Class 11 Economics Notes Chapter 9 (पर्यावरण और धारणीय विकास) – Bharatiya Arthvyavstha ka Vikas Book

प्रिय विद्यार्थियों,
आज हम कक्षा 11 की अर्थशास्त्र की पाठ्यपुस्तक 'भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास' के अध्याय 9 'पर्यावरण और धारणीय विकास' का विस्तृत अध्ययन करेंगे। यह अध्याय न केवल आपकी अकादमिक समझ के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि विभिन्न सरकारी परीक्षाओं में भी इससे संबंधित प्रश्न पूछे जाते हैं। आइए, इस महत्वपूर्ण विषय को गहराई से समझते हैं।
अध्याय 9: पर्यावरण और धारणीय विकास
1. पर्यावरण: अर्थ और कार्य
पर्यावरण हमारे चारों ओर का वह परिवेश है जिसमें हम रहते हैं। इसमें सभी जैविक (जीवित) और अजैविक (निर्जीव) घटक शामिल हैं जो एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं।
पर्यावरण के कार्य:
- संसाधनों की आपूर्ति: यह उत्पादन के लिए नवीकरणीय (जैसे वन, मछली) और गैर-नवीकरणीय (जैसे जीवाश्म ईंधन, खनिज) दोनों प्रकार के संसाधन प्रदान करता है।
- अपशिष्ट को आत्मसात करना: यह उत्पादन और उपभोग गतिविधियों से उत्पन्न अपशिष्ट को अवशोषित करता है।
- जीवन को कायम रखना: यह आनुवंशिक और जैव विविधता प्रदान करके जीवन को बनाए रखता है।
- सौंदर्य और अस्तित्व मूल्य प्रदान करना: यह प्राकृतिक सौंदर्य, परिदृश्य और सांस्कृतिक महत्व प्रदान करता है, जो जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाता है।
2. पर्यावरण संकट
आर्थिक विकास की प्रक्रिया ने पर्यावरण पर भारी दबाव डाला है, जिससे एक गंभीर पर्यावरण संकट उत्पन्न हो गया है।
पर्यावरण संकट के मुख्य कारण:
- संसाधनों का अति-उपयोग/अति-दोहन:
- जनसंख्या वृद्धि और उपभोग के बढ़ते स्तर के कारण प्राकृतिक संसाधनों (जल, वन, खनिज) का अत्यधिक दोहन।
- उदाहरण: भूजल स्तर में गिरावट, वनों का विनाश, खनिजों का तेजी से क्षरण।
- अपशिष्ट को आत्मसात करने की क्षमता का ह्रास:
- उत्पादन और उपभोग से उत्पन्न अपशिष्ट की मात्रा इतनी बढ़ गई है कि पर्यावरण की उसे अवशोषित करने की क्षमता कम पड़ गई है।
- उदाहरण: नदियों में प्रदूषण, वायु में हानिकारक गैसों का जमाव।
पर्यावरण संकट के प्रमुख प्रभाव:
- वायु प्रदूषण: वाहनों, उद्योगों और तापीय ऊर्जा संयंत्रों से निकलने वाली गैसें (कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड) वायु को प्रदूषित करती हैं।
- जल प्रदूषण: औद्योगिक अपशिष्ट, घरेलू सीवेज और कृषि रसायनों के कारण नदियों, झीलों और भूजल का प्रदूषण।
- मृदा क्षरण: वनों की कटाई, अत्यधिक चराई, अनुचित कृषि पद्धतियों और रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से मिट्टी की ऊपरी परत का हटना।
- वनोन्मूलन: विकास परियोजनाओं, कृषि विस्तार और ईंधन की लकड़ी की बढ़ती मांग के कारण वनों का विनाश।
- जैव विविधता का नुकसान: प्राकृतिक आवासों के विनाश और प्रदूषण के कारण पौधों और जानवरों की प्रजातियों का विलुप्त होना।
- वैश्विक उष्णता (Global Warming):
- कारण: जीवाश्म ईंधन के जलने, वनों की कटाई और औद्योगिक प्रक्रियाओं से ग्रीनहाउस गैसों (कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड) का उत्सर्जन।
- प्रभाव: पृथ्वी के औसत तापमान में वृद्धि, ध्रुवीय बर्फ का पिघलना, समुद्र के स्तर में वृद्धि, चरम मौसमी घटनाएँ (बाढ़, सूखा), कृषि उत्पादकता पर नकारात्मक प्रभाव।
- अंतर्राष्ट्रीय प्रयास: क्योटो प्रोटोकॉल (1997) - ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता।
- ओजोन परत क्षरण (Ozone Depletion):
- कारण: क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFCs) और अन्य ओजोन-क्षयकारी पदार्थों का उत्सर्जन, जो रेफ्रिजरेटर, एयर कंडीशनर और अग्निशामक यंत्रों में उपयोग होते हैं।
- प्रभाव: सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी (UV) किरणों का पृथ्वी तक पहुँचना, जिससे त्वचा कैंसर, मोतियाबिंद और प्रतिरक्षा प्रणाली को नुकसान होता है।
- अंतर्राष्ट्रीय प्रयास: मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल (1987) - ओजोन-क्षयकारी पदार्थों के उत्पादन और उपभोग को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय संधि।
3. भारत में पर्यावरण की स्थिति
भारत को विकासशील देशों में सबसे गंभीर पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
भारत में प्रमुख पर्यावरणीय मुद्दे:
- भूमि क्षरण: लगभग 53% भूमि गंभीर क्षरण का सामना कर रही है। इसके मुख्य कारण हैं:
- वनोन्मूलन, अत्यधिक चराई, अनुचित कृषि पद्धतियाँ।
- पानी और हवा से होने वाला मृदा अपरदन।
- लवणता और क्षारीयता।
- जैव विविधता का नुकसान: भारत में कई प्रजातियाँ खतरे में हैं या विलुप्त हो चुकी हैं।
- वायु प्रदूषण (शहरी क्षेत्रों में):
- वाहनों का बढ़ता घनत्व (विशेषकर दिल्ली, मुंबई, कोलकाता जैसे शहरों में)।
- उद्योगों और तापीय ऊर्जा संयंत्रों से उत्सर्जन।
- घरेलू ईंधन का जलना।
- डेटा: विश्व के सबसे प्रदूषित शहरों में भारत के कई शहर शामिल हैं।
- जल प्रदूषण:
- घरेलू और औद्योगिक सीवेज का नदियों में मिलना।
- कृषि में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग।
- गंगा और यमुना जैसी नदियाँ अत्यधिक प्रदूषित हैं।
- वन संसाधनों का क्षरण: विकास परियोजनाओं, ईंधन की लकड़ी और चारे की बढ़ती मांग के कारण वनों की कटाई।
भारत में पर्यावरण की चुनौतियों के मूल कारण:
- गरीबी: गरीब लोग अक्सर अपनी आजीविका के लिए प्राकृतिक संसाधनों पर अत्यधिक निर्भर होते हैं, जिससे उनका अति-दोहन होता है।
- जनसंख्या वृद्धि: बढ़ती जनसंख्या संसाधनों पर दबाव डालती है और अपशिष्ट उत्पादन बढ़ाती है।
- औद्योगीकरण और शहरीकरण: अनियोजित औद्योगिक और शहरी विकास प्रदूषण और संसाधनों के दोहन को बढ़ाता है।
- कानूनों का अपर्याप्त प्रवर्तन: पर्यावरण कानूनों का प्रभावी ढंग से लागू न होना।
4. धारणीय विकास (Sustainable Development)
धारणीय विकास वह विकास है जो वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं को पूरा करता है, बिना भविष्य की पीढ़ियों की अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने की क्षमता से समझौता किए।
ब्रंटलैंड आयोग (1987) की परिभाषा: "धारणीय विकास वह विकास है जो भावी पीढ़ियों की आवश्यकताओं की पूर्ति क्षमता से समझौता किए बिना वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं को पूरा करता है।"
धारणीय विकास की आवश्यकता और महत्व:
- पर्यावरण के क्षरण को रोकना।
- प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण।
- भावी पीढ़ियों के लिए संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
- जीवन की गुणवत्ता में सुधार।
- आर्थिक विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन स्थापित करना।
धारणीय विकास की रणनीतियाँ/कार्यनीतियाँ:
- गैर-परंपरागत ऊर्जा स्रोतों का उपयोग:
- सौर ऊर्जा: भारत में सौर ऊर्जा की अपार संभावनाएँ हैं (जैसे सौर कुकर, सौर तापक, सौर फोटोवोल्टिक सेल)।
- पवन ऊर्जा: पवन चक्कियों का उपयोग करके बिजली का उत्पादन।
- लघु जल विद्युत परियोजनाएँ: छोटे बाँधों से बिजली उत्पादन, जो पर्यावरण पर कम प्रभाव डालते हैं।
- ग्रामीण क्षेत्रों में एलपीजी (LPG) और गोबर गैस का उपयोग:
- लकड़ी और गोबर के उपलों के स्थान पर एलपीजी और गोबर गैस का उपयोग करने से वायु प्रदूषण कम होता है और वनों की कटाई रुकती है।
- गोबर गैस संयंत्र ग्रामीण क्षेत्रों में ऊर्जा और जैविक खाद दोनों प्रदान करते हैं।
- जैविक खेती (Organic Farming):
- रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के बजाय जैविक खाद और प्राकृतिक कीट नियंत्रण का उपयोग।
- लाभ: मिट्टी का स्वास्थ्य सुधरता है, भूजल प्रदूषण कम होता है, खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता बढ़ती है।
- पारंपरिक ज्ञान और प्रथाओं का उपयोग:
- भारत में पर्यावरण के अनुकूल कई पारंपरिक प्रथाएँ हैं (जैसे जल संचयन, प्राकृतिक खेती)।
- इन प्रथाओं को आधुनिक तकनीकों के साथ एकीकृत करना।
- पर्यावरण शिक्षा और जागरूकता:
- लोगों को पर्यावरण संरक्षण के महत्व के बारे में शिक्षित करना।
- विद्यालयों और समुदायों में जागरूकता कार्यक्रम।
- प्रदूषण नियंत्रण के उपाय:
- उद्योगों में प्रदूषण नियंत्रण उपकरण लगाना।
- वाहनों के लिए उत्सर्जन मानक (जैसे BS-VI)।
- अपशिष्ट जल उपचार संयंत्र।
- जनसंख्या नियंत्रण: जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण धारणीय विकास के लिए महत्वपूर्ण है।
- गरीबी उन्मूलन: गरीबी कम होने से प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भरता कम होती है।
- कानूनी और संस्थागत उपाय:
- पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986: भारत सरकार द्वारा पर्यावरण की सुरक्षा और सुधार के लिए एक व्यापक कानून।
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB): प्रदूषण नियंत्रण के लिए नीतियाँ और मानक निर्धारित करता है।
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: वन्यजीवों और उनके आवासों के संरक्षण के लिए।
- राष्ट्रीय वन नीति, 1988: वनों के संरक्षण और विस्तार पर जोर देती है।
निष्कर्ष
धारणीय विकास एक जटिल चुनौती है जिसके लिए आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय आयामों पर एक समन्वित दृष्टिकोण की आवश्यकता है। यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि आर्थिक विकास पर्यावरण को नुकसान न पहुँचाए और भावी पीढ़ियों के लिए संसाधनों को संरक्षित रखे।
बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs)
यहाँ अध्याय 9 'पर्यावरण और धारणीय विकास' पर आधारित 10 बहुविकल्पीय प्रश्न दिए गए हैं, जो आपकी सरकारी परीक्षा की तैयारी में सहायक होंगे:
-
पर्यावरण के निम्नलिखित कार्यों में से कौन-सा एक कार्य नहीं है?
a) संसाधनों की आपूर्ति करना
b) अपशिष्ट को आत्मसात करना
c) जीवन को कायम रखना
d) आर्थिक विकास को रोकना -
वैश्विक उष्णता (Global Warming) के लिए मुख्य रूप से कौन-सी गैसें जिम्मेदार हैं?
a) ऑक्सीजन और नाइट्रोजन
b) कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन
c) हीलियम और हाइड्रोजन
d) ओजोन और आर्गन -
ओजोन परत क्षरण के लिए जिम्मेदार मुख्य रसायन कौन-सा है?
a) कार्बन डाइऑक्साइड
b) सल्फर डाइऑक्साइड
c) क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFCs)
d) नाइट्रस ऑक्साइड -
धारणीय विकास की परिभाषा किस आयोग द्वारा दी गई थी?
a) योजना आयोग
b) ब्रंटलैंड आयोग
c) वित्त आयोग
d) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष -
भारत में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम किस वर्ष पारित किया गया था?
a) 1972
b) 1986
c) 1992
d) 2000 -
निम्नलिखित में से कौन-सी धारणीय विकास की रणनीति नहीं है?
a) जैविक खेती को बढ़ावा देना
b) गैर-परंपरागत ऊर्जा स्रोतों का उपयोग
c) रासायनिक उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग
d) लघु जल विद्युत परियोजनाओं का विकास -
भारत में किस शहर को सबसे अधिक वायु प्रदूषित शहरों में से एक माना जाता है?
a) बेंगलुरु
b) चेन्नई
c) दिल्ली
d) हैदराबाद -
क्योटो प्रोटोकॉल का मुख्य उद्देश्य क्या था?
a) ओजोन परत को बचाना
b) जैव विविधता का संरक्षण
c) ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करना
d) जल प्रदूषण को नियंत्रित करना -
निम्नलिखित में से कौन-सा भूमि क्षरण का एक कारण नहीं है?
a) वनोन्मूलन
b) अत्यधिक चराई
c) जैविक खेती
d) अनुचित कृषि पद्धतियाँ -
ग्रामीण क्षेत्रों में धारणीय विकास को बढ़ावा देने के लिए कौन-सा ऊर्जा स्रोत सहायक है?
a) पेट्रोल
b) डीजल
c) गोबर गैस
d) कोयला
उत्तरमाला:
- d)
- b)
- c)
- b)
- b)
- c)
- c)
- c)
- c)
- c)
आशा है कि ये विस्तृत नोट्स और बहुविकल्पीय प्रश्न आपको इस अध्याय की गहन समझ प्रदान करेंगे और आपकी सरकारी परीक्षाओं की तैयारी में अत्यंत उपयोगी सिद्ध होंगे। अपनी पढ़ाई जारी रखें!