Class 11 Economics Notes Chapter 4 (निर्धनता) – Bharatiya Arthvyavstha ka Vikas Book

प्रिय विद्यार्थियों,
आज हम कक्षा 11 की अर्थशास्त्र की पुस्तक 'भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास' के अध्याय 4 'निर्धनता' का विस्तृत अध्ययन करेंगे। यह अध्याय सरकारी परीक्षाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह भारत की एक मूलभूत चुनौती और उसके समाधान के प्रयासों को उजागर करता है। इन नोट्स को ध्यानपूर्वक समझें और आत्मसात करें।
अध्याय 4: निर्धनता (Poverty)
1. परिचय
निर्धनता एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति अपनी मूलभूत आवश्यकताओं (भोजन, वस्त्र, आवास, शिक्षा और स्वास्थ्य) को पूरा करने में असमर्थ होता है। यह केवल आय की कमी नहीं, बल्कि भोजन, स्वास्थ्य सेवाओं, शिक्षा, स्वच्छ जल और स्वच्छता तक पहुंच की कमी, असुरक्षा, सामाजिक अपवर्जन और निर्णय लेने की शक्ति के अभाव जैसी बहुआयामी अवधारणा है।
2. निर्धनता की पहचान
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स्वतंत्रता से पूर्व:
- दादाभाई नौरोजी का 'जेल की लागत' सिद्धांत: इन्होंने 19वीं शताब्दी के अंत में निर्धनता रेखा का अनुमान लगाने का प्रयास किया था। उन्होंने एक जेल में कैदियों को दिए जाने वाले न्यूनतम भोजन की लागत को आधार बनाया और इसे औसत निर्धनता रेखा के रूप में उपयोग किया। उन्होंने बच्चों के लिए इस लागत को समायोजित किया (वयस्कों के लिए पूर्ण लागत, बच्चों के लिए आधी)।
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स्वतंत्रता के पश्चात्:
- योजना आयोग (अब नीति आयोग): भारत में निर्धनता की पहचान और उसके अनुमान के लिए विभिन्न कार्यदल (Task Force) और विशेषज्ञ समूह (Expert Groups) गठित किए गए।
- निर्धनता रेखा (Poverty Line): यह आय या उपभोग के उस न्यूनतम स्तर को संदर्भित करती है जो किसी व्यक्ति को अपनी मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आवश्यक है।
- कैलोरी आधारित मानदंड: स्वतंत्रता के बाद शुरुआती अनुमानों में भोजन की न्यूनतम कैलोरी आवश्यकता को आधार बनाया गया।
- ग्रामीण क्षेत्रों के लिए: प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 2400 कैलोरी।
- शहरी क्षेत्रों के लिए: प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 2100 कैलोरी।
- ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक कैलोरी की आवश्यकता मानी गई क्योंकि वहां लोग शारीरिक श्रम अधिक करते हैं।
- मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय (MPCE): बाद में, कैलोरी मानदंड के साथ-साथ मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय को भी निर्धनता रेखा का आधार बनाया गया।
- सुरेश तेंदुलकर समिति (2011-12 के लिए):
- ग्रामीण क्षेत्रों के लिए: ₹816 प्रति माह प्रति व्यक्ति।
- शहरी क्षेत्रों के लिए: ₹1000 प्रति माह प्रति व्यक्ति।
- इस समिति के अनुसार, 2011-12 में भारत में निर्धनता अनुपात 21.9% था (ग्रामीण 25.7%, शहरी 13.7%)।
- यह समिति स्वास्थ्य और शिक्षा पर होने वाले व्यय को भी निर्धनता रेखा के निर्धारण में शामिल करती है।
- रंगराजन समिति (2014):
- ग्रामीण क्षेत्रों के लिए: ₹972 प्रति माह प्रति व्यक्ति।
- शहरी क्षेत्रों के लिए: ₹1407 प्रति माह प्रति व्यक्ति।
- इस समिति के अनुसार, 2011-12 में भारत में निर्धनता अनुपात 29.5% था।
- नोट: NCERT कक्षा 11 की पुस्तक मुख्यतः तेंदुलकर समिति के 21.9% आंकड़े का उल्लेख करती है।
- सुरेश तेंदुलकर समिति (2011-12 के लिए):
- कैलोरी आधारित मानदंड: स्वतंत्रता के बाद शुरुआती अनुमानों में भोजन की न्यूनतम कैलोरी आवश्यकता को आधार बनाया गया।
3. निर्धनता का वर्गीकरण
- चिरकालिक निर्धन (Chronic Poor): वे लोग जो हमेशा निर्धन रहते हैं (जैसे निर्धन) या जो अक्सर निर्धन होते हैं (जैसे अल्पकालिक निर्धन)।
- अल्पकालिक निर्धन (Transient Poor): वे लोग जो निर्धनता रेखा के ऊपर और नीचे आते-जाते रहते हैं (जैसे मौसमी मजदूर) या जो कभी-कभार निर्धन होते हैं।
- गैर-निर्धन (Non-Poor): वे लोग जो कभी निर्धन नहीं होते।
4. निर्धनता के संकेतक
- सामाजिक अपवर्जन (Social Exclusion): यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके तहत व्यक्तियों या समूहों को उन सुविधाओं, लाभों और अवसरों से वंचित रखा जाता है जिनका उपभोग समाज के अन्य लोग करते हैं। उदाहरण के लिए, जातिगत भेदभाव या धार्मिक आधार पर बहिष्कार।
- असुरक्षा (Vulnerability): यह निर्धनता में बने रहने या निर्धन बनने की अधिक संभावना को संदर्भित करता है। यह प्राकृतिक आपदाओं, बीमारी, बेरोजगारी आदि जैसी स्थितियों के प्रति अधिक संवेदनशीलता से जुड़ा है।
- निरपेक्ष निर्धनता (Absolute Poverty): यह निर्धनता रेखा के नीचे रहने वाले लोगों की संख्या को संदर्भित करती है और मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थता पर केंद्रित है।
- सापेक्ष निर्धनता (Relative Poverty): यह विभिन्न आय समूहों या देशों के बीच आय की असमानताओं को संदर्भित करती है।
5. भारत में निर्धनता के कारण
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ऐतिहासिक कारण:
- ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन: ब्रिटिश नीतियों ने भारत के पारंपरिक हस्तशिल्प उद्योगों को नष्ट कर दिया, कृषि को पिछड़ा बना दिया और भारतीय संसाधनों का शोषण किया, जिससे बड़े पैमाने पर निर्धनता फैली।
- कम आर्थिक विकास: स्वतंत्रता के बाद भी, शुरुआती दशकों में आर्थिक विकास दर धीमी रही, जो जनसंख्या वृद्धि दर से मेल नहीं खा पाई।
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आर्थिक कारण:
- जनसंख्या का तीव्र विकास: संसाधनों पर दबाव बढ़ा और प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि बाधित हुई।
- आय की असमानता: भूमि, पूंजी और अन्य संसाधनों का असमान वितरण।
- बेरोजगारी और अल्प-रोजगार: विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में और कृषि क्षेत्र में प्रच्छन्न बेरोजगारी।
- मुद्रास्फीति (महंगाई): आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती कीमतें निर्धनों की क्रय शक्ति को कम करती हैं।
- कृषि पर अत्यधिक निर्भरता: कृषि क्षेत्र में उत्पादकता कम होना और मौसमी बेरोजगारी।
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सामाजिक कारण:
- सामाजिक-सांस्कृतिक कारक: जाति व्यवस्था, लैंगिक असमानता और धार्मिक भेदभाव ने कुछ समूहों को अवसरों से वंचित रखा।
- निरक्षरता और कौशल की कमी: शिक्षा और कौशल के अभाव में बेहतर रोजगार के अवसर नहीं मिलते।
- स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव: बीमारियों के कारण कार्य क्षमता में कमी और इलाज पर अत्यधिक व्यय।
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संस्थागत कारण:
- भूमि सुधारों की विफलता: भूमि का असमान वितरण बना रहा, जिससे छोटे और सीमांत किसानों की स्थिति खराब हुई।
- ऋण उपलब्धता का अभाव: निर्धन व्यक्तियों को संस्थागत ऋण आसानी से नहीं मिलता, जिससे वे साहूकारों के शोषण का शिकार होते हैं।
6. निर्धनता-विरोधी कार्यक्रम
भारत सरकार ने निर्धनता उन्मूलन के लिए तीन आयामी दृष्टिकोण अपनाया है:
- आर्थिक संवृद्धि को बढ़ावा: उच्च आर्थिक विकास दर के माध्यम से रोजगार के अवसर पैदा करना और आय बढ़ाना।
- निर्धनता-विरोधी विशिष्ट कार्यक्रम: निर्धनता को सीधे लक्षित करने वाले कार्यक्रम।
- निर्धनों को न्यूनतम आधारभूत सुविधाएँ उपलब्ध कराना: शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण, आवास और स्वच्छता जैसी मूलभूत सेवाओं तक पहुंच सुनिश्चित करना।
प्रमुख निर्धनता-विरोधी कार्यक्रम:
- एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम (IRDP) - 1978-79: ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धन परिवारों को स्वरोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए ऋण और सब्सिडी देना।
- स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना (SGSY) - 1999: IRDP और अन्य कार्यक्रमों को मिलाकर शुरू की गई। इसका उद्देश्य ग्रामीण निर्धनों को स्वयं सहायता समूहों (SHGs) में संगठित कर स्वरोजगार के अवसर प्रदान करना था। (अब इसे राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन - NRLM में पुनर्गठित किया गया है)।
- स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना (SJSRY) - 1997: शहरी निर्धनों को स्वरोजगार और मजदूरी रोजगार के अवसर प्रदान करना। (अब इसे राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन - NULM में पुनर्गठित किया गया है)।
- प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना (PMGY) - 2000: राज्यों को ग्रामीण आवास, ग्रामीण सड़कों, ग्रामीण पेयजल, ग्रामीण स्वास्थ्य और प्राथमिक शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए अतिरिक्त केंद्रीय सहायता प्रदान करना।
- संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना (SGRY) - 2001: ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनों को पूरक मजदूरी रोजगार और खाद्य सुरक्षा प्रदान करना। (बाद में MGNREGA में विलय)।
- राष्ट्रीय काम के बदले अनाज कार्यक्रम (National Food for Work Programme) - 2004: देश के सबसे पिछड़े जिलों में मजदूरी रोजगार के बदले अनाज देना। (बाद में MGNREGA में विलय)।
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) - 2005: ग्रामीण क्षेत्रों में प्रत्येक परिवार को एक वित्तीय वर्ष में कम से कम 100 दिनों के गारंटीशुदा मजदूरी रोजगार का प्रावधान, जिसमें अकुशल शारीरिक श्रम शामिल हो। इसका उद्देश्य ग्रामीण आजीविका सुरक्षा बढ़ाना है।
- प्रधानमंत्री जन-धन योजना (PMJDY) - 2014: वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देना, जिसमें सभी परिवारों को बैंक खाते, बीमा और ऋण तक पहुंच प्रदान करना शामिल है।
- प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) - 2015: शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में सभी के लिए किफायती आवास उपलब्ध कराना।
- प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (PMGKY) - 2016: निर्धनता कम करने और आय असमानता को दूर करने के लिए विभिन्न कल्याणकारी उपाय। (कोविड-19 के दौरान प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत मुफ्त अनाज वितरण)।
- राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (NSAP) - 1995: निर्धन वृद्धों, विधवाओं और विकलांग व्यक्तियों को सामाजिक पेंशन प्रदान करना।
- अंत्योदय अन्न योजना (AAY) - 2000: लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (TPDS) के तहत सबसे निर्धन परिवारों को अत्यधिक रियायती दरों पर खाद्यान्न उपलब्ध कराना।
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS): रियायती दरों पर आवश्यक वस्तुओं (खाद्यान्न, चीनी, मिट्टी का तेल) का वितरण।
- प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) - 2015: युवाओं को कौशल प्रशिक्षण प्रदान कर रोजगार योग्य बनाना।
7. निर्धनता-विरोधी कार्यक्रमों की आलोचना/चुनौतियाँ
- संसाधनों का अपर्याप्त आवंटन: निर्धनता उन्मूलन के लिए आवंटित धन अक्सर आवश्यकता से कम होता है।
- कार्यान्वयन की अक्षमता: कार्यक्रमों का प्रभावी ढंग से क्रियान्वयन नहीं हो पाता।
- लक्षित समूह तक पहुँच का अभाव: वास्तविक निर्धन व्यक्ति अक्सर इन योजनाओं के लाभ से वंचित रह जाते हैं।
- भ्रष्टाचार: योजनाओं के कार्यान्वयन में भ्रष्टाचार एक बड़ी बाधा है, जिससे धन का रिसाव होता है।
- जागरूकता का अभाव: निर्धन लोगों को अक्सर अपने अधिकारों और उपलब्ध योजनाओं की जानकारी नहीं होती।
- आधारभूत संरचना का अभाव: दूरदराज के क्षेत्रों में सुविधाओं और पहुंच की कमी।
- गैर-भागीदारी: स्थानीय समुदायों की भागीदारी का अभाव।
8. निष्कर्ष
भारत में निर्धनता एक जटिल और बहुआयामी समस्या है। हालांकि निर्धनता अनुपात में कमी आई है, फिर भी एक बड़ी आबादी निर्धनता रेखा के नीचे जीवन यापन कर रही है। निर्धनता उन्मूलन के लिए केवल आर्थिक विकास ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि समावेशी विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य, कौशल विकास, सामाजिक सुरक्षा और प्रभावी शासन जैसे क्षेत्रों में भी निरंतर प्रयासों की आवश्यकता है।
बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs)
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दादाभाई नौरोजी द्वारा निर्धनता रेखा का अनुमान लगाने के लिए किस अवधारणा का उपयोग किया गया था?
a) न्यूनतम मजदूरी सिद्धांत
b) जेल की लागत सिद्धांत
c) कैलोरी आवश्यकता सिद्धांत
d) जीवन स्तर सिद्धांत -
सुरेश तेंदुलकर समिति के अनुसार, 2011-12 में भारत में निर्धनता अनुपात कितना था?
a) 37.2%
b) 29.5%
c) 21.9%
d) 14.9% -
ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन कितनी कैलोरी आवश्यकता को निर्धनता रेखा का आधार माना गया था?
a) 2100 कैलोरी
b) 2200 कैलोरी
c) 2400 कैलोरी
d) 2500 कैलोरी -
निम्न में से कौन सा कार्यक्रम 2005 में शुरू किया गया था और ग्रामीण क्षेत्रों में 100 दिनों के रोजगार की गारंटी देता है?
a) स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना
b) प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना
c) महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम
d) अंत्योदय अन्न योजना -
'सामाजिक अपवर्जन' की अवधारणा का क्या अर्थ है?
a) समाज से अलग रहना
b) समाज के अन्य लोगों द्वारा उपभोग की जाने वाली सुविधाओं और अवसरों से वंचित रहना
c) सामाजिक गतिविधियों में भाग न लेना
d) समाज के नियमों का पालन न करना -
निम्न में से कौन सा निर्धनता का एक ऐतिहासिक कारण है?
a) जनसंख्या वृद्धि
b) ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन
c) आय की असमानता
d) भूमि सुधारों की विफलता -
वह स्थिति जिसमें व्यक्ति निर्धनता रेखा के ऊपर और नीचे आता-जाता रहता है, क्या कहलाती है?
a) चिरकालिक निर्धनता
b) अल्पकालिक निर्धनता
c) गैर-निर्धनता
d) सापेक्ष निर्धनता -
प्रधानमंत्री जन-धन योजना का मुख्य उद्देश्य क्या है?
a) ग्रामीण क्षेत्रों में आवास उपलब्ध कराना
b) वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देना
c) कौशल विकास प्रशिक्षण प्रदान करना
d) मुफ्त खाद्यान्न वितरण -
अंत्योदय अन्न योजना (AAY) का संबंध किससे है?
a) वृद्ध व्यक्तियों को पेंशन
b) सबसे निर्धन परिवारों को रियायती खाद्यान्न
c) ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजन
d) शहरी क्षेत्रों में स्वरोजगार -
रंगराजन समिति (2014) के अनुसार, 2011-12 में शहरी क्षेत्रों के लिए मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय (MPCE) कितना निर्धारित किया गया था?
a) ₹816
b) ₹1000
c) ₹972
d) ₹1407
उत्तर कुंजी:
- b) जेल की लागत सिद्धांत
- c) 21.9%
- c) 2400 कैलोरी
- c) महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम
- b) समाज के अन्य लोगों द्वारा उपभोग की जाने वाली सुविधाओं और अवसरों से वंचित रहना
- b) ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन
- b) अल्पकालिक निर्धनता
- b) वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देना
- b) सबसे निर्धन परिवारों को रियायती खाद्यान्न
- d) ₹1407
मुझे आशा है कि ये विस्तृत नोट्स और बहुविकल्पीय प्रश्न आपको इस अध्याय को गहराई से समझने और सरकारी परीक्षाओं की तैयारी में मदद करेंगे। अपनी पढ़ाई जारी रखें!