Class 11 Economics Notes Chapter 6 (ग्रामीण विकास) – Bharatiya Arthvyavstha ka Vikas Book

Bharatiya Arthvyavstha ka Vikas
प्रिय विद्यार्थियों,

आज हम कक्षा 11 की अर्थशास्त्र की पुस्तक 'भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास' के अध्याय 6 'ग्रामीण विकास' का विस्तृत अध्ययन करेंगे। यह अध्याय सरकारी परीक्षाओं की तैयारी के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था की नींव और उसकी चुनौतियों व समाधानों को गहराई से समझाता है।


अध्याय 6: ग्रामीण विकास

I. परिचय

  • ग्रामीण विकास का अर्थ: ग्रामीण विकास एक व्यापक शब्द है जो ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के जीवन स्तर और आर्थिक कल्याण में सुधार लाने के लिए किए गए प्रयासों को संदर्भित करता है। इसमें कृषि, गैर-कृषि गतिविधियों, मानव संसाधन, बुनियादी ढाँचा और गरीबी उन्मूलन जैसे विभिन्न पहलू शामिल हैं।
  • भारत में ग्रामीण विकास का महत्व:
    • भारत की लगभग दो-तिहाई (लगभग 65%) आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है (जनगणना 2011 के अनुसार)।
    • ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि प्रमुख आजीविका का स्रोत है।
    • ग्रामीण विकास देश के समग्र आर्थिक विकास और समावेशी वृद्धि के लिए आवश्यक है।

II. ग्रामीण विकास के मुख्य आयाम
ग्रामीण विकास के प्रमुख आयाम निम्नलिखित हैं:

  1. मानव संसाधनों का विकास:

    • साक्षरता का प्रसार (विशेषकर महिला साक्षरता)।
    • शिक्षा और कौशल विकास कार्यक्रमों का विस्तार।
    • स्वास्थ्य, स्वच्छता और जन स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार।
  2. उत्पादक संसाधनों का विकास:

    • भूमि सुधार: भूमि का पुनर्वितरण, चकबंदी, काश्तकारी सुधार।
    • लघु सिंचाई: छोटे पैमाने की सिंचाई परियोजनाओं का विकास।
    • कृषि ऋण: किसानों को समय पर और पर्याप्त ऋण की उपलब्धता।
    • विपणन व्यवस्था: कृषि उत्पादों के लिए कुशल विपणन प्रणाली।
  3. बुनियादी ढाँचे का विकास:

    • बिजली और सिंचाई।
    • सड़कें, बाजार और रेलवे।
    • भंडारण सुविधाएँ (गोदाम, शीत गृह)।
    • संचार सुविधाएँ (टेलीफोन, इंटरनेट)।
    • बैंकिंग और बीमा सुविधाएँ।
  4. गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम: ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी कम करने के लिए विभिन्न सरकारी योजनाएँ और स्वयं सहायता समूहों (SHGs) को बढ़ावा देना।

III. ग्रामीण साख (Rural Credit)
ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों और अन्य उद्यमियों को अपनी उत्पादक गतिविधियों के लिए पूंजी की आवश्यकता होती है।

  • ग्रामीण साख की आवश्यकता:

    • बुवाई से कटाई तक की अवधि के लिए कार्यशील पूंजी।
    • कृषि मशीनरी, उपकरण, सिंचाई सुविधाओं जैसी पूंजीगत वस्तुओं के लिए निवेश।
    • गैर-कृषि गतिविधियों के लिए वित्त।
  • ग्रामीण साख के स्रोत:

    • गैर-संस्थागत स्रोत:
      • महाजन और साहूकार (उच्च ब्याज दरें, शोषणकारी प्रथाएँ)।
      • व्यापारी और कमीशन एजेंट।
      • जमींदार और धनी किसान।
      • रिश्तेदार और मित्र।
      • चुनौती: ये स्रोत अक्सर किसानों का शोषण करते हैं।
    • संस्थागत स्रोत (सरकार द्वारा समर्थित):
      • सहकारी साख समितियाँ: ग्रामीण क्षेत्रों में सबसे पुराने संस्थागत स्रोत। ये अल्पकालिक और मध्यकालिक ऋण प्रदान करती हैं।
      • वाणिज्यिक बैंक: 1969 में बैंकों के राष्ट्रीयकरण के बाद ग्रामीण साख में इनकी भूमिका बढ़ी।
      • क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (RRBs): 1975 में स्थापित, इनका उद्देश्य छोटे और सीमांत किसानों, कृषि मजदूरों और ग्रामीण कारीगरों की साख आवश्यकताओं को पूरा करना है।
      • भूमि विकास बैंक: ये किसानों को भूमि सुधार और विकास के लिए दीर्घकालिक ऋण प्रदान करते हैं।
      • राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (NABARD):
        • स्थापना: 12 जुलाई 1982 को शिवरामन समिति की सिफारिशों पर।
        • कार्य: यह ग्रामीण साख के लिए एक शीर्षस्थ संस्था है। यह अन्य ग्रामीण वित्तीय संस्थाओं (जैसे सहकारी बैंक, RRBs) को पुनर्वित्त प्रदान करता है, उनकी निगरानी करता है और ग्रामीण विकास को बढ़ावा देता है।
        • यह ग्रामीण विकास से संबंधित अनुसंधान और विकास गतिविधियों को भी बढ़ावा देता है।
  • संस्थागत साख की चुनौतियाँ:

    • छोटे और सीमांत किसानों तक पहुँच की कमी।
    • ऋण चुकाने में देरी या चूक।
    • प्रक्रियात्मक जटिलताएँ।
    • पर्याप्त संपार्श्विक (गिरवी रखने के लिए संपत्ति) का अभाव।

IV. कृषि विपणन (Agricultural Marketing)
कृषि विपणन वह प्रक्रिया है जिसमें कृषि उत्पादों को खेत से लेकर उपभोक्ता तक पहुँचाने के लिए की जाने वाली सभी गतिविधियाँ शामिल हैं। इसमें कटाई के बाद प्रसंस्करण, परिवहन, भंडारण, श्रेणीकरण, पैकेजिंग और वितरण शामिल है।

  • कृषि विपणन की समस्याएँ:

    • भंडारण सुविधाओं का अभाव: किसानों को फसल कटाई के तुरंत बाद उत्पाद बेचना पड़ता है, जिससे कम दाम मिलते हैं।
    • परिवहन सुविधाओं की कमी: ग्रामीण क्षेत्रों में खराब सड़कें और अपर्याप्त परिवहन साधन।
    • सूचना का अभाव: किसानों को बाजार की कीमतों और रुझानों की सही जानकारी नहीं होती।
    • बिचौलियों का प्रभुत्व: बिचौलिए किसानों से कम दाम पर खरीदकर उपभोक्ताओं को ऊँचे दाम पर बेचते हैं, जिससे किसानों को उनके उत्पाद का उचित मूल्य नहीं मिल पाता।
    • मापतौल में अनियमितताएँ: धोखाधड़ी और अनुचित व्यापार प्रथाएँ।
    • वित्त की कमी: किसानों को विपणन के लिए आवश्यक पूंजी नहीं मिल पाती।
  • कृषि विपणन में सुधार के उपाय:

    • सरकारी हस्तक्षेप:
      • नियमित मंडियाँ (APMC): सरकार द्वारा विनियमित बाजार जहाँ किसानों को अपने उत्पाद बेचने के लिए एक मंच मिलता है।
      • भंडारण सुविधाओं का प्रावधान: भारतीय खाद्य निगम (FCI) द्वारा गोदामों और शीत गृहों का निर्माण।
      • सहकारी विपणन समितियाँ: किसानों को सामूहिक रूप से अपने उत्पाद बेचने में मदद करती हैं, जिससे बिचौलियों की भूमिका कम होती है।
      • न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) नीति: सरकार प्रमुख फसलों के लिए एक न्यूनतम मूल्य घोषित करती है ताकि किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य मिल सके।
      • सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS): सरकार द्वारा गरीबों को रियायती दरों पर खाद्य पदार्थ उपलब्ध कराना।
      • बुनियादी ढाँचे का विकास: सड़कों, रेलवे और संचार सुविधाओं का विस्तार।
      • सूचना का प्रसार: किसान चैनल, ई-नाम (राष्ट्रीय कृषि बाजार) जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म।
      • श्रेणीकरण और मानकीकरण: उत्पादों की गुणवत्ता के आधार पर श्रेणीकरण और मानक तय करना।
    • उभरती वैकल्पिक विपणन व्यवस्थाएँ:
      • किसान मंडियाँ: कुछ राज्यों में किसान सीधे उपभोक्ताओं को अपनी उपज बेच सकते हैं (जैसे 'अपनी मंडी' पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में; 'रायथू बाजार' आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में)।
      • बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ (MNCs) और निजी कंपनियाँ: कुछ बड़ी कंपनियाँ किसानों के साथ अनुबंध खेती करती हैं या सीधे उनसे उत्पाद खरीदती हैं (जैसे रिलायंस फ्रेश, बिग बाजार)।

V. कृषि विविधीकरण (Diversification into Non-Farm Activities)
कृषि विविधीकरण का अर्थ है कृषि क्षेत्र में जोखिम को कम करने और आय को स्थिर करने के लिए फसल उत्पादन के साथ-साथ अन्य संबंधित गतिविधियों या गैर-कृषि गतिविधियों को अपनाना।

  • विविधीकरण की आवश्यकता:

    • कृषि पर अत्यधिक निर्भरता कम करना।
    • आय में स्थिरता लाना और मौसमी बेरोजगारी को कम करना।
    • ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के नए अवसर पैदा करना।
    • पर्यावरण संबंधी जोखिमों को कम करना।
  • विविधीकरण के प्रकार:

    • उत्पादन गतिविधियों का विविधीकरण:
      • फसल उत्पादन से पशुपालन (दुग्ध उत्पादन, भेड़ पालन), मत्स्य पालन, मुर्गी पालन में बदलाव।
      • बागवानी: फलों, सब्जियों, फूलों और औषधीय पौधों की खेती। (इसे 'सुनहरी क्रांति' कहा जाता है)।
      • श्वेत क्रांति: दुग्ध उत्पादन में वृद्धि।
      • नीली क्रांति: मत्स्य उत्पादन में वृद्धि।
    • उत्पादक गतिविधियों का विविधीकरण (गैर-कृषि क्षेत्र):
      • खाद्य प्रसंस्करण उद्योग।
      • कुटीर और लघु उद्योग (हस्तशिल्प, हथकरघा)।
      • ग्रामीण पर्यटन।
      • सूचना प्रौद्योगिकी (IT) सेवाएँ।
      • निर्माण कार्य।
  • सफलता के उदाहरण: श्वेत क्रांति (दुग्ध उत्पादन), नीली क्रांति (मत्स्य उत्पादन), सुनहरी क्रांति (बागवानी)।

VI. धारणीय विकास और जैविक कृषि (Sustainable Development and Organic Farming)
रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग से पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़े हैं।

  • जैविक कृषि का अर्थ: यह एक ऐसी कृषि प्रणाली है जिसमें रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों, शाकनाशियों और आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों (GMOs) का उपयोग नहीं किया जाता। इसके बजाय, यह फसल चक्र, हरी खाद, कम्पोस्ट, जैविक कीट नियंत्रण और जैविक उर्वरकों पर निर्भर करती है।

  • जैविक कृषि के लाभ:

    • पर्यावरण के अनुकूल: मिट्टी, जल और वायु प्रदूषण को कम करती है।
    • मिट्टी की उर्वरता बनाए रखना: मिट्टी के स्वास्थ्य और सूक्ष्मजीवों को बढ़ावा देती है।
    • स्वास्थ्य के लिए बेहतर उत्पाद: रासायनिक अवशेषों से मुक्त, पौष्टिक और सुरक्षित खाद्य पदार्थ।
    • अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में मांग: जैविक उत्पादों की वैश्विक मांग बढ़ रही है।
    • लागत में कमी: रासायनिक आदानों पर निर्भरता कम होने से किसानों की लागत घटती है।
  • जैविक कृषि की चुनौतियाँ:

    • प्रारंभिक उपज कम होना: रासायनिक कृषि से जैविक कृषि में संक्रमण के दौरान शुरुआती वर्षों में उपज कम हो सकती है।
    • जैविक आदानों की उपलब्धता: पर्याप्त मात्रा में जैविक खाद और कीट नियंत्रण के साधनों की उपलब्धता।
    • बाजार और प्रमाणीकरण की समस्याएँ: जैविक उत्पादों के लिए अलग बाजार और प्रमाणीकरण की आवश्यकता।
    • कीट और रोग नियंत्रण: रासायनिक कीटनाशकों के बिना कीटों और रोगों को नियंत्रित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

VII. ग्रामीण विकास के लिए प्रमुख सरकारी योजनाएँ (संक्षेप में)

  • राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (NABARD): ग्रामीण साख का शीर्ष निकाय।
  • स्वयं सहायता समूह (SHGs): ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को सशक्त बनाने और सूक्ष्म-वित्त प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका।
  • महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA): ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका सुरक्षा बढ़ाने के लिए प्रत्येक परिवार को एक वित्तीय वर्ष में 100 दिनों के वेतन रोजगार की गारंटी।
  • प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY): ग्रामीण क्षेत्रों में हर मौसम में काम आने वाली सड़कों का निर्माण।
  • प्रधानमंत्री आवास योजना - ग्रामीण (PMAY-G): ग्रामीण क्षेत्रों में सभी बेघर और कच्चे मकानों में रहने वाले परिवारों को पक्का मकान उपलब्ध कराना।
  • राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM): (पूर्व में स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना - SGSY) ग्रामीण गरीब परिवारों को स्थायी आजीविका के अवसरों से जोड़कर गरीबी कम करना।
  • राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई-नाम): एक अखिल भारतीय इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग पोर्टल जो कृषि वस्तुओं के लिए एकीकृत राष्ट्रीय बाजार बनाता है।

बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs) - 10 प्रश्न

  1. राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (NABARD) की स्थापना किस वर्ष हुई थी?
    a) 1969
    b) 1975
    c) 1982
    d) 1991

  2. ग्रामीण साख के गैर-संस्थागत स्रोतों में से कौन सा एक प्रमुख स्रोत है?
    a) सहकारी बैंक
    b) क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक
    c) महाजन
    d) वाणिज्यिक बैंक

  3. 'सुनहरी क्रांति' का संबंध निम्नलिखित में से किस क्षेत्र से है?
    a) दुग्ध उत्पादन
    b) मत्स्य उत्पादन
    c) बागवानी
    d) पेट्रोलियम उत्पादन

  4. निम्नलिखित में से कौन सा कृषि विपणन की एक समस्या नहीं है?
    a) भंडारण सुविधाओं का अभाव
    b) बिचौलियों का प्रभुत्व
    c) न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP)
    d) परिवहन सुविधाओं की कमी

  5. जैविक कृषि का मुख्य लाभ क्या है?
    a) रासायनिक उर्वरकों का अधिक उपयोग
    b) मिट्टी की उर्वरता में कमी
    c) पर्यावरण के अनुकूल और स्वास्थ्यवर्धक उत्पाद
    d) प्रारंभिक वर्षों में उच्च उपज

  6. ग्रामीण क्षेत्रों में 100 दिनों के वेतन रोजगार की गारंटी देने वाली योजना कौन सी है?
    a) प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना
    b) महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA)
    c) प्रधानमंत्री आवास योजना
    d) राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन

  7. कृषि विविधीकरण का मुख्य उद्देश्य क्या है?
    a) केवल फसल उत्पादन पर निर्भरता बढ़ाना
    b) ग्रामीण आय में स्थिरता लाना और रोजगार के अवसर बढ़ाना
    c) रासायनिक उर्वरकों का उपयोग बढ़ाना
    d) केवल बड़े किसानों को लाभ पहुँचाना

  8. वह प्रक्रिया जिसमें कृषि उत्पादों को खेत से उपभोक्ता तक पहुँचाने के लिए की जाने वाली सभी गतिविधियाँ शामिल हैं, क्या कहलाती है?
    a) कृषि उत्पादन
    b) कृषि वित्त
    c) कृषि विपणन
    d) कृषि अनुसंधान

  9. क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (RRBs) की स्थापना किस वर्ष हुई थी?
    a) 1969
    b) 1975
    c) 1982
    d) 1991

  10. निम्नलिखित में से कौन सा ग्रामीण विकास का एक आयाम नहीं है?
    a) मानव संसाधनों का विकास
    b) उत्पादक संसाधनों का विकास
    c) शहरीकरण को बढ़ावा देना
    d) बुनियादी ढाँचे का विकास


उत्तरमाला:

  1. c) 1982
  2. c) महाजन
  3. c) बागवानी
  4. c) न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP)
  5. c) पर्यावरण के अनुकूल और स्वास्थ्यवर्धक उत्पाद
  6. b) महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA)
  7. b) ग्रामीण आय में स्थिरता लाना और रोजगार के अवसर बढ़ाना
  8. c) कृषि विपणन
  9. b) 1975
  10. c) शहरीकरण को बढ़ावा देना

मुझे आशा है कि ये विस्तृत नोट्स और बहुविकल्पीय प्रश्न आपकी सरकारी परीक्षाओं की तैयारी में सहायक सिद्ध होंगे। ग्रामीण विकास एक गतिशील क्षेत्र है, अतः नवीनतम सरकारी योजनाओं और आँकड़ों पर भी ध्यान दें। शुभकामनाएँ!

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