Class 11 Hindi Notes Chapter 14 (सुमित्रानंदन पंत : संध्या के बाद) – Antra Book

नमस्कार विद्यार्थियों।
आज हम सुमित्रानंदन पंत जी द्वारा रचित कविता 'संध्या के बाद' का गहन अध्ययन करेंगे। यह कविता न केवल प्रकृति के सौंदर्य का चित्रण करती है, बल्कि ग्रामीण जीवन की सामाजिक और आर्थिक विषमताओं पर भी एक मार्मिक टिप्पणी है। परीक्षा की दृष्टि से यह अध्याय अत्यंत महत्वपूर्ण है, तो चलिए इसके विस्तृत नोट्स को समझते हैं।
अध्याय 14: सुमित्रानंदन पंत - संध्या के बाद
कवि परिचय
- नाम: सुमित्रानंदन पंत
- जन्म: 20 मई 1900, कौसानी, अल्मोड़ा (उत्तराखंड)
- मृत्यु: 28 दिसंबर 1977
- विशेषता: पंत जी को 'प्रकृति का सुकुमार कवि' कहा जाता है। वे हिंदी साहित्य के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं (अन्य तीन हैं - जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' और महादेवी वर्मा)।
- प्रमुख रचनाएँ: वीणा, ग्रंथि, पल्लव, गुंजन, युगांत, युगवाणी, ग्राम्या, स्वर्णकिरण, स्वर्णधूलि, लोकायतन आदि।
- पुरस्कार: ज्ञानपीठ पुरस्कार (चिदंबरा के लिए), साहित्य अकादमी पुरस्कार, पद्म भूषण।
- कविता का संदर्भ: 'संध्या के बाद' कविता उनकी 'ग्राम्या' नामक काव्य संग्रह से ली गई है, जिसमें ग्रामीण जीवन की वास्तविकता और समस्याओं का यथार्थवादी चित्रण है।
कविता का सार
'संध्या के बाद' कविता में कवि ने गाँव में ढलती शाम के प्राकृतिक सौंदर्य का मनमोहक चित्रण किया है। साथ ही, उस सौंदर्य के बीच पनप रहे ग्रामीण जीवन के यथार्थ, गरीबी, विवशता और सामाजिक विषमता को भी उजागर किया है। कविता दो भागों में बँटी हुई प्रतीत होती है: पहले भाग में प्रकृति का अद्भुत सौंदर्य है, और दूसरे भाग में उस प्रकृति की पृष्ठभूमि में जीते हुए मनुष्यों का दुःख-दर्द और उनकी चिंताएँ हैं। कवि यह दर्शाते हैं कि प्रकृति का सौंदर्य सभी के लिए समान हो सकता है, लेकिन सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियाँ मनुष्य के जीवन को भिन्न-भिन्न बना देती हैं।
कविता का मूल भाव एवं उद्देश्य
- प्रकृति और मनुष्य का संबंध: कविता प्रकृति के शांत और सुंदर रूप तथा मनुष्य के अशांत और संघर्षपूर्ण जीवन के बीच का विरोधाभास प्रस्तुत करती है।
- सामाजिक विषमता का चित्रण: कवि ने गाँव के गरीब किसान, मजदूर, विधवा स्त्री और धनी व्यापारी (बनिया) के जीवन की तुलना करते हुए समाज में व्याप्त आर्थिक असमानता पर प्रहार किया है।
- शहरीकरण और अलगाव: कविता के अंत में कवि शहरी जीवन की आपाधापी, स्वार्थ और अकेलेपन पर भी कटाक्ष करते हैं, जहाँ व्यक्ति अपनी ही चिंताओं में खोया रहता है।
- पूँजीवादी व्यवस्था पर चोट: बनिये द्वारा गरीबों का शोषण और उसकी धनलोलुपता के माध्यम से कवि ने पूँजीवादी मानसिकता की आलोचना की है।
पद्यों की विस्तृत व्याख्या एवं काव्य-सौंदर्य
पद्यांश 1: "सिमटा पंख साँझ की लाली... नील लहरियों में लौड़ित"
- भावार्थ: कवि कहते हैं कि शाम की लालिमा अपने पंखों को समेटकर शांत हो रही है। सूर्य अस्ताचल की ओर जा चुका है और उसका सुनहरा प्रकाश गंगा के जल पर ऐसा लग रहा है मानो किसी ने चंपे के फूलों का ढेर बिखेर दिया हो। गंगा का जल साँवला हो गया है और उस पर पड़ती सूर्य की अंतिम किरणें ऐसी लग रही हैं जैसे किसी ने सोने की जाली बिछा दी हो। शांत जल में नीली लहरें उठ रही हैं।
- काव्य-सौंदर्य:
- मानवीकरण अलंकार: "सिमटा पंख साँझ की लाली" - संध्या का मानवीकरण किया गया है।
- उपमा अलंकार: "दीपों के सम..." - दीपों के समान तुलना।
- रूपक अलंकार: "स्वर्ण-चूर्ण-सी..." - सुनहरी धूल जैसा।
- बिंब: दृश्य बिंब का सुंदर प्रयोग (गंगा का जल, सूर्य की किरणें)।
- भाषा: तत्सम शब्दों से युक्त खड़ी बोली।
पद्यांश 2: "लौट रहे खग, गायें घर को... उर में बस जाती है"
- भावार्थ: पक्षी और गायें अपने-अपने घरों की ओर लौट रही हैं। उनके गले में बंधी घंटियों की ध्वनि वातावरण में गूँज रही है। घरों की छतों से उठता धुआँ ऐसा लग रहा है जैसे नीले कमल के फूल खिले हों। यह शांत और संगीतमय वातावरण हृदय में बस जाता है।
- काव्य-सौंदर्य:
- श्रव्य बिंब: "रुनझुन-रुनझुन" - घंटियों की ध्वनि।
- दृश्य बिंब: "उठता धुआँ", "नील कमल-से"।
- ध्वन्यात्मकता: 'रुनझुन' शब्द में ध्वनि का सौंदर्य है।
- उपमा अलंकार: "नील कमल-से" - धुएँ की तुलना नीले कमल से।
पद्यांश 3: "बगुलों-सी वृद्धाएँ... चुपचाप खड़ी हैं"
- भावार्थ: यहाँ से कविता का सामाजिक पक्ष शुरू होता है। कवि कहते हैं कि विधवाएँ बगुलों के समान सफेद वस्त्रों में लिपटी हैं और अपने दुःख में मौन ध्यानमग्न हैं। नदी के किनारे जप-तप करती इन वृद्ध स्त्रियों की परछाई जल में काँपती हुई दिखाई देती है।
- काव्य-सौंदर्य:
- उपमा अलंकार: "बगुलों-सी वृद्धाएँ" - सफेद वस्त्रों के कारण विधवाओं की तुलना बगुलों से की गई है।
- करुण रस: इन पंक्तियों में दुःख और वेदना का भाव है।
- यथार्थ चित्रण: ग्रामीण समाज में विधवाओं की दयनीय स्थिति का सजीव चित्रण।
पद्यांश 4: "मन्दिर में... घंटा, शंख ध्वनि"
- भावार्थ: मंदिर में आरती का समय हो गया है। शंख और घंटों की ध्वनि वातावरण में गूँज रही है, जो लोगों के मन में आशा और कंपन पैदा करती है।
- काव्य-सौंदर्य:
- श्रव्य बिंब: घंटा, शंख की ध्वनि का सुंदर प्रयोग।
- वातावरण चित्रण: भक्तिमय और शांत वातावरण का निर्माण।
पद्यांश 5: "लाला अपनी सुधि में... क्या ब्याज सही देगा?"
- भावार्थ: एक ओर जहाँ प्रकृति और भक्ति का माहौल है, वहीं दूसरी ओर गाँव का बनिया (लाला) अपनी दुकान पर बैठा हिसाब-किताब में डूबा है। वह छोटी सी ढिबरी की रोशनी में अपनी आमदनी और बकाये का हिसाब लगा रहा है। वह इस चिंता में है कि क्या उसे सही ब्याज मिल पाएगा। उसकी सारी दुनिया इसी छोटे से गल्ले और हिसाब में सिमटी हुई है।
- काव्य-सौंदर्य:
- सामाजिक व्यंग्य: बनिये के चरित्र के माध्यम से शोषणकारी और स्वार्थी वर्ग पर व्यंग्य।
- चरित्र चित्रण: लालची और धनलोलुप व्यापारी का सजीव चित्रण।
- विरोधाभास: प्रकृति के सौंदर्य और बनिये की स्वार्थपरता में विरोधाभास है।
पद्यांश 6: "शहरी बनिये-सा... कर्म और गुण में समान!"
- भावार्थ: कवि अंत में शहरी जीवन पर आते हैं। वे कहते हैं कि शहर के लोग भी गाँव के उस बनिये की तरह ही आत्म-केंद्रित और स्वार्थी हैं। उनमें सामाजिक चेतना का अभाव है। वे सोचते हैं कि क्या सभी मनुष्य कर्म और गुण में समान हो सकते हैं? यह पंक्ति सामाजिक समानता पर एक प्रश्नचिह्न लगाती है और दर्शाती है कि समाज में कर्म और गुण के आधार पर भेद किया जाता है।
- काव्य-सौंदर्य:
- आलोचनात्मक दृष्टिकोण: कवि शहरी जीवन और सामाजिक असमानता की आलोचना करते हैं।
- प्रश्न अलंकार: "होंगे क्या सब कर्म और गुण में समान!"
- कविता का अंत: कविता एक विचारोत्तेजक प्रश्न के साथ समाप्त होती है, जो पाठक को सोचने पर मजबूर करता है।
अभ्यास हेतु वस्तुनिष्ठ प्रश्न (MCQs)
1. सुमित्रानंदन पंत को किस उपाधि से जाना जाता है?
(क) राष्ट्रकवि
(ख) प्रकृति का सुकुमार कवि
(ग) कथा सम्राट
(घ) क्रांतिकारी कवि
2. 'संध्या के बाद' कविता पंत जी के किस काव्य संग्रह से ली गई है?
(क) पल्लव
(ख) गुंजन
(ग) ग्राम्या
(घ) वीणा
3. कविता में गंगा का जल साँवला होने पर सूर्य की अंतिम किरणें कैसी प्रतीत हो रही हैं?
(क) चाँदी की जाली के समान
(ख) सोने की जाली के समान
(ग) ताँबे की जाली के समान
(घ) हीरे की जाली के समान
4. कवि ने "बगुलों-सी वृद्धाएँ" कहकर किसकी ओर संकेत किया है?
(क) गाँव की युवतियों की ओर
(ख) गाँव की विधवा स्त्रियों की ओर
(ग) बगुलों के झुंड की ओर
(घ) सफेद वस्त्र पहने बच्चों की ओर
5. कविता में गाँव का बनिया (लाला) किस कार्य में व्यस्त है?
(क) ईश्वर की भक्ति में
(ख) ग्राहकों से बात करने में
(ग) अपनी आमदनी का हिसाब लगाने में
(घ) दुकान बंद करने में
6. "सिमटा पंख साँझ की लाली" पंक्ति में कौन-सा अलंकार है?
(क) उपमा
(ख) रूपक
(ग) यमक
(घ) मानवीकरण
7. कविता के अनुसार, घरों की छतों से उठता धुआँ किसके समान लग रहा है?
(क) सफेद बादलों के समान
(ख) नीले कमल के समान
(ग) काली घटाओं के समान
(घ) उड़ते हुए पक्षियों के समान
8. 'संध्या के बाद' कविता का मुख्य उद्देश्य क्या है?
(क) केवल प्रकृति का सौंदर्य वर्णन करना
(ख) ग्रामीण जीवन की आर्थिक और सामाजिक विषमता को दिखाना
(ग) शहरी जीवन की प्रशंसा करना
(घ) धार्मिक अनुष्ठानों का वर्णन करना
9. कविता में शोषक वर्ग का प्रतीक कौन है?
(क) किसान
(ख) कवि स्वयं
(ग) गाँव का लाला (बनिया)
(घ) वृद्धाएँ
10. कविता का अंत किस भाव के साथ होता है?
(क) आशा और उल्लास के साथ
(ख) प्रकृति के सौंदर्य के वर्णन के साथ
(ग) एक सामाजिक प्रश्न और चिंता के साथ
(घ) भक्ति और शांति के साथ
उत्तरमाला:
- (ख)
- (ग)
- (ख)
- (ख)
- (ग)
- (घ)
- (ख)
- (ख)
- (ग)
- (ग)
इन नोट्स को ध्यान से पढ़ें और कविता के मूल भाव को समझने का प्रयास करें। आपकी परीक्षा के लिए शुभकामनाएँ