्वारा निष्कर्षित करना जिसमें वह अधिक विलेय हो और जो जल में अमिश्रणीय हो। पृथक्कारी कीप (separating funnel) का उपयोग।
- वर्णलेखिकी (Chromatography): मिश्रण के घटकों को एक स्थिर प्रावस्था (stationary phase) पर अधिशोषण या वितरण में भिन्नता के आधार पर पृथक करने की तकनीक। गतिशील प्रावस्था (mobile phase) घटकों को स्थिर प्रावस्था पर अलग-अलग गति से बहा ले जाती है।
- अधिशोषण वर्णलेखिकी (Adsorption Chromatography): स्थिर प्रावस्था ठोस (अधिशोषक जैसे सिलिका जेल, एल्यूमिना) होती है।
- कॉलम वर्णलेखिकी: कॉलम में भरे अधिशोषक पर पृथक्करण।
- पतली परत वर्णलेखिकी (Thin Layer Chromatography, TLC): कांच की प्लेट पर अधिशोषक की पतली परत पर पृथक्करण। Rf मान (धारण कारक) का उपयोग पहचान में होता है।
- वितरण वर्णलेखिकी (Partition Chromatography): स्थिर और गतिशील दोनों प्रावस्थाएं द्रव होती हैं (स्थिर प्रावस्था किसी ठोस आधार पर अधिशोषित द्रव होती है)।
- कागज वर्णलेखिकी (Paper Chromatography): विशेष फिल्टर पेपर (जिसके रंध्रों में जल स्थिर प्रावस्था का कार्य करता है) का उपयोग।
- अधिशोषण वर्णलेखिकी (Adsorption Chromatography): स्थिर प्रावस्था ठोस (अधिशोषक जैसे सिलिका जेल, एल्यूमिना) होती है।
8. कार्बनिक यौगिकों का गुणात्मक विश्लेषण (Qualitative Analysis):
- कार्बन तथा हाइड्रोजन का परीक्षण: यौगिक को कॉपर (II) ऑक्साइड (CuO) के साथ गर्म करने पर कार्बन CO₂ (चूने के पानी को दूधिया करती है) और हाइड्रोजन H₂O (निर्जल CuSO₄ को नीला करती है) में ऑक्सीकृत हो जाता है।
- अन्य तत्वों (N, S, X, P) का परीक्षण (लैसग्ने परीक्षण/Lassaigne's Test):
- सोडियम संगलन निष्कर्ष बनाना: यौगिक को सोडियम धातु के साथ संगलित करने पर तत्व आयनिक रूप (NaCN, Na₂S, NaX, Na₃PO₄) में आ जाते हैं, जिन्हें जल में घोलकर निष्कर्ष बनाते हैं।
- नाइट्रोजन का परीक्षण: निष्कर्ष में FeSO₄ और फिर सांद्र H₂SO₄ मिलाने पर प्रशियन ब्लू (Prussian blue) रंग (फेरिक फेरोसायनाइड) का बनना नाइट्रोजन की उपस्थिति दर्शाता है।
- सल्फर का परीक्षण:
- (a) निष्कर्ष + लेड एसीटेट → काला अवक्षेप (PbS)
- (b) निष्कर्ष + सोडियम नाइट्रोप्रुसाइड → बैंगनी रंग
- हैलोजन (X) का परीक्षण: निष्कर्ष को HNO₃ से अम्लीकृत कर AgNO₃ मिलाने पर:
- AgCl: सफेद अवक्षेप (NH₄OH में विलेय)
- AgBr: हल्का पीला अवक्षेप (NH₄OH में अल्प विलेय)
- AgI: पीला अवक्षेप (NH₄OH में अविलेय)
- फॉस्फोरस का परीक्षण: यौगिक को ऑक्सीकारक (सोडियम परॉक्साइड) के साथ गर्म कर बने विलयन को HNO₃ और अमोनियम मॉलिब्डेट के साथ गर्म करने पर पीला अवक्षेप/रंग (अमोनियम फॉस्फोमॉलिब्डेट) का बनना।
9. मात्रात्मक विश्लेषण (Quantitative Analysis):
- कार्बन और हाइड्रोजन (लीबिग विधि): यौगिक के ज्ञात भार को CuO के साथ गर्म कर बनी CO₂ और H₂O को क्रमशः KOH विलयन और निर्जल CaCl₂ में अवशोषित कराकर उनके भार से C और H की प्रतिशत मात्रा ज्ञात करना।
- %C = (12/44) × (CO₂ का द्रव्यमान / यौगिक का द्रव्यमान) × 100
- %H = (2/18) × (H₂O का द्रव्यमान / यौगिक का द्रव्यमान) × 100
- नाइट्रोजन:
- ड्यूमा विधि (Dumas Method): यौगिक को CO₂ वातावरण में CuO पर गर्म कर निकली N₂ गैस का आयतन ज्ञात कर प्रतिशत मात्रा निकालना। सभी नाइट्रोजन युक्त यौगिकों के लिए उपयुक्त।
- केल्डॉल विधि (Kjeldahl's Method): यौगिक को सांद्र H₂SO₄ के साथ गर्म कर नाइट्रोजन को (NH₄)₂SO₄ में बदलना। फिर इसे NaOH के साथ गर्म कर निकली NH₃ को ज्ञात आयतन व सांद्रता वाले मानक अम्ल में अवशोषित कराकर, शेष अम्ल का अनुमापन करके N की प्रतिशत मात्रा ज्ञात करना। (नाइट्रो, एजो यौगिकों और वलय में N वाले यौगिकों के लिए उपयुक्त नहीं)।
- हैलोजन (कैरियस विधि): यौगिक को सांद्र HNO₃ और AgNO₃ के साथ गर्म कर हैलोजन को AgX में अवक्षेपित कर, अवक्षेप के भार से हैलोजन की प्रतिशत मात्रा ज्ञात करना।
- %X = (X का परमाणु भार / AgX का अणु भार) × (AgX का द्रव्यमान / यौगिक का द्रव्यमान) × 100
- सल्फर (कैरियस विधि): यौगिक को सांद्र HNO₃ (या सोडियम परॉक्साइड) के साथ गर्म कर सल्फर को H₂SO₄ में ऑक्सीकृत करना। फिर BaCl₂ मिलाकर BaSO₄ के रूप में अवक्षेपित कर, अवक्षेप के भार से S की प्रतिशत मात्रा ज्ञात करना।
- %S = (32 / 233) × (BaSO₄ का द्रव्यमान / यौगिक का द्रव्यमान) × 100
- फॉस्फोरस: यौगिक को सांद्र HNO₃ के साथ गर्म कर फॉस्फोरस को H₃PO₄ में बदलना। इसे अमोनियम मॉलिब्डेट मिलाकर अमोनियम फॉस्फोमॉलिब्डेट [(NH₄)₃PO₄·12MoO₃] या मैग्नीशिया मिश्रण मिलाकर Mg₂P₂O₇ के रूप में अवक्षेपित कर, अवक्षेप के भार से P की प्रतिशत मात्रा ज्ञात करना।
- ऑक्सीजन: यौगिक में अन्य सभी तत्वों की प्रतिशत मात्रा ज्ञात कर, उनके योग को 100 में से घटाकर ऑक्सीजन की प्रतिशत मात्रा ज्ञात की जाती है। (प्रत्यक्ष विधि भी है)।
यह विस्तृत नोट्स आपको इस अध्याय की मुख्य अवधारणाओं को समझने और सरकारी परीक्षाओं की तैयारी में मदद करेंगे। अब, चलिए कुछ बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs) देखते हैं।
अभ्यास हेतु बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs):
प्रश्न 1: निम्नलिखित में से कौन सा यौगिक ज्यामितीय समावयवता प्रदर्शित करेगा?
(क) प्रोपीन
(ख) ब्यूट-1-ईन
(ग) ब्यूट-2-ईन
(घ) 2-मेथिलप्रोपीन
प्रश्न 2: लैसग्ने परीक्षण में, यदि कार्बनिक यौगिक में नाइट्रोजन और सल्फर दोनों उपस्थित हों, तो सोडियम संगलन निष्कर्ष को फेरिक क्लोराइड के साथ गर्म करने पर कौन सा रंग प्राप्त होता है?
(क) नीला
(ख) बैंगनी
(ग) रक्त जैसा लाल (Blood red)
(घ) हरा
प्रश्न 3: निम्नलिखित कार्बधनायनों को उनके स्थायित्व के घटते क्रम में व्यवस्थित कीजिये:
(I) (CH₃)₃C⁺
(II) CH₃CH₂⁺
(III) (CH₃)₂CH⁺
(IV) CH₃⁺
(क) I > III > II > IV
(ख) IV > II > III > I
(ग) I > II > III > IV
(घ) II > III > I > IV
प्रश्न 4: IUPAC नामकरण के अनुसार, यौगिक CH₃CH(OH)CH₂COCH₃ का सही नाम क्या है?
(क) 4-हाइड्रॉक्सीपेन्टेन-2-ओन
(ख) 2-हाइड्रॉक्सीपेन्टेन-4-ओन
(ग) पेन्टेन-2-ओन-4-ऑल
(घ) पेन्टेन-4-ऑल-2-ओन
प्रश्न 5: ऐनिलीन का शोधन किस विधि द्वारा उत्तम रूप से किया जा सकता है?
(क) प्रभाजी आसवन
(ख) भाप आसवन
(ग) ऊर्ध्वपातन
(घ) क्रिस्टलन
प्रश्न 6: निम्नलिखित में से कौन सा प्रभाव सिग्मा (σ) आबंध के माध्यम से संचालित होता है?
(क) अनुनाद प्रभाव
(ख) प्रेरणिक प्रभाव
(ग) इलेक्ट्रोमेरिक प्रभाव
(घ) अतिसंयुग्मन (आंशिक रूप से σ)
प्रश्न 7: कागज वर्णलेखिकी (Paper Chromatography) किस सिद्धांत पर आधारित है?
(क) अधिशोषण
(ख) वितरण
(ग) आयन विनिमय
(घ) आण्विक आकार
प्रश्न 8: केल्डॉल विधि का उपयोग किसके आकलन के लिए नहीं किया जा सकता है?
(क) यूरिया
(ख) ऐनिलीन
(ग) नाइट्रोबेंजीन
(घ) प्रोटीन
प्रश्न 9: CH₃-O-CH₂CH₂CH₃ तथा CH₃CH₂-O-CH₂CH₃ किस प्रकार की समावयवता प्रदर्शित करते हैं?
(क) स्थान समावयवता
(ख) शृंखला समावयवता
(ग) क्रियात्मक समावयवता
(घ) मध्यावयवता
प्रश्न 10: निम्नलिखित में से कौन एक इलेक्ट्रॉनस्नेही (Electrophile) नहीं है?
(क) BF₃
(ख) NH₃
(ग) NO₂⁺
(घ) AlCl₃
उत्तर कुंजी:
- (ग)
- (ग) (सोडियम थायोसायनेट [NaSCN] बनता है, जो Fe³⁺ के साथ रक्त जैसा लाल रंग देता है)
- (क) (3° > 2° > 1° > मेथिल)
- (क) (कीटोन समूह को प्राथमिकता, अंकन दाईं ओर से)
- (ख) (ऐनिलीन भाप वाष्पशील है)
- (ख)
- (ख)
- (ग) (नाइट्रो समूह वाले यौगिकों के लिए उपयुक्त नहीं)
- (घ) (ईथर में ऑक्सीजन के दोनों ओर एल्किल समूह भिन्न हैं)
- (ख) (NH₃ में नाइट्रोजन पर एकाकी युग्म होता है, यह नाभिकस्नेही है)
इन नोट्स और प्रश्नों का अच्छी तरह से अध्ययन करें। शुभकामनाएँ!