Class 11 Hindi Notes Chapter 14 (फणीश्वर नाथ रेणु) – Aroh Book

चलिए, आज हम कक्षा 11 की 'आरोह' पुस्तक के अध्याय 14, 'फणीश्वर नाथ रेणु' और उनकी कहानी 'पहलवान की ढोलक' का प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से गहन अध्ययन करेंगे। यह अध्याय न केवल लेखक की साहित्यिक विशेषताओं को समझने के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि इससे भारतीय ग्रामीण समाज की दशा और कला के अवमूल्यन जैसे विषयों पर भी प्रश्न बनते हैं।
अध्याय 14: फणीश्वर नाथ रेणु
1. लेखक परिचय
- जन्म: 4 मार्च 1921, औराही हिंगना गाँव, जिला- पूर्णिया (अब अररिया), बिहार।
- मृत्यु: 11 अप्रैल 1977, पटना।
- साहित्यिक पहचान: हिंदी साहित्य में 'आंचलिक कथाकार' के रूप में प्रसिद्ध। उन्होंने अपनी रचनाओं में ग्रामीण अंचल के जीवन, भाषा, संस्कृति, रीति-रिवाज और समस्याओं का अत्यंत सजीव चित्रण किया है।
- प्रमुख रचनाएँ:
- उपन्यास:
- मैला आँचल (1954): यह उनका सबसे प्रसिद्ध उपन्यास है जिसने उन्हें रातों-रात हिंदी साहित्य के बड़े कथाकारों की श्रेणी में ला खड़ा किया। यह हिंदी का पहला सफल आंचलिक उपन्यास माना जाता है।
- परती परिकथा: यह भी एक महत्वपूर्ण आंचलिक उपन्यास है।
- जूलूस, दीर्घतपा, कितने चौराहे, पल्टू बाबू रोड।
- कहानी-संग्रह:
- ठुमरी: 'पहलवान की ढोलक' कहानी इसी संग्रह में संकलित है।
- एक आदिम रात्रि की महक, अगिनखोर, अच्छे आदमी।
- रिपोर्ताज:
- ऋणजल धनजल: 1966 के बिहार के सूखे का मार्मिक वर्णन।
- नेपाली क्रांतिकथा, वनतुलसी की गंध, श्रुत-अश्रुत पूर्व।
- पुरस्कार एवं सम्मान: 'मैला आँचल' के लिए उन्हें 'पद्मश्री' से सम्मानित किया गया।
- उपन्यास:
- भाषा-शैली:
- उनकी भाषा में आंचलिक (क्षेत्रीय) शब्दों, मुहावरों और लोकोक्तियों का प्रचुर प्रयोग मिलता है।
- भाषा अत्यंत सजीव, चित्रात्मक और लयबद्ध होती है।
- पात्रों के संवाद उनकी सामाजिक स्थिति और परिवेश के अनुसार होते हैं।
2. कहानी: 'पहलवान की ढोलक'
यह कहानी व्यवस्था के बदलने के साथ लोक-कला और कलाकार के अप्रासंगिक हो जाने की कहानी है। यह कहानी उस भारतीय ग्रामीण जीवन की तस्वीर भी प्रस्तुत करती है, जहाँ गरीबी, अशिक्षा और महामारी जैसी समस्याएँ जीवन को निगल जाती हैं।
क. पात्र परिचय
- लुट्टन सिंह पहलवान: कहानी का मुख्य पात्र। बचपन में अनाथ, सास द्वारा पाला-पोसा गया। अपने अपमान का बदला लेने के लिए पहलवान बना। वह कला का साधक है और ढोलक की आवाज़ को अपना गुरु मानता है।
- चाँद सिंह (काला खाँ): एक प्रसिद्ध पहलवान जिसे लुट्टन ने श्यामनगर के दंगल में हराया था। वह 'शेर के बच्चे' के नाम से मशहूर था।
- राजा साहब: श्यामनगर के राजा, कला के पारखी और लुट्टन के आश्रयदाता।
- राजकुमार: राजा साहब का बेटा, जो विलायत से पढ़कर आया है। उसकी सोच आधुनिक है और उसे कुश्ती जैसे खेलों में कोई रुचि नहीं है।
- लुट्टन के दोनों बेटे: वे भी पहलवान थे, लेकिन गाँव की गरीबी और फिर महामारी का शिकार हो गए।
ख. कहानी का सार एवं मुख्य बिंदु
- लुट्टन का उदय: लुट्टन सिंह ने श्यामनगर के मेले में पंजाब से आए पहलवान चाँद सिंह को चुनौती देकर सबको हैरान कर दिया। ढोलक की आवाज़ से प्रेरणा लेकर उसने चाँद सिंह को हरा दिया और राजा साहब ने खुश होकर उसे राज-पहलवान बना लिया।
- स्वर्ण काल: राजा साहब के संरक्षण में लुट्टन 15 वर्षों तक अजेय रहा। उसके खाने-पीने और अभ्यास का सारा खर्च राज-दरबार से मिलता था। ढोलक उसकी प्रेरणा थी, जिसे वह अपना गुरु मानता था।
- व्यवस्था का बदलना और कला का पतन: राजा साहब की मृत्यु के बाद विलायत से लौटे राजकुमार ने राज-काज संभाला। उसने कुश्ती को 'हॉरिबल' (भयानक) बताकर बंद करवा दिया और पहलवानों पर हो रहे खर्च को फिजूलखर्ची कहा। लुट्टन को राज-दरबार से निकाल दिया गया।
- ग्रामीण जीवन का यथार्थ: गाँव वापस आकर लुट्टन अपने दोनों बेटों को कुश्ती सिखाने लगा, लेकिन गाँव की गरीबी के कारण उनके खान-पान का खर्च उठाना मुश्किल था। गाँव वाले उसे केवल एक कलाकार के रूप में जानते थे, उसे आर्थिक मदद नहीं दे सकते थे।
- महामारी की विभीषिका: गाँव में हैजा और मलेरिया फैल गया। रोज़ लाशें उठ रही थीं। रात के सन्नाटे और लोगों के कराहने की आवाज़ के बीच लुट्टन की ढोलक की आवाज़ ही थी, जो गाँव वालों में जीने की इच्छा और साहस बनाए रखती थी। ढोलक की आवाज़ उस भयावह रात में संजीवनी शक्ति का काम करती थी।
- अंतिम संघर्ष और मृत्यु: एक रात लुट्टन के दोनों बेटे भी महामारी की चपेट में आकर मर गए। उस रात भी लुट्टन ने हिम्मत नहीं हारी और सुबह तक ढोल बजाता रहा। अगली सुबह लोगों ने देखा कि लुट्टन की लाश चित्त पड़ी थी। उसने शायद अपने बेटों की तरह ही दम तोड़ने से पहले यह इच्छा जताई होगी कि उसे पेट के बल लिटाया जाए क्योंकि वह जीवन में कभी चित्त नहीं हुआ था।
ग. कहानी का उद्देश्य और संदेश
- कला का अवमूल्यन: कहानी दिखाती है कि सत्ता और व्यवस्था बदलने पर कला और कलाकारों का कोई मूल्य नहीं रह जाता। लोक-कलाएँ संरक्षण के अभाव में दम तोड़ देती हैं।
- मानवीय जिजीविषा: भीषण दुःख, गरीबी और मौत के तांडव के बीच भी लुट्टन की ढोलक जीवन के प्रति आस्था और जीने की इच्छा (जिजीविषा) का प्रतीक है।
- ग्रामीण भारत का यथार्थ: यह कहानी भारतीय गाँवों में फैली गरीबी, भुखमरी और स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव को उजागर करती है।
अभ्यास हेतु बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs)
1. फणीश्वर नाथ रेणु को किस प्रकार के कथाकार के रूप में ख्याति प्राप्त है?
(क) प्रगतिवादी
(ख) आंचलिक
(ग) प्रयोगवादी
(घ) यथार्थवादी
2. 'पहलवान की ढोलक' कहानी रेणु के किस कहानी-संग्रह से ली गई है?
(क) मैला आँचल
(ख) परती परिकथा
(ग) ठुमरी
(घ) एक आदिम रात्रि की महक
3. लुट्टन पहलवान ने श्यामनगर के दंगल में किसे पराजित किया था?
(क) बादल सिंह
(ख) सूरज सिंह
(ग) चाँद सिंह
(घ) दारा सिंह
4. लुट्टन पहलवान अपना गुरु किसे मानता था?
(क) राजा साहब को
(ख) अपने ससुर को
(ग) ढोलक की आवाज को
(घ) चाँद सिंह को
5. गाँव में महामारी फैलने पर ढोलक की आवाज़ किसका काम करती थी?
(क) लोगों को डराने का
(ख) रात में जागते रहने का
(ग) संजीवनी शक्ति का
(घ) मनोरंजन का
6. राजा साहब की मृत्यु के बाद लुट्टन को राज-दरबार से क्यों निकाल दिया गया?
(क) क्योंकि वह बूढ़ा हो गया था
(ख) क्योंकि उसने दंगल हार दिया था
(ग) क्योंकि नए राजकुमार को कुश्ती में कोई रुचि नहीं थी
(घ) क्योंकि उसने राजकुमार का अपमान किया था
7. 'मैला आँचल' उपन्यास के लेखक कौन हैं?
(क) प्रेमचंद
(ख) यशपाल
(ग) फणीश्वर नाथ रेणु
(घ) कृष्णा सोबती
8. कहानी में किस बीमारी के फैलने का उल्लेख है?
(क) प्लेग और चेचक
(ख) टी.बी. और कैंसर
(ग) हैजा और मलेरिया
(घ) केवल बुखार
9. लुट्टन के दोनों बेटों की मृत्यु कैसे हुई?
(क) दंगल में लड़ते हुए
(ख) भूख के कारण
(ग) महामारी की चपेट में आने से
(घ) गाँव छोड़कर जाने से
10. 'पहलवान की ढोलक' कहानी का मुख्य संदेश क्या है?
(क) पहलवानों को हमेशा सम्मान देना चाहिए
(ख) ढोलक बजाना एक अच्छी कला है
(ग) व्यवस्था के बदलने से लोक-कलाओं का अवमूल्यन होता है
(घ) गाँवों में हमेशा महामारी फैलती है
उत्तरमाला:
- (ख) आंचलिक
- (ग) ठुमरी
- (ग) चाँद सिंह
- (ग) ढोलक की आवाज को
- (ग) संजीवनी शक्ति का
- (ग) क्योंकि नए राजकुमार को कुश्ती में कोई रुचि नहीं थी
- (ग) फणीश्वर नाथ रेणु
- (ग) हैजा और मलेरिया
- (ग) महामारी की चपेट में आने से
- (ग) व्यवस्था के बदलने से लोक-कलाओं का अवमूल्यन होता है