Class 11 Hindi Notes Chapter 20 (निर्मला पुतुल) – Aroh Book

चलिए, आज हम कक्षा 11 की 'आरोह' पुस्तक के अध्याय 20, निर्मला पुतुल और उनकी सशक्त कविता 'आओ, मिलकर बचाएँ' का गहन अध्ययन करेंगे। यह अध्याय सरकारी परीक्षाओं की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें आदिवासी जीवन, पर्यावरण और संस्कृति से जुड़े संवेदनशील प्रश्न उठाए गए हैं।
अध्याय 20: निर्मला पुतुल - 'आओ, मिलकर बचाएँ' (विस्तृत नोट्स)
1. कवयित्री परिचय: निर्मला पुतुल
- जन्म: सन् 1972, दुमका, झारखंड।
- पृष्ठभूमि: निर्मला पुतुल का जन्म एक संथाली आदिवासी परिवार में हुआ। उनका जीवन आरंभ से ही संघर्षपूर्ण रहा। आदिवासी समाज में व्याप्त कुरीतियों, पुरुष वर्चस्व और प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन ने उन्हें गहराई से प्रभावित किया।
- शिक्षा: उन्होंने नर्सिंग में डिप्लोमा किया और काफी समय बाद इग्नू से स्नातक की डिग्री प्राप्त की।
- साहित्यिक विशेषताएँ:
- उनकी कविताओं का केंद्र आदिवासी समाज, उनकी चिंताएँ, संस्कृति और प्रकृति से उनका जुड़ाव है।
- वे अपनी कविताओं के माध्यम से शहरीकरण और तथाकथित विकास के नाम पर आदिवासी संस्कृति पर हो रहे कुठाराघात को उजागर करती हैं।
- उनकी भाषा में हिंदी के साथ-साथ संथाली भाषा के शब्दों और उसकी लय का अद्भुत मिश्रण देखने को मिलता है।
- प्रमुख रचनाएँ: 'नगाड़े की तरह बजते शब्द', 'अपने घर की तलाश में'।
2. कविता का मूल भाव एवं सार
'आओ, मिलकर बचाएँ' कविता मूल रूप से संथाली भाषा में लिखी गई थी, जिसका हिंदी रूपांतरण अशोक सिंह ने किया है। यह कविता एक आह्वान है, एक पुकार है। कवयित्री अपने संथाल परगना क्षेत्र की प्राकृतिक संपदा, संस्कृति, सादगी और जुझारूपन को शहरी अपसंस्कृति के प्रभाव से बचाने का आग्रह करती हैं।
कविता का सार:
कवयित्री कहती हैं कि हमें अपनी बस्तियों को शहर की उस आबोहवा से बचाना है जो उन्हें नंगा कर रही है, यानी उनकी हरियाली और पहचान को छीन रही है। हमें अपने लोगों के चेहरे पर संथाल परगना की मिट्टी का स्वाभाविक रंग और उनकी भाषा में झारखंड का असली पुट (झारखंडीपन) बचाना होगा।
शहरी प्रभाव के कारण लोगों की दिनचर्या ठंडी और मशीनी होती जा रही है। कवयित्री उसमें जीवन की गर्माहट, मन का हरापन (उत्साह), दिल का भोलापन, स्वभाव का अक्खड़पन और संघर्ष करने की क्षमता (जुझारूपन) को जीवित रखना चाहती हैं।
वह आदिवासी जीवन के प्रतीकों—धनुष की डोरी, तीर का नुकीलापन, कुल्हाड़ी की धार—को बचाने की बात करती हैं। ये केवल औजार नहीं, बल्कि उनकी संस्कृति और आत्मनिर्भरता के प्रतीक हैं। साथ ही, वे जंगल की ताज़ी हवा, नदियों की पवित्रता, पहाड़ों के मौन, मिट्टी की सुगंध और लहलहाती फसलों को भी संरक्षित करने का आह्वान करती हैं।
कविता के अंत में, कवयित्री कहती हैं कि इस अविश्वास भरे दौर में भी हमारे पास बचाने के लिए थोड़ी-सी उम्मीद, थोड़े-से सपने और बहुत कुछ बचा हुआ है। यह कविता निराशा में आशा का संचार करती है और अपनी जड़ों से जुड़े रहने का संदेश देती है।
3. काव्य-सौंदर्य एवं शिल्प-सौंदर्य
- भाषा: सहज, सरल और आम बोलचाल की खड़ी बोली है, जिसमें संथाली शब्दों का प्रभाव स्पष्ट दिखता है (जैसे- झारखंडीपन)। भाषा अत्यंत प्रवाहमयी और हृदय को छूने वाली है।
- शैली: आह्वानात्मक शैली है, जिसमें कवयित्री समाज से कुछ बचाने की अपील कर रही हैं। शैली में चित्रात्मकता का गुण भी है, जिससे संथाल प्रदेश का दृश्य आँखों के सामने जीवंत हो उठता है।
- छंद: यह एक मुक्त छंद की कविता है, जिसमें भावों की लयात्मकता पर जोर दिया गया है।
- अलंकार:
- अनुप्रास अलंकार: "हरी-हरी घास" में 'ह' वर्ण की आवृत्ति।
- प्रतीकात्मकता: कविता में प्रयुक्त शब्द गहरे प्रतीक हैं। जैसे - 'मन का हरापन' (उत्साह और ताजगी का प्रतीक), 'धनुष-तीर' (आदिवासी शौर्य और परंपरा का प्रतीक), 'शहर की आबोहवा' (कृत्रिमता और प्रदूषण का प्रतीक)।
- बिंब-विधान: कविता में दृष्य बिंब (पहाड़ों का मौन, फसलों की लहलहाहट), श्रव्य बिंब (गीतों की धुन) और गंध बिंब (मिट्टी की सौंधी गंध) का सुंदर प्रयोग हुआ है।
अभ्यास हेतु 10 महत्वपूर्ण बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs)
1. निर्मला पुतुल का संबंध किस समुदाय से है?
(क) गोंड आदिवासी
(ख) भील आदिवासी
(ग) संथाली आदिवासी
(घ) मुंडा आदिवासी
2. 'आओ, मिलकर बचाएँ' कविता में कवयित्री किस क्षेत्र की संस्कृति को बचाने का आह्वान करती हैं?
(क) बस्तर क्षेत्र
(ख) संथाल परगना
(ग) बुंदेलखंड
(घ) छोटा नागपुर
3. "शहर की आबोहवा से बचाएँ उसे" - यहाँ 'शहर की आबोहवा' से क्या तात्पर्य है?
(क) शहरी प्रदूषण
(ख) शहरी बनावटीपन और अपसंस्कृति
(ग) शहर की ठंडी हवा
(घ) शहरी विकास
4. कविता में 'मन का हरापन' किसे कहा गया है?
(क) मन की ईर्ष्या
(ख) मन की हरियाली
(ग) मन का उत्साह और ताजगी
(घ) मन की चंचलता
5. कवयित्री के अनुसार, आदिवासियों के स्वभाव की कौन-सी विशेषताएँ बचानी आवश्यक हैं?
(क) भोलापन, अक्खड़पन, जुझारूपन
(ख) शहरीपन, चालाकी, स्वार्थ
(ग) आलस्य, उदासीनता, निराशा
(घ) इनमें से कोई नहीं
6. 'धनुष की डोरी' और 'तीर का नुकीलापन' किसके प्रतीक हैं?
(क) हिंसा और लड़ाई के
(ख) शिकार करने की कला के
(ग) आदिवासी संस्कृति और संघर्ष क्षमता के
(घ) पिछड़ेपन के
7. "इस अविश्वास भरे दौर में" कवयित्री क्या बचाने की बात करती हैं?
(क) थोड़ा-सा विश्वास, थोड़ी-सी उम्मीद, थोड़े-से सपने
(ख) बहुत सारा धन
(ग) शहरी सुविधाएँ
(घ) अपनी पुरानी आदतें
8. 'आओ, मिलकर बचाएँ' कविता का हिंदी रूपांतरण किसने किया है?
(क) निर्मला पुतुल ने स्वयं
(ख) अशोक सिंह
(ग) रामधारी सिंह दिनकर
(घ) महादेवी वर्मा
9. "भाषा में झारखंडीपन" से कवयित्री का क्या आशय है?
(क) भाषा में अशुद्धियाँ
(ख) भाषा का स्थानीय और स्वाभाविक स्वरूप
(ग) केवल झारखंडी भाषा बोलना
(घ) हिंदी भाषा का विरोध करना
10. निम्नलिखित में से कौन-सी रचना निर्मला पुतुल की है?
(क) रश्मिरथी
(ख) मधुशाला
(ग) नगाड़े की तरह बजते शब्द
(घ) कामायनी
उत्तरमाला:
- (ग) संथाली आदिवासी
- (ख) संथाल परगना
- (ख) शहरी बनावटीपन और अपसंस्कृति
- (ग) मन का उत्साह और ताजगी
- (क) भोलापन, अक्खड़पन, जुझारूपन
- (ग) आदिवासी संस्कृति और संघर्ष क्षमता के
- (क) थोड़ा-सा विश्वास, थोड़ी-सी उम्मीद, थोड़े-से सपने
- (ख) अशोक सिंह
- (ख) भाषा का स्थानीय और स्वाभाविक स्वरूप
- (ग) नगाड़े की तरह बजते शब्द
इन नोट्स और प्रश्नों को ध्यान से पढ़ें। यह आपकी परीक्षा की तैयारी में बहुत सहायक सिद्ध होंगे। शुभकामनाएँ