Class 11 Hindi Notes Chapter 13 (पद्माकर : औरै भाँति कुंजन में गुंजरत ; गोकुल के कुल के गली के गोप ; भैंरन को गुंजन बिहार) – Antra Book

नमस्ते विद्यार्थियों। चलिए, आज हम कक्षा 11 की 'अंतरा' पुस्तक से रीतिकाल के श्रेष्ठ कवि पद्माकर द्वारा रचित पदों का गहन अध्ययन करेंगे। यह अध्याय प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है, इसलिए हम इसके हर पहलू को विस्तार से समझेंगे।
कवि परिचय : पद्माकर (1753-1833 ई.)
- जीवनकाल: पद्माकर रीतिकाल के अंतिम प्रसिद्ध और लोकप्रिय कवि माने जाते हैं। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले में हुआ था।
- राज्याश्रय: वे एक राजदरबारी कवि थे और उन्होंने अनेक राजाओं के यहाँ कार्य किया, जिनमें जयपुर नरेश प्रताप सिंह और जगत सिंह, पन्ना महाराज, सतारा नरेश आदि प्रमुख हैं।
- प्रमुख रचनाएँ: उनकी प्रसिद्ध रचनाओं में 'हिम्मतबहादुर विरुदावली', 'पद्माभरण', 'जगद्विनोद', 'रामरसायन' और 'गंगालहरी' शामिल हैं। 'जगद्विनोद' रस और नायिका-भेद का एक उत्कृष्ट ग्रंथ माना जाता है।
- काव्यगत विशेषताएँ:
- भाषा: उनकी भाषा सरस, सुव्यवस्थित और प्रवाहपूर्ण ब्रजभाषा है।
- अलंकार: अनुप्रास अलंकार का प्रयोग करने में वे सिद्धहस्त थे। उनके काव्य में नाद-सौंदर्य और ध्वन्यात्मकता का अद्भुत समन्वय मिलता है।
- बिंब-विधान: वे सजीव मूर्ति-विधान करने में अद्वितीय थे। उनके शब्द-चित्र पाठक की आँखों के सामने दृश्य को साकार कर देते हैं।
- रस: शृंगार (संयोग और वियोग), वीर और भक्ति रस का उन्होंने सुंदर परिपाक किया है।
पदों का विस्तृत विश्लेषण (Detailed Notes)
इस पाठ में पद्माकर के तीन कवित्त दिए गए हैं, जो क्रमशः वसंत, होली और वर्षा ऋतु के सौंदर्य और भावों को प्रकट करते हैं।
पहला कवित्त : 'औरै भाँति कुंजन में गुंजरत...'
प्रसंग: इस कवित्त में कवि ने वसंत ऋतु के आगमन से प्रकृति और जीव-जंतुओं में आए मनमोहक परिवर्तन का अत्यंत सजीव चित्रण किया है।
व्याख्या:
पद्माकर कहते हैं कि वसंत के आने से हर चीज़ में एक अनोखा, एक नयापन आ गया है। कुंजों (लताओं के घर) में भौंरों का गुंजार अब 'और ही तरह' का हो गया है, यानी उसमें एक नई मादकता आ गई है। आम के वृक्षों की डालियों पर जो बौर (आम के फूल) आए हैं, वे भी 'और ही तरह' के हैं, उनमें एक विशेष आकर्षण है।
कवि 'औरै' शब्द की पुनरावृत्ति के माध्यम से इस बदलाव की गहनता को दर्शाते हैं। वे कहते हैं कि गलियों में युवाओं की छवि, उनका रूप-रंग भी अब 'और ही तरह' का हो गया है। पक्षियों का कलरव (चहचहाना) भी बदल गया है। समाज में, लोगों के मन में और यहाँ तक कि ऋतुओं के राजा वसंत के आज के दिन में भी एक 'अलग ही प्रकार' का रस और सौंदर्य छा गया है। ब्रज के सुंदर और छबीले नवयुवकों की चाल-ढाल और नज़रों में भी एक अनोखी मादकता और प्रेम भर गया है।
काव्य-सौंदर्य / विशेष:
- भाव: वसंत के सर्वव्यापी प्रभाव का सुंदर चित्रण।
- रस: संयोग शृंगार।
- अलंकार:
- पुनरुक्ति प्रकाश: 'औरै' शब्द की बार-बार आवृत्ति से अर्थ में विशेष बल आया है।
- अनुप्रास: 'कुंजन में गुंजरत', 'छलिया छबीले छैल' में वर्णों की आवृत्ति से नाद-सौंदर्य उत्पन्न हुआ है।
- भाषा: सरस एवं प्रवाहमयी ब्रजभाषा।
- छंद: कवित्त।
- बिंब: कवि ने वसंत का सजीव और गतिशील चित्र प्रस्तुत किया है।
दूसरा कवित्त : 'गोकुल के कुल के गली के गोप...'
प्रसंग: इस कवित्त में कवि पद्माकर ने गोकुल में खेली जाने वाली होली के उल्लासपूर्ण और उन्मुक्त वातावरण का अत्यंत गतिशील चित्र खींचा है।
व्याख्या:
पद्माकर कहते हैं कि गोकुल के सभी कुलों, गलियों के ग्वाले और गाँवों की ग्वालिनें जो भी मिलती हैं, वे सब होली के रंग में डूबी हुई हैं। एक-दूसरे पर रंग डालने और गुलाल मलने का जो वर्णन है, वह अत्यंत स्वाभाविक है। लोग अपने घरों को छोड़कर पड़ोसियों के पिछवाड़े तक दौड़ रहे हैं। वे एक-दूसरे पर रंग फेंक रहे हैं, अपने कपड़ों को निचोड़ रहे हैं और फिर से एक-दूसरे को रंग से सराबोर कर रहे हैं।
इस होली में कोई किसी की मान-मर्यादा का ध्यान नहीं रख रहा है। वे कृष्ण के पीले वस्त्र (पीताम्बर) को भी पकड़कर खींच लेते हैं और अपने केशों को निचोड़कर उसका पानी उन पर डालते हैं। दृश्य इतना गतिशील है कि एक गोपी अपनी आँखें बंद कर लेती है तो दूसरी अपनी बाहें ऊपर उठा लेती है, कोई अपने भीगे वस्त्र निचोड़ रही है तो किसी को बीच में ही पकड़कर डुबो दिया जा रहा है।
काव्य-सौंदर्य / विशेष:
- भाव: होली के त्योहार का उत्साह, उमंग और अल्हड़पन का सजीव चित्रण।
- रस: संयोग शृंगार।
- अलंकार:
- अनुप्रास: 'गोकुल के कुल के गली के गोप' में 'क' और 'ल' वर्ण की आवृत्ति दर्शनीय है।
- पुनरुक्ति प्रकाश: 'दौरी-दौरी' में।
- बिंब: यह कवित्त गतिशील बिंब का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। पाठक के मन में होली का पूरा दृश्य चलचित्र की भांति सजीव हो उठता है।
- भाषा: ब्रजभाषा का माधुर्य और ओज एक साथ प्रकट हुआ है।
- छंद: कवित्त।
तीसरा कवित्त : 'भैंरन को गुंजन बिहार...'
प्रसंग: इस कवित्त में कवि ने वर्षा ऋतु का वर्णन किया है, लेकिन यह वर्णन एक विरहिणी नायिका (गोपी) की दृष्टि से है, जो अपने प्रियतम (कृष्ण) के वियोग में दुखी है।
व्याख्या:
विरहिणी गोपी कहती है कि सावन का यह महीना उसे बहुत कष्ट दे रहा है। जो भौंरों का गुंजन, बाग-बगीचों का विहार और सावन के झूले उसे संयोग के समय में आनंद देते थे, वे ही अब उसे अत्यंत भयानक लग रहे हैं। पद्माकर कहते हैं कि मोरों का शोर और कोयल की कूक, जो सामान्यतः मन को भाती है, वह भी अब उसे कानों में चुभ रही है।
प्रियतम के बिना ये सारी सुखद वस्तुएँ दुखदायी बन गई हैं। मेघों की झड़ी (लगातार वर्षा) और ठंडी हवा के झोंके भी उसे अब विष के समान प्राणघातक प्रतीत हो रहे हैं। गोपी के लिए श्याम (कृष्ण) के बिना यह सुहावना सावन का महीना भी असहनीय हो गया है और उसे जला रहा है।
काव्य-सौंदर्य / विशेष:
- भाव: वियोग की अवस्था में प्रकृति के सुखद उद्दीपन भी कष्टकारी प्रतीत होते हैं, इसी भाव की मार्मिक अभिव्यक्ति हुई है।
- रस: वियोग शृंगार रस।
- अलंकार:
- अनुप्रास: 'बिहार बन बागन में', 'मोरन को सोर' में अनुप्रास की छटा है।
- मानवीकरण: यहाँ सावन को एक कष्ट देने वाले पात्र के रूप में चित्रित किया गया है।
- भाषा: भावानुकूल, वियोग की पीड़ा को व्यक्त करने में समर्थ ब्रजभाषा।
- छंद: कवित्त।
- मनोवैज्ञानिक सत्य: इसमें इस मनोवैज्ञानिक सत्य का उद्घाटन है कि मन की दशा के अनुसार ही बाहरी वातावरण का अनुभव होता है।
अभ्यास हेतु वस्तुनिष्ठ प्रश्न (MCQs)
1. कवि पद्माकर हिंदी साहित्य के किस काल के कवि हैं?
(क) भक्तिकाल
(ख) आदिकाल
(ग) रीतिकाल
(घ) आधुनिक काल
2. पहले कवित्त में वसंत के प्रभाव को दर्शाने के लिए कवि ने किस शब्द की आवृत्ति की है?
(क) सुंदर
(ख) औरै
(ग) मन
(घ) कुंजन
3. दूसरे कवित्त में किस त्योहार का उल्लासपूर्ण वर्णन है?
(क) दीवाली
(ख) दशहरा
(ग) वसंत पंचमी
(घ) होली
4. 'भैंरन को गुंजन बिहार...' कवित्त में किस ऋतु का वर्णन है?
(क) ग्रीष्म
(ख) वसंत
(ग) वर्षा (सावन)
(घ) शरद
5. तीसरे कवित्त का मुख्य रस क्या है?
(क) संयोग शृंगार
(ख) वीर रस
(ग) शांत रस
(घ) वियोग शृंगार
6. 'गोकुल के कुल के गली के गोप' पंक्ति में कौन-सा अलंकार प्रमुख है?
(क) यमक
(ख) श्लेष
(ग) अनुप्रास
(घ) उपमा
7. विरहिणी गोपी को सावन में ठंडी हवा के झोंके किसके समान लग रहे हैं?
(क) अमृत के समान
(ख) विष के समान
(ग) साधारण वायु के समान
(घ) चंदन के समान
8. पद्माकर की कौन-सी रचना रस और नायिका-भेद का प्रसिद्ध ग्रंथ है?
(क) गंगालहरी
(ख) पद्माभरण
(ग) जगद्विनोद
(घ) रामरसायन
9. दूसरे कवित्त में गोपियाँ किसका पीला वस्त्र (पीत पट) पकड़ लेती हैं?
(क) बलराम का
(ख) नंदबाबा का
(ग) कृष्ण का
(घ) किसी ग्वाले का
10. पहले कवित्त के अनुसार, वसंत आने पर किनका शोर 'और ही तरह' का हो गया है?
(क) बच्चों का
(ख) पक्षियों का
(ग) वाहनों का
(घ) बादलों का
उत्तरमाला:
- (ग)
- (ख)
- (घ)
- (ग)
- (घ)
- (ग)
- (ख)
- (ग)
- (ग)
- (ख)