Class 11 Hindi Notes Chapter 5 (गजानन माधव मुक्तिबोध: सहरष स्वीकारा है) – Aroh Book

चलिए, आज हम गजानन माधव मुक्तिबोध जी की अत्यंत महत्वपूर्ण और विचारोत्तेजक कविता 'सहर्ष स्वीकारा है' का गहन अध्ययन करेंगे। यह कविता प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें कवि के जीवन-दर्शन और शिल्प-सौंदर्य दोनों की गहराई है।
अध्याय 5: गजानन माधव मुक्तिबोध - सहर्ष स्वीकारा है
विस्तृत नोट्स (परीक्षा की तैयारी हेतु)
1. कवि परिचय: गजानन माधव मुक्तिबोध (1917-1964)
- जन्म: 13 नवंबर 1917, श्योपुर, ग्वालियर (मध्य प्रदेश)।
- प्रमुख धारा: प्रयोगवादी काव्यधारा के प्रमुख कवि और 'तार सप्तक' के पहले कवि।
- काव्य-दृष्टि: मुक्तिबोध का काव्य संघर्ष, आत्म-विश्लेषण और जीवन के यथार्थ की जटिलताओं का काव्य है। वे जीवन के अँधेरे और उजाले, दोनों पक्षों को गहराई से देखते हैं।
- भाषा-शैली: इनकी भाषा क्लिष्ट और तत्सम प्रधान है। लंबे-लंबे वाक्य, जटिल बिंब और 'फैंटेसी' (कल्पना-जगत) का प्रयोग इनकी शैली की प्रमुख विशेषता है।
- प्रमुख रचनाएँ:
- कविता संग्रह: 'चाँद का मुँह टेढ़ा है', 'भूरी-भूरी खाक धूल'।
- कथा साहित्य: 'काठ का सपना', 'विपात्र', 'सतह से उठता आदमी'।
- आलोचना: 'कामायनी: एक पुनर्विचार', 'नयी कविता का आत्मसंघर्ष', 'नए साहित्य का सौंदर्यशास्त्र'।
2. कविता का मूल भाव/सार
'सहर्ष स्वीकारा है' कविता कवि के जीवन-दर्शन को प्रस्तुत करती है। कवि अपने जीवन के हर सुख-दुख, संघर्ष-अवसाद, सफलता-असफलता को प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार करता है। इसका मुख्य कारण यह है कि वह मानता है कि उसकी हर स्थिति से उसका कोई प्रिय व्यक्ति (माँ, पत्नी, प्रेमिका या कोई अज्ञात सत्ता) जुड़ा हुआ है। जो कुछ भी उसके पास है, वह उस प्रिय को अच्छा लगता है, इसलिए कवि को भी वह सब स्वीकार है।
कविता में एक विरोधाभास भी है। जहाँ एक ओर कवि उस प्रिय के स्नेह से पूरी तरह आच्छादित है, वहीं दूसरी ओर वह आत्मनिर्भर बनने के लिए उस स्नेह के प्रभाव से मुक्त होना चाहता है। वह दंड के रूप में पाताली अँधेरे और घोर विस्मृति (भूलने की अवस्था) की कामना करता है ताकि वह अपने प्रिय के सहारे के बिना भी मजबूत बन सके। अंततः वह इसी निष्कर्ष पर पहुँचता है कि उस अँधेरे में भी उसे अपने प्रिय का ही सहारा होगा।
3. विस्तृत व्याख्या एवं महत्वपूर्ण पंक्तियाँ
पद 1: "ज़िंदगी में जो कुछ है, जो भी है / सहर्ष स्वीकारा है; / इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है / वह तुम्हें प्यारा है।"
- व्याख्या: कवि स्पष्ट रूप से कहता है कि उसके जीवन में जो कुछ भी (अच्छा या बुरा) है, उसने उसे खुशी-खुशी स्वीकार किया है। इसका एकमात्र कारण यह है कि उसकी हर उपलब्धि, हर भावना, हर वस्तु उसकी प्रियतमा को भी प्यारी है।
पद 2: "गरबीली गरीबी यह, ये गंभीर अनुभव सब / यह विचार-वैभव सब / दृढ़ता यह, भीतर की सरिता यह अभिनव सब / मौलिक है, मौलिक है..."
- व्याख्या: कवि अपनी स्वाभिमान से भरी गरीबी, जीवन के गहरे अनुभव, विचारों की संपत्ति, अपनी मानसिक मजबूती और हृदय में बहती भावनाओं की नदी को मौलिक (original) बताता है। ये सब किसी की नकल नहीं हैं, लेकिन इन सब पर भी उसकी प्रियतमा का प्रभाव है।
पद 3: "जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है / जितना भी उड़ेलता हूँ, भर-भर फिर आता है / दिल में क्या झरना है? मीठे पानी का सोता है..."
- व्याख्या: कवि अपने और प्रिय के बीच के रिश्ते को समझ नहीं पाता। वह अपने हृदय के स्नेह को जितना व्यक्त करता है, वह उतना ही और भर जाता है। उसे लगता है जैसे उसके दिल में प्रेम का कोई झरना या मीठे पानी का स्रोत है। यह प्रेम अक्षय है।
पद 4: "सचमुच मुझे दंड दो कि भूलूँ मैं तुम्हें / भूलूँ मैं / दक्षिणी ध्रुव-अंधकार-अमावस्या / शरीर पर, चेहरे पर, अंतर में पा लूँ मैं..."
- व्याख्या: यह कविता का महत्वपूर्ण मोड़ है। कवि अब प्रिय के स्नेह की अतिशयता से घबराकर उससे दूर होना चाहता है। वह दंड के रूप में उसे भूल जाने की शक्ति माँगता है। वह घोर अंधकार, जैसे दक्षिणी ध्रुव की अमावस्या का अँधेरा, अपने तन-मन में बसा लेना चाहता है ताकि वह आत्मनिर्भर बन सके।
पद 5: "इसलिए कि तुम से ही परिवेष्टित, आच्छादित / रहने का रमणीय यह उजेला अब / सहा नहीं जाता है।"
- व्याख्या: कवि प्रिय के स्नेह के उजाले में घिरा हुआ है, जो बहुत सुंदर है। लेकिन अब यह उजाला उसे असहनीय हो गया है क्योंकि यह उसे कमजोर बना रहा है। वह अपनी पहचान खो रहा है।
पद 6: "बहलाती-सहलाती आत्मीयता बरदाश्त नहीं होती है।"
- व्याख्या: प्रिय का प्रेम और अपनापन जो उसे बहलाता और सहलाता है, अब वह उससे सहन नहीं हो रहा। वह इस निर्भरता से मुक्त होना चाहता है।
पद 7: "...पाताली अँधेरी की गुहाओं में विवरों में / धुएँ के बादलों में / बिलकुल मैं लापता / लापता कि वहाँ भी तो तुम्हारा ही सहारा है!!"
- व्याख्या: कवि पाताली गुफाओं और धुएँ के बादलों जैसे घोर अंधकार में लापता हो जाना चाहता है। लेकिन उसे यह अहसास होता है कि उस घोर विस्मृति और अकेलेपन में भी उसे अपनी प्रियतमा की यादों का ही सहारा मिलेगा। उसका अस्तित्व प्रिय से पूरी तरह जुड़ा हुआ है।
4. काव्य-सौंदर्य (शिल्प-सौंदर्य)
- भाषा: साहित्यिक खड़ी बोली जिसमें तत्सम शब्दों (गंभीर, वैभव, परिवेष्टित, आच्छादित) की बहुलता है।
- छंद: मुक्त छंद का प्रयोग।
- अलंकार:
- अनुप्रास: 'गरबीली गरीबी', 'विचार-वैभव', 'बहलाती-सहलाती'।
- पुनरुक्ति प्रकाश: 'भर-भर फिर आता है'।
- प्रश्न अलंकार: 'दिल में क्या झरना है?'
- रूपक: 'भीतर की सरिता' (भावनाओं की नदी), 'विचार-वैभव' (विचार रूपी संपत्ति)।
- विरोधाभास: कवि प्रिय के स्नेह को चाहता भी है और उससे दूर भी होना चाहता है। उजाले का सहा न जाना।
- बिंब: कविता में दृश्य बिंबों का सुंदर प्रयोग है, जैसे - 'दक्षिणी ध्रुव-अंधकार-अमावस्या', 'पाताली अँधेरी की गुहाओं'।
- शैली: संबोधन शैली का प्रयोग ('तुम्हें', 'तुमसे')।
अभ्यास हेतु बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs)
प्रश्न 1: 'सहर्ष स्वीकारा है' कविता के कवि कौन हैं?
(क) सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'
(ख) जयशंकर प्रसाद
(ग) गजानन माधव मुक्तिबोध
(घ) हरिवंश राय बच्चन
प्रश्न 2: कवि ने अपनी गरीबी को कैसा बताया है?
(क) दयनीय
(ख) गरबीली
(ग) शर्मनाक
(घ) असहनीय
प्रश्न 3: "जितना भी उड़ेलता हूँ, भर-भर फिर आता है" - इस पंक्ति में किस भाव की अभिव्यक्ति हुई है?
(क) क्रोध की
(ख) घृणा की
(ग) स्नेह की अधिकता की
(घ) निराशा की
प्रश्न 4: कवि दंड के रूप में क्या चाहता है?
(क) धन-संपत्ति का नाश
(ख) प्रिय से बिछड़ना
(ग) प्रिय को पूरी तरह भूल जाना
(घ) समाज से बहिष्कार
प्रश्न 5: कवि को प्रिय का कैसा उजाला अब सहा नहीं जाता?
(क) क्रोध भरा
(ख) दुःख देने वाला
(ग) रमणीय और सुखद
(घ) फीका
प्रश्न 6: 'भीतर की सरिता' का प्रतीकार्थ क्या है?
(क) शरीर में बहता रक्त
(ख) मन में उठने वाली भावनाएँ
(ग) घर के अंदर का झरना
(घ) ज्ञान का प्रवाह
प्रश्न 7: कवि के अनुसार उसके जीवन की हर उपलब्धि और स्थिति क्यों स्वीकार्य है?
(क) क्योंकि वह बहुत साहसी है
(ख) क्योंकि यह सब उसकी प्रियतमा को प्यारा है
(ग) क्योंकि उसके पास कोई और विकल्प नहीं है
(घ) क्योंकि यह ईश्वर की देन है
प्रश्न 8: 'गरबीली गरीबी' में कौन-सा अलंकार है?
(क) यमक
(ख) श्लेष
(ग) उपमा
(घ) अनुप्रास
प्रश्न 9: 'पाताली अँधेरा' और 'धुएँ के बादल' किसके प्रतीक हैं?
(क) प्रकृति के सौंदर्य के
(ख) घोर विस्मृति और अकेलेपन के
(ग) प्रदूषण के
(घ) रहस्य के
प्रश्न 10: 'तार सप्तक' के पहले कवि के रूप में किसे जाना जाता है?
(क) अज्ञेय
(ख) शमशेर बहादुर सिंह
(ग) गजानन माधव मुक्तिबोध
(घ) रघुवीर सहाय
उत्तरमाला:
- (ग)
- (ख)
- (ग)
- (ग)
- (ग)
- (ख)
- (ख)
- (घ)
- (ख)
- (ग)
इन नोट्स और प्रश्नों का अच्छे से अध्ययन करें। यह आपकी परीक्षा की तैयारी में बहुत सहायक होगा। कोई और प्रश्न हो तो अवश्य पूछें।