Class 11 Hindi Notes Chapter 1 (हरिवंश राय बच्चन: आत्मपरिचय; एक गीत) – Aroh Book

नमस्ते विद्यार्थियों।
चलिए, आज हम कक्षा 11 की 'आरोह' पुस्तक के पहले अध्याय, हरिवंश राय बच्चन जी की रचनाओं - 'आत्मपरिचय' और 'एक गीत' का गहन अध्ययन करेंगे। ये दोनों ही रचनाएँ प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
अध्याय 1: हरिवंश राय बच्चन
कवि परिचय
- जन्म: 27 नवंबर 1907, इलाहाबाद (अब प्रयागराज), उत्तर प्रदेश।
- निधन: 18 जनवरी 2003, मुंबई।
- मुख्य धारा: इन्हें हिंदी साहित्य के 'हालावाद' का प्रवर्तक माना जाता है। हालावाद का दर्शन कहता है कि दुनिया के गमों को भुलाकर प्रेम, मस्ती और आनंद के साथ जीवन जीना चाहिए।
- प्रमुख रचनाएँ:
- काव्य-संग्रह: मधुशाला, मधुबाला, मधुकलश, निशा निमंत्रण, एकांत संगीत, आकुल अंतर, सतरंगिणी, हलाहल, बंगाल का अकाल, खादी के फूल, मिलन यामिनी।
- आत्मकथा (चार खंडों में): 'क्या भूलूँ क्या याद करूँ', 'नीड़ का निर्माण फिर', 'बसेरे से दूर', 'दशद्वार से सोपान तक'।
- भाषा-शैली: इनकी भाषा आम बोलचाल की, सहज और सीधी-सादी है, जिसमें भावों की गहरी अनुभूति होती है। इनकी शैली गीतात्मक (गेय) है।
कविता 1: आत्मपरिचय
कविता का सार/मूल भाव
'आत्मपरिचय' कविता में कवि अपने और संसार के बीच के द्वंद्वात्मक संबंधों को उजागर करते हैं।
- विरोधाभासी जीवन: कवि कहते हैं कि वे सांसारिक जिम्मेदारियों को निभाते हुए भी अपने प्रेम और मस्ती के स्वभाव को जीवित रखते हैं ("मैं जग-जीवन का भार लिए फिरता हूँ, फिर भी जीवन में प्यार लिए फिरता हूँ")। वे संसार के दायित्वों को बोझ समझते हैं, लेकिन प्रेम को जीवन का आधार मानते हैं।
- स्नेह-सुरा का पान: कवि कहते हैं कि उन्होंने हमेशा प्रेम रूपी मदिरा का सेवन किया है और वे दुनिया की परवाह नहीं करते ("मैं स्नेह-सुरा का पान किया करता हूँ, मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ")। संसार उन्हीं को पूछता है जो उसकी प्रशंसा करते हैं, जबकि कवि अपने मन के गीत गाते हैं।
- अपूर्ण संसार से विरक्ति: कवि को यह संसार अपूर्ण लगता है, इसलिए यह उन्हें पसंद नहीं है। वे अपने सपनों का एक अलग संसार बनाते हैं और उसी में मग्न रहते हैं ("मैं स्वप्नों का संसार लिए फिरता हूँ")।
- भीतर आग, बाहर शीतलता: कवि के मन में वियोग की अग्नि जल रही है, लेकिन वे अपनी वाणी में शीतलता बनाए रखते हैं ("मैं निज उर में आग दहा करता हूँ, सुख-दुख दोनों में मग्न रहा करता हूँ")। वे कहते हैं कि उनकी शीतल वाणी में भी आग छिपी है, जिस पर बड़े-बड़े राजाओं के महल न्योछावर हैं।
- ज्ञान और नादानी: कवि कहते हैं कि इस संसार में लोगों ने सत्य जानने की बहुत कोशिश की, पर कोई जान नहीं पाया। वे स्वयं को इस संसार का एक नादान शिष्य मानते हैं जो सीखे हुए ज्ञान को भी भुलाना चाहता है।
- कवि और जग का संबंध: कवि अंत में कहते हैं कि मेरा और इस संसार का संबंध प्रीति-कलह का है। वे संसार से पूरी तरह अलग नहीं हो सकते। उनका रोना भी संगीत के समान है ("मैं रोदन में राग लिए फिरता हूँ")। उनकी रचनाएँ संसार के लिए गीत बन जाती हैं।
काव्य-सौंदर्य (शिल्प-सौंदर्य)
- भाषा: सहज, सरल खड़ी बोली हिंदी, जिसमें तत्सम शब्दों का सुंदर प्रयोग है।
- शैली: आत्मपरक, गीतात्मक और मुक्तक शैली।
- रस: शृंगार (वियोग) और शांत रस का सुंदर मिश्रण है।
- अलंकार:
- विरोधाभास: "रोदन में राग", "शीतल वाणी में आग" - यह इस कविता का प्रमुख अलंकार है।
- रूपक: "स्नेह-सुरा" (स्नेह रूपी मदिरा), "संसार-सागर"।
- अनुप्रास: "सुख-दुख", "स्नेह-सुरा" में 'स' वर्ण की आवृत्ति।
कविता 2: एक गीत (निशा निमंत्रण से)
कविता का सार/मूल भाव
यह गीत बच्चन जी के प्रसिद्ध काव्य-संग्रह 'निशा निमंत्रण' से लिया गया है। इसमें समय के तेजी से बीतने और प्रेम की व्याकुलता का मार्मिक चित्रण है।
- समय की गतिशीलता: कवि कहते हैं कि दिन बहुत तेजी से ढल रहा है ("हो जाए न पथ में रात कहीं, मंज़िल भी तो है दूर नहीं")। यह सोचकर यात्री (पथिक) भी अपने कदमों में तेजी ले आता है।
- वात्सल्य और आशा: पक्षी भी शाम होते ही तेजी से अपने घोंसलों की ओर लौटते हैं क्योंकि उन्हें याद आता है कि उनके बच्चे घोंसलों से झाँककर उनकी राह देख रहे होंगे ("बच्चे प्रत्याशा में होंगे, नीड़ों से झाँक रहे होंगे")। यह विचार उनके पंखों में और भी स्फूर्ति भर देता है।
- कवि की एकाकी व्यथा: अंतिम पंक्तियों में कवि अपनी व्यक्तिगत पीड़ा व्यक्त करते हैं। वे कहते हैं कि मुझसे मिलने के लिए कोई व्याकुल नहीं है, मेरा कोई इंतजार नहीं कर रहा ("मुझसे मिलने को कौन विकल?")। यह प्रश्न उनके कदमों को धीमा कर देता है और उनके हृदय को व्याकुलता से भर देता है। यह गीत जीवन में प्रेम के महत्व को दर्शाता है। जिसके जीवन में कोई लक्ष्य या प्रेम होता है, उसके जीवन में गति होती है; जिसके जीवन में यह नहीं होता, उसका जीवन शिथिल हो जाता है।
काव्य-सौंदर्य (शिल्प-सौंदर्य)
- भाषा: सरल, प्रवाहमयी खड़ी बोली, जिसमें संगीतात्मकता का गुण है।
- रस: वात्सल्य रस (पक्षियों के संदर्भ में) और वियोग शृंगार रस (कवि के संदर्भ में)।
- बिंब: दृश्य बिंब का सुंदर प्रयोग है, जैसे "नीड़ों से झाँक रहे होंगे"।
- अलंकार:
- पुनरुक्ति प्रकाश: "जल्दी-जल्दी"।
- प्रश्न अलंकार: "मुझसे मिलने को कौन विकल?"।
- अनुप्रास: कई पंक्तियों में वर्णों की आवृत्ति।
बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs)
-
हरिवंश राय बच्चन को किस 'वाद' का प्रवर्तक माना जाता है?
(क) प्रयोगवाद
(ख) प्रगतिवाद
(ग) हालावाद
(घ) छायावाद -
'आत्मपरिचय' कविता में कवि का संसार के साथ कैसा संबंध है?
(क) मधुर संबंध
(ख) शत्रुता का संबंध
(ग) प्रीति-कलह का संबंध
(घ) कोई संबंध नहीं -
"मैं स्नेह-सुरा का पान किया करता हूँ" - इस पंक्ति में 'स्नेह-सुरा' में कौन-सा अलंकार है?
(क) यमक
(ख) रूपक
(ग) उपमा
(घ) श्लेष -
"शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ" - इस पंक्ति में कौन-सा अलंकार प्रमुख है?
(क) अनुप्रास
(ख) अतिशयोक्ति
(ग) रूपक
(घ) विरोधाभास -
'एक गीत' कविता बच्चन जी के किस काव्य-संग्रह से ली गई है?
(क) मधुशाला
(ख) निशा निमंत्रण
(ग) मधुबाला
(घ) एकांत संगीत -
दिन ढलने के साथ बच्चे कहाँ से झाँक रहे होंगे?
(क) खिड़कियों से
(ख) दरवाजों से
(ग) नीड़ों से
(घ) पेड़ों से -
कवि के कदम क्यों शिथिल (धीमे) हो जाते हैं?
(क) क्योंकि वे थक गए हैं
(ख) क्योंकि मंजिल बहुत दूर है
(ग) क्योंकि उनसे मिलने के लिए कोई व्याकुल नहीं है
(घ) क्योंकि रात हो गई है -
'दिन जल्दी-जल्दी ढलता है' गीत में किसके पंखों में चंचलता भर जाती है?
(क) कवि के
(ख) पथिक के
(ग) चिड़िया के
(घ) बादलों के -
'आत्मपरिचय' कविता में कवि किसका भार लिए फिरता है?
(क) सपनों का
(ख) जग-जीवन का
(ग) यादों का
(घ) निराशा का -
कवि संसार को कैसा मानते हैं?
(क) पूर्ण
(ख) आदर्श
(ग) अपूर्ण
(घ) सुंदर
उत्तरमाला:
- (ग) हालावाद
- (ग) प्रीति-कलह का संबंध
- (ख) रूपक
- (घ) विरोधाभास
- (ख) निशा निमंत्रण
- (ग) नीड़ों से
- (ग) क्योंकि उनसे मिलने के लिए कोई व्याकुल नहीं है
- (ग) चिड़िया के
- (ख) जग-जीवन का
- (ग) अपूर्ण
इन नोट्स को अच्छी तरह से दोहराएँ। ये आपकी परीक्षा की तैयारी में बहुत सहायक होंगे। शुभकामनाएँ