Class 11 Economics Notes Chapter 3 (उदारीकरण; निजीकरण और वैश्वीकरणः एक समीक्षा) – Bharatiya Arthvyavstha ka Vikas Book

Bharatiya Arthvyavstha ka Vikas
प्रिय विद्यार्थियों,

आज हम कक्षा 11 की अर्थशास्त्र की पुस्तक 'भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास' के अध्याय 3 'उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरणः एक समीक्षा' का विस्तृत अध्ययन करेंगे। यह अध्याय भारतीय अर्थव्यवस्था में 1991 के बाद आए ऐतिहासिक परिवर्तनों को समझने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है और विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए भी इसका गहन ज्ञान आवश्यक है।


अध्याय 3: उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरणः एक समीक्षा

1. परिचय: सुधारों की पृष्ठभूमि (1991 का संकट)

1991 भारतीय अर्थव्यवस्था के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। इस वर्ष भारत को एक गंभीर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा, जिसने सरकार को एक नई आर्थिक नीति (New Economic Policy - NEP) अपनाने के लिए मजबूर किया। इस नीति के तीन मुख्य स्तंभ थे: उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण।

संकट के कारण:

  • राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit): सरकार का व्यय उसकी आय से बहुत अधिक था। यह मुख्य रूप से रक्षा, सब्सिडी और सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के खराब प्रदर्शन के कारण था। सरकार अपने बढ़ते व्यय को पूरा करने के लिए उधार ले रही थी, जिससे ऋण का बोझ बढ़ रहा था।
  • भुगतान संतुलन संकट (Balance of Payments Crisis): भारत का आयात उसके निर्यात से बहुत अधिक था, जिससे विदेशी मुद्रा का भारी बहिर्प्रवाह हो रहा था। विदेशी मुद्रा भंडार तेजी से घट रहा था।
  • विदेशी मुद्रा भंडार में कमी (Depletion of Foreign Exchange Reserves): स्थिति इतनी गंभीर हो गई थी कि भारत के पास केवल कुछ हफ्तों के आयात के लिए ही विदेशी मुद्रा बची थी। यह किसी भी देश के लिए एक गंभीर संकट होता है।
  • सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों का खराब प्रदर्शन (Poor Performance of Public Sector Undertakings - PSUs): अधिकांश सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम घाटे में चल रहे थे और सरकार पर वित्तीय बोझ बढ़ा रहे थे।
  • मुद्रास्फीति (Inflation): वस्तुओं की कीमतें तेजी से बढ़ रही थीं, जिससे आम जनता के लिए जीवनयापन मुश्किल हो गया था।
  • खाड़ी युद्ध (Gulf War): 1990-91 के खाड़ी युद्ध के कारण कच्चे तेल की कीमतें बढ़ गईं, जिससे भारत का आयात बिल और बढ़ गया तथा विदेशी मुद्रा संकट और गहरा गया।

संकट का समाधान:
इस गंभीर संकट से निपटने के लिए, भारत सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक (World Bank) से ऋण के लिए संपर्क किया। इन अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं ने ऋण देने के लिए कुछ शर्तें रखीं, जिनमें अर्थव्यवस्था को खोलने और संरचनात्मक सुधार करने की मांग शामिल थी। इन्हीं शर्तों के परिणामस्वरूप 1991 में नई आर्थिक नीति की घोषणा की गई।

2. नई आर्थिक नीति (New Economic Policy - NEP) - 1991

नई आर्थिक नीति के तहत दो प्रकार के उपाय किए गए:

  • स्थिरीकरण उपाय (Stabilisation Measures): ये अल्पकालिक उपाय थे जिनका उद्देश्य भुगतान संतुलन में सुधार करना और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना था। इसमें विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाना और राजकोषीय घाटे को कम करना शामिल था।
  • संरचनात्मक सुधार (Structural Reforms): ये दीर्घकालिक उपाय थे जिनका उद्देश्य अर्थव्यवस्था की दक्षता में सुधार करना और उसकी अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाना था। इसमें उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण शामिल थे।

3. उदारीकरण (Liberalisation)

अर्थ: उदारीकरण का अर्थ है सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों और नियंत्रणों में ढील देना, ताकि अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र की भागीदारी और प्रतिस्पर्धा बढ़ सके।

उदारीकरण के अंतर्गत किए गए प्रमुख सुधार:

  • औद्योगिक क्षेत्र का विनियमन समाप्त करना (Deregulating the Industrial Sector):

    • लाइसेंसिंग का अंत: परमाणु ऊर्जा, रक्षा उपकरण, रेल परिवहन और कुछ अन्य रणनीतिक क्षेत्रों को छोड़कर, अधिकांश उद्योगों के लिए लाइसेंसिंग व्यवस्था समाप्त कर दी गई।
    • सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित उद्योगों की संख्या में कमी: सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित उद्योगों की संख्या 17 से घटाकर 8 कर दी गई, और बाद में केवल 3 (परमाणु ऊर्जा, रक्षा उपकरण, रेल परिवहन) रह गई।
    • लघु उद्योगों के लिए आरक्षित वस्तुओं का अनारक्षण: अनेक वस्तुएं जो पहले लघु उद्योगों के लिए आरक्षित थीं, उन्हें अनारक्षित कर दिया गया।
    • उत्पादन क्षमता का विस्तार: उद्योगों को अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए सरकारी अनुमति की आवश्यकता समाप्त कर दी गई।
  • वित्तीय क्षेत्र में सुधार (Financial Sector Reforms):

    • भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की भूमिका में परिवर्तन: RBI की भूमिका नियामक से सुविधाप्रदाता में बदल गई। अब RBI बैंकों को बाजार शक्तियों के अनुसार ब्याज दरें निर्धारित करने की अनुमति देता है।
    • निजी क्षेत्र के बैंकों की स्थापना: निजी क्षेत्र के बैंकों को स्थापित करने की अनुमति दी गई (जैसे ICICI बैंक, HDFC बैंक)।
    • विदेशी संस्थागत निवेशकों (FIIs) को अनुमति: विदेशी संस्थागत निवेशकों (जैसे मर्चेंट बैंक, म्यूचुअल फंड) को भारतीय वित्तीय बाजारों में निवेश करने की अनुमति दी गई।
    • बैंकों को पूंजी बाजार से संसाधन जुटाने की अनुमति: बैंकों को अपनी पूंजी बढ़ाने के लिए शेयर बाजार से धन जुटाने की अनुमति दी गई।
  • राजकोषीय सुधार (Fiscal Reforms):

    • कर सुधार: सरकार ने करों की दरों को कम किया ताकि कर चोरी को हतोत्साहित किया जा सके और कर आधार को बढ़ाया जा सके।
    • प्रत्यक्ष कर (Direct Taxes): व्यक्तियों की आय पर लगने वाले कर (आयकर) और कंपनियों के लाभ पर लगने वाले कर (निगम कर) की दरों को कम किया गया।
    • अप्रत्यक्ष कर (Indirect Taxes): वस्तुओं और सेवाओं पर लगने वाले करों को सरल बनाया गया (जैसे GST बाद में आया)।
  • विदेशी विनिमय सुधार (Foreign Exchange Reforms):

    • रुपये का अवमूल्यन (Devaluation of Rupee): 1991 में भुगतान संतुलन संकट को दूर करने के लिए रुपये का अवमूल्यन किया गया, जिससे निर्यात सस्ता और आयात महंगा हो गया।
    • विनिमय दर का बाजार द्वारा निर्धारण: रुपये की विनिमय दर को बाजार शक्तियों (मांग और आपूर्ति) द्वारा निर्धारित करने की अनुमति दी गई।
  • व्यापार और निवेश नीति सुधार (Trade and Investment Policy Reforms):

    • आयात शुल्क में कमी: आयात शुल्क (टैरिफ) को कम किया गया ताकि आयातित वस्तुओं को सस्ता बनाया जा सके और घरेलू उद्योगों को अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार किया जा सके।
    • मात्रात्मक प्रतिबंधों का अंत: कृषि उत्पादों और औद्योगिक उपभोक्ता वस्तुओं पर से मात्रात्मक प्रतिबंध (कोटा) हटा दिए गए।
    • लाइसेंसिंग व्यवस्था का अंत: आयात के लिए लाइसेंसिंग व्यवस्था को समाप्त किया गया।
    • निर्यात शुल्क में कमी: निर्यात को बढ़ावा देने के लिए निर्यात शुल्क को भी कम किया गया।

4. निजीकरण (Privatisation)

अर्थ: निजीकरण का अर्थ है सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के स्वामित्व या प्रबंधन को निजी क्षेत्र को हस्तांतरित करना।

निजीकरण के अंतर्गत किए गए प्रमुख उपाय:

  • सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों का विनिवेश (Disinvestment of Public Sector Undertakings - PSUs): सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में अपनी इक्विटी (शेयर) निजी क्षेत्र को बेचना शुरू किया। इसका उद्देश्य सरकार के राजस्व को बढ़ाना और सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों की दक्षता में सुधार करना था।
  • सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित उद्योगों की संख्या में कमी: पहले सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित कई उद्योगों को निजी क्षेत्र के लिए खोल दिया गया।
  • नवरत्न, महारत्न और मिनीरत्न का दर्जा: सार्वजनिक क्षेत्र के कुछ कुशल और लाभ कमाने वाले उद्यमों को अधिक स्वायत्तता देने के लिए उन्हें 'नवरत्न', 'महारत्न' और 'मिनीरत्न' का दर्जा दिया गया, ताकि वे वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा कर सकें।

5. वैश्वीकरण (Globalisation)

अर्थ: वैश्वीकरण का अर्थ है विश्व अर्थव्यवस्था के साथ एकीकरण। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्थाएं एक-दूसरे के साथ अधिक से अधिक जुड़ जाती हैं, जिससे वस्तुओं, सेवाओं, पूंजी, प्रौद्योगिकी और श्रम का मुक्त प्रवाह होता है।

वैश्वीकरण के अंतर्गत किए गए प्रमुख उपाय:

  • बाह्य स्रोतीकरण (Outsourcing): यह वैश्वीकरण का एक महत्वपूर्ण परिणाम है। इसमें एक कंपनी किसी बाहरी स्रोत (आमतौर पर दूसरे देश में) से नियमित सेवा प्राप्त करती है, जो पहले आंतरिक रूप से प्रदान की जाती थी।

    • भारत के लिए लाभ: भारत बाह्य स्रोतीकरण के लिए एक आकर्षक गंतव्य बन गया है क्योंकि यहां कम लागत पर कुशल श्रम उपलब्ध है। कॉल सेंटर, बैंकिंग सेवाएं, संगीत रिकॉर्डिंग, चिकित्सा प्रतिलेखन आदि इसके उदाहरण हैं।
  • विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization - WTO):

    • गठन: WTO का गठन 1995 में गेट (General Agreement on Tariffs and Trade - GATT) के उत्तराधिकारी के रूप में हुआ था, जो 1948 में स्थापित हुआ था।
    • उद्देश्य: इसका मुख्य उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को उदार बनाना और व्यापार बाधाओं (टैरिफ और गैर-टैरिफ) को कम करना है।
    • कार्य: यह व्यापार समझौतों को प्रशासित करता है, व्यापार वार्ताओं के लिए एक मंच प्रदान करता है, व्यापार विवादों को हल करता है और राष्ट्रीय व्यापार नीतियों की समीक्षा करता है।
    • भारत की भूमिका: भारत WTO का संस्थापक सदस्य है और व्यापार उदारीकरण का समर्थक रहा है।

6. सुधारों का मूल्यांकन (Appraisal of Reforms)

आर्थिक सुधारों के पक्ष में तर्क (सकारात्मक प्रभाव):

  • जीडीपी वृद्धि (GDP Growth): सुधारों के बाद भारत की सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की वृद्धि दर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
  • विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि (Increase in Foreign Exchange Reserves): विदेशी मुद्रा भंडार में भारी वृद्धि हुई, जिससे देश की आर्थिक स्थिरता बढ़ी।
  • विदेशी निवेश में वृद्धि (Increase in Foreign Investment): प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) और विदेशी संस्थागत निवेश (FII) में वृद्धि हुई।
  • मुद्रास्फीति पर नियंत्रण (Control over Inflation): मुद्रास्फीति की दर को नियंत्रित करने में मदद मिली।
  • निर्यात में वृद्धि (Increase in Exports): निर्यात को बढ़ावा मिला, जिससे भुगतान संतुलन में सुधार हुआ।
  • उपभोक्ता संप्रभुता (Consumer Sovereignty): बाजार में अधिक प्रतिस्पर्धा के कारण उपभोक्ताओं को अधिक विकल्प और बेहतर गुणवत्ता वाले उत्पाद कम कीमतों पर उपलब्ध हुए।
  • सेवा क्षेत्र का विकास: सेवा क्षेत्र, विशेषकर सूचना प्रौद्योगिकी (IT) और संचार, में अभूतपूर्व वृद्धि हुई।

आर्थिक सुधारों के विपक्ष में तर्क (नकारात्मक प्रभाव/आलोचना):

  • कृषि क्षेत्र की उपेक्षा (Neglect of Agriculture): सुधारों का लाभ कृषि क्षेत्र तक पर्याप्त रूप से नहीं पहुंचा। कृषि में सार्वजनिक निवेश में कमी आई, जिससे किसानों को ऋण संकट, आधारभूत संरचना की कमी और बाजार तक पहुंच की समस्या का सामना करना पड़ा।
  • औद्योगिक क्षेत्र पर प्रभाव (Impact on Industrial Sector):
    • घरेलू उद्योगों पर प्रतिस्पर्धा का दबाव: आयात शुल्क में कमी और मात्रात्मक प्रतिबंधों को हटाने से घरेलू उद्योगों को अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा, जिससे कुछ छोटे उद्योग बंद हो गए।
    • आधारभूत संरचना का अभाव: बिजली, सड़क, बंदरगाह जैसे आधारभूत संरचना के अभाव ने औद्योगिक विकास को बाधित किया।
  • रोजगार विहीन संवृद्धि (Jobless Growth): जीडीपी वृद्धि दर ऊंची रही, लेकिन रोजगार सृजन की दर धीमी रही, जिससे बेरोजगारी की समस्या बनी रही।
  • आय असमानता में वृद्धि (Increase in Income Inequality): सुधारों का लाभ समाज के सभी वर्गों तक समान रूप से नहीं पहुंचा, जिससे अमीर और गरीब के बीच की खाई बढ़ी।
  • सार्वजनिक व्यय में कमी (Reduction in Public Expenditure): सरकार ने राजकोषीय घाटे को कम करने के लिए सामाजिक क्षेत्रों (शिक्षा, स्वास्थ्य) पर सार्वजनिक व्यय में कटौती की, जिससे इन क्षेत्रों की गुणवत्ता प्रभावित हुई।
  • संस्कृति पर प्रभाव (Impact on Culture): वैश्वीकरण के कारण पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव बढ़ा, जिससे कुछ लोग भारतीय संस्कृति के क्षरण की आशंका व्यक्त करते हैं।
  • पर्यावरण पर प्रभाव: तीव्र औद्योगिक विकास और उपभोग के पैटर्न में बदलाव ने पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव डाला है।

7. निष्कर्ष

1991 के आर्थिक सुधार भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ थे। उन्होंने अर्थव्यवस्था को संकट से बाहर निकाला और उच्च विकास दर हासिल करने में मदद की। हालांकि, इन सुधारों के कुछ नकारात्मक परिणाम भी रहे हैं, विशेषकर कृषि क्षेत्र की उपेक्षा, रोजगार विहीन संवृद्धि और बढ़ती असमानता। भविष्य की नीतियों को इन कमियों को दूर करने और समावेशी एवं सतत विकास सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।


बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs)

निर्देश: सही उत्तर का चयन करें।

  1. भारत में नई आर्थिक नीति (NEP) किस वर्ष लागू की गई थी?
    a) 1981
    b) 1991
    c) 2001
    d) 1971

  2. 1991 के आर्थिक संकट का एक प्रमुख कारण क्या था?
    a) उच्च कृषि उत्पादन
    b) विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि
    c) राजकोषीय घाटा और भुगतान संतुलन संकट
    d) सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों का उत्कृष्ट प्रदर्शन

  3. निम्न में से कौन उदारीकरण का एक घटक नहीं है?
    a) औद्योगिक लाइसेंसिंग का अंत
    b) आयात शुल्क में वृद्धि
    c) वित्तीय क्षेत्र में सुधार
    d) विदेशी विनिमय सुधार

  4. निजीकरण का मुख्य उद्देश्य क्या है?
    a) सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों का राष्ट्रीयकरण करना
    b) सरकार के राजस्व को बढ़ाना और सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों की दक्षता में सुधार करना
    c) केवल विदेशी कंपनियों को बढ़ावा देना
    d) केवल कृषि क्षेत्र को विकसित करना

  5. विश्व व्यापार संगठन (WTO) का गठन किस वर्ष हुआ था?
    a) 1948
    b) 1971
    c) 1995
    d) 2001

  6. बाह्य स्रोतीकरण (Outsourcing) किसका परिणाम है?
    a) निजीकरण
    b) उदारीकरण
    c) वैश्वीकरण
    d) विमुद्रीकरण

  7. 1991 में रुपये का अवमूल्यन (Devaluation) क्यों किया गया था?
    a) आयात को बढ़ावा देने के लिए
    b) निर्यात को बढ़ावा देने के लिए
    c) विदेशी मुद्रा भंडार को कम करने के लिए
    d) घरेलू मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए

  8. नई आर्थिक नीति की एक आलोचना क्या है?
    a) उच्च जीडीपी वृद्धि
    b) विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि
    c) कृषि क्षेत्र की उपेक्षा और रोजगार विहीन संवृद्धि
    d) उपभोक्ता संप्रभुता में वृद्धि

  9. भारत में 'नवरत्न' नीति का संबंध किससे है?
    a) कृषि क्षेत्र के विकास से
    b) सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों को अधिक स्वायत्तता देने से
    c) शिक्षा क्षेत्र में सुधार से
    d) स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण से

  10. 1991 के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था में RBI की भूमिका में क्या परिवर्तन आया?
    a) नियामक से सुविधाप्रदाता
    b) सुविधाप्रदाता से नियामक
    c) केवल सरकारी बैंकों का प्रबंधन
    d) केवल विदेशी मुद्रा का प्रबंधन


उत्तर कुंजी:

  1. b) 1991
  2. c) राजकोषीय घाटा और भुगतान संतुलन संकट
  3. b) आयात शुल्क में वृद्धि (वास्तव में, आयात शुल्क में कमी की गई थी)
  4. b) सरकार के राजस्व को बढ़ाना और सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों की दक्षता में सुधार करना
  5. c) 1995
  6. c) वैश्वीकरण
  7. b) निर्यात को बढ़ावा देने के लिए
  8. c) कृषि क्षेत्र की उपेक्षा और रोजगार विहीन संवृद्धि
  9. b) सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों को अधिक स्वायत्तता देने से
  10. a) नियामक से सुविधाप्रदाता

मुझे आशा है कि ये विस्तृत नोट्स और बहुविकल्पीय प्रश्न आपको इस अध्याय को गहराई से समझने और सरकारी परीक्षाओं की तैयारी में मदद करेंगे। अपनी पढ़ाई जारी रखें और किसी भी संदेह के लिए पूछने में संकोच न करें।

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