Class 11 Chemistry Notes Chapter 13 (Chapter 13) – Examplar Problems (Hindi) Book

Examplar Problems (Hindi)
नमस्ते विद्यार्थियों।

आज हम कक्षा 11 रसायन विज्ञान के अध्याय 13, 'हाइड्रोकार्बन' के विस्तृत नोट्स का अध्ययन करेंगे जो आपकी सरकारी परीक्षाओं की तैयारी में सहायक होंगे। यह अध्याय कार्बनिक रसायन का आधार है, इसलिए इसे ध्यान से समझना महत्वपूर्ण है।

अध्याय 13: हाइड्रोकार्बन (Hydrocarbons)

परिचय:
वे कार्बनिक यौगिक जो केवल कार्बन (C) तथा हाइड्रोजन (H) परमाणुओं से मिलकर बने होते हैं, हाइड्रोकार्बन कहलाते हैं। ये कार्बनिक रसायन विज्ञान के सरलतम यौगिक हैं और ऊर्जा के प्रमुख स्रोत (जैसे- LPG, CNG, पेट्रोल, डीजल) हैं।

हाइड्रोकार्बनों का वर्गीकरण:
हाइड्रोकार्बनों को मुख्यतः कार्बन-कार्बन आबंधों की प्रकृति के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है:

  1. विवृत शृंखला (Acyclic) या ऐलिफैटिक हाइड्रोकार्बन:

    • संतृप्त हाइड्रोकार्बन (Saturated Hydrocarbons) - ऐल्केन (Alkanes): इनमें कार्बन-कार्बन के मध्य केवल एकल आबंध (C-C) पाया जाता है। इनका सामान्य सूत्र C<0xE2><0x82><0x99>H₂<0xE2><0x82><0x99>₊₂ है (जहाँ n = 1, 2, 3...)। इन्हें पैराफिन (Paraffins - कम क्रियाशील) भी कहते हैं। उदाहरण: मेथेन (CH₄), एथेन (C₂H₆), प्रोपेन (C₃H₈)।
    • असंतृप्त हाइड्रोकार्बन (Unsaturated Hydrocarbons): इनमें कार्बन-कार्बन के मध्य कम से कम एक द्वि-आबंध (C=C) या त्रि-आबंध (C≡C) उपस्थित होता है।
      • ऐल्कीन (Alkenes): इनमें कम से कम एक कार्बन-कार्बन द्वि-आबंध (C=C) होता है। इनका सामान्य सूत्र C<0xE2><0x82><0x99>H₂<0xE2><0x82><0x99> है (जहाँ n = 2, 3, 4...)। इन्हें ओलिफिन (Olefins - तेल बनाने वाले) भी कहते हैं। उदाहरण: एथीन (C₂H₄), प्रोपीन (C₃H₆)।
      • ऐल्काइन (Alkynes): इनमें कम से कम एक कार्बन-कार्बन त्रि-आबंध (C≡C) होता है। इनका सामान्य सूत्र C<0xE2><0x82><0x99>H₂<0xE2><0x82><0x99>₋₂ है (जहाँ n = 2, 3, 4...)। उदाहरण: एथाइन (C₂H₂), प्रोपाइन (C₃H₄)।
  2. संवृत शृंखला (Cyclic) या वलयी हाइड्रोकार्बन:

    • ऐलिसाइक्लिक हाइड्रोकार्बन (Alicyclic Hydrocarbons): ये वलयी संतृप्त या असंतृप्त हाइड्रोकार्बन होते हैं जिनके गुण ऐलिफैटिक हाइड्रोकार्बन के समान होते हैं। उदाहरण: साइक्लोप्रोपेन, साइक्लोहेक्सेन, साइक्लोहेक्सीन।
    • ऐरोमैटिक हाइड्रोकार्बन (Aromatic Hydrocarbons): ये विशिष्ट प्रकार के वलयी, असंतृप्त हाइड्रोकार्बन होते हैं जिनमें एकांतर क्रम में एकल व द्वि-आबंध होते हैं तथा ये हकल के नियम (Huckel's Rule) का पालन करते हैं। इनमें विशेष गंध (aroma) होती है। उदाहरण: बेंजीन (C₆H₆), टॉलूईन (C₆H₅CH₃), नैफ्थैलीन (C₁₀H₈)।

1. ऐल्केन (Alkanes)

  • नामकरण (Nomenclature): IUPAC पद्धति के अनुसार, जनक शृंखला के नाम के अंत में 'एन' (-ane) अनुलग्न लगाते हैं।
  • समावयवता (Isomerism):
    • शृंखला समावयवता (Chain Isomerism): कार्बन शृंखला में भिन्नता के कारण। ब्यूटेन (C₄H₁₀) से प्रारंभ होती है। (n-ब्यूटेन, आइसोब्यूटेन)
    • संरूपी समावयवता (Conformational Isomerism): C-C एकल आबंध के परितः मुक्त घूर्णन (free rotation) के कारण उत्पन्न होती है। एथेन के संरूपण: सांतरित (Staggered) और ग्रस्त (Eclipsed)। सांतरित संरूपण अधिक स्थायी होता है (कम ऊर्जा)। न्यूमैन प्रक्षेपण तथा सॉहार्स प्रक्षेपण द्वारा दर्शाया जाता है।
  • बनाने की विधियाँ (Preparation Methods):
    • असंतृप्त हाइड्रोकार्बनों के हाइड्रोजनीकरण द्वारा: Ni, Pt या Pd उत्प्रेरक की उपस्थिति में ऐल्कीन या ऐल्काइन पर H₂ का योग।
      CH₂=CH₂ + H₂ --(Ni/Pt/Pd)--> CH₃-CH₃
      CH≡CH + 2H₂ --(Ni/Pt/Pd)--> CH₃-CH₃
      
    • ऐल्किल हैलाइडों के अपचयन द्वारा: Zn + HCl या Zn-Cu युग्म द्वारा।
      CH₃Cl + H₂ --(Zn+HCl)--> CH₄ + HCl
      
    • वुर्ट्ज़ अभिक्रिया (Wurtz Reaction): शुष्क ईथर की उपस्थिति में ऐल्किल हैलाइड की सोडियम धातु से क्रिया द्वारा उच्चतर सम संख्या वाले ऐल्केन बनते हैं। विषम संख्या वाले ऐल्केन बनाने के लिए उपयुक्त नहीं है (मिश्रण प्राप्त होता है)।
      2CH₃Br + 2Na --(शुष्क ईथर)--> CH₃-CH₃ + 2NaBr
      
    • कार्बोक्सिलिक अम्लों के विकार्बोक्सिलीकरण द्वारा (Decarboxylation): सोडियम लवण को सोडालाइम (NaOH + CaO) के साथ गर्म करने पर।
      CH₃COONa + NaOH --(CaO, गर्म)--> CH₄ + Na₂CO₃
      
    • कोल्बे वैद्युत-अपघटनी विधि (Kolbe's Electrolytic Method): कार्बोक्सिलिक अम्लों के सोडियम या पोटैशियम लवण के सांद्र जलीय विलयन के वैद्युत-अपघटन से ऐनोड पर ऐल्केन प्राप्त होते हैं।
      2CH₃COOK + 2H₂O --(विद्युत अपघटन)--> CH₃-CH₃ (ऐनोड पर) + 2CO₂ + H₂ (कैथोड पर) + 2KOH
      
  • भौतिक गुणधर्म (Physical Properties):
    • C₁ से C₄ तक गैसें, C₅ से C₁₇ तक द्रव, C₁₈ से अधिक ठोस।
    • अध्रुवीय होने के कारण जल में अविलेय, परन्तु कार्बनिक विलायकों में विलेय।
    • क्वथनांक अणुभार बढ़ने के साथ बढ़ता है। शाखित ऐल्केन का क्वथनांक समान अणुभार वाले अशाखित ऐल्केन से कम होता है (पृष्ठीय क्षेत्रफल कम होने के कारण)।
  • रासायनिक गुणधर्म (Chemical Properties): ऐल्केन सामान्यतः कम क्रियाशील होते हैं।
    • प्रतिस्थापन अभिक्रियाएँ (Substitution Reactions):
      • हैलोजनीकरण (Halogenation): सूर्य के प्रकाश या उच्च ताप पर Cl₂ या Br₂ से मुक्त मूलक क्रियाविधि (Free Radical Mechanism) द्वारा प्रतिस्थापन। क्रियाशीलता क्रम: F₂ > Cl₂ > Br₂ > I₂। मेथेन का क्लोरीनीकरण विभिन्न उत्पादों (CH₃Cl, CH₂Cl₂, CHCl₃, CCl₄) का मिश्रण देता है।
        • क्रियाविधि के पद: (i) शृंखला प्रारंभन पद (Initiation) (ii) शृंखला संचरण पद (Propagation) (iii) शृंखला समापन पद (Termination)
    • दहन (Combustion): वायु या ऑक्सीजन में पूर्ण दहन पर CO₂ तथा H₂O बनाते हैं और अत्यधिक ऊष्मा उत्पन्न करते हैं।
      CH₄ + 2O₂ --> CO₂ + 2H₂O + ऊष्मा
      
      अपूर्ण दहन पर कार्बन ब्लैक (कज्जल) तथा कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) बनती है।
    • नियंत्रित ऑक्सीकरण (Controlled Oxidation): भिन्न उत्प्रेरकों की उपस्थिति में ऐल्कोहॉल, ऐल्डिहाइड, कार्बोक्सिलिक अम्ल बनते हैं।
      2CH₄ + O₂ --(Cu/523K/100atm)--> 2CH₃OH (मेथेनॉल)
      CH₄ + O₂ --(Mo₂O₃/गर्म)--> HCHO (मेथेनैल) + H₂O
      
    • समावयवीकरण (Isomerization): निर्जल AlCl₃ + HCl की उपस्थिति में गर्म करने पर अशाखित ऐल्केन शाखित ऐल्केन में परिवर्तित हो जाते हैं।
      n-हेक्सेन --(निर्जल AlCl₃/HCl)--> आइसो-हेक्सेन + नियो-हेक्सेन
      
    • ऐरोमैटीकरण (Aromatization): 6 या अधिक कार्बन वाले ऐल्केन को Cr₂O₃ या V₂O₅ या Mo₂O₃ युक्त ऐलुमिना पर उच्च ताप व दाब पर गर्म करने पर बेंजीन या उसके व्युत्पन्न बनते हैं। (उदा. n-हेक्सेन से बेंजीन)
    • ताप-अपघटन (Pyrolysis) या भंजन (Cracking): उच्च ताप पर गर्म करने पर छोटे हाइड्रोकार्बनों में टूट जाना।

2. ऐल्कीन (Alkenes)

  • नामकरण: जनक शृंखला के नाम के अंत में 'ईन' (-ene) अनुलग्न लगाते हैं। द्वि-आबंध की स्थिति दर्शाई जाती है।
  • समावयवता:
    • शृंखला समावयवता: ब्यूटीन से प्रारंभ।
    • स्थिति समावयवता: द्वि-आबंध की स्थिति में भिन्नता (उदा. ब्यूट-1-ईन, ब्यूट-2-ईन)।
    • ज्यामितीय समावयवता (Geometrical Isomerism): C=C आबंध के परितः प्रतिबंधित घूर्णन (restricted rotation) तथा द्वि-आबंध वाले प्रत्येक कार्बन से जुड़े भिन्न समूहों के कारण उत्पन्न होती है। रूप: सिस (cis - समान समूह एक ओर) तथा विपक्ष (trans - समान समूह विपरीत ओर)। विपक्ष समावयवी सामान्यतः सिस से अधिक स्थायी होता है।
  • बनाने की विधियाँ:
    • ऐल्काइनों से: पैलेडिकृत चारकोल (लिंडलार उत्प्रेरक - Lindlar's catalyst) द्वारा आंशिक हाइड्रोजनीकरण से सिस-ऐल्कीन बनती है। सोडियम/द्रव अमोनिया (बर्च अपचयन - Birch reduction) द्वारा विपक्ष-ऐल्कीन बनती है।
    • ऐल्किल हैलाइडों से (विहाइड्रोहैलोजनीकरण - Dehydrohalogenation): ऐल्कोहॉलिक KOH के साथ गर्म करने पर HX का विलोपन होता है। सेत्जेफ नियम (Saytzeff's Rule) लागू होता है - वह ऐल्कीन मुख्य उत्पाद होती है जिसमें द्वि-आबंधित कार्बन परमाणुओं से अधिक ऐल्किल समूह जुड़े हों।
    • विसिनिल डाइहैलाइड से (विहैलोजनीकरण - Dehalogenation): Zn चूर्ण के साथ गर्म करने पर।
    • ऐल्कोहॉलों के निर्जलीकरण द्वारा (Dehydration): सांद्र H₂SO₄ या Al₂O₃ के साथ गर्म करने पर जल का अणु निकलता है। यहाँ भी सेत्जेफ नियम लागू होता है।
  • भौतिक गुणधर्म:
    • प्रथम तीन सदस्य गैस, अगले 14 द्रव, उच्चतर ठोस।
    • जल में अविलेय, कार्बनिक विलायकों में विलेय।
    • क्वथनांक अणुभार के साथ बढ़ता है।
  • रासायनिक गुणधर्म: द्वि-आबंध (एक सिग्मा, एक पाई) की उपस्थिति के कारण ऐल्कीन अत्यधिक क्रियाशील होते हैं। पाई (π) आबंध दुर्बल होता है। ये मुख्यतः इलेक्ट्रॉनस्नेही योगात्मक अभिक्रियाएँ (Electrophilic Addition Reactions) दर्शाते हैं।
    • डाइहाइड्रोजन का योग (Addition of H₂): हाइड्रोजनीकरण (पहले वर्णित)।
    • हैलोजनों का योग (Addition of X₂): Cl₂, Br₂ का योग आसानी से होता है। ब्रोमीन जल (लाल-भूरा रंग) का रंग उड़ जाना असंतृप्तता का परीक्षण है।
      CH₂=CH₂ + Br₂ --(CCl₄)--> CH₂Br-CH₂Br (1,2-डाइब्रोमोएथेन)
      
    • हाइड्रोजन हैलाइडों का योग (Addition of HX): क्रियाशीलता क्रम: HI > HBr > HCl।
      • मार्कोनीकॉफ का नियम (Markovnikov's Rule): असममित ऐल्कीन पर असममित अभिकर्मक (जैसे HX) के योग में अभिकर्मक का ऋणात्मक भाग उस द्वि-आबंधित कार्बन परमाणु पर जुड़ता है जिस पर हाइड्रोजन परमाणुओं की संख्या कम होती है। (क्रियाविधि कार्बधनायन मध्यवर्ती द्वारा)
        CH₃-CH=CH₂ + HBr --> CH₃-CHBr-CH₃ (मुख्य उत्पाद)
        
      • खराश प्रभाव या परॉक्साइड प्रभाव या प्रति-मार्कोनीकॉफ नियम (Kharasch Effect / Peroxide Effect / Anti-Markovnikov's Rule): परॉक्साइड (जैसे बेंजोयल परॉक्साइड) की उपस्थिति में असममित ऐल्कीन पर HBr का योग मार्कोनीकॉफ नियम के विपरीत होता है। यह केवल HBr के साथ होता है, HCl या HI के साथ नहीं। (क्रियाविधि मुक्त मूलक द्वारा)
        CH₃-CH=CH₂ + HBr --(परॉक्साइड)--> CH₃-CH₂-CH₂Br (मुख्य उत्पाद)
        
    • सल्फ्यूरिक अम्ल का योग: मार्कोनीकॉफ नियम अनुसार।
    • जल का योग (Hydration): अम्ल उत्प्रेरक की उपस्थिति में मार्कोनीकॉफ नियम अनुसार ऐल्कोहॉल बनते हैं।
    • ऑक्सीकरण (Oxidation):
      • बेयर अभिकर्मक (Baeyer's Reagent - ठंडा, तनु, क्षारीय KMnO₄): द्वि-आबंध पर -OH समूह जुड़ते हैं (ग्लाइकॉल बनते हैं)। KMnO₄ का गुलाबी रंग उड़ जाता है (असंतृप्तता का परीक्षण)।
      • ओजोनी-अपघटन (Ozonolysis): ओजोन (O₃) से क्रिया कर ओजोनाइड बनता है, जो Zn/H₂O द्वारा अपघटित होकर ऐल्डिहाइड या कीटोन देता है। यह द्वि-आबंध की स्थिति ज्ञात करने में महत्वपूर्ण है।
        R-CH=CH-R' --(1. O₃ / 2. Zn/H₂O)--> RCHO + R'CHO
        
    • बहुलकीकरण (Polymerization): उच्च ताप व दाब पर उत्प्रेरक की उपस्थिति में अनेक ऐल्कीन अणु जुड़कर बहुलक (Polymer) बनाते हैं। (उदा. एथीन से पॉलीथीन)

3. ऐल्काइन (Alkynes)

  • नामकरण: जनक शृंखला के नाम के अंत में 'आइन' (-yne) अनुलग्न लगाते हैं। त्रि-आबंध की स्थिति दर्शाई जाती है।
  • समावयवता: शृंखला, स्थिति समावयवता दर्शाते हैं। ज्यामितीय समावयवता नहीं दर्शाते।
  • बनाने की विधियाँ:
    • कैल्सियम कार्बाइड से: CaC₂ की जल से क्रिया द्वारा एथाइन (ऐसीटिलीन) बनती है।
      CaC₂ + 2H₂O --> Ca(OH)₂ + C₂H₂
      
    • विसिनिल डाइहैलाइड से: ऐल्कोहॉलिक KOH द्वारा विहाइड्रोहैलोजनीकरण के दो पदों द्वारा।
  • भौतिक गुणधर्म: ऐल्केन और ऐल्कीन के समान।
  • ऐल्काइनों की अम्लीय प्रकृति (Acidic Character of Alkynes):
    • त्रि-आबंधित कार्बन sp संकरित होता है, जिसमें s-लक्षण (50%) अधिक होने के कारण विद्युत ऋणात्मकता अधिक होती है।
    • इस कारण C≡C-H आबंध का H परमाणु अम्लीय होता है।
    • एथाइन तथा अन्य टर्मिनल ऐल्काइन (जिनमें ≡C-H समूह हो) प्रबल क्षारों (जैसे NaNH₂, Na) से क्रिया कर हाइड्रोजन गैस मुक्त करते हैं।
      HC≡CH + NaNH₂ --> HC≡C⁻Na⁺ + NH₃
      2HC≡CH + 2Na --> 2HC≡C⁻Na⁺ + H₂
      
    • यह अभिक्रिया ऐल्केन व ऐल्कीन नहीं देते। अम्लता क्रम: H₂O > ROH > HC≡CH > NH₃ > CH₂=CH₂ > CH₃-CH₃
  • रासायनिक गुणधर्म: त्रि-आबंध (एक सिग्मा, दो पाई) के कारण योगात्मक अभिक्रियाएँ देते हैं।
    • हाइड्रोजन का योग: पूर्ण हाइड्रोजनीकरण पर ऐल्केन, आंशिक हाइड्रोजनीकरण पर ऐल्कीन (लिंडलार उत्प्रेरक से सिस, Na/liq.NH₃ से विपक्ष)।
    • हैलोजनों का योग: दो अणु X₂ का योग होता है (पहले डाइहैलाइड, फिर टेट्राहैलाइड)।
    • हाइड्रोजन हैलाइडों का योग: दो अणु HX का योग मार्कोनीकॉफ नियम अनुसार होता है (पहले विनाइल हैलाइड, फिर जेमिनल डाइहैलाइड)। परॉक्साइड की उपस्थिति में HBr का योग प्रति-मार्कोनीकॉफ नियम अनुसार होता है।
    • जल का योग: HgSO₄/तनु H₂SO₄ की उपस्थिति में जल का योग होता है। एथाइन से एथेनैल (ऐसीटैल्डिहाइड) बनता है। अन्य ऐल्काइन कीटोन देते हैं (मार्कोनीकॉफ नियम)।
    • बहुलकीकरण:
      • रैखिक बहुलकीकरण: एथाइन से पॉलीएथाइन (पॉलीएसीटिलीन)।
      • चक्रीय बहुलकीकरण: एथाइन को रक्त तप्त लोहे की नली में प्रवाहित करने पर बेंजीन बनती है।
        3CH≡CH --(रक्त तप्त Fe नली, 873K)--> C₆H₆
        

4. ऐरोमैटिक हाइड्रोकार्बन (Aromatic Hydrocarbons)

  • बेंजीन (Benzene - C₆H₆): ऐरोमैटिक यौगिकों का सरलतम उदाहरण।
  • संरचना: केकुले संरचना (एकांतर द्वि-आबंध युक्त षट्कोणीय वलय)। वास्तव में बेंजीन में सभी C-C आबंध लंबाई समान (139 pm) होती है, जो एकल (154 pm) और द्वि-आबंध (134 pm) के मध्य की होती है। यह अनुनाद (Resonance) के कारण होता है। बेंजीन एक अनुनादी संकर है।
  • ऐरोमैटिकता (Aromaticity): यौगिकों का वह गुण जिसके कारण वे विशेष स्थायित्व दर्शाते हैं। शर्तें (हकल नियम - Huckel's Rule):
    • वलयी (Cyclic) होना चाहिए।
    • समतलीय (Planar) होना चाहिए।
    • वलय में संयुग्मित π-इलेक्ट्रॉनों का पूर्ण विस्थानीकरण (Complete delocalization) होना चाहिए।
    • वलय में (4n + 2) π इलेक्ट्रॉन होने चाहिए, जहाँ n = 0, 1, 2, 3... (पूर्णांक)। बेंजीन में 6 π इलेक्ट्रॉन हैं (n=1), अतः यह ऐरोमैटिक है।
  • बेंजीन बनाने की विधियाँ:
    • एथाइन के चक्रीय बहुलकीकरण द्वारा: (पहले वर्णित)।
    • कार्बोक्सिलिक अम्लों के विकार्बोक्सिलीकरण द्वारा: बेंजोइक अम्ल के सोडियम लवण को सोडालाइम के साथ गर्म करके।
    • फीनॉल के अपचयन द्वारा: फीनॉल वाष्प को जिंक रज (Zn dust) पर प्रवाहित करके।
  • भौतिक गुणधर्म: रंगहीन द्रव, विशिष्ट गंध, जल में अविलेय, कार्बनिक विलायकों में विलेय।
  • रासायनिक गुणधर्म: बेंजीन अत्यधिक स्थायी होने के कारण सामान्यतः इलेक्ट्रॉनस्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रियाएँ (Electrophilic Substitution Reactions) देती है, योगात्मक अभिक्रियाएँ विशेष परिस्थितियों में ही होती हैं।
    • इलेक्ट्रॉनस्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रियाएँ:
      • नाइट्रीकरण (Nitration): सांद्र HNO₃ + सांद्र H₂SO₄ (नाइट्रोकारी मिश्रण) के साथ गर्म करने पर नाइट्रोबेंजीन बनती है। (इलेक्ट्रॉनस्नेही: NO₂⁺ - नाइट्रोनियम आयन)
      • हैलोजनीकरण (Halogenation): लुईस अम्ल (जैसे निर्जल FeCl₃, FeBr₃, AlCl₃) उत्प्रेरक की उपस्थिति में Cl₂ या Br₂ से क्रिया। (इलेक्ट्रॉनस्नेही: Cl⁺, Br⁺)
      • सल्फोनीकरण (Sulphonation): सधूम H₂SO₄ (ओलियम) के साथ गर्म करने पर बेंजीन सल्फोनिक अम्ल बनता है। (इलेक्ट्रॉनस्नेही: SO₃)
      • फ्रीडेल-क्राफ्ट्स ऐल्किलन (Friedel-Crafts Alkylation): निर्जल AlCl₃ की उपस्थिति में ऐल्किल हैलाइड (R-X) से क्रिया द्वारा ऐल्किल बेंजीन (टॉलूईन आदि) बनती है। (इलेक्ट्रॉनस्नेही: R⁺ - कार्बधनायन)
      • फ्रीडेल-क्राफ्ट्स ऐसीटिलन (Friedel-Crafts Acylation): निर्जल AlCl₃ की उपस्थिति में ऐसिल क्लोराइड (RCOCl) या ऐसिड एनहाइड्राइड से क्रिया द्वारा ऐसिल बेंजीन (कीटोन) बनती है। (इलेक्ट्रॉनस्नेही: RCO⁺ - ऐसीलियम आयन)
      • क्रियाविधि: इन सभी अभिक्रियाओं में तीन पद होते हैं: (i) इलेक्ट्रॉनस्नेही का बनना (ii) कार्बधनायन मध्यवर्ती (सिग्मा संकुल या ऐरीनियम आयन) का बनना (iii) प्रोटॉन का विलोपन।
    • योगात्मक अभिक्रियाएँ: उच्च ताप/दाब या UV प्रकाश में।
      • हाइड्रोजनीकरण: Ni उत्प्रेरक, उच्च ताप/दाब पर साइक्लोहेक्सेन।
      • हैलोजनीकरण: UV प्रकाश की उपस्थिति में BHC (बेंजीन हेक्साक्लोराइड या गैमेक्सीन) बनता है।
    • दहन: कज्जली ज्वाला के साथ जलकर CO₂ व H₂O बनाते हैं।
  • एकल प्रतिस्थापी बेंजीन में क्रियात्मक समूह का निदेश प्रभाव (Directive Influence): बेंजीन वलय से जुड़ा समूह आने वाले दूसरे प्रतिस्थापी समूह को वलय में किसी विशेष स्थिति (ऑर्थो, पैरा या मेटा) पर निर्देशित करता है।
    • ऑर्थो (o-) तथा पैरा (p-) निर्देशक समूह (सक्रियणकारी समूह - Activating groups): ये समूह बेंजीन वलय को इलेक्ट्रॉनस्नेही प्रतिस्थापन के प्रति सक्रिय करते हैं (अभिक्रिया दर बढ़ाते हैं) और आने वाले समूह को ऑर्थो व पैरा स्थितियों पर भेजते हैं। उदाहरण: -OH, -NH₂, -NHR, -NR₂, -OCH₃, -CH₃, -C₂H₅ आदि। (हैलोजन (-X) अपवाद हैं - ये निष्क्रियणकारी होते हुए भी o-, p- निर्देशक हैं)।
    • मेटा (m-) निर्देशक समूह (निष्क्रियणकारी समूह - Deactivating groups): ये समूह बेंजीन वलय को इलेक्ट्रॉनस्नेही प्रतिस्थापन के प्रति निष्क्रिय करते हैं (अभिक्रिया दर घटाते हैं) और आने वाले समूह को मेटा स्थिति पर भेजते हैं। उदाहरण: -NO₂, -CN, -CHO, -COR, -COOH, -COOR, -SO₃H आदि।

कैंसरजन्य गुण तथा आविषता (Carcinogenicity and Toxicity):
कुछ बहुनाभिकीय हाइड्रोकार्बन (Polynuclear Hydrocarbons) जिनमें दो से अधिक बेंजीन वलय संघनित होते हैं (जैसे 1,2-बेंजेन्थ्रासीन, 3-मेथिलकोलैन्थ्रिन, 1,2-बेंज़पाइरीन आदि) कैंसरजन्य (Carcinogenic) होते हैं। ये कोयला, पेट्रोलियम आदि के अपूर्ण दहन से उत्पन्न होते हैं (उदा. तम्बाकू का धुआँ) और मानव शरीर में प्रवेश कर विभिन्न जैव-रासायनिक अभिक्रियाओं द्वारा DNA को क्षति पहुँचाकर कैंसर उत्पन्न कर सकते हैं। बेंजीन तथा अन्य विलायक भी आविष (Toxic) होते हैं।


अभ्यास हेतु बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs):

प्रश्न 1: निम्नलिखित में से कौन-सी अभिक्रिया द्वारा मेथेन नहीं बनाई जा सकती?
(क) वुर्ट्ज़ अभिक्रिया
(ख) कार्बोक्सिलिक अम्ल का विकार्बोक्सिलीकरण
(ग) ऐल्किल हैलाइड का अपचयन
(घ) कोल्बे वैद्युत-अपघटनी विधि

उत्तर: (क) वुर्ट्ज़ अभिक्रिया (यह सम संख्या वाले उच्चतर ऐल्केन बनाती है)

प्रश्न 2: प्रोपीन पर HBr के योग से परॉक्साइड की उपस्थिति में बनने वाला मुख्य उत्पाद है:
(क) 1-ब्रोमोप्रोपेन
(ख) 2-ब्रोमोप्रोपेन
(ग) 1,2-डाइब्रोमोप्रोपेन
(घ) 2,2-डाइब्रोमोप्रोपेन

उत्तर: (क) 1-ब्रोमोप्रोपेन (प्रति-मार्कोनीकॉफ नियम)

प्रश्न 3: निम्नलिखित में से कौन-सा यौगिक हकल नियम का पालन करता है और ऐरोमैटिक है?
(क) साइक्लोब्यूटाडाईन
(ख) साइक्लोऑक्टाटेट्राईन
(ग) बेंजीन
(घ) साइक्लोहेक्सीन

उत्तर: (ग) बेंजीन (वलयी, समतलीय, संयुग्मित, 6 π इलेक्ट्रॉन)

प्रश्न 4: एथाइन को रक्त तप्त लोहे की नली से 873 K पर प्रवाहित करने पर प्राप्त होता है:
(क) एथेन
(ख) बेंजीन
(ग) मेथेन
(घ) टॉलूईन

उत्तर: (ख) बेंजीन (चक्रीय बहुलकीकरण)

प्रश्न 5: ऐल्केन के हैलोजनीकरण की क्रियाविधि होती है:
(क) इलेक्ट्रॉनस्नेही प्रतिस्थापन
(ख) नाभिकस्नेही प्रतिस्थापन
(ग) मुक्त मूलक प्रतिस्थापन
(घ) इलेक्ट्रॉनस्नेही योग

उत्तर: (ग) मुक्त मूलक प्रतिस्थापन

प्रश्न 6: ज्यामितीय समावयवता दर्शाने के लिए आवश्यक शर्त है:
(क) C-C एकल आबंध
(ख) C≡C त्रि-आबंध
(ग) C=C द्वि-आबंध के परितः प्रतिबंधित घूर्णन तथा भिन्न समूह
(घ) वलयी संरचना

उत्तर: (ग) C=C द्वि-आबंध के परितः प्रतिबंधित घूर्णन तथा भिन्न समूह

प्रश्न 7: निम्नलिखित में से कौन सा समूह बेंजीन वलय में मेटा-निर्देशक है?
(क) -OH
(ख) -CH₃
(ग) -NO₂
(घ) -NH₂

उत्तर: (ग) -NO₂ (निष्क्रियणकारी समूह)

प्रश्न 8: बेयर अभिकर्मक है:
(क) अम्लीय KMnO₄ विलयन
(ख) उदासीन KMnO₄ विलयन
(ग) क्षारीय KMnO₄ विलयन (ठंडा एवं तनु)
(घ) जलीय ब्रोमीन विलयन

उत्तर: (ग) क्षारीय KMnO₄ विलयन (ठंडा एवं तनु)

प्रश्न 9: लिंडलार उत्प्रेरक का उपयोग किस परिवर्तन के लिए किया जाता है?
(क) ऐल्काइन से ऐल्केन
(ख) ऐल्काइन से सिस-ऐल्कीन
(ग) ऐल्काइन से विपक्ष-ऐल्कीन
(घ) ऐल्कीन से ऐल्केन

उत्तर: (ख) ऐल्काइन से सिस-ऐल्कीन

प्रश्न 10: n-हेक्सेन को निर्जल AlCl₃/HCl के साथ गर्म करने पर होने वाली अभिक्रिया कहलाती है:
(क) ऐरोमैटीकरण
(ख) समावयवीकरण
(ग) भंजन
(घ) ऑक्सीकरण

उत्तर: (ख) समावयवीकरण

इन नोट्स को अच्छी तरह पढ़ें और संबंधित अभिक्रियाओं की क्रियाविधि को समझने का प्रयास करें। अभ्यास प्रश्नों को हल करें। शुभकामनाएँ!

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