Class 11 Economics Notes Chapter 2 (भारतीय अर्थव्यवस्था (1950-90)) – Bharatiya Arthvyavstha ka Vikas Book

प्रिय विद्यार्थियों,
आज हम कक्षा 11 की अर्थशास्त्र की पुस्तक 'भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास' के अध्याय 2 'भारतीय अर्थव्यवस्था (1950-90)' का विस्तृत अध्ययन करेंगे। यह अध्याय सरकारी परीक्षाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह स्वतंत्रता के बाद भारत की आर्थिक नींव और नीतियों को समझने में मदद करता है।
अध्याय 2: भारतीय अर्थव्यवस्था (1950-90)
I. परिचय: स्वतंत्रता के समय की चुनौतियाँ और आर्थिक प्रणाली का चुनाव
भारत को 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता मिली, लेकिन इसके साथ ही देश के सामने गरीबी, असमानता, निम्न कृषि उत्पादकता, अविकसित औद्योगिक आधार और खराब आधारिक संरचना जैसी गंभीर आर्थिक चुनौतियाँ थीं। इन चुनौतियों का सामना करने और देश को विकास के पथ पर ले जाने के लिए एक उपयुक्त आर्थिक प्रणाली का चुनाव करना आवश्यक था।
आर्थिक प्रणालियों के प्रकार:
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पूंजीवादी अर्थव्यवस्था (Capitalist Economy):
- विशेषताएँ: उत्पादन के साधनों पर निजी स्वामित्व, लाभ कमाना मुख्य उद्देश्य, वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन बाजार की शक्तियों (मांग और आपूर्ति) द्वारा निर्धारित, सरकार का न्यूनतम हस्तक्षेप।
- उदाहरण: संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम।
- गुण: नवाचार को बढ़ावा, दक्षता, तीव्र आर्थिक विकास।
- दोष: आय और धन की असमानता, सामाजिक कल्याण की उपेक्षा।
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समाजवादी अर्थव्यवस्था (Socialist Economy):
- विशेषताएँ: उत्पादन के साधनों पर सार्वजनिक (सरकारी) स्वामित्व, सामाजिक कल्याण मुख्य उद्देश्य, वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन केंद्रीय नियोजन प्राधिकरण द्वारा निर्धारित, सरकार का पूर्ण नियंत्रण।
- उदाहरण: सोवियत संघ (पूर्व)।
- गुण: आय की असमानता कम, सामाजिक न्याय, सभी को मूलभूत सुविधाएँ।
- दोष: दक्षता की कमी, नवाचार का अभाव, नौकरशाही।
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मिश्रित अर्थव्यवस्था (Mixed Economy):
- विशेषताएँ: निजी और सार्वजनिक दोनों क्षेत्रों का सह-अस्तित्व, बाजार की शक्तियों और सरकारी नियोजन का मिश्रण, लाभ कमाने के साथ-साथ सामाजिक कल्याण का भी ध्यान।
- भारत का चुनाव: भारत ने पूंजीवाद और समाजवाद के गुणों को अपनाते हुए एक मिश्रित अर्थव्यवस्था का मॉडल चुना। इसका कारण यह था कि भारत को न केवल तीव्र आर्थिक विकास चाहिए था, बल्कि सामाजिक न्याय और समानता भी सुनिश्चित करनी थी।
II. पंचवर्षीय योजनाएँ: विकास का मार्ग
भारत ने आर्थिक विकास के लिए 'योजना' का मार्ग अपनाया। इसके लिए 1950 में योजना आयोग (Planning Commission) की स्थापना की गई, जिसका कार्य पंचवर्षीय योजनाएँ बनाना था।
पंचवर्षीय योजनाओं के सामान्य लक्ष्य:
- विकास (Growth): सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में वृद्धि, जिससे देश में अधिक वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन हो।
- आधुनिकीकरण (Modernisation): नई तकनीक का उपयोग (जैसे कृषि में HYV बीज, उद्योगों में नई मशीनें) और सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव (जैसे लैंगिक समानता)।
- आत्मनिर्भरता (Self-Reliance): आयात पर निर्भरता कम करना, विशेषकर खाद्य उत्पादन और आवश्यक औद्योगिक वस्तुओं में।
- समानता (Equity): आर्थिक विकास के लाभों का समाज के सभी वर्गों तक पहुँच सुनिश्चित करना, आय और धन की असमानता को कम करना, जिससे सभी को मूलभूत आवश्यकताएँ (भोजन, आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य) मिल सकें।
III. कृषि क्षेत्र (Agriculture Sector)
स्वतंत्रता के समय भारतीय कृषि पिछड़ी हुई, मानसून पर अत्यधिक निर्भर और निम्न उत्पादकता वाली थी। सरकार ने इसमें सुधार के लिए कई कदम उठाए:
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भूमि सुधार (Land Reforms):
- उद्देश्य: कृषि में समानता लाना और उत्पादकता बढ़ाना।
- मुख्य उपाय:
- मध्यस्थों का उन्मूलन (जमींदारी प्रथा): जमींदारों को हटाकर भूमि का स्वामित्व सीधे किसानों को दिया गया। इससे लगभग 200 लाख काश्तकार सीधे सरकार के संपर्क में आए।
- जोत की अधिकतम सीमा (Ceiling on Land Holdings): एक व्यक्ति द्वारा धारण की जा सकने वाली भूमि की अधिकतम सीमा तय की गई, ताकि अधिशेष भूमि को भूमिहीन किसानों में वितरित किया जा सके।
- चकबंदी (Consolidation of Land Holdings): किसानों के बिखरे हुए छोटे-छोटे खेतों को एक जगह इकट्ठा करना, ताकि कृषि कार्य अधिक कुशल हो सके।
- काश्तकारी सुधार (Tenancy Reforms): काश्तकारों को बेदखली से सुरक्षा, किराए का नियमन और स्वामित्व का अधिकार देना।
- प्रभाव और सीमाएँ: भूमि सुधारों ने कुछ हद तक समानता लाई, लेकिन अधिकतम सीमा कानून कई राज्यों में प्रभावी ढंग से लागू नहीं हो पाए क्योंकि बड़े भूस्वामियों ने कानूनी खामियों का फायदा उठाया।
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हरित क्रांति (Green Revolution):
- पृष्ठभूमि: 1960 के दशक के मध्य में भारत को गंभीर खाद्य संकट का सामना करना पड़ा।
- परिचय: 1960 के दशक के मध्य में, उच्च उपज देने वाली किस्मों (High Yielding Varieties - HYV) के बीजों, रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों और सुनिश्चित सिंचाई के उपयोग से कृषि उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई। इसे 'हरित क्रांति' कहा गया।
- चरण:
- पहला चरण (1960 के दशक के मध्य से 1970 के दशक के मध्य तक): यह पंजाब, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु जैसे अधिक समृद्ध राज्यों तक सीमित था और मुख्य रूप से गेहूं की फसल पर केंद्रित था।
- दूसरा चरण (1970 के दशक के मध्य से 1980 के दशक के मध्य तक): हरित क्रांति का विस्तार अधिक राज्यों और फसलों (जैसे चावल) तक हुआ।
- लाभ:
- खाद्य आत्मनिर्भरता: भारत खाद्यान्न के आयात पर निर्भरता से मुक्त हुआ और बफर स्टॉक बनाने में सक्षम हुआ।
- किसानों की आय में वृद्धि।
- कृषि क्षेत्र का व्यवसायीकरण।
- समस्याएँ/सीमाएँ:
- क्षेत्रीय असमानता: कुछ ही राज्यों को अधिक लाभ मिला।
- अंतर-किसान असमानता: बड़े किसानों को छोटे किसानों की तुलना में अधिक लाभ हुआ क्योंकि उनके पास आवश्यक इनपुट खरीदने की क्षमता थी।
- पर्यावरणीय प्रभाव: रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग से मिट्टी और जल प्रदूषण, भूजल स्तर में गिरावट जैसी समस्याएँ उत्पन्न हुईं।
- सरकार की भूमिका: सरकार ने किसानों को HYV बीज और उर्वरक खरीदने के लिए ऋण प्रदान किया, न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price - MSP) की घोषणा की ताकि किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य मिल सके, और सब्सिडी प्रदान की।
IV. उद्योग और व्यापार (Industry and Trade)
स्वतंत्रता के समय भारत का औद्योगिक आधार बहुत कमजोर था। सरकार ने औद्योगिक विकास के लिए सार्वजनिक क्षेत्र को केंद्रीय भूमिका दी।
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औद्योगिक नीति संकल्प 1956 (Industrial Policy Resolution 1956):
- यह नीति भारत के औद्योगिक विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर थी।
- मुख्य बिंदु:
- उद्योगों को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया:
- अनुसूची A: 17 उद्योग, जिन पर राज्य का एकाधिकार होगा (जैसे रेलवे, वायु परिवहन, शस्त्र)।
- अनुसूची B: 12 उद्योग, जिनमें राज्य नई इकाइयाँ स्थापित कर सकता है और निजी क्षेत्र भी राज्य के प्रयासों को पूरक कर सकता है (जैसे खनन, मशीन टूल्स)।
- अनुसूची C: शेष उद्योग, जो निजी क्षेत्र के लिए खुले थे, लेकिन उन्हें भी राज्य के नियंत्रण में काम करना था।
- औद्योगिक लाइसेंसिंग: निजी क्षेत्र में कोई भी नया उद्योग स्थापित करने या मौजूदा उद्योग का विस्तार करने के लिए सरकार से लाइसेंस प्राप्त करना अनिवार्य था। इसका उद्देश्य क्षेत्रीय समानता को बढ़ावा देना था।
- सार्वजनिक क्षेत्र का महत्व: इस नीति ने सार्वजनिक क्षेत्र को 'अर्थव्यवस्था का इंजन' घोषित किया, क्योंकि उसके पास भारी निवेश करने और आधारभूत संरचना विकसित करने की क्षमता थी।
- उद्योगों को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया:
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लघु उद्योग (Small Scale Industries - SSI):
- करवे समिति (ग्राम तथा लघु उद्योग समिति, 1955): इस समिति ने ग्रामीण विकास और रोजगार सृजन के लिए लघु उद्योगों के महत्व पर जोर दिया।
- महत्व:
- अधिक रोजगार सृजन (श्रम-गहन तकनीक)।
- आय का अधिक समान वितरण।
- क्षेत्रीय संतुलन को बढ़ावा।
- सुरक्षा: सरकार ने लघु उद्योगों को बड़े उद्योगों की प्रतिस्पर्धा से बचाने के लिए कई वस्तुओं का उत्पादन उनके लिए आरक्षित किया और उन्हें रियायतें (जैसे कम उत्पाद शुल्क, कम ब्याज दर पर ऋण) प्रदान कीं।
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व्यापार नीति (Trade Policy) / आयात प्रतिस्थापन (Import Substitution):
- उद्देश्य: घरेलू उद्योगों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाना और आत्मनिर्भरता प्राप्त करना।
- साधन:
- प्रशुल्क (Tariffs): आयातित वस्तुओं पर भारी कर लगाना, जिससे वे महंगी हो जाएँ और घरेलू उत्पादों की मांग बढ़े।
- कोटा (Quotas): आयात की जा सकने वाली वस्तुओं की मात्रा को सीमित करना।
- प्रभाव:
- घरेलू उद्योगों को संरक्षण मिला और वे विकसित हुए।
- लेकिन, इस नीति ने घरेलू उद्योगों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से दूर रखा, जिससे वे अक्षम और गैर-प्रतिस्पर्धी बन गए। गुणवत्ता में सुधार की प्रेरणा कम हुई।
- उपभोक्ताओं को सीमित विकल्प और उच्च कीमतें झेलनी पड़ीं।
V. निष्कर्ष
1950-90 की अवधि भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण संक्रमण काल था। इस दौरान:
- भारत ने एक मजबूत औद्योगिक आधार और आधारभूत संरचना का निर्माण किया।
- खाद्यान्न में आत्मनिर्भरता प्राप्त की।
- गरीबी उन्मूलन और सामाजिक न्याय के लिए प्रयास किए गए।
- हालांकि, इस अवधि में कुछ कमियाँ भी रहीं, जैसे सार्वजनिक क्षेत्र की अक्षमता, लाइसेंस-परमिट राज, विदेशी प्रतिस्पर्धा का अभाव और कुछ क्षेत्रों में धीमी वृद्धि। इन अनुभवों ने 1991 के आर्थिक सुधारों की नींव रखी।
अभ्यास प्रश्न (MCQs)
यहाँ इस अध्याय पर आधारित 10 बहुविकल्पीय प्रश्न दिए गए हैं, जो आपकी सरकारी परीक्षाओं की तैयारी में सहायक होंगे:
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स्वतंत्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषता क्या थी?
a) विकसित औद्योगिक आधार
b) उच्च कृषि उत्पादकता
c) व्यापक गरीबी और अविकसितता
d) पूर्ण आत्मनिर्भरता -
भारत ने आर्थिक विकास के लिए किस प्रकार की आर्थिक प्रणाली को अपनाया?
a) पूंजीवादी अर्थव्यवस्था
b) समाजवादी अर्थव्यवस्था
c) मिश्रित अर्थव्यवस्था
d) साम्यवादी अर्थव्यवस्था -
योजना आयोग की स्थापना किस वर्ष हुई थी?
a) 1947
b) 1950
c) 1951
d) 1956 -
पंचवर्षीय योजनाओं का मुख्य लक्ष्य क्या था?
a) केवल औद्योगिक विकास
b) केवल कृषि विकास
c) विकास, आधुनिकीकरण, आत्मनिर्भरता और समानता
d) केवल विदेशी व्यापार में वृद्धि -
हरित क्रांति का पहला चरण मुख्य रूप से किस फसल पर केंद्रित था?
a) चावल
b) दालें
c) मक्का
d) गेहूं -
हरित क्रांति के संदर्भ में 'HYV' का पूर्ण रूप क्या है?
a) High Yielding Varieties (उच्च उपज देने वाली किस्में)
b) Heavy Yellow Vegetables (भारी पीली सब्जियाँ)
c) Haryana Yojana Vikas (हरियाणा योजना विकास)
d) High Volume Ventures (उच्च मात्रा के उद्यम) -
औद्योगिक नीति संकल्प 1956 के अनुसार, निजी क्षेत्र में नए उद्योग स्थापित करने या मौजूदा उद्योग का विस्तार करने के लिए क्या अनिवार्य था?
a) विदेशी निवेश
b) औद्योगिक लाइसेंस
c) सार्वजनिक क्षेत्र के साथ साझेदारी
d) केवल बड़े उद्योगों के लिए अनुमति -
करवे समिति (ग्राम तथा लघु उद्योग समिति) का गठन किस वर्ष हुआ था और इसका मुख्य उद्देश्य क्या था?
a) 1950, बड़े उद्योगों को बढ़ावा देना
b) 1955, ग्रामीण विकास और रोजगार सृजन के लिए लघु उद्योगों को बढ़ावा देना
c) 1965, कृषि निर्यात को बढ़ावा देना
d) 1970, विदेशी निवेश को आकर्षित करना -
आयात प्रतिस्थापन की नीति का मुख्य उद्देश्य क्या था?
a) विदेशी व्यापार को बढ़ावा देना
b) घरेलू उद्योगों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाना
c) आयात को बढ़ाना
d) निर्यात पर प्रतिबंध लगाना -
1950-90 की अवधि में भारतीय अर्थव्यवस्था की एक प्रमुख उपलब्धि क्या थी?
a) पूर्ण निजीकरण
b) खाद्यान्न में आत्मनिर्भरता
c) अत्यधिक विदेशी निवेश
d) सभी उद्योगों में विश्वस्तरीय प्रतिस्पर्धा
उत्तरमाला:
- c
- c
- b
- c
- d
- a
- b
- b
- b
- b
मुझे आशा है कि यह विस्तृत नोट्स और अभ्यास प्रश्न आपकी तैयारी में बहुत सहायक होंगे। अपनी पढ़ाई जारी रखें!