Class 11 Hindi Notes Chapter 17 (नागार्जुन : बादल को घिरते देखा है) – Antra Book

Antra
नमस्ते विद्यार्थियों,

चलिए, आज हम प्रगतिवादी काव्यधारा के सशक्त हस्ताक्षर, 'जनकवि' नागार्जुन जी की प्रसिद्ध कविता 'बादल को घिरते देखा है' का गहन अध्ययन करेंगे। यह कविता न केवल प्रकृति के अद्भुत सौंदर्य का चित्रण करती है, बल्कि आपकी परीक्षा की दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

पाठ-17: नागार्जुन - बादल को घिरते देखा है (विस्तृत नोट्स)

1. कवि परिचय

  • मूल नाम: वैद्यनाथ मिश्र।
  • यात्री उपनाम: मैथिली में 'यात्री' उपनाम से लिखते थे।
  • नागार्जुन नाम: बौद्ध धर्म में दीक्षा लेने के बाद उन्होंने 'नागार्जुन' नाम अपनाया।
  • उपाधि: 'जनकवि' (जनता के कवि) के रूप में प्रसिद्ध हुए क्योंकि उनकी कविताओं में आम आदमी का दर्द और संघर्ष प्रमुखता से व्यक्त हुआ है।
  • स्वभाव: घुमक्कड़ी और फक्कड़ स्वभाव के थे। उन्होंने देश-विदेश की अनेक यात्राएँ कीं।
  • विचारधारा: प्रगतिवादी विचारधारा के कवि थे।
  • भाषा-शैली: सरल, सहज और आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग करते थे। संस्कृतनिष्ठ शब्दावली और ग्रामीण शब्दों का सुंदर संतुलन उनकी कविताओं में मिलता है।

2. कविता का सार एवं मूल भाव

'बादल को घिरते देखा है' एक यात्रा-वृत्तांत पर आधारित कविता है। इसमें कवि ने अपनी तिब्बत यात्रा के दौरान हिमालय क्षेत्र के मानसरोवर और उसके आस-पास के प्राकृतिक सौंदर्य का सजीव चित्रण किया है।

  • प्रकृति का यथार्थ चित्रण: यह कविता कालिदास के 'मेघदूत' की काल्पनिक दुनिया से अलग है। नागार्जुन ने जो कुछ अपनी आँखों से देखा, उसी का यथार्थ और जीवंत वर्णन किया है। इसीलिए वे बार-बार कहते हैं - "बादल को घिरते देखा है"।
  • सौंदर्य और जीवंतता: कविता में मानसरोवर के जल में तैरते हंस, कमल के पत्तों पर ओस की बूँदें, ऊँची चोटियों पर खिले फूल, कस्तूरी मृग की बेचैनी और किन्नर-किन्नरियों के विलासपूर्ण जीवन का अद्भुत चित्रण है।
  • मानवीय भावनाओं का समावेश: कवि ने प्रकृति के साथ-साथ मानवीय प्रेम और विरह को भी स्थान दिया है। रात में बिछड़ जाने वाले चकवा-चकवी का सुबह होने पर मिलन का दृश्य प्रेम के संयोग और वियोग दोनों पक्षों को दर्शाता है।
  • कल्पना पर यथार्थ की विजय: कवि कालिदास द्वारा वर्णित कुबेर की अलकापुरी को खोजते हैं, पर उन्हें वह कहीं नहीं मिलती। इससे वे यह सिद्ध करते हैं कि कल्पना की दुनिया से अधिक सुंदर और सत्य वह दुनिया है जिसे वे अपनी आँखों से देख रहे हैं।

3. काव्य-सौंदर्य और शिल्प-विधान

  • भाषा: तत्सम शब्दों से युक्त खड़ी बोली हिंदी। भाषा में प्रवाह और संगीतात्मकता है।
  • शैली: चित्रात्मक शैली का प्रयोग हुआ है। शब्दों के माध्यम से कवि आँखों के सामने एक चित्र खींच देते हैं।
  • बिंब: कविता में दृश्य बिंबों का प्रचुर प्रयोग है (जैसे- तैरते हंस, ओस की बूँदें, भागता हुआ कस्तूरी मृग)।
  • रस: श्रृंगार रस (संयोग और वियोग) तथा शांत रस की प्रधानता है।
  • छंद: यह एक मुक्त छंद की कविता है।
  • प्रमुख अलंकार:
    • अनुप्रास: "कहाँ गया धनपति कुबेर वह"।
    • उपमा: "छोटे-छोटे मोती जैसे", "शंख सरीखे सुघड़ गलों में"।
    • मानवीकरण: "तुंग हिमालय के कंधों पर", "बादल को घिरते देखा है" (यहाँ बादलों का घिरना एक सजीव क्रिया के रूप में वर्णित है)।
    • पुनरुक्ति प्रकाश: "छोटे-छोटे"।
    • रूपक: "प्रणय-कलह"।

4. प्रमुख पद्यांशों की व्याख्या

  • "अमल धवल गिरि के शिखरों पर..."

    • प्रसंग: कवि हिमालय की स्वच्छ, बर्फ से ढकी चोटियों पर बादलों के घिरने का वर्णन कर रहे हैं।
    • व्याख्या: कवि कहते हैं कि उन्होंने निर्मल और सफ़ेद पर्वत की चोटियों पर बादलों को घिरते हुए देखा है। उन्होंने मानसरोवर के जल में कमल के फूलों पर ओस की बूँदों को मोतियों की तरह चमकते और हवा के झोंकों से गिरते देखा है। उन्होंने हिमालय की चोटियों पर छोटी-छोटी झीलों और वसंत के आगमन पर खिले हुए सुंदर फूलों को भी देखा है।
  • "एक दूसरे से विरहित हो, अलग-अलग रहकर ही..."

    • प्रसंग: कवि चकवा-चकवी पक्षी के माध्यम से विरह और मिलन का चित्रण कर रहे हैं।
    • व्याख्या: कवि कहते हैं कि उन्होंने उन चकवा-चकवी को भी देखा है, जो एक श्राप के कारण रात भर एक-दूसरे से अलग रहकर बिताते हैं। रात भर उनका क्रंदन (रोना) सुनाई देता है और सुबह होते ही वे फिर से शैवाल (काई) की हरी दरी पर प्रेम-क्रीड़ा करते हैं।
  • "दुर्गम बर्फानी घाटी में, शत-सहस्र फुट ऊँचाई पर..."

    • प्रसंग: यहाँ कवि कस्तूरी मृग की बेचैनी का वर्णन कर रहे हैं।
    • व्याख्या: कवि ने दुर्गम, बर्फीली घाटी में हज़ारों फुट की ऊँचाई पर अपनी ही नाभि से आती कस्तूरी की सुगंध से उन्मत्त होकर कस्तूरी मृग को स्वयं पर चिढ़ते और बेचैनी में इधर-उधर भागते हुए देखा है। यह एक दार्शनिक संकेत भी है कि मनुष्य भी अपनी आंतरिक शक्तियों को बाहर खोजता फिरता है।
  • "कहाँ गया धनपति कुबेर वह, कहाँ गई उसकी वह अलका..."

    • प्रसंग: कवि कालिदास की कल्पना और अपने यथार्थ अनुभव की तुलना कर रहे हैं।
    • व्याख्या: कवि पूछते हैं कि कालिदास के मेघदूत में वर्णित धनपति कुबेर और उनकी अलकापुरी कहाँ है? उन्हें वह कहीं नहीं मिली। कवि को उस काल्पनिक स्वर्ग से अधिक सुंदर हिमालय का वास्तविक सौंदर्य लगता है, जहाँ किन्नर-किन्नरियों का उन्मुक्त जीवन है।

अभ्यास हेतु महत्वपूर्ण बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs)

1. कवि नागार्जुन का वास्तविक नाम क्या था?
(क) धनपत राय
(ख) वैद्यनाथ मिश्र
(ग) वासुदेव सिंह
(घ) केदारनाथ पाण्डेय

2. 'बादल को घिरते देखा है' कविता में कवि ने किस सरोवर का उल्लेख किया है?
(क) नारायण सरोवर
(ख) पुष्कर सरोवर
(ग) मानसरोवर
(घ) बिंदु सरोवर

3. कवि ने कमल के पत्तों पर ओस की बूँदों की तुलना किससे की है?
(क) हीरों से
(ख) शंखों से
(ग) मोतियों से
(घ) फूलों से

4. कौन-से पक्षी रात में बिछड़ने के लिए शापित हैं?
(क) हंस
(ख) चकवा-चकवी
(ग) सारस
(घ) चकोर

5. कस्तूरी मृग अपनी ही गंध पर क्यों चिढ़ता है?
(क) क्योंकि वह उसे पसंद नहीं है
(ख) क्योंकि वह उसके स्रोत को नहीं ढूँढ़ पाता
(ग) क्योंकि दूसरे जानवर उसे चिढ़ाते हैं
(घ) क्योंकि वह बहुत थक गया है

6. "छोटे-छोटे मोती जैसे" पंक्ति में कौन-सा अलंकार है?
(क) रूपक
(ख) यमक
(ग) श्लेष
(घ) उपमा

7. कविता में किन देव-जातियों के विलासपूर्ण जीवन का चित्रण है?
(क) यक्ष-यक्षिणी
(ख) गंधर्व
(ग) किन्नर-किन्नरी
(घ) देव-अप्सरा

8. कवि को कालिदास द्वारा वर्णित कौन-सी नगरी हिमालय में नहीं मिली?
(क) अमरावती
(ख) इंद्रपुरी
(ग) अलकापुरी
(घ) वैकुंठ

9. "पावस की ऊमस" से कवि का क्या तात्पर्य है?
(क) गर्मी की उमस
(ख) सर्दी की ठंडक
(ग) वर्षा ऋतु की उमस
(घ) बसंत की बहार

10. यह कविता कवि के किस स्वभाव को उजागर करती है?
(क) एकांतप्रिय
(ख) घुमक्कड़ी और यथार्थवादी
(ग) कल्पनाशील
(घ) दार्शनिक


उत्तरमाला:

  1. (ख) वैद्यनाथ मिश्र
  2. (ग) मानसरोवर
  3. (ग) मोतियों से
  4. (ख) चकवा-चकवी
  5. (ख) क्योंकि वह उसके स्रोत को नहीं ढूँढ़ पाता
  6. (घ) उपमा
  7. (ग) किन्नर-किन्नरी
  8. (ग) अलकापुरी
  9. (ग) वर्षा ऋतु की उमस
  10. (ख) घुमक्कड़ी और यथार्थवादी

इन नोट्स को अच्छी तरह से पढ़ें और प्रश्नों का अभ्यास करें। आपकी परीक्षा के लिए शुभकामनाएँ

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