Class 11 Economics Notes Chapter 7 (रोजगार-संवृद्धि; अनौपचारिकीकरण एव अन्य मुद्दे) – Bharatiya Arthvyavstha ka Vikas Book

प्रिय विद्यार्थियों,
आज हम भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास पुस्तक के अध्याय 7 'रोजगार-संवृद्धि; अनौपचारिकीकरण एवं अन्य मुद्दे' का विस्तृत अध्ययन करेंगे। यह अध्याय सरकारी परीक्षाओं की तैयारी के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह भारत में रोजगार के विभिन्न पहलुओं, चुनौतियों और सरकारी प्रयासों को समझने में मदद करता है। आइए, इस अध्याय के महत्वपूर्ण बिंदुओं को गहराई से समझते हैं।
अध्याय 7: रोजगार-संवृद्धि; अनौपचारिकीकरण एवं अन्य मुद्दे
विस्तृत नोट्स
1. परिचय: रोजगार का महत्व
रोजगार वह आर्थिक गतिविधि है जिसमें लोग अपनी आजीविका कमाने के लिए संलग्न होते हैं। यह न केवल आय का स्रोत है, बल्कि आत्म-सम्मान, सामाजिक पहचान और देश के आर्थिक विकास में योगदान का माध्यम भी है। किसी भी अर्थव्यवस्था की प्रगति को मापने के लिए रोजगार सृजन एक महत्वपूर्ण संकेतक है।
2. कार्यशील जनसंख्या और श्रम बल
-
कार्यशील जनसंख्या: वे सभी व्यक्ति जो आर्थिक गतिविधियों में संलग्न हैं, चाहे वे स्वरोजगार में हों या किसी अन्य के लिए काम कर रहे हों। इनमें वे लोग भी शामिल हैं जो आय अर्जित करने वाली गतिविधियों में लगे हुए हैं।
-
श्रम बल (Labour Force): इसमें वे सभी व्यक्ति शामिल होते हैं जो काम कर रहे हैं (कार्यशील जनसंख्या) और वे भी जो काम करने के इच्छुक हैं और काम की तलाश में हैं (बेरोजगार)।
- श्रम बल सहभागिता दर (Labour Force Participation Rate - LFPR): श्रम बल में शामिल व्यक्तियों का कुल जनसंख्या के प्रतिशत के रूप में अनुपात।
- कार्यकर्ता-जनसंख्या अनुपात (Worker-Population Ratio - WPR): देश में रोजगार की स्थिति का आकलन करने के लिए एक महत्वपूर्ण संकेतक। यह कुल जनसंख्या में कार्यरत व्यक्तियों का अनुपात दर्शाता है। उच्च WPR का अर्थ है कि जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा आर्थिक गतिविधियों में संलग्न है।
भारत में रुझान (आंकड़े 2017-18 के अनुसार, नवीनतम उपलब्ध):
- कुल LFPR: लगभग 34.7% (पुरुष: 52.1%, महिला: 16.5%)
- ग्रामीण LFPR: 35.8% (पुरुष: 52.8%, महिला: 17.5%)
- शहरी LFPR: 32.3% (पुरुष: 50.3%, महिला: 13.9%)
- पुरुषों की LFPR महिलाओं से काफी अधिक है। महिलाओं की LFPR ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी क्षेत्रों की तुलना में थोड़ी अधिक है, क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं अक्सर कृषि और संबद्ध गतिविधियों में संलग्न होती हैं।
3. रोजगार के प्रकार
भारत में रोजगार को मुख्य रूप से तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है:
- स्वरोजगार (Self-employment): वे व्यक्ति जो अपने उद्यम के मालिक हैं और उसे संचालित करते हैं। जैसे किसान, दुकानदार, डॉक्टर, वकील आदि। भारत में रोजगार का सबसे बड़ा हिस्सा (लगभग 52%) स्वरोजगार का है।
- नियमित वेतनभोगी कर्मचारी (Regular Salaried Employees): वे व्यक्ति जो किसी नियोक्ता के लिए काम करते हैं और उन्हें नियमित वेतन मिलता है, साथ ही सामाजिक सुरक्षा लाभ (भविष्य निधि, ग्रेच्युटी, पेंशन आदि) भी प्राप्त होते हैं। यह रोजगार का सबसे सुरक्षित रूप है, लेकिन भारत में इसका प्रतिशत अपेक्षाकृत कम (लगभग 24%) है।
- अनियत मजदूर (Casual Wage Labourers): वे व्यक्ति जो दूसरों के लिए काम करते हैं और उन्हें उनकी सेवाओं के बदले दैनिक मजदूरी मिलती है। इन्हें कोई सामाजिक सुरक्षा लाभ नहीं मिलता और इनकी नौकरी की कोई निश्चितता नहीं होती। भारत में लगभग 24% श्रमिक इस श्रेणी में आते हैं। यह वर्ग सबसे अधिक असुरक्षित होता है।
4. रोजगार का क्षेत्रीय वितरण
भारतीय अर्थव्यवस्था को तीन प्रमुख क्षेत्रों में बांटा गया है:
- प्राथमिक क्षेत्र (Primary Sector): कृषि, वानिकी, मत्स्य पालन, खनन।
- द्वितीयक क्षेत्र (Secondary Sector): विनिर्माण (उद्योग), निर्माण।
- तृतीयक क्षेत्र (Tertiary Sector): सेवाएं (शिक्षा, स्वास्थ्य, बैंकिंग, व्यापार, परिवहन आदि)।
ऐतिहासिक रुझान और वर्तमान स्थिति:
-
1972-73: प्राथमिक क्षेत्र में लगभग 74% रोजगार था, द्वितीयक में 11%, और तृतीयक में 15%।
-
2017-18:
- प्राथमिक क्षेत्र: लगभग 44.6% (अभी भी सबसे बड़ा नियोक्ता, लेकिन हिस्सेदारी घटी है)।
- द्वितीयक क्षेत्र: लगभग 24.4% (विनिर्माण: 12.1%, निर्माण: 12.3%)।
- तृतीयक क्षेत्र: लगभग 31% (सेवा क्षेत्र में वृद्धि)।
प्रमुख अवलोकन:
- प्राथमिक क्षेत्र पर निर्भरता कम हुई है, लेकिन यह अभी भी सबसे बड़ा नियोक्ता है।
- द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रों में रोजगार की हिस्सेदारी बढ़ी है, विशेषकर सेवा क्षेत्र में।
- उत्पादकता और रोजगार में असमानता: सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में सेवा क्षेत्र का योगदान सबसे अधिक है, जबकि रोजगार में इसका योगदान प्राथमिक क्षेत्र से कम है। इसका अर्थ है कि सेवा क्षेत्र में प्रति श्रमिक उत्पादकता प्राथमिक क्षेत्र की तुलना में बहुत अधिक है।
5. रोजगार का अनौपचारिकीकरण (Informalisation of Employment)
- औपचारिक क्षेत्र (Formal Sector): इसमें वे उद्यम शामिल होते हैं जिनमें 10 या अधिक कर्मचारी होते हैं और जो सरकार के नियमों और विनियमों का पालन करते हैं। इन कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा लाभ (भविष्य निधि, ग्रेच्युटी, पेंशन, सवेतन अवकाश आदि) मिलते हैं और उनकी नौकरी सुरक्षित होती है।
- अनौपचारिक क्षेत्र (Informal Sector): इसमें वे सभी उद्यम और श्रमिक शामिल होते हैं जो औपचारिक क्षेत्र की परिभाषा में नहीं आते। ये आमतौर पर छोटे, असंगठित उद्यम होते हैं। इन श्रमिकों को कोई सामाजिक सुरक्षा लाभ नहीं मिलता, उनकी आय कम और अनियमित होती है, और नौकरी की कोई सुरक्षा नहीं होती।
अनौपचारिकीकरण की प्रक्रिया:
- 1990 के दशक में आर्थिक सुधारों के बाद, औपचारिक क्षेत्र में रोजगार सृजन की गति धीमी रही, जबकि अनौपचारिक क्षेत्र में रोजगार में वृद्धि हुई।
- 2017-18 के आंकड़े:
- औपचारिक क्षेत्र में लगभग 10% श्रमिक कार्यरत थे।
- अनौपचारिक क्षेत्र में लगभग 90% श्रमिक कार्यरत थे।
- अनौपचारिकीकरण के कारण:
- औपचारिक क्षेत्र में रोजगार सृजन की धीमी गति।
- श्रम कानूनों का लचीलापन या उनका कमजोर प्रवर्तन।
- छोटे और मध्यम उद्यमों का विकास।
- कृषि क्षेत्र से श्रमिकों का विस्थापन।
- अनौपचारिकीकरण के प्रभाव:
- श्रमिकों की सामाजिक-आर्थिक असुरक्षा में वृद्धि।
- गरीबी और असमानता में वृद्धि।
- सामाजिक सुरक्षा जाल का अभाव।
6. बेरोजगारी (Unemployment)
बेरोजगारी वह स्थिति है जब कोई व्यक्ति काम करने के लिए तैयार और सक्षम होने के बावजूद काम नहीं ढूंढ पाता है।
- बेरोजगारी दर: बेरोजगार व्यक्तियों की संख्या / कुल श्रम बल * 100।
बेरोजगारी के प्रकार:
- खुली बेरोजगारी (Open Unemployment): जब कोई व्यक्ति बिल्कुल भी काम नहीं कर रहा होता और सक्रिय रूप से काम की तलाश में होता है।
- प्रच्छन्न बेरोजगारी (Disguised Unemployment): जब किसी काम में आवश्यकता से अधिक लोग लगे होते हैं, और यदि उनमें से कुछ को हटा भी दिया जाए तो उत्पादन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। यह मुख्य रूप से कृषि क्षेत्र में पाई जाती है।
- मौसमी बेरोजगारी (Seasonal Unemployment): जब लोग वर्ष के कुछ निश्चित मौसमों में ही काम पाते हैं, जैसे कृषि क्षेत्र में बुवाई और कटाई के मौसम में काम मिलना।
- संरचनात्मक बेरोजगारी (Structural Unemployment): अर्थव्यवस्था की संरचना में बदलाव (जैसे नई तकनीक का आगमन या उद्योगों का पतन) के कारण होने वाली बेरोजगारी, जहां श्रमिकों के कौशल और उपलब्ध नौकरियों के बीच बेमेल होता है।
- चक्रीय बेरोजगारी (Cyclical Unemployment): व्यापार चक्र (मंदी या तेजी) के कारण होने वाली बेरोजगारी। मंदी के दौरान मांग कम होने से उत्पादन घटता है और रोजगार में कमी आती है।
- घर्षणात्मक बेरोजगारी (Frictional Unemployment): जब श्रमिक एक नौकरी छोड़कर दूसरी नौकरी की तलाश में होते हैं, तो उस बीच की अवधि में होने वाली अस्थायी बेरोजगारी।
भारत में बेरोजगारी के रुझान (2017-18 के अनुसार):
- कुल बेरोजगारी दर: लगभग 6.1% (पिछले 45 वर्षों में सबसे अधिक)।
- ग्रामीण बेरोजगारी: 5.3%
- शहरी बेरोजगारी: 7.8%
- पुरुष बेरोजगारी: 6.2%
- महिला बेरोजगारी: 5.7%
- युवा बेरोजगारी (15-29 वर्ष): लगभग 17.8% (शिक्षित युवाओं में बेरोजगारी की दर अधिक)।
7. सरकारी नीतियाँ और कार्यक्रम (रोजगार सृजन के लिए)
भारत सरकार ने रोजगार सृजन और गरीबी उन्मूलन के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं:
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA), 2005: ग्रामीण क्षेत्रों में प्रत्येक परिवार को एक वित्तीय वर्ष में कम से कम 100 दिनों के अकुशल शारीरिक श्रम के लिए रोजगार की गारंटी देता है। यह योजना ग्रामीण आय और आजीविका सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदान देती है।
- प्रधानमंत्री रोजगार योजना (PMRY), 1993: शिक्षित बेरोजगार युवाओं को स्वरोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए वित्तीय सहायता देती है।
- स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना (SJGSY), 1999 (अब राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन - NRLM का हिस्सा): ग्रामीण गरीबों को स्वयं सहायता समूहों (SHGs) के माध्यम से स्वरोजगार के अवसर प्रदान करती है।
- राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM), 2011: ग्रामीण गरीब परिवारों को स्थायी आजीविका के अवसरों तक पहुंच प्रदान करके गरीबी कम करना।
- प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY), 2015: युवाओं को उद्योग-संबंधित कौशल प्रशिक्षण प्रदान करना ताकि उन्हें बेहतर रोजगार मिल सके।
- मेक इन इंडिया (Make in India): विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देकर रोजगार सृजन का लक्ष्य।
- स्टार्टअप इंडिया (Startup India): नए उद्यमों को बढ़ावा देकर रोजगार सृजन।
8. निष्कर्ष: चुनौतियाँ और आगे की राह
भारत में रोजगार सृजन एक बड़ी चुनौती बनी हुई है, विशेषकर गुणवत्तापूर्ण रोजगारों का सृजन। अनौपचारिकीकरण, कम उत्पादकता और उच्च बेरोजगारी दर (विशेषकर शिक्षित युवाओं में) प्रमुख मुद्दे हैं। भविष्य में, कौशल विकास, विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा, कृषि उत्पादकता में वृद्धि और सामाजिक सुरक्षा जाल को मजबूत करना महत्वपूर्ण होगा ताकि समावेशी और टिकाऊ रोजगार सृजन हो सके।
बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs)
-
कार्यकर्ता-जनसंख्या अनुपात (Worker-Population Ratio) क्या दर्शाता है?
a) कुल जनसंख्या में बेरोजगार व्यक्तियों का अनुपात
b) कुल जनसंख्या में कार्यरत व्यक्तियों का अनुपात
c) कुल श्रम बल में कार्यरत व्यक्तियों का अनुपात
d) कुल श्रम बल में बेरोजगार व्यक्तियों का अनुपात -
भारत में रोजगार का सबसे बड़ा हिस्सा किस प्रकार का है?
a) नियमित वेतनभोगी कर्मचारी
b) अनियत मजदूर
c) स्वरोजगार
d) सार्वजनिक क्षेत्र का रोजगार -
निम्नलिखित में से कौन-सा क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था में रोजगार का सबसे बड़ा स्रोत बना हुआ है?
a) द्वितीयक क्षेत्र
b) तृतीयक क्षेत्र
c) प्राथमिक क्षेत्र
d) विनिर्माण क्षेत्र -
अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों की प्रमुख विशेषता क्या है?
a) उन्हें नियमित वेतन और सामाजिक सुरक्षा लाभ मिलते हैं।
b) उनकी नौकरी की सुरक्षा और निश्चितता होती है।
c) उन्हें कोई सामाजिक सुरक्षा लाभ नहीं मिलता और उनकी आय अनियमित होती है।
d) वे केवल सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में कार्यरत होते हैं। -
जब किसी काम में आवश्यकता से अधिक लोग लगे होते हैं, और यदि उनमें से कुछ को हटा भी दिया जाए तो उत्पादन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, तो यह किस प्रकार की बेरोजगारी है?
a) खुली बेरोजगारी
b) मौसमी बेरोजगारी
c) प्रच्छन्न बेरोजगारी
d) संरचनात्मक बेरोजगारी -
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में एक वित्तीय वर्ष में कितने दिनों के रोजगार की गारंटी दी जाती है?
a) 50 दिन
b) 75 दिन
c) 100 दिन
d) 150 दिन -
2017-18 के आंकड़ों के अनुसार, भारत में कुल श्रम बल में महिलाओं की सहभागिता दर पुरुषों की तुलना में कैसी है?
a) पुरुषों से काफी अधिक
b) पुरुषों के लगभग बराबर
c) पुरुषों से काफी कम
d) पुरुषों से थोड़ी अधिक -
औपचारिक क्षेत्र के उद्यमों में आमतौर पर कितने या अधिक कर्मचारी होते हैं?
a) 5
b) 10
c) 20
d) 50 -
शिक्षित बेरोजगार युवाओं को स्वरोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए 1993 में शुरू की गई योजना कौन सी थी?
a) मनरेगा (MGNREGA)
b) प्रधानमंत्री रोजगार योजना (PMRY)
c) प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY)
d) राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) -
जब अर्थव्यवस्था में मंदी के कारण कुल मांग में कमी आती है और परिणामस्वरूप रोजगार में गिरावट होती है, तो यह किस प्रकार की बेरोजगारी कहलाती है?
a) संरचनात्मक बेरोजगारी
b) घर्षणात्मक बेरोजगारी
c) चक्रीय बेरोजगारी
d) मौसमी बेरोजगारी
उत्तरमाला:
- b
- c
- c
- c
- c
- c
- c
- b
- b
- c
मुझे आशा है कि ये विस्तृत नोट्स और बहुविकल्पीय प्रश्न आपको इस अध्याय को गहराई से समझने और आपकी सरकारी परीक्षा की तैयारी में सहायक होंगे। किसी भी अन्य प्रश्न के लिए आप पूछ सकते हैं।