Class 11 Chemistry Notes Chapter 4 (Chapter 4) – Examplar Problems (Hindi) Book

नमस्ते विद्यार्थियों!
आज हम रसायन विज्ञान के अध्याय 4, 'रासायनिक आबंधन तथा आण्विक संरचना' का अध्ययन करेंगे। यह अध्याय सरकारी परीक्षाओं की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे रासायनिक यौगिकों की संरचना, उनके गुणों और उनकी अभिक्रियाशीलता को समझने में मदद मिलती है। आइए, इसके मुख्य बिंदुओं को विस्तार से समझें:
अध्याय 4: रासायनिक आबंधन तथा आण्विक संरचना (Chemical Bonding and Molecular Structure)
1. रासायनिक आबंध (Chemical Bond):
- परिभाषा: विभिन्न रासायनिक स्पीशीज (परमाणु, आयन आदि) में उनके संघटक कणों को परस्पर बांधकर रखने वाला आकर्षण बल रासायनिक आबंध कहलाता है।
 - क्यों बनते हैं? परमाणु स्थायित्व प्राप्त करने के लिए (निकटतम उत्कृष्ट गैस विन्यास प्राप्त करके या अष्टक पूर्ण करके) रासायनिक आबंध बनाते हैं। इसे कॉसेल-लूइस अवधारणा (अष्टक नियम) द्वारा समझाया गया।
 - अष्टक नियम (Octet Rule): परमाणु अपने संयोजकता कोश में आठ इलेक्ट्रॉन प्राप्त करने के लिए इलेक्ट्रॉनों का साझा या स्थानांतरण करते हैं।
 - अष्टक नियम के अपवाद:
- इलेक्ट्रॉन न्यून अणु (जैसे LiCl, BeH₂, BCl₃)
 - विषम इलेक्ट्रॉन अणु (जैसे NO, NO₂)
 - प्रसारित अष्टक वाले अणु (जैसे PF₅, SF₆, H₂SO₄)
 
 
2. आबंधों के प्रकार (Types of Bonds):
- 
क) वैद्युत संयोजक या आयनिक आबंध (Ionic Bond):
- निर्माण: एक परमाणु से दूसरे परमाणु में इलेक्ट्रॉनों के पूर्ण स्थानांतरण द्वारा बनता है (सामान्यतः धातु से अधातु में)। इससे धनायन (cation) और ऋणायन (anion) बनते हैं, जो स्थिरवैद्युत आकर्षण बल द्वारा बंधे रहते हैं।
 - उदाहरण: NaCl, MgCl₂, CaO
 - आयनिक आबंध बनने के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ:
- धनायन बनाने वाले परमाणु की निम्न आयनन एन्थैल्पी (Low Ionization Enthalpy)।
 - ऋणायन बनाने वाले परमाणु की उच्च ऋणात्मक इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी (High Negative Electron Gain Enthalpy)।
 - बनने वाले आयनिक यौगिक की उच्च जालक ऊर्जा (High Lattice Energy)।
 
 - गुण: उच्च गलनांक व क्वथनांक, ठोस अवस्था में विद्युत के कुचालक परन्तु गलित अवस्था या जलीय विलयन में सुचालक, जल में विलेय।
 
 - 
ख) सहसंयोजक आबंध (Covalent Bond):
- निर्माण: परमाणुओं के मध्य संयोजकता इलेक्ट्रॉनों की पारस्परिक साझेदारी (sharing) द्वारा बनता है।
 - लूइस संरचनाएं (Lewis Structures): अणुओं में परमाणुओं के बीच आबंधन और एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्मों को दर्शाने का तरीका।
 - एकल, द्वि और त्रि आबंध: क्रमशः एक, दो और तीन इलेक्ट्रॉन युग्मों की साझेदारी। (जैसे H₂, O₂, N₂)
 - औपचारिक आवेश (Formal Charge): किसी अणु/आयन में परमाणु पर कल्पित आवेश, यह मानते हुए कि आबंध के इलेक्ट्रॉन युग्म परमाणुओं के बीच समान रूप से साझा होते हैं।
औपचारिक आवेश = [परमाणु के संयोजी इलेक्ट्रॉनों की संख्या] - [अनाबंधी इलेक्ट्रॉनों की संख्या] - ½ [आबंधी इलेक्ट्रॉनों की संख्या] - गुण: सामान्यतः निम्न गलनांक व क्वथनांक, विद्युत के कुचालक, अध्रुवीय विलायकों में विलेय।
 
 - 
ग) उपसहसंयोजक आबंध (Coordinate Bond):
- यह एक विशेष प्रकार का सहसंयोजक आबंध है जिसमें साझा किया जाने वाला इलेक्ट्रॉन युग्म केवल एक ही परमाणु द्वारा प्रदान किया जाता है, परन्तु साझा दोनों परमाणुओं के मध्य होता है। (जैसे NH₄⁺, H₃O⁺, O₃)
 
 
3. आबंध प्राचल (Bond Parameters):
- आबंध लंबाई (Bond Length): अणु में आबंधित दो परमाणुओं के नाभिकों के बीच की साम्यावस्था दूरी। यह परमाणुओं के आकार और आबंध कोटि पर निर्भर करती है। (त्रि आबंध < द्वि आबंध < एकल आबंध)
 - आबंध कोण (Bond Angle): अणु के केंद्रीय परमाणु के आसपास उपस्थित आबंधी कक्षक युग्मों के मध्य का कोण। यह अणु की ज्यामिति निर्धारित करता है।
 - आबंध एन्थैल्पी (Bond Enthalpy): गैसीय अवस्था में दो परमाणुओं के बीच एक मोल विशिष्ट प्रकार के आबंधों को तोड़ने के लिए आवश्यक ऊर्जा। यह आबंध की प्रबलता का मापक है।
 - आबंध कोटि (Bond Order): दो परमाणुओं के मध्य आबंधों की संख्या। (जैसे N₂ में 3, O₂ में 2, H₂ में 1)
 
4. सहसंयोजक आबंध की ध्रुवणता (Polarity of Covalent Bonds):
- अध्रुवीय सहसंयोजक आबंध: समान परमाणुओं (जैसे H₂, Cl₂, O₂) या लगभग समान विद्युतऋणात्मकता वाले परमाणुओं के बीच बनता है। साझा इलेक्ट्रॉन युग्म ठीक मध्य में रहता है।
 - ध्रुवीय सहसंयोजक आबंध: भिन्न विद्युतऋणात्मकता वाले परमाणुओं (जैसे HCl, H₂O) के बीच बनता है। साझा इलेक्ट्रॉन युग्म अधिक विद्युतऋणात्मक परमाणु की ओर विस्थापित हो जाता है, जिससे आंशिक आवेश उत्पन्न होते हैं (δ⁺ तथा δ⁻)।
 - द्विध्रुव आघूर्ण (Dipole Moment, µ): अणु की ध्रुवणता का मापक। µ = q × d (जहाँ q आवेश है और d आवेशों के बीच की दूरी है)। मात्रक - डिबाई (D)।
- सममित अणुओं (जैसे BeCl₂, BF₃, CCl₄, CO₂) का द्विध्रुव आघूर्ण शून्य होता है, भले ही उनमें ध्रुवीय आबंध हों।
 - असममित अणुओं (जैसे H₂O, NH₃, HCl) का द्विध्रुव आघूर्ण अशून्य होता है।
 
 
5. संयोजकता कोश इलेक्ट्रॉन युग्म प्रतिकर्षण सिद्धांत (VSEPR Theory):
- यह सिद्धांत अणु की ज्यामिति की व्याख्या करता है।
 - मुख्य अभिगृहीत:
- अणु की आकृति केंद्रीय परमाणु के संयोजकता कोश में उपस्थित इलेक्ट्रॉन युग्मों (आबंधी और अनाबंधी) की संख्या पर निर्भर करती है।
 - इलेक्ट्रॉन युग्म एक-दूसरे को प्रतिकर्षित करते हैं और त्रिविम में ऐसी स्थिति में व्यवस्थित होते हैं जहाँ उनके बीच प्रतिकर्षण न्यूनतम हो।
 - प्रतिकर्षण का क्रम: एकाकी युग्म-एकाकी युग्म (lp-lp) > एकाकी युग्म-आबंधी युग्म (lp-bp) > आबंधी युग्म-आबंधी युग्म (bp-bp)।
 - अनाबंधी (एकाकी) युग्मों की उपस्थिति से अणु की आदर्श ज्यामिति विकृत हो जाती है।
 
 - विभिन्न अणुओं की आकृतियाँ (उदाहरण):
- AB₂ (BeCl₂): रैखिक (Linear)
 - AB₃ (BF₃): त्रिकोणीय समतलीय (Trigonal Planar)
 - AB₄ (CH₄): चतुष्फलकीय (Tetrahedral)
 - AB₃E (NH₃): त्रिकोणीय पिरैमिडी (Trigonal Pyramidal)
 - AB₂E₂ (H₂O): बंकित या 'V' आकृति (Bent or V-shape)
 - AB₅ (PCl₅): त्रिकोणीय द्विपिरैमिडी (Trigonal Bipyramidal)
 - AB₆ (SF₆): अष्टफलकीय (Octahedral)
 
 
6. संयोजकता आबंध सिद्धांत (Valence Bond Theory - VBT):
- अवधारणा: सहसंयोजक आबंध परमाणुओं के अर्ध-पूरित संयोजी कक्षकों के अतिव्यापन (overlap) से बनता है। अतिव्यापन जितना अधिक होगा, आबंध उतना ही प्रबल होगा।
 - अतिव्यापन के प्रकार:
- सिग्मा (σ) आबंध: कक्षकों के अक्षीय (अंतर्नाभिकीय अक्ष पर) अतिव्यापन से बनता है (s-s, s-p, p-p अक्षीय)। यह प्रबल आबंध होता है और स्वतंत्र रूप से बन सकता है।
 - पाई (π) आबंध: कक्षकों के पार्श्वीय (sideways) अतिव्यापन से बनता है (p-p पार्श्वीय)। यह दुर्बल आबंध होता है और हमेशा सिग्मा आबंध बनने के बाद ही बनता है।
 
 - संकरण (Hybridization):
- लगभग समान ऊर्जा वाले परमाण्विक कक्षकों के आपस में मिलकर समान ऊर्जा और आकृति वाले नए कक्षकों (संकरित कक्षक) का निर्माण करने की प्रक्रिया।
 - प्रकार एवं ज्यामिति:
- sp: रैखिक (BeCl₂)
 - sp²: त्रिकोणीय समतलीय (BF₃)
 - sp³: चतुष्फलकीय (CH₄, NH₃, H₂O)
 - sp³d: त्रिकोणीय द्विपिरैमिडी (PCl₅)
 - sp³d²: अष्टफलकीय (SF₆)
 
 - संकरण से अणु की ज्यामिति और आबंध कोणों की व्याख्या होती है।
 
 
7. आण्विक कक्षक सिद्धांत (Molecular Orbital Theory - MOT):
- अवधारणा: परमाणु कक्षक आपस में संयोग करके आण्विक कक्षक (Molecular Orbitals - MOs) बनाते हैं। इलेक्ट्रॉन परमाणु कक्षकों के बजाय आण्विक कक्षकों में भरे जाते हैं।
 - LCAO (Linear Combination of Atomic Orbitals): परमाण्विक कक्षकों का रैखिक संयोग।
 - आण्विक कक्षकों के प्रकार:
- आबंधी आण्विक कक्षक (Bonding MO): निम्न ऊर्जा, अधिक स्थायित्व। परमाण्विक कक्षकों के योग (constructive interference) से बनते हैं (जैसे σ, π)।
 - प्रतिआबंधी आण्विक कक्षक (Antibonding MO): उच्च ऊर्जा, कम स्थायित्व। परमाण्विक कक्षकों के अंतर (destructive interference) से बनते हैं (जैसे σ*, π*)।
 
 - ऊर्जा स्तर आरेख: समनाभिकीय द्विपरमाणुक अणुओं (जैसे H₂, N₂, O₂, F₂) के लिए। (N₂ तक और O₂, F₂ के लिए ऊर्जा क्रम में भिन्नता होती है)।
 - आबंध कोटि (Bond Order): Bond Order = ½ [Nb - Na] (जहाँ Nb = आबंधी MOs में इलेक्ट्रॉन, Na = प्रतिआबंधी MOs में इलेक्ट्रॉन)।
- आबंध कोटि > 0: अणु स्थायी, अस्तित्व संभव।
 - आबंध कोटि = 0: अणु अस्थायी, अस्तित्व नहीं।
 - आबंध कोटि अणु के स्थायित्व और आबंध लंबाई के व्युत्क्रमानुपाती होती है।
 
 - चुंबकीय गुण:
- अनुचुंबकीय (Paramagnetic): यदि आण्विक कक्षकों में अयुग्मित इलेक्ट्रॉन हों।
 - प्रतिचुंबकीय (Diamagnetic): यदि सभी इलेक्ट्रॉन युग्मित हों। (MOT, O₂ के अनुचुंबकीय व्यवहार की व्याख्या करता है)।
 
 
8. हाइड्रोजन आबंधन (Hydrogen Bonding):
- परिभाषा: जब हाइड्रोजन परमाणु किसी उच्च विद्युतऋणात्मक परमाणु (जैसे F, O, N) से सहसंयोजक बंध द्वारा जुड़ा हो, तो यह दूसरे अणु के उच्च विद्युतऋणात्मक परमाणु के साथ एक दुर्बल आकर्षण बल स्थापित करता है, जिसे हाइड्रोजन आबंध कहते हैं।
 - प्रकार:
- अंतराआण्विक (Intermolecular): दो या अधिक अणुओं के बीच (जैसे H₂O, HF, NH₃)।
 - अंतःआण्विक (Intramolecular): एक ही अणु के भीतर (जैसे ऑर्थो-नाइट्रोफिनॉल)।
 
 - परिणाम: क्वथनांक एवं गलनांक में वृद्धि, जल में विलेयता, बर्फ का कम घनत्व, DNA की संरचना आदि पर प्रभाव।
 
सरकारी परीक्षाओं हेतु विशेष ध्यान दें:
- VSEPR सिद्धांत द्वारा अणुओं की आकृति ज्ञात करना।
 - संकरण ज्ञात करना और उससे संबंधित ज्यामिति।
 - MOT के आधार पर आबंध कोटि, स्थायित्व और चुंबकीय प्रकृति की व्याख्या (विशेषकर O₂, N₂ और उनके आयनों के लिए)।
 - द्विध्रुव आघूर्ण की तुलना।
 - हाइड्रोजन आबंधन और उसके प्रभाव।
 - अष्टक नियम के अपवाद।
 
यह अध्याय काफी विस्तृत है, इसलिए नियमित अभ्यास और प्रश्नों को हल करना बहुत आवश्यक है।
अभ्यास हेतु बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs):
प्रश्न 1: निम्नलिखित में से किस अणु की आकृति रैखिक है?
(क) SO₂
(ख) BeCl₂
(ग) H₂O
(घ) NH₃
प्रश्न 2: O₂ अणु की आबंध कोटि (Bond Order) कितनी है?
(क) 1
(ख) 2
(ग) 3
(घ) 1.5
प्रश्न 3: निम्नलिखित में से किस अणु का द्विध्रुव आघूर्ण शून्य है?
(क) NH₃
(ख) H₂O
(ग) BF₃
(घ) HCl
प्रश्न 4: PCl₅ अणु में फॉस्फोरस परमाणु का संकरण क्या है?
(क) sp²
(ख) sp³
(ग) sp³d
(घ) sp³d²
प्रश्न 5: आण्विक कक्षक सिद्धांत (MOT) के अनुसार, निम्नलिखित में से कौन अनुचुंबकीय (Paramagnetic) है?
(क) N₂
(ख) O₂
(ग) F₂
(घ) H₂
प्रश्न 6: जल (H₂O) के अणुओं के मध्य किस प्रकार का आबंध उनके उच्च क्वथनांक के लिए उत्तरदायी है?
(क) आयनिक आबंध
(ख) सहसंयोजक आबंध
(ग) हाइड्रोजन आबंध
(घ) उपसहसंयोजक आबंध
प्रश्न 7: Be₂ अणु का अस्तित्व क्यों नहीं होता है?
(क) इसकी आबंध कोटि शून्य होती है।
(ख) इसमें प्रतिआबंधी कक्षकों में इलेक्ट्रॉन नहीं होते हैं।
(ग) यह अष्टक नियम का पालन नहीं करता है।
(घ) इसमें केवल सिग्मा आबंध होते हैं।
प्रश्न 8: निम्नलिखित में से किसमें आबंध कोण न्यूनतम है?
(क) CH₄
(ख) NH₃
(ग) H₂O
(घ) BeCl₂
प्रश्न 9: N₂ अणु में सिग्मा (σ) और पाई (π) आबंधों की संख्या क्रमशः है:
(क) 1, 2
(ख) 2, 1
(ग) 1, 1
(घ) 0, 3
प्रश्न 10: निम्नलिखित में से कौन सा यौगिक अष्टक नियम का अपवाद है (प्रसारित अष्टक)?
(क) CH₄
(ख) NH₃
(ग) SF₆
(घ) H₂O
उत्तर:
- (ख)
 - (ख)
 - (ग)
 - (ग)
 - (ख)
 - (ग)
 - (क)
 - (ग) (एकाकी युग्मों के प्रतिकर्षण के कारण)
 - (क)
 - (ग)
 
इन नोट्स और प्रश्नों का अच्छे से अध्ययन करें। कोई शंका हो तो अवश्य पूछें। शुभकामनाएँ!