Class 11 Hindi Notes Chapter 17 (हजारी प्रसाद द्विवेदी) – Aroh Book

नमस्ते विद्यार्थियों।
चलिए, आज हम ग्यारहवीं कक्षा की 'आरोह' पुस्तक के सत्रहवें अध्याय, 'हजारी प्रसाद द्विवेदी' का गहन अध्ययन करते हैं। यह अध्याय प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि द्विवेदी जी हिंदी साहित्य के एक स्तंभ माने जाते हैं। हम उनके जीवन, साहित्यिक योगदान, और पाठ 'शिरीष के फूल' के हर पहलू को विस्तार से समझेंगे।
अध्याय 17: हजारी प्रसाद द्विवेदी - विस्तृत नोट्स
1. लेखक परिचय (जीवन एवं व्यक्तित्व)
- जन्म: सन् 1907, गाँव 'आरत दुबे का छपरा', जिला- बलिया (उत्तर प्रदेश)।
- निधन: सन् 1979, दिल्ली में।
- शिक्षा: काशी हिंदू विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त की। ज्योतिष तथा संस्कृत का गहन अध्ययन किया और 'ज्योतिषाचार्य' की उपाधि प्राप्त की।
- कार्यक्षेत्र:
- सन् 1940 से 1950 तक शांतिनिकेतन में हिंदी भवन के निदेशक रहे। यहाँ गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर और क्षितिमोहन सेन के संपर्क में आकर उनके साहित्यिक दृष्टिकोण में व्यापकता आई।
- काशी हिंदू विश्वविद्यालय और पंजाब विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के अध्यक्ष रहे।
- भारत सरकार की हिंदी संबंधी विविध योजनाओं से जुड़े रहे।
- सम्मान:
- पद्म भूषण (1957) - साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में योगदान के लिए।
- साहित्य अकादमी पुरस्कार (1973) - निबंध संग्रह 'आलोक पर्व' के लिए।
2. साहित्यिक परिचय एवं विशेषताएँ
हजारी प्रसाद द्विवेदी जी केवल एक लेखक नहीं, बल्कि एक युग-प्रवर्तक आलोचक, निबंधकार और उपन्यासकार थे।
- परंपरा का आधुनिक दृष्टिकोण: द्विवेदी जी ने भारतीय संस्कृति और परंपरा की जड़ों को गहराई से समझा, लेकिन उसे आधुनिक और मानवतावादी दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया। वे परंपरा को एक जड़ वस्तु न मानकर, एक जीवंत और गतिशील धारा मानते थे।
- हिंदी साहित्य के इतिहास में योगदान: आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा स्थापित कई मान्यताओं को उन्होंने अपने तर्कों और प्रमाणों से चुनौती दी। उन्होंने हिंदी साहित्य के आदिकाल को 'आदिकाल' नाम दिया और नाथों-सिद्धों के साहित्य को अपभ्रंश साहित्य से जोड़कर हिंदी साहित्य का महत्वपूर्ण अंग सिद्ध किया। उन्होंने 'कबीर' को एक क्रांतिकारी कवि के रूप में पुनर्स्थापित किया।
- मानवतावादी स्वर: उनकी रचनाओं के केंद्र में मनुष्य है। वे मनुष्य की जिजीविषा (जीने की इच्छा) और अपराजेय शक्ति में विश्वास रखते थे।
- लालित्य और पांडित्य का संगम: उनकी भाषा और शैली में एक ओर संस्कृत की शास्त्रीयता और गहन पांडित्य है, तो दूसरी ओर लोक-जीवन के जीवंत मुहावरे और विनोदप्रियता का अद्भुत मिश्रण है।
- प्रमुख साहित्यिक विधाएँ: आलोचना, निबंध, उपन्यास, और साहित्येतिहास लेखन में उन्होंने उत्कृष्ट कार्य किया।
3. प्रमुख रचनाएँ (परीक्षा की दृष्टि से)
इन्हें विधा के अनुसार याद करना आवश्यक है:
- आलोचना / साहित्येतिहास:
- सूर साहित्य (1936)
- हिंदी साहित्य की भूमिका (1940)
- कबीर (1942)
- नाथ संप्रदाय (1950)
- हिंदी साहित्य का आदिकाल (1952)
- कालिदास की लालित्य योजना (1965)
- निबंध संग्रह:
- अशोक के फूल (1948)
- कल्पलता (1951)
- कुटज (1964)
- विचार और वितर्क
- विचार प्रवाह
- आलोक पर्व (साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त)
- उपन्यास:
- बाणभट्ट की आत्मकथा (1946)
- चारु चंद्रलेख (1963)
- पुनर्नवा (1973)
- अनामदास का पोथा (1976)
4. पाठ का सारांश: 'शिरीष के फूल' (ललित निबंध)
यह निबंध द्विवेदी जी के संग्रह 'कल्पलता' से लिया गया है। इसमें लेखक ने शिरीष के फूल के माध्यम से जीवन के गहरे दार्शनिक सत्यों को उजागर किया है।
- शिरीष का प्रतीक: लेखक शिरीष को एक 'अवधूत' (संन्यासी) के रूप में देखते हैं। जब ज्येष्ठ मास की प्रचंड गर्मी में धरती जल रही होती है और अन्य फूल मुरझा जाते हैं, तब शिरीष का फूल खिलता है। यह प्रतीक है उस व्यक्ति का जो सुख-दुःख, हार-जीत और सभी विपरीत परिस्थितियों में भी अविचल और प्रसन्न रहता है।
- जीवन की कठोरता और कोमलता: शिरीष के फूल बहुत कोमल होते हैं, पर उसके फल बहुत कठोर। यह जीवन के द्वंद्व को दर्शाता है कि बाहरी कोमलता के भीतर असीम सहनशक्ति और दृढ़ता होनी चाहिए।
- कालजयी अवधूत: शिरीष का फूल लंबे समय तक पेड़ पर टिका रहता है, जब तक कि नए पत्ते-फूल उसे धक्का मारकर गिरा नहीं देते। लेखक इसके माध्यम से उन नेताओं और अधिकारियों पर व्यंग्य करते हैं जो समय आने पर भी अपना पद नहीं छोड़ते।
- गांधीजी से तुलना: लेखक शिरीष की अनासक्त योगी वाली प्रकृति की तुलना महात्मा गांधी से करते हैं। गांधीजी भी बाहरी रूप से कोमल थे, लेकिन आंतरिक रूप से वज्र की तरह कठोर और दृढ़ निश्चयी थे। वे भी शिरीष की तरह वायुमंडल से रस खींचकर अत्यंत कठिन परिस्थितियों में भी जीवित और सक्रिय रहे।
- संदेश: निबंध का मूल संदेश है कि मनुष्य को शिरीष की तरह अनासक्त, धैर्यवान, और हर परिस्थिति में अविचल रहना चाहिए। उसे सांसारिक मोह-माया, अधिकार-लिप्सा और सुख-दुःख के द्वंद्व से ऊपर उठकर एक स्थिर और संतुलित जीवन जीना चाहिए।
अभ्यास हेतु 10 महत्वपूर्ण बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs)
प्रश्न 1: आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म उत्तर प्रदेश के किस जिले में हुआ था?
(क) वाराणसी
(ख) बलिया
(ग) गोरखपुर
(घ) इलाहाबाद
प्रश्न 2: द्विवेदी जी के किस निबंध संग्रह को 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' से सम्मानित किया गया?
(क) अशोक के फूल
(ख) कुटज
(ग) कल्पलता
(घ) आलोक पर्व
प्रश्न 3: 'बाणभट्ट की आत्मकथा' किस साहित्यिक विधा की रचना है?
(क) निबंध
(ख) आत्मकथा
(ग) उपन्यास
(घ) कहानी
प्रश्न 4: 'शिरीष के फूल' निबंध में लेखक ने शिरीष को किसका प्रतीक माना है?
(क) एक कायर व्यक्ति का
(ख) एक कालजयी अवधूत का
(ग) एक भोगी राजा का
(घ) एक सुंदर स्त्री का
प्रश्न 5: हिंदी साहित्य के आदिकाल को 'आदिकाल' नाम किसने दिया?
(क) आचार्य रामचंद्र शुक्ल
(ख) डॉ. रामकुमार वर्मा
(ग) आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी
(घ) राहुल सांकृत्यायन
प्रश्न 6: द्विवेदी जी ने 'शिरीष के फूल' के माध्यम से किस महापुरुष का स्मरण किया है?
(क) जवाहरलाल नेहरू
(ख) रवींद्रनाथ ठाकुर
(ग) महात्मा गांधी
(घ) सरदार पटेल
प्रश्न 7: निम्नलिखित में से कौन सी रचना हजारी प्रसाद द्विवेदी जी की आलोचना कृति नहीं है?
(क) कबीर
(ख) सूर साहित्य
(ग) पुनर्नवा
(घ) हिंदी साहित्य की भूमिका
प्रश्न 8: "वे भी शिरीष की तरह वायुमंडल से रस खींचकर इतने कोमल और इतने कठोर हो सके थे।" - यह पंक्ति किसके लिए कही गई है?
(क) कालिदास के लिए
(ख) गांधीजी के लिए
(ग) कबीर के लिए
(घ) लेखक स्वयं के लिए
प्रश्न 9: 'शिरीष के फूल' निबंध हजारी प्रसाद द्विवेदी के किस संग्रह से लिया गया है?
(क) विचार प्रवाह
(ख) आलोक पर्व
(ग) कुटज
(घ) कल्पलता
प्रश्न 10: द्विवेदी जी के अनुसार, शिरीष के पुराने फलों को कौन धक्का मारकर बाहर निकालता है?
(क) माली
(ख) तेज हवा
(ग) नए पत्ते और फूलों का समूह
(घ) पक्षी
उत्तरमाला:
- (ख) बलिया
- (घ) आलोक पर्व
- (ग) उपन्यास
- (ख) एक कालजयी अवधूत का
- (ग) आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी
- (ग) महात्मा गांधी
- (ग) पुनर्नवा (यह एक उपन्यास है)
- (ख) गांधीजी के लिए
- (घ) कल्पलता
- (ग) नए पत्ते और फूलों का समूह
इन नोट्स को अच्छी तरह से पढ़ें और प्रश्नों का अभ्यास करें। आपकी परीक्षा के लिए शुभकामनाएँ