Class 11 Hindi Notes Chapter 11 (सूरदास : खेलन में को काको गुसैयाँ ; मुरली तउ गुपालहि भावति) – Antra Book

नमस्ते विद्यार्थियों।
आज हम कक्षा 11 की 'अंतरा' पुस्तक में संकलित महाकवि सूरदास के पदों का विस्तृत अध्ययन करेंगे। यह अध्याय सरकारी परीक्षाओं की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि सूरदास भक्तिकाल के एक स्तंभ हैं और उनके पदों से अक्सर प्रश्न पूछे जाते हैं।
अध्याय 11: सूरदास
कवि परिचय
- कवि: सूरदास
- जन्म: सन् 1478 (रुणुका या सीही ग्राम में)
- मृत्यु: सन् 1583 (पारसौली में)
- काल: भक्तिकाल की सगुण काव्यधारा।
- शाखा: कृष्णभक्ति शाखा के सर्वप्रमुख कवि।
- गुरु: महाप्रभु वल्लभाचार्य।
- काव्य-भाषा: ब्रजभाषा।
- प्रमुख रचनाएँ: सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य-लहरी। 'सूरसागर' इनकी कीर्ति का आधार स्तंभ है।
- विशेष: इन्हें 'अष्टछाप' के कवियों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। वात्सल्य और शृंगार रस के वर्णन में ये अद्वितीय हैं, इसलिए इन्हें 'वात्सल्य रस का सम्राट' भी कहा जाता है।
पद - 1: 'खेलन में को काको गुसैयाँ'
संदर्भ एवं प्रसंग:
प्रस्तुत पद महाकवि सूरदास द्वारा रचित 'सूरसागर' के 'बाल लीला' प्रसंग से लिया गया है। इस पद में सूरदास ने श्रीकृष्ण की बाल-सुलभ चेष्टाओं और खेल में हारने पर रूठने तथा सखाओं द्वारा उन्हें मनाने का बड़ा ही मनोवैज्ञानिक और सजीव चित्रण किया है।
पद की व्याख्या:
खेलन में को काको गुसैयाँ।
हरि हारे, जीते श्रीदामा, बरबस हीं कत करत रिसैयाँ॥
जाति-पाँति हमतें बड़ नाहीं, नाहीं बसत तुम्हारी छैयाँ।
अति अधिकार जनावत यातें, जातें अधिक तुम्हारें गैयाँ॥
रूठहि करै तासौं को खेलै, रहे बैठि जहँ-तहँ गवैयाँ।
सूरदास प्रभु खेल्यौइ चाहत, दाउँ दियौ करि नंद-दुहैयाँ॥
सरलार्थ एवं व्याख्या:
खेल में श्रीकृष्ण अपने मित्र श्रीदामा से हार जाते हैं और क्रोध करने लगते हैं। इस पर उनके सखा (ग्वाल-बाल) उन्हें उलाहना देते हुए कहते हैं:
- "खेलन में को काको गुसैयाँ": खेल में कोई किसी का स्वामी या मालिक नहीं होता। खेल में सब बराबर होते हैं।
- "हरि हारे, जीते श्रीदामा, बरबस हीं कत करत रिसैयाँ": श्रीदामा जीत गए हैं और तुम (कृष्ण) हार गए हो, फिर भी तुम व्यर्थ में ही गुस्सा क्यों कर रहे हो?
- "जाति-पाँति हमतें बड़ नाहीं...": उनके मित्र तर्क देते हैं कि तुम हमसे जाति-पाति में बड़े नहीं हो, और न ही हम तुम्हारी छाया या शरण में रहते हैं।
- "अति अधिकार जनावत यातें, जातें अधिक तुम्हारें गैयाँ": तुम हम पर इसलिए इतना अधिकार जता रहे हो क्योंकि तुम्हारे पास हमसे ज़्यादा गायें हैं। यह बालकों का एक मासूम तर्क है जो सामाजिक असमानता पर एक सूक्ष्म टिप्पणी भी है।
- "रूठहि करै तासौं को खेलै...": जो बात-बात पर रूठ जाए, उसके साथ कौन खेलना चाहेगा? यह कहकर सभी ग्वाल-बाल इधर-उधर मुँह फेरकर बैठ जाते हैं।
- "सूरदास प्रभु खेल्यौइ चाहत...": सूरदास कहते हैं कि प्रभु श्रीकृष्ण तो खेलना चाहते हैं। उनका गुस्सा झूठा था। जब उन्होंने देखा कि सब साथी रूठ गए हैं, तो उन्होंने नंद बाबा की कसम ("दुहाई") देकर अपनी बारी दी और खेलने के लिए तैयार हो गए।
काव्य-सौंदर्य एवं विशेष बिंदु:
- बाल-मनोविज्ञान का सजीव चित्रण: सूरदास ने बच्चों के खेल, हार-जीत पर उनकी प्रतिक्रिया, तर्क-वितर्क और रूठने-मनाने का अद्भुत मनोवैज्ञानिक वर्णन किया है।
- भाषा: सरल, सहज और मधुर ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है।
- रस: वात्सल्य रस।
- अलंकार:
- अनुप्रास अलंकार: 'को काको', 'करत रिसैयाँ' में 'क' और 'र' वर्ण की आवृत्ति।
- शैली: गेयात्मक (पद को गाया जा सकता है) और मुक्तक शैली।
- भाव: खेल में समानता का भाव और मित्रता की प्रधानता दर्शाई गई है।
पद - 2: 'मुरली तउ गुपालहि भावति'
संदर्भ एवं प्रसंग:
यह पद भी 'सूरसागर' से लिया गया है। इसमें गोपियाँ श्रीकृष्ण की मुरली के प्रति अपनी ईर्ष्या और सौतिया डाह का भाव व्यक्त कर रही हैं। उन्हें लगता है कि मुरली ने श्रीकृष्ण को पूरी तरह अपने वश में कर लिया है और वह उनसे कृष्ण को दूर कर रही है।
पद की व्याख्या:
मुरली तउ गुपालहि भावति।
सुनु री सखी, जदपि नंदलालहि, नाना भाँति नचावति॥
राखति एक पाँइ ठाढ़ौ करि, अति अधिकार जनावति।
कोमल तन आज्ञा करवावति, कटि टेढ़ी ह्वै आवति॥
आपुन पौढ़ि अधर-सज्जा पर, कर-पल्लव पलुटावति।
भृकुटी कुटिल, कोप नासा-पुट, हम पर कोप करावति॥
सूर प्रसन्न जानि एकौ छिन, धरतें सीस डुलावति॥
सरलार्थ एवं व्याख्या:
एक गोपी दूसरी गोपी से कहती है:
- "मुरली तउ गुपालहि भावति": हे सखी, यह मुरली तो गोपाल को बहुत अच्छी लगती है।
- "सुनु री सखी, जदपि नंदलालहि, नाना भाँति नचावति": सुनो सखी, यह मुरली नंदलाल (श्रीकृष्ण) को तरह-तरह से नचाती है, फिर भी वह उन्हें प्रिय है।
- "राखति एक पाँइ ठाढ़ौ करि...": यह मुरली कृष्ण से अपना पूरा अधिकार जताती है और उन्हें एक पैर पर खड़ा रखती है।
- "कोमल तन आज्ञा करवावति, कटि टेढ़ी ह्वै आवति": यह उनके कोमल शरीर से अपनी आज्ञा का पालन करवाती है, जिस कारण उनकी कमर भी टेढ़ी हो जाती है (त्रिभंगी मुद्रा)।
- "आपुन पौढ़ि अधर-सज्जा पर, कर-पल्लव पलुटावति": यह मुरली तो स्वयं कृष्ण के होठों रूपी सेज (बिस्तर) पर लेट जाती है और उनके कोमल पत्तों जैसे हाथों से अपने पैर दबवाती है (मुरली के छेदों पर उँगलियाँ चलाना)।
- "भृकुटी कुटिल, कोप नासा-पुट, हम पर कोप करावति": यह मुरली श्रीकृष्ण की भौंहें टेढ़ी करवाकर और नथुने फुलाकर हम (गोपियों) पर गुस्सा करवाती है।
- "सूर प्रसन्न जानि एकौ छिन, धरतें सीस डुलावति": सूरदास कहते हैं कि गोपियाँ कहती हैं कि यह मुरली कृष्ण को एक क्षण के लिए भी प्रसन्न देखकर उन्हें गर्दन से सिर हिलाने पर विवश कर देती है (जैसे कोई स्वामिनी अपने सेवक को इशारे करती है)।
काव्य-सौंदर्य एवं विशेष बिंदु:
- गोपियों की ईर्ष्या (सौतिया डाह): मुरली को एक सौतन के रूप में चित्रित किया गया है, जो गोपियों की विरह-वेदना और ईर्ष्या को प्रकट करता है।
- मानवीकरण अलंकार: पूरे पद में मुरली का मानवीकरण किया गया है। उसे एक चतुर और अधिकार जताने वाली स्त्री के रूप में दिखाया गया है।
- रूपक अलंकार: 'अधर-सज्जा' (होंठ रूपी सेज) और 'कर-पल्लव' (पत्ते रूपी हाथ) में रूपक अलंकार है।
- भाषा: साहित्यिक और माधुर्य गुण से युक्त ब्रजभाषा।
- रस: विप्रलंभ शृंगार रस (वियोग शृंगार)।
- शैली: गेयात्मक और मुक्तक शैली।
अभ्यास हेतु बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs)
1. 'खेलन में को काको गुसैयाँ' पद में खेल में कौन हार जाता है?
(क) श्रीदामा
(ख) बलराम
(ग) हरि (श्रीकृष्ण)
(घ) कोई नहीं
2. श्रीकृष्ण के मित्र किस बात पर तर्क देते हैं कि वे कृष्ण से बड़े हैं?
(क) जाति-पाति में
(ख) धन-दौलत में
(ग) गायों की संख्या में
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं
3. खेल में दोबारा शामिल होने के लिए श्रीकृष्ण किसकी दुहाई (कसम) देते हैं?
(क) यशोदा मैया की
(ख) नंद बाबा की
(ग) बलराम की
(घ) राधा की
4. 'मुरली तउ गुपालहि भावति' पद में गोपियाँ मुरली को क्या समझती हैं?
(क) एक वाद्य यंत्र
(ख) अपनी सखी
(ग) अपनी सौतन (प्रतिद्वंद्वी)
(घ) एक देवी
5. 'अधर-सज्जा' और 'कर-पल्लव' में कौन-सा अलंकार है?
(क) उपमा
(ख) रूपक
(ग) यमक
(घ) श्लेष
6. गोपियों के अनुसार, मुरली श्रीकृष्ण से क्या-क्या करवाती है?
(क) एक पाँव पर खड़ा रखती है
(ख) कमर टेढ़ी करवाती है
(ग) गोपियों पर क्रोध करवाती है
(घ) उपर्युक्त सभी
7. सूरदास किस काल के कवि हैं?
(क) आदिकाल
(ख) भक्तिकाल
(ग) रीतिकाल
(घ) आधुनिक काल
8. सूरदास के पदों की मुख्य भाषा क्या है?
(क) अवधी
(ख) खड़ी बोली
(ग) ब्रजभाषा
(घ) मैथिली
9. 'बरबस हीं कत करत रिसैयाँ' पंक्ति में 'बरबस' का क्या अर्थ है?
(क) बलपूर्वक
(ख) बार-बार
(ग) व्यर्थ में/अकारण
(घ) गुस्से में
10. दूसरे पद में किस रस की प्रधानता है?
(क) वात्सल्य रस
(ख) वीर रस
(ग) शांत रस
(घ) विप्रलंभ शृंगार रस
उत्तरमाला:
- (ग) हरि (श्रीकृष्ण)
- (घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं (वे कहते हैं कि कृष्ण किसी भी बात में उनसे बड़े नहीं हैं)
- (ख) नंद बाबा की
- (ग) अपनी सौतन (प्रतिद्वंद्वी)
- (ख) रूपक
- (घ) उपर्युक्त सभी
- (ख) भक्तिकाल
- (ग) ब्रजभाषा
- (ग) व्यर्थ में/अकारण
- (घ) विप्रलंभ शृंगार रस
इन नोट्स का ध्यानपूर्वक अध्ययन करें। यह आपकी परीक्षा की तैयारी में बहुत सहायक सिद्ध होगा। शुभकामनाएँ