Class 11 Hindi Notes Chapter 11 (महादेवी वर्मा) – Aroh Book

चलिए, आज हम हिंदी साहित्य के 'छायावाद' स्तंभों में से एक, महादेवी वर्मा जी और उनके द्वारा रचित प्रसिद्ध संस्मरणात्मक रेखाचित्र 'भक्तिन' का गहन अध्ययन करते हैं। यह पाठ सरकारी परीक्षाओं की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें लेखिका के परिचय से लेकर पाठ के पात्र, मूल संवेदना और भाषा-शैली तक से प्रश्न बनते हैं।
अध्याय 11: महादेवी वर्मा (पाठ: भक्तिन)
विस्तृत नोट्स (परीक्षा की तैयारी हेतु)
1. लेखिका-परिचय: महादेवी वर्मा (1907 - 1987)
- जन्म: सन् 1907, फ़र्रुख़ाबाद (उत्तर प्रदेश)।
- निधन: सन् 1987, इलाहाबाद (अब प्रयागराज)।
- युग: इन्हें हिंदी साहित्य के 'छायावाद' के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माना जाता है। अन्य तीन हैं - जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' और सुमित्रानंदन पंत।
- उपाधि: इन्हें 'आधुनिक युग की मीरा' भी कहा जाता है। इनके काव्य में विरह-वेदना और अज्ञात प्रियतम के प्रति समर्पण का भाव प्रमुख है।
- प्रमुख रचनाएँ:
- काव्य-संग्रह: नीहार, रश्मि, नीरजा, सांध्यगीत, दीपशिखा, यामा। (विशेषकर 'यामा' के लिए इन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला)।
- गद्य (रेखाचित्र और संस्मरण): अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएँ, पथ के साथी, मेरा परिवार, शृंखला की कड़ियाँ।
- 'भक्तिन' पाठ 'स्मृति की रेखाएँ' नामक संग्रह से लिया गया है।
- प्रमुख पुरस्कार एवं सम्मान:
- ज्ञानपीठ पुरस्कार: 'यामा' काव्य-संग्रह के लिए (सन् 1982 में)। यह हिंदी साहित्य का सर्वोच्च सम्मान है।
- पद्म भूषण: (सन् 1956)
- पद्म विभूषण: (सन् 1988, मरणोपरांत)
- साहित्यिक विशेषताएँ:
- इनके गद्य में समाज के शोषित, पीड़ित और उपेक्षित पात्रों (विशेषकर महिलाओं) के प्रति गहरी संवेदना और करुणा दिखाई देती है।
- इनकी भाषा संस्कृतनिष्ठ, तत्सम प्रधान, लेकिन अत्यंत चित्रात्मक और प्रवाहमयी है। वे शब्दों से सजीव चित्र खींच देती हैं।
- 'शृंखला की कड़ियाँ' इनकी एक महत्वपूर्ण कृति है, जिसमें उन्होंने भारतीय समाज में स्त्री जीवन की समस्याओं पर गंभीर विचार व्यक्त किए हैं।
2. पाठ का सार: 'भक्तिन'
'भक्तिन' महादेवी वर्मा का प्रसिद्ध संस्मरणात्मक रेखाचित्र है, जिसमें उन्होंने अपनी सेविका के जीवन के उतार-चढ़ाव और उसके व्यक्तित्व का मार्मिक चित्रण किया है। लेखिका ने भक्तिन के जीवन को चार परिच्छेदों में बाँटा है:
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प्रथम परिच्छेद (बचपन और विवाह): भक्तिन का वास्तविक नाम 'लछमिन' अर्थात् लक्ष्मी था। वह ऐतिहासिक गाँव 'झूँसी' की रहने वाली एक गोपालक की इकलौती बेटी थी। 5 वर्ष की आयु में उसका विवाह हँडिया गाँव के एक संपन्न गोपालक के पुत्र से कर दिया गया और 9 वर्ष की आयु में गौना हो गया। उसकी विमाता (सौतेली माँ) ने उसके पिता की मृत्यु का समाचार भी उसे देर से दिया, ताकि वह पिता की संपत्ति में हिस्सा न माँग सके। ससुराल पहुँचने पर सास द्वारा अपमानित किए जाने पर उसने अपने पिता के घर कभी न जाने का निश्चय किया।
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द्वितीय परिच्छेद (वैवाहिक जीवन): भक्तिन ने तीन बेटियों को जन्म दिया, जिस कारण उसे अपनी सास और जेठानियों (जिनके लड़के थे) की उपेक्षा सहनी पड़ती थी। घर का सारा काम भक्तिन करती थी, जबकि जेठानियाँ आराम करती थीं। लेकिन भक्तिन का पति उसे बहुत प्रेम करता था, जिसके सहारे वह यह सब सह लेती थी। उसने अपने पति के सहयोग से घर-गृहस्थी अलग कर ली और परिश्रम से घर को समृद्ध बनाया। 29 वर्ष की आयु में उसके पति का निधन हो गया, और उस पर दुःखों का पहाड़ टूट पड़ा।
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तृतीय परिच्छेद (विधवा जीवन और संघर्ष): पति की मृत्यु के बाद परिवार वालों (जेठ-जेठौतों) की दृष्टि उसकी संपत्ति पर थी। उन्होंने भक्तिन पर दूसरा विवाह करने का दबाव डाला, लेकिन स्वाभिमानी भक्तिन ने साफ़ मना कर दिया। उसने अपनी बेटियों का विवाह धूमधाम से किया। परिवार वालों ने षड्यंत्र करके उसकी बड़ी बेटी के विवाह को तोड़ने के लिए अपने एक 'तीतरबाज़' साले को उसके घर में घुसा दिया। पंचायत ने भी अन्यायपूर्ण फ़ैसला सुनाते हुए दोनों का विवाह करा दिया। इस घटना के बाद घर में कलह और गरीबी बढ़ गई। लगान न चुका पाने के कारण ज़मींदार ने उसे दिनभर धूप में खड़ा रखा। इस अपमान से आहत होकर वह गाँव छोड़कर शहर (इलाहाबाद) आ गई।
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चतुर्थ परिच्छेद (महादेवी के साथ जीवन): शहर में उसकी भेंट महादेवी वर्मा से हुई। महादेवी ने उसकी वेशभूषा (गले में कंठी-माला) देखकर उसका नाम 'भक्तिन' रख दिया। भक्तिन ने लेखिका की सेवा पूरे समर्पण भाव से की। वह लेखिका के खाने-पीने से लेकर उनके हर काम का ध्यान रखती थी। उसका व्यक्तित्व ऐसा था कि उसने लेखिका को अपने ग्रामीण संस्कारों और खान-पान के अनुसार ढाल लिया, पर स्वयं नहीं बदली। वह लेखिका के साथ उनकी छाया बनकर रहती थी। यहाँ तक कि जब लेखिका को जेल जाने की संभावना महसूस हुई, तो भक्तिन भी उनके साथ जेल जाने को तैयार थी। इस प्रकार, दोनों के बीच स्वामी-सेविका का संबंध न रहकर एक आत्मीय और गहरा संबंध स्थापित हो गया।
3. मुख्य पात्र: भक्तिन का चरित्र-चित्रण
- स्वाभिमानी और संघर्षशील: वह किसी के आगे झुकती नहीं है। पिता की मृत्यु पर अपमानित होने से लेकर पति की मृत्यु के बाद संपत्ति के लिए संघर्ष तक, उसका जीवन स्वाभिमान और संघर्ष का प्रतीक है।
- कर्मठ और परिश्रमी: उसने अपनी मेहनत से अपनी गृहस्थी को सँवारा और समृद्ध बनाया।
- दृढ़ निश्चयी: उसने पुनर्विवाह न करने का दृढ़ निश्चय किया और उस पर कायम रही।
- तर्कशील: वह अपनी बात को तर्क द्वारा सही सिद्ध करने का प्रयास करती है, भले ही उसके तर्क विचित्र हों। जैसे, लेखिका के पैसों को भंडारघर की मटकी में छिपाकर रखना वह चोरी नहीं मानती।
- सच्ची सेविका और अनन्य भक्त: वह हनुमान जी की तरह लेखिका की सेवा करती है। लेखिका के लिए वह सब कुछ त्यागने को तैयार है। उसका सेवा-धर्म अत्यंत प्रबल है।
- ग्रामीण संस्कारों से युक्त: शहर आकर भी वह अपनी देहाती भाषा, खान-पान और मान्यताओं को नहीं छोड़ती।
4. पाठ के मुख्य उद्देश्य और संदेश
- यह पाठ ग्रामीण समाज में स्त्रियों की दयनीय स्थिति, पितृसत्तात्मक समाज के दोहरे मापदंड और उनके शोषण को उजागर करता है।
- यह एक स्त्री के आत्म-सम्मान, संघर्ष और जीवन-मूल्यों की कहानी है।
- यह पाठ मानवीय संवेदना और आत्मीय संबंधों की महत्ता को दर्शाता है, जो वर्ग, जाति और पद से ऊपर होते हैं।
- लेखिका ने भक्तिन के माध्यम से एक ऐसे चरित्र को अमर कर दिया है जो समाज के निचले तबके का प्रतिनिधित्व करता है।
अभ्यास हेतु महत्वपूर्ण बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs)
प्रश्न 1: महादेवी वर्मा को उनके किस काव्य-संग्रह के लिए 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' से सम्मानित किया गया?
(क) नीहार
(ख) रश्मि
(ग) यामा
(घ) दीपशिखा
प्रश्न 2: 'भक्तिन' पाठ महादेवी वर्मा की किस कृति से लिया गया है?
(क) अतीत के चलचित्र
(ख) स्मृति की रेखाएँ
(ग) पथ के साथी
(घ) मेरा परिवार
प्रश्न 3: भक्तिन का वास्तविक नाम क्या था?
(क) भक्ति
(ख) लछमिन
(ग) पारबती
(घ) गौरा
प्रश्न 4: भक्तिन के जीवन को लेखिका ने कितने परिच्छेदों में विभक्त किया है?
(क) दो
(ख) तीन
(ग) चार
(घ) पाँच
प्रश्न 5: ससुराल में भक्तिन को किसके क्रोध का सामना करना पड़ता था क्योंकि उसने बेटियों को जन्म दिया था?
(क) पति के
(ख) ससुर के
(ग) सास और जेठानियों के
(घ) देवर के
प्रश्न 6: भक्तिन को गाँव क्यों छोड़ना पड़ा?
(क) पति से झगड़ा होने के कारण
(ख) बेटियों के विवाह के कारण
(ग) ज़मींदार द्वारा लगान न चुका पाने पर अपमानित किए जाने के कारण
(घ) शहर में नौकरी करने की इच्छा के कारण
प्रश्न 7: महादेवी वर्मा ने भक्तिन का नामकरण क्या देखकर किया?
(क) उसके कपड़े देखकर
(ख) उसकी सेवा-भावना देखकर
(ग) उसके गले में कंठी-माला देखकर
(घ) उसका मुँडा हुआ सिर देखकर
प्रश्न 8: भक्तिन और महादेवी वर्मा के बीच कैसा संबंध था?
(क) केवल मालकिन और नौकरानी का
(ख) माँ और बेटी का
(ग) गुरु और शिष्य का
(घ) आत्मीय संरक्षक और सेविका का
प्रश्न 9: "मेरे भ्रमण की भी एकांत साथिन भक्तिन ही रही है।" - इस पंक्ति से भक्तिन का कौन-सा गुण प्रकट होता है?
(क) वह बहुत बातूनी थी
(ख) वह लेखिका की छाया बनकर साथ रहती थी
(ग) उसे घूमना बहुत पसंद था
(घ) वह लेखिका की जासूसी करती थी
प्रश्न 10: 'तीतरबाज़' युवक का भक्तिन की बेटी से विवाह किसके षड्यंत्र का परिणाम था?
(क) भक्तिन के जेठ-जेठौतों का
(ख) गाँव के मुखिया का
(ग) ज़मींदार का
(घ) भक्तिन की विमाता का
उत्तरमाला:
- (ग) यामा
- (ख) स्मृति की रेखाएँ
- (ख) लछमिन
- (ग) चार
- (ग) सास और जेठानियों के
- (ग) ज़मींदार द्वारा लगान न चुका पाने पर अपमानित किए जाने के कारण
- (ग) उसके गले में कंठी-माला देखकर
- (घ) आत्मीय संरक्षक और सेविका का
- (ख) वह लेखिका की छाया बनकर साथ रहती थी
- (क) भक्तिन के जेठ-जेठौतों का