Class 11 Hindi Notes Chapter 10 (कबीर : अरे इन दोहुन राह न पाई ; बालम; आवो हमारे गेह रे) – Antra Book

चलिए विद्यार्थियों, आज हम कक्षा 11 की 'अंतरा' पुस्तक के दसवें अध्याय, कबीर के पदों का गहन अध्ययन करेंगे। यह अध्याय प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि कबीर का दर्शन और उनकी काव्य-शैली से अक्सर प्रश्न पूछे जाते हैं।
कक्षा 11 (अंतरा) - अध्याय 10 : कबीर
(अरे इन दोहुन राह न पाई ; बालम, आवो हमारे गेह रे)
कवि परिचय : कबीरदास
- काल: भक्तिकाल की निर्गुण काव्यधारा के ज्ञानमार्गी (या ज्ञानाश्रयी) शाखा के प्रतिनिधि कवि।
- दर्शन: एकेश्वरवादी, मूर्तिपूजा के विरोधी और निराकार ब्रह्म के उपासक।
- समाज सुधारक: उन्होंने समाज में व्याप्त आडंबरों, रूढ़ियों, धार्मिक कट्टरता, जाति-पाति और छुआछूत का पुरजोर विरोध किया। वे एक क्रांतिकारी समाज सुधारक थे।
- भाषा: इनकी भाषा को 'सधुक्कड़ी' या 'पंचमेल खिचड़ी' कहा जाता है, जिसमें अवधी, ब्रज, राजस्थानी, पंजाबी और खड़ी बोली के शब्दों का मिश्रण है।
- रचनाएँ: इनकी वाणियों का संग्रह 'बीजक' नामक ग्रंथ में संकलित है, जिसके तीन भाग हैं - साखी, सबद (पद) और रमैनी।
पद 1 : अरे इन दोहुन राह न पाई
प्रसंग:
इस पद में कबीरदास ने हिंदू और मुसलमान दोनों धर्मों में व्याप्त बाहरी आडंबरों, पाखंड और कट्टरता पर तीखा व्यंग्य किया है। उन्होंने दोनों को ही सच्चा मार्ग भूला हुआ बताया है, क्योंकि वे धर्म के वास्तविक मर्म (प्रेम, करुणा, समानता) को छोड़कर व्यर्थ के कर्मकांडों में उलझे हुए हैं।
विस्तृत व्याख्या:
-
"अरे इन दोहुन राह न पाई। हिंदुन की हिंदुआई देखी तुरकन की तुरकाई॥"
कबीर कहते हैं कि इन दोनों (हिंदू और मुसलमान) ने ईश्वर तक पहुँचने का सच्चा मार्ग नहीं पाया है। मैंने हिंदुओं का हिंदुत्व और मुसलमानों का इस्लाम, दोनों को ही देख लिया है, दोनों ही पाखंड से भरे हैं। -
"हिंदू अपनी करै बड़ाई गागर छुवन न देई। बेस्या के पायन-तर सोवै यहु देखो हिंदुआई॥"
कबीर हिंदुओं के जातिगत भेदभाव और छुआछूत पर प्रहार करते हुए कहते हैं कि ये लोग अपनी श्रेष्ठता का बखान करते हैं और किसी 'नीची' जाति के व्यक्ति को अपनी पानी की गगरी (मटकी) तक नहीं छूने देते, लेकिन वही लोग वेश्याओं के चरणों में पड़े रहते हैं। कबीर पूछते हैं कि क्या यही इनका हिंदुत्व है? यह उनके दोहरे चरित्र पर करारा व्यंग्य है। -
"मुसलमान के पीर-औलिया मुरगी-मुरगा खाई। खाला केरी बेटी ब्याहैं घरहि में करैं सगाई॥"
अब वे मुसलमानों पर व्यंग्य करते हैं कि उनके पीर-औलिया (धर्मगुरु) स्वयं मुर्गा-मुर्गी आदि खाकर जीव-हत्या करते हैं। वे अपनी मौसी की बेटी से शादी कर लेते हैं, यानी पारिवारिक रिश्तों की पवित्रता का भी ध्यान नहीं रखते और घर में ही रिश्ते जोड़ लेते हैं। -
"बाहर से इक मुरदा लाये धोय-धाय चढ़वाई। सब सखियाँ मिलि जेंवन बैठीं घर-भर करैं बड़ाई॥"
कबीर दोनों ही धर्मों में प्रचलित कर्मकांडों पर चोट करते हैं। वे कहते हैं कि लोग बाहर से लाए गए मृत जीव (बकरे आदि) को धो-धाकर पकाते हैं और फिर सभी सगे-संबंधी मिलकर उसे खाते हैं और उस भोजन की प्रशंसा करते हैं। यह जीव-हत्या और मांसाहार पर व्यंग्य है। -
"हिंदुन की हिंदुआई देखी तुरकन की तुरकाई। कहैं कबीर सुनौ भई साधो कौन राह ह्वै जाई॥"
अंत में कबीर कहते हैं कि मैंने हिंदुओं और मुसलमानों, दोनों के धार्मिक आचरण को देख लिया है। वे श्रोताओं (साधुओं) से प्रश्न करते हैं कि बताओ, इनमें से कौन-सा मार्ग सही है जो ईश्वर तक ले जाएगा? उनका आशय है कि दोनों ही मार्ग आडंबरपूर्ण हैं और सच्चा मार्ग तो प्रेम और आत्मज्ञान का है।
काव्य-सौंदर्य एवं विशेष:
-
भाव पक्ष:
- धार्मिक आडंबरों और पाखंड पर तीखा प्रहार।
- कबीर का समाज-सुधारक रूप प्रकट हुआ है।
- जाति-प्रथा और छुआछूत का खंडन।
- सर्वधर्म समभाव और मानवतावाद पर बल।
-
कला पक्ष:
- भाषा: सधुक्कड़ी, सीधी-सरल और आम बोलचाल की भाषा।
- शैली: व्यंग्यात्मक और उपदेशात्मक।
- अलंकार: अनुप्रास अलंकार ('तुरकन की तुरकाई', 'घरहि में करैं')।
- छंद: गेय पद (सबद)।
- शब्द-शक्ति: व्यंजना शब्द-शक्ति का सुंदर प्रयोग है, जहाँ शब्दों के माध्यम से गहरे सामाजिक व्यंग्य को प्रकट किया गया है।
पद 2 : बालम, आवो हमारे गेह रे
प्रसंग:
यह पद कबीर के रहस्यवाद का उत्कृष्ट उदाहरण है। इसमें जीवात्मा (विरहिणी नायिका के रूप में) अपने प्रियतम परमात्मा (पति/बालम के रूप में) के विरह में व्याकुल है और उनसे आकर मिलने की प्रार्थना कर रही है। यह आत्मा और परमात्मा के प्रेम और मिलन की आतुरता का मार्मिक चित्रण है।
विस्तृत व्याख्या:
-
"बालम, आवो हमारे गेह रे। तुम बिन दुखिया देह रे॥"
जीवात्मा रूपी विरहिणी कहती है, "हे प्रियतम (परमात्मा), तुम मेरे घर (हृदय/शरीर) में आ जाओ। तुम्हारे बिना मेरा यह शरीर बहुत दुखी है।" 'गेह' का अर्थ 'घर' है। -
"सब कोई कहै तुम्हारी नारी, मोकौं लगत लाज रे। दिल से नहीं लगाया, तब लग कैसा सनेह रे॥"
वह कहती है कि सभी लोग मुझे तुम्हारी पत्नी (अंश) कहते हैं, लेकिन मुझे यह सुनकर लज्जा आती है। क्योंकि जब तक तुमने मुझे अपने हृदय से नहीं लगाया, तब तक यह कैसा प्रेम है? अर्थात्, जब तक आत्मा-परमात्मा का साक्षात्कार नहीं होता, तब तक यह संबंध अधूरा है। -
"अन्न न भावै, नींद न आवै, गृह-बन धरै न धीर रे। कामिन को है बालम प्यारा, ज्यों प्यासे को नीर रे॥"
विरह की व्याकुलता का वर्णन करते हुए जीवात्मा कहती है कि न मुझे अन्न अच्छा लगता है, न नींद आती है। न घर में और न ही वन में मुझे धैर्य मिलता है। जिस प्रकार एक कामिनी (प्रेमिका) को उसका प्रियतम प्यारा होता है और प्यासे को पानी, ठीक वैसी ही मुझे तुम्हारी आवश्यकता है। -
"है कोई ऐसा पर-उपकारी, पिवसौं कहै सुनाय रे। अब तो बेहाल कबीर भयो है, बिन देखे जिव जाय रे॥"
जीवात्मा किसी परोपकारी संत या गुरु से प्रार्थना करती है कि क्या कोई ऐसा है जो मेरा यह संदेश मेरे प्रियतम तक पहुँचा दे? उनसे जाकर कहो कि तुम्हारे बिना अब कबीर (यानी यह जीवात्मा) बेहाल हो गया है और तुम्हें देखे बिना मेरे प्राण निकल जाएँगे।
काव्य-सौंदर्य एवं विशेष:
-
भाव पक्ष:
- आत्मा और परमात्मा के बीच के प्रेम का सुंदर चित्रण (रहस्यवाद)।
- विरह की वेदना की मार्मिक अभिव्यक्ति।
- दार्शनिक भाव को लौकिक प्रेम के प्रतीकों के माध्यम से व्यक्त किया गया है।
- ईश्वर से मिलन की तीव्र उत्कंठा।
-
कला पक्ष:
- रस: वियोग श्रृंगार रस।
- भाषा: सधुक्कड़ी भाषा में माधुर्य का पुट है। इसमें ब्रजभाषा का प्रभाव अधिक है।
- प्रतीकात्मकता: 'बालम' - परमात्मा का प्रतीक, 'गेह' - हृदय/शरीर का प्रतीक, 'नारी/कामिनी' - जीवात्मा का प्रतीक।
- अलंकार: अनुप्रास ('दुखिया देह'), उपमा ('ज्यों प्यासे को नीर रे')।
- छंद: गेय पद, जिसमें संगीतात्मकता और लय है।
बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs)
प्रश्न 1. कबीरदास भक्तिकाल की किस काव्यधारा के कवि थे?
(क) सगुण काव्यधारा
(ख) निर्गुण काव्यधारा
(ग) रीतिबद्ध काव्यधारा
(घ) प्रेमाश्रयी काव्यधारा
प्रश्न 2. 'अरे इन दोहुन राह न पाई' पद में 'दोहुन' शब्द किनके लिए प्रयुक्त हुआ है?
(क) अमीर और गरीब
(ख) ज्ञानी और अज्ञानी
(ग) हिंदू और मुसलमान
(घ) गुरु और शिष्य
प्रश्न 3. पहले पद में कबीर ने हिंदुओं के किस आचरण पर व्यंग्य किया है?
(क) मूर्तिपूजा
(ख) छुआछूत और पाखंड
(ग) यज्ञ करना
(घ) तीर्थ यात्रा
प्रश्न 4. "खाला केरी बेटी ब्याहैं" पंक्ति के माध्यम से कबीर किस पर प्रहार करते हैं?
(क) हिंदुओं के विवाह-नियमों पर
(ख) मुसलमानों के पारिवारिक रिश्तों पर
(ग) बाल-विवाह पर
(घ) अंतर्जातीय विवाह पर
प्रश्न 5. 'बालम, आवो हमारे गेह रे' पद में 'बालम' किसका प्रतीक है?
(क) राजा का
(ख) पति का
(ग) गुरु का
(घ) परमात्मा का
प्रश्न 6. दूसरे पद में कौन-सा मुख्य भाव व्यक्त हुआ है?
(क) सामाजिक सुधार
(ख) दार्शनिक रहस्यवाद
(ग) वीरता का भाव
(घ) प्रकृति-चित्रण
प्रश्न 7. "अन्न न भावै, नींद न आवै" पंक्ति में जीवात्मा की किस दशा का वर्णन है?
(क) बीमारी की दशा
(ख) विरह की व्याकुलता
(ग) अत्यधिक प्रसन्नता
(घ) निर्धनता की दशा
प्रश्न 8. 'गेह' शब्द का क्या अर्थ है?
(क) गाँव
(ख) वन
(ग) घर
(घ) शरीर
प्रश्न 9. कबीर की भाषा को क्या नाम दिया गया है?
(क) अवधी
(ख) ब्रजभाषा
(ग) सधुक्कड़ी
(घ) मैथिली
प्रश्न 10. "ज्यों प्यासे को नीर रे" पंक्ति में कौन-सा अलंकार है?
(क) रूपक
(ख) यमक
(ग) उपमा
(घ) श्लेष
उत्तरमाला:
- (ख) निर्गुण काव्यधारा
- (ग) हिंदू और मुसलमान
- (ख) छुआछूत और पाखंड
- (ख) मुसलमानों के पारिवारिक रिश्तों पर
- (घ) परमात्मा का
- (ख) दार्शनिक रहस्यवाद
- (ख) विरह की व्याकुलता
- (ग) घर
- (ग) सधुक्कड़ी
- (ग) उपमा