Class 11 Chemistry Notes Chapter 3 (Chapter 3) – Rasayan Vigyan Bhag-II Book

Rasayan Vigyan Bhag-II
नमस्ते विद्यार्थियों।

आज हम कक्षा 11 रसायन विज्ञान भाग-II के अध्याय 3, 'तत्वों का वर्गीकरण एवं गुणधर्मों में आवर्तिता' का अध्ययन करेंगे। यह अध्याय सरकारी परीक्षाओं की तैयारी के दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे तत्वों के गुणों और उनके आवर्ती व्यवहार को समझने में मदद मिलती है। चलिए, इसके विस्तृत नोट्स देखते हैं:

अध्याय 3: तत्वों का वर्गीकरण एवं गुणधर्मों में आवर्तिता

1. तत्वों के वर्गीकरण की आवश्यकता:

  • शुरुआत में कम तत्व ज्ञात थे, तो उनका अलग-अलग अध्ययन संभव था।
  • जैसे-जैसे अधिक तत्वों की खोज हुई, उनके गुणों का व्यवस्थित अध्ययन करने के लिए वर्गीकरण की आवश्यकता महसूस हुई ताकि समान गुण वाले तत्वों को एक साथ रखा जा सके।

2. वर्गीकरण का ऐतिहासिक विकास:

  • डोबेराइनर के त्रिक (Dobereiner's Triads):
    • जॉन डोबेराइनर (1829) ने समान गुण वाले तीन-तीन तत्वों के समूह बनाए, जिन्हें त्रिक कहा गया।
    • त्रिक के बीच वाले तत्व का परमाणु भार, अन्य दो तत्वों के परमाणु भारों के औसत के लगभग बराबर होता था।
    • उदाहरण: (Li, Na, K), (Ca, Sr, Ba), (Cl, Br, I)।
    • सीमाएँ: यह नियम केवल कुछ ही तत्वों के लिए त्रिक बना सका।
  • न्यूलैंड्स का अष्टक नियम (Newlands' Law of Octaves):
    • जॉन न्यूलैंड्स (1866) ने तत्वों को उनके बढ़ते परमाणु भार के क्रम में व्यवस्थित किया।
    • उन्होंने पाया कि प्रत्येक आठवें तत्व के गुण, पहले तत्व के गुणों के समान थे, जैसे संगीत में आठवां स्वर पहले स्वर जैसा होता है।
    • सीमाएँ: यह नियम केवल कैल्शियम (Ca) तक ही लागू होता था। भारी तत्वों पर यह लागू नहीं हुआ। अक्रिय गैसों की खोज के बाद यह नियम अप्रासंगिक हो गया।
  • मेंडेलीफ़ की आवर्त सारणी (Mendeleev's Periodic Table):
    • दिमित्री मेंडेलीफ़ (1869) ने तत्वों को उनके बढ़ते परमाणु भार और रासायनिक गुणों (विशेषकर ऑक्साइड और हाइड्राइड के सूत्र) की समानता के आधार पर व्यवस्थित किया।
    • मेंडेलीफ़ का आवर्त नियम: "तत्वों के भौतिक तथा रासायनिक गुण उनके परमाणु भारों के आवर्ती फलन होते हैं।"
    • विशेषताएँ:
      • सारणी में ऊर्ध्वाधर स्तंभ (समूह/Group) और क्षैतिज पंक्तियाँ (आवर्त/Period) थे।
      • समान गुण वाले तत्व एक ही समूह में रखे गए।
      • मेंडेलीफ़ ने कुछ स्थान रिक्त छोड़े और भविष्य में खोजे जाने वाले तत्वों (जैसे एका-एलुमिनियम - गैलियम, एका-सिलिकॉन - जर्मेनियम) के गुणों की भविष्यवाणी की।
      • कुछ तत्वों के परमाणु भारों को सही किया (जैसे Be, In, U)।
    • सीमाएँ:
      • हाइड्रोजन का स्थान अनिश्चित (क्षार धातुओं और हैलोजन दोनों से समानता)।
      • समस्थानिकों (Isotopes) का स्थान निश्चित नहीं, क्योंकि उनके परमाणु भार भिन्न होते हैं पर गुण समान।
      • कुछ स्थानों पर अधिक परमाणु भार वाले तत्व को कम परमाणु भार वाले तत्व से पहले रखा गया (जैसे Ar से पहले K, Te से पहले I)।

3. आधुनिक आवर्त नियम और आवर्त सारणी का वर्तमान स्वरूप:

  • आधुनिक आवर्त नियम (Modern Periodic Law): हेनरी मोज्ले (1913) ने दर्शाया कि तत्व का परमाणु क्रमांक (Atomic Number, Z) उसके परमाणु भार की तुलना में अधिक आधारभूत गुण है।
    • नियम: "तत्वों के भौतिक तथा रासायनिक गुण उनके परमाणु क्रमांकों के आवर्ती फलन होते हैं।"
  • आधुनिक आवर्त सारणी (Modern Periodic Table or Long Form of Periodic Table):
    • यह परमाणु क्रमांक के बढ़ते क्रम पर आधारित है।
    • इसमें 7 क्षैतिज पंक्तियाँ (आवर्त - Periods) और 18 ऊर्ध्वाधर स्तंभ (समूह - Groups) हैं।
    • आवर्त (Periods):
      • आवर्त संख्या, तत्व के बाह्यतम कोश की मुख्य क्वांटम संख्या (n) को दर्शाती है।
      • पहला आवर्त (n=1): 2 तत्व (H, He) - अति लघु आवर्त।
      • दूसरा आवर्त (n=2): 8 तत्व (Li से Ne) - लघु आवर्त।
      • तीसरा आवर्त (n=3): 8 तत्व (Na से Ar) - लघु आवर्त।
      • चौथा आवर्त (n=4): 18 तत्व (K से Kr) - दीर्घ आवर्त।
      • पाँचवाँ आवर्त (n=5): 18 तत्व (Rb से Xe) - दीर्घ आवर्त।
      • छठा आवर्त (n=6): 32 तत्व (Cs से Rn) - अति दीर्घ आवर्त (इसमें लैंथेनॉयड श्रेणी शामिल है)।
      • सातवाँ आवर्त (n=7): वर्तमान में ज्ञात सभी शेष तत्व (Fr से Og) - अपूर्ण आवर्त (इसमें एक्टिनॉयड श्रेणी शामिल है)।
    • समूह (Groups):
      • एक ही समूह के तत्वों के बाह्यतम कोश का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास समान होता है, जिसके कारण उनके रासायनिक गुण समान होते हैं।
      • समूह 1: क्षार धातुएँ (Alkali metals)
      • समूह 2: क्षारीय मृदा धातुएँ (Alkaline earth metals)
      • समूह 15: निक्टोजन (Pnictogens)
      • समूह 16: चाल्कोजन (Chalcogens)
      • समूह 17: हैलोजन (Halogens)
      • समूह 18: उत्कृष्ट या अक्रिय गैसें (Noble or Inert gases)
  • s, p, d, f ब्लॉक तत्व: इलेक्ट्रॉनिक विन्यास के आधार पर तत्वों को चार ब्लॉकों में बांटा गया है:
    • s-ब्लॉक: अंतिम इलेक्ट्रॉन s-उपकोश में प्रवेश करता है (समूह 1 और 2)। सामान्य विन्यास: ns¹⁻²। ये नरम धातुएँ, क्रियाशील, आयनिक यौगिक बनाती हैं।
    • p-ब्लॉक: अंतिम इलेक्ट्रॉन p-उपकोश में प्रवेश करता है (समूह 13 से 18)। सामान्य विन्यास: ns²np¹⁻⁶। इनमें धातु, अधातु और उपधातु सभी शामिल हैं। ये मुख्यतः सहसंयोजी यौगिक बनाते हैं। (समूह 18 अक्रिय गैसें हैं)।
    • d-ब्लॉक: अंतिम इलेक्ट्रॉन (n-1)d-उपकोश में प्रवेश करता है (समूह 3 से 12)। सामान्य विन्यास: (n-1)d¹⁻¹⁰ ns⁰⁻²। इन्हें संक्रमण तत्व (Transition elements) कहते हैं। ये सभी धातुएँ हैं, रंगीन आयन, परिवर्ती ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाते हैं, उत्प्रेरक गुण रखते हैं। (Zn, Cd, Hg को संक्रमण तत्व नहीं माना जाता क्योंकि इनके d-कक्षक पूर्ण भरे होते हैं)।
    • f-ब्लॉक: अंतिम इलेक्ट्रॉन (n-2)f-उपकोश में प्रवेश करता है। इन्हें आंतरिक संक्रमण तत्व (Inner transition elements) कहते हैं।
      • लैंथेनॉयड (Lanthanoids): 4f श्रेणी (Ce से Lu)।
      • एक्टिनॉयड (Actinoids): 5f श्रेणी (Th से Lr)। ये मुख्यतः रेडियोधर्मी तत्व हैं।

4. परमाणु क्रमांक 100 से अधिक वाले तत्वों का नामकरण (IUPAC Nomenclature):

  • अंको के लिए मूल (root) और संकेत (symbol) निर्धारित हैं:
    • 0: nil (n)
    • 1: un (u)
    • 2: bi (b)
    • 3: tri (t)
    • 4: quad (q)
    • 5: pent (p)
    • 6: hex (h)
    • 7: sept (s)
    • 8: oct (o)
    • 9: enn (e)
  • अंको के मूलों को परमाणु क्रमांक के क्रम में लिखकर अंत में 'ium' जोड़ देते हैं।
  • उदाहरण: Z=101: Un + nil + un + ium = Unnilunium (Unu) -> मेंडलीवियम (Md)
  • उदाहरण: Z=118: Un + un + oct + ium = Ununoctium (Uuo) -> ओगनेसन (Og)

5. तत्वों के गुणों में आवर्तिता (Periodicity in Properties):
निश्चित अंतराल के बाद तत्वों के गुणों की पुनरावृत्ति को आवर्तिता कहते हैं। इसका कारण समान बाह्य इलेक्ट्रॉनिक विन्यास की पुनरावृत्ति है।

  • परमाणु त्रिज्या (Atomic Radius):
    • परिभाषा: परमाणु के नाभिक के केंद्र से बाह्यतम कोश के इलेक्ट्रॉन तक की दूरी। यथार्थ निर्धारण कठिन है।
    • सहसंयोजी त्रिज्या (Covalent Radius): समान परमाणुओं के बीच एकल सहसंयोजी बंध की लंबाई का आधा।
    • वान्डर वाल्स त्रिज्या (van der Waals Radius): ठोस अवस्था में पास-पास स्थित दो अनाबंधित परमाणुओं के नाभिकों के बीच की दूरी का आधा (अक्रिय गैसों या अणुओं के लिए)। वान्डर वाल्स त्रिज्या > सहसंयोजी त्रिज्या।
    • धात्विक त्रिज्या (Metallic Radius): धात्विक क्रिस्टल में पास-पास स्थित दो धातु परमाणुओं के नाभिकों के बीच की दूरी का आधा।
    • आवर्त में प्रवृत्ति (Across a Period): बाएं से दाएं जाने पर परमाणु त्रिज्या सामान्यतः घटती है।
      • कारण: नाभिकीय आवेश (Nuclear Charge) बढ़ता है, परन्तु इलेक्ट्रॉन उसी कोश में जुड़ते हैं, जिससे प्रभावी नाभिकीय आवेश (Effective Nuclear Charge, Zeff) बढ़ता है और इलेक्ट्रॉन अभ्र नाभिक की ओर अधिक आकर्षित होता है।
    • समूह में प्रवृत्ति (Down a Group): ऊपर से नीचे जाने पर परमाणु त्रिज्या बढ़ती है।
      • कारण: नए कोश जुड़ते जाते हैं, जिससे बाह्यतम इलेक्ट्रॉन की नाभिक से दूरी बढ़ती है। यद्यपि नाभिकीय आवेश बढ़ता है, परन्तु आंतरिक कोशों के इलेक्ट्रॉनों का परिरक्षण प्रभाव (Screening Effect or Shielding Effect) भी बढ़ता है, जो बाह्यतम इलेक्ट्रॉन पर नाभिक के आकर्षण को कम कर देता है।
  • आयनिक त्रिज्या (Ionic Radius):
    • धनायन (Cation): परमाणु से इलेक्ट्रॉन निकलने पर बनता है। धनायन की त्रिज्या अपने मूल परमाणु से छोटी होती है (क्योंकि शेष इलेक्ट्रॉनों पर नाभिकीय आकर्षण बढ़ जाता है)।
    • ऋणायन (Anion): परमाणु द्वारा इलेक्ट्रॉन ग्रहण करने पर बनता है। ऋणायन की त्रिज्या अपने मूल परमाणु से बड़ी होती है (क्योंकि इलेक्ट्रॉन बढ़ने से प्रतिकर्षण बढ़ता है और प्रभावी नाभिकीय आवेश कम होता है)।
    • समइलेक्ट्रॉनिक स्पीशीज (Isoelectronic Species): वे आयन या परमाणु जिनमें इलेक्ट्रॉनों की संख्या समान होती है। इनमें, जैसे-जैसे नाभिकीय आवेश (Z) बढ़ता है, आयनिक त्रिज्या घटती जाती है। उदाहरण: N³⁻ > O²⁻ > F⁻ > Ne > Na⁺ > Mg²⁺ > Al³⁺ (सभी में 10 इलेक्ट्रॉन हैं)।
  • आयनन एन्थैल्पी (Ionization Enthalpy, ΔᵢH):
    • परिभाषा: गैसीय अवस्था में किसी विलगित (isolated) परमाणु के बाह्यतम कोश से एक इलेक्ट्रॉन निकालने के लिए आवश्यक ऊर्जा। यह हमेशा धनात्मक (ऊष्माशोषी प्रक्रम) होती है।
    • इकाई: kJ/mol या eV/atom.
    • प्रथम आयनन एन्थैल्पी (ΔᵢH₁), द्वितीय आयनन एन्थैल्पी (ΔᵢH₂), आदि। ΔᵢH₁ < ΔᵢH₂ < ΔᵢH₃ ... क्योंकि धनायन से इलेक्ट्रॉन निकालना उदासीन परमाणु की तुलना में अधिक कठिन होता है।
    • आवर्त में प्रवृत्ति: बाएं से दाएं जाने पर सामान्यतः आयनन एन्थैल्पी बढ़ती है।
      • कारण: परमाणु आकार घटता है और प्रभावी नाभिकीय आवेश बढ़ता है।
      • अपवाद: Be की ΔᵢH₁ > B की ΔᵢH₁ (Be का स्थायी पूर्ण भरा 2s² विन्यास)। N की ΔᵢH₁ > O की ΔᵢH₁ (N का स्थायी अर्ध-भरा 2p³ विन्यास)।
    • समूह में प्रवृत्ति: ऊपर से नीचे जाने पर आयनन एन्थैल्पी घटती है।
      • कारण: परमाणु आकार बढ़ता है, परिरक्षण प्रभाव बढ़ता है, जिससे बाह्यतम इलेक्ट्रॉन पर नाभिक का आकर्षण कम हो जाता है।
  • इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी (Electron Gain Enthalpy, Δ<0xE2><0x82><0x91>gH):
    • परिभाषा: जब कोई विलगित गैसीय परमाणु एक इलेक्ट्रॉन ग्रहण कर ऋणायन बनाता है, तो इस प्रक्रम में होने वाला एन्थैल्पी परिवर्तन।
    • यह ऋणात्मक (ऊष्माक्षेपी) या धनात्मक (ऊष्माशोषी) हो सकती है। अधिकांश तत्वों के लिए प्रथम इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी ऋणात्मक होती है।
    • इकाई: kJ/mol.
    • अधिक ऋणात्मक मान का अर्थ है इलेक्ट्रॉन ग्रहण करने की प्रवृत्ति अधिक है।
    • आवर्त में प्रवृत्ति: बाएं से दाएं जाने पर इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी सामान्यतः अधिक ऋणात्मक होती जाती है।
      • कारण: परमाणु आकार घटता है, नाभिकीय आवेश बढ़ता है।
    • समूह में प्रवृत्ति: ऊपर से नीचे जाने पर इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी कम ऋणात्मक होती जाती है।
      • कारण: परमाणु आकार बढ़ता है, जिससे आने वाले इलेक्ट्रॉन के प्रति नाभिक का आकर्षण कम हो जाता है।
      • अपवाद: हैलोजन (समूह 17) की Δ<0xE2><0x82><0x91>gH सर्वाधिक ऋणात्मक होती है। क्लोरीन (Cl) की Δ<0xE2><0x82><0x91>gH, फ्लोरीन (F) से अधिक ऋणात्मक होती है (क्योंकि F का आकार बहुत छोटा होने से आने वाले इलेक्ट्रॉन और 2p इलेक्ट्रॉनों के बीच प्रतिकर्षण अधिक होता है)। उत्कृष्ट गैसों की Δ<0xE2><0x82><0x91>gH धनात्मक होती है (स्थायी विन्यास के कारण)। समूह 2 और 15 के तत्वों की Δ<0xE2><0x82><0x91>gH भी अपेक्षाकृत कम ऋणात्मक या धनात्मक होती है (स्थायी विन्यास)।
  • विद्युत ऋणात्मकता (Electronegativity, EN):
    • परिभाषा: किसी यौगिक के अणु में, सहसंयोजी बंध के इलेक्ट्रॉन युग्म को अपनी ओर आकर्षित करने की परमाणु की सापेक्ष क्षमता। यह एक मात्रात्मक माप नहीं है, बल्कि एक सापेक्षिक मान है।
    • यह बंधित परमाणु का गुण है, विलगित परमाणु का नहीं।
    • मापन पैमाने: पॉलिंग पैमाना (Pauling Scale), मुलिकन पैमाना (Mulliken Scale)। पॉलिंग पैमाने पर फ्लोरीन (F) की विद्युत ऋणात्मकता सर्वाधिक (4.0) मानी जाती है।
    • आवर्त में प्रवृत्ति: बाएं से दाएं जाने पर विद्युत ऋणात्मकता बढ़ती है।
      • कारण: नाभिकीय आवेश बढ़ता है, परमाणु आकार घटता है।
    • समूह में प्रवृत्ति: ऊपर से नीचे जाने पर विद्युत ऋणात्मकता घटती है।
      • कारण: परमाणु आकार बढ़ता है।
  • संयोजकता (Valency) और ऑक्सीकरण अवस्था (Oxidation State):
    • संयोजकता: तत्व की संयोजन क्षमता, सामान्यतः हाइड्रोजन, क्लोरीन या ऑक्सीजन के सापेक्ष व्यक्त की जाती है। s और p ब्लॉक के प्रतिनिधि तत्वों की संयोजकता सामान्यतः उनके समूह संख्या या (8 - समूह संख्या) के बराबर होती है।
    • ऑक्सीकरण अवस्था: किसी यौगिक में तत्व के परमाणु पर उपस्थित कल्पित आवेश, यदि अन्य परमाणुओं को आयन मानकर हटा दिया जाए। संक्रमण तत्व (d-ब्लॉक) और आंतरिक संक्रमण तत्व (f-ब्लॉक) परिवर्ती ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाते हैं (d और f कक्षकों की ऊर्जा में कम अंतर के कारण)।
    • आवर्त में बाएं से दाएं जाने पर ऑक्सीजन के सापेक्ष संयोजकता 1 से 7 तक बढ़ती है, जबकि हाइड्रोजन के सापेक्ष 1 से 4 तक बढ़कर फिर 1 तक घटती है।
  • धात्विक और अधात्विक गुण (Metallic and Non-metallic Character):
    • धात्विक गुण: इलेक्ट्रॉन त्यागकर धनायन बनाने की प्रवृत्ति। यह कम आयनन एन्थैल्पी और कम विद्युत ऋणात्मकता से संबंधित है।
    • अधात्विक गुण: इलेक्ट्रॉन ग्रहण कर ऋणायन बनाने या सहसंयोजक बंध बनाने की प्रवृत्ति। यह उच्च आयनन एन्थैल्पी और उच्च विद्युत ऋणात्मकता से संबंधित है।
    • आवर्त में प्रवृत्ति: बाएं से दाएं जाने पर धात्विक गुण घटता है और अधात्विक गुण बढ़ता है।
    • समूह में प्रवृत्ति: ऊपर से नीचे जाने पर धात्विक गुण बढ़ता है और अधात्विक गुण घटता है।
    • धातुओं के ऑक्साइड सामान्यतः क्षारीय होते हैं, जबकि अधातुओं के ऑक्साइड अम्लीय होते हैं। उभयधर्मी ऑक्साइड (जैसे Al₂O₃, ZnO) अम्ल और क्षार दोनों से क्रिया करते हैं।
  • विकर्ण संबंध (Diagonal Relationship):
    • दूसरे आवर्त के कुछ तत्व (Li, Be, B) अपने अगले समूह के तीसरे आवर्त के तत्वों (Mg, Al, Si) के साथ गुणों में समानता दर्शाते हैं। इसे विकर्ण संबंध कहते हैं।
    • कारण: इन तत्वों के आयनिक आकार या आवेश/त्रिज्या अनुपात (आयनिक विभव) लगभग समान होते हैं, तथा विद्युत ऋणात्मकता भी लगभग समान होती है।
    • उदाहरण: Li और Mg में समानता, Be और Al में समानता, B और Si में समानता।
  • द्वितीय आवर्त के तत्वों का असंगत व्यवहार (Anomalous Behavior of Second Period Elements):
    • दूसरे आवर्त के तत्व (Li, Be, B, C, N, O, F) अपने समूह के अन्य सदस्यों से गुणों में भिन्नता दर्शाते हैं।
    • कारण:
      • छोटा परमाणु आकार।
      • उच्च विद्युत ऋणात्मकता।
      • उच्च आयनन एन्थैल्पी।
      • संयोजकता कोश में d-कक्षकों की अनुपस्थिति (अधिकतम संयोजकता 4 हो सकती है)।
      • pπ-pπ बहु-आबंध (multiple bonds) बनाने की प्रबल प्रवृत्ति (जैसे C=C, C≡C, N≡N, O=O)।

अभ्यास हेतु बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs):

प्रश्न 1: आधुनिक आवर्त नियम के अनुसार, तत्वों के गुण आवर्ती फलन होते हैं उनके:
(क) परमाणु भार के
(ख) परमाणु क्रमांक के
(ग) परमाणु त्रिज्या के
(घ) आयनन एन्थैल्पी के

प्रश्न 2: आवर्त सारणी के किसी आवर्त में बाएं से दाएं जाने पर सामान्यतः:
(क) परमाणु त्रिज्या बढ़ती है
(ख) आयनन एन्थैल्पी घटती है
(ग) विद्युत ऋणात्मकता घटती है
(घ) धात्विक गुण घटता है

प्रश्न 3: निम्नलिखित में से किसकी आयनिक त्रिज्या सबसे छोटी होगी?
(क) O²⁻
(ख) F⁻
(ग) Na⁺
(घ) Mg²⁺

प्रश्न 4: किस तत्व की इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी सर्वाधिक ऋणात्मक होती है?
(क) F
(ख) Cl
(ग) Br
(घ) I

प्रश्न 5: समूह 17 के तत्वों (हैलोजन) का सामान्य बाह्य इलेक्ट्रॉनिक विन्यास है:
(क) ns²np⁴
(ख) ns²np⁵
(ग) ns²np⁶
(घ) ns²np³

प्रश्न 6: मेंडेलीफ़ की आवर्त सारणी में 'एका-एलुमिनियम' के लिए बाद में कौन सा तत्व खोजा गया?
(क) सिलिकॉन (Si)
(ख) जर्मेनियम (Ge)
(ग) गैलियम (Ga)
(घ) स्कैंडियम (Sc)

प्रश्न 7: निम्नलिखित में से कौन सा ऑक्साइड उभयधर्मी प्रकृति का है?
(क) Na₂O
(ख) MgO
(ग) Al₂O₃
(घ) Cl₂O₇

प्रश्न 8: द्वितीय आवर्त के तत्वों के अपने समूह के अन्य तत्वों से भिन्न व्यवहार का मुख्य कारण नहीं है:
(क) छोटा आकार
(ख) उच्च विद्युत ऋणात्मकता
(ग) d-कक्षकों की उपस्थिति
(घ) d-कक्षकों की अनुपस्थिति

प्रश्न 9: परमाणु क्रमांक 114 वाले तत्व का IUPAC प्रतीक क्या होगा?
(क) Uub
(ख) Uuq
(ग) Uup
(घ) Uuh

प्रश्न 10: किस युग्म में विकर्ण संबंध पाया जाता है?
(क) Li और Na
(ख) Be और Mg
(ग) B और Al
(घ) Be और Al


उत्तरमाला:

  1. (ख)
  2. (घ)
  3. (घ) (ये सभी समइलेक्ट्रॉनिक हैं, Mg का नाभिकीय आवेश सर्वाधिक है)
  4. (ख)
  5. (ख)
  6. (ग)
  7. (ग)
  8. (ग) (d-कक्षकों की अनुपस्थिति कारण है, उपस्थिति नहीं)
  9. (ख) (1-un, 1-un, 4-quad => Uuq)
  10. (घ)

इन नोट्स को अच्छी तरह समझें और याद करें। आवर्ती प्रवृत्तियों के कारणों और अपवादों पर विशेष ध्यान दें। नियमित अभ्यास से आप इस अध्याय पर अच्छी पकड़ बना सकते हैं। शुभकामनाएँ!

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